डेली न्यूज़ (24 Dec, 2021)



कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

विभिन्न राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानून, धर्म की स्वतंत्रता पर संवैधानिक प्रावधान, संविधान का अनुच्छेद 21

मेन्स के लिये:

धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का कर्नाटक संरक्षण विधेयक, 2021, धर्मांतरण विरोधी कानून और संबंधित मुद्दे, संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के फैसले

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक, 2021 कर्नाटक राज्य विधानसभा में पेश किया गया। यह विधेयक गलत बयानी, ज़बरदस्ती, धोखाधड़ी, लालच या शादी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण पर रोक लगाता है।

  • अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे अन्य राज्यों ने भी धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने वाले कानून पारित किये हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • विधेयक के मुख्य प्रावधान :
    • दंडात्मक प्रावधान: धर्मांतरण एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है।
      • कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों हेतु तीन से पाँच वर्ष के कारावास की सज़ा और 25,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है, वहीं नाबालिगों, महिलाओं और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों के व्यक्तियों को ज़बरन धर्म परिवर्तित करने हेतु बाध्य करने पर 3 से 10 साल तक की जेल तथा 50,000 रुपए का जुर्माना होगा। 
    • लोकस स्टैंडी लागू नहीं होता: प्रस्तावित कानून के अनुसार, धर्मांतरण की शिकायत परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों या संबंधित संस्था में किसी भी व्यक्ति द्वारा दर्ज की जा सकती है।
    • छूट: विधेयक उस व्यक्ति के मामले में जो कि "तत्काल अपने पूर्व धर्म में पुन: धर्मांतरित हो जाता है", छूट प्रदान करता है क्योंकि उसे "इस अधिनियम के तहत धर्मांतरण नहीं माना जाएगा"।
    • इच्छुक व्यक्ति के लिये प्रावधान: कानून लागू होने के बाद कोई भी व्यक्ति जो दूसरे धर्म में धर्मांतरित होने का इरादा रखता है, उसे कम-से-कम 30 दिन पहले ज़िला मजिस्ट्रेट को सूचित करना होगा।
    • इसके बाद धर्मांतरण की वास्तविक मंशा के पीछे के कारण को जानने के लिये पुलिस के माध्यम से ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा जांच की जाएगी।
    • ज़िला मजिस्ट्रेट को सूचित न करने पर धर्मांतरण को अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून:
    • संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद-25 के तहत भारतीय संविधान धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है तथा सभी धर्म के वर्गों को अपने धर्म के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है; हालाँकि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
      • हालाँकि कोई भी व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों को ज़बरन लागू नहीं करेगा और परिणामस्वरूप व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।
    • मौजूदा कानून: धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है।
      • हालाँकि वर्ष 1954 के बाद से कई मौकों पर धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने हेतु संसद में निजी विधेयक पेश किये गए हैं।
      • इसके अलावा वर्ष 2015 में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा था कि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी शक्ति नहीं है।
      • वर्षों से कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने हेतु 'धार्मिक स्वतंत्रता' संबंधी कानून बनाए हैं।
  • धर्मांतरण विरोधी कानूनों से संबद्ध मुद्दे:
    • अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली: गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन जैसी अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली इसके दुरुपयोग हेतु एक गंभीर अवसर प्रस्तुत करती है।
      • ये काफी अधिक अस्पष्ट और व्यापक हैं, जो धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण से परे भी कई विषयों को कवर करती हैं।
    • अल्पसंख्यकों का विरोध: एक अन्य मुद्दा यह है कि वर्तमान धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु धर्मांतरण के निषेध पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
      • हालाँकि धर्मांतरण निषेधात्मक कानून द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली व्यापक भाषा का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और भेदभाव करने के लिये किया जा सकता है।
    • धर्मनिरपेक्षता विरोधी: ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और हमारे समाज के आंतरिक मूल्यों और कानूनी व्यवस्था की अंतर्राष्ट्रीय धारणा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
  • विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय:
    • वर्ष 2017 का हादिया मामला: 
      • हादिया मामले में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘अपनी पसंद के कपड़े पहनने, भोजन करने, विचार या विचारधाराओं और प्रेम तथा जीवनसाथी के चुनाव का मामला किसी व्यक्ति की पहचान के केंद्रीय पहलुओं में से एक है।
      • ऐसे मामलों में न तो राज्य और न ही कानून किसी व्यक्ति को जीवन साथी के चुनाव के बारे में कोई आदेश दे सकते हैं या न ही वे ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिये किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं।  
      • अपनी पसंद के साथी को चुनना या उसके साथ रहने का अधिकार नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। (अनुच्छेद-21)
    • के.एस. पुत्तुस्वामी निर्णय (वर्ष 2017): 
      •  किसी व्यक्ति की स्वायत्तता से आशय जीवन के महत्त्वपूर्ण मामलों में उसकी निर्णय लेने की क्षमता से है। 
    • अन्य निर्णय:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह स्वीकार किया है कि जीवन साथी के चयन के मामले में एक वयस्क नागरिक के अधिकार पर राज्य और न्यायालयों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है यानी सरकार अथवा न्यायालय द्वारा इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।
      • सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में माना है कि जीवन साथी चुनने के वयस्क के पूर्ण अधिकार पर आस्था, राज्य और अदालतों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
      • भारत एक ‘स्वतंत्र और गणतांत्रिक राष्ट्र’ है तथा एक वयस्क के प्रेम एवं विवाह के अधिकार में राज्य का हस्तक्षेप व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। 
      • विवाह जैसे मामले किसी व्यक्ति की निजता के अंतर्गत आते हैं, विवाह अथवा उसके बाहर जीवन साथी के चुनाव का निर्णय व्यक्ति के ‘व्यक्तित्व और पहचान’ का हिस्सा है।
      • किसी व्यक्ति के जीवन साथी चुनने का पूर्ण अधिकार कम-से-कम धर्म/आस्था से प्रभावित नहीं होता है।

आगे की राह 

ऐसे कानूनों को लागू करने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हों और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचती हो; ऐसे कानूनों के मामले में स्वतंत्रता और दुर्भावनापूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत-म्याँमार

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-म्याँमार सहयोग, कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट परियोजना, रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम, सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

भारत के लिये म्याँमार का महत्त्व, म्याँमार में तख्तापलट और भारत के लिये इसके निहितार्थ, एक्ट ईस्ट नीति, भारत की "पड़ोस पहले" नीति।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत द्वारा पड़ोसी देश (म्याँमार) को  'मेड इन इंडिया' कोरोनावायरस टीकों की 10 लाख खुराक और निरंतर मानवीय सहायता के हिस्से के रूप में 10,000 टन चावल और गेहूंँ का अनुदान प्रदान किया गया है।

  • 1 फरवरी, 2021 को तख्तापलट में म्याँमार की सेना द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई आंग सान सू की सरकार को अपदस्थ करने के बाद से किसी भारतीय विदेश सचिव की म्याँमार की यह पहली यात्रा थी।

Myanmar

प्रमुख बिंदु 

  • भारतीय विदेश मंत्री द्वारा म्याँमार में "जल्द-से-जल्द" "लोकतंत्र की वापसी", दोनों देशों के मध्य राजनीतिक कैदियों की "मुक्ति" का आह्वान किया गया। बातचीत के माध्यम से मुद्दों का समाधान और सभी प्रकार की हिंसा को पूर्ण रूप से समाप्त करने की बात की गई।
  • आसियान पहल के लिये भारत के मज़बूत और लगातार समर्थन की पुष्टि की गई तथा आशा व्यक्त की कि पांँच सूत्रीय सहमति के आधार पर इस दिशा में व्यावहारिक और रचनात्मक तरीके से प्रगति की जाएगी।
    • आसियान के पांँच सूत्रीय सहमति के प्रति सर्वसम्मति व्यक्त करते हुए म्याँमार में हिंसा को तत्काल समाप्त करने की बात की गई तथा सभी पक्षों से संयम बरतने को कहा गया, लोगों के हित में शांतिपूर्ण समाधान तलाशने के लिये सभी संबंधित पक्षों के बीच रचनात्मक बातचीत शुरू करने पर भो सहमति व्यक्त की गई।
  • भारत-म्याँमार सीमा क्षेत्रों के साथ-साथ व्यक्ति-केंद्रित सामाजिक-आर्थिक विकास परियोजनाओं के लिये  भारत के निरंतर समर्थन से कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट परियोजना और त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी परिचालित कनेक्टिविटी पहलों के शीघ्र कार्यान्वयन हेतु भारत की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
  • म्याँमार के लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए रखाइन राज्य विकास कार्यक्रम और सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम के तहत परियोजनाओं को जारी रखने के लिये भारत की प्रतिबद्धता दोहराई गई।
  • इस बात पर ज़ोर दिया गया कि म्याँमार में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होने पर उत्तर पूर्व के राज्यों में भी शांति और सुरक्षा प्रभावित होती है।
    • हाल के दिनों में सिर्फ रोहिंग्या ही नहीं हैं जिन्होंने म्याँमार से भारत में घुसने की कोशिश की है। रिपोर्टों के अनुसार, म्याँमार की सेना में सेवारत पुलिसकर्मी और देश छोड़कर भागे अन्य लोगों द्वारा मिज़ोरम, मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में शरण ली गई है।

भारत-म्याँमार संबंध

  • भूमिका: 
    • भारत और म्याँमार के संबंध आधिकारिक तौर पर वर्ष 1951 में मैत्री संधि पर हस्ताक्षर के बाद शुरू हुए, इसके बाद वर्ष 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की यात्रा के दौरान अधिक सार्थक संबंधों की नींव रखी गई।
  • बहुआयामी संबंध:
    • बंगाल की खाड़ी के साथ एक लंबी भौगोलिक और समुद्री सीमा साझा करने के अलावा भारत और म्याँमार के बीच पारंपरिक रूप से सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, जातीय और धार्मिक संबंधों में बहुत कुछ समानता है।
  • म्याँमार की भू-सामरिक स्थिति: 
    • म्याँमार भारत के लिये भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दक्षिण-पूर्व एशिया के केंद्र में स्थित है।
    • म्याँमार एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई देश है जो उत्तर-पूर्वी भारत के साथ लगभग 1,624 किलोमीटर की थल सीमा साझा करता है।
    • दोनों देश बंगाल की खाड़ी में 725 किलोमीटर की समुद्री सीमा भी साझा करते हैं।
  • दो विदेश नीति सिद्धांतों का संगम:
    • म्याँमार एकमात्र ऐसा देश है जो भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीतिऔर "एक्ट ईस्ट" नीति के केंद्र में है।
    • भारत-प्रशांत क्षेत्रीय कूटनीति के संदर्भ में भारत के लिये म्याँमार एक महत्त्वपूर्ण देश है और दक्षिण एशिया व दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने के लिये एक भूमि पुल के रूप में कार्य करता है।
  • चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा: 
    • यदि भारत एशिया में एक मुखर क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाहता है, तो इसे ऐसी नीतियों के विकास की दिशा में काम करना होगा जो पड़ोसी देशों के साथ इसके संबंधों को बेहतर और मज़बूत बनाने में सहायक हों।
    • हालाँकि इस नीति के कार्यान्वयन में चीन एक बड़ी बाधा है, क्योंकि चीन का लक्ष्य भारत के पड़ोसियों पर इसके प्रभुत्व को समाप्त करना है। ऐसे में भारत और चीन दोनों ही म्याँमार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिये एक अप्रत्यक्ष मुकाबला कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये हिंद महासागर हेतु स्थापित अपनी ‘सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन’ या सागर (SAGAR) नीति के तहत भारत ने म्याँमार के रखाईन प्रांत में सित्वे बंदरगाह को विकसित किया है।   
    • ‘सित्वे’ (Sittwe) बंदरगाह को म्याँमार में चीन समर्थित ‘क्याउक्प्यू’ (Kyaukpyu) बंदरगाह के लिये भारत की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, गौरतलब है कि क्याउक्प्यू बंदरगाह का उद्देश्य रखाईन प्रांत में चीन की भू-रणनीतिक पकड़ को मज़बूत करना है।
  • भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण:
    • पूर्वोत्तर भारत के राज्य वामपंथी उग्रवाद और मादक पदार्थों के व्यापार मार्गों (स्वर्णिम त्रिभुज) से प्रभावित हैं।
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये भारत और म्याँमार की सेनाओं द्वारा ऑपरेशन सनशाइन जैसे कई संयुक्त सैन्य अभियान संचालित किये गए हैं।
  • आर्थिक सहयोग:
    • कई भारतीय कंपनियों ने म्याँमार में बुनियादी ढाँचा सहित बहुत से अन्य क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण आर्थिक तथा व्यापारिक समझौते किये हैं।
    • कुछ अन्य भारतीय कंपनियों जैसे- एस्सार (Essar), गेल और ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Ltd.) ने म्याँमार के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश किया है। 
    • भारत ने अपने "मेड इन इंडिया" रक्षा उद्योग और सैन्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक प्रमुख घटक के रूप में म्याँमार की पहचान की है। 

आगे की राह 

  • भले ही भारत द्विपक्षीय और विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली का आह्वान करता है लेकिन भारत की चिंता को दूर करने के लिये म्याँमार में सेना के साथ तालमेल बढ़ाना होगा तथा इसे एक हितधारक बनाना होगा जो राजनीतिक बंदियों की रिहाई सहित लोकतांत्रिक मोर्चे पर काम कर सके।
    • भारत यदि म्याँमार की सेना को अधिकारविहीन करता है तो वह चीन की तरफ अपना रुख करेगी। तख्तापलट के बाद से म्याँमार पर चीन की आर्थिक पकड़ केवल चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे के लिये महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर विशेष ध्यान देने मात्र से मज़बूत हो गई है।
  • भारत की "बौद्ध सर्किट" पहल, जो भारत के विभिन्न राज्यों में प्राचीन बौद्ध विरासत स्थलों को जोड़कर विदेशी पर्यटकों के आगमन और राजस्व को दोगुना करने हेतु शुरू की गई है, में बौद्ध-बहुल म्याँमार को भी शामिल किया जा सकता है।
  • रोहिंग्या मुद्दे को जितनी जल्दी सुलझाया जाएगा, भारत के लिये म्याँमार और बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों का प्रबंधन करना उतना ही आसान होगा, इसके अतिरिक्त द्विपक्षीय एवं उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान देने की भी आवश्यकता है।
  • अंततः आसियान और बिम्सटेक जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों में सहयोग दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करेगा।

स्रोत: द हिंदू


हेट स्पीच

प्रिलिम्स के लिये:

धारा 505(1) और 505(2), अनुच्छेद 19(1)(ए), जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (आरपीए), श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ।

मेन्स के लिये:

हेट स्पीच के बारे में, भारतीय समाज में अभद्र भाषा के बढ़ने के कारण और इस प्रकार के मुद्दों से निपटने के लिये उठाए जा सकने वाले कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड में एक नेता के खिलाफ समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने के मामले में  FIR दर्ज की गई थी।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • सामान्य तौर पर यह उन शब्दों को संदर्भित करता है जिनका इरादा किसी विशेष समूह के प्रति घृणा पैदा करना हो, यह समूह एक समुदाय, धर्म या जाति हो सकता है। लेकिन इसके परिणामस्वरूप हिंसा होने की संभावना होती है।
    • पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो ने हाल ही में साइबर उत्पीड़न के मामलों पर जाँच एजेंसियों के लिये एक मैनुअल प्रकाशित किया है, जिसमें हेट स्पीच को एक ऐसी भाषा के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी व्यक्ति की पहचान और अन्य लक्षणों जैसे- यौन, विकलांगता, धर्म आदि के आधार पर उसे बदनाम, अपमान, धमकी या लक्षित करती है।
    • भारत के विधि आयोग (Law Commission) की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है।
    • यह निर्धारित करने के लिये कि भाषा अभद्र है या नहीं, भाषा का संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्वायत्तता और मुक्त भाषण के सिद्धांतों का प्रयोग नहीं करना है जो समाज के किसी भी वर्ग के लिये हानिकारक हो सकता है।
      • विचारों की बहुलता को बढ़ावा देने के लिये मुक्त भाषण आवश्यक है जहाँ अभद्र भाषा अनुच्छेद 19 (1) (ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का अपवाद बन जाती है।
  • हेट स्पीच के प्रमुख कारण:
    • श्रेष्ठता की भावना:
      • लोग उन रूढ़ियों में विश्वास करते हैं जो कि उनके दिमाग में बसी हुई हैं और ये रूढ़ियाँ उन्हें यह विश्वास दिलाने के लिये प्रेरित करती हैं कि एक वर्ग या व्यक्तियों का समूह उनसे हीन है तथा इसलिये सभी के एक समान अधिकार नहीं हो सकते।
    • विशेष विचारधारा के प्रति जिद:
      • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के अधिकार की परवाह किये बिना किसी विशेष विचारधारा को मानते रहने की जिद हेट स्पीच को और बढ़ाती है।
  • हेट स्पीच से संबंधित कानूनी प्रावधान:
    • भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत:
      • IPC की धारा 153A और 153B: ये दो समूहों के बीच दुश्मनी तथा नफरत पैदा करने वाले कृत्यों को दंडनीय बनाते हैं।
      • IPC की धारा 295A: यह धारा जान-बूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे से लोगों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले कृत्यों को दंडित करने से संबंधित है।
      • IPC की धारा 505(1) और 505(2): ये धाराएँ ऐसी सामग्री के प्रकाशन तथा प्रसार को अपराध बनाती हैं जिससे विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा उत्पन्न हो सकती है।
    • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत:
      • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People’s Act), 1951 की धारा 8 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है।
      • RPA की धारा 123(3A) और 125: चुनावों के संदर्भ में जाति, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाती हैं और इसे भ्रष्ट चुनावी कृत्य के अंतर्गत शामिल करती हैं।
  • आईपीसी में बदलाव के लिये सुझाव:
    • विश्वनाथन समिति, 2019:
      • इसने धर्म, नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, लैंगिक पहचान, यौन, जन्म स्थान, निवास, भाषा, विकलांगता या जनजाति के आधार पर अपराध करने के लिये उकसाने हेतु आईपीसी में धारा 153 सी (बी) और धारा 505 ए का प्रस्ताव रखा।
      • इसने 5,000 रुपए के जुर्माने के साथ दो वर्ष तक की सज़ा का प्रस्ताव रखा।
    • बेज़बरुआ समिति, 2014:
      • इसने आईपीसी की धारा 153 सी (मानव गरिमा के लिये हानिकारक कृत्यों को बढ़ावा या बढ़ावा देने का प्रयास) में संशोधन कर पाँच वर्ष की सज़ा और जुर्माना या दोनों तथा धारा 509 ए (शब्द, इशारा या कार्य किसी विशेष जाति के सदस्य का अपमान करने का इरादा) में संशोधन कर तीन वर्ष की सज़ा या जुर्माना या दोनों का प्रस्ताव दिया।
  • ‘हेट स्पीच’ से संबंधित कुछ मामले:
    • सर्वोच्च न्यायलय का हालिया निर्णय:
      • बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वतंत्र अभिव्यक्ति (Free Speech) की सीमाओं और हेट स्पीच पर चर्चा करते हुए कहा गया है कि “ऐतिहासिक सत्यता (Historical Truths) का वर्णन समाज के विभिन्न वर्गों या समुदायों के मध्य बिना किसी घृणा या शत्रुता का खुलासा किये या प्रोत्साहन के किया जाना चाहिये।"
    • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ:
      • संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के संदर्भ में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A से संबंधित मुद्दे उठाए गए थे, जहाँ न्यायालय ने चर्चा, वकालत और उत्तेजना के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहले दो तत्त्व (चर्चा और वकालत) अनुच्छेद 19(1) का हिस्सा हैं।
    • अरूप भुइयां बनाम असम राज्य:
      • न्यायालय ने कहा कि केवल एक कृत्य के लिये तब तक दंडित नहीं किया जा सकता जब तक कि कोई व्यक्ति हिंसा का सहारा नहीं लेता या किसी अन्य व्यक्ति को हिंसा के लिये उकसाता नहीं है।
    • एस. रंगराजन बनाम पी. जगजीवन राम:
      • इस मामले में न्यायालय  ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तब तक प्रतिबंधित नहीं जा सकता जब तक कि इस तरह की स्थिति समुदाय/जनहित के लिये खतरनाक न हो जाए, जिसमें यह खतरा दूरस्थ या अनुमानित नहीं होना चाहिये। इस प्रकार प्रयुक्त अभिव्यक्ति के साथ एक निकट और प्रत्यक्ष संबंध होना चाहिये।

आगे की राह

  • ‘शिक्षा’ नफरत को कम करने का सबसे कारगर तरीका है। लोगों में करुणा की भावना को बढ़ावा देने और समझ विकसित करने में हमारी शिक्षा प्रणाली की प्रमुख भूमिका हो सकती है।
  • ‘हेट स्पीच’ के विरुद्ध लड़ाई को एकदम अलग नज़रिये से नहीं देखा जा सकता है। इस पर संयुक्त राष्ट्र जैसे व्यापक मंच पर चर्चा होनी आवश्यक है। प्रत्येक ज़िम्मेदार सरकार, क्षेत्रीय निकायों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अभिनेताओं को इस खतरे का जवाब देना चाहिये।
  • ‘हेट स्पीच’ के मामलों को वैकल्पिक विवाद समाधान के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है क्योंकि यह न्यायालय की लंबी प्रक्रियाओं से वार्ता, मध्यस्थता और/या सुलह के माध्यम से पक्षों के बीच विवाद के निपटारे के लिये एक बदलाव का प्रस्ताव करता है।
  • साथ ही सार्वजनिक अधिकारियों को देखभाल के कर्तव्य की अवहेलना हेतु और सतर्कता समूहों को देश के नागरिकों के खिलाफ नफरत फैलाने से रोकने के लिये कार्रवाई नहीं करने हेतु जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


ईएसजी फंड

प्रिलिम्स के लिये:

ईएसजी फंड, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व।

मेन्स के लिये:

भारत में ईएसजी फंड की वृद्धि, इसका महत्त्व और इससे जुड़ी चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) फंड की संपत्ति का आकार पिछले कुछ वर्षों में लगभग पाँच गुना बढ़कर 12,300 करोड़ रुपए हो गया है।

  • एशिया में विशेष रूप से भारत में ईएसजी फंडों की मांग और वृद्धि ज़बर्दस्त (लगभग 32%) रही है।

प्रमुख बिंदु 

ईएसजी फंड (ESG Funds):

  • ईएसजी (ESG) तीन शब्दों अर्थात् पर्यावरण (Environment), सामाजिक (Social) और शासन (Governance) का संयोजन है।
  • यह एक तरह का म्यूचुअल फंड है। इसमें निवेश स्थायी रूप से सतत् निवेश (Sustainable Investing) या सामाजिक रूप से उत्तरदायी निवेश (Socially Responsible Investing) के साथ किया जाता है।
  • आमतौर पर म्युचुअल फंड किसी कंपनी के अच्छे स्टॉक को दर्शाता है जिसमें आय, प्रबंधन गुणवत्ता, नकदी प्रवाह, व्यवसाय संचालन, प्रतिस्पर्द्धा आदि की क्षमता होती है।
  • हालाँकि निवेश के लिये एक स्टॉक का चयन करते समय सबसे पहले ‘ESG फंड शॉर्टलिस्ट कंपनियों’ के पर्यावरण, सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं कॉर्पोरेट प्रशासन पर उच्च स्कोर को देखा जाता है, इसके बाद वित्तीय कारकों पर गौर किया जाता है।
    • इसलिये ‘ईएसजी फंड’ एवं अन्य फंडों के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर 'निवेशक के विवेक' पर आधारित होता है अर्थात् ईएसजी फंड पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं, नैतिक व्यापार प्रथाओं एवं एक कर्मचारी-अनुकूल रिकॉर्ड वाली कंपनियों पर केंद्रित होता है।
  • इस फंड को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा विनियमित किया जाता है।

लोकप्रियता का कारण:

  • आधुनिक निवेशक पारंपरिक दृष्टिकोणों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं और पारंपरिक निवेश से पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों का भी मूल्यांकन कर रहे हैं। इस प्रकार निवेशकों ने अपनी निवेश प्रथाओं में ईएसजी कारकों को शामिल करना शुरू कर दिया है।
  • ‘यूनाइटेड नेशंस प्रिंसिपल फॉर रिस्पॉन्सिबल इन्वेस्टमेंट’ (United Nations Principles for Responsible Investment- UN-PRI) नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन निवेश निर्णय लेने में पर्यावरणीय, सामाजिक एवं कॉर्पोरेट प्रशासन कारकों के समावेश को बढ़ावा देने के लिये कार्य करता है।

प्रभाव

  • जैसे-जैसे भारत में ‘ईएसजी फंड्स’ को गति मिलेगी कंपनियों को बेहतर प्रशासन, नैतिक प्रथाओं, पर्यावरण के अनुकूल उपायों एवं सामाजिक ज़िम्मेदारी का पालन करने के लिये भी मजबूर होना पड़ेगा।
  • जो कंपनियाँ ‘सतत् व्यवसाय मॉडल’ का पालन नहीं करती हैं उन्हें इक्विटी एवं ऋण दोनों जुटाने में मुश्किल होगी।
  • वैश्विक स्तर पर पेंशन फंड, सॉवरेन वेल्थ फंड आदि में निवेश करने वाले निवेशक उन कंपनियों में निवेश नहीं करते हैं जिन्हें प्रदूषणकारी के रूप में देखा जाता है और जो सामाजिक ज़िम्मेदारी का पालन नहीं करती हैं जैसे- तंबाकू कंपनियाँ।
    • वैश्विक तंबाकू उद्योग को प्रतिवर्ष 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लाभ होता है। हालाँकि तंबाकू की वजह से प्रतिवर्ष लगभग 6 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाती है। अतः निवेशक ऐसी वास्तविकताओं के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं।

चिताएँ:

  • जलवायु जोखिम, उत्सर्जन, आपूर्ति शृंखला, श्रम अधिकार, भ्रष्टाचार आदि जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान देने के साथ-साथ कुछ और चिंताएँ भी संज्ञान में आई हैं।
  • वैश्विक संस्थागत निवेशकों के बीच ग्रीनवॉशिंग शीर्ष चिंताओं में से एक है।
  • ग्रीनवॉशिंग को उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाने के लिये एक निराधार दावा माना जाता है कि कंपनी के उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल हैं।
  • निवेश विशेषज्ञों ने फंड मैनेजरों की प्रवृत्ति की ओर भी इशारा किया है कि वे कुछ शेयरों और कंपनियों को एक स्थिति में अधिक महत्त्व देते हैं जहाँ अधिकांश बड़ी निवेश-अनुकूल कंपनियाँ ईएसजी निवेश के लिये उपयोग किये जाने वाले गुणात्मक और मात्रात्मक मानकों से कम हो जाती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शीतकालीन सत्र 2021

प्रिलिम्स के लिये:

संसद की बैठक की समाप्ति, स्थगन, अनिश्चित काल के लिये स्थगन, सत्रावसान और विघटन।

मेन्स के लिये:

संसद के शीतकालीन सत्र में पारित महत्त्वपूर्ण विधेयक।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया गया है (पुन: बैठक के लिये दिन निर्धारित किये बिना संसद की बैठक को समाप्त करना)। इस सत्र में कुछ महत्त्वपूर्ण विधानों को पारित किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • संसद की बैठक की समाप्ति: दोनों सदनों में संसद की बैठक को निम्नलिखित प्रावधानों के द्वारा समाप्त किया जा सकता है:
    • स्थगन (Adjournment)
    • अनिश्चितकाल के लिये स्थगन (Adjournment sine die), 
    • सत्रावसान (Prorogation)
    • विघटन (राज्यसभा के लिये लागू नहीं)
  • स्थगन (Adjournment): स्थगन एक निश्चित समय के लिये बैठक में कामकाज को निलंबित कर देता है। स्थगन कुछ घंटे, दिन या सप्ताह के लिये हो सकता है।
    • जब बैठक अगली बैठक के लिये नियत किसी निश्चित समय/तिथि के बिना समाप्त हो जाती है तो इसे अनिश्चितकाल के लिये स्थगन कहा जाता है।
    • स्थगन और अनिश्चितकाल के लिये स्थगन की शक्ति सदन के पीठासीन अधिकारी के पास होती है।
  • अनिश्चितकाल के लिये स्थगन: अनिश्चितकाल के लिये स्थगन का अर्थ है अनिश्चितकाल के लिये संसद की बैठक को समाप्त करना, यानी सदन को फिर से शुरू करने हेतु कोई एक दिन निर्धारित किये बिना स्थगित कर दिया जाता है, तो इसे स्थगन कहा जाता है।
    • अनिश्चितकाल के लिये स्थगन की शक्ति सदन के पीठासीन अधिकारी के पास होती है।
    • हालाँकि किसी सदन का पीठासीन अधिकारी उस तारीख या समय से पहले या सदन के अनिश्चितकाल के लिये स्थगित होने के बाद किसी भी समय सदन की बैठक बुला सकता है।
  • सत्रावसान (Prorogation):
    • सत्रावसान शब्द का अर्थ संविधान के अनुच्छेद 85(2)(ए) के तहत राष्ट्रपति द्वारा दिये गए आदेश द्वारा सदन के एक सत्र की समाप्ति से है।
    • सत्रावसान सदन की बैठक और सत्र दोनों को समाप्त करना है और आमतौर पर यह पीठासीन अधिकारी द्वारा सदन को अनिश्चितकाल के लिये स्थगित करने के कुछ दिनों के भीतर किया जाता है। 
    • राष्ट्रपति सत्र के सत्रावसान के लिये एक अधिसूचना जारी करता है।
    • हालाँकि राष्ट्रपति सत्र के दौरान सदन का सत्रावसान भी कर सकता है।
    • यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि बिल पेश करने के अलावा सभी लंबित नोटिस व्यपगत हो जाते हैं।
    • एक सदन के सत्रावसान और नए सत्र में उसके पुन: समवेत होने के बीच की अवधि को एक अवकाश कहा जाता है।
  • विघटन (Dissolution): जब भी कोई विघटन होता है, तो इससे मौजूदा सदन का कार्यकाल समाप्त हो जाता है और आम चुनाव के बाद एक नए सदन का गठन होता है।
    • हालाँकि केवल लोकसभा का विघटन हो सकता है राज्यसभा स्थायी सदन होने के कारण विघटित नहीं हो सकती है।

संसद के सदनों द्वारा पारित कुछ महत्त्वपूर्ण विधेयक:

  • कृषि कानून निरसन विधेयक, 2021: किसानों के विरोध को देखते हुए निम्नलिखित तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिये विधेयक पेश करके पारित किया गया:
    • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता
    • किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020
    • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020
  • बाँध सुरक्षा विधेयक, 2021: यह बाँध की विफलता से संबंधित आपदाओं की रोकथाम के लिये निर्दिष्ट बाँध की निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन और रखरखाव का प्रावधान करता है।
    • यह उनके सुरक्षित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिये और उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये संस्थागत तंत्र प्रदान करने का भी प्रयास करता है।
  • सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियम) विधेयक, 2021: यह सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी क्लीनिकों और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंकों के विनियमन एवं पर्यवेक्षण, दुरुपयोग की रोकथाम, सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं के सुरक्षित व नैतिक अभ्यास का प्रावधान करता है।
    • इसने राष्ट्रीय बोर्ड, राज्य बोर्डों और राष्ट्रीय रजिस्ट्री की स्थापना की भी परिकल्पना की।
  • सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2021: यह देश में सरोगेसी सेवाओं के नियमन का प्रावधान करता है।
    • यह सरोगेट माताओं के संभावित शोषण को रोकता है तथा सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है
  • राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान संशोधन विधेयक, 2021: यह स्पष्टता प्रदान करता है कि राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा और अनुसंधान संस्थान अधिनियम के तहत स्थापित संस्थान राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान होंगे।
    • इसने एक केंद्रीय निकाय की भी स्थापना की, जिसे औषधीय शिक्षा और अनुसंधान एवं मानकों के रखरखाव आदि के समन्वित विकास सुनिश्चित करने के लिये परिषद कहा जाएगा।
  • उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021: यह स्पष्टता लाने का प्रयास करता है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर पेंशन या पारिवारिक पेंशन की अतिरिक्त मात्रा पाने के हकदार कब होते हैं।
  • नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (संशोधन) विधेयक, 2021: बिल अधिनियम की धारा 27ए में प्रारूपण त्रुटि को ठीक करने के लिये इस वर्ष (2021) की शुरुआत में प्रख्यापित एक अध्यादेश की जगह लेगा।
  • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) विधेयक, 2021: यह केंद्रीय जाँच ब्यूरो के निदेशक के कार्यकाल को जनहित में एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाने का प्रावधान करता है, जब तक कि प्रारंभिक नियुक्ति में उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पाँच साल पूरे नहीं हो जाते।
  • केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) विधेयक, 2021: यह प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल को जनहित में एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाने का प्रावधान करता है, जब तक कि प्रारंभिक नियुक्ति में उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पाँच वर्ष पूरे नहीं हो जाते।
  • चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021: यह विभिन्न स्थानों पर एक ही व्यक्ति के कई नामांकन के खतरे को रोकने के लिये मतदाता सूची डेटा को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ने का प्रावधान करता है।

स्रोत: पीआईबी


कार्ड-ऑन-फाइल टोकनाइज़ेशन

प्रिलिम्स के लिये:

कार्ड-ऑन-फाइल टोकनाइज़ेशन (CoF), कार्ड-ऑन-फाइल, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

मेन्स के लिये:

कार्ड ऑन फाइल टोकनाइज़ेशन (CoFT) से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने नए क्रेडिट और डेबिट कार्ड डेटा स्टोरेज मानदंड या कार्ड-ऑन-फाइल टोकनाइज़ेशन (CoF) के कार्यान्वयन के लिये समय सीमा छह महीने बढ़ाकर 30 जून, 2022 कर दी है।

  • डिजिटल भुगतान फर्मों, व्यापारिक निकायों और बैंकों ने व्यापारिक लेन-देन में व्यवधान के डर के बीच सिस्टम को एकीकृत करने एवं सभी हितधारकों को जोड़ने के लिये और अधिक समय मांगा था।
  • सितंबर 2021 में रिज़र्व बैंक ने व्यापारियों को 1 जनवरी, 2022 से अपने सर्वर पर ग्राहक कार्ड विवरण संग्रहीत करने से प्रतिबंधित कर दिया था और कार्ड भंडारण के विकल्प के रूप में CoF टोकन को अपनाना अनिवार्य कर दिया था।

Tedius

प्रमुख बिंदु

  • संदर्भ:
    • टोकनाइज़ेशन वास्तविक क्रेडिट या डेबिट कार्ड विवरण को "टोकन" नामक एक वैकल्पिक कोड के साथ बदलने को संदर्भित करता है, जो कार्ड, टोकन अनुरोधकर्त्ता और डिवाइस के संयोजन के लिये अद्वितीय होगा।
      • टोकनयुक्त कार्ड लेन-देन को सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि लेन-देन प्रसंस्करण के दौरान वास्तविक कार्ड विवरण व्यापारी के साथ साझा नहीं किया जाता है।
      • जिन ग्राहकों के पास टोकन की सुविधा नहीं है, उन्हें हर बार ऑनलाइन कुछ ऑर्डर करने पर अपना नाम, 16 अंकों का कार्ड नंबर, समाप्ति तिथि और सीवीवी दर्ज करना होगा।
    • कार्ड-ऑन-फाइल (CoF): CoF एक ऐसा लेन-देन होता है जहाँ कार्डधारक के मास्टरकार्ड या वीज़ा भुगतान विवरण को संग्रहीत करने हेतु एक व्यापारी को अधिकृत किया जाता है।
      • कार्डधारक तब उसी व्यापारी को अपने संग्रहीत मास्टरकार्ड या वीज़ा खाते से बिल करने के लिये अधिकृत करता है।
      • ई-कॉमर्स कंपनियाँ और एयरलाइंस तथा सुपरमार्केट चेन सामान्य रूप से अपने सिस्टम में कार्ड विवरण को संग्रहीत करते हैं।
  • कार्यान्वयन के लिये और समय की मांग:
    • यदि आरबीआई के नए जनादेश को वर्तमान स्थिति में लागू किया जाता है, तो यह विशेष रूप से व्यापारियों के लिये बड़े व्यवधान और राजस्व की हानि का कारण बन सकता है।
      • टोकन नियमों के कारण ऑनलाइन लेन-देन करने वाले व्यापारी 31 दिसंबर के बाद अपने राजस्व का लगभग 20-40% तक का नुकसान झेल सकते हैं और उनमें से कई व्यापारियों, विशेष रूप से छोटे व्यापारियों के लिये यह बहुत नुकसानदेह होगा, जिससे उन्हें अपना व्यापार भी बंद करना पड़ सकता है।
      • इस प्रकार के व्यवधान डिजिटल भुगतान के संदर्भ में विश्वास को कम करते हैं और उपभोक्ता को वापस नकद-आधारित भुगतान की ओर ले जाते हैं।
    • व्यापारी अपनी भुगतान प्रसंस्करण प्रणालियों का परीक्षण और प्रमाणन तब तक शुरू नहीं कर सकते जब तक कि बैंक एवं कार्ड नेटवर्क प्रमाणित नहीं हो जाते हैं तथा उपभोक्ता के लिये तैयार समाधानों हेतु स्थिर एपीआई (एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) के साथ नहीं आ जाते।

आगे की राह 

  • आरबीआई ने कहा है कि जून 2022 के बाद व्यापारियों के ऑनलाइन सिस्टम से क्रेडिट और डेबिट कार्ड का डेटा हटा दिया जाएगा।
  • टोकन के अलावा उद्योग के हितधारक किसी भी उपयोग के मामले को संभालने के लिये वैकल्पिक तंत्र तैयार कर सकते हैं, जिसमें आवर्ती ई-जनादेश और ईएमआई विकल्प या लेनदेन के बाद की गतिविधि, चार्जबैक हैंडलिंग, विवाद समाधान, पुरस्कार या ईमानदारी कार्यक्रम शामिल हैं, इसमें वर्तमान में कार्ड जारीकर्त्ता और कार्ड नेटवर्क के अलावा अन्य संस्थाओं द्वारा CoF डेटा का संग्रहण भी शामिल है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस