VVPAT मशीनें
प्रिलिम्स के लिये:ECI, VVPAT, रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, आदर्श आचार संहिता मेन्स के लिये:भारतीय चुनावों में VVPAT प्रणाली के समक्ष चुनौतियाँ, भविष्य के चुनावों में VVPAT प्रणाली की विश्वसनीयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु संभावित समाधान, VVPAT तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव |
चर्चा में क्यों?
मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों में पारदर्शिता की कमी एवं इसकी खामियों तक राजनीतिक दलों की अपर्याप्त पहुँच के कारण भारत निर्वाचन आयोग की आलोचना की गई थी।
निर्वाचन आयोग (EC) की आलोचना:
- निर्वाचन आयोग ने 6.5 लाख VVPAT मशीनों को दोषपूर्ण के रूप में पहचानने के बारे में राजनीतिक दलों को सूचित नहीं किया है।
- जिन मशीनों में खामियाँ पाई गई हैं, उनकी संख्या वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल की गई कुल मशीनों की संख्या के 1/3 (37%) से अधिक है तथा ये पिछले आम चुनाव एवं बाद के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित कर सकती थीं।
- विभिन्न निर्माताओं के पूरे बैच में लगातार क्रम संख्या वाले हज़ारों VVPAT खराब पाए गए हैं।
- खामियाँ इतनी गंभीर हैं कि मशीन निर्माताओं को वापस कर दी गई हैं।
- निर्वाचन आयोग ने उन मानक संचालन प्रक्रियाओं (आदर्श आचार संहिता) का पालन नहीं किया, जिन्हें पैनल ने अपने लिये तैयार किया था, इसके तहत फील्ड अधिकारियों को 7 दिनों के भीतर किसी भी दोष की पहचान करने की आवश्यकता होती है।
- निर्वाचन आयोग द्वारा पारदर्शिता सुनिश्चित कर निर्वाचन प्रक्रिया में जनता के विश्वास एवं भरोसे को बहाल करने की ज़रूरत है।
VVPAT मशीन:
- परिचय:
- VVPAT इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (Electronic Voting Machines- EVM) से संबंधित एक स्वतंत्र सत्यापन प्रिंटर मशीन है जो मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देती है कि उनका वोट उचित तरीके से दर्ज किया गया है।
- VVPAT मशीन EVM पर बटन को क्लिक करने के बाद लगभग 7 सेकंड हेतु मतदाता द्वारा चुनी गई पार्टी के नाम एवं प्रतीक के साथ पर्ची को प्रिंट करती है।
- VVPAT मशीनों को पहली बार भारत में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उपयोग किया गया था, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना एवं EVM की सटीकता के बारे में संदेह को खत्म करना था।
- VVPAT मशीनों तक केवल मतदान अधिकारी ही पहुँच सकते हैं।
- ECI के अनुसार, EVM और VVPAT अलग-अलग संस्थाएँ हैं जो किसी भी नेटवर्क से जुड़ी नहीं हैं।
- VVPAT इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (Electronic Voting Machines- EVM) से संबंधित एक स्वतंत्र सत्यापन प्रिंटर मशीन है जो मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देती है कि उनका वोट उचित तरीके से दर्ज किया गया है।
- चुनौतियाँ:
- तकनीकी खराबी:
- VVPAT मशीनों के संदर्भ में प्राथमिक चिंताओं में से एक तकनीकी खराबी की संभावना है। मशीनों को मतदाता द्वारा डाले गए वोट की एक कागज़ी रसीद प्रिंट करनी होती है, जिसे बाद में एक बॉक्स में जमा कर दिया जाता है।
- हालाँकि मशीनों के खराब होने के उदाहरण सामने आए हैं, जिसके परिणामस्वरूप गलत प्रिंटिंग हो गई है या कोई प्रिंटिंग नहीं हुई है।
- पेपर ट्रेल्स का सत्यापन:
- एक अन्य चुनौती VVPAT मशीनों द्वारा उत्पन्न पेपर ट्रेल्स का सत्यापन है।
- भले ही वोटिंग मशीनों को वोट का भौतिक रिकॉर्ड प्रदान करने के लिये अभिकल्पित किया गया है, परंतु यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता है कि इस रिकॉर्ड की पुष्टि कैसे की जा सकती है, खासकर जब भौतिक और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के बीच असमानता हो।
- एक अन्य चुनौती VVPAT मशीनों द्वारा उत्पन्न पेपर ट्रेल्स का सत्यापन है।
- मतदाताओं का विश्वास:
- खराब VVPAT मशीनों की हालिया रिपोर्टों के कारण चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास में और अधिक कमी आई है।
- चुनाव आयोग की ओर से पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के कारण चुनावों की निष्पक्षता एवं सटीकता पर सवाल उठने लगे हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारतीय निर्वाचन आयोग मामले (2013) में कहा था कि "स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये VVPAT अनिवार्य" है।
- तकनीकी खराबी:
आगे की राह
- नियमित देखभाल:
- तकनीकी खराबी के मुद्दे को हल करने का एक तरीका यह है कि मशीनों का नियमित रखरखाव सुनिश्चित किया जाए। निर्वाचन आयोग को समय-समय पर मशीनों में किसी भी गड़बड़ी की पहचान करने और उसे दूर करने के लिये नियमित रखरखाव तथा परीक्षण की एक प्रणाली स्थापित करनी चाहिये।
- पारदर्शिता में वृद्धि:
- पेपर ट्रेल्स के सत्यापन संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये निर्वाचन आयोग को चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता में वृद्धि करनी चाहिये। यह राजनीतिक दलों और जनता को VVPAT मशीनों के कामकाज़ एवं सत्यापन की प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करके किया जा सकता है।
- जवाबदेही:
- निर्वाचन आयोग को दोषपूर्ण VVPAT मशीनों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये और यह सुनिश्चित करने हेतु कदम उठाने चाहिये कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों।
- मशीनों के रखरखाव और परीक्षण के लिये ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही हेतु प्रणाली स्थापित करके इसे सुनिश्चित किया जा सकता है।
- निर्वाचन आयोग को दोषपूर्ण VVPAT मशीनों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये और यह सुनिश्चित करने हेतु कदम उठाने चाहिये कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों।
- अनुसंधान और विकास:
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के क्षेत्र में चल रहे अनुसंधान और विकास को जारी रखने की आवश्यकता है। चुनावी प्रक्रिया की सटीकता, सुरक्षा एवं पारदर्शिता में सुधार हेतु नई तकनीकों तथा नवाचारों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल संबंधी हाल के विवाद के आलोक में भारत में चुनावों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? (2018) |
स्रोत: द हिंदू
खेल प्रशासन और मुद्दे
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय कुश्ती संघ, प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), दंड प्रक्रिया संहिता, मौलिक अधिकार, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), भारतीय ओलंपिक संघ मेन्स के लिये:खेल प्रशासन और मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में खेल प्रशासन संबंधी चिंताओं के आलोक में महिला पहलवानों द्वारा भारतीय कुश्ती संघ (Wrestling Federation of India- WFI) के अध्यक्ष पर लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच करने का फैसला लिया है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिपण्णी:
- न्यायालय ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न करने के संबंध में पहलवानों द्वारा दायर याचिका की जाँच करने का फैसला किया है और मामले को आगे की सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया है।
- न्यायालय ने बताया कि याचिकाकर्त्ता दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 का उपयोग करते हुए मजिस्ट्रेट द्वारा जाँच के आदेश की मांग कर सकते हैं।
- न्यायालय ने पाया कि भारत का प्रतिनिधित्त्व करने वाले पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न के संबंध में याचिका दायर किया जाना एक गंभीर आरोप है, साथ ही यह भी बताया कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों की रक्षा के अपने कर्त्तव्य के प्रति सचेत है जो व्यक्तियों को अनुमति देता है कि वे न्याय के लिये शीर्ष न्यायालय का रुख करें।
भारत में खेल शासन का वर्तमान मॉडल:
- भारत में खेलों के शासन के मौजूदा दो मॉडल हैं:
- पहला- युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय (Ministry of Youth Affairs and Sports- MYAS) द्वारा नियंत्रित एवं भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) जैसे संस्थान तथा अन्य संस्थान SAI के तहत खेल प्रशिक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे हैं।
- दूसरा- भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) की अध्यक्षता में राज्य ओलंपिक संघ (SOAs) और राष्ट्रीय एवं राज्य खेल संघ (NSFs और SFs)।
- युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय NSF एवं SFs को वित्तीय तथा ढाँचागत सहायता प्रदान करता है और अप्रत्यक्ष रूप से इन संघों को राजनीतिक प्रतिनिधित्त्व के माध्यम से नियंत्रित करता है।
- IOA एक अंब्रेला निकाय है जिसके तहत NSF, SF और SOAs देश में विभिन्न खेलों का आयोजन किया जाता है।
- उनके बीच व्यवस्थाओं का चित्रण इस प्रकार है:
खेलों में सुशासन के लिये कायदे कानून:
- खेल संहिता 2011:
- राष्ट्रीय खेल संघों के सुशासन से संबंधित सभी अधिसूचनाओं और निर्देशों को समायोजित करने के उद्देश्य से वर्ष 2011 में युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय द्वारा इस संहिता को अधिसूचित किया गया था।
- यह नियमों का एक समूह है, जो 'सुशासन, नैतिकता और निष्पक्ष खेल के बुनियादी सार्वभौमिक सिद्धांतों' को प्रतिपादित करता है।
- यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के साथ-साथ पारदर्शी कामकाज़ की परिकल्पना के अतिरिक्त संघों के पदाधिकारियों की आयु एवं कार्यकाल पर प्रतिबंध लगाता है।
- इस संहिता के अनुसार, कानून की व्यवस्था का पालन न करना जनहित के विरुद्ध है।
- सुशासन हेतु मसौदा राष्ट्रीय संहिता:
- भारत में खेल संगठनों के प्रबंधन और संचालन हेतु सुझाए गए दिशा-निर्देशों का एक संग्रह राष्ट्रीय खेल सुशासन संहिता 2017 दस्तावेज़ के मसौदे में शामिल है।
- इसमें पदाधिकारियों हेतु आयु और कार्यकाल का निर्धारण, गवर्निंग बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों की उपस्थिति, पारदर्शी एवं निष्पक्ष चुनाव तथा खेल निकायों में पारदर्शिता व जवाबदेही में सुधार संबंधी अन्य उपाय शामिल हैं।
भारत में खेल शासन से संबंधित मुद्दे:
- अस्पष्ट अधिकार और उत्तरदायित्त्व:
- भारतीय खेलों में प्रबंधन और प्रशासन को प्रायः स्पष्ट रूप से अलग नहीं किया जाता है। कार्यकारी समिति, जिसे प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, प्रबंधन कार्य करना बंद कर देती है।
- यह चेक एंड बैलेंस की कमी उत्पन करता है, क्योंकि उन्हें निरीक्षण या उत्तरदायित्त्व के बिना काम करने की अनुमति है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव:
- वर्तमान खेल मॉडल में असीमित शक्तियों और निर्णय लेने में पारदर्शिता की कमी के कारण उत्तरदायित्त्व का अभाव है। साथ ही अनियमित राजस्व प्रबंधन के मुद्दे भी शामिल हैं।
- उदाहरण के लिये जुलाई 2010 में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें पाया गया कि भारत में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों की 14 परियोजनाओं में अनियमितताएँ थीं।
- वर्ष 2013 का इंडियन प्रीमियर लीग स्पॉट फिक्सिंग एवं सट्टेबाज़ी का मामला तब सामने आया जब दिल्ली पुलिस ने कथित स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में तीन क्रिकेटरों को गिरफ्तार किया।
- वर्तमान खेल मॉडल में असीमित शक्तियों और निर्णय लेने में पारदर्शिता की कमी के कारण उत्तरदायित्त्व का अभाव है। साथ ही अनियमित राजस्व प्रबंधन के मुद्दे भी शामिल हैं।
- गैर-पेशेवरीकरण:
- भारतीय खेल संगठन, विशेष रूप से शासी निकाय, पेशेवर और व्यावसायिक क्षेत्र की चुनौतियों के अनुकूल नहीं हैं। वे अभी भी बढ़े हुए कार्यभार को संभालने हेतु कुशल पेशेवरों को काम पर रखने के बजाय स्वयंसेवकों पर निर्भर हैं।
- पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अभाव:
- भारत में खेल के बुनियादी ढाँचे की स्थिति अभी भी वांछित स्तर को हासिल नहीं कर पाई है। यह देश में खेल संस्कृति के विकास में बाधा उत्पन्न करता है।
- भारत के संविधान के अनुसार, खेल राज्य का विषय है, फलस्वरूप पूरे देश में समान रूप से खेल के बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु कोई व्यापक दृष्टिकोण नहीं है।
- यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दे:
- ऐसे कई हाई-प्रोफाइल मामले सामने आए हैं जहाँ एथलीटों ने कोच और अधिकारियों पर यौन उत्पीड़न एवं दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है।
- हालाँकि खेल संगठनों की प्रतिक्रिया धीमी और अपर्याप्त रही है।
- इसके अलावा प्रमुख मुद्दों में से एक यौन उत्पीड़न की शिकायतों का समाधान करने हेतु एक उचित तंत्र का अभाव है।
- कई खेल संगठनों के पास इस तरह की शिकायतों से निपटने हेतु कोई औपचारिक नीति नहीं है, इसके अलावा घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिये कोई स्पष्ट शृंखला नहीं होती है।
- ऐसे कई हाई-प्रोफाइल मामले सामने आए हैं जहाँ एथलीटों ने कोच और अधिकारियों पर यौन उत्पीड़न एवं दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है।
खेल प्रशासन से संबंधित मुद्दे:
- एथलीटों को सशक्त बनाना:
- एथलीट खेलों में प्राथमिक हितधारक होते हैं और निर्णय लेने में उनकी भागीदारी खेल संगठनों में आवश्यक जवाबदेही और पारदर्शिता ला सकती है।
- खेल प्रशासन को एथलीटों को सशक्त बनाने हेतु सभी स्तरों पर उनका प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र की स्थापना करनी चाहिये।
- ओलंपिक चार्टर में एथलीटों के प्रतिनिधियों के चुनाव के लिये देशों की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (भारत - IOA) और उनके बोर्डों के सदस्यों का भी प्रावधान है।
- खेल संघों की स्वायत्तता:
- खेल प्रशासन से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने में खेल संघों की स्वायत्तता महत्त्वपूर्ण है।
- यह खेल संगठनों को सरकारी और बाहरी प्रभाव से मुक्त अपने स्वयं के लोकतांत्रिक ढाँचे के माध्यम से स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम बनाता है, जिससे भ्रष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद की संभावना कम हो जाती है।
- ऊर्घ्वगामी सुधार:
- सुधार पिरामिड के निचले तल से शुरू होने चाहिये, जिसका अर्थ है कि ज़िला और राज्य निकायों का पुनर्गठन करना जो राष्ट्रीय खेल प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि ज़मीनी स्तर से शुरू करते हुए सभी स्तरों पर खेल प्रशासन संरचना में जवाबदेही और पारदर्शिता का निर्माण किया जाए।
- खेल जागरूकता बढ़ाना:
- बच्चों के दैनिक जीवन में खेलों को शामिल करने से उनके आत्मविश्वास, आत्म-छवि में सुधार हो सकता है और यहाँ तक कि खेल में कॅरियर भी बन सकता है।
- देश में एक मज़बूत खेल संस्कृति का निर्माण करने के लिये प्राथमिक शिक्षा स्तर पर बदलाव की शुरुआत करने की ज़रूरत है। शिक्षा प्रणाली को बच्चे की समग्र परवरिश के हिस्से के रूप में खेल को समान महत्त्व देना चाहिये।
- महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्त्व:
- खेल प्रशासन के पदों पर अधिक महिला प्रतिनिधित्त्व को प्रोत्साहित करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि उनकी आवाज़ सुनी जाएगी और उनके अधिकारों की रक्षा होगी। इसे कई उपायों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे:
- लिंग-संवेदनशील नीतियाँ बनाना।
- खेल प्रशासन में नेतृत्त्व के पदों तक पहुँचने के लिये महिलाओं को समान अवसर प्रदान करना।
- महिलाओं को खेलों में कॅरियर बनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- समावेशिता और विविधता की संस्कृति को बढ़ावा देना।
- लिंग के आधार पर कोटे का निर्धारण।
- महिलाओं के लिये सुरक्षित और सहायक वातावरण बनाना।
- खेल प्रशासन के पदों पर अधिक महिला प्रतिनिधित्त्व को प्रोत्साहित करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि उनकी आवाज़ सुनी जाएगी और उनके अधिकारों की रक्षा होगी। इसे कई उपायों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे:
निष्कर्ष:
- खेल प्रशासन से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- अधिक पारदर्शी एवं समावेशी खेल संस्कृति बनाना और यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि एथलीटों के अधिकारों की रक्षा की जाए तथा खेल प्रशासन में उनकी आवाज़ सुनी जाए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. वर्ष 2000 में स्थापित लॉरियस वर्ल्ड स्पोर्ट्स अवार्ड के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) व्याख्या:
प्रश्न. 32वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न. खिलाड़ी ओलंपिक्स में व्यक्तिगत विजय और देश के गौरव के लिये भाग लेता है; वापसी पर विजेताओं पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा नकद प्रोत्साहनों की बौछार की जाती है। प्रोत्साहन के तौर पर पुरस्कार कार्यविधि के तर्काधार के मुकाबले, राज्य प्रायोजित प्रतिभा खोज और उसके पोषण के गुणावगुण पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2014) |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत बीमा दावा
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना (DBT), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY)। मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री जन-धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के अनुसार प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) के तहत बैंक खाताधारकों को प्रदान किये गए दुर्घटना बीमा कवर हेतु पिछले दो वित्तीय वर्षों में दायर किये गए 647 दावों में से केवल 329 का निपटान किया गया है।
- वित्त वर्ष 2021-22 में 341 दावे दायर किये गए, जिनमें से 182 का निपटान किया गया और 48 को खारिज कर दिया गया एवं वित्त वर्ष 2022-23 में 306 दावे दायर किये गए, जिनमें से 147 का निपटान किया गया व 10 को खारिज कर दिया गया, इसके अलावा शेष 149 दावों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना:
- परिचय:
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) वित्तीय समावेशन के लिये राष्ट्रीय मिशन है। यह वित्तीय सेवाओं, अर्थात् बैंकिंग/बचत और जमा खातों, प्रेषण, क्रेडिट, बीमा, पेंशन की सुलभ तरीके से पहुँच सुनिश्चित करता है।
- इस योजना के तहत किसी भी बैंक शाखा या बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट (बैंक मित्र) आउटलेट में उन लोगों का एक मूल बचत बैंक जमा (Basic Savings Bank Deposit- BSBD) खाता खोला जा सकता है, जिनके पास कोई अन्य खाता नहीं है।
- उद्देश्य:
- विभिन्न वित्तीय सेवाओं जैसे- बुनियादी बचत बैंक खाते की उपलब्धता, आवश्यकता आधारित ऋण तक पहुँच, प्रेषण सुविधा, बीमा एवं पेंशन की बहिष्कृत वर्गों यानी कमज़ोर वर्गों तथा निम्न-आय वाले समूहों तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- यह सभी सरकारी लाभों (केंद्र / राज्य / स्थानीय निकाय से) को लाभार्थियों के खातों के माध्यम से प्रदान करने और केंद्र सरकार की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजना को आगे बढ़ाने की परिकल्पना करता है।
- इस योजना के तहत वित्तीय समावेशन के लिये टेलीकॉम ऑपरेटरों और कैश आउट पॉइंट्स के रूप में स्थापित केंद्रों के माध्यम से मोबाइल लेन-देन का भी उपयोग करने की योजना है।
- PMJDY तहत लाभ:
- PMJDY खातों में न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं है तथा जमा राशि पर ब्याज भी अर्जित किया जाता है।
- PMJDY खाताधारक को रुपे डेबिट कार्ड प्रदान किया जाता है।
- पात्र खाताधारकों को 10,000 रुपए तक की ओवरड्राफ्ट (OD) सुविधा उपलब्ध है।
- PMJDY खातों में न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं है तथा जमा राशि पर ब्याज भी अर्जित किया जाता है।
- PMJDY का दायरा:
- PMJDY खाताधारक प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), अटल पेंशन योजना (APY), माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी बैंक (MUDRA) योजना के पात्र हैं।
- PMJDY के तहत बीमा सुविधा:
- यह अपने खाताधारकों को बीमा कवर प्रदान करता है।
- जीवन बीमा कवर: PMJDY खाताधारक 2 लाख रुपए के जीवन बीमा कवर के लिये पात्र हैं जो प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) के तहत प्रदान किया जाता है।
- दुर्घटना बीमा कवर: PMJDY खाताधारक 2 लाख रुपए के दुर्घटना बीमा कवर के लिये भी पात्र हैं जो प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) के तहत प्रदान किया जाता है।
- PMJJBY और PMSBY दोनों बीमा कवर 330 रुपए प्रतिवर्ष और 12 रुपए प्रतिवर्ष क्रमशः मामूली प्रीमियम पर प्रदान किये जाते हैं।
- इन बीमा कवरों के लिये प्रीमियम वार्षिक आधार पर PMJDY खाताधारक के खाते से स्वचालित रूप से डेबिट हो जाता है।
- मृत्यु या स्थायी दिव्यांगता के लिये दुर्घटना बीमा कवर सभी PMJDY खाता धारकों को दिया जाता है, जिनमें से 50% से अधिक महिलाएँ हैं। खाताधारकों से कोई प्रीमियम नहीं लिया जाता है।
- शर्त:
- दुर्घटना बीमा का लाभ उठाने के लिए मुख्य शर्त यह है कि लाभार्थी ने दुर्घटना की तारीख से 90 दिन पहले कार्ड का उपयोग करके कम-से-कम एक सफल लेन-देन (वित्तीय या गैर-वित्तीय) किया हो। हालाँकि यह स्थिति फाइलिंग दावों को कठिन बनाती है।
- यह अपने खाताधारकों को बीमा कवर प्रदान करता है।
- PMJDY के समक्ष चुनौतियाँ:
- जागरूकता की कमी: सरकार द्वारा विभिन्न जागरूकता अभियानों के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से लोग PMJDY के लाभों से अवगत नहीं हैं। यह भागीदारी की कमी को इंगित करता है और कार्यक्रम के प्रभाव को सीमित करता है।
- सीमित बुनियादी ढाँचा: कई दूरस्थ क्षेत्रों में ATM और बैंक शाखाओं सहित पर्याप्त बैंकिंग बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिससे लोगों के लिये वित्तीय सेवाओं तक पहुँच बनाना मुश्किल हो जाता है।
- सीमित संसाधन: बहुत से लोग जो PMJDY के लिये पात्र हैं, उनके पास बैंक खाते खोलने हेतु ID प्रमाण, पता प्रमाण एवं आय प्रमाण जैसे आवश्यक दस्तावेज़ नहीं होते हैं। यह कार्यक्रम की पहुँच को सीमित करता है और इसकी प्रभावशीलता को कम करता है।
- नकद लेन-देन पर निर्भरता: देश के कई हिस्सों में लोग अभी भी अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिये नकद लेन-देन पर निर्भर हैं। यह डिजिटल भुगतान के उपयोग को सीमित करता है और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में PMJDY की प्रभावशीलता को कम करता है।
- भारत में वित्तीय समावेशन बढ़ाने के लिये अन्य पहलें:
आगे की राह
- सरकार डिजिटल भुगतान के उपयोग को बढ़ावा देने के अतिरिक्त कार्यक्रम के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये विभिन्न मीडिया चैनलों का उपयोग कर सकती है, विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में जहाँ सूचनाओं तक लोगों की पर्याप्त पहुँच नहीं है।
- यह वित्तीय सेवाओं की पहुँच में सुधार के लिये दूरस्थ क्षेत्रों में अधिक बैंक शाखाओं और ATM स्थापित करने का भी कार्य कर सकती है।
- साथ ही इस कार्यक्रम के तहत बैंक खाते खोलने के लिये आवश्यक दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया को सरल बनाने की दिशा में प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
- ऐसे मामलों में जिसमें लाभार्थी यह साबित कर सकता है कि वह बीमारी अथवा यात्रा जैसे कारणों की वजह से उस समय अवधि के दौरान कार्ड का उपयोग करने में असमर्थ था, सरकार इस शर्त पर छूट दे सकती है कि उक्त व्यक्ति ने दुर्घटना की तारीख से 90 दिन पहले कार्ड का उपयोग करके कम-से-कम एक सफल लेन-देन किया हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:मेन्स:प्रश्न. बैंक खाते से वंचित लोगों को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने के लिये प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) आवश्यक है। क्या आप भारतीय समाज के गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिये इससे सहमत हैं? अपने मत की पुष्टि के लिये उचित तर्क दीजिये। (2016) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राज्यीय जल विवाद
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राज्यीय जल विवाद, अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम 1956, महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण, महानदी मेन्स के लिये:अंतर्राज्यीय जल विवाद और समाधान |
चर्चा में क्यों
ओडिशा ने अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम 1956 के तहत जल शक्ति मंत्रालय से शिकायत की है जिसमें छत्तीसगढ़ पर गैर-मानसून मौसम में महानदी में जल छोड़कर महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण (MWDT) को गुमराह करने का आरोप लगाया है।
- MWDT का गठन मार्च 2018 में किया गया था। न्यायाधिकरण को जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहा गया है।
- महानदी बेसिन जल आवंटन के संबंध में ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच कोई अंतर्राज्यीय समझौता नहीं है।
ओडिशा की चिंता:
- छत्तीसगढ़ ने कलमा बैराज में 20 गेट खोले हैं, जिससे गैर-मानसून मौसम के दौरान महानदी के निचले जलग्रहण क्षेत्र में 1,000-1,500 क्यूसेक जल बह रहा है।
- गैर-मानसून मौसम में छत्तीसगढ़ द्वारा जल छोड़ने की अनिच्छा के कारण अकसर महानदी के निचले जलग्रहण क्षेत्र में पानी की अनुपलब्धता होती है।
- यह रबी फसलों को भी प्रभावित करता है और ओडिशा में पेयजल की समस्या को भी बढ़ाता है।
- हालाँकि इस बार छत्तीसगढ़ ने बिना किसी सूचना के जल छोड़ दिया है, जिसने महानदी के जल प्रबंधन पर चिंता जताई है।
- मानसून के दौरान राज्य को ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बाढ़ का सामना करना पड़ा और इस प्रकार ओडिशा को बिना सूचित किये गेट खोल दिये जाते हैं।
भारत में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद:
- परिचय:
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद आज भारतीय संघ में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है।
- कृष्णा जल विवाद, कावेरी जल विवाद और सतलुज यमुना लिंक नहर के हालिया मामले इसके कुछ उदाहरण हैं।
- अब तक विभिन्न अंतर्राज्यीय जल विवाद न्यायाधिकरणों का गठन किया गया है, लेकिन उनकी अपनी समस्याएँ थीं।
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद आज भारतीय संघ में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- राज्य सूची की प्रविष्टि 17 जल से संबंधित है, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई, नहर, जल निकासी, तटबंध, जल भंडारण और जल विद्युत।
- संघ सूची की प्रविष्टि 56 केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के नियमन एवं विकास के लिये संसद द्वारा सार्वजनिक हित में उचित घोषित सीमा तक शक्ति प्रदान करती है।
- अनुच्छेद 262 के अनुसार, जल संबंधी विवादों के मामले में:
- संसद विधि द्वारा किसी अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के न्यायनिर्णयन के लिये प्रावधान कर सकती है।
- संसद विधि द्वारा यह प्रावधान कर सकती है कि न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही कोई अन्य न्यायालय उपरोक्त वर्णित किसी भी विवाद या शिकायत के संबंध में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करेगा।
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद समाधान के लिये तंत्र:
- अनुच्छेद 262 के अनुसार, संसद ने निम्नलिखित को अधिनियमित किया है:
- नदी बोर्ड अधिनियम, 1956: इसने भारत सरकार को राज्य सरकारों के परामर्श से अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के लिये बोर्ड स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया है। आज तक कोई नदी बोर्ड नहीं बनाया गया है।
- अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956: यदि कोई विशेष राज्य अथवा राज्यों का समूह अधिकरण के गठन के लिये केंद्र से संपर्क करते हैं तो केंद्र सरकार को संबद्ध राज्यों के बीच परामर्श करके मामले को हल करने का प्रयास करना चाहिये। यदि यह काम नहीं करता है तो केंद्र सरकार इस न्यायाधिकरण का गठन कर सकती है।
- नोट: सर्वोच्च न्यायालय अधिकरण द्वारा दिये गए फॉर्मूले पर सवाल नहीं उठाएगा, लेकिन वह अधिकरण के कामकाज़ पर सवाल खड़े कर सकता है।
- सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफारिशों को शामिल करने के लिये अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 को वर्ष 2002 में संशोधित किया गया था।
- इन संशोधनों के बाद से जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये एक वर्ष की समय-सीमा और निर्णय देने के लिये 3 वर्ष की समय-सीमा को अनिवार्य हो गया।
अंतर्राज्यीय जल विवाद प्राधिकरण के मुद्दे:
- लंबे समय तक चलने वाली कार्यवाही और विवाद समाधान में अत्यधिक देरी। भारत में गोदावरी और कावेरी जैसे जल विवाद के समाधान में काफी देरी हुई है।
- इन कार्यवाहियों को परिभाषित करने वाले संस्थागत ढाँचे और दिशा-निर्देशों एवं अनुपालन सुनिश्चितता में अस्पष्टता।
- प्राधिकरण की संरचना बहुआयामी नहीं है, इसमें केवल न्यायपालिका के लोग शामिल हैं।
- सभी पक्षों के लिये स्वीकार्य जल संबंधी आँकड़ों का न होने से वर्तमान में अधिनिर्णय के लिये एक आधार रेखा स्थापित करना मुश्किल हो जाता है।
- जल और राजनीति के बीच बढ़ते गठजोड़ ने इन विवादों को वोट बैंक की राजनीति में बदल दिया है।
- इस राजनीतिकरण के कारण राज्यों द्वारा बढ़ती अवहेलना, विस्तारित मुकदमों और समाधान तंत्र प्रभावहीन हो गए है।
जल विवादों के समाधान संबंधी उपाय:
- अंतर्राज्यीय जल विवादों को अनुच्छेद 263 के तहत राष्ट्रपति द्वारा निर्मित अंतर्राज्यीय परिषद के तहत लाना, साथ ही आम सहमति आधारित निर्णय लेने की आवश्यकता है।
- राज्यों को प्रत्येक क्षेत्र में जल उपयोग दक्षता और जल संचयन एवं जल पुनर्भरण हेतु प्रेरित किया जाना चाहिये ताकि नदी के जल तथा स्वस्थ जल स्रोत की मांग को कम किया जा सके।
- संघीय, नदी बेसिन, राज्य और ज़िला स्तरों पर वैज्ञानिक आधार पर भूजल एवं सतही जल का प्रबंधन करने तथा जल प्रबंधन व संरक्षण हेतु तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये एकल एजेंसी की आवश्यकता है।
- अधिकरण फास्ट ट्रैक एवं तकनीकी रूप से युक्त होना चाहिये, साथ ही समयबद्ध तरीके से निर्णय लागू करने योग्य तंत्र भी होना चाहिये।
- उचित निर्णय लेने हेतु जल डेटा का एक केंद्रीय भंडार आवश्यक है। केंद्र सरकार के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वह अंतर्राज्यीय जल विवादों को सुलझाने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. अंतर-राज्यीय जल विवादों का समाधान करने में सांविधिक प्रक्रियाएँ समस्याओं को संबोधित करने व हल करने असफल रही हैं। क्या यह असफलता संरचनात्मक अथवा प्रक्रियात्मक अपर्याप्तता अथवा दोनों के कारण हुई है? चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013) |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक सुरक्षा सहिंता 2020 एवं गिग वर्कर्स
प्रिलिम्स के लिये:गिग वर्कर्स, सामाजिक सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि, गरीब कल्याण रोज़गार अभियान, ई-श्रम पोर्टल, वेतन संहिता अधिनियम, 2019। मेन्स के लिये:सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रम और रोज़गार राज्य मंत्रालय ने लोकसभा को बताया कि सामाजिक सुरक्षा संहिता (SS), 2020 में पहली बार 'गिग वर्कर्स' और 'प्लेटफॉर्म वर्कर्स' की परिभाषा प्रदान की गई है।
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत प्रावधान:
- उद्देश्य:
- इस संहिता का उद्देश्य संगठित/असंगठित (या किसी अन्य) क्षेत्रों को विनियमित करना और विभिन्न संगठनों के सभी कर्मचारियों और श्रमिकों को बीमारी, मातृत्त्व, विकलांगता आदि के दौरान सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है।
- श्रम कानूनों का एकीकरण: यह संहिता, सामाजिक सुरक्षा से संबंधित निम्नलिखित 9 श्रम कानूनों को एकीकृत करने का कार्य करती है:
- कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम, 1923
- कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948
- कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952
- कर्मचारी विनिमय (रिक्तियों की अनिवार्य अधिसूचना) अधिनियम, 1959
- मातृत्त्व लाभ अधिनियम, 1961
- ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972
- सिनेमा कर्मकार कल्याण निधि अधिनियम, 1981
- भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार उपकर अधिनियम, 1996
- असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008
- कवरेज और प्रयोज्यता:
- संहिता ने अनुबंध कर्मचारियों के अलावा असंगठित क्षेत्र, निश्चित अवधि के कर्मचारियों और गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों को शामिल करके कवरेज को बढ़ाया है।
- यह संहिता प्रतिष्ठान में मज़दूरी पाने वाले सभी लोगों पर लागू होती है, भले ही उनका व्यवसाय कुछ भी हो।
- संशोधित परिभाषा:
- कर्मचारियों के संबंध में: 'कर्मचारी' शब्द के अंतर्गत अब अनुबंध के माध्यम से नियोजित कर्मचारी भी शामिल हैं।
- अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के संबंध में: इसमें दूसरे राज्य से पलायन कर चुके स्व-नियोजित श्रमिक भी शामिल हैं।
- गिग वर्कर्स: घंटे के हिसाब से अथवा अस्थायी काम करने वाले फ्रीलांसर और स्वतंत्र ठेकेदार आदि को गिग वर्कर्स के रूप में समूहीकृत किया गया है जो एक गैर-पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध साझा करते हैं।
- प्लेटफॉर्म वर्कर्स: वे कर्मचारी जो अपने ग्राहकों से जुड़ने के लिये एप अथवा वेबसाइट का उपयोग करते हैं, उन्हें प्लेटफॉर्म वर्कर्स के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- चूँकि कई प्रकार के व्यवसाय इस दृष्टिकोण का उपयोग करना शुरू कर रहे हैं, इसलिये श्रम मंत्रालय इस संहिता के तहत और श्रेणियाँ शामिल करने पर विचार कर रहा है।
- डिजिटाइज़ेशन:
- सभी रिकॉर्ड और रिटर्न इलेक्ट्रॉनिक रूप से बनाए रखने होंगे। डेटा के डिजिटलीकरण से सरकार द्वारा स्थापित विभिन्न हितधारकों/फंडों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान में मदद मिलेगी, अनुपालन सुनिश्चित होगा एवं शासन को भी सुविधा मिलेगी।
- मातृत्त्व लाभ:
- मातृत्त्व लाभ के प्रावधान को सार्वभौमिक नहीं बनाया गया है और वर्तमान में यह 10 अथवा उससे अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों पर लागू है।
- प्रस्तावित संहिता में 'स्थापना' की परिभाषा में असंगठित क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है।
- इसलिये असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाएँ मातृत्त्व लाभ के दायरे से बाहर होंगी।
- कठोर दंड:
- कर्मचारियों के योगदान को जमा करने में विफल रहने की स्थिति में न केवल 100,000 रुपए के ज़ुर्माना का प्रावधान है, बल्कि 1-3 वर्ष की कैद भी होती है। बार-बार किये जाने वाले अपराध के मामले में दंड एवं अभियोजन दोनों हीं गंभीर हैं और इस प्रकार के अपराधों के लिये किसी भी प्रकार के समझौते की अनुमति नहीं है।
SS संहिता से संबंधित चिंताएंँ:
- कुछ लाभों को अनिवार्य बनाने के लिये स्थापना के आकार के आधार पर संहिता में अभी भी सीमाएँ हैं।
- इसका मतलब यह है कि पेंशन और चिकित्सा बीमा जैसे कुछ लाभ केवल निश्चित न्यूनतम संख्या में कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों के लिये अनिवार्य हैं, इस प्रकार बड़ी संख्या में श्रमिकों को छोड़ दिया जाता है।
- इसके अतिरिक्त संहिता कर्मचारियों को एक ही प्रतिष्ठान के भीतर उनके वेतन के आधार पर अलग तरह से मानते हैं। केवल एक निश्चित सीमा से अधिक आय अर्जित करने वाले कर्मचारियों को ही अनिवार्य लाभ प्राप्त होंगे।
- सामाजिक सुरक्षा लाभों का वितरण अभी भी केंद्रीय न्यासी बोर्ड, कर्मचारी राज्य बीमा निगम और सामाजिक सुरक्षा बोर्ड जैसे कई निकायों द्वारा खंडित तथा प्रशासित है। यह श्रमिकों के लिये उन लाभों को प्राप्त करना भ्रमित एवं कठिन बना सकता है जिनके वे हकदार हैं।
भारत में गिग इकॉनमी की स्थिति:
- परिचय:
- गिग इकॉनमी एक श्रम बाज़ार है जो पूर्णकालिक स्थायी कर्मचारियों के बजाय स्वतंत्र ठेकेदारों और फ्रीलांसरों द्वारा भरे गए अस्थायी और अंशकालिक पदों पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- गिग इकॉनमी और भारत:
- भारत में गिग इकॉनमी हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ रही है, डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती उपलब्धता के साथ जो व्यक्तियों को फ्रीलांस या पार्ट-टाइम आधार पर अपनी सेवाएंँ देने की अनुमति देता है।
- बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग वर्कफोर्स में सॉफ्टवेयर, साझा सेवाओं और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में कार्यरत 15 मिलियन कर्मचारी शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की गिग इकॉनमी वर्ष 2025 तक 23% बढ़ने की उम्मीद है।
- गिग इकॉनमी के ग्रोथ ड्राइवर्स/संवृद्धि कारक:
- इंटरनेट और मोबाइल प्रौद्योगिकी का प्रसार
- आर्थिक उदारीकरण
- लचीले काम की बढ़ती मांग
- ई-कॉमर्स का विकास
- बढ़ती युवा, शिक्षित और महत्वाकांक्षी जनसंख्या जो अतिरिक्त आय सृजन के साथ आजीविका में सुधार करना चाहती है
- चुनौतियांँ:
- नौकरी की सुरक्षा का अभाव, अनियमित वेतन और अनिश्चित रोज़गार की स्थिति
- उपलब्ध कार्य और आय में नियमितता से जुड़ी अनिश्चितता के कारण तनाव
- संविदात्मक संबंध के कारण कार्यस्थल अधिकारों का अभाव
- इंटरनेट और डिजिटल तकनीक तक सीमित पहुंच
- गिग अर्थव्यवस्था और महिलाएंँ:
- गिग रोज़गार अंशकालिक काम और लचीले कामकाजी घंटों की अनुमति देता है जिससे महिलाएंँ रोज़गार के साथ अपनी पारंपरिक भूमिकाओं को संतुलित कर सकती हैं।
- यह महिलाओं को बिना मांग के काम प्रदान करता है जिससे वे अपनी इच्छा के अनुसार वर्कफोर्स में शामिल हो सकती हैं और छोड़ सकती हैं।
- गिग रोज़गार महिलाओं को अतिरिक्त आय अर्जित करने में मदद करता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है और इस प्रकार निर्णय लेने की शक्ति देता है साथ ही महिला सशक्तीकरण के सभी महत्त्वपूर्ण घटकों को एकीकृत करता है।
- वर्क फ्रॉम होम (WFH) और प्रौद्योगिकी पूरक गिग रोज़गार ने यात्रा और रात की पाली के दौरान सुरक्षा के मुद्दे को संबोधित किया है।
आगे की राह
- SS संहिता 2020 अनौपचारिक श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के तहत लाने की कोशिश करती है, लेकिन यह सामाजिक सुरक्षा को सार्वभौमिक बनाने के अपने लक्ष्य को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाता है। भारत उचित सामाजिक सुरक्षा के बिना वृद्ध जनसंख्या का सामना कर रहा है, और वर्तमान कार्यबल भविष्य में इसका समर्थन करने में सक्षम नहीं होगा। सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने से कार्यबल को औपचारिक बनाने में मदद मिल सकती है।
- नियोक्ताओं को अपने श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि वे उनकी उत्पादकता से लाभान्वित होते हैं। जबकि सरकार की एक भूमिका है, नियोक्ताओं की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
- जबकि गिग इकॉनमी व्यक्तियों को आजीविका अर्जित करने और काम में लचीलापन हासिल करने के कई अवसर प्रदान करती है, भारत में गिग वर्कर्स के लिये बेहतर विनियमन और सुरक्षा की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021) |