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भारतीय राजनीति

ई-कोर्ट : समय की मांग

  • 30 May 2020
  • 15 min read

संदर्भ:

COVID-19 महामारी और इसके नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन से उत्पन्न हुई चुनौतियों ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं के अतिरिक्त व्यापार, शिक्षा और न्यायालय की दैनिक गतिविधियों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। लॉकडाउन की चुनौतियों को देखते हुए देश के मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्त्ताओं और वकीलों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक याचिका दायर करने की सुविधा की शुरुआत की।  इसके तहत 24x7 ई- फाइलिंग की सुविधा दी गई है और फीस का भुगतान भी ऑनलाइन किया जा सकता है। हाल के दिनों में कुछ ऐसी ही व्यवस्था देश के कई अन्य न्यायालयों में भी देखने को मिली है।

ई-कोर्ट: 

  • ई-कोर्ट से आशय न्यायिक तंत्र की उस रूप से है जहाँ निर्धारित प्रक्रिया और नियमों के तहत इंटरनेट के माध्यम न्यायालय की गतिविधियों का संचालन किया जाता है। इसके तहत ऑनलाइन याचिका दायर करना, न्यायालय की कार्रवाई के तहत शुल्क या दंड का भुगतान और वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से किसी मामले की सुनवाई करना आदि शामिल है।    
  • भारत में 1990 के दशक के मध्य से ही न्यायालयों को कंप्यूटर और इंटरनेट से जोड़ने की शुरुआत की जा चुकी थी।
  • वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक ‘ई-कमेटी’ (e-Committee)के निर्देशों के आधार पर न्यायालयों में ई-फाइलिंग और इंटरनेट से जुड़ी अन्य सुविधाओं की शुरुआत की गई।
  • उच्चतम न्यायलय की इस पहल को आगे ले जाते हुए प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक ‘ई-कमेटी' का गठन किया गया और ज़िला न्यायालयों तक भी इन सुविधाओं का विस्तार किया गया। 
  • देश के विभिन्न न्यायालयों में अलग-अलग समय पर (दिल्ली उच्च न्यायालय में वर्ष 2009, बाम्बे उच्च न्यायालय में वर्ष 2013 और मद्रास उच्च न्यायालय में अप्रैल 2020) ई-फाइलिंग की सुविधा की शुरुआत की गई थी। 
  • 6 अप्रैल, 2020 उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-142 में निहित अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, देश में लागू लॉकडाउन के दौरान वीडियोकॉन्फ्रेंस के माध्यम से मामलों की सुनवाई किये जाने के संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश जारी किये थे।
  • उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों के ‘राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्रों’ (National Informatics Centre- NIC) के अधिकारियों को संबंधित उच्च न्यायालयों से विचार-विमर्श कर वर्चुअल (Virtual) माध्यम से न्यायालय के संचालन की एक नीति बनाने का निर्देश दिया था।  
    • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, राज्यों में स्थित ज़िला न्यायालय भी संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत प्रक्रिया के तहत ही ई-कोर्ट का संचालन कर सकेंगे।

ई-कोर्ट प्रोज़ेक्ट: 

  • ई-कोर्ट मिशन मोड प्रोज़ेक्ट (The e-Courts Mission Mode Project) देश में ज़िला न्यायालयों के लिये चलाई गई एक राष्ट्रव्यापी योजना है।
  • इस योजना के लिये आर्थिक सहायता और इसकी निगरानी का कार्य ‘केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय’ के न्याय विभाग द्वारा किया जाता है।
  • इस योजना की शुरुआत उच्चतम न्यायालय की ई-कमेटी द्वारा प्रस्तुत ‘भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना - 2005’ {National Policy and Action Plan for Implementation of Information and Communication Technology (ICT) in the Indian Judiciary – 2005} नामक रिपोर्ट के आधार पर की गई थी।

उद्देश्य:   

  • ई-कोर्ट प्रोज़ेक्ट में प्रस्तावित प्रावधानों के तहत प्रभावी और समयबद्ध तरीके से नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान करना।
  • न्यायालयों में निर्णय समर्थन प्रणाली को विकसित और स्थापित करना।
  • न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने और सूचना प्राप्ति को अधिक सुगम बनाने के लिये इससे जुड़ी प्रणाली को स्वचालित बनाना।
  • न्यायिक वितरण प्रणाली को सुलभ, लागत प्रभावी, अनुमानित, विश्वसनीय और पारदर्शी बनाने के लिये न्यायिक प्रक्रिया में आवश्यक (गुणवत्ता और मात्रात्मक) सुधार करना।

कार्यान्वयन: 

  • इस योजना के पहले चरण (वर्ष 2007-2015) के तहत देश में ब्लॉक और तालुका स्तर के न्यायालयों को कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा गया।
  • साथ ही इस चरण के तहत न्यायिक अधिकारियों और न्यायालय के अन्य कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ न्यायालय के आँकड़ों को इंटरनेट पर अपलोड किया गया।
  • इस योजना के दूसरे चरण (4 अगस्त, 2015 से लागू) के तहत पहले चरण में किन्हीं कारणों से छूट गए न्यायालयों को इस प्रणाली से जोड़ने के साथ न्यायालयों को अतिरिक्त उपकरणों उपलब्ध कराए गए।
  • दूसरे चरण में ई-कमेटी, न्याय विभाग (भारत सरकार), NIC,वित्त मंत्रालय और अन्य हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया गया।
  • इस चरण के तहत बचे हुए न्यायालयों को जेलों से जोड़ा जाएगा और डेक्सटॉप आधारित वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग सुविधा को रिमांड और विचाराधीन कैदियों को प्रस्तुत करने के अलावा अन्य मामलों के लिये आगे भी बढ़ाया जाएगा।
  • इस योजना के दूसरे चरण के तहत न्यायालयों, सरकार और जनता के लिये गुणवत्तापूर्ण जानकारी उपलब्ध करने हेतु ‘राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड’ (National Judicial Data Grid-NJDG) का विकास किया जायेगा। साथ ही मोबाइल एप, एसएमएस (SMS) और ईमेल के माध्यम से प्रपत्र डाउनलोड करने,  शुल्क या ज़ुर्माना जमा करने की प्रक्रिया को और अधिक मज़बूत बनाना शामिल है।   

ई-कोर्ट: संभावनाएँ और लाभ

  • देश के विभिन्न न्यायालयों में ट्रैफिक चालान भरने, न्यायालय में पेशी या प्रपत्र प्राप्त करने के लिये सीमित रूप से इंटरनेट और वीडियोकॉन्फ्रेंस का प्रयोग किया गया है और इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। ऐसे में वर्तमान में COVID-19 महामारी को देखते हुए सामान्य मामलों में भी ई-कोर्ट की व्यवस्था को लागू करने से कई समस्याओं से निपटने में सहायता प्राप्त हो सकती है। 
  • न्यायालय की पहुँच में वृद्धि: वर्तमान में विधिक प्रक्रिया में अनेक सुधारों के बावज़ूद भी समाज के कुछ वर्गों के लिये आसानी से न्यायालय तक पहुँच पाना संभव नहीं हो सका है। ई-कोर्ट के माध्यम से विधिक प्रक्रिया में व्याप्त जटिलताओं को दूर कर याचिकाकर्त्ता और वकीलों के लिये न्यायालय की पहुँच को सुगम बनाया जा सकेगा।
  • वेब कॉन्फ्रेंसिंग की प्रक्रिया में न्यायालय के बहुत से अनावश्यक औपचारिकताओं और भीड़ से बचा जा सकेगा और मामलों की सुनवाई सरलता से तथा व्यक्तिगत रूप में की जा सकेगी।  
  • समय और धन की बचत: ई-कोर्ट के माध्यम से याचिकाकर्त्ता और वकील देश के किसी भी भाग से   सुनवाई की प्रक्रिया में भाग ले सकेंगे, इससे न सिर्फ लोगों को आसानी से न्याय मिल सकेगा बल्कि परिवहन और अन्य खर्चों में भी कटौती की जा सकेगी।
    • उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश जैसे विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वाले राज्य में कई सीमान्त जिलों के नागरिकों के लिये उच्च न्यायालय तक पहुँचना बहुत ही कठिन हो जाता है।
    • साथ ही लोग न्यायालय पहुँचने के लिये अपने रोज़गार या व्यवसाय पर अनुपस्थिति के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान से बच सकेंगे। 
  • लंबित मामलों में कमी: विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में न्यायालयों में लंबित लगभग 25% मामलों के रुके रहने का मुख्य कारण यह है कि उनमें सुनवाई के समय याचिकाकर्त्ता, वकील या मामले से संबंधित कोई अन्य व्यक्ति सुनवाई में नहीं पहुँच पाता, ऐसे में ई-कोर्ट और वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस समस्या को दूर कर लंबित मामलों में कमी लाने में सहायता प्राप्त होगी।   
  • ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business): किसी भी विदेशी निवेशक के लिये दूसरे देश में उपलब्ध व्यावसायिक अवसरों और संसाधनों की उपलब्धता के साथ न्यायिक तंत्र की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता भी एक निर्णायक पहलू होता है। अतः ई-कोर्ट को बढ़ावा देना स्थानीय व्यापारियों और कामगारों के हितों के साथ विदेशी निवेश की दृष्टि से भी एक सकारात्मक कदम होगा। 
  • पारदर्शिता: न्यायालय की ऑनलाइन सुनवाई के दौरान सभी पक्षों की बातों तो रिकार्ड कर किसी भी असहमति की स्थिति में आसानी से पुरानी /पिछली सुनवाइयों की समीक्षा की जा सकती है। साथ ही वेबकास्टिंग (Webcasting) जैसी तकनीकों के माध्यम से लोग आसानी से न्यायालय की कार्रवाई में सीधे जुड़ सकेंगे।   

चुनौतियाँ :  

  • वर्तमान में देश के विभिन्न भागों में हाई-स्पीड इंटरनेट की पहुँच न होना ई-कोर्ट के संचालन में एक बड़ी बाधा है। 
  • ई-कोर्ट की कार्यप्रणाली के लिये आवश्यक नियम और नीतिगत ढाँचे का अभाव।
  • न्यायाधीशों, न्यायलय के अन्य कर्मचारियों को ई- कोर्ट के संचालन हेतु विस्तृत तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता।
  • ई-कोर्ट के संचालन के दौरान महत्त्वपूर्ण प्रपत्रों (विशेषकर गोपनीय और संवेदनशील मामलों में) के ऑनलाइन होने से साइबर हैकिंग (Cyber Hacking) का खतरा भी एक बड़ी समस्या है। 
  • देश के सभी न्यायालयों में ई-कोर्ट के संचालन हेतु नए सिरे से आधारभूत संरचना की स्थापना एक जटिल और खर्चीली प्रक्रिया होगी।

आगे की राह:

  • हाल के वर्षों में मोबाइल और इंटरनेट जैसी तकनीकों को उपलब्धता बढ़ने के साथ कई सरकारी और निजी सेवाओं की उपलब्धता में सुधार हुआ है, परंतु देश के सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच न होने से देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इन सेवाओं का लाभ लेने से वंचित रह जाता है। अतः ई-कोर्ट की पहुँच को बढ़ाने के लिये इंटरनेट की पहुँच में तेज़ी से विस्तार किया जाना चाहिये।
  • ई-कोर्ट के संचालन को सुगम बनाने के लिये ‘राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी’ (National Judicial Academy) की सहायता से न्यायाधीशों, न्यायलय के अन्य कर्मचारियों को आवश्यक तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
  • ई-कोर्ट की कार्रवाई के दौरान संवेदनशील प्रपत्रों की सुरक्षा और साइबर हमलों से बचने हेतु एक मज़बूत सुरक्षा ढांचे की स्थापना करना  बहुत ही आवश्यक होगा।
  • ई-कोर्ट की प्रक्रिया को सरल बनाने और जनता में ई-कोर्ट के लाभ के प्रति जागरूकता को बढ़ाकर न्यायालय की पहुँच को बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।

अभ्यास प्रश्न: ई-कोर्ट (e-Court) से आप क्या समझते हैं? वर्तमान में देश की न्यायिक प्रणाली में व्याप्त चुनौतियों को दूर करने में ई-कोर्ट की भूमिका की समीक्षा कीजिये।

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