नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 04 Mar, 2025
  • 30 min read
शासन व्यवस्था

स्वच्छ ऊर्जा: भारत के सतत् विकास का मार्ग

यह एडिटोरियल 03/03/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Get the transition right: How govt is pushing for a clean-energy shift” पर आधारित है। यह लेख भारत के स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को सामने लाया गया है तथा आर्थिक विकास और जलवायु अनुकूलन में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला गया है

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), COP26 प्लेज, राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA), अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, प्रधानमंत्री ई-ड्राइव योजना

मुख्य परीक्षा के लिये:

स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन का महत्त्व, भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। 

भारत का स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण एक आर्थिक आवश्यकता एवं एक पर्यावरणीय अनिवार्यता दोनों है, जो जलवायु परिवर्तन जोखिमों को कम करते हुए लाखों लोगों के लिये बिजली सुलभता सुनिश्चित करता है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन कार्रवाई के प्रति वैश्विक प्रतिरोध, बढ़ती लागत और बीमा चुनौतियों के कारण प्रगति के लिये खतरा उत्पन्न हो रहा है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तीव्र हो रहे हैं, ऐसे समाधानों को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक हो गया है जो आजीविका सुरक्षा के साथ संधारणीयता को संतुलित करते हैं। ये चुनौतियाँ इस परिवर्तन को तीव्र करने तथा आर्थिक कमज़ोरियों को दूर करने में निहित है।

India Renewable Energy Mix

स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है? 

  • ऊर्जा सुरक्षा और आयात पर निर्भरता में कमी: भारत अपनी आवश्यकता का लगभग 85% कच्चा तेल और 50% प्राकृतिक गैस आयात करता है, जिससे यह वैश्विक मूल्य आघात एवं आपूर्ति व्यवधानों के प्रति अत्यधिक सुभेद्य हो जाता है। 
    • घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार करने से ऊर्जा स्वतंत्रता बढ़ सकती है और उच्च आयात बिल का भार कम हो सकता है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार वर्ष 2023 में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का निवल आयातक रहा, जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के जोखिमों को उजागर किया है। 
      • भारत की COP26 प्लेज के अनुसार, वर्ष 2030 तक नवीकरणीय क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने से इन कमज़ोरियों को कम किया जा सकता है।
  • आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन: स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण से औद्योगिक विस्तार, नवाचार और रोज़गार को बढ़ावा मिल सकता है, विशेष रूप से सौर, पवन एवं ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्रों में। 
    • ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (CEEW) का अनुमान है कि भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र वर्ष 2030 तक दस लाख लोगों को रोज़गार दे सकता है।
    • इस परिवर्तन से विनिर्माण और ग्रिड अवसंरचना में नए अवसर खुलेंगे तथा आर्थिक असमानताएँ कम होंगी। 
  • जलवायु अनुकूलन और प्रदूषण नियंत्रण: भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति सर्वाधिक सुभेद्य देशों में से एक है, जो लगातार हीट वेव्स, बाढ़ और बढ़ते समुद्री स्तर का सामना कर रहा है। 
    • स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन से कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ सकती है तथा वायु प्रदूषण में कमी आ सकती है, जो प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मृत्यु के लिये जिम्मेदार है। 
    • वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2021 में विश्व भर में 8.1 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई है, जिसमें से आधे से अधिक मौतें चीन और भारत में हुई हैं।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में दिल्ली में वार्षिक PM2.5 (2.5 माइक्रोन या उससे कम व्यास वाले कणिका पदार्थ) सांद्रता के मामले में तीन वर्ष का उच्चतम स्तर दर्ज किया गया, जो स्वच्छ ऊर्जा अंगीकरण की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • ग्रामीण विद्युतीकरण और ऊर्जा सुलभता: नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से विकेंद्रीकृत सौर और पवन समाधान, दूरदराज़ के क्षेत्रों को विश्वसनीय बिजली प्रदान कर सकते हैं, जिससे ऊर्जा अपर्याप्तता कम हो सकती है। 
    • इससे वंचित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। 
    • वर्ष 2024 में, भारत में 24.5 गीगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जाने का लक्ष्य था, जो वर्ष 2023 की तुलना में दो गुना से अधिक वृद्धि है। उपयोगिता-स्तरीय संयंत्र 18.5 गीगावाट क्षमता तक पहुँच गए, जो वर्ष 2023 की तुलना में 2.8 गुना अधिक है।
  • हरित ऊर्जा में निवेश और वैश्विक नेतृत्व: भारत ने स्वयं को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी के रूप में स्थापित किया है, स्वच्छ ऊर्जा पहल के माध्यम से वैश्विक निवेश को आकर्षित किया है और राजनयिक संबंधों को मज़बूत किया है। 
    • इस क्षेत्र के विस्तार से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में अक्षय ऊर्जा में निवेश रिकॉर्ड 14.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। वहीं वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA) और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहल वैश्विक जलवायु कूटनीति में भारत के नेतृत्व को प्रदर्शित करती हैं।
  • ग्रीन हाइड्रोजन और औद्योगिक डीकार्बोनाइज़ेशन: भारत के भारी उद्योग, जैसे इस्पात और सीमेंट, कोयला आधारित ऊर्जा पर निर्भर हैं, लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन एक स्थायी विकल्प प्रदान करता है। 
    • हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने से भारत को औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ वैश्विक निर्यातक बनने में भी मदद मिल सकती है। 
    • वर्ष 2023 में ₹19,744 करोड़ के परिव्यय के साथ शुरू किये जाने वाले राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सालाना 5 MMT ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
  • सतत् शहरीकरण और EV संक्रमण: भारत का तीव्रता से हो रहा शहरीकरण स्वच्छ ऊर्जा चालित परिवहन और अवसंरचना पारिस्थितिकी तंत्र की मांग करता है। 
    • इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और स्मार्ट ग्रिडों का विस्तार करने से शहरों को अधिक संधारणीय बनाया जा सकता है, साथ ही तेल पर निर्भरता भी कम की जा सकती है।
    • EV अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये प्रधानमंत्री ई-ड्राइव योजना में दो वर्षों (अप्रैल 2024 – मार्च 2026) के लिये ₹ 10,900 करोड़ का परिव्यय है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताएँ और कार्बन बाज़ार: भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसके लिये स्वच्छ ऊर्जा में बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी। 
    • कार्बन ट्रेडिंग और उत्सर्जन न्यूनीकरण योजनाओं में भागीदारी से वित्तीय प्रोत्साहन एवं वैश्विक विश्वसनीयता मिल सकती है। 
    • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 के तहत शुरू की गई कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (वर्ष 2023) उद्योगों को कार्बन क्रेडिट का व्यापार करने की अनुमति देती है, जबकि भारत के अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 45% उत्सर्जन में कमी लाना है।

भारत के स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • अपर्याप्त ग्रिड अवसंरचना और भंडारण सीमाएँ: भारत का विद्युत ग्रिड वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा की परिवर्तनशीलता के प्रबंधन के लिये सुसज्जित नहीं है, जिसके कारण बार-बार कटौती और विफलताएँ उत्पन्न होती हैं। 
    • बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण समाधानों की कमी के कारण सौर एवं पवन ऊर्जा को एकीकृत करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, विशेष रूप से अधिकतम मांग के दौरान। 
    • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) की राष्ट्रीय विद्युत योजना-II का अनुमान है कि भारत को वर्ष 2032 तक अपनी विद्युत मांग को पूरा करने के लिये ट्रांसमिशन बुनियादी अवसंरचना में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के निवेश की आवश्यकता होगी।
  • जीवाश्म ईंधन लॉबी और नीतिगत विसंगतियाँ: भारत के ऊर्जा मिश्रण में वर्तमान में लगभग 70% बिजली उत्पादन के लिये कोयले का प्रभुत्व है। 
    • कोयला एवं तेल क्षेत्रों को पर्याप्त सब्सिडी और विधायी समर्थन की निरंतर प्राप्ति के कारण स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों की ओर संक्रमण धीमा हो रहा है। 
    • वित्त वर्ष 2023 में स्वच्छ ऊर्जा और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी दोनों में लगभग 40% की वृद्धि हुई। कोयला मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2027 तक 1.3 बिलियन टन घरेलू कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
      • लाखों श्रमिक कोयला खनन और जीवाश्म ईंधन आधारित उद्योगों पर निर्भर हैं, तथा स्वच्छ ऊर्जा की ओर तीव्रता से परिवर्तन से इन क्षेत्रों में नौकरियाँ खत्म हो सकती हैं एवं आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है। 
    • श्रमिकों को पुनः कौशल प्रदान करने तथा वैकल्पिक उद्योगों को विकसित करने के लिये एक न्यायोचित परिवर्तन योजना की आवश्यकता है।

Growth Rate of Energy

  • डिस्कॉम (DISCOM) (वितरण कंपनियाँ) पर वित्तीय दबाव: भारत की बिजली वितरण कंपनियाँ डिस्कॉम (DISCOM) भारी कर्ज में डूबी हुई हैं, जिससे स्वच्छ ऊर्जा अवसंरचना में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो गई है। 
    • उच्च पारेषण घाटा, अपर्याप्त टैरिफ संग्रह तथा जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली के लिये  सब्सिडी उनके वित्तीय संकट को और बढ़ा देते हैं।
    • RBI की रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य DISCOM वित्त पर भार बना हुआ है, जिनका संचित घाटा सत्र 2022-23 तक 6.5 लाख करोड़ रुपए (GDP का 2.4%) तक गया।
  • घरेलू विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला अंतराल में धीमी प्रगति: भारत सोलर मॉड्यूल, विंड टर्बाइन और लिथियम-आयन बैटरी के लिये आयात पर निर्भर है, जिससे स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के प्रति सुभेद्य हो गया है। 
    • सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद घरेलू उत्पादन अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। 
    • उदाहरण के लिये, सत्र 2023-24 में भारत ने 7 बिलियन डॉलर मूल्य के सौर उपकरण आयात किये, जिसमें चीन ने 62.6% की आपूर्ति की।
  • भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंजूरी: बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये विशाल भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होती है, जिसके कारण प्रायः किसानों के साथ संघर्ष, विस्थापन और पर्यावरणीय चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, राजस्थान के जैसलमेर में रेवाड़ी के ग्रामीण 450 मेगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिये अडानी समूह को भूमि हस्तांतरित करने के राज्य सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं।
    • भूमि अनुमोदन में विलंब तथा जैव-विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव की चिंता के कारण परियोजना कार्यान्वयन धीमा हो जाता है। 
      • बीमा के लिये, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड संरक्षण मामले के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने ओवरहेड विद्युत लाइनों पर प्रतिबंध लगा दिया। (हालाँकि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ओवरहेड विद्युत संचरण केबलों पर अपने पूर्ण प्रतिबंध को वापस ले लिया है)
  • नवीकरणीय ऊर्जा की आंतरायिकता और विश्वसनीयता: कोयला व गैस आधारित बिजली के विपरीत, सौर एवं पवन जैसी नवीकरणीय ऊर्जाएँ परिवर्तनशील हैं तथा महंगे भंडारण समाधानों के बिना चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध नहीं करा सकती हैं। 
    • इससे ग्रिड के स्थायित्व और पीक-ऑवर की मांग को पूरा करने के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। जून 2024 में, भारत में बिजली की मांग 243.3 गीगावॉट के शीर्ष पर पहुँच गई, लेकिन सौर एवं पवन ऊर्जा का योगदान उस स्तर तक नहीं पहुँच पाया, जिससे सरकार को अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के बावजूद कोयला संयंत्र संचालन का विस्तार करने के लिये विवश होना पड़ा।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के अंगीकरण में धीमी गति: तेल पर निर्भरता कम करने के लिये EV में संक्रमण आवश्यक है, लेकिन अपर्याप्त चार्जिंग स्टेशन, उच्च बैटरी लागत और उपभोक्ताओं द्वारा धीमी गति से अंगीकरण जैसी चुनौतियाँ प्रगति में बाधा डालती हैं।
    • मेट्रो शहरों के बाहर अपर्याप्त चार्जिंग नेटवर्क विस्तार को सीमित करता है। फरवरी 2024 तक, भारत में कुल 3.9 मिलियन सार्वजनिक और अर्द्ध-सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की आवश्यकता के मुकाबले केवल 12,146 सार्वजनिक EV चार्जिंग स्टेशन थे, जो प्रत्येक 20 वाहनों के लिये 1 स्टेशन का अनुपात बनाए रखते हैं।

भारत स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण में तीव्रता लाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

  • ग्रिड अवसंरचना और ऊर्जा भंडारण को सुदृढ़ करना: भारत को बड़े पैमाने पर बैटरी भंडारण में निवेश करते हुए परिवर्तनशील नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने के लिये अपने पावर ग्रिड का आधुनिकीकरण करना चाहिये। 
    • स्मार्ट ग्रिड, पम्प हाइड्रो स्टोरेज और हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का विकास करके ग्रिड की विश्वसनीयता बढ़ाई जा सकती है। 
    • ट्रांसमिशन घाटे को कम करने के लिये रूफटॉप सोलर पैनल और माइक्रोग्रिड सहित  विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर और पुनरोद्धार वितरण क्षेत्र योजना (RDSS) के बीच तालमेल से कुशल विद्युत निकासी एवं वितरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • डिस्कॉम और नवीकरणीय निवेश के लिये वित्तीय सुधार: राजस्व संग्रह में सुधार, घाटे को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करके बिजली वितरण कंपनियों (DISCOM) को पुनर्जीवित करना आवश्यक है।
    • ग्रीन बॉण्ड, व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण और रियायती ऋण जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र निजी निवेश को आकर्षित कर सकते हैं। 
    • नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये जोखिम-साझाकरण तंत्र का विस्तार करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा। 
  • घरेलू विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलन बढ़ाना: घरेलू उत्पादन को मज़बूत करके  आयातित सोलर मॉड्यूल, विंड टर्बाइन और लिथियम-आयन बैटरी पर निर्भरता कम करना महत्त्वपूर्ण है।
    • सोलर PV और बैटरी भंडारण के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार करने से स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
    • कर प्रोत्साहन के साथ विशेष नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का निर्माण करने से वैश्विक निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है। 
    • सोडियम-आयन और सॉलिड-स्टेट बैटरी जैसे वैकल्पिक बैटरी रसायन विज्ञान में अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देने से ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी।
  • भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय अनुमोदन में तीव्रता लाना: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण को सुव्यवस्थित करना तथा न्यूनतम पारिस्थितिक प्रभाव सुनिश्चित करना, कार्यान्वयन को तीव्र कर सकता है। 
    • भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण, एकल खिड़की मंजूरी प्रणाली को अपनाना तथा निर्णय लेने में स्थानीय समुदायों को शामिल करना, संघर्षों को कम कर सकता है।
    • कृषि के साथ प्रतिस्पर्द्धा से बचने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा पार्कों को बंजर भूमि पर स्थापित किया जाना चाहिये।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) कार्यढाँचे के अंतर्गत अनुमोदन में तीव्रता लाने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) पारिस्थितिकी तंत्र और ग्रीन मोबिलिटी का विस्तार: व्यापक EV चार्जिंग नेटवर्क विकसित करना, बैटरी स्वैपिंग बुनियादी अवसंरचना को प्रोत्साहित करना और स्वदेशी बैटरी विनिर्माण को बढ़ावा देना EV अंगीकरण में तीव्रता ला सकता है। 
    • विद्युतीकरण के माध्यम से शहरी सार्वजनिक परिवहन को सुदृढ़ करना तथा नवीकरणीय ऊर्जा के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों को एकीकृत करना जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करेगा। 
    • इलेक्ट्रिक माल ढुलाई और लंबी दूरी के परिवहन को प्रोत्साहित करने से लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में उत्सर्जन कम होगा। 
      • प्रधानमंत्री ई-ड्राइव योजना और राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP) के सम्मिलन से एक समग्र ग्रीन मोबिलिटी इको-सिस्टम का निर्माण हो सकता है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन और जैव ऊर्जा के साथ ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाना: औद्योगिक डीकार्बोनाइज़ेशन और ऊर्जा भंडारण के लिये ग्रीन हाइड्रोजन प्रोडक्शन को बढ़ाने से दीर्घकालिक संधारणीयता को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • घरेलू इलेक्ट्रोलाइज़र विनिर्माण बाज़ार विकसित करने तथा हाइड्रोजन उत्पादन के लिये अपतटीय पवन ऊर्जा का लाभ उठाने से लागत कम हो जाएगी। 
    • बायोमास आधारित बिजली, जैव ईंधन और अपशिष्ट से ऊर्जा समाधान को बढ़ावा देने से ग्रामीण रोज़गार एवं ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि हो सकती है। 
    • राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA) के साथ जोड़ने से वैकल्पिक ईंधन में भारत की स्थिति मज़बूत होगी।
  • नीति स्थायित्व और नियामक कार्यढाँचे को मज़बूत करना: दीर्घकालिक नीति स्थायित्व सुनिश्चित करना, बार-बार टैरिफ परिवर्तनों को कम करना और लागू करने योग्य नवीकरणीय खरीद दायित्वों (RPO) का निर्माण करना निवेशकों को स्पष्टता प्रदान कर सकता है। 
    • एक मज़बूत कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र को लागू करने और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना का विस्तार करने से उत्सर्जन में कमी के लिये बाज़ार संचालित प्रोत्साहन उत्पन्न होंगे। 
    • नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) और ग्रीन ओपन एक्सेस पॉलिसीज़ के लिये अनुपालन तंत्र को मज़बूत करने से निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
  • कोयला-निर्भर क्षेत्रों के लिये न्यायोचित परिवर्तन सुनिश्चित करना: कोयला-निर्भर राज्यों के लिये संरचित परिवर्तन योजना में पुनः कौशल कार्यक्रम, आर्थिक विविधीकरण और सामाजिक सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिये। 
    • कोयला खनन क्षेत्रों में वैकल्पिक आजीविका को समर्थन देने के लिये न्यायोचित संक्रमण निधि की स्थापना से आर्थिक व्यवधानों को कम किया जा सकता है।
    • प्रभावित क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा पार्कों, हरित उद्योगों और संधारणीय पर्यटन को बढ़ावा देने से रोज़गार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। 
      • डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (DMF) फंड्स का उपयोग समुदाय-आधारित स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को सुविधाजनक बनाने के लिये किया जा सकता है।
  • ग्रामीण और कृषि विकास के लिये विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा: ऑफ-ग्रिड सौर, माइक्रोग्रिड और सौर पंपों का विस्तार करने से ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा सुलभता एवं कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। 
    • कृषि वोल्टेइक (सौर कृषि) को बढ़ावा देने से खाद्य सुरक्षा को प्रभावित किये बिना दोहरी भूमि उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है। 
    • सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के माध्यम से लघु-स्तरीय नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण तंत्र को मज़बूत करने से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाना: वैश्विक जलवायु निधि, द्विपक्षीय समझौतों और प्रौद्योगिकी अंतरण तंत्र का लाभ उठाकर भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन को बढ़ावा दिया जा सकता है। 
    • G20 देशों, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और UNFCCC के साथ सहयोग को मज़बूत करने से रियायती वित्तपोषण एवं उन्नत प्रौद्योगिकियाँ प्राप्त हो सकती हैं। 
    • वैश्विक कार्बन बाज़ारों में भागीदारी बढ़ाने से नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये नए राजस्व स्रोत सृजित हो सकते हैं। 
    • भारत को जलवायु अनुकूलन और शमन में सहायता के लिये हानि और क्षति कोष तथा वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) तक अधिक पहुँच के लिये प्रयास करना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत का स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संधारणीयता के लिये आवश्यक है। ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय बाधाओं और नीतिगत असंगतियों जैसी चुनौतियों का समाधान इस परिवर्तन को गति देगा। दीर्घकालिक सफलता के लिये संधारणीयता और आजीविका सुरक्षा दोनों सुनिश्चित करने वाला एक संतुलित उपागम महत्त्वपूर्ण है। यह SDG 7 (सस्ती और प्रदुषण-मुक्त ऊर्जा), SDG 8 (उत्कृष्ट श्रम और आर्थिक विकास) और SDG 13 (जलवायु परिवर्तन कार्रवाई) के साथ संरेखित है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और जलवायु अनुकूलन के संदर्भ में भारत के लिये स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। इस संक्रमण में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और इसे गति देने के लिये व्यवहार्य नीतिगत उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?     (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न 1. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस. डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये।     (2018)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2