सामाजिक न्याय
SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में क्रीमी लेयर की अवधारणा तथा SC/ST आरक्षण के संबंध में क्रीमी लेयर के महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि वह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आरक्षण में क्रीमी लेयर को लेकर संविधान पीठ द्वारा वर्ष 2018 दिए गए निर्णय पर पुनर्विचार करने हेतु एक सात-सदस्यीय संविधान पीठ के गठन का अनुरोध किया है ताकि SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने या न करने पर विचार किया जा सके। ध्यातव्य है कि बीते वर्ष 26 सितंबर को जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने SC/ST वर्ग के आर्थिक रूप से संपन्न लोगों हेतु क्रीमी लेयर की प्रयोज्यता को बरकरार रखा था।
क्या है विवाद?
- दरअसल सरकार चाहती है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने उस रुख पर पुनर्विचार करे जिसमें वह मानता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से उन्नत लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिये।
- जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ही 12 वर्ष पुराने एम. नागराज बनाम भारत सरकार मामले में दिये गए पूर्ववर्ती फैसले पर सहमति व्यक्त की थी।
- एम. नागराज बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष था कि देश में आरक्षण को सीमित अर्थों में लागू किया जाना चाहिये, अन्यथा यह जातिप्रथा को समाप्त करने में कभी कारगर साबित नहीं होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय की तत्कालीन पीठ का ऐसा मानना था कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि SC/ST को मिलने वाला पूरा लाभ उस इस वर्ग से संबंधित सिर्फ चुनिंदा सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त लोगों को न मिले, अतः आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा का प्रयोग करना आवश्यक है।
- इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि आरक्षण का लाभ SC/ST वर्ग के अंतिम व्यक्ति तक पहुँच सके।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के मत के विपरीत सरकार का मानना है कि ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा आरक्षण के लाभ से पिछड़े वर्ग को वंचित करने का बड़ा कारण बन सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी-जनरल के.के. वेणुगोपाल के अनुसार, SC/ST समुदाय अभी भी सदियों पुरानी कुप्रथाओं का सामना कर रहा है।
क्रीमी लेयर की अवधारणा
- क्रीमी लेयर किसी समूह विशेष के उस हिस्से को कहते हैं जो अपने समूह के अन्य लोगों की अपेक्षा सामाजिक तथा आर्थिक रूप से सशक्त होते हैं। भारत में इसकी परिभाषा काफी विस्तृत है।
- इसमें मुख्यतः राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और कैग जैसे संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।
- ज्ञात है कि क्रीमी लेयर की अवधारणा सर्वप्रथम इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई थी। यह सर्वोच्च न्यायालय की 9 सदस्यीय पीठ द्वारा 16 नवंबर, 1992 को दिया गया एक ऐतिहासिक फैसला था।
- इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के कदम को बरकरार रखा। परंतु साथ ही यह निर्णय भी दिया कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के क्रीमी लेयर या सामाजिक रूप से सशक्त हिस्से को पिछड़े वर्ग में शामिल नहीं किया जाना चाहिये।\
- न्यायालय की 9 सदस्यीय पीठ ने कहा था कि किसी वर्ग विशेष में क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिये ‘आर्थिक मापदंड’ को एक संकेत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- साथ ही न्यायालय ने केंद्र सरकार को आय और संपत्ति के संबंध में कुछ मापदंड निर्धारित करने के निर्देश भी दिये थे।
- वर्ष 1993 में क्रीमी लेयर की अधिकतम सीमा 1 लाख रुपए तय की गई जिसके बाद उसे वर्ष 2004 में बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए, वर्ष 2008 में बढ़ाकर 4.5 लाख रुपए, वर्ष 2013 में बढ़ाकर 6 लाख रुपए और 2017 में बढ़ाकर 8 लाख रुपए कर दिया गया।
SC/ST और क्रीमी लेयर
- इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मामले में न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरक्षण केवल प्रारंभिक नियुक्तियों पर ही लागू होगा न कि पदोन्नति पर।
- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर से असहमति व्यक्त करते हुए सरकार ने 77वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1995 के माध्यम से अनुच्छेद 16(4A) शामिल किया और साथ ही पदोन्नति में SC/ST के लिये कोटा बढ़ाने की अपनी नीति को भी जारी रखा।
- इस कदम के पीछे सरकार ने यह तर्क दिया कि अभी भी राज्य की सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व आवश्यक स्तर तक नहीं पहुँच पाया है।
- इसके पश्चात् वर्ष 2000 में सरकार ने 81वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 16(4B) जोड़ा, जिसके अनुसार राज्य द्वारा ऐसी रिक्तियों को अलग श्रेणी में आमंत्रित आरक्षित रिक्तियों के किसी वर्ष न भरे जाने की स्थिति में इन रिक्तियों को अलग श्रेणी में रखकर आगामी वर्ष में भरा जा सकेगा। साथ ही यह भी प्रावधान किया गया कि आगामी वर्ष में इन रिक्तियों को उस वर्ष के लिये आरक्षित 50 प्रतिशत की सीमा में शामिल नहीं माना जाएगा।
- वर्ष 2000 में 82वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 335 में एक और परंतुक जोड़कर यह निर्धारित कर दिया गया कि संघ एवं राज्यों की सेवाओं में SC/ST समुदाय के सदस्यों के लिये आरक्षित रिक्तियों को पदोन्नति के माध्यम से भरते समय अहर्ता अंकों एवं मूल्यांकन के मानकों में कमी की जा सकती है।
- सरकार द्वारा किये गए इन संशोधनों को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकों के माध्यम से चुनौती दी गई और वर्ष 2006 का एम. नागराज बनाम भारत सरकार मामला इसमें सबसे प्रमुख माना जाता है। इस मामले पर फैसला देते हुए पाँच सदस्यों वाली पीठ ने सरकारी नौकरियाँ में पदोन्नति पर आरक्षण देने के लिये सरकार के समक्ष तीन शर्तें रखीं:
- सरकार अपने SC/ST कर्मचारियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण तब तक लागू नहीं कर सकती है जब तक कि यह साबित न हो कि विशेष समुदाय पिछड़ा हुआ है।
- पदोन्नति में आरक्षण से लोक प्रशासन की समग्र दक्षता प्रभावित नहीं होनी चाहिये।
- सरकार की राय मात्रात्मक आँकड़ों पर आधारित होनी चाहिये।
- इसी के साथ एम. नागराज बनाम भारत सरकार मामले में यह निश्चित हो गया कि सरकारी नौकरियों की पदोन्नति में SC/ST आरक्षण पर क्रीमी लेयर का प्रावधान लागू होगा।
भारत में आरक्षण
- भारत की सदियों पुरानी जाति व्यवस्था और छुआछूत जैसी कुप्रथाएँ देश में आरक्षण व्यवस्था की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। सरल शब्दों में आरक्षण का अभिप्राय सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और विधायिकाओं में किसी एक वर्ग विशेष की पहुँच को आसान बनाने से है।
- इन वर्गों को उनकी जातिगत पहचान के कारण ऐतिहासिक रूप से कई अन्यायों का सामना करना पड़ा है।
- वर्ष 1882 में विलियम हंटर और ज्योतिराव फुले ने मूल रूप से जाति आधारित आरक्षण प्रणाली की कल्पना की थी।
- आरक्षण की मौजूदा प्रणाली को सही मायने में वर्ष 1933 में पेश किया गया था जब तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने सांप्रदायिक अधिनिर्णय दिया। विदित है कि इस अधिनिर्नयन के तहत मुसलमानों, सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन, यूरोपीय और दलितों के लिये अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रावधान किया गया।
- स्वतंत्रता के बाद शुरू में आरक्षण की व्यवस्था केवल SC और ST समुदाय के लिये की गई थी। मंडल आयोग की सिफारिशों पर वर्ष 1991 में OBC को भी आरक्षण के दायरे में शामिल किया गया।
SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर के विपक्ष में तर्क
- SC/ST समुदाय को राजनीति, सार्वजनिक सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण विशेष रूप से इसलिये दिया गया था, क्योंकि वे लगभग 2,000 वर्षों तक संपत्ति और शिक्षा जैसे अधिकारों से वंचित रहे थे।
- इसके अलावा उन्हें आज भी छुआछूत जैसी कुप्रथा का सामना करना पड़ता है। मौजूदा समय में भी सामाजिक स्तर पर भेदभाव जारी है।
- SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा के आलोचकों का कहना है कि यह अवधारणा पूर्ण रूप से आर्थिक आधार पर टिकी हुई है, जबकि आरक्षण का एक सामाजिक पहलू भी है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिये।
- आँकड़े बताते हैं कि स्वयं SC/ST आयोग के पास ही सरकारी नौकरियों में भेदभाव के लगभग 12000 मामले लंबित हैं।
- जानकारों का कहना है कि हमें यह समझने की आवश्यकता है कि भले ही OBC और SC दोनों को आरक्षण मिलता है, परंतु जिस भेदभाव का सामना दलितों द्वारा किया जाता है वैसी स्थिति OBC समुदाय के साथ नहीं है।
SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर के पक्ष में तर्क
- क्रीमी लेयर के समर्थकों का मानना है कि यदि SC/ST आरक्षण में इस अवधारणा को सही ढंग से लागू किया जाता है तो इसके माध्यम से SC/ST समुदाय को जो अधिकार दिये गए हैं उन्हें छुए बिना समुदाय के अंदर जो आर्थिक रूप से मज़बूत वर्ग है उसे अलग किया जा सकेगा।
- इसका सबसे प्रमुख लाभ यह होगा कि SC/ST आरक्षण से मिलने वाला फायदा समुदाय के उन लोगों तक भी पहुँच पाएगा जो अब तक इससे वंचित हैं।
- समर्थकों का कहना है कि संविधान विचारों और आदर्शों का समन्वय है और यदि हमें अवसरों की समानता लानी है तो एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करना होगा। समाज में आरक्षण के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता और इसका लाभ जितने अधिक लोगों पहुँचेगा समाज के लिये उतना ही अच्छा होगा।
निष्कर्ष
भारत में आरक्षण और उससे संबंधित विभिन्न मुद्दे सदैव ही चर्चा के केंद्र में रहे हैं। भारतीय समाज विशेषकर पिछड़े वर्ग के विकास में आरक्षण की भूमिका को पहचानने की ज़रूरत है। आवश्यक है कि विषय से संबंधित विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श किया जाए और यथासंभव एक संतुलित मार्ग की खोज की जाए।
प्रश्न: आरक्षण व्यवस्था में क्रीमी लेयर अवधारणा की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।