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डेली न्यूज़

  • 26 May, 2022
  • 67 min read
शासन व्यवस्था

स्वच्छ सर्वेक्षण 2023

प्रिलिम्स के लिये:

SBM-U का दूसरा चरण। 

मेन्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। 

चर्चा में क्यों? 

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 के तहत स्वच्छ सर्वेक्षण (SS) 2023 का आठवाँ संस्करण लॉन्च किया है।  

  • स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 को अपशिष्ट प्रबंधन में चहुँमुखी दिशा में उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिये तैयार किया गया है। इस सर्वेक्षण में 3Rs (रिड्यूस, रिसाइकल एंड रीयूज़) के सिद्धांत को प्राथमिकता दी जाएगी, अर्थात् कचरा कम करें, पुनर्चक्रण करें और पुन: उपयोग करें।

स्वच्छ सर्वेक्षण 2023: 

  • स्वच्छ सर्वेक्षण को वर्ष 2016 में शहरी स्वच्छता की स्थिति में सुधार के लिये शहरों और बड़े पैमाने पर नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी ढाँचे के रूप में MoHUA द्वारा प्रारंभ किया गया था।
    • इन वर्षों में स्वच्छ सर्वेक्षण दुनिया में सबसे बड़े शहरी स्वच्छता सर्वेक्षण के रूप में उभरा है।
  • स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 में कचरे का स्रोत पर पृथक्करण, अधिक अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले शहरों की अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमता में वृद्धि और डंपसाइट पर जाने वाले कचरे को कम करने पर अधिक ध्यान दिया गया है।
    • प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से कम करने, प्लास्टिक कचरे के प्रसंस्करण, वेस्ट टू वंडर पार्कों को प्रोत्साहित करने और शून्य अपशिष्ट घटनाओं पर ज़ोर देने हेतु अतिरिक्त भारांक के साथ संकेतक पेश किये गए हैं।
  • स्वच्छ सर्वेक्षण 2023 के माध्यम से शहरों के भीतर वार्डों की रैंकिंग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • शहरों में 'खुले स्थान पर मूत्र' (पीले धब्बे) और 'खुले स्थान पर थूक' (लाल धब्बे) से संबंधित मानकों पर भी शहरों का मूल्यांकन किया जाएगा।
  • MoHUA आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्रों में ‘बैक लेन’ की सफाई को बढ़ावा देगा।

स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0:

  • परिचय: 
    • केंद्रीय बजट 2021-22 में घोषित स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0, स्वच्छ भारत मिशन शहरी के प्रथम चरण की एक निरंतर श्रृंखला है।   
    • सरकार शौचालयों के माध्यम से सुरक्षित प्रवाह, मल कीचड़ के निपटान और सेप्टेज का उपयोग करने का भी प्रयास कर रही है।
      • शहरी भारत को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाने और नगरपालिका के ठोस कचरे का 100% वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से  2 अक्तूबर, 2014 को SBM-U का पहला चरण शुरू किया गया था जो अक्तूबर 2019 तक चला।
    • इसे 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2021 से वर्ष 2026 तक पाँच वर्षों में लागू किया गया है।
    • इस मिशन को "अपशिष्ट से धन"(Waste to Wealth) और "चक्रीय अर्थव्यवस्था" के व्यापक सिद्धांतों के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • उद्देश्य: 
    • यह कचरे का स्रोत पर पृथक्करण, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक और वायु प्रदूषण में कमी, निर्माण एवं विध्वंस गतिविधियों से उत्पन्न कचरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन तथा सभी पुराने डंपसाइट के बायोरेमेडिएशन पर केंद्रित है।
    • इस मिशन के तहत सभी अपशिष्ट जल को जल निकायों में छोड़ने से पहले ठीक से उपचारित किया जाएगा और सरकार इसके अधिकतम उपयोग को प्राथमिकता देने का प्रयास कर रही है।
  • मिशन के संभावित परिणाम:
    • इससे सभी वैधानिक शहर (पानी, रखरखाव और स्वच्छता के साथ शौचालयों पर केंद्रित) ODF+ प्रमाणित हो जाएंगे। 
    • 1 लाख से कम आबादी वाले सभी वैधानिक शहर (कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन के साथ शौचालयों पर केंद्रित) ODF++ प्रमाणित हो जाएंगे।
    • 1 लाख से कम आबादी वाले सभी वैधानिक कस्बों का 50% जल + प्रमाणित हो जाएगा (जिसका उद्देश्य पानी के उपचार और पुन: उपयोग करके शौचालयों को बनाए रखना है)।
    • कचरा मुक्त शहरों के लिये आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल के अनुसार, सभी वैधानिक कस्बों को कम-से-कम कचरा मुक्त 3-स्टार दर्जा दिया जाएगा।
    • सभी पुराने डंपसाइट्स का बायोरेमेडिएशन(जैव उपचार)।

स्रोत: पी.आई.बी. 


शासन व्यवस्था

डिजिटल इंडिया भाषिनी

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल इंडिया भाषिनी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, MSME, ग्राम पंचायत, ऑप्टिकल फाइबर।

मेन्स के लिये:

भारत का डिजिटल इंडिया विज़न, प्रौद्योगिकी मिशन, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल सरकार।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने डिजिटल इंडिया भाषिनी-भारत के लिये भाषा इंटरफेस (BHASHINI- BHASHa INterface for India) हेतु रणनीति को आकार देने के उद्देश्य से शोधकर्त्ताओं और स्टार्टअप के साथ एक विचार-मंथन सत्र आयोजित किया।

  • सरकार का उद्देश्य स्टार्टअप्स के नवाचार, विकास और प्रौद्योगिकी की खपत को एकीकृत करना है।

डिजिटल इंडिया भाषिनी

  • परिचय: 
    • डिजिटल इंडिया भाषिनी भारत का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के नेतृत्व वाला भाषा अनुवाद मंच है।
    • एक भाषिनी प्लेटफॉर्म आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP) संसाधनों को MSME (मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम), स्टार्टअप एवं व्यक्तिगत इनोवेटर्स को सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराएगा।
    • भाषिनी प्लेटफॉर्म राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन का हिस्सा है। 
      • इस मिशन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जैसे-जैसे और अधिक भारतीय इंटरनेट से जुड़ें, वे अपनी भाषाओं में वैश्विक सामग्री का उपयोग करने में सक्षम हों।
  • महत्त्व:
    • डिजिटल समावेश:
      • यह भारतीय नागरिकों को उनकी अपनी भाषा में देश की डिजिटल पहल से जोड़करशक्त करेगा जिससे डिजिटल समावेशन की ओर अग्रसर हो सकें।
      • यह स्टार्टअप्स की भागीदारी को भी प्रोत्साहित करेगा। 
    • डिजिटल सरकार:
      • मिशन केंद्र/राज्य सरकार की एजेंसियों और स्टार्टअप के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना व पोषण करेगा, साथ ही भारतीय भाषाओं में नवीन उत्पादों तथा सेवाओं को विकसित एवं स्थापित करने के लिये सहयोग करेगा।
        • डिजिटल सरकार के लक्ष्य को साकार करने के लिये यह एक बड़ा कदम है।
    • भारतीय भाषाओं में विषय-वस्तु का विस्तार:
      • इसका उद्देश्य जनहित, विशेष रूप से शासन और नीति, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्रों में इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं में विषय-वस्तु को पर्याप्त रूप से बढ़ाना है ताकि नागरिकों को अपनी भाषा में इंटरनेट का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।

डिजिटल इंडिया विज़न के लिये भारत की पहल:

  • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम:
    • डिजिटल इंडिया का उद्देश्य विकास के नौ स्तंभों जैसे- ब्रॉडबैंड हाइवे, मोबाइल कनेक्टिविटी तक सार्वभौमिक पहुँच, पब्लिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम, ई-गवर्नेंस: प्रौद्योगिकी के माध्यम से सरकार में सुधार, ई-क्रांति: सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी, सभी के लिये सूचना, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, नौकरियों के लिये सूचना प्रौद्योगिकी, अर्ली हार्वेस्ट कार्यक्रम पर बल देता है।
  • डिजिटल उद्यमिता:
    • पूरे भारत में 3.7 लाख कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSCs) की स्थापना ने ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल उद्यमिता को प्रोत्साहित किया है और आम आदमी के लिये डिजिटल सेवाओं तक बेहतर पहुँच बनाई है।
  • डिजिटल सेवाएँ :
    • ई-अस्पताल, भीम-UPI, ऑनलाइन छात्रवृत्ति, डिजिलॉकर, उमंग एप, ई-कोर्ट, टेली लॉ, ई-वे बिल आदि जैसी डिजिटल सेवाओं के परिणामस्वरूप नागरिकों के लिये जीवनयापन की सुगमता में सुधार हुआ है।
  • आधार (UID-Aadhaar):
    • भारत 129 करोड़ आधार धारकों के साथ दुनिया में एक अद्वितीय डिजिटल पहचान के मामले में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है।
  • इंडिया स्टैक:  
    • इंडिया स्टैक ‘प्लेटफॉर्म’ और ‘एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस’ (APIs) का एक समूह है, जो सरकारों, व्यवसायों, स्टार्टअप तथा डेवलपर्स को एक अद्वितीय डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करने की अनुमति देता है ताकि भारतीय समस्याओं को भौतिक उपस्थिति रहित, कागज़ रहित और कैशलेस सेवा वितरण के माध्यम से हल किया जा सके।
  • राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा वास्तुकला (NDEAR):  
    • सरकार ने डिजिटल प्राथमिकता के संदर्भ में एक राष्ट्रीय डिजिटल शैक्षिक वास्तुकला की स्थापना की घोषणा कर शिक्षा के लिये देश के डिजिटल बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने पर अधिक जोर दिया है, जहाँ डिजिटल वास्तुकला न केवल शिक्षण और सीखने की गतिविधियों का समर्थन करेगी बल्कि यह केंद्र एवं राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की शैक्षिक योजनाओं, प्रशासनिक गतिविधियों का समर्थन करेगी।
  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM):  
    • इसका उद्देश्य देश के एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे का समर्थन करने के लिये आवश्यक आधारभूत ढाँचे का विकास करना है।
  • डिजिटल इंडिया भाषिनी: 
    • यह भारत का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित भाषा अनुवाद मंच है। इसका उद्देश्य इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं में सामग्री को पर्याप्त रूप से बढ़ाना है।

यू.पी.एससी. सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं?  (2018)

  1. भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन, जैसा कि चीन ने किया।
  2. एक नीतिगत ढाँचे की स्थापना जिससे बड़े आँकड़े एकत्रित करने वाली समुद्रपारीय बहु-राष्ट्रीय कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा सके कि वे हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के अंदर अपने बड़े डेटा केंद्रों की स्थापना करें।
  3. हमारे अनेक गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना तथा हमारे बहुत से विद्यालयों, सार्वजनिक स्थलों एवं प्रमुख पर्यटक केंद्रों में वाई-फाई की सुविधा प्रदान करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 

व्याख्या:

  • डिजिटल इंडिया को 7 अगस्त, 2014 को केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया था। इसे विभिन्न मंत्रालयों और सरकारों के सभी स्तरों पर इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) द्वारा किये जा रहे समग्र समन्वय के साथ लागू किया जाना है।
  • प्रत्येक नागरिक के लिये डिजिटल अवसंरचना एक मुख्य उपयोगिता के रूप में: नागरिकों को सेवाओं की आपूर्ति के लिये एक मुख्य उपयोगिता के रूप में उच्च गति युक्त इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित करना इसका एक प्रमुख उद्देश्य है। अत: कथन 3 सही है।
  • इसमें विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों को प्रोत्साहित करने के लिये स्वयं की इंटरनेट कंपनियों और नीतिगत ढाँचे की स्थापना करने का कोई प्रावधान नहीं है जो हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के भीतर बड़े डेटा केंद्रों की स्थापना कर वृहत् मात्रा में आँकड़े एकत्र कर सकें। अतः कथन 1 और 2 सही नहीं हैं।

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता है।
  2. एक बार जारी होने के बाद आधार संख्या को जारीकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा समाप्त या निष्क्रिय नहीं किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d)

  • भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) 12 जुलाई, 2016 को आधार अधिनियम 2016 के प्रावधानों का पालन करते हुए ‘इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के अधिकार क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक प्राधिकरण है।
  • UIDAI को भारत के सभी निवासियों को एक 12-अंकीय विशिष्ट पहचान (UID) संख्या (आधार) प्रदान करने का कार्य सौंपा गया है।
  • आधार प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को निवासियों की पहचान को सुरक्षित और त्वरित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने में मदद करता है, जिससे सेवा वितरण अधिक लागत प्रभावी एवं कुशल हो जाता है। भारत सरकार और UIDAI के अनुसार आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • हालाँकि UIDAI ने आकस्मिकताओं का एक सेट भी प्रकाशित किया है जो उसके द्वारा जारी आधार अस्वीकृति के लिये उत्तरदायी है। मिश्रित या विषम बायोमेट्रिक जानकारी वाला आधार निष्क्रिय किया जा सकता है। आधार का लगातार तीन वर्षों तक उपयोग न करने पर भी उसे निष्क्रिय किया जा सकता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) 2011, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) पोर्टल, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (ABPMJAY)।

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, मानव संसाधन, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लाभ।

चर्चा में क्यों?

नई दिल्ली नगर परिषद (NDMC) ने अपने क्षेत्र के निवासियों के लिये केंद्र की प्रमुख आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (ABPMJAY) के कार्यान्वयन को मंज़ूरी दी है।

  • ABPMJAY भारत सरकार की प्रमुख योजना है जो सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 की सिफारिश द्वारा शुरू की गई थी। इसके दो अंतर-संबंधित घटक हैं - स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (HWCs) और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY)।

ABPMJAY के बारे में:

  • परिचय: 
    • PMJAY विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा/आश्वासन योजना है जो पूर्णतः सरकार द्वारा वित्तपोषित है।
    • इसे फरवरी 2018 में लॉन्च किया गया था। यह द्वितीयक देखभाल (जिसमें विशेषज्ञ शामिल नहीं है) के साथ-साथ तृतीयक देखभाल (जिसमें विशेषज्ञ शामिल है) के लिये प्रति परिवार 5 लाख रुपए की बीमा राशि प्रदान करती है। 
    • PMJAY के तहत लाभार्थियों को सेवा हेतु यानी अस्पताल में कैशलेस और पेपरलेस सेवाओं तक पहुंँच प्रदान की जाती है।
    • स्वास्थ्य लाभ पैकेज में सर्जरी, दवा एवं दैनिक उपचार, दवाओं की लागत और निदान शामिल हैं।
      • पैकेज्ड दरें (इसमें सभी शुल्क शामिल है ताकि प्रत्येक उत्पाद या सेवा के लिये अलग से शुल्क न लिया जाए)।
      • ये लचीले हैं लेकिन एक बार तय होने के बाद अस्पताल लाभार्थी से अधिक शुल्क नहीं ले सकते हैं।
  • लाभार्थी: 
    • यह एक पात्रता आधारित योजना है जो नवीनतम सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना डेटा द्वारा पहचाने गए लाभार्थियों को लक्षित करती है।
      • एक बार डेटाबेस द्वारा पहचाने जाने के बाद लाभार्थी को बीमाकृत माना जाता है और वह किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में उपचार कर सकता है।
  • वित्तीयन: 
    • इस योजना का वित्तपोषण संयुक्त रूप से किया जाता है- सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में केंद्र और विधायिका के बीच 60:40, पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू-कश्मीर, हिमाचल तथा उत्तराखंड के लिये 90:10 एवं विधायिका के बिना केंद्रशासित प्रदेशों हेतु 100% केंद्रीय वित्तपोषण।
  • नोडल एजेंसी: 
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) को राज्य सरकारों के साथ संयुक्त रूप से PMJAY के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक स्वायत्त इकाई के रूप में गठित किया गया है।
    • राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (SHA) राज्य में ABPMJAY के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार राज्य सरकार का शीर्ष निकाय है।

PMJAY के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ: 

  • राज्यों का सहयोग: 
    • चूँकि ‘स्वास्थ्य’ राज्य का विषय है और राज्यों द्वारा इस योजना के  वित्तपोषण में 40% का योगदान दिया जाएगा, इसलिये मौजूदा ‘राज्य स्वास्थ्य बीमा योजनाओं’ का ‘आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ के साथ समन्वय स्थापित करना महत्त्वपूर्ण होगा।
      • पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने इस योजना को लागू नहीं किया है। 
  • लागत का बोझ: 
    • देखभाल प्रदाताओं और केंद्र के बीच लागत एक विवादित मुद्दा है तथा कई अस्पताल सरकार के प्रस्तावों को अव्यावहारिक मानते हैं। 
  • अपर्याप्त स्वास्थ्य क्षमताएँ:
    • सार्वजनिक क्षेत्र की खराब स्वास्थ्य क्षमताओं में सुधार के लिये निजी क्षेत्र के प्रदाताओं के साथ आवश्यक भागीदारी और गठबंधन की आवश्यकता है।
    • ऐसी परिस्थितियों में सेवाओं का प्रावधान तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब प्रदाताओं को उनकी सेवाओं के लिये जवाबदेह ठहराया जाए।
  • अनावश्यक उपचार:
    • ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017’ में माध्यमिक और तृतीयक अस्पतालों से शुल्क के बदले  स्वास्थ्य सेवाओं की "रणनीतिक खरीद" का प्रस्ताव शामिल है।
    • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ अनुबंध जो कि वित्तीय मुआवज़ा पैकेज प्राप्त करेंगे, उन्हें स्पष्ट रूप से अधिसूचित दिशा-निर्देशों और मानक उपचार प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना होगा ताकि अनावश्यक उपचार की संभावना को लेकर जाँच की जा सके।

योजना की उपलब्धियाँ:

  • गरीबों के लिये फायदेमंद:
    • कार्यान्वयन के पहले 200 दिनों में PMJAY ने 20.8 लाख से अधिक गरीब और वंचित लोगों को लाभान्वित किया है, जिन्हें  5,000 करोड़ रुपए से अधिक का निःशुल्क इलाज मिल चुका है।
  • कोविड-19 के दौरान:
    • शुरुआत से ही PMJAY की एक प्रमुख विशेषता इसकी पोर्टेबिलिटी है, जो यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि प्रवासी श्रमिक देश में किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में अपना इलाज करवा सकते हैं, भले ही उनके निवास की स्थिति कुछ भी हो।

आगे की राह

  • भारत के अपने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के लक्ष्यों को पूरा करने में ABPMJAY कार्यक्रम बड़े स्तर पर महत्त्वाकांक्ष‍ी प्रणालीगत सुधार का अवसर प्रस्तुत करता है।
    • इसके लिये लंबे समय से कम वित्तपोषित स्वास्थ्य प्रणाली में संसाधनों को शामिल करने की आवश्यकता होगी, यद्यपि यह योजना भारत को UHC की ओर निरंतर गति प्रदान करने के लिये है, अतः इसके साथ शासन, गुणवत्ता नियंत्रण और प्रबंधन के परस्पर संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • भारत में स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक व्यय वैश्विक स्तर पर सबसे कम है।
  • प्रौद्योगिकी एवं नवाचार के उचित उपयोग से स्वास्थ्य सेवा की समग्र लागत को और कम किया जा सकता है। एआई-पावर्ड मोबाइल एप्लीकेशन (AI-Powered Mobile Applications) उच्च गुणवत्तापूर्ण, कम लागत, स्मार्ट वेलनेस समाधान प्रदान कर सकते हैं। आयुष्मान भारत हेतु स्केलेबल (Scalable) और इंटर-ऑपरेबल (Inter-Operable) आईटी प्लेटफॉर्म इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स


जैव विविधता और पर्यावरण

ई-अपशिष्ट प्रबंधन के लिये ड्राफ्ट अधिसूचना

प्रिलिम्स के लिये:

ई-अपशिष्ट, एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक, ईपीआर।

मेन्स के लिये:

ई-अपशिष्ट प्रबंधन, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 के लिये मसौदा अधिसूचना।

चर्चा में क्यों? 

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के ड्राफ्ट पर जनता की प्रतिक्रिया जानने के लिये एक अधिसूचना जारी की है।

  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये औपचारिक नियमों की एक सूची विद्यमान है, इन नियमों की घोषणा पहली बार वर्ष 2016 में की गई और वर्ष 2018 में इसमें संशोधन किया गया था।  ई-अपशिष्ट प्रबंधन ड्राफ्ट के नवीनतम नियमों के अगस्त 2022 तक लागू होने की उम्मीद है।
  • इससे पहले मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया था। इसमें वर्ष 2022 तक विशिष्ट एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का प्रावधान किया गया है, जिनकी "कम उपयोगिता और उच्च अपशिष्ट क्षमता" है।

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये ड्राफ्ट अधिसूचना:

  • इलेक्ट्रॉनिक वस्तु: अधिसूचना में लैपटॉप, लैंडलाइन और मोबाइल फोन, कैमरा, रिकॉर्डर, म्यूज़िक सिस्टम, माइक्रोवेव, रेफ्रिजरेटर और चिकित्सा उपकरण सहित इलेक्ट्रॉनिक सामानों की एक विस्तृत शृंखला निर्दिष्ट की गई है।
  • ई-अपशिष्ट संग्रह लक्ष्य: उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण करने वाली कंपनियों और इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों के निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वर्ष 2023 तक उनके इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के  कम-से-कम 60% को एकत्र किया जाए और इस लक्ष्य को वर्ष 2024 तथा वर्ष 2025 में क्रमशः 70% और 80% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा जाए।
    • कंपनियों को एक ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा और अपने वार्षिक उत्पादन और ई-अपशिष्ट संग्रह लक्ष्य को निर्दिष्ट करना होगा।
  • EPR प्रमाणपत्र: नियम कार्बन क्रेडिट के समान प्रमाणपत्रों में व्यापार की एक प्रणाली को लागू करते हैं, जो कंपनियों को अस्थायी रूप से कमी को पूरा करने की अनुमति देगा।
    • नियम विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) प्रमाणपत्र हासिल करने वाली कंपनियों की एक ढाँचागत प्रणाली तैयार करते हैं।
    • ये प्रमाणपत्र कंपनी द्वारा एक विशेष वर्ष में एकत्र और पुनर्चक्रित किये गए ई-कचरे की मात्रा को प्रमाणित करते हैं तथा एक संगठन अपने दायित्वों को पूरा करने में मदद करने के लिये किसी अन्य कंपनी को इसकी अधिशेष मात्रा को बेच सकता है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था पर फोकस: नए EPR नियम, पुनर्चक्रण और व्यापार पर ज़ोर देते हैं। 
  • ज़ुर्माना: जो कंपनियांँ अपने वार्षिक लक्ष्यों को पूरा नहीं करती हैं, उन्हें ज़ुर्माना या 'पर्यावरण मुआवज़ा' देना होगा, लेकिन मसौदा इस ज़ुर्माने की मात्रा को निर्दिष्ट नहीं करता है।
  • कार्यान्वयन प्राधिकरण: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) इन नियमों के समग्र कार्यान्वयन की देखरेख करेगा।
  • राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी: राज्य सरकारों को ई-कचरे को हटाने और पुनर्चक्रण सुविधाओं के लिये औद्योगिक स्थान निर्धारित करने, औद्योगिक कौशल विकास करने तथा ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण सुविधाओं में लगे श्रमिकों हेतु स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। 

ई-अपशिष्ट के बारे में:

  • परिचय:
    • ई-अपशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त नाम है और यह पुराने, अप्रचलित, या छोड़े गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को संदर्भित करता है। इसमें उनके हिस्से, उपभोग्य वस्तुएंँ और पुर्जे शामिल हैं।
    • भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये कानून 2011 से लागू हैं। यह अनिवार्य करते हुए कि केवल अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता ही ई-अपशिष्ट एकत्र करेंगे। ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था। 
    • घरेलू और वाणिज्यिक इकाइयों से कचरे को अलग करने, प्रसंस्करण तथा निपटान के लिये भारत का पहला ई-अपशिष्ट क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।
    • मूल रूप से बेसल अभिसमय (1992) में ई-अपशिष्ट का उल्लेख नहीं किया गया था लेकिन बाद में इसने वर्ष 2006 (COP8) में ई-कचरे के मुद्दों को शामिल किया।
      • नैरोबी घोषणा को खतरनाक कचरे के ट्रांसबाउंडरी मूवमेंट के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के COP9 में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य ई-अपशिष्ट के पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।
  • भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ:
    • लोगों की कम भागीदारी:
      • इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अपशिष्ट का पुनर्चक्रण नहीं होने का एक प्रमुख कारण यह था कि उपभोक्ताओं ने उन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया।
    • बाल श्रम की भागीदारी:
      • भारत में 10-14 आयु वर्ग के लगभग 4.5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न ई-अपशिष्ट गतिविधियों में लगे हुए हैं और वह भी विभिन्न यार्डों व पुनर्चक्रण कार्यशालाओं में पर्याप्त सुरक्षा और सुरक्षा उपायों के बिना।
    • अप्रभावी विधान:
      • अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs)/PCC वेबसाइटों पर सार्वजनिक सूचना का अभाव है।
    • स्वास्थ्य संबंधी खतरा: 
      • ई-कचरे में 1,000 से अधिक ज़हरीले पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और भूजल को दूषित करते हैं। 
    • प्रोत्साहन योजनाओं का अभाव:
      • असंगठित क्षेत्र के लिये ई-कचरे के निपटान हेतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। 
      • साथ ही ई-कचरे को प्रबंधित करने के लिये औपचारिक कदम उठाने हेतु इस कार्य में लगे लोगों को लुभाने के लिये भी किसी प्रोत्साहन का उल्लेख नहीं किया गया है। 
    • ई-कचरा आयात:
      • विकसित देशों द्वारा 80% ई-कचरा रीसाइक्लिंग के लिये भारत, चीन, घाना और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों को भेजा जाता है।
    • शामिल अधिकारियों की अनिच्छा: 
      • नगरपालिकाओं की गैर-भागीदारी सहित ई-अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न प्राधिकरणों के बीच समन्वय का अभाव। 
    • सुरक्षा के निहितार्थ:
      • कंप्यूटरों में अक्सर संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी और बैंक खाते के विवरण आदि होते हैं, इस प्रकार की जानकरियों को रिमूव न किये जाने की स्थिति में धोखाधड़ी की संभावना रहती है। 

आगे की राह 

  • भारत में कई स्टार्टअप और कंपनियों द्वारा अब इलेक्ट्रॉनिक कचरे को इकट्ठा करने के साथ ही  रीसाइक्लिंग का कार्य शुरू किया गया है। हमें ऐसे बेहतर कार्यान्वयन पद्धतियों एवं समावेशन नीतियों की आवश्यकता है जो अनौपचारिक क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिये आवास व मान्यता प्रदान करें तथा पर्यावरण की दृष्टि से रीसाइक्लिंग लक्ष्य को पूरा करने में हमारी सहायता करें।
  • साथ ही संग्रह दर को सफलतापूर्वक बढ़ाने के लिये उपभोक्ताओं सहित प्रत्येक भागीदार को शामिल करना आवश्यक है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कंप्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं?

1- बेरिलियम
2- कैडमियम
3- क्रोमियम
4- हेप्टाक्लोर
5- पारद
6- सीसा
7- प्लूटोनियम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7
(b) केवल 1, 2, 3, 5 और 6
(c) केवल 2, 4, 5 और 7
(d) 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7

उत्तर: (b) 

व्याख्या:

  • कंप्यूटर सिस्टम में ज़हरीले रसायन- सीसा, कैडमियम, मरकरी, बेरिलियम, ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स (बीएफआर), पॉलीविनाइल क्लोराइड और फास्फोरस यौगिक होते हैं। इनके अनुचित संचालन और दहन से हाइड्रोकार्बन मुक्त होता है जो जल निकायों को प्रदूषित करता है।
  • सर्किट बोर्ड में पाए जानी वाली धातुएँ कैडमियम, एंटीमनी, सीसा/लेड और क्रोमियम हैं। कई फोटोकॉपियर, स्कैनर तथा फैक्स मशीनों के स्विच एवं लैंप में पारा मौजूद होता है। मॉनिटर में लेड भी पाया जा सकता है। अत: 2, 3, 5 और 6 सही हैं।
  • कॉपर बेरिलियम मिश्र धातु का उपयोग "स्प्रिंग मेमोरी" प्रदान करने के लिये किया जाता है जो निरंतर, अबाधित विद्युत कनेक्शन सुनिश्चित करता है, जिसका अर्थ है उच्च प्रसंस्करण गति व व्यक्तिगत कंप्यूटर, राउटर तथा इंटरनेट के साथ-साथ रडार, एवियोनिक्स और रक्षा प्रणाली के लिये बेहतर प्रदर्शन। अत: 1 सही है।
  • प्लूटोनियम एक्टिनाइड परिवार का एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील सिंथेटिक तत्त्व है जो यूरेनियम अयस्कों में उपस्थित होता है और परमाणु विखंडन की प्रक्रिया से गुज़रने की क्षमता के कारण इसका उपयोग परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में ईंधन के रूप में किया जाता है।
  • प्लूटोनियम के लगभग 15 समस्थानिक मौजूद हैं और ये सभी समस्थानिक रेडियोधर्मी हैं। इसका उपयोग कंप्यूटर या उनके पुर्जों में नहीं किया जाता है। अत: 7 सही नहीं है।
  • हेप्टाक्लोर एक ऑर्गेनोक्लोरिन (साइक्लोडीन) कीटनाशक है जिसे पहली बार वर्ष 1946 में तकनीकी क्लोर्डन से अलग किया गया था और इसका उपयोग मुख्य रूप से किसानों द्वारा बीज अनाज तथा फसलों पर कीटों को मारने के लिये किया जाता था, साथ ही घर के मालिकों द्वरा इसका उपयोग  दीमक को मारने/भगाने के लिये भी किया जाता था। अत: 4 सही नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

एलजीबीटीआईक्यू+ व्यक्तियों के अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

ILO, संयुक्त राष्ट्र, आईपीसी, मौलिक अधिकार, IPC 

मेन्स के लिये:

ट्रांसजेंडर से संबंधित मुद्दे, सामाजिक सशक्तीकरण 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘वर्ल्ड ऑफ वर्क’ में एलजीबीटीआईक्यू+ (LGBTIQ+) व्यक्तियों को शामिल करने के लिये एक दस्तावेज़ जारी किया। यह कार्य प्राप्त करने के अधिकार पर LGBTIQ+ व्यक्तियों के लिये समान अवसर और उपचार सुनिश्चित करने हेतु कुछ सिफारिशें प्रदान करता है। 

  • LGBTIQ का मतलब लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, इंटर-सेक्स और क्वीर है।
  • प्लस साइन विविध SOGIESC लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। कुछ संदर्भों में विशेष आबादी को संदर्भित करने के लिये एलजीबी, एलजीबीटी या एलजीबीटीआई शब्द का उपयोग किया जाता है।
    • SOGIESC शब्द यौन अभिविन्यास, लिंग पहचान, लिंग अभिव्यक्ति और यौन विशेषताओं को संदर्भित करता है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन: 

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
    • वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
  • वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड

अनुशंसाएँ:

  • राष्ट्रीय नीति और श्रम कानून की समीक्षा: 
    • राष्ट्रीय नीति और श्रम कानून की समीक्षा सरकारों को एलजीबीटीआईक्यू+ व्यक्तियों के लिये अपने देश की कार्य नीति के माहौल का आकलन करने की अनुमति देगी।
    • ह कानूनी और नीतिगत माहौल में सुधार, भेदभाव और बहिष्कार को समाप्त करने, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय उपकरणों के अनुपालन के लिये उचित पहलों की पहचान करने की अनुमति देगा।
      • LGBTIQ+ लोगों को उनके यौन अभिविन्यास, लिंग पहचान, लिंग अभिव्यक्ति और यौन विशेषताओं के कारण विश्व भर में उत्पीड़न, हिंसा तथा भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
      • भेदभाव न केवल LGBTIQ+ व्यक्तियों एवं उनके परिवारों के लिये बल्कि उद्यमों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिये भी हानिकारक है।
  • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम:
    • इसने सदस्य देशों, नियोक्ता संगठनों और श्रमिकों के प्रतिनिधियों को समाज में LGBTIQ+ व्यक्तियों के सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम शुरू करने की सिफारिश की।
  • परामर्श की सुविधा:
    • नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों के साथ सामाजिक संवाद के अलावा LGBTIQ+ समुदायों के साथ परामर्श किया जाना आवश्यक है।
      • यह LGBTIQ+ व्यक्तियों को श्रम बाज़ार में प्रवेश करने और सामाजिक सुरक्षा सहित सरकारी योजनाओं तक पहुँचने में आने वाली बाधाओं की पहचान करने की अनुमति देगा।
  • लघु और मध्यम उद्योग संघों के साथ कार्य:
    • लिंग और यौन पहचान जैसे भेदभाव एवं कलंक को दूर करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने सरकारों को छोटे एवं मध्यम क्षेत्र के संघों, क्षेत्रीय संघों तथा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था वाले श्रमिक संघों के साथ काम करने के लिये प्रोत्साहित किया।
  • कार्यस्थल पर यौन भेदभाव का अंत:
    • कार्यस्थल में यौन भेदभाव को समाप्त करने एवं LGBTIQ+ को कार्यस्थल में शामिल करने  के लिये नियोक्ता संगठनों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
      • अध्ययनों के अनुसार, LGBTIQ+ व्यक्तियों सहित कार्यस्थल में विविधता का होना व्यवसायों के लिये बेहतर हो सकता है।
      • यह एक रचनात्मक वातावरण का संकेत देता है जो आर्थिक विकास के लिये सही परिस्थितियों का निर्माण करता है। 
      • नियोक्ता संगठन अपने सदस्यों को नीतिगत मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं, पक्षपोषण कर सकते हैं तथा कार्यस्थलों में LGBTIQ+ व्यक्तियों को शामिल करके जागरूकता बढ़ा सकते हैं, सामाजिक संवाद और सामूहिक सौदेबाज़ी को बढ़ावा दे सकते हैं एवं सदस्यों के बीच अच्छी प्रथाओं को सीखने व साझा करने की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
  • संगठन की स्वतंत्रता के अधिकार को व्यवस्थित और प्रयोग करना:
    • ILO ने यूनियनों से LGBTIQ+ श्रमिकों को संगठित करने तथा उनके संघ की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रयोग में मदद करने के लिये कहा है। 
      • श्रमिक संघ यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि LGBTIQ + श्रमिकों को प्रभावित करने वाले मुद्दों का प्रतिनिधित्व नियोक्ताओं के साथ सामूहिक सौदेबाज़ी समझौतों और कार्यस्थल पर नीतियों तथा अन्य उपकरणों के रूप में किया जाए।
      • कई LGBTIQ+ कार्यकर्त्ता, विशेष रूप से छोटे कार्यस्थलों में अपने LGBTIQ+ साथियों या सहयोगियों के बिना अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।

भारत में LGBTIQ+ समुदाय की स्थिति: 

  • राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘ट्रांसजेंडरों को ‘तीसरे लिंग’ के रूप में मान्यता देना एक सामाजिक या चिकित्सा मुद्दा नहीं है, बल्कि मानवाधिकार का मुद्दा है।’ 
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के कुछ हिस्सों को हटाकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, जिन्हें LGBTQ समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है जो LGBTQ समुदाय की 'समावेशिता' को साकार करते हुए नागरिकों के सभी वर्गों पर लागू होता है।
    • इसने भारत में संवैधानिक नैतिकता की श्रेष्ठता को यह मानते हुए भी बरकरार रखा कि कानून के समक्ष समानता को सार्वजनिक या धार्मिक नैतिकता को वरीयता देकर नकारा नहीं जा सकता।
    • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, 'यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान के मुद्दों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय कानून के आवेदन पर योग्याकार्ता सिद्धांत' को भारतीय कानून के एक भाग के रूप में लागू किया जाना चाहिये।
      • ‘योग्याकार्ता सिद्धांत’ मानव अधिकारों के हिस्से के रूप में यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान की स्वतंत्रता को मान्यता देते हैं।
      • इन्हें वर्ष 2006 में इंडोनेशिया के योग्याकार्ता में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विशेषज्ञों के विशिष्ट समूह द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
  • समलैंगिक विवाह पर विवाद: शफीन जहान बनाम असोकन के.एम. और अन्य (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि साथी का चुनाव करना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जो  समलैंगिक जोड़ों पर भी लागू हो सकता है।
    • हालाँकि फरवरी 2021 में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा कि भारत में एक विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब वह "जैविक पुरुष" और बच्चे पैदा करने में सक्षम "जैविक महिला" के बीच हो।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019: संसद द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 पारित किया गया, जिसमें लिंग और लेैंगिक पहचान जैसी संकीर्ण सोच की आलोचना की गई।

स्रोत:द हिंदू


सामाजिक न्याय

पेशे के रूप में सेक्स वर्क की मान्यता

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 142, अनुच्छेद 21

मेन्स के लिये:

एक पेशे के रूप में सेक्स वर्क की मान्यता, सेक्स वर्कर के अधिकार, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्क को एक "पेशे" के रूप में मान्यता दी है और कहा कि इसके व्यवसायी कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं।

  • न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया। अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है, इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने वर्ष 2020 में सेक्स वर्कर को अनौपचारिक श्रमिक के रूप में मान्यता दी।

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की मुख्य विशेषताएंँ:

  • आपराधिक कानून:
    • सेक्स वर्कर कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं और आपराधिक कानून सभी मामलों में 'आयु' और 'सहमति' के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिये।
      • जब यह स्पष्ट हो जाए कि सेक्स वर्कर वयस्क है और सहमति से भाग ले रहा है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिये। 
      • अनुच्छेद 21 घोषित करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को प्राप्त है। 
    • जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाता है तो सेक्स वर्कर्स को "गिरफ्तार या दंडित या परेशान या पीड़ित" नहीं किया जाना चाहिये, "चूंँकि स्वैच्छिक सेक्स वर्क अवैध नहीं है, जबकि वेश्यालय चलाना गैर-कानूनी है"।
  • एक यौनकर्मी के बच्चे के अधिकार: 
    • एक यौनकर्मी के बच्चे को सिर्फ इस आधार पर माँ से अलग नहीं किया जाना चाहिये कि वह देह व्यापार में संलिप्त है।
    • मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा यौनकर्मियों और उनके बच्चों को भी प्राप्त  है।
    • इसके अलावा यदि कोई नाबालिग वेश्यालय में या यौनकर्मियों के साथ रहता पाया जाता है, तो यह नहीं माना जाना चाहिये कि बच्चे की तस्करी की गई।
    • यदि यौनकर्मी का दावा है कि वह उसका बेटा/बेटी है तो यह निर्धारित करने के लिये परीक्षण किया जा सकता है कि क्या दावा सही है और यदि ऐसा है, तो नाबालिग को ज़बरन अलग नहीं किया जाना चाहिये।
  • स्वास्थ्य देखभाल: 
    • यौन उत्पीड़न की शिकार यौनकर्मियों को तत्काल चिकित्सा-कानूनी देखभाल सहित हर प्रकार की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
  • मीडिया की भूमिका: 
    • मीडिया को इस बात का अत्यधिक ध्यान रखना चाहिये कि गिरफ्तारी, छापे और बचाव कार्यों के दौरान यौनकर्मियों की पहचान प्रकट न हो, चाहे वह पीड़ित हों या आरोपी और ऐसी कोई भी तस्वीर प्रकाशित या प्रसारित न करें जिससे उसकी पहचान का खुलासा हो।

संबंधित प्रावधान/सर्वोच्च न्यायालय के विचार:

  • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम: 
    • भारत में यौन कार्य को नियंत्रित करने वाला कानून अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम है।  
      • महिलाओं और बच्चों के अनैतिक व्यापार का दमन अधिनियम वर्ष 1956 में अधिनियमित किया गया था।  
    • बाद में कानून में संशोधन किये गए और अधिनियम का नाम बदलकर अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम कर दिया गया।
    • कानून वेश्यालय चलाने, सार्वजनिक स्थान पर याचना करने, सेक्स वर्क की कमाई से जीने और एक सेक्स वर्कर के साथ रहने या आदतन रहने जैसे कृत्यों को दंडित करता है।
  • न्यायमूर्ति वर्मा आयोग (2012-13): 
    • न्यायमूर्ति वर्मा आयोग ने यह भी स्वीकार किया था कि व्यावसायिक यौन शोषण के लिये तस्करी की जाने वाली महिलाओं और वयस्क, सहमति देने वाली महिलाओं के बीच अंतर है जो अपनी इच्छा से यौन कार्य में हैं।
  • बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2011) मामला:
    • उच्चतम न्यायालय ने बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2011) मामले में कहा कि यौनकर्मियों को सम्मान का अधिकार है।

यौनकर्मियों के समक्ष चुनौतियांँ: 

  • भेदभाव और दोषारोपण: 
    • यौनकर्मियों के अधिकार अस्तित्वहीन हैं और ऐसा काम करने वालों को उनकी आपराधिक स्थिति के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ता है।  
    • इन लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है तथा समाज में इनका कोई स्थान नहीं होता है और अधिकांशतः  ज़मींदारों एवं यहांँ तक कि कानून द्वारा भी इनके साथ कठोर व्यवहार किया जाता है। 
    • दूसरों के समान मानव, स्वास्थ्य और श्रम अधिकार दिये जाने की मांग के लिये उनकी लड़ाई जारी है क्योंकि उन्हें अन्य श्रमिकों के समान श्रेणी में नहीं माना जाता है।
  • दुर्व्यवहार और शोषण:
    • कई बार यौनकर्मियों को कई तरह की गालियों का सामना करना पड़ता है जो शारीरिक से लेकर मानसिक हमलों तक होती हैं।
    • उन्हें ग्राहकों, उनके अपने परिवार के सदस्यों, समुदाय और यहांँ तक कि उन लोगों से भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है जिन्हें कानून का पालन करना चाहिये। 

आगे की राह 

  • सेक्स वर्क को पेशे के रूप में मान्यता देने और इसे नैतिक स्वरूप प्रदान करने का समय आ गया है।
    • सेक्स वर्क के अंतर्गत वयस्क पुरुषों, महिलाओं और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को यौन सेवाएँ  प्रदान कर आजीविका चलाने; गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने एवं हिंसा, शोषण, सामाजिक कलंक व भेदभाव से मुक्ति का अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • अब समय आ गया है कि हम श्रम के दृष्टिकोण से सेक्स वर्क पर पुनर्विचार करें, जहाँ हम उनके काम को पहचान प्रदान कर उन्हें बुनियादी श्रम अधिकारों की गारंटी भी उपलब्ध कराएँ।
  • संसद को मौजूदा कानून पर फिर से विचार करना चाहिये और 'पीड़ित-बचाव-पुनर्वास' की प्रक्रिया में व्याप्त समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिये।
    • संकट के इस समय में विशेष रूप से यह और भी महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-कनाडा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-कनाडा संबंध।

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में 7वीं भारत-कनाडा संयुक्त विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग समिति (JSTCC) की बैठक में दो समझौता ज्ञापनों (MoUs) का नवीनीकरण किया गया।

  • वर्ष 2005 के वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग समझौते के तहत भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कनाडा के प्राकृतिक विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद (NSERC) तथा  राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद कनाडा (NRC) के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये थे।
  • इससे पहले भारत और कनाडा ने व्यापार एवं निवेश (MDTI) पर पाँचवीं मंत्रिस्तरीय वार्ता आयोजित की, जिसमें मंत्रियों ने औपचारिक रूप से भारत-कनाडा व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के लिये वार्ता को फिर से शुरू करने और एक अंतरिम समझौते या प्रारंभिक प्रगति व्यापार समझौते (EPTA) पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की, जो दोनों देशों को वाणिज्यिक लाभ प्रदान कर सकता है।

Canada

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में राष्ट्रीय मिशन, क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और  साइबर-फिज़िकल प्रणाली शामिल हैं।
    • कनाडा के विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले बड़ी संख्या में भारतीय छात्र इस सहयोग से लाभान्वित होंगे।
  • भारत और कनाडा मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों से लाभान्वित होते हैं तथा संबंधों को और मज़बूत करने के लिये प्रतिबद्ध हैं, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार दोनों देशों के मध्य स्थापित संबंधों के प्रमुख स्तंभ हैं।
  • वर्ष 2005 में किये गए समझौते की शर्तों के तहत कनाडा और भारत के शोधकर्त्ताओं एवं नवोन्मेषकों के बीच चल रहे सहयोग की समीक्षा करने के लिये प्रत्येक 2 साल में बैठक आयोजित की जाती है और कृषि, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य विज्ञान तथा संबंधित प्रौद्योगिकियाँ, स्वच्छ प्रौद्योगिकियाँ व पर्यावरण अनुसंधान, समुद्री एवं ध्रुवीय अनुसंधान, क्वांटम और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तथा मानव क्षमता विकास व रिसर्च मॉबिलिटी जैसे विभिन्न नए क्षेत्रों में अगली अवधि के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित की जाती हैं।
  • दोनों देश वर्ष 2022-2024 के लिये द्विपक्षीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) सहयोग को लेकर मुख्य प्राथमिकताओं की प्रगति की निगरानी ज़ारी रखने पर सहमत हुए।
  • भारत अन्य देशों के साथ अकादमिक और वैज्ञानिक संबंधों को सुगम बनाकर वैश्विक प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में सक्रिय भूमिका निभाता है।

विभिन्न क्षेत्रों में भारत-कनाडा सहयोग: 

  • राजनीतिक: 
    • भारत और कनाडा संसदीय ढांँचे एवं प्रक्रियाओं में समानताएँ साझा करते हैं। अक्तूबर 2019 में आम चुनाव के बाद हाउस ऑफ कॉमन के सांसद राज सैनी को कनाडा-भारत संसदीय संघ के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है।
    • वर्ष 2020 तक कनाडाई संसद में हाउस ऑफ कॉमन (कुल संख्या 338) में भारतीय मूल के 22 सदस्य हैं। 
    • भारत में कनाडा का प्रतिनिधित्व नई दिल्ली में कनाडा के उच्चायोग द्वारा किया जाता है। कनाडा के बंगलूरू, चंडीगढ़ और मुंबई में महावाणिज्य दूतावास हैं, साथ ही अहमदाबाद, चेन्नई, हैदराबाद व कोलकाता में व्यापार कार्यालय भी हैं
    • कनाडा में भारत का प्रतिनिधित्व ओटावा में एक उच्चायोग और टोरंटो तथा वैंकूवर में वाणिज्य दूतावासों द्वारा किया जाता है।
  • आर्थिक:
    • भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय व्यापार 5 अरब अमेरिकी डॉलर का है।
    • भारत में 400 से अधिक कनाडाई कंपनियों की उपस्थिति है और 1,000 से अधिक कंपनियांँ भारतीय बाज़ार में सक्रिय रूप से कारोबार कर रही हैं।
    • कनाडा में भारतीय कंपनियांँ सूचना प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर, स्टील, प्राकृतिक संसाधन और बैंकिंग क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
    • कनाडा को भारत फार्मा, लोहा एवं इस्पात, रसायन, रत्न एवं गहने, परमाणु रिएक्टर और बॉयलर निर्यात करता हैं।
    • चूंँकि कनाडा ऊर्जा महाशक्ति' है जिसके पास यूरेनियम, प्राकृतिक गैस, तेल, कोयला, खनिज, और उन्नत जलविद्युत प्रौद्योगिकी, खनन, नवीकरणीय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा जैसे विश्व के बड़े संसाधन है, इसलिये भारत कनाडा के साथ ऊर्जा के क्षेत्र को प्राथमिकता प्रदान करता है।
  • विज्ञान और तकनीक:
    • IC-IMPACTS कार्यक्रम के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग स्वास्थ्य देखभाल, कृषि-बायोटेक और अपशिष्ट प्रबंधन में संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं को लागू करता है।
      • IC-IMPACTS (भारत-कनाडा सेंटर फॉर इनोवेटिव मल्टीडिसिप्लिनरी पार्टनरशिप्स टू एक्सीलरेट कम्युनिटी ट्रांसफॉर्मेशन एंड सस्टेनेबिलिटी) पहला और एकमात्र, कनाडा-इंडिया रिसर्च सेंटर ऑफ एक्सीलेंस है, जिसे कनाडा के नेटवर्क ऑफ सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस (NCE) के माध्यम से समर्पित केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है। इससे कनाडा और भारत के बीच अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
    • पृथ्वी विज्ञान विभाग और ध्रुवीय कनाडा ने शीत जलवायु (आर्कटिक) अध्ययन पर ज्ञान एवं वैज्ञानिक अनुसंधान के आदान-प्रदान के लिये एक कार्यक्रम शुरू किया है।
  • अंतरिक्ष: 
    • भारत और कनाडा 1990 के दशक से मुख्य रूप से अंतरिक्ष विज्ञान, पृथ्वी अवलोकन, उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं और अंतरिक्ष मिशनों हेतु ज़मीनी समर्थन प्रदान कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफल सहकारी व वाणिज्यिक संबंधों का अनुसरण कर रहे हैं।
    • इसरो और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी ने बाहरी अंतरिक्ष की खोज एवं उपयोग के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • ISRO की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स की सहायता से कनाडा के कई नैनो उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया है।
    • इसरो ने वर्ष 2018 में लॉन्च किये गए अपने 100वें सैटेलाइट पीएसएलवी में श्रीहरिकोटा से कनाडा का पहला LEO (लो अर्थ ऑर्बिट) सैटेलाइट भी लॉन्च किया।
  • रक्षा क्षेत्र: 
    • भारत और कनाडा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल और जी-20 के माध्यम से घनिष्ठ सहयोग करते हैं।
    • वर्ष 2015 में डीआरडीओ और कनाडा की रक्षा अनुसंधान एवं विकास परिषद के बीच सहयोग पर एक आशय के वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये गए।
    • वर्ष 2018 में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा एवं खुफिया सलाहकार द्वारा आतंकवाद तथा हिंसक चरमपंथ का मुकाबला करने हेतु भारत व कनाडा के बीच सहयोग ढाँचे के साथ सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने के लिये एक समझौता हस्ताक्षरित किया गया था।
    • आतंकवाद के मुद्दों, विशेष रूप से आतंकवाद का मुकाबला करने पर संयुक्त कार्य समूह के ढाँचे के माध्यम से पर्याप्त भागीदारी की गई है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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