महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 131, सर्वोच्च न्यायालय, सरकारिया आयोग, संविधान का अनुच्छेद 263। मेन्स के लिये:भारत में अंतर-राज्यीय विवाद महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद की गंभीरता को देखते हुए दोनों राज्यों ने विवाद को हल करने के लिये कानूनी लड़ाई का समर्थन करने हेतु एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है।
महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद:
- परिचय:
- उत्तरी कर्नाटक में बेलगावी, कारवार और निपानी को लेकर सीमा संबंधी विवाद काफी पुराना है।
- वर्ष 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, जब राज्य की सीमाओं को भाषायी आधार पर निर्धारित किया गया, तब बेलगावी पूर्ववर्ती मैसूर राज्य का हिस्सा बन गया।
- यह अधिनियम वर्ष 1953 में नियुक्त न्यायमूर्ति फज़ल अली आयोग के निष्कर्षों पर आधारित था और उन्होंने दो वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- महाराष्ट्र का दावा है कि बेलगावी के कुछ हिस्से, जहाँ मराठी प्रमुख भाषा है, महाराष्ट्र के अंतर्गत रहने चाहिये।
- अक्तूबर 1966 में केंद्र ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में सीमा विवाद को हल करने के लिये भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन के नेतृत्त्व में महाजन आयोग की स्थापना की।
- इस आयोग ने सिफारिश की कि बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक के अंतर्गत रहें। महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया और वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
- महाराष्ट्र के दावे का आधार:
- महाराष्ट्र का अपनी सीमा के पुन: समायोजन का दावा सामीप्य, सापेक्ष भाषायी बहुमत और लोगों की इच्छा के आधार पर था। बेलगावी और आसपास के क्षेत्रों में मराठी भाषी लोगों तथा भाषायी एकरूपता के आधार पर दावे का मुख्य कारण कारवार एवं सुपा क्षेत्र में मराठी की बोली के रूप में उद्धृत भाषा कोंकणी का प्रयोग है।
- इसका तर्क इस विचार पर केंद्रित था कि गणना समुदायों के आधार पर होनी चाहिये, और इसने प्रत्येक गाँव में भाषायी निवासियों की संख्या/आबादी को सूचीबद्ध किया।
- महाराष्ट्र ने इस ऐतिहासिक तथ्य की ओर भी इशारा किया कि इन मराठी भाषी क्षेत्रों के राजस्व अभिलेख भी मराठी में ही होते हैं।
- कर्नाटक की स्थिति:
- कर्नाटक ने तर्क दिया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार सीमाओं का समझौता अंतिम है।
- राज्य की सीमा न तो अस्थायी थी और न ही लचीली। राज्य का तर्क है कि यह मुद्दा उन सीमा मुद्दों को फिर से खोल देगा जिन पर अधिनियम के तहत विचार नहीं किया गया है, अत: ऐसी मांग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
समस्या के समाधान के लिये उठाए गए कदम:
- अंतर-राज्यीय विवादों को अक्सर दोनों पक्षों के सहयोग से हल करने का प्रयास किया जाता है, जिसमें केंद्र एक सूत्रधार या तटस्थ मध्यस्थ के रूप में काम करता है।
- यदि मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल किया जाता है, तो संसद राज्य की सीमाओं को बदलने के लिये कानून ला सकती है, जैसे बिहार-उत्तर प्रदेश (सीमाओं का परिवर्तन) अधिनियम 1968 और हरियाणा-उत्तर प्रदेश (सीमाओं का परिवर्तन) अधिनियम 1979।
- बेलगावी मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की और उन्हें सभी सीमा मुद्दों को हल करने के लिये प्रत्येक पक्ष के तीन मंत्रियों वाली छह सदस्यीय टीम बनाने के लिये कहा।
अन्य उपलब्ध तरीके:
- न्यायिक निवारण:
- सर्वोच्च न्यायालय अपने मूल क्षेत्राधिकार के तहत राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, भारत सरकार और किसी राज्य के बीच या दो या दो से अधिक राज्यों के बीच किसी भी प्रकार के विवाद को सुलझाना सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार है।
- अंतर-राज्यीय परिषद:
- संविधान का अनुच्छेद 263 राष्ट्रपति को राज्यों के बीच विवादों के समाधान के लिये अंतर-राज्यीय परिषद गठित करने की शक्ति देता है।
- परिषद की परिकल्पना राज्यों और केंद्र के बीच चर्चा के लिये एक मंच के रूप में की गई है।
- वर्ष 1988 में सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया कि परिषद को एक स्थायी निकाय के रूप में गठित किया जाना चाहिये तथा वर्ष 1990 में यह राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अस्तित्व में आया।
अन्य अंतर्राज्यीय विवाद:
असम-अरुणाचल प्रदेश: |
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असम-मिज़ोरम: |
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असम-नगालैंड: |
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असम-मेघालय: |
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हरियाणा-हिमाचल प्रदेश: |
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लद्दाख-हिमाचल प्रदेश: |
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आगे की राह
- राज्यों के बीच सीमा विवादों को वास्तविक सीमा स्थानों के उपग्रह मानचित्रण का उपयोग करके सुलझाया जा सकता है।
- अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना अंतर-राज्यीय विवाद के समाधान का एक विकल्प हो सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-राज्यीय परिषद से विवादों की जाँच और सलाह देने, सभी राज्यों के लिये सामान्य विषयों पर चर्चा करने तथा बेहतर नीति समन्वय हेतु सिफारिशें करने की अपेक्षा की जाती है।
- इसी तरह सामाजिक और आर्थिक नियोजन, सीमा विवाद, अंतर-राज्यीय परिवहन आदि से संबंधित मुद्दों पर प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों के लिये सामान्य चिंता के मामलों पर चर्चा करने हेतु क्षेत्रीय परिषदों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
- भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है। हालाँकि इस एकता को और मज़बूत करने के लिये केंद्र व राज्य सरकारों दोनों को सहकारी संघवाद के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का फैसला करने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति किसके अंतर्गत है? (2014) (a) सलाहकार क्षेत्राधिकार उत्तर: (c) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2022
प्रिलिम्स के लिये:जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2022, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, कुछ अपराधों का गैर-अपराधीकरण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने संसद में जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2022 पेश किया।
- इसका उद्देश्य 42 विधानों में 183 अपराधों का "गैर-अपराधीकरण" करना है और भारत में रहने तथा ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देना है।
- विधेयक द्वारा संशोधित किये गए कुछ अधिनियमों में शामिल हैं: भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898; पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000।
प्रमुख बिंदु
- कुछ अपराधों का गैर-अपराधीकरण:
- विधेयक के तहत कुछ अधिनियमों में कारावास की सज़ा वाले कई अपराधों को केवल अर्थ दंड लगाकर अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।
- उदाहरण के लिये:
- कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937 के तहत नकली ग्रेड पदनाम चिह्न तीन वर्ष तक के कारावास और पाँच हज़ार रुपए तक के ज़ुर्माने के साथ दंडनीय है। ग्रेड पदनाम चिह्न वर्ष 1937 अधिनियम के तहत वस्तु की गुणवत्ता को दर्शाता है।
- यह विधेयक इसके स्थान पर आठ लाख रुपए के ज़ुर्माने का प्रावधान करता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत एक वैध अनुबंध के उल्लंघन में व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करने पर तीन साल तक की कैद या पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
- यह विधेयक इसके स्थान पर 25 लाख रुपए तक के ज़ुर्माने का प्रावधान करता है।
- उदाहरण के लिये पेटेंट अधिनियम, 1970 के तहत भारत में पेटेंट के रूप में गलत प्रतिनिधित्त्व वाली वस्तु बेचने वाले व्यक्ति पर एक लाख रुपए तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।
- कुछ अधिनियमों में दंड के बजाय ज़ुर्माना लगाकर अपराधमुक्त कर दिया गया है।
- यह विधेयक अर्थदंड (फाइन) के स्थान पर ज़ुर्माने (पेनाल्टी) का प्रावधान करता है, जो दस लाख रुपए तक हो सकता है। दावा जारी रखने की स्थिति में प्रतिदिन एक हज़ार रुपए का अतिरिक्त ज़ुर्माना देना होगा।
- कुछ अधिनियमों में दंड के बजाय ज़ुर्माना लगाकर अपराधमुक्त कर दिया गया है।
- कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937 के तहत नकली ग्रेड पदनाम चिह्न तीन वर्ष तक के कारावास और पाँच हज़ार रुपए तक के ज़ुर्माने के साथ दंडनीय है। ग्रेड पदनाम चिह्न वर्ष 1937 अधिनियम के तहत वस्तु की गुणवत्ता को दर्शाता है।
- अर्थदंड और ज़ुर्माने में संशोधन:
- यह विधेयक निर्दिष्ट अधिनियमों के तहत विभिन्न अपराधों के लिये अर्थदंड और ज़ुर्माने में वृद्धि करता है।
- इसके अलावा इन अर्थदंड और ज़ुर्माने को प्रति तीन वर्ष में न्यूनतम राशि के 10% तक बढ़ाया जाएगा।
- यह विधेयक निर्दिष्ट अधिनियमों के तहत विभिन्न अपराधों के लिये अर्थदंड और ज़ुर्माने में वृद्धि करता है।
- निर्णायक अधिकारियों की नियुक्ति:
- विधेयक के अनुसार, केंद्र सरकार दंड निर्धारित करने के उद्देश्य से एक या एक से अधिक न्यायनिर्णयन अधिकारियों की नियुक्त कर सकती है। निर्णायक अधिकारी: (i) व्यक्तियों को साक्ष्य के लिये समन भेज सकते हैं और (ii) संबंधित अधिनियमों के उल्लंघन की जाँच कर सकते हैं।
- अपीलीय तंत्र:
- विधेयक न्यायनिर्णयन अधिकारी द्वारा पारित आदेश से परेशान किसी भी व्यक्ति के लिये अपीलीय तंत्र को भी निर्दिष्ट करता है।
- उदाहरण के लिये पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत आदेश के 60 दिनों के भीतर राष्ट्रीय हरित अधिकरण में अपील दायर की जा सकती है।
- विधेयक न्यायनिर्णयन अधिकारी द्वारा पारित आदेश से परेशान किसी भी व्यक्ति के लिये अपीलीय तंत्र को भी निर्दिष्ट करता है।
विधेयक को लाने के पीछे उद्देश्य:
- आपराधिक मामलों में वृद्धि:
- दशकों से विधिवेत्ता इस बात से चिंतित हैं कि आपराधिक कानून सिद्धांतहीन रूप से विकसित हुआ है।
- राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, 4.3 करोड़ लंबित मामलों में से लगभग 3.2 करोड़ मामले आपराधिक कार्यवाही से संबंधित हैं।
- राजनीतिक उद्देश्य:
- गलत आचरण हेतु दंडित करने के विपरीत अपराधीकरण अक्सर सरकारों के लिये एक मज़बूत छवि पेश करने का उपकरण बन जाता है।
- सरकारें इस तरह के फैसलों का समर्थन बहुत कम करती हैं। इस घटना को विद्वानों द्वारा "अतिअपराधीकरण" कहा गया है।
- जेलों में क्षमता से अधिक कैदी:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के वर्ष 2021 के आँकड़ों के अनुसार, कुल 4.25 लाख की क्षमता वाली जेलों में 5.54 लाख कैदी थे।
विधेयक का दायरा:
- विधेयक 'अर्द्ध-गैरअपराधीकरण' (Quasi-Decriminalisation) को भी अपने दायरे में ला सकता है।
- ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा जारी रिपोर्ट जेल्ड फॉर डूइंग बिज़नेस के अनुसार, भारत में कुल 843 आर्थिक विधानों, नियमों तथा विनियमों में 26,134 से अधिक कारावास संबंधी उपखंड हैं जो भारत में व्यवसायों एवं आर्थिक गतिविधियों को विनियमित करते हैं।
- इस आलोक में विधेयक के तहत गैर-अपराध की श्रेणी में शामिल किये गए अपराधों की संख्या केवल भारत के नियामक ढाँचे में अल्प मात्रा में गिरावट को दर्शाती है।
- न केवल व्यापार सुगमता बल्कि उन सभी बुराइयों, जो हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित करती हैं, के दृष्टिकोण से भी 'गैर-अपराधीकरण' के लिये विचार किये जाने वाले विनियामक अपराधों की प्राथमिकता निर्धारित करने की आवश्यकता है।
- यह विधेयक सरकार की इस सहमति के अनुरूप है कि गैर-अपराधीकरण नियामक क्षेत्र तक सीमित होना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
यूक्रेन शांति सूत्र
प्रिलिम्स के लिये :G-20, G-7, शांति सूत्र मेन्स के लिये :यूक्रेन शांति सूत्र और इसके प्रति विश्व की प्रतिक्रिया |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने भारत की G-20 अध्यक्षता और यूक्रेन की "10 सूत्री शांति योजना" पर चर्चा करने के लिये यूक्रेन के राष्ट्रपति से वार्ता की।
- दिसंबर 2022 की शुरुआत में यूक्रेन ने G-7 देशों के नेताओं से सर्दियों में अपने वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन के विचार का समर्थन करने का आग्रह किया, जो "संपूर्ण रूप से या विशेष रूप से कुछ विशिष्ट बिंदुओं" पर शांति योजना पर ध्यान केंद्रित करेगा।
यूक्रेन की 10 सूत्री शांति योजना:
- यूक्रेन ने पहली बार 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के समूह के नवंबर 2022 शिखर सम्मेलन में अपने शांति सूत्र की घोषणा की थी। योजना के अंतर्गत निम्नलिखित मांगें है:
- विकिरण और परमाणु सुरक्षा: यूक्रेन में यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र ज़ापोरिज़्ज़िया के आसपास सुरक्षा बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करना, जो अब रूस के कब्ज़े में है।
- खाद्य सुरक्षा: इसमें दुनिया के सबसे गरीब देशों को यूक्रेन से अनाज निर्यात और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है।
- ऊर्जा सुरक्षा: रूसी ऊर्जा संसाधनों पर मूल्य प्रतिबंधों को लेकर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ यूक्रेन को उसके विद्युत बुनियादी ढाँचे, जिसका आधा हिस्सा रूसी आक्रमण से क्षतिग्रस्त हो गया है, को बहाल करने में सहायता करना।
- युद्ध बंदियों और रूस भेजे गए बच्चों सहित सभी बंदियों एवं निर्वासितों की रिहाई।
- यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को बहाल करना और संयुक्त राष्ट्र (United Nations) चार्टर के अनुसार रूस द्वारा इसकी पुष्टि करना।
- रूसी सैनिकों की वापसी और शत्रुता की समाप्ति, रूस के साथ यूक्रेन की राज्य सीमाओं की बहाली।
- न्याय सहित, रूसी युद्ध अपराधों के खिलाफ मुकदमा चलाने हेतु एक विशेष न्यायाधिकरण की स्थापना ।
- जल उपचार सुविधाओं को बहाल करने पर ध्यान देने के साथ पर्यावरण की सुरक्षा।
- यूक्रेन के लिये गारंटी सहित यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में संघर्ष की रोकथाम और सुरक्षा ढाँचा का निर्माण।
- युद्ध की समाप्ति की पुष्टि, जिसमें शामिल पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज़।
शांति सूत्र के प्रति विश्व की प्रतिक्रिया:
- रूस ने यूक्रेन के शांति प्रस्ताव को खारिज़ कर दिया और पुनः बताया कि वह सैनिकों द्वारा कब्ज़ा किये गए यूक्रेन के लगभग पाँचवें हिस्से (1/5वें) के आसपास के क्षेत्र को नहीं छोड़ेगा।
- यूक्रेन की सेना को पश्चिमी देशों द्वारा वाशिंगटन के नेतृत्त्व में अरबों डॉलर का सहयोग किया गया साथ ही ये राष्ट्र यूक्रेन के विद्युत बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु मदद कर रहे हैं।
- लेकिन यूक्रेन की शांति योजना और प्रस्तावित शांति शिखर सम्मेलन की प्रतिक्रिया के संदर्भ में काफी देश अधिक सतर्क रहे हैं।
- G7 नेताओं ने बताया कि वे "संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित अपने अधिकारों के अनुरूप" यूक्रेन में शांति लाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
स्रोत: द हिंदू
RTI जवाबदेही रिपोर्ट कार्ड
प्रिलिम्स के लिये:सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, केंद्रीय सूचना आयोग, SIC, सतर्क नागरिक संगठन। मेन्स के लिये:सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, पारदर्शिता और जवाबदेही। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सतर्क नागरिक संगठन (SNS) ने सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम 2021-22 के तहत जवाबदेही रिपोर्ट कार्ड जारी किया है, जो दर्शाता है कि तमिलनाडु RTI जवाबदेही में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है, जिसकी निपटान दर 14% है।
प्रमुख बिंदु
- महाराष्ट्र RTI जवाबदेही में दूसरा सबसे खराब स्थिति वाला राज्य है, जिसकी निपटान दर 23% है।
- इस मूल्यांकन के भाग के रूप में दायर RTI आवेदनों के जवाब में केवल 10 सूचना आयुक्तों ने पूरी जानकारी प्रदान की। इनमें आंध्र प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम, नगालैंड और त्रिपुरा शामिल थे।
- बिहार राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioner- SIC), जो वर्ष 2020 और 2021 में प्रकाशित आकलन के लिये RTI अधिनियम के तहत कोई भी जानकारी प्रदान करने में विफल रहा था, ने अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया और इसकी निपटान दर 67% है।
- देश भर में बड़ी संख्या में सूचना आयुक्तों ने बिना कोई आदेश पारित किये मामले वापस कर दिये थे।
- उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश ने प्राप्त अपीलों या शिकायतों में से लगभग 40% को वापस कर दिया।
- 18 सूचना आयुक्तों में से 11 ने बिना कोई आदेश पारित किये अपील या शिकायत वापस कर दी थी।
- सूचना आयुक्तों के संदर्भ में प्रति आयुक्त निपटान की दर बेहद कम है।
- उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल के SIC के पास मामलों की वार्षिक औसत निपटान दर प्रति आयुक्त 222 थी, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक आयुक्त प्रभावी रूप से एक दिन में मुश्किल से एक मामले का निपटान कर रहा था। वैसे लंबित मामलों की संख्या 10,000 से भी अधिक थी।
- सभी 29 सूचना आयुक्तों में से केवल केंद्रीय सूचना आयुक्त ने एक वर्ष में प्रत्येक आयुक्त द्वारा निपटाए जाने वाली अपीलों अथवा शिकायतों की संख्या के संबंध में एक मानक अपनाया है।
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम:
- परिचय:
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 सरकारी सूचना के लिये नागरिकों के प्रश्नों के प्रति समयबद्ध जवाबदेही अनिवार्य बनाता है।
- सूचना का अधिकार अधिनियम का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, सरकार के कामकाज़ में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को रोकना तथा वास्तविक अर्थों में हमारे लोकतंत्र का लोगों के लिये कार्य करना है।
- सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019
- इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि के लिये पद धारण करेंगे। इस संशोधन से पहले इनका कार्यकाल 5 साल के लिये तय किया गया था।
- इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) के वेतन, भत्ते तथा अन्य सेवा संबंधी शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
- इस संशोधन से पूर्व, मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान थीं एवं सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते तथा अन्य सेवा संबंधी शर्तें एक चुनाव आयुक्त (राज्यों के मामले में राज्य चुनाव आयुक्त) के समान थीं।
- इसने मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के लिये पेंशन या किसी अन्य सेवानिवृत्ति लाभ के कारण वेतन कटौती से संबंधित खंडों को समाप्त कर दिया, जो उन्हें उनकी सरकारी नौकरी के लिये प्राप्त हुए थे।
- RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 की आलोचना कानून को कमज़ोर करने और केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ देने के आधार पर की गई थी।
- कार्यान्वयन में समस्याएँ:
- सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रोएक्टिव डिस्क्लोज़र में गैर-अनुपालन।
- नागरिकों के प्रति लोक सूचना अधिकारियों (Public Information Officers-PIOs) का शत्रुतापूर्ण रवैया और सूचना छिपाने के लिये सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या करना।
- जनहित और निजता के अधिकार के संबंध में स्पष्टता का अभाव।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और खराब बुनियादी ढाँचा।
- सार्वजनिक महत्त्व के आवश्यक मामलों पर सक्रिय नागरिकों द्वारा किये गए सूचना अनुरोधों की अस्वीकृति।
- RTI कार्यकर्त्ताओं और आवेदकों की आवाज़ दबाने के लिये उनके खिलाफ हमलों एवं धमकियों जैसे अन्य साधन।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC):
- स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह संवैधानिक निकाय नहीं है।
- सदस्य: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त होता है और दस से अधिक सूचना आयुक्त नहीं हो सकते हैं।
- नियुक्ति: उन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
- कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर रह सकता है।
- वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
- CIC की शक्तियाँ और कार्य:
- आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
- आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
- आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।
आगे की राह
- सूचना आयोगों का उचित कामकाज़ लोगों को सूचना के अधिकार का एहसास कराने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- RTI कानून के तहत सूचना आयोग अंतिम अपीलीय प्राधिकरण हैं तथा लोगों के सूचना के मौलिक अधिकार की सुरक्षा और सुविधा के लिये अनिवार्य हैं।
- अधिक प्रभावी और पारदर्शी तरीके से कार्य करने के लिये पारदर्शिता प्रहरी की तत्काल आवश्यकता है।
- डिजिटल RTI पोर्टल (वेबसाइट या मोबाइल एप) अधिक कुशल और नागरिक-अनुकूल सेवाएँ प्रदान कर सकता है जो परंपरागत मोड के माध्यम से संभव नहीं है।
- यह पारदर्शिता चाहने वालों और सरकार दोनों के लिये फायदेमंद होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिक सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को फिर से परिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (2018) |
स्रोत: द हिंदू
भारत-आर्मेनिया संबंध
प्रिलिम्स के लिये:आर्मेनिया की अवस्थिति मेन्स के लिये:भारत-आर्मेनिया संबंध |
चर्चा में क्यों?
आर्मेनिया और भारत वर्ष 2022 में द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों की 30वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं।
ऐतिहासिक संबंध:
- आर्मेनिया और भारत के बीच सक्रिय राजनीतिक संबंध हैं। अंतर्राष्ट्रीय निकायों के तहत दोनों देशों के बीच प्रभावी सहयोग है।
- वर्ष 1991 में आर्मेनिया की स्वतंत्रता के बाद आर्मेनिया-भारत संबंधों को फिर से स्थापित किया गया।
- वर्ष 1992 में आर्मेनिया गणराज्य और भारत के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए।
- वर्ष 1999 में येरेवन में भारतीय दूतावास स्थापित किया गया।
- यदि आर्मेनिया-भारत राजनीतिक संबंधों का "उत्कृष्ट" के रूप में मूल्यांकन किया जाए, तो आर्मेनिया एकमात्र स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रमंडल (CIS) देश है, जिसके साथ भारत के वर्ष 1995 में (रूस के अलावा) राजनयिक संबंध थे।
- CIS की स्थापना वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद हुई थी।
- वर्तमान में CIS में शामिल देश हैं: अज़रबैजान, आर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, मोल्दोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और यूक्रेन।
- भारत और आर्मेनिया ने वर्ष 1995 में मित्रता और सहयोग पर एक संधि पर हस्ताक्षर किये।
- लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग को पर्याप्त नहीं माना जा सकता है।
दोनों देशों के बीच सहयोग के क्षेत्र:
- रक्षा संबंध:
- आर्मेनिया ने 2020 के युद्ध से पहले ही भारतीय सैन्य उपकरण में दिलचस्पी दिखाई थी।
- वर्ष 2020 में आर्मेनिया ने चार वेपन लोकेटिंग रडार (WLR) यानी स्वाति रडार की आपूर्ति के लिये भारत के साथ 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियारों के सौदे पर हस्ताक्षर किये
- अक्तूबर 2022 में भारत ने आर्मेनिया के साथ मिसाइल, रॉकेट और गोला-बारूद के निर्यात के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- मिसाइलों में मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर स्वदेशी पिनाका भी शामिल है।
- भारत द्वारा आर्मेनिया को अपनी मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (MPATGM) भी निर्यात की जा सकती है।
- आपूर्ति शृंखला और अर्थव्यवस्था:
- आर्मेनिया वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की प्रतियोगिता में, यूरेशियन कॉरिडोर, जो फारस की खाड़ी से रूस और यूरोप तक फैला हुआ है, केंद्र के लिये एक संभावित स्थान प्रदान कर सकता है।
- आर्मेनिया कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, विनिर्माण और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भारत की उन्नति में एक योग्य भागीदार भी साबित हो सकता है।
- यह सहयोग ऋणग्रस्त चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव मॉडल के लिये एक उत्कृष्ट विकल्प प्रदान कर सकता है।
- यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आर्मेनिया द्वारा भारतीय रक्षा हार्डवेयर की बढ़ती खरीद से अंततः भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के रक्षा विनिर्माण दोनों को प्रोत्साहन मिलेगा।
भारत के लिये आर्मेनिया का महत्त्व:
- अखिल-तुर्कवाद का मुकाबला:
- अंकारा से प्रशासित एक अखिल-तुर्क साम्राज्य स्थापित करने की तुर्की की शाही महत्त्वाकांक्षा वर्तमान काकेशस और यूरेशिया के अन्य हिस्सों में देखी जा सकती है।
- नस्लवादी सिद्धांत एक साम्राज्य की कल्पना करता है जिसमें सभी राष्ट्र और क्षेत्र शामिल होते हैं जो तुर्की भाषा बोलते हैं, उन भाषाओं और तुर्की में बोली जाने वाली भाषाओं के बीच अंतर की सीमा के साथ-साथ क्षेत्रों की संबंधित आबादी के अनुमोदन की उपेक्षा करते हैं।
- आर्मेनिया को सैन्य उपकरण के हालिया निर्यात के साथ नई दिल्ली ने खुले तौर पर खुद को नागोर्नो-काराबाख संघर्ष में आर्मेनियाई पक्ष में रखा है, इसलिये भारत ने तुर्की और पाकिस्तान सहित अज़रबैजान एवं उसके समर्थकों के साथ-साथ अंकारा की विस्तारवादी अखिल-तुर्की महत्त्वाकांक्षा का मुकाबला करने के लिये आर्मेनिया का पक्ष लिया है।
- भू-सामरिक लाभ:
- एक सहयोगी के रूप में पाकिस्तान, अज़रबैजान के संघर्षों में सेना तथा सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति करता रहा है।
- इसी प्रकार अज़रबैजान ने भी इस्लामाबाद में अपने साझेदारों को भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक लाभ प्रदान किये है।
- अर्मेनिया में अज़रबैजान की सफलता से पाकिस्तान अत्यधिक सक्रिय हो जाएगा जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं।
- अर्मेनियाई क्षेत्र पर ज़बरन अधिग्रहण करने का उद्देश्य तुर्की, अज़रबैजान, पाकिस्तान तथा तुर्की-उन्मुख राष्ट्रों से लेकर चीन तक तक अबाध पहुँच हासिल करना है।
- सैन्य साजो-सामान तथा गोला-बारूद को कश्मीर की सीमा तक पहुँचाने के लिये इस मार्ग का उपयोग किया जा सकता है।
- इसे रोकने के लिये भारत अपने सैन्य कौशल और क्षमताओं के रूप में आर्मेनिया की सहायता कर सकता है ताकि वह अज़रबैजान की सैन्य ताकत से स्वयं से सुरक्षित रख सके।
- आर्थिक सहयोग:
- आर्मेनिया भारत समर्थित अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (Indian-backed International North-South Transport Corridor- INSTC) और ईरान समर्थित काला सागर-फारस की खाड़ी परिवहन कॉरिडोर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
आगे की राह
- आर्मेनिया-भारत सहयोग विकसित लोकतंत्रों के साथ आर्मेनिया के लिये व्यापक संपर्कों का एक अभिन्न अंग बन सकता है। इन उद्देश्यों के लिये उच्च-गुणवत्ता और सूक्ष्म कूटनीति अनिवार्य है।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की संरचना भी बदल रही है, जिससे संभावित खतरे और अवसर दोनों पैदा हो रहे हैं।
- इन बदलते वैश्विक संबंधों के परिदृश्य में आर्मेनिया को विदेशी संबंधों के गहरे विविधीकरण की आवश्यकता है।
- पश्चिमी देश इस दिशा में महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता बन सकते हैं।
- समान मूल्यों को साझा करके आर्मेनिया और राज्यों का समुदाय एक साथ मिलकर काम करने में सक्षम होंगे।
- यह सहयोग का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो आधुनिकीकरण के सिद्धांत, संस्थागतकरण और संभवतः राष्ट्रीय रक्षा को मज़बूत करने के सक्रिय कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भीड़ प्रबंधन
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 मेन्स के लिये:भीड़/भगदड़ आपदा के कारण |
चर्चा में क्यों?
सियोल, दक्षिण कोरिया और गुजरात के मोरबी में हाल की त्रासदियों ने एक बार फिर भीड़ एवं उनके प्रबंधन को सुर्खियों में ला दिया है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) को आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के प्रावधानों के तहत अन्य बातों के साथ-साथ आपदाओं के प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश जारी करने हेतु अधिदेशित किया गया है जो समय-समय पर सामान्य जीवन व लोगों की भलाई को प्रभावित करते हैं।
भीड़ प्रबंधन:
- भीड़ प्रबंधन को व्यवस्थित योजना के रूप में परिभाषित किया गया है और लोगों की व्यवस्थित आवाजाही और जनसमूह की निगरानी के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भीड़ प्रबंधन में उपयोग से पहले किसी स्थान की क्षमताओं का आकलन शामिल है।
- इसमें अधिभोग के अनुमानित स्तरों का मूल्यांकन, प्रवेश और निकास के साधनों की पर्याप्तता, प्रसंस्करण प्रक्रियाएँ जैसे- टिकट संग्रह एवं अपेक्षित प्रकार की गतिविधियाँ तथा समूह व्यवहार शामिल हैं।
भीड़ आपदा/भगदड़ के कारण:
- संरचनात्मक विफलताएँ:
- अवैध संरचनाओं, फेरीवालों और पार्किंग, अंतरिम सुविधाओं, ऊर्ध्वाधर सीढ़ियों, संकीर्ण इमारतों के विध्वंस के कारण।
- बिजली/अग्नि आपदाएँ:
- उत्सव के दौरान पटाखों का अनुचित उपयोग या गलत वायरिंग एक सामान्य कारण है।
- बिजली की आपूर्ति में विफलता से दहशत पैदा होती है और अचानक भगदड़ शुरू हो जाती है।
- भीड़ का व्यवहार:
- भीड़ को कम करना, प्रबंधन के साथ समन्वय की कमी, टिकटों की अधिक बिक्री, सेलिब्रिटी से ऑटोग्राफ या मुफ्त उपहार प्राप्त करने के लिये अचानक भीड़ या अफवाहों से बड़े पैमाने पर घबराहट।
- लोगों को अपनी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये कम-से-कम 1 वर्ग गज जगह की आवश्यकता होती है। भीड़ में मरने वाले ज़्यादातर लोग सीधे खड़े होने पर दम घुटने से मरते हैं, रौंदने से नहीं।
- भीड़ को कम करना, प्रबंधन के साथ समन्वय की कमी, टिकटों की अधिक बिक्री, सेलिब्रिटी से ऑटोग्राफ या मुफ्त उपहार प्राप्त करने के लिये अचानक भीड़ या अफवाहों से बड़े पैमाने पर घबराहट।
- अपर्याप्त सुरक्षा:
- सुरक्षा टीमों की अपर्याप्त तैनाती के कारण आँसू गैस के गोले दागने जैसे कठोर उपाय करना।
- प्रशासनिक एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी:
- अग्निशमन सेवा, पुलिस, धर्मस्थल प्रबंधन आदि के बीच अपर्याप्त समन्वय।
भीड़ प्रबंधन संबंधी NDMA दिशा-निर्देश:
- पहला कदम पांडालों और दशहरा मैदानों के आसपास के क्षेत्रों में यातायात व्यवस्था को विनियमित करना है।
- पैदल चलने वालों के लिये कार्यक्रम स्थल तक पहुँचने हेतु रूट मैप और आपातकालीन निकास मार्ग आदि का सटीक निर्धारण किया जाना चाहिये। कतारबद्ध लोगों की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिये बैरिकेडिंग बढ़ती हुई भीड़ को नियंत्रित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- आंदोलन पर नज़र रखने के लिये सीसीटीवी कैमरे और अन्य छोटे-मोटे अपराधों के ज़ोखिम को कम करने के लिये पुलिस की मौजूदगी भी आयोजकों के एजेंडे के अंतर्गत होनी चाहिये।
- संकरे अथवा बंद (क्लॉस्ट्रोफोबिक) स्थानों में चिकित्सा आपात संबंधी स्थिति पैदा हो सकती है। ऐसे में एक एम्बुलेंस और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर जीवन रक्षा में काफी सहायक हो सकते हैं।
- भगदड़ जैसी स्थितियों में लोगों को निकास मार्गों से परिचित कराने, शांत रहने और निर्देशों के पालन में मदद करनी चाहिये।
- भगदड़ की स्थिति में व्यक्तियों को एक मुक्केबाज़ की भाँति हाथ जोड़कर अपनी छाती की रक्षा करनी चाहिये और सुरक्षित स्थान की ओर बढ़ना चाहिये।
- आयोजकों को बिजली, अग्निशमन यंत्रों का अधिकृत उपयोग और सुरक्षा दिशा-निर्देशों को पूरा करने वाली अन्य व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करना चाहिये।
- आसपास के अस्पतालों की एक सूची तैयार रखना मददगार हो सकती है। हल्के, सूती कपड़े पहनने जैसी साधारण सावधानियाँ और आग बुझाने के लिये सामान्य तरीकों का ज्ञान होना ज़रूरी है।
आगे की राह
- वर्तमान विश्व में भीड़ प्रबंधन सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये, विशेषकर भारत में।
- बड़ी संख्या में विनाशकारी घटनाएँ मानवीय त्रुटि के कारण होती हैं, सक्रिय उपायों की योजना बनाकर और उन्हें लागू करके इन आपदाओं से बचा जा सकता है। इसके अलावा पिछली त्रुटियों का विश्लेषण करना व उनसे सबक लेना महत्त्वपूर्ण है।
- भीड़ आपदा समाज में हर किसी के लिये चिंता का विषय है। नेतृत्त्व करने में सरकार की ज़िम्मेदारी के बावज़ूद भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोकने में आम जनता की भी प्रमुख भूमिका होनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA.) के सुझावों के संदर्भ में उत्तराखंड के अनेक स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (मेन्स- 2016) |