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सामाजिक न्याय

खेलों में महिलाओं के समक्ष मुद्दे

  • 23 Jan 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लिंगवाद, लैंगिक असमानता, महिला सुरक्षा। 

मेन्स के लिये:

खेलों में महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कुछ खिलाड़ियों ने भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

  • इस मामले में खेल मंत्रालय ने 72 घंटे के भीतर WFI से स्पष्टीकरण मांगा है, यदि WFI जवाब देने में विफल रहता है, तो मंत्रालय राष्ट्रीय खेल विकास संहिता, 2011 के प्रावधानों के अनुसार संघ के खिलाफ कार्रवाई शुरू करेगा।

ऐसे आरोपों का परिदृश्य:

  • सूचना का अधिकार (RTI) आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010 से 2020 के बीच भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) को यौन उत्पीड़न की 45  शिकायतें मिलीं जिनमें से 29 शिकायतें कोचों के खिलाफ थीं।
  • इनमें से कई रिपोर्ट किये गए मामलों में अभियुक्तों को सामान्य दंड के साथ उदारतापूर्वक छोड़ दिया गया था, जिसमें वेतन या पेंशन में मामूली कटौती तथा स्थानांतरण शामिल था।
  • कुछ मामलों में अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है तथा कई वर्षों से चल रहे हैं और इनका कोई समाधान नहीं दिख रहा है।
    • खेल में दुर्व्यवहार का मामला वर्ष 2021 में जर्मनी में एक चुनावी मुद्दा था। संघीय संसद की खेल समिति ने मई 2021 में खेलों में भावनात्मक, शारीरिक और यौन हिंसा पर एक सार्वजनिक सुनवाई की मेज़बानी की। 
  • अब समय आ गया है कि भारत इस मुद्दे पर चर्चा करे तथा जंतर- मंतर पर खिलाड़ियों के विरोध प्रदर्शन का इंतज़ार न करे। 
  • 21वीं सदी में रहते हुए जहाँ हमने अपनी बोली लगाने के लिये रोबोट नियंत्रण तकनीक विकसित की है, अभी भी एक पहलू है जहाँ हम प्रगति की बात करते समय खुद को पिछड़ा हुआ पाते हैं- लिंग समानता। 

महिला खिलाड़ियों के समक्ष मुद्दे:

  • वित्तपोषण और बजट:
    • पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में महिला खिलाड़ियों को कम धन मिल पाता है, जिससे उनके लिये प्रतिस्पर्द्धा करना एवं लगातार कार्यक्रम चलाना मुश्किल हो जाता है।
  • उत्प्लावक लिंगवाद (Buoyant Sexism): 
    • महिलाओं को रोज़मर्रा के आधार पर लिंगवाद के कई मुद्दों का सामना करना पड़ता है, चाहे वह घर के बाहर कार्यस्थल हो या घर। उनके पहनावे, उनकी बातचीत व व्यवहार की निगरानी की जाती है और इन्हीं आधारों पर न्याय किया जाता है।
  • लैंगिक असमानता:
    • अपने सामाजिक अधिकारों की वकालत हेतु महिलाओं के प्रयासों के बावजूद उन्हें अभी भी पेशेवर मोर्चे पर विशेष रूप से खेल जगत में अपने पुरुष समकक्षों के समान सम्मान या मान्यता प्राप्त नहीं होती है।
  • पहुँच की कमी और महँगा:  
    • स्कूलों में शारीरिक शिक्षा की कमी तथा हाईस्कूल एवं कॉलेज दोनों में खेल के सीमित अवसरों का अर्थ है कि लड़कियों को खेल के लिये कहीं और देखना पड़ता है- जो उपलब्ध नहीं हैं या अधिक महँगे हैं।  
    • अक्सर घर के निकट पर्याप्त खेल सुविधाओं की कमी के कारण लड़कियों के लिये खेलों में भाग लेना अत्यंत कठिन हो जाता है।
  • सुरक्षा और परिवहन मुद्दे: 
    • खेलों में सम्मिलित होने के लिये स्थान के साथ-साथ सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जो कई लड़कियों, विशेष रूप से घने शहरी क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियों को जोखिम उठाकर खतरनाक इलाकों को पार कर या मीलों दूर स्थित अच्छी सुविधा की प्राप्ति हेतु यात्रा कर खेलों में सम्मिलित होने में असमर्थ बनाता है।
    • कोई सुरक्षित विकल्प न होने के कारण अन्य परिवारों के साथ कारपूलिंग जैसी परिस्थिति या लड़की के पास परिवार के साथ घर पर रहने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होता है।
      • उदाहरण के लिये मणिपुर खेल पावरहाउस के लिये जाना जाता है, किंतु 48% महिला एथलीट अभ्यास स्थल तक पहुँचने हेतु 10 किमी. से अधिक की यात्रा करती हैं।
  • सामाजिक दृष्टिकोण और विरूपण:
    • हाल की प्रगति के बावजूद महिला एथलीटों के साथ वास्तविक या कथित यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव बना हुआ है।  
    • खेल में लड़कियों को प्रारंभिक स्थिति में धमकी, सामाजिक अलगाव, नकारात्मक प्रदर्शन मूल्यांकन के कारण नुकसान का अनुभव हो सकता है।  
    • किशोरावस्था के दौरान "समलैंगिक" टैग का डर सामाजिक रूप से कमज़ोर कई लड़कियों को खेल से बाहर करने हेतु पर्याप्त है। 
  • गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की कमी:
    • लड़कियों को लड़को जितनी बेहतर सुविधाएँ नहीं प्राप्त हैं और खेलने का कोई इष्टतम समय नहीं निर्धारित किया जा सकता है।
    • प्रशिक्षित एवं गुणवत्तायुक्त कोच की अनुपस्थिति, या कोच उन लड़कों के प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिनके पास प्रशिक्षण हेतु अधिक धन है।
    • लड़कों के समान लड़कियों को कई कार्यक्रमों के लिये धन नहीं मिलता है, जिससे विकास करने और खेल का आनंद लेने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। संक्षेप में खेल अब "आनंददायक" नहीं हैं।
  • सकारात्मक रोल मॉडल की कमी:
    • वर्तमान में  लड़कियों द्वारा सशक्त महिला एथलीटों को रोल मॉडल मानने के स्थान पर उनकी बाह्य सुंदरता पर अधिक ध्यान दिया जाना
    • सहकर्मी का दबाव उस स्थिति में किसी भी उम्र की लड़कियों के लिये मुश्किल हो सकता है; जब उस दबाव का मुकाबला खेल और स्वस्थ शारीरिक गतिविधि में भाग लेने के लिये सशक्त प्रोत्साहन के साथ नहीं किया जाता है, परिणामतः यह लड़कियों द्वारा  खेल को पूरी तरह से छोड़ने का कारण बन सकता है।
  • सीमित मीडिया कवरेज:
    • महिला खेलों को अक्सर मीडिया में कम दिखाया जाता है, जिससे महिला एथलीटों के लिये पहचान और प्रायोजन के अवसर प्राप्त करना कठिन हो सकता है।
  • गर्भावस्था और मातृत्व:  
    • महिला एथलीटों को अक्सर मातृत्व और खेल कॅरियर के बीच संतुलन स्थापित करनेमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।  
    • यह महिला एथलीटों के प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्द्धा के अवसरों को प्रभावित कर सकता है।

खेलों में अधिक महिला भागीदारी का महत्त्व:

  • शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: 
    • खेल पुरुष और महिला दोनों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।  
    • जो लड़कियाँ अपनी किशोरावस्था और शुरुआती वयस्कता के दौरान खेल में भाग लेती हैं, उनके जीवन में स्तन कैंसर होने की संभावना 20% कम हो जाती है।
  • लैंगिक समानता:  
    • खेलों में महिलाओं के लिये समान अवसर और संसाधन प्रदान कर हम उन बाधाओं और रूढ़ियों को तोड़ने में मदद कर सकते हैं जो जीवन के अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की क्षमता व भागीदारी को सीमित करते हैं। 
      • खेल अपने बुनियादी रूप में संतुलित भागीदारी को प्रोत्साहित करता है और इसमें लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की क्षमता है, SDG लक्ष्य संख्या 5 के अंतर्गत भी लैंगिक समानता प्राप्त करने और सभी को महिलाओं तथा लड़कियों को सशक्त बनाने की बात की गई है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण:
    • खेलों में भाग लेने वाली महिलाओं को अक्सर शिक्षा और रोज़गार के अधिक अवसर मिलते हैं जो आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में अहम कदम हो सकता है। 
  • सामाजिक संदर्भों में सुधार:  
    • खेलों में महिलाओं की भागीदारी महिलाओं और उनकी क्षमताओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने में भी मदद कर सकती है।
    • खेलों में महिलाओं की उत्कृष्टता, अन्य महिलाओं के लिये प्रेरिणा का स्रोत हो सकती है और साथ ही महिलाओं के प्रति रूढ़िवादिता को चुनौती दी जा सकती है।
  • प्रतिनिधित्त्व:  
    • खेलों में महिलाओं की भागीदारी, अन्य महिलाओं के लिये कोचिंग और प्रशासन सहित नेतृत्त्व संबंधी भूमिकाओं में बेहतर प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने में मदद कर सकती है।
    • यह खेल को कॅरियर के रूप में अपनाने के लिये युवा लड़कियों के लिये एक प्रेरणा के रूप में भी काम कर सकता है।
  • समुदाय निर्माण:
    • खेल के माध्यम से लोगों को एकजुट किया जा सकता है और यह समाज के भीतर विभिन्न समूहों के बीच अधिक समझ एवं सम्मान को बढ़ावा दे सकता है।
    • महिलाओं के बीच खेलों की अधिक भागीदारी को बढ़ावा देकर, हम मज़बूत और अधिक समावेशी समुदायों के निर्माण में मदद कर सकते हैं।

यौन उत्पीड़न के लिये सुरक्षा उपाय

आगे की राह 

  • भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण के कारण खेल में महिलाओं की भागीदारी परंपरागत रूप से कम रही है। हालाँकि हाल के वर्षों में खेलों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने और उन्हें प्रोत्साहित करने के प्रयास किये गए हैं, जैसे कि महिला एथलीटों के लिये वित्त एवं संसाधन में वृद्धि करने हेतु नीतियों का कार्यान्वयन, छोटी उम्र से ही लड़कियों को खेलों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये कार्यक्रमों का निर्माण।
  • इन प्रयासों के बावजूद भारत में खेल भागीदारी और प्रतिनिधित्त्व में लैंगिक समानता हासिल करने के मामले में अभी एक लंबा रास्ता तय करना शेष है।
  • भारत में खेल विकास की प्रक्रिया में हैं। विकास की इस दर को तेज़ करने के लिये समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी। बुनियादी ढाँचे के विकास, खेल प्रतिभाओं की पहचान करने, नियमित खेल का आयोजन करने और ज़मीनी स्तर पर जागरूकता पैदा करने के प्रयासों की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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