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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 नवंबर, 2020

  • 20 Nov 2020
  • 5 min read

रुपे कार्ड (RuPay Card) 

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान में रुपे कार्ड (RuPay Card) के दूसरे चरण की शुरुआत की है, जिससे भूटान के कार्डधारक अब भारत में रुपे (RuPay) नेटवर्क का उपयोग कर सकेंगे। ध्यातव्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते वर्ष अगस्त माह में भूटान की राजकीय यात्रा के दौरान इस परियोजना के पहले चरण की शुरुआत की थी। रुपे कार्ड (RuPay Card) के पहले चरण के कार्यान्वयन के तहत भारत के नागरिक भूटान के ATM और प्वाइंट ऑफ सेल (PoS) मशीन के माध्यम से लेनदेन में सक्षम हो गए थे। अब दूसरे चरण के कार्यान्वयन से भूटान के कार्ड धारक भी रुपे (RuPay) नेटवर्क का लाभ प्राप्त कर सकेंगे। रुपे (RuPay) भारत में अपनी तरह का पहला घरेलू डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतान नेटवर्क है। रुपे (RuPay) नेटवर्क का विकास भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा किया गया है। इस नेटवर्क का उपयोग सिंगापुर, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और सऊदी अरब जैसे देशों में लेन-देन के लिये किया जा सकता है। जनवरी 2020 तक 600 मिलियन से अधिक रुपे कार्ड धारक थे।

विश्व बाल दिवस

दुनिया भर में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये प्रत्येक वर्ष 20 नवंबर को विश्व बाल दिवस (World Children’s Day) मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य विश्व में बच्चों के अधिकारों और उनके कल्याण के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना है।  यह सबसे पहले वर्ष 1954 में मनाया गया था। ज्ञात हो कि इसी दिन वर्ष 1959 में बाल अधिकारों की घोषणा (Declaration of the Rights of the Child) को अपनाया था। साथ ही इसी तिथि को वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों पर अभिसमय (Convention on the Rights of the Child) को भी अपनाया था। भारत ने वर्ष 1992 में इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किये थे और भारत में प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि भारत ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिनमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान और पोषण अभियान आदि प्रमुख है।

रोहिंग्‍या संकट को लेकर संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पारित

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) ने रोहिंग्‍या संकट के तत्‍काल समाधान के लिये एक प्रस्‍ताव पारित किया है। यह प्रस्ताव इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और यूरोपीय संघ (EU) द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया गया था, जिसे संयुक्त राष्ट्र में कुल 132 देशों का समर्थन प्राप्त हुआ। वहीं 9 देशों ने इस प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया, जबकि 31 देशों ने प्रस्ताव को लेकर हुए मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया। इस प्रस्ताव में म्याँमार से कहा गया है कि वह रोहिंग्या संकट के मूल कारणों का समाधान करे, जिसमें अल्पसंख्यक रोहिंग्याओं को नागरिकता देना और सकारात्‍मक माहौल तैयार करके उनकी सकुशल तथा स्‍थाई घर वापसी को सुनिश्चित करना शामिल है। इस प्रस्‍ताव में विस्थापित रोहिंग्‍याओं को मानवीय आधार पर शरण देने के लिये बांग्‍लादेश सरकार की प्रशंसा भी की गई है। प्रस्‍ताव में बाकी देशों से अनुरोध किया गया है कि वे बांग्लादेश को उसके इस मानवीय प्रयास में सहायता दें। दरअसल म्याँमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है, जबकि रोहिंग्याओं को अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। हालाँकि लंबे समय से वे म्याँमार के रखाइन प्रांत में रहते आ रहे हैं। इसी धार्मिक बुनावट के कारण प्रायः रोहिंग्याओं और बौद्धों के बीच संघर्ष होता रहता है, और यही इस संकट का मुख्य कारण भी है।

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