डेली न्यूज़ (30 Oct, 2023)



ऑटोमोटिव ईंधन के रूप में अमोनिया

प्रिलिम्स के लिये:

अमोनिया, बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन, अमोनिया की ऊर्जा घनत्व, हैबर-बॉश प्रक्रिया, हरित हाइड्रोजन/हरित अमोनिया नीति

मेन्स के लिये:

ईंधन के रूप में अमोनिया से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ, वैज्ञानिक नवाचार एवं खोजें, संरक्षण

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अमोनिया द्वारा संचालित एक आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine- ICE) ऑटोमोटिव उद्योग में लोकप्रियता हासिल कर रहा है।

  • यह अनोखा तरीका रुचिकर लग रहा है क्योंकि यह पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन (ICE) सिस्टम से पूरी तरह से अलग नहीं होने या बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (Battery Electric Vehicles- BEV) में परिवर्तित होने के बावजूद वैकल्पिक प्रणोदन प्रौद्योगिकियों की खोज करता है।

ICE सिस्टम और BEV सिस्टम:

  • आंतरिक दहन इंजन (ICE) सिस्टम:
    • ICE वाहन पारंपरिक इंजनों का उपयोग करते हैं जो बिजली उत्पन्न करने के लिये जीवाश्म ईंधन (जैसे, पेट्रोल या डीज़ल) को जलाते हैं।
      • ईंधन को हवा के साथ मिलाकर प्रज्ज्वलित किया जाता है और परिणामस्वरूप होने वाले विस्फोट से वाहन के पहिये चलते हैं।
    • ये सिस्टम आमतौर पर कारों, ट्रकों और मोटरसाइकिलों में पाए जाते हैं।
    • ये निकास गैसों का उत्सर्जन करते हैं और वायु प्रदूषण एवं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देते हैं।
  •  बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEVs):
    • BEV इलेक्ट्रिक वाहन हैं जो इलेक्ट्रिक मोटर को पावर देने के लिये पूरी तरह से रिचार्जेबल बैटरी पर निर्भर होते हैं।
      • उन्हें ग्रिड से बिजली का उपयोग करके चार्ज किया जाना चाहिये, जिसे नवीकरणीय ऊर्जा सहित विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न किया जा सकता है।
    • वे शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं और पर्यावरण के अनुकूल माने जाते हैं।

अमोनिया के वर्तमान प्रमुख अनुप्रयोग:

  • परिचय: 
    • अमोनिया एक रासायनिक यौगिक है जिसका सूत्र NH3 है। यह तीक्ष्ण गंध वाली रंगहीन गैस है जिसका व्यापक रूप से विभिन्न औद्योगिक, कृषि और घरेलू अनुप्रयोगों में प्रयोग किया जाता है।
  • प्रमुख अनुप्रयोग: 
    • कृषि: फसल वृद्धि के लिये आवश्यक अमोनिया आधारित उर्वरकों, जैसे अमोनियम नाइट्रेट और यूरिया के उत्पादन में प्रमुख घटक के रूप में।
    • रासायनिक उद्योग: नाइट्रिक एसिड, अमोनियम सल्फेट और विभिन्न नाइट्रोजन-आधारित यौगिकों जैसे पदार्थों के उत्पादन में मौलिक घटक के रूप में।
      • यह नायलॉन की तरह सिंथेटिक फाइबर के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • विनिर्माण: औद्योगिक प्रशीतन प्रणालियों और एयर कंडीशनिंग में एक रेफ्रिजरेंट के रूप में।
      • इसके अलावा, अमोनिया का उपयोग रंगों के निर्माण और रंगाई प्रक्रियाओं में pH नियामक के रूप में किया जाता है।
    • घरेलू अनुप्रयोग: काँच और फर्श क्लीनर सहित घरेलू सफाई उत्पादों में एक घटक के रूप में।

    अमोनिया को ईंधन के रूप में उपयोग करने के फायदे:

    • उच्च ऊर्जा घनत्व: अमोनिया में उच्च ऊर्जा घनत्व होता है, जिसका अर्थ है कि यह एक बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा संगृहीत और मुक्त कर सकता है, जो इसे दीर्घकालिक अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त बनाता है।
      • अमोनिया में लिथियम-आयन बैटरी की तुलना में 9 गुना और संपीड़ित हाइड्रोजन की तुलना में 3 गुना अधिक ऊर्जा घनत्व होता है।
    • कम कार्बन उत्सर्जन: अमोनिया में दहन के दौरान लगभग शून्य कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन करने की क्षमता होती है, जो विशेषकर जीवाश्म ईंधन की तुलना में इसे पर्यावरण के अनुकूल विकल्प बनाती है ।
    • ब्रिज ईंधन: अमोनिया एक ब्रिज ईंधन के रूप में कार्य कर सकता है, जो पारंपरिक जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने में मदद करता है और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर एक संक्रमणकालीन बफर प्रदान करता है।
      • इसके अलावा, अमोनिया का उपयोग ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाकर और एकल ऊर्जा स्रोत पर निर्भरता को कम करके देश की ऊर्जा सुरक्षा को बेहतर कर सकता है।

    अमोनिया को ईंधन के रूप में उपयोग करने से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

    • पर्यावरणीय प्रभाव: ईंधन के रूप में अमोनिया दहन के दौरान लगभग शून्य CO2 उत्सर्जित होता है।
      • किंतु वर्तमान अमोनिया इंजन अभी भी अपूर्ण दहन हुए अमोनिया और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) सहित निकास गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जो पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
        • वायुमंडल में नाइट्रोजन के परिणामस्वरूप आमतौर पर क्षोभमंडलीय ओज़ोन की मात्रा अधिक हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप श्वसन संबंधी बीमारियाँ और अम्लीय वर्षा होती है।
    • उत्पादन संबंधी चुनौतियाँ: अमोनिया का उत्पादन आम तौर पर हैबर-बॉश प्रक्रिया पर निर्भर करता है, जो महत्त्वपूर्ण मात्रा में ऊर्जा की खपत करता है और जीवाश्म ईंधन पर आधारित है।
      • हरित अमोनिया उत्पादन, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा एवं हाइड्रोजन के सतत् स्रोतों का उपयोग शामिल है, अभी भी विकास के प्रारंभिक चरण में है तथा लागत और स्केलेबिलिटी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
    • हानियाँ: अमोनिया अत्यधिक विषैला होता है, यदि ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो यह मनुष्यों और पर्यावरण के लिये स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
      • इसके अतिरिक्त, इसके हनिकारक प्रभावों और संक्षारकता के कारण दुर्घटनाएँ अथवा गलत संचालन के कारण गंभीर परिणाम घटित हो सकते हैं।
    • ईंधन गुणवत्ता मानक: ईंधन के रूप में अमोनिया के लिये निरंतर गुणवत्ता मानकों को विकसित करना और उनको लागू करना जटिल हो सकता है, विशेषर जब अमोनिया विभिन्न स्रोतों से अथवा अशुद्धियों के विभिन्न स्तरों के साथ उत्पादित होता है।

    नोट: भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने फरवरी 2022 में ग्रीन हाइड्रोजन/ग्रीन अमोनिया नीति को अधिसूचित किया है जो नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने वाले ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के निर्माताओं के लिये विभिन्न प्रोत्साहन एवं समर्थन उपाय प्रदान करता है।

    आगे की राह: 

    • बेहतर इंजन प्रौद्योगिकी: अधिक कुशल और स्वच्छ अमोनिया इंजन बनाने के लिये अनुसंधान और विकास में निवेश करने की आवश्यकता है।
      • इसमें दहन प्रक्रियाओं को अनुकूलित करना और ऐसे इंजन डिज़ाइन करना शामिल है जो न्यूनतम (NOx) उत्सर्जन के साथ अमोनिया ईंधन का उपयोग करने में सक्षम हों।
      • इंजन डिज़ाइन में व्यावहारिक विकास के साथ अमोनिया एक अधिक व्यवहार्य विकल्प बन सकता है।
    • सुरक्षा प्रशिक्षण: अमोनिया उद्योग में शामिल श्रमिकों के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना। उचित संचालन, सुरक्षा प्रोटोकॉल और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रशिक्षण अमोनिया की विषाक्तता से जुड़े जोखिमों को कम कर सकते हैं।
    • बाज़ार प्रोत्साहन: अमोनिया को ईंधन के रूप में अपनाने को प्रोत्साहित देने हेतु कर क्रेडिट या सब्सिडी जैसे बाज़ार प्रोत्साहन प्रदान करना, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ इसके उपयोग से समुद्री परिवहन जैसे महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
    • अमोनिया हाइब्रिड: हाइब्रिड सिस्टम विकसित करना जो अमोनिया को अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर और पवन ऊर्जा के साथ जोड़ता है। 
      • कम नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की अवधि के दौरान अमोनिया का उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

    1. कृषि मृदाएँ पर्यावरण में नाइट्रोजन के ऑक्साइड निर्मुक्त करती हैं।
    2. मवेशी पर्यावरण में अमोनिया निर्मुक्त करते हैं।
    3. कुक्कुट उद्योग पर्यावरण में अभिक्रियाशील नाइट्रोजन यौगिक निर्मुक्त करते हैं।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1 और 3
    (b) केवल 2 और 3 
    (c) केवल 2 
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (d)


    प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

    1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।
    2. अमोनिया जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
    3. सल्फर जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये कच्चा माल है, तेल शोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1 
    (b) केवल 2 और 3 
    (c) केवल 2
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b)


    सिक्किम बाँध आपदा ने भारत-भूटान जलविद्युत परियोजना के लिये चिंता बढ़ाई

    प्रिलिम्स के लिये:

    तीस्ता-III बाँध, हिमनद झील के फटने से बाढ़, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)

    मेन्स के लिये:

    बाँध सुरक्षा, बाँध निर्माण और पर्यावरणीय चुनौतियों से संबंधित मुद्दे

    स्रोत: द हिंदू

    चर्चा में क्यों? 

    हाल ही में सिक्किम में हिमनद झील के फटने से आई बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood- GLOF) ने 1200 मेगावाट के तीस्ता-III बाँध को बहा दिया है।

    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (National Hydroelectric Power Corporation- NHPC) समेत प्रमुख हितधारकों को नोटिस जारी किया है, जिसने पहले GLOF के किसी भी खतरे को खारिज़ कर दिया था।
    • सिक्किम में एक बाँध के ढहने से भूटान में भारत की जलविद्युत परियोजनाओं, जो दोनों देशों की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, की सुरक्षा और व्यवहार्यता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

    NGT ने तीस्ता-III बाँध हितधारकों को नोटिस:

    • NHPC ने स्थिति को संबोधित करने हेतु तीन प्रमुख हितधारकों (सिक्किम सरकार, सिक्किम ऊर्जा लिमिटेड (तीस्ता-III के लिये ज़िम्मेदार) और NHPC) को बुलाया है।
    • NHPC ने पहले इस क्षेत्र में GLOF के जोखिम को कम करके आँका था।
    • वर्ष 2014 में जब NHPC की 520 मेगावाट की तीस्ता-IV परियोजना को पर्यावरण मंज़ूरी के लिये चुनौती का सामना करना पड़ा, तो NHPC ने NGT को दिये एक हलफनामे में कहा कि चुंगथांग (तीस्ता-III) से नीचे स्थित परियोजनाओं को GLOF से कोई खतरा नहीं है।
      • इसके बाद आश्वस्त होकर NGT ने वर्ष 2017 में तीस्ता-IV की पर्यावरण मंज़ूरी के खिलाफ अपील खारिज़ कर दी।

    राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT):

    • परिचय:
      • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना वर्ष 2010 में NGT अधिनियम, 2010 के तहत पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन, दुष्प्रभावित व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिये अनुतोष और क्षतिपूर्ति प्रदान करने एवं इससे जुडे़ हुए मामलों के प्रभावशाली व त्वरित निपटारे के लिये की गई थी।
      • NGT का मुख्यालय दिल्ली में है जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
    • संरचना:
      • अधिकरण में अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ सदस्य शामिल हैं।
        • अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
        • न्यायिक सदस्यों और विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति के लिये केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति का गठन किया जाता है।
      • NGT में सदस्यों की कुल संख्या 10 से कम और 20 से अधिक नहीं होनी चाहिये। प्रत्येक सदस्य पाँच वर्ष तक अथवा 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद पर रहता है और पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं है।
    • शक्तियाँ और प्रकार्य:
      • इसके द्वारा विभिन्न पर्यावरण कानूनों, जैसे- जल अधिनियम, 1974; पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986; वन संरक्षण अधिनियम, 1980; जैवविविधता अधिनियम, 2002; आदि से संबंधित मामलों की सुनवाई की जाती है।
      • इसे पर्यावरण से संबंधित किसी भी वैधानिक अधिकार को लागू करने अथवा किसी पर्यावरणीय क्षति को नियंत्रित करने अथवा उसका समाधान करने के लिये आदेश, निर्देश अथवा रिट जारी करने की शक्ति प्राप्त है।
        • इसके द्वारा पर्यावरणीय क्षति अथवा प्रदूषण के पीड़ितों को राहत अथवा मुआवज़ा दिया जाता है।
        • यह स्वयं के निर्णयों अथवा आदेशों की समीक्षा कर सकता है।

    तीस्ता नदी और तीस्ता-III बाँध से संबंधित मुख्य तथ्य: 

    • तीस्ता नदी:
      • तीस्ता नदी ब्रह्मपुत्र (बांग्लादेश में जमुना के नाम से जानी जाती है) की एक सहायक नदी है, जो भारत और बांग्लादेश से होकर बहती है।
      • इसकी उत्पत्ति सिक्किम के चुंगथांग के पास हिमालय से होती है और यह बांग्लादेश में प्रवेश करने से पहले पश्चिम बंगाल से होकर दक्षिण की ओर बहती है।
        • पहले यह नदी दक्षिण की ओर बढ़ती हुई प्रत्यक्ष रूप से पद्मा नदी (बांग्लादेश में गंगा का मुख्य मार्ग) में जा मिलती थी, किंतु वर्ष 1787 के आसपास नदी ने अपना मार्ग बदल लिया और पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए ब्रह्मपुत्र नदी में मिल गई। 
      • तीस्ता जल संघर्ष भारत और बांग्लादेश के बीच सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है।
      • सहायक नदियाँ: ज़ेमु छू, रंगयोंग छू, रंगित नदी, लाचुंग छू, चाकुंग छू।

    • तीस्ता-III बाँध परियोजना:
      • यह भारत में सिक्किम के चुंगथांग में तीस्ता नदी पर बनी एक जलविद्युत परियोजना है।  इसकी स्थापित क्षमता 1,200 मेगावाट है। यह सिक्किम में सबसे ऊँचा बाँध था।
      • सिक्किम में GLOF का प्रभाव:
        • सिक्किम में हुई GLOF ने 1200 मेगावाट वाली परियोजना तीस्ता-III को बहा दिया और 510 मेगावाट की तीस्ता-V तथा निर्माणाधीन 500 मेगावाट की तीस्ता-VI सहित NHPC की डाउनस्ट्रीम परियोजनाओं को क्षति पहुँचाई।

    भूटान में भारत की जलविद्युत परियोजनाओं पर सिक्किम आपदा का प्रभाव:

    • सिक्किम बाँध आपदा ने भूटान में किर्यांवित भारत की जलविद्युत परियोजनाओं की सुरक्षा और व्यवहार्यता के विषय में चिंताएँ उत्त्पन्न की हैं।
    • बाँध टूटने से भूटान में तीन भारत समर्थित, निर्माणाधीन मेगा जलविद्युत परियोजनाओं में से दो - 1,200 मेगावाट पुनात्सांगछू चरण-I (पुना-I) और पुनात्सांगछू नदी पर 1,020 मेगावाट पुनात्सांगछू चरण-II (पुना-II) पर ग्रहण लग गया है।   
    • ये परियोजनाएँ भारत और भूटान के बीच वर्ष 2020 तक 10,000 मेगावाट जलविद्युत विकसित करने के लिये वर्ष 2006 के समझौते का हिस्सा हैं, जिनके पूर्ण होने की अवधि को बाद में संशोधित करके वर्ष 2027 तक कर दिया गया।
    • इन परियोजनाओं से भारत को सस्ती और स्वच्छ विद्युत मिलने की उम्मीद है, जिसमें लगभग 10% की विद्युत की कमी चल रही है, साथ ही इससे भूटान के लिये राजस्व उत्पन्न होगा, जो भारत को जलविद्युत निर्यात से अपने सकल घरेलू उत्पाद का आधे से अधिक कमाता है।  
    • हालाँकि इन परियोजनाओं को भू-वैज्ञानिक चुनौतियों, तकनीकी मुद्दों और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण देरी तथा लागत में वृद्धि का भी सामना करना पड़ा है।
    • भूटान के प्रधानमंत्री, भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं।

    आगे की राह 

    • सुरक्षा प्रोटोकॉल सुदृढ़ीकरण: सुरक्षा उपायों को बढ़ाना और वर्तमान एवं भविष्य की जलविद्युत परियोजनाओं के लिये सख्त भू-वैज्ञानिक आकलन करने की आवश्यकता है।
    • सहयोगात्मक प्रयास: भारत और भूटान को संभवतः अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की भागीदारी के साथ, भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षणों के पुनर्मूल्यांकन के लिये मिलकर कार्य करना चाहिये।
    • तकनीकी विशेषज्ञता: हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) की समस्या का हल करने में तकनीकी विशेषज्ञता के निर्माण में निवेश करके इस ज्ञान को परियोजना के लिये प्रयोग करना चाहिये।
    • पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन: हिमालय जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में जलविद्युत परियोजनाओं के लिये व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन आयोजित करना चाहिये।
    • नियमित समीक्षा: जारी परियोजनाओं की नियमित समीक्षा और मूल्यांकन के लिये पिछली घटनाओं से सबक लेते हुए एक रूपरेखा स्थापित करनी चाहिये। 

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    तीस्ता नदी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

    1. तीस्ता नदी का उद्गम वही है जो ब्रह्मपुत्र का है लेकिन यह सिक्किम से होकर बहती है।
    2. रंगीत नदी की उत्पत्ति सिक्किम में होती है और यह तीस्ता नदी की एक सहायक नदी है।
    3. तीस्ता नदी, भारत एवं बांग्लादेश की सीमा पर बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1 और 3
    (b) केवल 2
    (c) केवल 2 और 3
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b)


    कतर में पूर्व नौसेना कर्मी को मृत्युदंड

    प्रिलिम्स के लिये:

    कतर में पूर्व नौसेना कर्मियों को मौत की सज़ा, भारतीय नौसेना, भारत-कतर संबंध, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), संयुक्त राष्ट्र (UN)

    मेन्स के लिये:

    कतर में पूर्व नौसेना कर्मियों को मौत की सज़ा, भारत के समक्ष कानूनी विकल्प और इसका भारत-कतर संबंधों पर प्रभाव

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में कतर के एक न्यायालय ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को जासूसी के आरोप में मौत की सज़ा सुनाई है।

    • संबद्ध अधिकारियों को अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया गया था और उन पर गोपनीय जानकारी साझा करने संबंधी आरोप लगाए गए थे।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    • याचिका:
      • दोहा में अल दहरा ( कतर की निजी सुरक्षा कंपनी) के साथ कार्य कर रहे अभियुक्त अधिकारियों पर वर्ष 2022 में कतर में उनकी गिरफ्तारी के समय कथित तौर पर गोपनीय जानकारी साझा करने का आरोप लगाया गया था।
      • दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज़ एंड कंसल्टेंट सर्विसेज़, जिस कंपनी के लिये उन्होंने कार्य किया था, वह इतालवी मूल की उन्नत पनडुब्बियों के उत्पादन से भी जुड़ी थी, जो अपनी गुप्त युद्ध क्षमताओं के लिये भी जानी जाती हैं।
      • हालाँकि कतरी अधिकारियों द्वारा आठ भारतीय अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया गया है।

    • पिछला परीक्षण:
      • इस मामले में 2023 के मार्च और जून में दो परीक्षण हुए हैं। जबकि बंदियों को कई मौकों पर कांसुलर एक्सेस (Consular Access) प्रदान की गई थी, भारतीय और कतरी दोनों अधिकारियों ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए इस मामले में गोपनीयता को बनाए रखा है।
    • भारत की प्रतिक्रिया:
      • भारत ने अपने नागरिकों को दी गई मौत की सज़ा पर चिंता व्यक्त की है और उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिये सभी संभावित कानूनी विकल्प तलाश रहा है।
      • विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस मामले से जुड़े बड़े महत्त्व से अवगत कराया है और हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को कांसुलर तथा कानूनी सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है।

    इस मामले के कूटनीतिक निहितार्थ:

    • यह निर्णय संभावित रूप से भारत और कतर के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न कर सकता है, जहाँ बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी आर्थिक एवं राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने में योगदान करते हैं।
    • कतर में सात लाख से अधिक भारतीय आबादी निवास करती हैं जिससे भारत सरकार पर इस बात का दबाव बढ़ जाता है कि वहाँ की जेलों में बंद कैदियों की जान बचाने हेतु उच्चतम स्तर की कार्रवाई की जाए।
      • वे अलग-अलग क्षेत्रों में अपना योगदान दे रहे हैं। कतर में भारतीयों को उनकी ईमानदारी, कड़ी मेहनत, तकनीकी विशेषज्ञता और कानून का पालन करने वाले स्वभाव के लिये बहुत सम्मान दिया जाता है।
      • कतर में भारतीय प्रवासी समुदाय द्वारा भारत को भेजी जाने वाली धनराशि प्रति वर्ष लगभग 750 मिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
    • यह मामला भारत-कतर संबंधों में पहले बड़े संकट का प्रतिनिधित्व करता है, जो आमतौर पर स्थिर रहे हैं।
      • दोनों देशों ने वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री के दोहा दौरे के साथ उच्च स्तरीय बैठकें कीं, जिसके बाद कतर के अमीर (Emir) के साथ भी बैठकें हुईं।
    • कतर भारत को तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है, जो भारत के LNG आयात का एक बड़ा भाग रखता है।

    नौसेना कर्मियों की सज़ा को रोकने हेतु भारत के विकल्प:

    • राजनयिक विकल्प:
      • भारत मामले का समाधान तलाशने के लिये कतर सरकार के साथ सीधी कूटनीतिक वार्त्ता कर सकता है। दोनों देशों के बीच संबंधों के रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व को देखते हुए राजनयिक उत्तोलन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
      • सरकार मृत्युदंड को रोकने के लिये राजनयिक दबाव का भी उपयोग कर सकती है।
      • जिन संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है उनमें निर्णय के खिलाफ अपील दायर करना या दोषी कैदियों के स्थानांतरण के लिये वर्ष 2015 में भारत और कतर द्वारा हस्ताक्षरित समझौते का उपयोग करना है ताकि वे अपने गृह देश में अपनी सज़ा पूरी कर सकें।
      • गैर सरकारी संगठन और नागरिक समाज इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उठा सकते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र का दबाव भी बनाया जा सकता है।
    • कानूनी विकल्प:
      • पहला कदम कतर में न्यायिक प्रणाली के अंतर्गत अपील करना है। मौत की सज़ा पाने वाले व्यक्ति कतर की कानूनी प्रणाली के तहत अपील दायर कर सकते हैं।
        • भारत बंदियों को कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करके यह सुनिश्चित कर सकता है कि अपील करने के उनके अधिकार का उचित रूप से पालन किया जाए।
      • यदि उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है या अपील प्रक्रिया अव्यवस्थित है, तो भारत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) क्षेत्राधिकार का उपयोग कर सकता है।
        • ICJ एक विश्व न्यायालय के रूप में कार्य करता है जिसके पास दो प्रकार के क्षेत्राधिकार हैं अर्थात् राज्यों के बीच उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए कानूनी विवाद (विवादास्पद मामले) और संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों (सलाहकार कार्यवाही) द्वारा इसे संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय के लिये अनुरोध।

    भारत किन मामलों में ICJ में शामिल था?

    • कुलभूषण जाधव मामला (भारत बनाम पाकिस्तान)
    • भारतीय क्षेत्र पर मार्ग का अधिकार (पुर्तगाल बनाम भारत, वर्ष 1960 में समाप्त)।
    • ICAO परिषद् के क्षेत्राधिकार से संबंधित अपील (भारत बनाम पाकिस्तान, वर्ष 1972 में समाप्त)।
    • पाकिस्तानी युद्धबंदियों का मुकदमा (पाकिस्तान बनाम भारत, वर्ष 1973 में समाप्त)।
    • 10 अगस्त, 1999 की हवाई घटना (पाकिस्तान बनाम भारत, वर्ष 2000 में समाप्त )।
    • परमाणु हथियारों की होड़ को रोकने और परमाणु निरस्त्रीकरण की वार्ता से संबंधित दायित्व (मार्शल आइलैंड्स बनाम भारत, वर्ष 2016 में समाप्त)।

    आगे की राह 

    • इस दिशा में आगे का रास्ता चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है और इसमें समय लगने एवं भारत को दृढ़ता दिखाने की आवश्यकता हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और कतर में कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं से निपटते हुए भारत को अपने नागरिकों के कल्याण एवं उनके कानूनी अधिकारों के लिये प्रतिबद्ध रहना आवश्यक है।
    • सफल और उचित समाधान के लिये राजनयिक प्रयासों, कानूनी कार्रवाइयों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के संयोजन की आवश्यकता हो सकती है।


    क्लाउड सीडिंग

    प्रिलिम्स के लिये:

    क्लाउड सीडिंग और प्रकार, कृत्रिम वर्षा, संवहनी बादल

    मेन्स के लिये:

    क्लाउड सीडिंग और चिंताएँ, वायुमंडलीय परिसंचरण, जल संसाधन का अनुप्रयोग

    स्रोत: द हिंदू

    चर्चा में क्यों? 

    क्लाउड सीडिंग वर्षा को बढ़ाने की एक अभूतपूर्व तकनीक है, जिसे भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे द्वारा संचालित अमेरिकन मौसम विज्ञान सोसायटी के जर्नल बुलेटिन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में केंद्र में रखा गया है।

    • अध्ययन में पानी की कमी वाले क्षेत्रों में वर्षा को बढ़ावा देने के लिये क्लाउड सीडिंग की क्षमता का पता चलता है, जिससे सूखे की स्थिति से निपटने की उम्मीद जगी है। 

    अध्ययन के प्रमुख बिंदु:

    • CAIPEEX चरण-4 जाँच:
      • क्लाउड एयरोसोल इंटरेक्शन और वर्षा वृद्धि प्रयोग (Cloud Aerosol Interaction and Precipitation Enhancement Experiment- CAIPEEX) चरण -4 वर्ष 2018 एवं 2019 के ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान सोलापुर (महाराष्ट्र) में आयोजित दो साल का अध्ययन था।
      • इसका प्राथमिक उद्देश्य गहरे संवहनी बादलों में हीड्रोस्कोपिक सीडिंग की प्रभावशीलता का आकलन करना और क्लाउड सीडिंग प्रोटोकॉल विकसित करना था।
        • शोधकर्त्ताओं ने क्लाउड सीडिंग के लिये कैल्शियम क्लोराइड फ्लेयर्स का उपयोग किया।
          • क्लाउड सीडिंग फ्लेयर ट्रिगर होने पर इन कणों को छोड़ता है। सीडिंग गर्म संवहन बादलों (Convective Clouds) के आधार पर और ऐसे समय में किया गया जब क्लाउड अपनी वृद्धि अवस्था में थे ताकि सीड के कण न्यूनतम फैलाव के साथ बादलों में प्रवेश कर सकें।
      • इस प्रयोग में क्लाउड पैरामीटर अध्ययन और क्लाउड सीडिंग के लिये दो विमानों को नियोजित किया गया।
    • क्लाउड सीडिंग की प्रभावशीलता:.
      • उपयुक्त परिस्थितियों में वर्षा बढ़ाने के लिये क्लाउड सीडिंग प्रभावी साबित हुई है।
      • एक यादृच्छिक सीडिंग प्रयोग में 276 संवहनशील मेघों का चयन किया गया, जिनमें 150 मेघ सीडिंग के अधीन थे और 122 बिना सीडिंग वाले।
        • वर्षा की क्षमता की पहचान विशिष्ट मेघ गुणों जैसे तरल जल सामग्री और ऊर्ध्वाधर गति द्वारा की गई थी।
        • लक्षित संवहनी मेघों के गहरे कपासी (Cumulus) मेघों में विकसित होने की संभावना थी और ये आमतौर पर एक किलोमीटर से अधिक सघन होते थे।
    • लाभ:
      • लागत-लाभ अनुपात:
        • शोध प्रयोग के दौरान क्लाउड सीडिंग के माध्यम से जल उत्पन्न करने की अनुमानित लागत 18 पैसे प्रति लीटर थी।
        • स्वदेशी सीडिंग विमान के उपयोग से लागत 50% से अधिक कम हो सकती है।
      • सूखे की स्थिति का प्रबंधन:
        • मात्र क्लाउड सीडिंग सूखे की स्थिति को पूरी तरह से कम नहीं कर सकती है, लेकिन जल की आवश्यकताओं संबंधी समास्याओं का आंशिक रूप से समाधान करते हुए, वर्षा में 18% की वृद्धि में योगदान दे सकती है।
        • कैचमेंट-स्केल परियोजनाओं के हिस्से के रूप में क्लाउड सीडिंग करने से सूखा प्रबंधन में मदद मिल सकती है।
      • व्यावहारिक अनुप्रयोग:
        • क्लाउड सीडिंग से सोलापुर जैसे क्षेत्रों को काफी फायदा हो सकता है जो पश्चिमी घाट के निम्न क्षेत्र वाले भाग में स्थित है और न्यूनतम वर्षा वाला स्थान है।
        • क्लाउड सीडिंग ऐसे क्षेत्रों में जल की कमी के मुद्दों को कम करने की क्षमता रखता है।
    • माइक्रोफिज़िक्स और मेघ विशेषताएँ:
      • दो वर्ष के अध्ययन का उद्देश्य वर्षा बढ़ाने के लिये उपयुक्त संवहनी मेघों की माइक्रोफिज़िक्स विशेषताओं को उजागर करना था।
        • यह भारत में क्लाउड सीडिंग की योजना बनाने और संचालन के लिये व्यापक प्रोटोकॉल तथा तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करता है।
    • मेघ परिवर्तनशीलता:
      • सभी कपासी मेघ क्लाउड सीडिंग पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं; यदि सीडिंग सही तरीके से की जाए तो लगभग 20-25% तक वर्षा हो सकती है।
      • क्लाउड माइक्रोफिज़िक्स व्यापक रूप से भिन्न होता है, जिससे क्लाउड सीडिंग के विभिन्न परिणाम सामने आते हैं।

    संवहन मेघ:

    • संवहन मेघ वे मेघ होते हैं जो तब बनते हैं जब गर्म, आर्द्र वायु शीत वायु के माध्यम से वायुमंडल में ऊपर उठती है।
      • गर्म वायु आसपास की वायु की तुलना में कम सघन होती है, इसलिये ऊपर उठती है। इस प्रक्रिया को संवहन कहा जाता है।
      • संवहन मेघों को संचयी मेघों के रूप में भी जाना जाता है। वे कपास की गेंदों के ढेर की तरह दिखते हैं।
    • संवहन मेघ दो प्रकार के होते हैं: कपासी मेघ(Cumulus Clouds) और कपासी पक्षाभ मेघ (Cumulonimbus Clouds)।
      • कपासी मेघ: ये रुई जैसे सफेद बादल होते हैं जिनका निचला भाग सपाट और उपर से गोलकार होता है। वे आमतौर पर उपर उठती गर्म हवा की धाराओं से बनते हैं तथा अक्सर धूप वाले दिनों में देखे जाते हैं। कपासी मेघ ही कपासी-वर्षी मेघ बन सकते हैं, जो आमतौर पर गर्जना करते हैं।
      • कपासी पक्षाभ मेघ: अधिक ऊँचाई पर स्थित ये मेघ छोटे, सफेद और रुई जैसे मेघ के टुकड़ों के रूप में दिखाई देते हैं। इनका पैटर्न अक्सर अनियमित अथवा छत्ते (Honeycomb) जैसा होता है।

    क्लाउड सीडिंग:

    • परिचय:
      • क्लाउड सीडिंग, शुष्क बर्फ या सामान्यतः सिल्वर आयोडाइड एरोसोल के मेघों के ऊपरी हिस्से में छिड़काव की प्रक्रिया है ताकि वर्षण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करके वर्षा कराई जा सके।
      • क्लाउड सीडिंग में छोटे कणों को बड़ी बारिश की बूँदों में बदलने के लिये रसायनों के साथ मेघों पर छिड़काव करने के लिये विमानों का उपयोग किया जाता है।    

    • क्लाउड सीडिंग की विधियाँ:
      • स्टेटिक क्लाउड सीडिंग:
        • इस विधि में बर्फ के नाभिक, जैसे सिल्वर आयोडाइड या शुष्क बर्फ को ठंडे मेघों में प्रविष्ट कराना शामिल है, जिनमें सुपरकूल तरल जल की बूँदें होती हैं।
        • बर्फ के नाभिक बर्फ के क्रिस्टल या बर्फ के टुकड़ों के निर्माण को गति दे सकते हैं, जो पहले तरल बूँदों का रूप ले सकते हैं और फिर वर्षा के रूप में गिर सकते हैं।
      • डायनेमिक क्लाउड सीडिंग: 
        • डायनेमिक क्लाउड सीडिंग ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं को बढ़ावा देकर वर्षा को प्रेरित करने की एक विधि है।
        • इस प्रक्रिया को स्टैटिक क्लाउड सीडिंग की तुलना में अधिक जटिल माना जाता है क्योंकि यह ठीक से काम करने वाली घटनाओं के अनुक्रम पर निर्भर करता है।
      • हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग: 
        • इस विधि में उष्म मेघों के आधार में फ्लेयर्स या विस्फोटकों के माध्यम से हाइग्रोस्कोपिक पदार्थों के बारीक कणों, जैसे नमक का छिड़काव करना शामिल है।
        • ये कण मेघ संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं और मेघ के बूंदों की संख्या एवं आकार को बढ़ा सकते हैं, जिससे मेघों की परावर्तनशीलता एवं स्थिरता को बढ़ावा  मिलता है।
    • अनुप्रयोग:
      • शीतकालीन हिमपात और पर्वतीय हिमखण्डों को बढ़ाने के लिये क्लाउड सीडिंग की जाती है, जो आसपास के क्षेत्रों में समुदायों के लिये प्राकृतिक जल आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
      • ओलावृष्टि को रोकने, कोहरे को समाप्त करने, सूखाग्रस्त क्षेत्रों में वर्षा कराने तथा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये भी क्लाउड सीडिंग की जा सकती है।
    • चुनौतियाँ:
      • क्लाउड सीडिंग के लिये नमी युक्त मेघों की उपस्थिति की आवश्यकता होती है, जो हमेशा उपलब्ध या पूर्वानुमानित नहीं होते हैं।
      • क्लाउड सीडिंग ऐसे समय में नहीं हो सकती है जब अतिरिक्त वर्षा समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है, जैसे उच्च बाढ़ जोखिम या व्यस्त अवकाश यात्रा अवधि के दौरान।
      • क्लाउड सीडिंग का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसे प्राकृतिक जल चक्र में परिवर्तन, मृदा एवं जल को रसायनों से दूषित करना या स्थानीय जलवायु को प्रभावित करना।