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डेली न्यूज़

  • 31 Jul, 2021
  • 45 min read
सामाजिक न्याय

भारत में गंभीर तीव्र कुपोषण

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, WHO, सतत् विकास लक्ष्य, कुपोषण को दूर करने हेतु सरकारी योजनाएँ

मेन्स के लिये:

भारत में गंभीर तीव्र कुपोषण की स्थिति, कुपोषण को दूर करने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, नवंबर 2020 तक भारत में 9.2 लाख से अधिक बच्चे (छह महीने से छह साल तक के) 'गंभीर रूप से कुपोषित' थे।

  • यह इस चिंता को रेखांकित करता है कि कोविड-19 महामारी गरीबों में भी सबसे गरीब लोगों के बीच स्वास्थ्य और पोषण संकट को बढ़ा सकती है।

प्रमुख बिंदु 

गंभीर तीव्र कुपोषण (SAM) :

  • WHO की परिभाषा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ऊँचाई की तुलना में बहुत कम वज़न या 115 मिमी. से कम मध्य-ऊपरी बांह की परिधि या पोषण संबंधी एडिमा की उपस्थिति को 'गंभीर तीव्र कुपोषण' (SAM) के रूप में परिभाषित करता है।
  • SAM से पीड़ित बच्चों की कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण उनकी मृत्यु की संभावना बीमारियों की तुलना में नौ गुना अधिक होती है।
  • पोषण संबंधी एडिमा: भुखमरी या कुपोषण की स्थिति में प्रोटीन की कमी के परिणामस्वरूप ऊतकों में असामान्य द्रव की वृद्धि (स्फाय- Oedema ) हो जाती है।
  • भले ही एल्ब्यूमिन का रक्त स्तर कम न हो लेकिन भुखमरी के परिणामस्वरूप एडिमा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

संबंधित निष्कर्ष:

  • SAM से पीड़ित बच्चों की संख्या (राष्ट्रीय परिदृश्य): नवंबर 2020 तक देश भर में छह महीने से छह साल तक के अनुमानित 9,27,606 'गंभीर रूप से कुपोषित' बच्चों की पहचान की गई।
  • SAM बच्चों की संख्या से संबंधित राज्य:
    • SAM से प्रभावित बच्चों की संख्या उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक (3,98,359) और उसके बाद बिहार (2,79,427) में है।
    • देश में सबसे ज़्यादा बच्चे उत्तर प्रदेश और बिहार में ही हैं।
    • महाराष्ट्र (70,665) > गुजरात (45,749) > छत्तीसगढ़ (37,249) > ओडिशा (15,595) > तमिलनाडु (12,489) > झारखंड (12,059) > आंध्र प्रदेश (11,201) > तेलंगाना (9,045) > असम (7,218) > कर्नाटक (6,899) > केरल (6,188) > राजस्थान (5,732)।
  • वे राज्य जहाँ गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या नगण्य है: लद्दाख, लक्षद्वीप, नगालैंड, मणिपुर और मध्य प्रदेश में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे नहीं हैं।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण निष्कर्ष:
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) 2015-16 से पता चलता है कि बच्चों में गंभीर तीव्र कुपोषण की प्रसार दर 7.4% थी।
    • एनएफएचएस-5 से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2019-20 में 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बच्चों में कुपोषण बढ़ा है।
    • स्टंटिंग: सर्वेक्षण में शामिल 22 में से लगभग 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2015-16 की तुलना में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्टंटिंग प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की है।
      • स्टंटिंग स्थिति तब होती है जब किसी बच्चे की लंबाई उसकी उम्र के हिसाब से कम होती है, आमतौर पर बच्चों में कुपोषण बार-बार होने वाले संक्रमण के कारण होता है।

चाइल्ड वेस्टिंग:

  • इस श्रेणी के अंतर्गत 5 वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में कम होता है।
  • भारत में हमेशा चाइल्ड वेस्टिंग का उच्च स्तर रहा है।
    • चाइल्ड वेस्टिंग में कमी किये जाने के बजाय इसमें तेलंगाना, केरल, बिहार, असम और जम्मू-कश्मीर में वृद्धि देखी गई है तथा महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल में स्थिरता की स्थिति है।
      • वर्ष 2019-20 में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में वेस्टिंग के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई।
      • वेस्टिंग बच्चों में उनकी लंबाई के अनुपात में कम वजन होना है जो तीव्र अल्पपोषण को दर्शाता है। यह पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर को बढ़ावा देता है।
      • गंभीर वेस्टिंग तथा अल्पवज़नी बच्चों की संख्या: वर्ष 2019-20 में 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने 5 साल से कम उम्र के वेस्टिंग तथा अल्पवज़नी बच्चों की संख्या के मामले में वृद्धि दर्ज की।
  • कोविड-19 का प्रभाव:
    • कोविड-19 महामारी ने लाखों लोगों को गरीबी में धकेल दिया है और इससे भी कहीं अधिक लोगों की आय पर प्रभाव पड़ा है, साथ ही महामारी के कारण आर्थिक रूप से वंचित लोगों की आजीविका पर भी गंभीर प्रभाव देखने को मिला है, जो कुपोषण और खाद्य असुरक्षा की दृष्टि से काफी संवेदनशील है।
    • महामारी के कारण लागू किये गए लॉकडाउन ने आवश्यक सेवाओं जैसे- आँगनवाड़ी केंद्रों के तहत पूरक आहार, मध्याह्न भोजन, टीकाकरण और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की पूरकता आदि को बाधित किया है। 

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • पोषण अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) या पोषण अभियान शुरू किया है।
  • एनीमिया मुक्त भारत अभियान: वर्ष 2018 में शुरू किये गए इस मिशन का उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत तक कम करना है।
  • ‘मिड-डे मील’ योजना: इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों के पोषण स्तर में सुधार करना है, जिससे स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से समाज के सबसे संवेदनशील लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, ताकि भोजन तक पहुँच को कानूनी अधिकार बनाया जा सके।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं को बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने हेतु 6,000 रुपए प्रत्यक्ष रूप से उनके बैंक खातों में स्थानांतरित किये जाते हैं।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: इसे वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व-स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच एवं रेफरल सेवाएँ प्रदान करना है।

नोट: सतत् विकास लक्ष्य (SDG-2: ज़ीरो हंगर) के तहत वर्ष 2030 तक सभी प्रकार की भूख और कुपोषण को समाप्त करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोगों, विशेषकर बच्चों को पूरे वर्ष पर्याप्त और पौष्टिक भोजन मिले।

आगे की राह

  • घर तथा सुविधा आधारित देखभाल: कोविड-19 महामारी खाद्य विविधता को संकुचित करने के साथ ही कम खाद्यान्न तथा कई बार भोजन को स्किप करने जैसे विभिन्न कारण कुपोषण की स्थिति को अधिक गंभीर बना सकते हैं। इसका समाधान घर-आधारित और सुविधा-आधारित दोनों तरह की देखभाल हो सकता है।
  • समन्वय स्थापित करना: गंभीर तीव्र कुपोषण का भोजन की उपलब्धता, उपयोग और जागरूकता से सीधा संबंध है। ऐसे में इसे दूर करने अथवा कम करने के लिये एक तात्कालिक कदम यह हो सकता है कि सरकारी प्रणालियों के साथ उचित समन्वय स्थापित किया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि परिवारों को न केवल राशन/भोजन बल्कि आवश्यक शिक्षा और सहायता भी मिले।
  • पोषण पुनर्वास केंद्रों (NRCs) को सुदृढ़ बनाना: गंभीर तीव्र कुपोषण (SAM) की समस्या से निपटने हेतु बनाए गए पोषण पुनर्वास केंद्रों (Nutrition Rehabilitation Centres- NRCs) को मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है।
    • विभिन्न अध्ययन इस बात का संकेत देते हैं कि NRCs बहुत अधिक प्रभावी नहीं रहे हैं।
    • कई मामलों में यह देखा गया है कि SAM के मामलों को NRCs से जल्दी छुट्टी दे दी गई क्योंकि या तो केंद्र एक ही मामले की लगातार देखभाल नहीं कर सकता है या देखभाल करने वाले व्यक्ति सुविधा केंद्र पर अधिक समय तक नहीं रह सकते हैं या उच्चाधिकारियों द्वारा पर्याप्त पर्यवेक्षण नहीं किया जाता है।
  • अनुकूलित मेन्यू तैयार करना: SAM मामलों के लिये विशेषज्ञों के परामर्श से अनुकूलित मेन्यू और दिशा-निर्देश तैयार करने की आवश्यकता है।
  • SAM मामलों का पृथक्करण: प्रशासनिक और परिचालन सुविधा के साथ-साथ बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये SAM से जुड़े मामलों को छोटी इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है।
    • ज़िला/ब्लॉक स्तर के स्वास्थ्य कर्मचारियों के समग्र मार्गदर्शन में छोटी इकाइयों के प्रबंधन/समन्वय और निगरानी की ज़िम्मेदारी मेडिकल कॉलेजों, स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों, महिला समूहों जैसी स्वतंत्र संस्थाओं को सौंपी जा सकती है।
  • आँगनबाड़ी केंद्रों की भूमिका: SAM से ग्रसित बच्चों की पहचान देश भर के 10 लाख से अधिक आँगनवाड़ी केंद्रों द्वारा की गई है।
    • आँगनवाड़ियों को पहले की तुलना में अधिक कार्यात्मक बनाए जाने की आवश्यकता है और यदि लॉकडाउन के कारण बच्चे आँगनबाड़ी केंद्रों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं तो आँगनवाड़ियों को बच्चों तक पहुँचने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सुधार आधारित और परिणाम से जुड़ी योजना

प्रिलिम्स के लिये

सुधार-आधारित और परिणाम-लिंक्ड पुनरुत्थान वितरण क्षेत्र योजना

मेन्स के लिये

योजना का महत्त्व और आवश्यकता, डिस्कॉम कंपनियों के पुर्नोत्थान का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में एक सुधार-आधारित और परिणाम-लिंक्ड पुनरुत्थान वितरण क्षेत्र योजना को मंज़ूरी दी है।

  • यह योजना डिस्कॉम कंपनियों (विद्युत वितरण कंपनियों) के लिये इस बात को लेकर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPRs) प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाती है कि वे वित्तपोषण का लाभ उठाने हेतु अपने परिचालन घाटे को कम करने की योजना किस प्रकार बनाती हैं।
  • प्रारंभ में डिस्कॉम को दी गई प्रारंभिक समयसीमा 31 अक्तूबर, 2021 थी। अब इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2021 कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

योजना का उद्देश्य

  • वर्ष 2024-25 तक अखिल भारतीय स्तर पर AT&C (कुल तकनीकी और वाणिज्यिक) हानियों को 12-15% तक कम करना।
  • वर्ष 2024-25 तक ACS-ARR अंतर (यानी बिजली की कुल लागत और बिजली की आपूर्ति से उत्पन्न राजस्व के बीच के अंतर) को शून्य करना।
  • आधुनिक डिस्कॉम के लिये संस्थागत क्षमताओं का विकास करना।
  • वित्तीय रूप से सतत् और परिचालन कुशल वितरण क्षेत्र के माध्यम से उपभोक्ताओं के लिये बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता, विश्वसनीयता एवं सामर्थ्यता में सुधार करना।
  • योजना का कार्यान्वयन ‘वन-साइज़ फिट ऑल’ दृष्टिकोण के बजाय प्रत्येक राज्य के लिये तैयार की गई विशिष्ट कार्ययोजना पर आधारित होगा।

विशेषताएँ

  • प्रतिबंधात्मक/सशर्त वित्तीय सहायता: योजना आपूर्ति बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करने के लिये डिस्कॉम को सशर्त वित्तीय सहायता प्रदान करके सभी डिस्कॉम (निजी क्षेत्र के डिस्कॉम को छोड़कर) की परिचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता में सुधार करना चाहती है।
  • विभिन्न योजनाओं का समावेशन: यह प्रस्तावित है कि निम्नलिखित योजनाओं के तहत वर्तमान में चल रही अनुमोदित परियोजनाओं को सम्मिलित किया जाएगा:
    • एकीकृत विद्युत विकास योजना (IPDS)
    • दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY)
    • उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY)
    • जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख केंद्रशासित प्रदेशों के लिये प्रधानमंत्री विकास पैकेज (PMDP) 2015।
  • कृषि फीडरों का सौरीकरण: इस योजना में किसानों के लिये बिजली की आपूर्ति में सुधार लाने तथा कृषि फीडरों के सौरीकरण के माध्यम से उन्हें दिन के समय बिजली उपलब्ध कराने पर विशेष ध्यान दिया गया है। 
  • स्मार्ट मीटरिंग: इस योजना की एक प्रमुख विशेषता प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग के माध्यम से सार्वजनिक-निजी-साझेदारी (PPP) मॉडल को लागू करने के लिये उपभोक्ता का सशक्तीकरण कर उन्हें सक्षम बनाना है।
    • इससे स्मार्ट मीटर उपभोक्ता, मासिक आधार के बजाय नियमित आधार पर अपनी बिजली की खपत की निगरानी कर सकेंगे, जो उन्हें अपनी ज़रूरतों के अनुसार तथा उपलब्ध संसाधनों के संदर्भ में बिजली के उपयोग में मदद कर सकता है।
    • इसके पहले चरण में दिसंबर 2023 तक लगभग 10 करोड़ प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने का प्रस्ताव है। 
  • उत्तोलन प्रौद्योगिकी: सिस्टम मीटर, प्रीपेड स्मार्ट मीटर सहित आईटी/ओटी उपकरणों के माध्यम से उत्पन्न डेटा का विश्लेषण करने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का लाभ उठाया जाएगा। 
    • इस डिस्कॉम ( DISCOM) को नुकसान में कमी, मांग का पूर्वानुमान, दिन के समय (ToD), टैरिफ, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) एकीकरण और अन्य संभावित विश्लेषण पर निर्णय लेने में सक्षम बनाया जा सकेगा।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

मैनुअल स्कैवेंजिंग का खतरा

प्रिलिम्स के लिये

सफाईमित्र सुरक्षा चुनौती, 'स्वच्छता अभियान एप'

मेन्स के लिये

मैनुअल स्कैवेंजिंग संबंधी खतरा और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र ने दावा किया है कि पिछले पाँच वर्षों में हाथ से मैला ढोने (Manual scavenging) के कारण किसी की भी मौत नहीं हुई है।

  • हालाँकि सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक के अनुसार, वर्ष 2016 और वर्ष 2020 के बीच मैनुअल स्कैवेंजिंग’ (Manual Scavenging) के कारण देश भर में 472 तथा वर्ष 2021 में अब तक 26 मौतें दर्ज की गईं। 
    • सफाई कर्मचारी आंदोलन मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन के लिये एक मुहिम है।
  • संविधान का अनुच्छेद 21 व्यक्ति को मानवीय गरिमा के साथ 'जीवन जीने के अधिकार' की गारंटी देता है।  यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये अधिमान्य है।

प्रमुख बिंदु 

मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging):

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों और सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है। 

कुप्रथा के प्रसार का कारण:

  • उदासीन रवैया: कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने में असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया है।
  • आउटसोर्स की समस्या: कई स्थानीय निकायों द्वारा सीवर सफाई जैसे कार्यों के लिये निजी ठेकेदारों से अनुबंध किया जाता है परंतु इनमें से कई फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर" (fly-By-Night Operator), सफाई कर्मचारियों के लिये उचित दिशानिर्देश एवं नियमावली  का  प्रबंधन नहीं करते हैं। 
    • ऐसे में सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर इन कंपनियों या ठेकेदारों द्वारा मृतक से किसी भी प्रकार का संबंध होने से इनकार कर दिया जाता है। 
  • सामाजिक मुद्दा: मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित है।
  • यह प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।  
  • “मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993” के तहत  देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है, हालाँकि इसके साथ जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी जारी है।  
    • यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है।

उठाए गए कदम:

  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
    • इसमें सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके पेश करने और सीवर से होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्कैवेंजर्स को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव है।
    • यह मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन होगा।
    • इसे अभी कैबिनेट की मंज़ूरी प्राप्त नहीं हुई है।
  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 :
    • 1993 के अधिनियम को प्रतिस्थापित करते हुए 2013 का अधिनियम सूखे शौचालयों पर प्रतिबंध के अतिरिक्त अस्वच्छ शौचालयों, खुली नालियों, या गड्ढों की सभी मैनुअल स्कैवेंजिंग सफाई को गैरकानूनी घोषित करता है।
  • अत्याचार निवारण अधिनियम
    • वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम, स्वच्छता कार्यकर्त्ताओं के लिये एक एकीकृत उपाय बन गया, क्योंकि मैला ढोने वालों में से 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया।
  • सफाईमित्र सुरक्षा चुनौती:
    • इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
    • सरकार ने सभी राज्यों के लिये अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इस ‘चुनौती’ का शुभारंभ किया है, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
  • 'स्वच्छता अभियान एप':
    • इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान और जियोटैग करने के लिये विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सेनेटरी शौचालयों से प्रतिस्थापित किया जा सके तथा हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने के लिये उनका पुनर्वास किया जा सके।
  • सर्वोच्च न्ययालय का निर्णय: वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश के तहत सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया, जो वर्ष 1993 से सीवेज के काम करने के दौरान मारे गए हैं और साथ ही सभी के परिवारों को 10 लाख रुपए मुआवज़ा प्रदान करने के भी निर्देश दिये गए थे।

आगे की राह

  • उचित पहचान: राज्यों को दूषित कीचड़ की सफाई में संलग्न श्रमिकों की पहचान करनी चाहिये और उनका एक उचित रिकॉर्ड बनाना चाहिये।
  • स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना: 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वच्छ भारत मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है और स्मार्ट शहरों एवं शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने की वकालत की गई थी।
  • सामाजिक संवेदनशीलता: हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना आवश्यक है कि हाथ से मैला ढोने की यह प्रथा जाति व्यवस्था में अंतर्हित है। 
  • सख्त कानून की आवश्यकता: यदि कोई कानून राज्य एजेंसियों पर स्वच्छता सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक वैधानिक दायित्व निर्धारित करता है, तो इसके माध्यम से अधिकारियों द्वारा श्रमिकों की अधिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

क्रीमी लेयर: OBC

प्रिलिम्स के लिये

न्यायमूर्ति रोहिणी समिति, मंडल आयोग, इंदिरा साहनी वाद

मेन्स के लिये

क्रीमी लेयर की अवधारणा, महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कुछ सांसदों ने संसद के मानसून सत्र में ‘क्रीमी लेयर’ को परिभाषित करने का मुद्दा उठाया है।

इसके अलावा न्यायमूर्ति रोहिणी समिति ओबीसी कोटा के उप-वर्गीकरण पर विचार कर रही है कि यदि कोई विशेष समुदाय या समुदायों का समूह ओबीसी कोटा से सबसे अधिक लाभान्वित हो रहा है, तो इन विसंगतियों को किस प्रकार दूर किया जाए।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) की सिफारिश के आधार पर सरकार ने अगस्त 1990 में सिविल पदों और सेवाओं में सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs) के लिये 27% आरक्षण अधिसूचित किया था।
  • इसे चुनौती दिये जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने नवंबर 1992 में (इंदिरा साहनी वाद) OBC के लिये 27% आरक्षण को बरकरार रखा था, हालाँकि यह क्रीमी लेयर की अवधारणा के अधीन था।

परिभाषा

  • यह एक अवधारणा है जो उस सीमा को निर्धारित करती है जिसके भीतर ओबीसी आरक्षण लाभ लागू होता है।
  • यद्यपि सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिये 27% कोटा निर्धारित है, किंतु जो लोग ‘क्रीमी लेयर’ (आय और माता-पिता के रैंक के आधार पर विभिन्न श्रेणियाँ) के अंतर्गत आते हैं, उन्हें इस कोटा का लाभ नहीं मिलता है।
  • आय सीमा के अलावा क्रीमी लेयर की वर्तमान परिभाषा अभी भी समान ही है।

क्रीमी लेयर के अंतर्गत परिभाषित श्रेणियाँ:

  • 8 लाख से अधिक आय:
    • जो सरकार में नहीं हैं उनके लिये मौजूदा सीमा 8 लाख रुपए प्रतिवर्ष है।
    • आय सीमा हर तीन वर्ष में बढ़ाई जानी चाहिये। इसे पिछली बार वर्ष 2017 में संशोधित किया गया था (अब तीन वर्ष से अधिक)।
  • माता-पिता की रैंक: सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के लिये सीमा उनके माता-पिता की रैंक पर आधारित होती है, न कि आय पर।
    • उदाहरण के लिये एक व्यक्ति को क्रीमी लेयर के अंतर्गत माना जाता है यदि उसके माता-पिता में से कोई एक संवैधानिक पद पर हो, यदि माता-पिता को सीधे ग्रुप-A में भर्ती किया गया है या यदि माता-पिता दोनों ग्रुप-B सेवाओं में हैं।
    • यदि माता-पिता 40 वर्ष की आयु से पहले पदोन्नति के माध्यम से ग्रुप-A में प्रवेश करते हैं, तो उनके बच्चे क्रीमी लेयर में शामिल होंगे।
    • सेना में कर्नल या उच्च पद के अधिकारी के बच्चे और नौसेना तथा वायु सेना में समान रैंक के अधिकारियों के बच्चे भी क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते हैं। ऐसे ही अन्य कई मानदंड भी मौजूद हैं।

सरकार का प्रस्ताव:

  • कैबिनेट नोट के मसौदे में कहा गया है कि क्रीमी लेयर का निर्धारण सभी प्रकार की आय जिसमें आयकर के लिये वेतन की गणना शामिल है, पर किया जाएगा लेकिन कृषि आय पर नहीं।
  • सरकार 12 लाख रुपए तक की आय पर आम सहमति पर विचार कर रही है, जबकि संसद समिति ने यह सीमा प्रतिवर्ष 15 लाख रुपए तक करने की सिफारिश की है।
    • इसने OBC की क्रीमी लेयर श्रेणी के लिये वार्षिक आय सीमा की गणना करते समय वेतन और कृषि राजस्व को बाहर करने की भी सिफारिश की।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम: टीम क्लॉ

प्रिलिम्स के लिये:

ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम, सियाचिन ग्लेशियर, टीम क्लॉ, ऑपरेशन मेघदूत 

मेन्स के लिये

टीम क्लॉ और ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम का महत्त्व, दिव्यांगों संबंधी समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने सियाचिन ग्लेशियर की चढ़ाई के लिये दिव्यांग लोगों की एक टीम का नेतृत्त्व करने और दिव्यांगों की सबसे बड़ी टीम के लिये एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाने हेतु टीम ‘क्लॉ’ (CLAW) को मंज़ूरी दी है।

  • यह 'ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम ट्रिपल वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' अभियान का हिस्सा है।
  • ट्रिपल एलीमेंटल वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, वर्ष 2021 में दिव्यांग लोगों के समूहों द्वारा भूमि, हवा और जल के भीतर सामूहिक प्रयास के माध्यम से विभिन्न उपलब्धियाँ हासिल कर विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने की एक शृंखला है।

सियाचिन ग्लेशियर

  • सियाचिन ग्लेशियर हिमालय में पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है, जो प्वाइंट NJ9842 के उत्तर-पूर्व में है, यहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा समाप्त होती है।
  • यह दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है।
    • ताज़िकिस्तान के ‘यज़्गुलेम रेंज’ में स्थित ‘फेडचेंको ग्लेशियर’ दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का सबसे लंबा ग्लेशियर है।
  • सियाचिन ग्लेशियर उस जल निकासी विभाजन क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है, जो काराकोरम के व्यापक हिमाच्छादित हिस्से में यूरेशियन प्लेट को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करता है, जिसे कभी-कभी ‘तीसरा ध्रुव’ भी कहा जाता है।
  • सियाचिन ग्लेशियर लद्दाख का हिस्सा है, जिसे अब केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया है।
  • सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध क्षेत्र है।
  • पूरा सियाचिन ग्लेशियर वर्ष 1984 (ऑपरेशन मेघदूत) में भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया था।

China

प्रमुख बिंदु   

अभियान के बारे में: 

  • प्रारंभ में 20 दिव्यांग लोगों की एक टीम को प्रशिक्षण के लिये चुना जाएगा, जिसके उपरांत अंतिम अभियान दल का चयन किया जाएगा।
    • अंतिम अभियान दल (कम-से-कम 6 दिव्यांग लोग), सियाचिन बेस कैंप से कुमार पोस्ट तक ट्रेकिंग करेगा।
    • कुमार पोस्ट करीब 15,632 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।

टीम क्लॉ और ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम:

  • टीम क्लॉ (Team CLAW) : टीम क्लॉ (Conquer Land Air Water) पूर्व भारतीय विशेष बल कमांडो की एक टीम है।
    • सामान्यतः ये सभी या तो भारतीय सेना के पैरा कमांडो या नेवल मरीन कमांडो होते हैं, जिन्हें मार्कोस (MARCOS) के नाम से भी जाना जाता है।
    • इन कमांडो के पास कई विशेषज्ञताएँ हैं - ये न केवल युद्ध में बल्कि अन्य विशिष्ट कौशल जैसे- स्काइ डाइविंग, स्कूबा डाइविंग, पर्वतारोहण, आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया और किसी भी अन्य परिस्थितियों में सभी क्षेत्रों में रहने के लिये तैयार रहते हैं।
    • इस पहल की शुरुआत एक पैरा (विशेष बल) अधिकारी मेजर विवेक जैकब ने की थी।
  • ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम: ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम एक सामाजिक प्रभाव वाला उपक्रम है जिसका उद्देश्य अनुकूली साहसिक खेलों के माध्यम से दिव्यांग लोगों का पुनर्वास करना है।
    • इसका उद्देश्य दिव्यांग लोगों से जुड़ी दया, दान और अक्षमता की आम धारणा को तोड़ना और उनकी गरिमा, स्वतंत्रता एवं क्षमता को पुनर्जीवित करना है।
    • इसके अतिरिक्त उनका ध्यान दिव्यांग लोगों के लिये 'बड़े पैमाने पर स्थायी रोज़गार संबंधी समाधानों को डिज़ाइन और कार्यान्वित करना' है, विशेष रूप से  'पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता' के क्षेत्र में।
    • इसे वर्ष 2019 में Team CLAW द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • CLAW ग्लोबल: टीम CLAW विश्व भर में केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया में है, जहाँ विशेष बल के कमांडो और दिव्यांग लोग न केवल दिव्यांग व्यक्तियों हेतु बल्कि गैर- दिव्यांग लोगों के लिये भी बेहतर जीवन अनुभव जैसे कार्यों में योगदान दे रहे हैं। 

दिव्यांगता की समस्या:

  • दिव्यांगता एक व्यापक पद है, जिसमें असमर्थता, बाधित शारीरिक गतिविधियाँ और सामाजिक भागीदारी में असमर्थता शामिल हैं।
    • असमर्थता का आशय शारीरिक कार्य करने या संरचना में किसी समस्या से है।
    • बाधित शारीरिक गतिविधियों का आशय किसी कार्य या क्रिया को निष्पादित करने में किसी व्यक्ति के समक्ष आने वाली कठिनाइयों से है।
    • असमर्थता का अर्थ एक व्यक्ति द्वारा जीवन की विभिन्न सामाजिक भागीदारी में शामिल होने में अनुभव की जाने वाली समस्या से है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल 121 करोड़ की आबादी में से लगभग 2.68 करोड़ लोग (कुल जनसंख्या का 2.21%) दिव्यांग हैं।
    • 2.68 करोड़ दिव्यांगों में 1.5 करोड़ पुरुष और 1.18 करोड़ महिलाएँ शामिल हैं।
    • अधिकांश विकलांग जनसंख्या (69%) ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
  • विश्व स्तर पर दिव्यांग लोगों की संख्या 1 बिलियन है जो कि वैश्विक जनसंख्या का 15% है।
  • इन्हें समग्र पुनर्वास की कमी, अपर्याप्त कौशल, निर्बाध आवागमन की कमी और उपयुक्त रोज़गार की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • इन कारकों ने एक साथ बड़े पैमाने पर दिव्यांग व्यक्तियों को उनके घरों तक सीमित कर दिया है, जिसने इनसे संबंधित मुद्दों पर नकारात्मकता और उनकी क्षमताओं के बारे में गलत धारणाओं को जन्म दिया।
  • इस प्रकार उनकी उत्पादक क्षमता काफी हद तक अप्रयुक्त है, जिसके चलते मुख्यधारा के जीवन से उनका वैश्विक बहिष्कार हो रहा है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

MSMEs के लिये ऋण वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये

स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम

मेन्स के लिये

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र की मौजूदा स्थिति

चर्चा में क्यों?

‘ट्रांसयूनियन सिबिल’ एंड ‘स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया’ (SIDBI) की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ (MSME) क्षेत्र की ऋण बकाया राशि एक वर्ष के साथ बढ़कर 20.21 लाख करोड़ रुपए हो गई है, जो कि वर्ष-दर-वर्ष 6.6% की विकास दर है।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिये ऋण वृद्धि जून 2021 में 6.4% हो गई, जबकि 2020 में इसमें 2.9% का संकुचन दर्ज किया गया था।

स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया

  • भारतीय संसद के अधिनियम के तहत अप्रैल 1990 में स्थापित सिडबी, MSME क्षेत्र के संवर्द्धन, वित्तपोषण और विकास के साथ-साथ समान गतिविधियों में संलग्न संस्थानों के कार्यों के समन्वय के लिये प्रमुख वित्तीय संस्थान के रूप में कार्य करता है।

ट्रांसयूनियन सिबिल लिमिटेड 

  • यह भारत में कार्यरत एक क्रेडिट सूचना कंपनी है। यह 600 मिलियन व्यक्तियों और 32 मिलियन व्यवसायों पर क्रेडिट फाइलों का रख-रखाव करती है।

प्रमुख बिंदु    

MSME को ऋण:

वित्तीय वर्ष (FY) 2021 में देश ने MSME क्षेत्र को 9.5 लाख करोड़ रुपए के ऋण वितरित किये, जो वित्त वर्ष 2020 में पिछले वर्ष के 6.8 लाख करोड़ रुपए से अधिक है।

शेष ऋण:

  • मार्च 2021 में MSME ऋण बकाया में 6.6% की वृद्धि हुई है, जिसमें सूक्ष्म उद्योग क्षेत्र  में सबसे तेज़ गति 7.4% की वृद्धि देखी गई। 
    • सूक्ष्म उद्योग क्षेत्र के पश्चात् लघु उद्योग क्षेत्र में 6.8% और मध्यम उद्योग क्षेत्र में 5.8% की दर से संवृद्धि हुई है।

क्षेत्रवार विश्लेषण:

  • कृषि और संबद्ध गतिविधियाँ:
    • कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिये ऋण के मामले में निरंतर बेहतर प्रदर्शन करते हुए जून 2020 में 2.4% की तुलना में जून 2021 में 11.4% की त्वरित वृद्धि दर्ज की गई है। 
  • उद्योग:
    • विभिन्न उद्योगों जैसे खाद्य प्रसंस्करण, रत्न और आभूषण, काँच व काँच के बने पदार्थ, चमड़े तथा चमड़े के उत्पादों, खनन एवं उत्खनन, काग और काग उत्पादों, रबर, प्लास्टिक व उनके उत्पादों तथा वस्त्रों आदि से संबंधित ऋण में जून 2021 में उच्च वृद्धि दर्ज की गई।
    • हालाँकि सभी इंजीनियरिंग, पेय पदार्थ और तंबाकू, बुनियादी धातु तथा धातु उत्पादों, सीमेंट एवं सीमेंट उत्पादों, रसायन व रासायनिक उत्पादों, निर्माण, बुनियादी ढाँचे, पेट्रोलियम कोयला उत्पादों तथा परमाणु ईंधन और वाहनों, वाहन के पुर्जों व परिवहन उपकरणों आदि से संबंधित वृद्धि में गिरावट दर्ज की गई है।
  • सेवाएँ:
    • सेवा क्षेत्र में ऋण वृद्धि जून 2021 में घटकर 2.9% हो गई, जो जून 2020 में 10.7% थी। यह कमी मुख्य रूप से वाणिज्यिक अचल संपत्ति, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और पर्यटन, होटल एवं रेस्तरां संबंधी ऋण वृद्धि में संकुचन के कारण हुई है।
    • क्रेडिट टू ट्रेड सेगमेंट ने अच्छा प्रदर्शन करना जारी रखा। इसने जून 2021 में 8.1% की तुलना में 11.1% की त्वरित वृद्धि दर्ज की।

वृद्धि के कारण:

  • MSMEs द्वारा क्रेडिट निकासी में यह वृद्धि कोविड महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी से निपटने के लिये आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) जैसी कई सरकारी पहलों के कारण हुई है।
    • ECLGS योजना मई 2020 में घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज के हिस्से के रूप में शुरू की गई थी, जो विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से MSME को ऋण प्रदान करके कोरोनोवायरस-प्रेरित लॉकडाउन के कारण उत्पन्न संकट को कम करने के लिये थी।
    • इसका उद्देश्य देशव्यापी तालाबंदी के कारण अपनी परिचालन देनदारियों को पूरा करने के लिये संघर्ष कर रहे छोटे व्यवसायों का समर्थन करना था।
    • हाल ही में सरकार ने आतिथ्य, यात्रा और पर्यटन सहित नए क्षेत्रों में अपना दायरा बढ़ाया है।

MSME के लिये अन्य पहलें:

msme

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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