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डेली न्यूज़

  • 25 Mar, 2021
  • 51 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities & Exchange Board of India) ने मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशन (Market Infrastructure Institution) से व्यापार सहित अन्य महत्त्वपूर्ण प्रणालियों में व्यवधान के 45 मिनट के भीतर उनका परिचालन शुरू करने को कहा है।

  • यह निर्देश 24 फरवरी को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange) में एक तकनीकी खराबी की पृष्ठभूमि के विरुद्ध आया है, जिससे लगभग चार घंटे तक कारोबार रुका रहा।

प्रमुख बिंदु

सेबी के नवीनतम निर्देश:

  • MII के लिये नई रूपरेखा:
    • SEBI, मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशन (स्टॉक एक्सचेंज, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और डिपॉज़िटरी) के बिज़नेस कॉन्टिनिटी प्लान (Business Continuity Plan) और डिज़ास्टर रिकवरी (Disaster Recovery) के लिये एक नई रूपरेखा लेकर आया है।
    • व्यावसायिक निरंतरता (Business Continuity) और डिज़ास्टर रिकवरी निकट संबंधित हैं जो प्रतिकूल स्थिति में संगठन के संचालन को बनाए रखने में मदद करते हैं।
    • दिशा-निर्देश:
      • MII किसी भी  क्रिटिकल सिस्टम (Critical System) के विघटन की स्थिति में 30 मिनट के भीतर उसे 'आपदा' घोषित करेगा।
        • एक विनिमय या समाशोधन निगम के क्रिटिकल सिस्टम में व्यापार, जोखिम प्रबंधन, संपार्श्विक प्रबंधन, समाशोधन और निपटान तथा सूचकांक गणना शामिल होंगे।
        • एक डिपॉज़िटरी के क्रिटिकल सिस्टम में निपटान प्रक्रिया और अंतर-डिपॉज़िटरी ट्रांसफर सिस्टम का समर्थन करने वाली प्रणालियाँ शामिल होंगी।
      • MII को एक घटना को 'आपदा' घोषित करने के 45 मिनट के भीतर आपदा वसूली स्थलों पर जाने के लिये निर्देशित किया गया है।
        • डिज़ास्टर रिकवरी साइट एक ऐसी जगह है जहाँ एक कंपनी सुरक्षा उल्लंघन या प्राकृतिक आपदा के बाद अस्थायी रूप से स्थानांतरित हो सकती है।
        • यह सुनिश्चित करता है कि एक कंपनी तब तक संचालन जारी रख सकती है जब तक कि वह अपने सामान्य स्थान या नए स्थायी स्थान पर काम फिर से शुरू करने के लिये सुरक्षित न हो जाए।
        • मोबाइल और क्लाउड आधारित आपदा रिकवरी साइट्स तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
      • नए दिशा-निर्देशों को 90 दिनों के भीतर लागू किया जाना चाहिये।

    मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशन:

    • स्टॉक एक्सचेंज, डिपॉज़िटरी और समाशोधन निगम को सामूहिक रूप से मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशन प्रतिभूति के रूप में संदर्भित किया जाता है।
    • बिमल जालान समिति, 2010 के अनुसार, ये संस्थान देश के वित्तीय विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जो प्रतिभूति बाज़ार हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचे के रूप में काम करते हैं।
    • भारत में शेयर बाज़ार (Stock Exchange) एक ऐसे बाज़ार के रूप में कार्य करता है जहाँ स्टॉक, बॉण्ड और कमोडिटी जैसे वित्तीय दस्तावेवज़ों का कारोबार होता है।
    • डिपॉज़िटरी (Depository) संगठन, बैंक या संस्थाएँ हो सकती हैं जो प्रतिभूतियाँ रखती हैं और इसके व्यापार में सहायता करती हैं।
    • समाशोधन निगम (Clearing Corporation) एक स्टॉक एक्सचेंज से संबद्ध एक संगठन/इकाई है जिसका प्राथमिक उद्देश्य लेन-देन की पुष्टि, निपटान और वितरण की देख-रेख करना है।

    सेबी

    • यह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम (Securities and Exchange Board of India Act), 1992 के प्रावधानों के तहत 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।

    प्रमुख कार्य:

    • प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज़) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण।
    • प्रतिभूति बाज़ार (सिक्योरिटीज़ मार्केट) के विकास का उन्नयन तथा उसे विनियमित करना।

    नेशनल स्टॉक एक्सचेंज

    • नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (NSE) भारत का सबसे बड़ा वित्तीय बाज़ार है।
    • वर्ष 1992 में निगमित NSE एक परिष्कृत और इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार के रूप में विकसित हुआ, जो इक्विटी ट्रेडिंग वॉल्यूम (Equity Trading Volume) के लिहाज़ से दुनिया में चौथे स्थान पर था।
      • यह भारत का पहला पूरी तरह से स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सुविधा प्रदान करने वाला एक्सचेंज था।
      • NSE के पास भारत में सबसे बड़ा निजी क्षेत्र का नेटवर्क है।
    • NIFTY 50 नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड का प्रमुख सूचकांक है। यह सूचकांक ब्लू चिप कंपनियों, सबसे बड़ी और सबसे अधिक तरल भारतीय प्रतिभूतियों के पोर्टफोलियो व्यवहार को ट्रैक करता है। इसमें NSE पर सूचीबद्ध लगभग 1600 कंपनियों में से 50 शामिल हैं।

    स्रोत: द हिंदू


    अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    स्थायी सिंधु आयोग

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में भारत और पाकिस्तान के मध्य स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission- PIC) की 116वीं बैठक नई दिल्ली में संपन्न हुई।

    • पहले दिन की बैठक पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस (23 मार्च, 1940 के लाहौर संकल्प की स्मृति में ) के साथ संपन्न की गई।

    प्रमुख बिंदु:

    हाल में संपन्न बैठक के बारे में:

    • यह बैठक ढाई साल से अधिक अंतराल के बाद आयोजित की गई है, इस अंतराल के निम्नलिखित कारण हैं:
      • पुलवामा हमला (14 फरवरी, 2019), बालाकोट हवाई हमला (26 फरवरी, 2019)। 
      • अनुच्छेद 370 के तहत विशेष प्रावधानों का निरसन जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया था। 
      • सिंधु जल संधि 1960 के प्रावधानों के अनुसार, भारत की पाकल दुल और लोअर कलनई परियोजनाओं के तकनीकी पक्ष अर्थात् डिज़ाइन पर चर्चा की गई। 
      • भारत चेनाब की सहायक नदी मरुसुदर पर 1,000 मेगावाट की पाकल डल जल-विद्युत परियोजना (Pakal Dul Hydro Electric Project) का निर्माण कर रहा है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले में स्थित है।
      • दूसरी परियोजना लोअर कलनई (Lower Kalnai  Project) है जिसे चिनाब नदी पर विकसित किया जा रहा है।
      • दोनों देशों के मध्य संपन्न इस बैठक को पिछले महीने "नियंत्रण रेखा और अन्य सभी क्षेत्रों से संबंधित सभी समझौतों और युद्धविराम के सख्त पालन" पर सहमति के बाद एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है।

    स्थायी सिंधु आयोग के बारे में:

    • यह भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों का एक द्विपक्षीय आयोग है, जिसे सिंधु जल संधि (वर्ष 1960 ) के कार्यान्वयन और लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु बनाया गया था।
    •  सिंधु जल संधि के अनुसार, आयोग वर्ष में कम-से-कम एक बार नियमित तौर पर भारत और पाकिस्तान में बैठक करेगा। 
    • आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं:
      • नदियों के जल के विकास से संबंधित दोनों देशों की सरकारों की किसी भी समस्या का अध्ययन करना और रिपोर्ट देना। 
      • जल बँटवारे को लेकर उत्पन्न विवादों का समाधान करना।
      • प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार नदियों का निरीक्षण करने हेतु एक सामान्य दौरा करना।
      • संधि के प्रावधानों के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक कदम उठाना।
    • PIC की 115वीं बैठक का आयोजन अगस्त 2018 में लाहौर में किया गया था।

    सिंधु जल संधि, 1960:

    • 19 सितंबर, 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए।
    • इस संधि में सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल का उपयोग दोनों देशों में किस प्रकार किया जाना है, इस बात का निर्धारण किया है।
    • संधि के अनुसार, पूर्वी नदियों (रावी, व्यास, सतलज) का जल भारत के लिये तथा पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का जल पाकिस्तान के लिये निर्धारित किया गया।
    • संधि के तहत भारत को पश्चिमी नदियों पर ‘रन ऑफ द रिवर’ (Run of the River- RoR) प्रोजेक्ट के तहत पनबिजली उत्पादन का अधिकार भी दिया गया है। इनके  डिज़ाइन और संचालन हेतु भारत को विशिष्ट मानदंडों का पालन करना आवश्यक है।
    • भारत ने लद्दाख में कई जल-विद्युत परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है जो इस प्रकार हैं:
      • दुरबुक श्योक (19 मेगावाट)
      • शंकू (18.5 मेगावाट),
      • निमू चिलिंग (24 मेगावाट)
      • रोंगडो (12 मेगावाट)
      • लेह में रतन नाग (10.5 मेगावाट) 
      • कारगिल में मैंगडुम सांगरा (19 मेगावाट), कारगिल हुंडरमैन (25 मेगावाट) और तमाशा (12 मेगावाट)।
    • यह पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर भारतीय पनबिजली परियोजनाओं के डिज़ाइन को लेकर चिंता व्यक्त करने का अधिकार भी देता है।
    • यह संधि विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने हेतु एक मध्यस्थता तंत्र भी प्रदान करती है।
    • बांँधों को लेकर भारत और पाकिस्तान के मध्य मतभेद रहे हैं। उदाहरण के लिये वर्ष 2010 में पाकिस्तान द्वारा सिंधु की एक छोटी सहायक नदी किशनगंगा (पाकिस्तान में नीलम के रूप में जाना जाता है) पर स्थापित भारत की 330 मेगावाट जल-विद्युत परियोजना को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही (International Arbitration Proceedings) शुरू की गई थी।
    • हालांँकि सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है, लेकिन चीन को इस संधि से बाहर रखा गया है। अगर चीन नदी के प्रवाह को रोकने या बदलने का फैसला करता है, तो यह भारत और पाकिस्तान दोनों को प्रभावित करेगा।
    • जलवायु परिवर्तन तिब्बत के पठार पर बर्फ पिघलने का कारण बन रहा है, अत:  वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि यह भविष्य में नदी को प्रभावित करेगा।

    लाहौर संकल्प: 

    • मार्च 1940 में लाहौर में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के एक ऐतिहासिक सत्र का आयोजन किया गया।
      • मोहम्मद अली जिन्ना ने बताया था कि हिंदू और मुसलमान किस प्रकार एक सौहार्दपूर्ण वातावरण में शांति के साथ नहीं रह सकते हैं।
    • 23 मार्च को उस सत्र में एक युगांतरकारी संकल्प लाया गया, जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप  के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों की मांग की गई थी और कहा गया कि उत्तर-पश्चिमी एवं पूर्वी क्षेत्रों में स्वतंत्र राज्यों का गठन किया जाना चाहिये। 
    • इन स्वतंत्र राज्यों को गोद लेने के स्थान के संबंध में संकल्प को मूल रूप से लाहौर संकल्प के रूप में संदर्भित किया गया था। हालाँकि हिंदू प्रेस ने इसे पाकिस्तान प्रस्ताव के रूप में परिभाषित किया। 
    • लाहौर संकल्प पूरे उप महाद्वीप की प्रशासनिक एकता के अंत की शुरुआत थी, जिसे मुस्लिम शासकों ने बनाया था और अंग्रेज़ों द्वारा जारी रखा गया था; इन क्षेत्रों को गोद लेने के आठ साल के भीतर उपमहाद्वीप का विभाजन हो गया और भारतीय नक्शे पर पाकिस्तान  एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में दिखाई दिया।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    जैव विविधता और पर्यावरण

    एक-सींग वाला गैंडा

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में एक-सींग वाले गैंडे (Greater One-Horned Rhino) के अवैध शिकार पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा दावा असम विधानसभा चुनाव में एक मुद्दा बन गया है।

    • असम वन विभाग के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में अवैध शिकार में 86% की कमी आई है।

    प्रमुख बिंदु

    एक-सींग वाले गैंडे के विषय में:

    • यह गैंडा की पाँच विभिन्न प्रजातियों में से एक है। अन्य चार हैं:
      • ब्लैक राइनो: अफ्रीका की दो छोटी प्रजातियों
      • व्हाइट राइनो: हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (In vitro Fertilization) प्रक्रिया का उपयोग करके इस राइनो का एक भ्रूण बनाया है।
      • जावा राइनो: यह IUCN की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically endangered) की श्रेणी में शामिल है।
      • सुमात्रन राइनो: यह हाल ही में मलेशिया से विलुप्त हो गई।
    • एशिया में राइनो की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं - एक-सींग वाला गैंडा, जावा और सुमात्रन।
    • भारत में केवल एक-सींग वाला गेंडा पाया जाता है।
    • एक-सींग वाला गैंडा (भारतीय गैंडा) राइनो प्रजाति में सबसे बड़ा है।
    • इस गैंडे की पहचान एकल काले सींग और त्वचा के सिलवटों के साथ भूरे-भूरे रंग से होती है।
    • ये मुख्य रूप से घास, पत्तियों, झाड़ियों और पेड़ों की शाखाओं, फल तथा जलीय पौधे की चराई (Graze) करते हैं।

    आवास:

    • यह प्रजाति इंडो-नेपाल तराई क्षेत्र , उत्तरी पश्चिम बंगाल और असम तक सीमित है।
    • भारत में गैंडे मुख्य रूप से असम, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं।
    • असम में चार संरक्षित क्षेत्रों (पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, राजीव गांधी ओरंग नेशनल पार्क, काजीरंगा नेशनल पार्क और मानस राष्ट्रीय उद्यान) में 2,640 गैंडे हैं।
      • इनमें से लगभग 2,400 गैंडे काजीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व (Kaziranga National Park and Tiger Reserve) में हैं।

    संरक्षण की स्थिति:

    • IUCN की रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)।
    • CITES: परिशिष्ट I (इसमें ‘लुप्तप्राय’ प्रजातियों को शामिल किया जाता है, जिनका व्यापार किये जाने के कारण और अधिक खतरा हो सकता है।)
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-I

    खतरा:

    • सींगों के लिये अवैध शिकार
    • पर्यावास की हानि
    • जनसंख्या घनत्व
    • घटती जेनेटिक विविधता

    भारत द्वारा संरक्षण के प्रयास:

    • राइनो रेंज़ के पाँच देशों (भारत, भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया और मलेशिया) ने इन प्रजातियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिये न्यू डेल्ही डिक्लेरेशन ऑन एशियन राइनोज़ (The New Delhi Declaration on Asian Rhinos), 2019  पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • हाल ही में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment Forest and Climate Change) ने देश में सभी गैंडों के डीएनए प्रोफाइल बनाने के लिये एक परियोजना शुरू की है।
    • राष्ट्रीय राइनो संरक्षण रणनीति: इस रणनीति को वर्ष 2019 में बड़े सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिये शुरू किया गया था।
    • भारतीय राइनो विज़न 2020: इसे वर्ष 2005 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य एक सींग वाले गैंडों की आबादी को वर्ष 2020 तक भारतीय राज्य असम के सात संरक्षित क्षेत्रों में 3,000 से अधिक करना था।

    काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान

    Asom

    अवस्थिति:

    • यह असम राज्य में स्थित है जो लगभग 42,996 हेक्टेयर में फैला हुआ है। यह ब्रह्मपुत्र घाटी के प्रमुख बाढ़ क्षेत्र में स्थित है।

    कानूनी दर्जा:

    • इस उद्यान को वर्ष 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
    • इसे वर्ष 2007 से बाघ आरक्षित घोषित किया गया है। इसमें 430 वर्ग किमी. के कोर के साथ 1,030 वर्ग किमी. का कुल बाघ आरक्षित क्षेत्र है।

    अंतर्राष्ट्रीय स्थिति:

    • इसे वर्ष 1985 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल की सूची  में शामिल किया गया था।
    • इसे बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।

    प्रमुख प्रजातियाँ:

    • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान पाँच बड़े जीवधारियों के लिये प्रसिद्ध है, जिनमें गैंडा, बाघ, हाथी, एशियाई जंगली भैंस तथा पूर्वी बारहसिंघा शामिल हैं|
    • वर्ष 2014 में हुई बाघ जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, काजीरंगा में अनुमानित 103 बाघ थे, जो उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (215) और कर्नाटक में बांदीपुर नेशनल पार्क (120) के बाद भारत में तीसरी सबसे बड़ी आबादी है।
    • काजीरंगा, भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले प्राइमेट्स (Primates) की 14 प्रजातियों में से 9 का घर है।

    असम के अन्य राष्ट्रीय उद्यान:

    स्रोत: द हिंदू


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    कौशल प्रमाणन

    चर्चा में क्यों?

    कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने सभी सरकारी विभागों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सरकारी अनुबंधों के तहत संलग्न श्रमिकों के पास उनके कौशल का आधिकारिक प्रमाणपत्र होना चाहिये।

    • प्रारंभ में वर्ष 2021-22 में कुल श्रमबल के 10 प्रतिशत हिस्से को प्रमाणित किया जा सकता है। वर्ष 2026-27 तक इसे उत्तरोत्तर 100 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा।

    प्रमुख बिंदु

    इस कदम की आवश्यकता

    • प्रशिक्षित कर्मचारियों का निम्न स्तर: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (2018-19) की मानें तो भारत के समग्र कार्यबल का केवल 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है।
      • भारत के कौशल नियामक, नेशनल काउंसिल फॉर वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग ने 4,000 भूमिकाओं के लिये कौशल प्रमाणन प्रणाली को मानकीकृत किया है, ताकि श्रम बाज़ार की संरचना को व्यापक पैमाने पर अकुशल से कुशल कार्यबल में बदला जा सके। 
    • अनौपचारिक और कम वेतन: प्रायः सरकारी अनुबंधकर्त्ता अपनी श्रम आवश्यकताओं के लिये कम वेतन वाले अनौपचारिक श्रमिकों पर निर्भर रहना पसंद करते हैं।
    • विरोधाभासी स्थिति: इसे एक विरोधाभासी स्थिति ही माना जाएगा, जिसमें सरकार अपने स्वयं की परियोजनाओं के लिये कुशल मानव शक्ति के उपयोग पर ज़ोर दिये बिना कार्यबल में कौशल को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही थी। 

    लाभ

    • कौशल मांग में वृद्धि: इस प्रकार के नियमन से स्वयं उद्योग और श्रम बल में कौशल को लेकर मांग बढ़ जाएगी, जहाँ कौशल के लिये भुगतान करना पसंद किया जाएगा, इससे फंडिंग के माध्यम से कौशल में बढ़ोतरी करने की सरकार की वर्तमान प्रणाली को समाप्त किया जा सकेगा।
    • वेतन में सुधार: इसके परिणामस्वरूप नियुक्त किये जाने वाले कुशल श्रम बल के वेतन में भी सुधार होगा।
    • प्रमाणित कौशल की संस्कृति का विकास: सरकार और सरकारी अनुबंध के तहत संलग्न श्रमबल की संख्या को देखते हुए यह नियम देश के युवाओं को कौशल आकांक्षी बनाएगा और प्रमाणित कौशल की संस्कृति के विस्तार में मदद करेगा।
    • उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार: इससे सरकारी अनुबंध कार्यों की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार होगा।

    चुनौतियाँ

    • अपर्याप्त प्रशिक्षण क्षमता: रोज़गार-संबद्ध प्रशिक्षितों की कमी भारत में बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
    • उद्योगों की सीमित भूमिका: अधिकांश प्रशिक्षण संस्थानों में उद्योग क्षेत्र की भूमिका सीमित होने के कारण प्रशिक्षण की गुणवत्ता तथा प्रशिक्षण के उपरांत रोज़गार एवं वेतन का स्तर निम्न बना हुआ है। 
    • विद्यार्थियों में कम आकर्षण: औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) और पॉलिटेक्निक जैसे कौशल संस्थानों में नामांकन, उनकी क्षमता की तुलना में काफी कम है। इसका मुख्य कारण कौशल विकास कार्यक्रमों को लेकर युवाओं में कम जागरूकता को माना जाता है।
    • नियोक्ताओं का रवैया: भारत में बेरोज़गारी का विषय केवल कौशल संबंधी समस्या नहीं है, बल्कि यह इनकी नियुक्ति के प्रति उद्योगपतियों और छोटे तथा मध्यम उद्यमों की अनिच्छा का भी प्रतिनिधित्व करता है।
      • बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के परिणामस्वरूप ऋण तक सीमित पहुँच के कारण निवेश की दर में गिरावट आई है और इस तरह रोज़गार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

    कौशल विकास से संबंधित कुछ योजनाएँ

    • औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (ITIs): वर्ष 1950 में संकल्पित औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (ITIs) का उद्देश्य भारत में मौजूदा प्रशिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार और आधुनिकीकरण करना है।
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): वर्ष 2015 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य भारत के युवाओं को मुफ्त कौशल प्रशिक्षण मार्ग प्रदान करना है।
      • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 3.0: इसे भारत के युवाओं को रोज़गारपरक कौशल में दक्ष बनाने हेतु वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया है, जिसमें 300 से अधिक कौशल पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।
    • पूर्व शिक्षण मान्यता (RPL) कार्यक्रम: व्यक्तियों द्वारा अधिगृहीत पूर्व कौशल को मान्यता प्रदान करने के लिये इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी। यह प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के प्रमुख घटकों में से एक है।
      • इसके तहत एक व्यक्ति का मूल्यांकन कौशल के एक निश्चित सेट के साथ या पूर्व शिक्षण अनुभव के आधार पर किया जाता है और उसे राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) के अनुसार ग्रेड के साथ प्रमाणित किया जाता है।
    • कौशल प्रबंधन और प्रशिक्षण केंद्र प्रत्‍यायन (SMART): यह देश के कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रशिक्षण केंद्रों के प्रत्यायन, ग्रेडिंग, संबद्धता और निरंतर निगरानी पर केंद्रित एक एकल विंडो आईटी एप्लीकेशन प्रदान करता है।
    • आजीविका संवर्द्धन हेतु कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (SANKALP) योजना: यह योजना अभिसरण एवं समन्वय के माध्यम से ज़िला-स्तरीय कौशल पारिस्थितिकी तंत्र पर ध्यान केंद्रित करती है। यह विश्व बैंक के सहयोग से शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
    • प्रधानमंत्री युवा योजना (युवा उद्यमिता विकास अभियान): वर्ष 2016 में शुरू किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य उद्यमिता शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से उद्यमिता विकास के लिये एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना; उद्यमशीलता समर्थन नेटवर्क की वकालत करना तथा आसान पहुँच सुनिश्चित करना और समावेशी विकास के लिये सामाजिक उद्यमों को बढ़ावा देना है।
    • कौशल्याचार्य पुरस्कार: इस पुरस्कार को कौशल प्रशिक्षकों द्वारा दिये गए योगदान को मान्यता देने और अधिक प्रशिक्षकों को कौशल भारत मिशन में शामिल होने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
    • ‘स्कीम फॉर हायर एजुकेशन यूथ इन अप्रेंटिसशिप एंड स्किल्स’ अथवा ‘श्रेयस’: इस योजना की शुरुआत राष्ट्रीय शिक्षुता प्रोत्साहन योजना (NAPS) के माध्यम से वर्ष 2019 सत्र के सामान्य स्नातकों को उद्योग शिक्षुता अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
    • आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण यानी ‘असीम’ (ASEEM) पोर्टल: वर्ष 2020 में शुरू किया गया यह पोर्टल कुशल लोगों को स्थायी आजीविका के अवसर खोजने में मदद करता है।

    स्रोत: द हिंदू


    सामाजिक न्याय

    राज्यों की आरक्षण कोटा सीमा

    चर्चा में क्यों?

    तमिलनाडु ने सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ को बताया कि आरक्षण का प्रतिशत अलग-अलग राज्यों की "व्यक्तिपरक या विषयगत  संतुष्टि" पर छोड़ देना चाहिये।

    • विषयगत संतुष्टि राज्य के विवेक को संदर्भित करती है कि वह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को चिह्नित करे और राज्य सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक प्रवेशों में उनके लिये आरक्षण का प्रतिशत तय करे।
    • इंद्रा साहनी केस (जिसे मंडल कमीशन केस के नाम भी जाना जाता है) में नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा कुल आरक्षण में 50% सीमा का प्रस्ताव रखा गया।

    प्रमुख बिंदु : 

    इंद्रा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ, 1992:

    • सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़े वर्गों के लिये 27% आरक्षण बरकरार रखते हुए उच्च जातियों के बीच आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों हेतु 10% सरकारी नौकरियों के लिये सरकारी अधिसूचना को लागू  किया
    • इसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय  ने इस सिद्धांत को भी बरक़रार रखा कि संयुक्त आरक्षण लाभार्थियों को भारत की जनसंख्या के 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।
    • इस निर्णय में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को भी महत्त्व दिया गया और प्रावधान किया गया कि पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण केवल प्रारंभिक नियुक्तियों तक सीमित होना चाहिये और पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिये।

    राज्यों द्वारा सीमा का उल्लंघन:

    राज्यों की चिंता :

    • तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य महाराष्ट्र की इस बात से सहमत थे कि इंदिरा साहनी मामले में दिये गए निर्णय द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा पत्थर की लकीर (स्थायी रूप से या दृढ़ता से स्थापित) नहीं थी अर्थात् ऐसा नहीं था कि इसमें परिवर्तन न किया जा सके।
    • वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी फैसले की फिर से समीक्षा करने की आवश्यकता थी क्योंकि 1992 में इस फैसले के बाद से ज़मीनी हालात बहुत बदल गए थे।
    • इसके अलावा 102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है, के बारे में विवाद है कि यह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समुदायों (SEBCs) को लाभ प्रदान करने के लिये राज्य विधायिकाओं के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है।
    • हालाँकि एक शपथ पत्र में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने कहा है कि SEBCs की पहचान करने की शक्ति केवल केंद्रीय सूची के संदर्भ में संसद के पास है और राज्यों के पास आरक्षण के लिये SEBCs की एक अलग सूची हो सकती है।

    संविधान एवं आरक्षण 

    • 77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1995: इंद्रा साहनी मामले में निर्णय दिया गया कि केवल प्रारंभिक नियुक्तियों में आरक्षण लागू होगा, पदोन्नति में नहीं।
    • हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 16 (4A) के अनुसार, राज्य को अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों की पदोन्नति के मामलों में उस स्थिति में आरक्षण के लिये प्रावधान करने का अधिकार है, यदि राज्य को लगता है कि राज्य के अधीन सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • 81वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2000: इसने अनुच्छेद 16 (4B) पेश किया जिसके अनुसार, किसी विशेष वर्ष में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के रिक्त पदों को अनुवर्ती वर्ष में भरने के लिये पृथक रखा जाएगा और उसे उस वर्ष की नियमित रिक्तियों में शामिल नहीं किया जाएगा। 
    • 85वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2001: यह अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के सरकारी कर्मचारियों हेतु पदोन्नति में आरक्षण के लिये ‘परिणामिक वरिष्ठता’ का प्रावधान करता है, इसे वर्ष 1995 से पूर्व प्रभाव के साथ लागू किया गया था।
    • 103वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2019: यह अधिनियम आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (Economically Weaker Section- EWS) के लिये 10% आरक्षण  का प्रावधान करता है |
    • अनुच्छेद 335:  संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों के लिये नियुक्तियाँ करने में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाए रखने के उद्देश्य से ध्यान रखा जाएगा|

    आगे की राह 

    • वर्ष 1992 के निर्णय की समीक्षा: सर्वोच्च न्यायालय को निश्चित रूप से विभिन्न निर्णयों के कारण उत्पन्न मुद्दों को हल करने के लिये 50% आरक्षण कोटे की सीमा पर विचार करना  चाहिये ।
    • संघीय संरचना को बनाए रखना: आरक्षण तय करते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि क्या विभिन्न समुदायों के लिये आरक्षण का प्रावधान करने वाली राज्य सरकारें संघीय ढाँचे का पालन कर रही हैं या इसे नष्ट कर रही हैं।
    • आरक्षण एवं योग्यता के बीच संतुलन: विभिन्न समुदायों को आरक्षण देते समय प्रशासन की दक्षता को भी ध्यान में रखना होगा।
    • सीमा से अधिक आरक्षण के कारण योग्यता की अनदेखी होगी जिससे संपूर्ण प्रशासन की दक्षता प्रभावित होगी।

    स्रोत: द हिंदू


    सामाजिक न्याय

    असमानता घटाने की प्रतिबद्धता सूचकांक 2020: ऑक्सफैम

    चर्चा में क्यों:

    हाल ही में श्रम और रोज़गार मंत्री ने लोकसभा को सूचित किया है कि ऑक्सफैम द्वारा जारी किये जाने वाले ‘असमानता घटाने की प्रतिबद्धता सूचकांक 2020’ (Commitment to Reducing Inequality (CRI) Index 2020) में स्पष्टता का अभाव था और उन्होंने चार नए श्रम कोड के प्रावधानों को ध्यान में नहीं रखा था।

    SAARC-Nations

    प्रमुख बिंदु:

    • इस सूचकांक के अंतर्गत देशों की रैंक को निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में उनकी नीतियों और कार्यों के मापन के आधार पर प्रदान किया जाता है तथा यह माना जाता है कि ये असमानता को कम करने से सीधे संबंधित हैं:
      • सार्वजनिक सेवाएँ
      • कराधान
      • श्रमिक अधिकार
      • नाइजीरिया, बहरीन और भारत, कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित देशों में शामिल थे, साथ ही महामारी के कारण उत्पन्न असमानता से निपटने में ये दुनिया के सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देश थे।

      सूचकांक में भारत की स्थिति:

      • शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, कराधान और श्रमिकों के अधिकारों से संबंधित सार्वजनिक सेवाओं के क्षेत्र में भारत सरकार की नीतियों और उनके क्रियान्वयन के आधार पर CRI सूचकांक में शामिल कुल 158 देशों में भारत की समग्र रैंकिंग 129 है।
      • कमज़ोर श्रम अधिकारों और संवेदनशील रोज़गार की उच्च घटनाओं के चलते वर्ष 2020 में भारत लेबर रैंकिंग में 151वें स्थान पर पहुँच गया है जबकि वर्ष 2018 में यह 141वें स्थान पर था।
        • अनौपचारिक क्षेत्र में सर्वाधिक पुरुषों की उपस्थिति उत्तर प्रदेश में 86.9% और महिलाओं की उपस्थिति आंध्र प्रदेश में 73.6% थी।
      • सार्वजनिक सेवाओं के मामले में यह 141वें स्थान पर है।
      • कराधान मानदंड पर भारत को 19वाँ स्थान दिया गया है।

      भारत के खराब प्रदर्शन के कारण:

      • कोविड में मज़दूरों का शोषण:
        • भारत में कई राज्य सरकारों ने दैनिक कार्य के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 करने और न्यूनतम वेतन कानून को स्थगित करने के लिये कोविड-19 महामारी का सहारा लिया है, जिससे लाखों गरीब श्रमिकों की आजीविका बर्बाद हो रही है, और अब वे भुखमरी का सामना कर रहे हैं।
      • स्वास्थ्य बजट में कमी:
        • भारत का स्वास्थ्य बजट को चौथा सबसे कम बजटीय आवंटन प्राप्त हुआ है एवं इसकी आधी आबादी की पहुँच प्रमुख आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक नहीं थी। 70% से अधिक स्वास्थ्य व्यय लोगों द्वारा स्वयं ही वहन किया जा रहा था।
      • अनौपचारिक रोज़गार:
        • अधिकांश श्रमिकों की आय न्यूनतम मज़दूरी के आधे से भी कम हैं। 71% मज़दूरों का कोई भी लिखित अनुबंध नहीं है, जबकि 54% को वैतनिक अवकाश की सुविधा नहीं  प्राप्त है।
        • भारत में कुल कार्यबल का लगभग 10% ही औपचारिक क्षेत्र से संबंधित है।

      अनुशंसाएँ:

      • कोरोनावायरस महामारी के संकट को देखते हुए सरकारों को सतत् विकास लक्ष्य-10 (SDG-10) के तहत राष्ट्रीय असमानता निवारण योजनाओं के हिस्से के रूप में प्रगतिशील व्यय, कराधान और श्रमिकों के वेतन एवं संरक्षण के प्रयासों में सुधार करना चाहिये।
      • SDG-10:
        • यह आय के साथ-साथ एक देश के भीतर उम्र, लिंग, दिव्यांगता, नस्ल, जातीयता, मूल, धर्म, आर्थिक या अन्य स्थिति के आधार पर आय में असमानताओं को कम करने का आह्वान करता है।
        • यह देशों के बीच ऐसी असमानताओं को भी कम करने का प्रयास करता है, जो प्रतिनिधित्व, प्रवास और विकास सहायता से संबंधित हैं।

      असमानता को कम करने हेतु कुछ वर्तमान भारतीय पहलें:

      ऑक्सफैम इंटरनेशनल:

      • ऑक्सफैम इंटरनेशनल वर्ष 1995 में गठित स्वतंत्र गैर-सरकारी संगठनों का एक समूह है।
        • ‘ऑक्सफैम’ नाम ‘ऑक्सफोर्ड कमेटी फॉर फेमिन रिलीफ’ से लिया गया है, इसकी स्थापना 1942 में ब्रिटेन में की गई थी
          • इस समूह ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ग्रीस में भूख से मर रही महिलाओं और बच्चों को भोजन की आपूर्ति हेतु एक अभियान चलाया।
          • इसका उद्देश्य वैश्विक गरीबी और अन्याय को कम करने के लिये दक्षता में वृद्धि करना और उसे अधिक-से-अधिक प्रभावी बनाना है।
          • ‘ऑक्सफैम इंटरनेशनल’ का सचिवालय नैरोबी, केन्या में स्थित है।

        अन्य रिपोर्ट:

        • जनवरी 2021 में ऑक्सफैम द्वारा जारी वैश्विक असमानता रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि भारत की सबसे अमीर 1% आबादी के पास निचले स्तर के 70% लोगों की संपत्ति से चार गुना से अधिक संपत्ति है।
        • जनवरी 2021 में वायरस असमानता रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि कोविड महामारी ने भारत एवं दुनिया भर में मौजूदा असमानताओं को और अधिक बढ़ाया है।

        स्रोत- द हिंदू


        भारतीय इतिहास

        डॉ. राम मनोहर लोहिया

        चर्चा में क्यों? 

         23 मार्च, 2021 को डॉ. राम मनोहर लोहिया की 111वीं जयंती मनाई गई

        Ram-Manohar-Lohiya

        प्रमुख बिंदु:

        • जन्म : इनका जन्म 23 मार्च, 1910 को अकबरपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था

        संक्षिप्त परिचय :

        • भारतीय राजनीतिज्ञ व कर्मठ कार्यकर्त्ता के रूप में डॉ. लोहिया ने समाजवादी राजनीति और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।
        • उन्होंने अपना अधिकांश जीवन भारतीय समाजवाद के विकास के माध्यम से अन्याय के खिलाफ़ लड़ने के  लिये समर्पित किया
          • समाजवाद राजनीतिक विचारों के एक समूह को संदर्भित करता है, जो औद्योगिक पूंजीगत अर्थव्यवस्था में मौजूद और इसके द्वारा उत्पन्न असमानताओं की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया।

          समाजवाद पर  लोहिया का विचार:

          • लोहिया ने ऐसी पाँच प्रकार की असमानताओं को चिह्नित किया  जिनसे एक साथ लड़ने की आवश्यकता है:
            • स्त्री और पुरुष के बीच असमानता ,
            • त्वचा के रंग के आधार पर असमानता ,
            • जाति आधारित असमानता,
            • कुछ देशों द्वारा दूसरे देशों पर औपनिवेशिक शासन,
            • आर्थिक असमानता।
          • इन पाँच असमानताओं के खिलाफ उनके  संघर्ष ने पाँच क्रांतियों का गठन किया। इस सूची में उनके द्वारा दो और क्रांतियों को जोड़ा गया:
            • नागरिक स्वतंत्रता के लिये क्रांति (निजी जीवन पर अन्यायपूर्ण अतिक्रमण के खिलाफ) ।
            • सत्याग्रह के पक्ष में हथियारों का  त्याग कर अहिंसा के मार्ग का अनुसरण करने के  लिये  क्रांति।
          • ये सात क्रांतियाँ या सप्त क्रांति लोहिया के लिये समाजवाद का आदर्श थीं।

          शिक्षा:

          • उन्होंने वर्ष 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि तथा वर्ष 1932 में  बर्लिन विश्वविद्यालय (जहाँ  उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति का अध्ययन किया) से मानद (डॉक्टरेट) की उपाधि प्राप्त की।

          स्वतंत्रता-पूर्व उनकी भूमिका

          • वर्ष 1934 में लोहिया भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (Indian National Congress) के अंदर एक वामपंथी समूह कॉन्ग्रेस-सोशलिस्ट पार्टी (Congress Socialist Party- CSP) में सक्रिय रूप से शामिल हो गए।
          • उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) में ग्रेट ब्रिटेन द्वारा भारत को शामिल करने के निर्णय का विरोध किया और वर्ष 1939 तथा वर्ष 1940 में ब्रिटिश विरोधी टिप्पणी करने के लिये गिरफ्तार किये गए।
          • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिये एक स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया। लोहिया ने अन्य CSP नेताओं (जैसे कि जय प्रकाश नारायण) के साथ भूमिगत रहकर  वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के लिये समर्थन जुटाया। ऐसी प्रतिरोधी गतिविधियों के लिये उन्हें 1944-46 तक फिर से जेल में डाल दिया गया।

          स्वतंत्रता के बाद की भूमिका:

          • वर्ष 1948 में लोहिया एवं अन्य CSP सदस्यों ने कॉन्ग्रेस की सदस्यता छोड़ दी।
          • वर्ष 1952 में वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (Praja Socialist Party) के सदस्य बने और कुछ समय के लिये इसके महासचिव के रूप में कार्य किया किंतु पार्टी के भीतर मतभेदों के कारण वर्ष 1955 में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
          • वर्ष 1955 में लोहिया ने एक नई सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की जिसके वे अध्यक्ष बने और साथ ही इसकी पत्रिका मैनकाइंड (Mankind) का संपादन भी किया। 
            • उन्होंने एक पार्टी नेता के तौर पर विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक सुधारों की वकालत की जिसमें जाति व्यवस्था का उन्मूलन, भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता और नागरिक स्वतंत्रता का मज़बूती से संरक्षण शामिल है।
          • वर्ष 1963 में लोहिया लोकसभा के लिये चुने गए , जहाँ उन्हें सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना करने के लिये जाना गया।
          • उनके कुछ प्रमुख लेखन कार्यों में शामिल हैं: व्हील ऑफ हिस्ट्री (Wheel of History), मार्क्स (Marx), गांधी और समाजवाद (Gandhi and Socialism), भारत विभाजन के दोषी पुरुष (Guilty Men of India’s Partition) आदि।

          मृत्यु : 12 अक्तूबर 1967 । 

          स्रोत : पीआईबी


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