अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी
प्रिलिम्स के लिये:अररिया फॉर्मूला, डूरंड रेखा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मेन्स के लिये:अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी का भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
अफगानिस्तान से अधिक सैनिकों की वापसी की गति बढ़ाने के लिये अमेरिका की नवीनतम योजना अफगानिस्तान में चल रही शांति प्रक्रिया को खतरे में डाल सकती है।
प्रमुख बिंदु
भारत का रुख:
- भारत इस बात से चिंतित है कि नाटो/अमेरिकी गठबंधन सेना की अफगान शांति प्रक्रिया और समयपूर्व वापसी आतंकवादी नेटवर्क को लाभ पहुँचा सकती है जो अफगानिस्तान और भारत दोनों को निशाना बना सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए सबूत दिया कि संयुक्त राज्य अमेरिका से तालिबान के आश्वासन के बावजूद, अलकायदा अभी भी अफगानिस्तान में मौजूद है और सक्रिय है, जिसे तालिबान द्वारा शरण दी जा रही है।
- भारत में, अल कायदा एक प्रचार (Propaganda) अभियान चलाता है जो हिंदू बहुसंख्यक और मुस्लिम अल्पसंख्यक के बीच मतभेदों को भुनाने का प्रयास करता है।
- हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) की बैठक, Arria फॉर्मूला (Arria Formula- UNSC सदस्य के अनुरोध पर अनौपचारिक रूप से) के तहत बुलाई गई, जिसमें भारत ने अफगानिस्तान में "तत्काल व्यापक युद्धविराम" का आह्वान किया और देश में शांति लाने के सभी अवसरों का स्वागत किया।
- भारत ने पिछले लगभग दो दशकों में अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास सहायता का भी वर्णन किया।
- भारत के अनुसार, अफगानिस्तान में टिकाऊ शांति के लिये, डूरंड रेखा (पाकिस्तान के संदर्भ में) में सक्रिय आतंकवादी ठिकानों को समाप्त करने की आवश्यकता है।
- डूरंड रेखा दक्षिण-मध्य एशिया में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2,670 किलोमीटर भूमि की अंतर्राष्ट्रीय सीमा है।
- भारत ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिये चार आवश्यकताओं को रेखांकित किया:
- इस प्रक्रिया को अफगान के नेतृत्व तथा स्वामित्व में होना चाहिये।
- आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता होनी चहिये।
- पिछले दो दशकों के लाभ को खो नहीं सकते।
- विशेष रूप से, भारत आश्वस्त है कि महिलाओं के अधिकारों की दृढ़ता से रक्षा करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, अल्पसंख्यकों और कमज़ोर लोगों के अधिकारों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है।
- भारत ने यहाँ विभिन्न इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भारी निवेश किया है, उदाहरण के लिये - जरंज डेलाराम राजमार्ग, अफगान संसद आदि।
- अफगानिस्तान के पारगमन अधिकारों का उपयोग देशों द्वारा "अफगानिस्तान से राजनीतिक कीमत निकालने के लिये" नहीं किया जाना चहिये।
- अफगानिस्तान से बाहर के व्यक्तियों और सामग्रियों के प्रवाह में बाधा डालने के लिये पाकिस्तान का संदर्भ, उदाहरण के लिये भारत-अफगानिस्तान व्यापार।
- भारत ने अफगानिस्तान को भारत की UNSC अवधि के दौरान शांति की तलाश में अपने समर्थन का आश्वासन दिया।
- गैर-स्थायी सीट पर भारत का दो वर्ष का कार्यकाल 1 जनवरी 2021 से शुरू होगा।
चीन का रुख:
- चीन ने विदेशी सैनिकों से एक व्यवस्थित और ज़िम्मेदार तरीके से अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने का आह्वान किया ताकि आतंकवादी ताकतों को बढ़ने तथा अफगानिस्तान की शांति और सुलह प्रक्रिया में बाधा पहुँचाने का अवसर न मिलने पाए।
- चीन चिंतित है कि युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान जो चीन के अस्थिर झिंजियांग प्रांत के साथ सीमा साझा करता है, उइगर मुस्लिम आतंकवादियों के लिये एक अनुकूल क्षेत्र बन सकता है।
- उइगर मुख्यतः तुर्क-भाषी जातीय समूह है। वे मुख्य रूप से चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में सीमित हैं और उस क्षेत्र के सबसे बड़े मुस्लिम समूह में से एक हैं।
- चीन ज़ोर देकर कहता है कि उइगर आतंकवादी बमबारी, तोड़फोड़ और नागरिक अशांति की साजिश रचकर एक स्वतंत्र राज्य के लिये हिंसक अभियान चला रहे हैं।
- झिंजियांग में धार्मिक अतिवाद पर लगाम लगाने के लिये चीन ने आरोपों पर अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का सामना किया है कि उसने एक लाख से अधिक जातीय उइगरों को झिंजियांग में नज़रबंद कर रखा है।
- पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट ( East Turkestan Islamic Movement )- उइगर आतंकवादी समूह पर प्रतिबंध हटाने के लिये USA की वापसी भी अपने कदम के साथ मेल खाती है।
- झिंजियांग में हमलों को अंजाम देने के लिये चीन, ETIM का विरोधी है। यह एक अलकायदा समर्थित आतंकवादी समूह है जो अफगानिस्तान में फिर से संगठित है।
- ETIM को 2002 में अलकायदा, ओसामा बिन लादेन और तालिबान के साथ कथित संबंध के लिये संयुक्त राष्ट्र की 1267 आतंकवाद-रोधी समिति द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें
प्रिलिम्स के लिये15वाँ वित्त आयोग, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 मेन्स के लियेभारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुद्दे और सरकार द्वारा इस दिशा में उठाए गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
15वें वित्त आयोग ने कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये सार्वजनिक खर्च को लेकर पुनः प्राथमिकता निर्धारित करने की सिफारिश की है।
- 15वें वित्त आयोग ने वित्तीय वर्ष 2022-26 के लिये राज्यों के साथ कर राजस्व साझा करने के संबंध में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
- वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अलग-अलग क्षेत्रों में राज्यों द्वारा किये गए सुधार के संदर्भ में प्रदर्शन प्रोत्साहन दिये जाने की भी सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु
15वें वित्त आयोग की सिफारिशें
- वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है और वर्ष 2024 तक स्वास्थ्य क्षेत्र पर सार्वजनिक व्यय को GDP के 2.5 प्रतिशत (वर्तमान में 0.95 प्रतिशत) तक बढ़ाने की वकालत की है।
- सिफारिशों के अनुसार, जहाँ एक ओर सार्वजनिक व्यय के माध्यम से पंचायत और नगरपालिका स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, वहीं विशेष स्वास्थ्य सेवाओं के लिये निजी क्षेत्र को अवसर दिया जाना चाहिये।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में सरकार द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर कुल GDP का लगभग 0.95 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया जाता है, जो कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के तहत निर्धारित लक्ष्य के संबंध में पर्याप्त नहीं है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में जन स्वास्थ्य व्यय को समयबद्ध ढंग से GDP के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करने के लिये समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने के लिये सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मज़बूत संबंध स्थापित करने चाहिये और केवल आपातकाल की स्थिति में ही निजी क्षेत्र का सहारा नहीं लेना चाहिये, बल्कि उसे अन्य अवसर भी दिये जाने चाहिये।
- निजी क्षेत्र और सरकार के बीच मौजूद विश्वास की कमी के मुद्दे को जल्द-से-जल्द संबोधित किया जाना चाहिये।
- ज़िला अस्पताल, सहायक-चिकित्साकर्मियों अथवा पैरामेडिकल स्टाफ के प्रशिक्षण की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधन की कमी को पूरा करने के साथ-साथ रोज़गार में भी बढ़ोतरी की जा सकेगी।
- 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रशासन में बड़े बदलाव करने हेतु चिकित्सा अधिकारियों के लिये एक अलग संवर्ग/कैडर बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, जैसा कि अखिल भारतीय सेवाएँ अधिनियम, 1951 में उल्लेख किया गया है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र के भीतर मौजूद समस्याओं को संबोधित करने के लिये अखिल भारतीय स्वास्थ्य सेवा के गठन की मांग लंबे समय से की जा रही है।
- सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के कार्य करने की स्थिति में पर्याप्त सुधार किये जाने की आवश्यकता है, ज्ञात हो कि इनमें से कई डॉक्टर राज्य सरकारों द्वारा किये गए अनुबंध के आधार पर कार्य कर रहे हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुद्दे
- वर्ष 2017 में कुल GDP के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का सार्वजनिक व्यय मात्र 1 प्रतिशत था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय के मामले में भारत 186 देशों की सूची में 165वें स्थान पर है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की विषम उपलब्धता भी भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अल्प-विकसित एवं गरीब राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाएँ तुलनात्मक रूप से काफी खराब हैं, जबकि अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों के साथ यह स्थिति नहीं है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच और गुणवत्ता के संदर्भ में वर्ष 2018 में लैंसेट द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में भारत को 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर रखा गया था। इस मामले में भारत का स्थान चीन (48वाँ स्थान), श्रीलंका (71वाँ स्थान), भूटान (134वाँ स्थान) और बांग्लादेश (132वाँ स्थान) जैसे देशों से भी नीचे है।
- कम वेतन और रोज़गार की असुरक्षा के कारण भारत में प्रशिक्षित महामारीविदों (Epidemiologists) की काफी कमी है, जो कि भारत की भारत की स्वास्थ्य प्रणाली से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
- प्रति 0.2 मिलियन जनसंख्या पर एक महामारीविद का होना अनिवार्य है।
- “महामारीविद वह व्यक्ति होता है जो कांटैक्ट ट्रेसिंग, कंटेनमेंट ज़ोन को चिह्नित करने और संदिग्ध मामलों को आइसोलेट करने की प्रकिया का मार्गदर्शन करने तथा उसकी निगरानी करने से संबंधित कार्य करता है।”
- प्रति 0.2 मिलियन जनसंख्या पर एक महामारीविद का होना अनिवार्य है।
- कुल GDP के प्रतिशत के रूप में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर भारत का कुल व्यय विगत तीन दशकों से 0.7 प्रतिशत पर स्थिर बना हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान और विकास (R&D) के लिये किये जाने वाले कुल व्यय में सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 51.8 प्रतिशत है।
- वहीं अमेरिका द्वारा R&D पर कुल GDP का 2.8 प्रतिशत, चीन द्वारा 2.1 प्रतिशत, कोरिया द्वारा 4.4 प्रतिशत और जर्मनी द्वारा लगभग 3 प्रतिशत खर्च किया जाता है। इन देशों में R&D पर किये जाने वाले व्यय में निजी क्षेत्र का वर्चस्व है।
सरकार द्वारा किये गए प्रयास
- हाल ही में सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, जल और अपशिष्ट उपचार जैसे क्षेत्रों से संबंधित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करने के लिये ‘व्यवहार्यता अंतराल अनुदान’ (VGF) योजना के विस्तार को मंज़ूरी दी है।
- कई सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं का पहले से कार्यान्वयन किया जा रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने वेंटिलेटर्स के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कई वेंटिलेटर विकसित किये हैं।
- ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं जहाँ सार्वजनिक अनुसंधान प्रयोगशालाओं और IIT जैसे सार्वजनिक संस्थानों ने निजी कंपनियों के साथ मिलकर घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति एवं वैश्विक आपूर्ति शृंखला में आए व्यवधानों से निपटने के लिये परीक्षण किट, मास्क, सैनिटाइज़र, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) किट आदि का उत्पादन किया है।
- सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हेतु कई महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं, जिनमें राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत आदि शामिल हैं।
- भारत में विभिन्न सरकारी और निजी संगठनों के साथ कुल 17 ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी एजेंडा (GHSA) परियोजनाओं की शुरुआत की गई है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (IHR) पर आधारित ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी एजेंडा (GHSA) की शुरुआत वर्ष 2014 में की गई थी तथा इसका प्राथमिक उद्देश्य संक्रामक रोगों को रोकना, उनका पता लगाना और उनसे निपटने के लिये सदस्य देशों में क्षमता निर्माण करना है।
- किसी भी संक्रामक रोग की निगरानी और प्रकोप की जाँच के लिये स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं का क्षमता-निर्माण ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी एजेंडा (GHSA) के एक्शन पैकेज के तहत एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान (NIHFW) भी GHSA के तहत कार्यबल विकास के लिये उत्तरदायी संस्थानों में से एक है, जिसने इस संबंध में एक परियोजना भी लागू की है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भूटान में नया चीनी गाँव
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, बिम्सटेक मेन्स के लिये:भारत-भूटान संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीनी मीडिया ने दावा किया है कि भूटान के पास चीन द्वारा बनाया गया एक नया सीमावर्ती गाँव चीनी क्षेत्र पर स्थित था। हालाँकि गाँव की जारी की गई छवियाँ दर्शाती हैं कि यह गाँव दोनों देशों के मध्य विवादित क्षेत्र पर अवस्थित है।
प्रमुख बिंदु:
- चीन द्वारा यह नवनिर्मित गाँव पांग्डा (Pangda) है और दक्षिण-पश्चिम चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के ‘याडोंग काउंटी’ (Yadong County) जो एक प्रशासनिक क्षेत्र है, में अधिकारियों ने पुष्टि की है कि सितंबर 2020 में 124 लोगों के साथ 27 घर स्वैच्छिक रूप से शांगडुई (Shangdui) गाँव से पांग्डा गाँव में बसने के लिये जा चुके हैं।
- वर्ष 2017 के बाद यह पहली बार है कि डोकलाम क्षेत्र के पास एक चीनी आवासीय क्षेत्र देखा गया है जो भारत के लिये सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- पांग्डा, डोकलाम पठार पर ‘भारत-भूटान-चीन ट्राइजंक्शन’ (India-Bhutan-China Trijunction) से पूर्व में स्थित है जहाँ वर्ष 2017 में चीन द्वारा सड़क निर्माण कार्य किये जाने के कारण भारत और चीन के मध्य 72 दिनों तक तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई थी।
- भूटान का पक्ष: भूटान ने आधिकारिक तौर पर अपने क्षेत्र में किसी भी चीनी गाँव की उपस्थिति से इनकार किया है।
- भारत का पक्ष: भारत इसे चीन द्वारा एकतरफा रूप से ट्राइजंक्शन से आगे बढ़ने के प्रयास के रूप में देखता है।
- अतीत में भी चीन ने असैन्य बस्तियों का निर्माण कर पड़ोसी देशों के साथ विवादित क्षेत्रों में अपने क्षेत्रीय दावों को मज़बूत करने की कोशिश की है। उदाहरण- दक्षिण चीन सागर के विवादित द्वीपों पर और भूटान के त्रासीगंग (Trashigang) ज़िले पर।
- चीनी पक्ष: चीनी मानचित्र के अनुसार, पांग्डा गाँव चीन के क्षेत्र में है।
- यह भारत को अस्थिर चीन-भूटान सीमा के के लिये भी ज़िम्मेदार ठहराता है और इस बात के लिये भी भारत को ज़िम्मेदार ठहराता है कि यह भ्रम उत्पन्न करता है कि चीन, भूटानी क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहा है।
भारत-भूटान संबंध:
- भारत और भूटान के मध्य ‘शांति एवं मैत्री संधि-1949’ (Treaty of Peace and Friendship, 1949):
- यह संधि शांति एवं मित्रता, मुक्त व्यापार एवं वाणिज्य और एक-दूसरे के नागरिकों के लिये समान न्याय का अवसर प्रदान करती है।
- वर्ष 2007 में इस संधि पर पुनः बातचीत हुई और भूटान की संप्रभुता को प्रोत्साहित करने के लिये इस संधि से उस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया जिसमें भारत द्वारा भूटान को अपनी विदेश नीति पर मार्गदर्शन लेने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया था।
- बहुपक्षीय साझेदारी (Multilateral Partnership):
- दोनों देश बहुपक्षीय मंचों को साझा करते हैं जैसे कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), ‘बांग्लादेश-भूटान-भारत और नेपाल पहल’ (BBIN), बिम्सटेक (BIMSTEC) आदि।
- जलविद्युत ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग:
- वर्ष 2006 का जलविद्युत सहयोग समझौता: इस समझौते के एक प्रोटोकॉल के तहत, भारत ने वर्ष 2020 तक भूटान को न्यूनतम 10,000 मेगावाट जलविद्युत के विकास एवं उसी से अधिशेष बिजली आयात करने पर सहमति व्यक्त की है।
- व्यापार:
- दोनों देशों के बीच व्यापार, भारत-भूटान व्यापार एवं पारगमन समझौते 1972 (India Bhutan Trade and Transit Agreement 1972) द्वारा शासित होता है जिसे अंतिम बार नवंबर, 2016 में नवीनीकृत किया गया था।
- यह समझौता दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित करता है और तीसरे अन्य देशों को भूटानी निर्यात के शुल्क मुक्त पारगमन के लिये भी अवसर प्रदान करता है।
- आर्थिक सहायता:
- भारत, भूटान के विकास में प्रमुख भागीदार देश है। वर्ष 1961 में भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना (FYP) के शुभारंभ के बाद से भारत, भूटान के FYPs के लिये वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है।
- भारत ने भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2018-23) के लिये 4500 करोड़ रुपये प्रदान किये हैं।
- शैक्षिक और सांस्कृतिक सहयोग:
- बड़ी संख्या में कॉलेज जाने वाले भूटानी छात्र भारत में पढ़ रहे हैं। भारत सरकार भूटानी छात्रों को कई तरह की छात्रवृत्ति प्रदान करती है।
- पर्यावरण:
- जून 2020 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के लिये भूटान के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने को मंज़ूरी दी।
- COVID-19 महामारी के दौरान सहायता:
- COVID-19 महामारी के दौरान भारत ने भूटान के साथ घनिष्ठ समन्वय बना रखा है और भूटान को COVID-19 महामारी नियंत्रण योजना में शामिल किया है।
- इसके तहत भूटान में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिये भूटान में रुपे कार्ड का दूसरा चरण शुरू किया।
- सिंगापुर के बाद रुपे कार्ड स्वीकार करने वाला भूटान दूसरा देश है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चाबहार परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स, चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा, वन बेल्ट वन रोड मेन्स के लिये:चाबहार बंदरगाह से संबंधित भारतीय हित और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों
हाल ही में ईरान के बंदरगाह और समुद्री संगठन (Port and Maritime Organisation) ने चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन हेतु लोकोमोटिव और सिग्नलिंग उपकरण उपलब्ध कराने हेतु भारत से अनुरोध किया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ईरान को इन उपकरणों की प्रत्यक्ष खरीद में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
- ईरान ने भारत से 150 मिलियन अमरीकी डालर क्रेडिट लाइन को भी सक्रिय करने के लिये कहा है जो वर्ष 2018 में ईरानी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान भारत द्वारा इसे प्रदान की गई थी।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- मई 2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत ईरान में चाबहार बंदरगाह का उपयोग करते हुए समुद्री परिवहन के लिये क्षेत्रीय हब के रूप में पारगमन और परिवहन गलियारा स्थापित करने की परिकल्पना की गई।
- अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिये एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग के रूप में चाबहार बंदरगाह से ज़ाहेदान (अफगानिस्तान सीमा) तक एक रेल लाइन का निर्माण भी इस परिवहन गलियारे का एक हिस्सा था।
- राज्य के स्वामित्व वाली भारतीय रेलवे निर्माण लिमिटेड (Indian Railways Construction Ltd.) ने सभी प्रकार की सेवाएँ, अधिरचना कार्य और वित्तपोषण (लगभग 1.6 बिलियन अमरीकी डॉलर) प्रदान करने के लिये ईरानी रेल मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किये।
इस परियोजना से भारत के अलग होने के कारण:
- ईरान का रुख:
- जुलाई 2020 में, ईरान ने परियोजना की शुरुआत और वित्त पोषण में देरी का हवाला देते हुए, स्वयं रेल लाइन निर्माण करने का फैसला किया।
- भारत का रुख:
- IRCON ने निर्माण-स्थान निरीक्षण एवं व्यवहार्यता रिपोर्ट को पूरा किया और ईरानी पक्ष द्वारा नोडल प्राधिकरण नियुक्त करने की प्रतीक्षा कर रहा था।
- यद्यपि इस परियोजना को संयुक्त राज्य अमेरिका से एक विशेष छूट प्राप्त है फिर भी भारत निर्माण कंपनी से समझौता करने में संकोच कर रहा है क्योंकि यह कंपनी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (Islamic Revolutionary Guard Corps) के साथ संबंध रखती है जो प्रतिबंधों के दायरे में आती है।
- IRGC एक हार्ड-लाइन बल है जो ईरान के नियमित सशस्त्र बलों के समानांतर अपनी सैन्य अवसंरचना को संचालित करता है। अप्रैल 2020 में, ईरान का पहला सैन्य उपग्रह नूर इसने ही लॉन्च किया था।
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के भय ने ईरान के फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र परियोजना में भारतीय हित को भी प्रभावित किया है।
भारत के लिये चाबहार पोर्ट का महत्व:
- व्यापार: इसे तीन भागीदार देशों के साथ-साथ अन्य मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के लिये सुनहरे अवसरों का प्रवेश द्वार माना जा रहा है।
- सुरक्षा: चीन वन बेल्ट वन रोड (One Belt One Road) परियोजना के तहत अपने स्वयं के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान में चीनी निवेश के साथ विकसित किये जा रहे ग्वादर बंदरगाह के प्रत्युत्तर के रूप में भी काम कर सकता है।
- कनेक्टिविटी: भविष्य में, चाबहार परियोजना और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (International North South Transport Corridor) रूस तथा यूरेशिया के साथ भारतीय संपर्क/कनेक्टिविटी का अनुकूलन कर एक दूसरे के पूरक होंगे।
परिदृश्यों का विकास:
- भारत और ईरान दोनों का ध्यान इस समय संयुक्त राज्य अमेरिका के चुनावी परिणामों पर है ताकि नए परिणाम आने के बाद शायद प्रतिबंधों में कुछ छूट दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से विकसित करने का अवसर दे सके।
- भारत, चीन और ईरान के बीच 25 साल के रणनीतिक सहयोग समझौते (400 बिलियन अमरीकी डॉलर) पर भी नज़र बनाए हुए है जिसमें चाबहार के अन्य हिस्सों (जिसमें मकरान तट के साथ एक मुक्त व्यापार क्षेत्र और तेल संरचना शामिल हैं) के विकास हेतु वित्तपोषण किया जा सकता है।
आगे की राह
- ऐसे विश्व में जहाँ कनेक्टिविटी को नई मुद्रा के रूप में देखा जाता है, भारत इस परियोजना को खो सकता है तथा यह परियोजना किसी दूसरे देश, विशेष रूप से चीन को मिल सकती है। इसलिये, भारत को इस क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के बीच एक संतुलित नीति पर काम करने की आवश्यकता है।
- एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, भारत केवल दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं रह सकता है और एक शांतिपूर्ण तरीके से विकसित पड़ोस (ईरान-अफगानिस्तान) न केवल व्यापार तथा ऊर्जा सुरक्षा के लिये बेहतर है, बल्कि एक महाशक्ति बनने की भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली
प्रिलिम्स के लियेभारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, नाविक मेन्स के लियेअंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन से मान्यता प्राप्त करने का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) की समुद्री सुरक्षा समिति (MSC) ने अपने 102वें सत्र के दौरान ‘भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली’ (IRNSS) को ‘विश्वव्यापी रेडियो नेविगेशन प्रणाली’ (WWRNS) के एक घटक के रूप में मान्यता दे दी है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष संस्था है, जो कि मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की सुरक्षा में सुधार करने एवं जहाज़ों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु उत्तरदायी है।
प्रमुख बिंदु
- इसके साथ ही भारत विश्व का चौथा ऐसा देश बन गया है, जिसके पास ‘विश्वव्यापी रेडियो नेविगेशन प्रणाली’ (WWRNS) के घटक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) से मान्यता प्राप्त एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है।
- IMO द्वारा मान्यता प्राप्त नेविगेशन प्रणाली वाले अन्य तीन देश संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस एवं चीन हैं।
महत्त्व
- IMO ने ‘भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली’ (IRNSS) को भारतीय जलक्षेत्र में वैकल्पिक नेविगेशन मॉड्यूल के रूप में स्वीकार कर लिया है। इससे पूर्व इस प्रणाली का उपयोग केवल प्रायोगिक आधार पर किया जा रहा था, किंतु अब भारतीय जलक्षेत्र में सभी व्यापारिक जहाज़ और मछली पकड़ने वाले छोटे जहाज़ इस प्रणाली का उपयोग कर सकेंगे।
- भारतीय का यह क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम अब हिंद महासागर में भारतीय तट सीमा से 1500 किलोमीटर तक ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (GPS) का स्थान ले सकता है। ज्ञात हो कि ‘भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली’ (IRNSS) एक क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली है न कि वैश्विक नेविगेशन प्रणाली।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा मान्यता प्राप्त करने के बाद भारत का यह नेविगेशन सिस्टम भी अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) और रूस के ‘रूसी ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम’ (GLONASS) जैसी अत्याधुनिक नेविगेशन प्रणालियों की सूची में शामिल हो गया है। ध्यातव्य है कि अमेरिका का GPS विश्व में सबसे अधिक उपयोग होने वाला नेविगेशन सिस्टम है।
- इसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।
- भारतीय जलक्षेत्र में एक स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली के रूप में उपयोग होने के अलावा भारत की यह क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली रणनीतिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अन्य वैश्विक नेविगेशन प्रणालियों पर भारत की निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी।
अन्य महत्त्वपूर्ण नेविगेशन प्रणालियाँ
- अमेरिका का GPS: अमेरिका का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) एक उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणाली है, जिसमें 24 कक्षीय उपग्रह शामिल हैं। इसका संचालन अमेरिका की वायु सेना द्वारा किया जाता है।
- रूस का ग्लोनास (GLONASS): ग्लोनास (GLONASS) रूस का नेविगेशन सिस्टम है, जिसे अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) के समक्ष माना जाता है।
- चीन का बाइडू (BeiDou): बाइडू चीन का नेविगेशन सिस्टम है, जिसमें तीन अलग-अलग कक्षाओं (Orbits) में कुल 30 उपग्रह शामिल हैं।
- गैलीलियो (Galileo) यूरोपीय संघ (EU) का ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है।
‘भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली’ (IRNSS)
- IRNSS, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है।
- इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य भारत और उसके आस-पास के क्षेत्रों में विश्वसनीय पोज़ीशन, नेविगेशन और समय संबंधी सेवाएँ प्रदान करना है।
- IRNSS के कांस्टेलेशन को नाविक (NavIC) के नाम से जाना जाता है, यानी नाविक (NavIC) IRNSS के आठ उपग्रहों से मिलकर बना है।
- नाविक (NavIC) मुख्यतः दो प्रकार की सेवाएँ प्रदान करता है:
- मानक स्थिति निर्धारण सेवा (Standard Positioning Service-SPS) सभी आम उपयेागकर्त्ताओं को उपलब्ध होगी।
- प्रतिबंधित सेवा (RS) एक एन्क्रिप्टेड/कूटबद्ध सेवा है, जो केवल अधिकृत उपयोगकर्त्ताओं और संस्थाओं के लिये उपलब्ध है।
- अमेरिका के GPS, जिसमें 24 उपग्रह शामिल हैं, के विपरीत नाविक (NavIC) में 8 उपग्रह शामिल हैं और इसका क्षेत्राधिकार भारत तथा उसके आस-पास के क्षेत्रों में देश की सीमा से 1,500 किमी तक फैला हुआ है।
- ध्यातव्य है कि अधिक उपग्रहों वाली नेविगेशन प्रणाली अधिक सटीक जानकारी प्रदान करती है। हालाँकि GPS की तुलना में, जो कि 20-30 मीटर की स्थिति सटीकता प्रदान करता है, नाविक (NavIC) 20 मीटर तक स्थिति सटीकता प्रदान कर सकता है, क्योंकि अमेरिका का GPS एक वैश्विक नेविगेशन सिस्टम है और भारत का नाविक (NavIC) एक क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आंतरिक सुरक्षा
ब्रह्मोस मिसाइल का लैंड-अटैक संस्करण
प्रिलिम्स के लियेब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, वास्तविक नियंत्रण रेखा मेन्स के लियेब्रह्मोस मिसाइल का सामरिक महत्त्व |
क्यों समाचार में
हाल ही में, भारत ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के लैंड-अटैक संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
- अक्तूबर 2020 में भारतीय नौसेना ने अपने युद्धपोत INS चेन्नई से ब्रह्मोस मिसाइल का परीक्षण किया था, जिसने 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्य पर प्रहार करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था।\
प्रमुख बिंदु
नई लैंड-अटैक संस्करण की विशेषताएँ:
- मिसाइल की रेंज को 290 किमी. से 400 किमी. तक बढ़ाया गया है और इसकी गति को 2.8 मैक या ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक रखा गया है।
- परीक्षण "ऊपर से हमला" (Top-Attack) के रूप में किया गया था।
- ब्रह्मोस सहित अधिकांश आधुनिक मिसाइलों को टॉप-अटैक और डायरेक्ट अटैक मोड दोनों में फायर किया जा सकता है।
- टॉप-अटैक मोड में मिसाइल को लॉन्च के बाद तेज़ी से ऊपर जाने, एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने और फिर लक्ष्य के ऊपर गिरने की आवश्यकता होती है।
- डायरेक्ट अटैक मोड में मिसाइल सीधे ऊँचाई पर पहुँचती है औउर फिर सीधे लक्ष्य पर प्रहार करती है।
परीक्षण का महत्त्व:
- यह परीक्षण भारत की भूमि, समुद्र और वायु तीनों मार्गों से हमला करने की क्षमता का सामरिक प्रदर्शन है।
- भारत ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ लगे वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control) के कई रणनीतिक स्थानों पर बड़ी संख्या में ब्रह्मोस मिसाइलों तथा अन्य प्रमुख सैन्य उपकरणों की तैनाती की है।
- यह परीक्षण दुश्मन के महत्त्वपूर्ण ठिकानों को लक्षित करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
- पिछले कुछ महीनों में, भारत ने रुद्रम-1 नामक एक विकिरण-रोधी मिसाइल सहित कई अन्य मिसाइलों का भी परीक्षण किया है, जिन्हें वर्ष 2022 तक सेवा में शामिल करने की योजना है।
ब्रह्मोस मिसाइल:
- इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है। ब्रह्मोस मिसाइलों को ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा डिज़ाइन, विकसित और निर्मित किया गया है।
- ब्रह्मोस एयरोस्पेस एक संयुक्त उद्यम कंपनी है जिसकी स्थापना रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (The Defence Research and Development Organisation) और रूस की मशिनोस्ट्रोयेनिया (Mashinostroyenia) ने की है।
- यह मध्यम दूरी की सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है जिसे पनडुब्बियों, जहाज़ों, विमानों या ज़मीन से लॉन्च किया जा सकता है।
- क्रूज़ मिसाइल पृथ्वी की सतह के समानांतर चलते हैं और उनका निशाना बिल्कुल सटीक होता है।
- गति के आधार पर ऐसी मिसाइलों को उपध्वनिक/सबसोनिक (लगभग 0.8 मैक), पराध्वनिक/सुपरसोनिक (2-3 मैक) और अतिध्वनिक/हाइपरसोनिक (5 मैक से अधिक) क्रूज मिसाइलों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- यह विश्व की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है, साथ ही सबसे तेज़ क्रियाशील एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइल भी है।
- यह मिसाइल ‘दागो और भूल जाओ’ (Fire and Forget) के सिद्धांत पर कार्य करती है, अर्थात् इसे लॉन्च करने के बाद आगे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती है।
- इसकी वास्तविक रेंज 290 किलोमीटर है परंतु लड़ाकू विमान से दागे जाने पर यह लगभग 400 किलोमीटर की दूरी तक पहुँच जाती है। भविष्य में इसे 600 किलोमीटर तक बढ़ाने की योजना है।
- ब्रह्मोस के विभिन्न संस्करण, जिनमें भूमि, युद्धपोत, पनडुब्बी और सुखोई -30 लड़ाकू जेट शामिल हैं, जिनको को पहले ही विकसित किया जा चुका है तथा अतीत में इसका सफल परीक्षण किया जा चुका है।
- 5 मैक की गति तक पहुँचने में सक्षम मिसाइल का हाइपरसोनिक संस्करण विकासशील है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत द्वारा अफगानिस्तान को सहायता
प्रिलिम्स के लिये:अफगानिस्तान-2020 सम्मेलन, अमेरिका और तालिबान शांति समझौता मेन्स के लिये:अफगानिस्तान को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव, अमेरिका और तालिबान शांति समझौते का भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘अफगानिस्तान-2020 सम्मेलन’ के अवसर पर भारत ने अफगानिस्तान में विकास कार्यों के लिये 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लगभग 150 परियोजनाओं की घोषणा की है।
- इस सम्मेलन में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के अधिकारियों के साथ विश्व के अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
- गौरतलब है कि अमेरिका ने 20 जनवरी, 2021 तक अफगानिस्तान में तैनात अपने सैनिकों की संख्या को 2500 तक सीमित करने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु:
भारत की वर्तमान सहायता:
- भारत द्वारा उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं के चौथे चरण की शुरुआत की जाएगी, जिसमें 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लगभग 150 परियोजनाएँ शामिल हैं।
- भारत ने अफगानिस्तान के साथ शहतूत बांध (Shahtoot Dam) के निर्माण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, गौरतलब है कि इस बांध के माध्यम से काबुल शहर के 20 लाख लोगों को स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी।
पूर्व में दी गई सहायता:
- अफगानिस्तान में भारत की विकास परियोजनाएँ पाँच स्तंभों पर आधारित रही हैं:
- बड़ी अवसंरचना परियोजनाएँ।
- मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण।
- मानवीय सहायता।
- उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाएँ।
- हवाई और भू-संपर्क के माध्यम से व्यापार और निवेश में वृद्धि।
- वर्ष 2002 से लेकर अब तक भारत ने अफगानिस्तान के विकास और पुनर्निर्माण की दिशा में 3 बिलियन डॉलर (लगभग 2,200 करोड़ रुपए) खर्च किये हैं।
- अफगानिस्तान की स्थलरुद्ध भगौलिक स्थिति इसके विकास में सबसे बड़ी बाधा रही है, साथ ही पाकिस्तान द्वारा परागमन को बाधित किये जाने से यह स्थिति और भी बदतर हो गई है।
- भारत द्वारा ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को संपर्क का एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान किया गया है।
- महामारी सहयोग: COVID-19 महामारी की चुनौती से निपटने के लिये भारत द्वारा अफगानिस्तान को 20 टन दवाइयों और अन्य आवश्यक उपकरणों के साथ 75,000 टन गेहूँ की आपूर्ति की गई है।
भारत के दृष्टिकोण में बदलाव:
- ध्यातव्य है कि भारत द्वारा अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के दौरान (वर्ष 1996 से वर्ष 2001) कोई निवेश नहीं किया गया।
- परंतु वर्तमान में जब यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में तालिबान-अफगानिस्तान प्रमुख शक्ति बनकर उभर सकता है तो ऐसे समय में भारत द्वारा अफगानिस्तान में निवेश के निर्णय को इसके दृष्टिकोण में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
- भारत ने सितंबर 2020 में कतर की राजधानी दोहा में आयोजित अंतर-अफगान वार्ता के प्रारंभ समारोह में भी भाग लिया था, जहाँ तालिबान की 21 सदस्यीय टीम भी उपस्थित थी। यह अफगानिस्तान की राजनीतिक शक्ति संरचना और ज़मीनी वास्तविकता में हो रहे बदलाव को लेकर भारत की स्वीकार्यता को दर्शाता है।
अमेरिकी सैनिकों की संख्या में कटौती:
- ध्यातव्य है कि फरवरी 2020 में दोहा में अमेरिका और तालिबान ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
- इस समझौते के तहत अमेरिका ने अगले 14 महीनों के अंदर अफगानिस्तान में तैनात अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने और अफगान सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गए तालिबानी लड़ाकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की थी।
- इसके बदले में तालिबान ने आश्वासन दिया कि वह अफगानिस्तान को अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे अंतर्राष्ट्रीय ज़िहादी संगठनों द्वारा अपने बेस के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं देगा। इसकें साथ ही तालिबान ने अफगान सरकार के साथ सीधी बातचीत शुरू करने के लिये भी अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।
- ऐसे महत्त्वपूर्ण समय में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान को छोड़कर जाना न सिर्फ अफगान सैनिकों को आवश्यक सहयोग (विशेषकर वायुशक्ति) से वंचित करेगा बल्कि यह उनके मनोबल को भी प्रभावित करेगा।
- उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने अफगान सैनिकों को अगले चार वर्षों के लिये वित्त पोषण प्रदान करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- हालाँकि यह निर्णय अफगानिस्तान को एक अनिश्चित भविष्य की और अग्रसर करेगा क्योंकि इस बात की संभावनाएँ बहुत अधिक हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान देश की सत्ता को अपने हाथों में लेने का प्रयास करेगा।
- वर्ष 2001 में अफगानिस्तान में अमेरिकी हमले के बाद सत्ता से हटाए जाने के बाद से विदेशी लड़ाकों और अफगान सरकार दोनों के बीच संघर्ष जारी है।
- वर्तमान में देश के आधे से अधिक हिस्से पर तालिबान का अधिकार है और वह इसके पूरे हिस्से को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लिये संघर्ष कर रहा है।
- इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से तालिबान ने देशभर में 13000 से अधिक हमले किये हैं।
- अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UN Assistance Mission in Afghanistan-UMAMA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 के शुरुआती 9 महीनों में लगभग 6,000 अफगान नागरिकों की हत्या हुई है और इसमें से 45% हत्याएँ तालिबान के द्वारा की गई थी।
आगे की राह:
- अफगानिस्तान में हिंसा का बढ़ता स्तर एक बड़ी चिंता का विषय है। हालाँकि अनेक, चुनौतियों के बावजूद, दोनों पक्ष (सरकार के प्रतिनिधि तथा तालिबान) बातचीत की राह पर अग्रसर हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि दोनों पक्ष एक प्रारंभिक सफलता तक पहुँच भी गए हैं।
- भारत ने अफगानिस्तान में तत्काल एवं व्यापक युद्ध विराम का आह्वान किया है और भारत हमेशा से इस बात का समर्थक रहा है कि यह शांति प्रक्रिया अफगान के नेतृत्त्व, अफगान के स्वामित्त्व और अफगान के नियंत्रण में होनी चाहिये।
- भारत एक शांतिपूर्ण, समृद्ध, संप्रभु, लोकतांत्रिक और एकजुट अफगानिस्तान की दिशा में काम करने हेतु अफगानिस्तान के लोगों तथा विश्व समुदाय के साथ हाथ-से-हाथ मिलाकर चलने के लिये तत्त्पर है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
43 मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लियेसूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र मेन्स के लियेएप्स को प्रतिबंधित करने के कारण और इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने शॉपिंग वेबसाइट अलीएक्सप्रेस (AliExpress) समेत 43 नए मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें अधिकतर एप्स का संबंध चीन से है।
- इसके अलावा सरकार पहले से ही कुल 177 एप्स को प्रतिबंधित कर चुकी है।
प्रमुख बिंदु
- इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT अधिनियम), 2000 की धारा 69A के तहत इन मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगाया है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A को वर्ष 2008 में अधिनियम में संशोधन द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- अधिनियम की यह धारा केंद्र सरकार को किसी वेबसाइट या मोबाइल एप पर उपलब्ध किसी सूचना को अवरुद्ध करने की शक्ति प्रदान करती है।
- अधिनियम की धारा 69A के अनुसार, यदि कोई वेबसाइट अथवा एप भारत की रक्षा, उसकी संप्रभुता और अखंडता, अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों तथा सार्वजनिक व्यवस्था के प्रति खतरा उत्पन्न करता है तो भारत सरकार नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए उन पर प्रतिबंध लगा सकती है।
- इस अधिनियम के तहत किसी वेबसाइट और एप को प्रतिबंधित करने की विस्तृत प्रक्रिया सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना के उपयोग को अवरुद्ध करने की प्रक्रिया एवं सुरक्षा उपाय) नियम 2009 में सूचीबद्ध की गई है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A को वर्ष 2008 में अधिनियम में संशोधन द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
एप प्रतिबंध का कारण
- यह कार्यवाही उस इनपुट के आधार पर की गई है, जिसके मुताबिक ये एप्स ऐसी गतिविधियों में संलग्न थे, जो कि भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा तथा सार्वजनिक व्यवस्था के लिये नुकसानदायक हैं।
- सरकार को विभिन्न स्रोतों से एंड्रॉयड तथा आईओएस (iOS) प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कुछ मोबाइल एप्लिकेशन के दुरुपयोग और उपयोगकर्त्ताओं के डेटा को चोरी करने तथा उसे अनधिकृत तरीके से भारत के बाहर स्थित किसी अन्य सर्वर पर भेजने की शिकायतें मिल रही थीं।
- गृह मंत्रालय के अधिक भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने भी एप्स के दुरुपयोग के विरुद्ध एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
इस प्रतिबंध के निहितार्थ
- भारत और चीन के मध्य सीमा पर जारी तनाव के बीच इन एप्स पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय, भारत की ओर से स्पष्ट संदेश है कि वह अब चीन की ‘निबल एंड निगोशिएट पॉलिसी’ (Nibble and Negotiate Policy) का शिकार नहीं होगा तथा दोनों देशों के बीच मौजूद तनाव को लेकर चल रही वार्ता की शर्तों को नवीनीकृत करेगा।
- यह प्रतिबंध, 21वीं सदी में डिजिटल महाशक्ति बनने के लिये चीन के सबसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों में से एक को प्रभावित कर सकता है।
- यह प्रतिबंध भारतीय उद्यमियों को बाज़ार में नए अवसर प्रदान करेगा और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को सफल बनाने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
- ज्ञात हो कि शुरुआत में एप्स प्रतिबंधित करने के बाद सरकार ने भारतीय एप्लीकेशन डेवलपर्स और इनोवेटर्स को प्रोत्साहित करने के लिये ‘डिजिटल इंडिया आत्मनिर्भर एप इनोवेशन चैलेंज' लॉन्च किया था।
आगे की राह
- आज संपूर्ण विश्व यह मानता है कि आर्थिक विकास का अगला स्रोत डिजिटल अर्थव्यवस्था में निहित है और जो भी देश अपने इलेक्ट्रॉनिक आधारभूत ढाँचे का निर्माण करेगा, उसे दीर्घकाल में अन्य देशों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होगा।
- अतः यह आवश्यक है कि भारत द्वारा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्वदेशीकरण, अनुसंधान और विकास पर बल दिया जाए और डेटा संप्रभुता की अवधारणा को मूर्त रूप देने के लिये एक नियामक ढाँचा तैयार किया जाए।