डेली न्यूज़ (29 Jul, 2023)



भारत के वरिष्ठ नागरिकों को सशक्त बनाना

प्रिलिम्स के लिये:

SAGE पोर्टल, SACRED पोर्टल, अटल वयो अभ्युदय योजना, रजत अर्थव्यवस्था (Silver Economy)

मेन्स के लिये:

वरिष्ठ नागरिकों को सशक्त बनाने का महत्त्व, सिल्वर इकॉनमी को सुविधाजनक बनाने में सरकार की भूमिका

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के राज्य मंत्री ने सीनियरकेयर एजिंग ग्रोथ इंजन (SAGE) पोर्टल और सीनियर एबल सिटीजंस फॉर री-एम्प्लॉयमेंट इन डिग्निटी (SACRED) पोर्टल की अटल वयो अभ्युदय योजना (AVYAY) के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों  के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की। 

  • ये पहल भारत के वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकताओं एवं चिंताओं को संबोधित करने, नवाचार को बढ़ावा देने, रोज़गार के अवसर प्रदान करने और वरिष्ठ आबादी के समग्र कल्याण को सुनिश्चित करने में सहायक रही हैं।

SAGE पोर्टल:

  • SAGE पोर्टल "सिल्वर अर्थव्यवस्था (Silver Economy)" सेगमेंट में निवेश करने हेतु उद्यमियों और स्टार्ट-अप को आकर्षित करने के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है, जो वरिष्ठ देखभाल समाधानों हेतु नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • SAGE वरिष्ठ नागरिकों और उनके परिवारों सहित हितधारकों को उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उत्पादों एवं सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला की खोज तथा पहुँच के लिये सुविधाजनक "वन-स्टॉप एक्सेस" प्रदान करता है।
  • सरकार एक सुविधा प्रदाता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो वरिष्ठ नागरिकों को SAGE पोर्टल के माध्यम से पहचाने गए स्टार्ट-अप द्वारा पेश उत्पादों और सेवाओं तक पहुँचने में सक्षम बनाती है।
    • चयनित स्टार्ट-अप या स्टार्ट-अप विचारों को भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI) के माध्यम से प्रति परियोजना 1 करोड़ रुपए तक का इक्विटी समर्थन प्राप्त होता है। 
    • सरकार यह सुनिश्चित करती है कि स्टार्ट-अप में कुल सरकारी इक्विटी 49% से अधिक न हो।

सिल्वर अर्थव्यवस्था: 

  • सिल्वर अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग की प्रणाली है जिसका उद्देश्य वृद्ध और उम्रदराज़ लोगों की क्रय क्षमता का उपयोग करना तथा उनकी खपत, जीवन और स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करना है।
  • सिल्वर अर्थव्यवस्था का विश्लेषण सामाजिक जेरोन्टोलॉजी (उम्र बढ़ने का अध्ययन) के क्षेत्र में एक मौजूदा आर्थिक प्रणाली के रूप में नहीं बल्कि उम्र बढ़ने की नीति के एक साधन तथा बढ़ती आबादी के लिये एक संभावित, आवश्यकता-उन्मुख आर्थिक प्रणाली बनाने के राजनीतिक विचार के रूप में किया जाता है।
  • इसका मुख्य तत्त्व एक नए वैज्ञानिक, अनुसंधान और कार्यान्वयन प्रतिमान के रूप में जेरोनटेक्नोलॉजी (वृद्ध लोगों से संबंधित प्रौद्योगिकी) है।

SACRED पोर्टल:

  • SACRED पोर्टल वरिष्ठ नागरिकों को सशक्त बनाता है और उन्हें पुनः रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।
  • यह पोर्टल विशेष रूप से 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के नागरिकों को लक्षित करता है, इस आयु वर्ग की ज़रूरतों और आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • यह पोर्टल वरिष्ठ नागरिकों को उनकी प्राथमिकताओं और कौशल से मेल खाने वाले उपयुक्त रोज़गार और कार्य विकल्प खोजने के अवसर प्रदान करता है।
  • SACRED पोर्टल एक आभासी मिलान प्रणाली को नियोजित करता है जो अनुभवी व्यक्तियों की तलाश करने वाले निजी उद्यमों के साथ वरिष्ठ नागरिकों की प्राथमिकताओं को संरेखित करता है।
  • रोज़गार के अवसरों के माध्यम से SACRED पोर्टल वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करने में सहायता करता है और बाहरी समर्थन पर उनकी निर्भरता कम करता है

अटल वयो अभ्युदय योजना (AVYAY):

  • परिचय: 
    • AVYAY का लक्ष्य वरिष्ठ नागरिकों को समग्र सहायता प्रदान करना है।
  • घटक:
    • वरिष्ठ नागरिकों के लिये एकीकृत कार्यक्रम (IPSrC):  
      • यह घटक कार्यान्वयन एजेंसियों को वरिष्ठ नागरिक गृहों को चलाने और बनाए रखने के लिये सहायता प्रदान करता है, जो गरीब वरिष्ठ नागरिकों के लिये आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन के अवसर प्रदान करता है।
    • वरिष्ठ नागरिकों के लिये एकीकृत कार्यक्रम (IPSrC): 
      • यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रशिक्षित वृद्ध देखभालकर्ताओं के एक समूह का निर्माण करने, मोतियाबिंद अभियान चलाने एवं निर्धन वरिष्ठ नागरिकों के लिये अन्य राज्य-विशिष्ट कल्याण गतिविधियों को लागू करने हेतु अनुदान सहायता प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY):  
      • यह घटक आयु-संबंधित अक्षमताओं से पीड़ित  वरिष्ठ नागरिकों को सहायक जीवन उपकरण प्रदान करता है, जो उनके शारीरिक क्रिया को बढ़ाता है और उनकी अक्षमताओं पर काबू पाता है।
    • एल्डरलाइन- वरिष्ठ नागरिकों के लिये राष्ट्रीय हेल्पलाइन (NHSC):
      • एल्डरलाइन वरिष्ठ नागरिकों के लिये जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु दुर्व्यवहार के मामलों में मुफ्त जानकारी, मार्गदर्शन, भावनात्मक समर्थन और क्षेत्रीय हस्तक्षेप प्रदान करने के लिये एक टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर(14567) प्रदान करती है।
    • सीनियर-केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (SAGE): इस घटक का उद्देश्य युवाओं को बुजुर्गों की समस्याओं के बारे में सोचने और बुजुर्गों की देखभाल के लिये नवीन विचारों के साथ आने के लिये प्रोत्साहित करना तथा उन्हें इक्विटी सहायता प्रदान करके स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना है।
  • परिणाम:
    • लगभग 1.5 लाख लाभार्थी वरिष्ठ नागरिक गृहों में रह रहे हैं।
    • पिछले 3 वित्तीय वर्षों के दौरान कुल 288.08 करोड़ रुपए की सहायता अनुदान जारी की गई तथा लाभार्थियों की संख्या 3,63,570 है।
    • गरीब बुजुर्ग व्यक्तियों के लिये जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक एकीकरण में सुधार किया गया।
    • एक समावेशी समाज को बढ़ावा दिया गया जो वरिष्ठ नागरिकों को महत्त्व देता है तथा उनका सम्मान करता है।
    • "रजत अर्थव्यवस्था" के विकास और रोज़गार सृजन के माध्यम से आर्थिक विकास।

भारत में बुजुर्गों से संबंधित अन्य पहल:

स्रोत: पी.आई.बी.


वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023

प्रिलिम्स के लिये:

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023, सर्वोच्च न्यायालय, वन संरक्षण नियम, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980

मेन्स के लिये:

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 लोकसभा द्वारा पारित किया गया जिसका उद्देश्य वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाना है। यह भारत में वनों के संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्रीय कानून है। 

पृष्ठभूमि: 

  • स्वतंत्रता के बाद वन भूमि के विशाल क्षेत्रों को आरक्षित और संरक्षित वनों के रूप में नामित किया गया था।
    • हालाँकि अनेक वन क्षेत्रों को छोड़ दिया गया था तथा बिना किसी स्थायी वन वाले क्षेत्रों को 'वन' भूमि में शामिल किया गया था।
  • वर्ष 1996 के गोदावर्मन मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया और फैसला सुनाया कि वन संरक्षण अधिनियम उन सभी भूखंडों पर लागू होगा जो या तो 'वन' के रूप में दर्ज थे या फिर शब्दकोश द्वारा परिभाषित वन के अर्थ से मिलते जुलते हों।
  • सरकार ने जून 2022 में वन संरक्षण नियमों में कुछ बदलाव किया, ताकि डेवलपर्स को "ऐसी भूमि, जिस पर वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं है", पर वृक्षारोपण करने की अनुमति दी जा सके और प्रतिपूरक वनीकरण की बाद की आवश्यकताओं के अनुसार ऐसे भूखंडों की अदला-बदली की जा सके।

वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 के प्रमुख प्रावधान: 

  • अधिनियम का दायरा:  
    • एक प्रस्तावना शामिल करके यह विधेयक अधिनियम के दायरे को व्यापक बनाता है।
    • इसके प्रावधानों की क्षमता को दर्शाने के लिये इस अधिनियम का नाम बदलकर वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980 कर दिया गया।
  • विभिन्न भूमियों पर प्रयोज्यता:  
    • यह अधिनियम, जिसे शुरू में सिर्फ अधिसूचित वन भूमि पर लागू किया गया था, बाद में राजस्व वन भूमि और सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज भूमि तक बढ़ा दिया गया।
    • संशोधनों का उद्देश्य दर्ज वन भूमि, निजी वन भूमि, वृक्षारोपण आदि पर अधिनियम के अनुप्रयोग को सुनिश्चित करना है।
  • छूट:  
    • विधेयक में वनों के बाहर वनीकरण तथा वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ छूट का प्रस्ताव है।
    • सड़कों और रेलवे के किनारे स्थित बस्तियों एवं प्रतिष्ठानों के लिये कनेक्टिविटी प्रदान करने हेतु 0.10 हेक्टेयर वन भूमि का प्रस्ताव किया गया है, सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढाँचे के लिये 10 हेक्टेयर तक भूमि का प्रस्ताव किया गया है तथा सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं के लिये वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में 5 हेक्टेयर तक वन भूमि का प्रस्ताव दिया गया है। 
    • इन छूटों में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC), नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) आदि के 100 किमी. के भीतर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • विकास के लिये प्रावधान:  
    • विधेयक निजी संस्थाओं को पट्टे पर वन भूमि के आवंटन से संबंधित मूल अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों को सरकारी कंपनियों तक भी विस्तारित करता है।
    • इससे विकास परियोजनाओं को सुविधा मिलेगी और अधिनियम के कार्यान्वयन में एकरूपता सुनिश्चित होगी। 
  • नवीन वानिकी गतिविधियाँ:  
    • संशोधनों में वनों के संरक्षण के लिये वानिकी गतिविधियों की शृंखला में अग्रिम पंक्ति के वन कर्मचारियों के लिये बुनियादी ढाँचे, इकोटूरिज़्म चिड़ियाघर और सफारी जैसी नई गतिविधियों को जोड़ा गया है। वन क्षेत्रों में सर्वेक्षण एवं जाँच को गैर-वानिकी गतिविधियाँ नहीं माना जाएगा। 
  • जलवायु परिवर्तन शमन एवं संरक्षण:  
    • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे क्षेत्र वन संरक्षण प्रयासों के पहचाने गए भाग के रूप में जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत के प्रयासों में योगदान देना तथा वर्ष 2070 तक नेट शून्य उत्सर्जन जैसी भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में योगदान देना।
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना:  
    • विधेयक चिड़ियाघरों, सफारी और इकोटूरिज़्म की स्थापना जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है, जिनका स्वामित्व सरकार के पास होगा, साथ ही यह संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अनुमोदित योजनाओं में स्थापित किया जाएगा।
    • ये गतिविधियाँ न केवल वन संरक्षण तथा वन्यजीव संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाती हैं बल्कि स्थानीय समुदायों के लिये आजीविका के अवसर भी उत्पन्न करती हैं, उन्हें समग्र विकास के साथ एकीकृत करती हैं।

विधेयक से संबंधित चिंताएँ

  • हिंदी नाम पर आपत्ति: 
    • अधिनियम के नए नाम (जो अब हिंदी में है) पर इस आधार पर आपत्तियाँ थीं कि यह "गैर-समावेशी" था और इसमें दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर दोनों में "(गैर-हिंदी भाषी) आबादी के कई व्यक्ति शामिल नहीं थे।" 
  • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर प्रभाव:  
    • विधेयक में प्रस्तावित छूट ने विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पास रणनीतिक परियोजनाओं से संबंधित, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे- हिमालय, ट्रांस-हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में निर्वनीकरण के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
    • विधेयक, 2023 (FCA) भारत की सीमाओं पर रहने वाले स्वदेशी समुदायों के अधिकारों को समाप्त कर देगा।
    • उचित "मूल्यांकन और शमन योजनाओं" के बिना, ऐसी मंज़ूरी से जैव विविधता को खतरा हो सकता है और विषम मौसम की घटनाओं को ट्रिगर किया जा सकता है। 
  • सीमित प्रयोज्यता:
    • विधेयक कानून के दायरे को केवल अक्तूबर 1980 या उसके बाद वन के रूप में दर्ज क्षेत्रों तक सीमित रखता है। इस बहिष्करण के परिणामस्वरूप वन भूमि और जैव विविधता वाले गर्म स्थानों के महत्त्वपूर्ण हिस्से अधिनियम के दायरे से बाहर हो सकते हैं, जिससे उन्हें गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये संभावित रूप से बेचने, परिवर्तित करने, साफ करने तथा शोषण करने की अनुमति मिल जाएगी।
  •  समवर्ती सूची और केंद्र-राज्य संतुलन:  
    • कुछ राज्य सरकारों ने तर्क दिया है कि वन संरक्षण समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, जिसका अर्थ है कि इस मामले में केंद्र और राज्य दोनों की भूमिका है।
    • उनका मानना है कि प्रस्तावित संशोधनों से संतुलन केंद्र की ओर झुक सकता है और वन संरक्षण मामलों में राज्य सरकारों के अधिकारों पर असर पड़ सकता है।

आगे की राह 

  • प्रस्तावित संशोधनों और वनों, जैव विविधता तथा स्थानीय समुदायों पर उनके संभावित प्रभावों का गहन एवं व्यापक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
  • इस मूल्यांकन में पारिस्थितिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों पर विचार किया जाना चाहिये तथा इसमें विशेषज्ञों, गैर-सरकारी संगठनों, आदिवासी समुदायों और राज्य सरकारों सहित विभिन्न हितधारकों का योगदान होना चाहिये।
  • सभी हितधारकों के दृष्टिकोण को समझने और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिये उनके साथ सार्थक परामर्श एवं संवाद जारी रखना। इससे पारदर्शिता, समावेशिता और बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

स्रोत : पी.आई.बी.


अल्पसंख्यक समुदायों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, प्रधानमंत्री विरासत का संवर्द्धन, अल्पसंख्यक समुदाय 

मेन्स के लिये:

अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित कल्याणकारी योजनाएँ, अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण और उत्थान के लिये सरकार द्वारा कार्यान्वित विभिन्न योजनाओं एवं पहलों से संबंधित महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ तथा अंतर्दृष्टि साझा की

भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण के लिये विभिन्न योजनाएँ:

  • शैक्षिक सशक्तीकरण योजनाएँ: 
    • प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना:
      • यह सभी राज्यों में छात्रों के लिये एक केंद्र पोषित छात्रवृत्ति योजना है, यह प्रत्येक वर्ष प्रदान की जाती है।
      • इसका उद्देश्य कक्षा 1 से 10 तक की कक्षा में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
      • यह शैक्षिक खर्चों को प्रबंधित करने और अल्पसंख्यक छात्रों को शिक्षा अर्जित करने के लिये प्रोत्साहित करने में मदद करता है। 
    • पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना:
      • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है और राज्य सरकार तथा केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है।
      • कक्षा 11 और 12 में पढ़ने वाले तथा स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के  अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है।
      • छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने तथा उनके कॅरियर की संभावनाओं को बढ़ाने में सहायता करता है।
    • राष्ट्रीय साधन-सह-मेधा छात्रवृत्ति योजना (National Means-Cum-Merit Scholarship- NMMSS):
      • यह केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme- CSS) है जिसे वर्ष 2008 में शुरू किया गया था।
      • इसमें सीमित वित्तीय संसाधनों वाले मेधावी अल्पसंख्यक छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
      • यह शैक्षणिक उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करती है तथा योग्य छात्रों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करती है।
    • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (NMDFC) द्वारा शिक्षा ऋण योजना: 
      • NMDFC जैन समुदाय सहित अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को शिक्षा ऋण योजना प्रदान करता है।
      • अधिकतम 5 वर्ष की पाठ्यक्रम अवधि वाले तकनीकी एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिये रियायती ऋण प्रदान किया जाता है।
      • भारत में 5-वर्षीय पाठ्यक्रमों के लिये 20.00 लाख रुपए तक तथा विदेश में 5-वर्षीय पाठ्यक्रमों के लिये 30.00 लाख रुपए तक के शैक्षिक ऋण उपलब्ध हैं।
  • रोज़गार एवं आर्थिक सशक्तीकरण योजनाएँ:
    • प्रधानमंत्री विरासत का संवर्द्धन (PMVIKAS):
      • इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देना है।
      • कारीगरों और शिल्पकारों को सशक्त बनाने के लिये पारंपरिक शिल्प, कला रूपों तथा सांस्कृतिक प्रथाओं का समर्थन करना।
    • NMDFC योजना: 
      • अल्पसंख्यकों को उनके आर्थिक उद्यमों तथा उद्यमशीलता का समर्थन करने के लिये रियायती ऋण प्रदान करता है।
      • आर्थिक आत्मनिर्भरता को सक्षम बनाता है एवं स्थायी आजीविका को बढ़ावा देता है।
  • विशेष योजनाएँ: 
    • जियो पारसी:
      • यह भारत में पारसी समुदाय की जनसंख्या में गिरावट को रोकने के उद्देश्य से एक अनूठी योजना।
      • या पारसी परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने तथा उनके समुदाय की सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करने के उपायों को लागू करता है।
    • कौमी वक्फ बोर्ड तरक्कीयाती स्कीम (QWBTS) एंड शहरी वक्फ संपत्ति विकास योजना (SWSVY): 
      • अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण के लिये वक्फ संपत्तियों के विकास और उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
      • समुदाय को बेहतर सेवा प्रदान करने के लिये वक्फ संपत्तियों में बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं को बढ़ाना।
  • अवसंरचना विकास योजनाएँ: 
    • प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK): 
      • इसका लक्ष्य अल्पसंख्यक-केंद्रित क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी ढाँचा तैयार करना है।
      • बेहतर सुविधाएँ, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा केंद्र और कौशल विकास के अवसर प्रदान करना।

भारत में अल्पसंख्यक समुदाय:

  • परिचय: 
    • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया है।
      • वर्ष 2014 में जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में अल्पसंख्यकों का प्रतिशत देश की कुल जनसंख्या का लगभग 19.3% है।  
      • मुसलमानों की जनसंख्या 14.2% है; ईसाई 2.3%; सिख 1.7%, बौद्ध 0.7%, जैन 0.4% और पारसी 0.006% हैं। 
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान में "अल्पसंख्यक" शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँकि संविधान केवल धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है। 
    • अनुच्छेद 29: इसमें प्रावधान है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उसे संरक्षित करने का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद 30: अनुच्छेद के तहत सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद 350-B: मूल रूप से भारत के संविधान ने भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकार के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया है लेकिन 1956 के सातवें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 350-B को संविधान में जोड़ा।
  • संसदीय प्रावधान: 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में यदि किसी धार्मिक संप्रदाय/समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है, तो वह किस विशेष लाभ का हकदार है? (2011)

  1. यह विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकता है। 
  2. भारत का राष्ट्रपति स्वतः ही लोकसभा के लिये किसी समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित करता है। 
  3. इसे प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ मिल सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल  2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

  • वर्तमान में मुसलमानों, सिखों, बौद्धों, जैनियों, ईसाइयों और पारसियों (पारसी) को भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है। ऐसे कुछ विशेष लाभ हैं जिनके कारण ये सभी समुदाय भारत के संविधान के साथ-साथ विभिन्न अन्य विधायी और प्रशासनिक उपायों के तहत हकदार हैं।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने के अधिकार को बरकरार रखता है। अतः कथन 1 सही है। भारत के राष्ट्रपति के लिये किसी अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के सदस्य को लोकसभा के लिये स्वचालित रूप से नामित करने का कोई प्रावधान नहीं है। यह प्रावधान पहले एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों के लिये संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत उपलब्ध था। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • धार्मिक अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह कार्यक्रम शिक्षा, कौशल विकास, रोज़गार और सांप्रदायिक संघर्षों की रोकथाम के क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के कल्याण को सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2005 में शुरू किया गया था। अतः कथन 3 सही है। अत: विकल्प (C) सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत में वामपंथी उग्रवाद

प्रिलिम्स के लिये:

वामपंथी उग्रवाद को संबोधित करने के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना 2015, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, समाधान पहल  

मेन्स के लिये:

भारत में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक घोषणा में गृह मंत्रालय ने खुलासा किया कि वर्ष 2022 से भारत वामपंथी उग्रवादियों से संबंधित घटनाओं का अलग डेटा बना रहा है।

  • वामपंथी उग्रवाद कई दशकों से भारत में एक गंभीर सुरक्षा चुनौती रहा है, विशेषकर नागरिक अशांति और सशस्त्र संघर्षों से प्रभावित क्षेत्रों में।

वामपंथी उग्रवाद: 

  • परिचय:  
    • वामपंथी उग्रवाद, जिसे वामपंथी आतंकवाद या कट्टरपंथी वामपंथी आंदोलनों के रूप में भी जाना जाता है, उन राजनीतिक विचारधाराओं और समूहों को संदर्भित करता है जो क्रांतिकारी तरीकों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन की वकालत करते हैं।
    • वामपंथी उग्रवादी समूह अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये सरकारी संस्थानों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों या निजी संपत्ति को निशाना बनाते हैं।
    • भारत में वामपंथी उग्रवाद आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में हुए विद्रोह से हुई थी।
  • भारत में स्थिति:  
    • केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2022 में 76% की कमी आई है।
      • इसके अतिरिक्त हिंसा के भौगोलिक प्रसार में भी कमी आई है क्योंकि वर्ष 2010 में 96 ज़िलों की तुलना में वर्ष 2021 में केवल 46 ज़िलों में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा की सूचना मिली है।

  • वामपंथी उग्रवाद के लिये ज़िम्मेदार कारक: वर्ष 2006 की डी. बंदोपाध्याय समिति ने नक्सलवाद के प्रसार के प्राथमिक कारणों के रूप में आर्थिक, सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में आदिवासियों के विरुद्ध शासन संबंधी अंतराल एवं व्यापक भेदभाव की पहचान की।
    • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: भारत में अत्यधिक सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ हैं, जहाँ आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी में रहता है तथा बेरोज़गारी एवं बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच की कमी जैसे मुद्दों का सामना करता है।
      • वामपंथी चरमपंथी समूहों ने ऐतिहासिक रूप से इन शिकायतों का लाभ उठाया है और उनका उपयोग हाशिये पर रहने वाले समुदायों का समर्थन हासिल करने के लिये किया है।
    • भूमि अलगाव और विस्थापन: भूमि अधिकार और भूमि हस्तांतरण का मुद्दा भारत में कई ग्रामीण समुदायों के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय रहा है। 
      • विकास परियोजनाओं और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये भूमि अधिग्रहण के कारण कभी-कभी पर्याप्त मुआवज़े या पुनर्वास के बिना स्थानीय समुदायों का विस्थापन होता है।
        • यह नक्सली आंदोलन का केंद्र बिंदु रहा है. 
    • आदिवासी अधिकार: भारत बड़ी संख्या में आदिवासियों निवास करते हैं, जो अपनी विशिष्ट संस्कृतियों और परंपराओं के साथ स्वदेशी समुदाय हैं।
      • वामपंथी उग्रवादी समूह अक्सर आदिवासी अधिकारों की वकालत करते हैं और उनके संसाधनों के कथित शोषण एवं उनकी पैतृक भूमि से विस्थापन का विरोध करते हैं।
  • सरकारी पहल:
    • 'वामपंथी उग्रवाद को संबोधित करने के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना 2015: इस योजना में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया गया जिसमें शासन, सुरक्षा और विकास के विभिन्न पहलू शामिल थे।
      • इसका उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद से निपटने और इसके प्रसार को रोकने के लिये सुरक्षा बलों की क्षमताओं में वृद्धि करना है।
      • यह स्थानीय समुदायों के अधिकारों और विशेषाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है ताकि चरमपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले समर्थनों को कम किया जा सके।
      • यह उग्रवाद के मूल कारणों को दूर करने और स्थानीय समुदायों के जीवन में सुधार लाने के लिये प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
    • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: वर्ष 2015 में अधिनियमित किशोर न्याय अधिनियम, वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित बच्चों, विशेष रूप से संकटग्रस्त परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिनमें शामिल हैं:
      • कानून के साथ संघर्ष में बच्चे (CCL): वामपंथी उग्रवाद से संबंधित अवैध गतिविधियों में शामिल बच्चों को इस अधिनियम के माध्यम से देखभाल और सुरक्षा प्रदान की जाती है।
      • देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चे (CNCP): जो बच्चे सशस्त्र संघर्षों, नागरिक अशांति या प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित या प्रभावित हैं, उन्हें इस अधिनियम के तहत देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता के रूप में पहचाना जाता है।
      • आपराधिक अभियोजन: अधिनियम यह स्पष्ट करता है कि किसी भी गैर-राज्य, स्वयंभू आतंकवादी समूह या संगठन द्वारा किसी भी उद्देश्य के लिये बच्चों की भर्ती या उपयोग करने पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा।
    • समाधान (SAMADHAN): यह वामपंथी उग्रवाद की समस्या का वन-स्टॉप समाधान है। इसमें विभिन्न स्तरों पर बनाई गई अल्पकालिक नीतियों से लेकर दीर्घकालिक नीति तक सरकार की संपूर्ण रणनीति शामिल है। समाधान का अर्थ है-
      • S- स्मार्ट लीडरशिप, 
      • A- आक्रामक रणनीति, 
      • M- प्रेरणा और प्रशिक्षण,
      • A- कार्रवाई योग्य बुद्धिमत्ता, 
      • D- डैशबोर्ड आधारित KPI (मुख्य प्रदर्शन संकेतक) और KRA (मुख्य परिणाम क्षेत्र),
      • H- प्रौद्योगिकी का उपयोग,
      • A- प्रत्येक थिएटर के लिये कार्य योजना,
      • N- वित्तपोषण तक पहुँच नहीं।

आगे की राह 

  • सामुदायिक जुड़ाव और संवाद: सरकार, सुरक्षा बलों और प्रभावित समुदायों के बीच संचार के खुले चैनलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • साथ ही, सामुदायिक नेताओं, गैर-सरकारी संगठनों और धार्मिक संस्थानों को संघर्षों में मध्यस्थता करने तथा स्थानीय मुद्दों को संबोधित करने में भूमिका निभाने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • युवा उद्यमिता और स्टार्टअप इन्क्यूबेशन: युवाओं को अपनी ऊर्जा और रचनात्मकता को व्यावसायिक उद्यमों में लगाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु प्रभावित क्षेत्रों में उद्यमिता तथा स्टार्ट-अप इन्क्यूबेशन केंद्र स्थापित करना।
    • यह आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता के लिये एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान कर सकता है।
  • पारिस्थितिक और सतत् विकास योजना: ऐसी परियोजनाएँ शुरू करना जो उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सतत् विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करें।
    • पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करके स्वामित्व और ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे उग्रवाद कम हो सकता है।
  • स्थानीय शांति दूतों को सशक्त बनाना: समुदायों के भीतर प्रभावशाली व्यक्तियों की पहचान करना और उन्हें सशक्त बनाना जो शांति को बढ़ावा देने और चरमपंथी विचारों का मुकाबला करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
    • उन्हें सद्भाव और समझ के संदेश फैलाने के लिये संसाधन और सहायता प्रदान करना।
  • सामाजिक प्रभाव बॉण्ड: उग्रवाद का मुकाबला करने पर केंद्रित सामाजिक पहलों में निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये सामाजिक प्रभाव बॉण्ड की शुरुआत करना।
    • निवेशकों को इन योजनाओं की सफलता के आधार पर रिटर्न प्राप्त होगा, जिससे प्रभावशाली कार्यक्रमों के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

मेन्स: 

प्रश्न. पिछड़े क्षेत्रों में बड़े उद्योगों का विकास करने के सरकार के लगातार अभियानों का परिणाम जनजातीय जनता और किसानों, जिनको अनेक विस्थापनों का सामना करना पड़ता है, का विलगन (अलग करना) है। मल्कानगिरि एवं नक्सलबाड़ी पर ध्यान केंद्रित करते हुए वामपंथी उग्रवादी विचारधारा से प्रभावित नागरिकों को सामाजिक तथा आर्थिक संवृद्धि की मुख्यधारा में फिर से लाने की सुधारक रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2015)

 स्रोत : पी.आई.बी.