अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-भूटान पर्यावरणीय समझौता
- 06 Jun 2020
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प्रीलिम्स के लिये:समझौते के मुख्य प्रावधान मेन्स के लिये:भारत-भूटान संबंधों पर इस समझौते का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार द्वारा भारत एवं भूटान के मध्य पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर को मंज़ूरी दी गई है।
प्रमुख बिंदु:
- यह समझौता हस्ताक्षर करने की तारीख से 10 वर्षों तक के लिये लागू होगा।
- दोनो देशों के द्विपक्षीय हित तथा पारस्परिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इस समझौते में वायु, अपशिष्ट, रासायनिक प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
- यह समझौता दोनों देशों में लागू कानूनों तथा कानूनी प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इक्विटी, पारस्परिकता तथा पारस्परिक लाभों के आधार पर दोनों देशों को पर्यावरण के संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में निकट और दीर्घकालिक सहयोग को स्थापित और संवर्द्धित करने में सक्षम है ।
समझौते की पृष्ठभूमि:
- 11 मार्च, 2013 को भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) और भूटान सरकार के राष्ट्रीय पर्यावरण आयोग (National Environment Commission- NEC) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- पूर्व में लागू इस समझौते की अवधि 10 मार्च, 2016 को समाप्त हो गई थी अतः इसके पूर्व के समझौता ज्ञापनों के लाभों को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग और समन्वय को जारी रखने का निर्णय लिया गया है।
बैठक की व्यवस्था :
- प्रस्तावित समझौते के वित्तीय निहितार्थ द्विपक्षीय बैठकों/संयुक्त कार्य समूह की बैठकों तक ही सीमित हैं।
- ये बैठकें भारत और भूटान में वैकल्पिक रूप से संपन्न की जाएगी।
प्रतिनिधिमंडल भेजने वाला पक्ष उनकी यात्रा लागत को वहन करेगा, जबकि अगवानी करने वाला पक्ष बैठकों और अन्य व्यवस्थाओं के आयोजन की लागत को वहन करेगा।
महत्त्व:
- इस समझौता ज्ञापन के तहत सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के माध्यम से अनुभवों, सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों और तकनीकी जानकारियों के आदान-प्रदान के साथ-साथ सतत् विकास को भी बढ़ावा मिलेग[
- यह समझौता पारस्परिक हितों को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों की संयुक्त परियोजनाओं के लिये एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है।
- दोनों देशों के भू- राजनीतिक एवं सामरिक संबंधों में और अधिक मज़बूती कायम होगी।