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बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019

  • 06 Dec 2021
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग, बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019, राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 की प्रमुख विशेषताएँ, इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद ने देश भर में सभी निर्दिष्ट बाँधों की निगरानी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव के लिये बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु 

  • विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
    • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति: विधेयक राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति की स्थापना का प्रावधान करता है। समिति की अध्यक्षता केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष द्वारा की जाएगी।
      • समिति के कार्यों में बाँध सुरक्षा मानदंडों से संबंधित नीतियाँ एवं विनियम बनाना तथा बाँधों को क्षतिग्रस्त होने से रोकना एवं बड़े बाँधों के टूटने के कारणों का विश्लेषण करना एवं बाँध सुरक्षा प्रणालियों में बदलाव का सुझाव देना शामिल होगा।
    • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण: विधेयक एक राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority -NDSA) की स्थापना का प्रावधान करता है। इस प्राधिकरण का प्रमुख एडिशनल सेक्रेटरी से नीचे के स्तर का अधिकारी नहीं होगा एवं इसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। 
      • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण के मुख्य कार्य में राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति द्वारा निर्मित नीतियों को लागू करना शामिल है। राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों (SDSOs) के बीच और SDSOs एवं उस राज्य के किसी बाँध मालिक के बीच विवादों को सुलझाना, बाँधों के निरीक्षण और जाँच के लिये विनियम को निर्दिष्ट करना।
      • NDSA बाँधों के निर्माण, डिज़ाइन तथा उनमें परिवर्तन पर काम करने वाली एजेंसियों को मान्यता (Accreditation) देगी।
    • राज्य बाँध सुरक्षा संगठन: प्रस्तावित कानून में राज्य सरकारों द्वारा राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों (State Dam Safety Organisation- SDSOs) की स्थापना की जाएगी जिसका कार्य बाँधों की निरंतर चौकसी एवं निरीक्षण करना तथा उनके परिचालन एवं रखरखाव पर निगरानी रखना, सभी बाँधों का डेटाबेस रखना और बाँध मालिकों को सुरक्षा उपायों की सिफारिश करना होगा।
    • बाँध मालिकों की दायित्व: विधेयक में निर्दिष्ट बाँध मालिकों से यह अपेक्षा की गई है कि वे प्रत्येक बाँध के लिये एक सुरक्षा इकाई स्थापित करे। यह इकाई मानसून सत्र से पहले और बाद में एवं  प्रत्येक भूकंप, बाढ़, या किसी अन्य आपदा या संकट के संकेत के दौरान और बाद में बाँधों का निरीक्षण करेगी।
      • बाँध मालिकों से एक आपातकालीन कार्ययोजना तैयार करने और प्रत्येक बाँध के लिये निर्दिष्ट अंतराल पर नियमित जोखिम आकलन करने की अपेक्षा की जाएगी। 
      • बाँध मालिकों द्वारा नियमित अंतराल पर एक विशेषज्ञ पैनल के जरिये प्रत्येक बाँध का व्यापक सुरक्षा मूल्यांकन किया जाएगा।
    • सज़ा: विधेयक में दो प्रकार के अपराधों का उल्लेख है- किसी व्यक्ति को उसके कार्यों के निर्वहन में बाधा डालना और प्रस्तावित कानून के अंतर्गत जारी निर्देशों के अनुपालन से इनकार करना।
      • अपराधियों को एक वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा। अगर अपराध के कारण किसी की मृत्यु हो जाती है तो कारावास की अवधि दो वर्ष हो सकती है।
      • अपराध संज्ञेय तभी होंगे जब शिकायत सरकार द्वारा या विधेयक के अंतर्गत गठित किसी प्राधिकरण द्वारा की जाए।
  • आवश्यकता 
    • बाँधों का कालिक क्षय:
      • बाँधों की संख्या के मामलें में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। देश में 5,745 जलाशय हैं जिनमें से 293 जलाशय 100 साल से अधिक पुराने हैं। बाँध सुरक्षा के लिये कई चुनौतियाँ  हैं और कुछ मुख्य रूप से बाँधों की लंबी उम्र के कारण हैं।
      • जैसे-जैसे बाँध पुराने होते जाते हैं, उनका डिजाइन, जल विज्ञान और बाकी सब कुछ नवीनतम समझ और प्रथाओं के अनुरूप नहीं रहता है।
      • बाँधों में भारी गाद जमा होती जाती है जिससे इनकी जल धारण क्षमता कम होती जा रही है।
    • बाँध प्रबंधकों पर निर्भरता:
      • बाँधों का विनियमन पूरी तरह से व्यक्तिगत बाँध प्रबंधकों पर निर्भर है। डाउनस्ट्रीम जल की आवश्यकता या पहले से मौजूद प्रवाह के प्रकार के संदर्भ में कोई व्यवस्थितकरण और कोई वास्तविक समझ नहीं है।
    • विभिन्न कारकों पर विचार नहीं किया जाना:
      • बाँध सुरक्षा कई कारकों पर निर्भर है जैसे कि भूदृश्य, भूमि उपयोग परिवर्तन, वर्षा के पैटर्न, संरचनात्मक विशेषताएँ आदि। बाँध की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार द्वारा सभी कारकों को ध्यान में नहीं रखा गया है।
    • बाँधों की विफलताएँ:
      • उचित बाँध सुरक्षा संस्थागत ढाँचे के अभाव में बाँधों की जाँच, डिजाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव में विभिन्न प्रकार की कमियाँ शामिल हो सकती हैं। इस तरह की कमियों से गंभीर घटनाएँ होती हैं और कभी-कभी बाँध टूट जाता है।
      • वर्ष 1917 में तिगरा बाँध (मध्य प्रदेश) की विफलता के साथ बाँधों की विफलताओं की  शुरुआत हुई और अब तक लगभग 40 बड़े बाँधों के विफल होने की सूचना है। नवंबर 2021 में अन्नामय्या बाँध (आंध्र प्रदेश) की विफलता का सबसे हालिया मामला 20 लोगों की मौत का कारण बना है।
      • सामूहिक रूप से इन विफलताओं के चलते हज़ारों मौतें और विशाल आर्थिक नुकसान देखने को मिला है।
  • महत्त्व:
    • एकरूपता लाना:
      • सरकार चाहती है कि एक विशेष प्रकार के बड़े बाँधों के लिये सभी बाँध मालिकों द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रियाओं में एकरूपता हो।
    • सख्त दिशा-निर्देश प्रदान करता है:
      • पानी, राज्य का विषय है और यह विधेयक किसी भी तरह से राज्य के अधिकार को नहीं छीनता है। विधेयक दिशा-निर्देशों को सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।
      • इसमें बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्री व पोस्ट-मानसून निरीक्षण सहित कई प्रोटोकॉल हैं। हालाँकि अब तक ये प्रोटोकॉल कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं हैं और संबंधित एजेंसियों (केंद्रीय एवं राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों सहित) के पास इन्हें लागू करने की कोई शक्ति नहीं है।
    • गुणवत्ता सुनिश्चित करना:
      • अब तक विभिन्न ठेकेदारों, डिज़ाइनरों और योजनाकारों की व्यावसायिक दक्षता का मूल्यांकन कभी नहीं किया गया है और यही कारण है कि आज भारत के बाँधों में डिज़ाइन की समस्या है। विधेयक एक ऐसा तंत्र प्रदान करता है जहाँ निर्माण और रखरखाव में भाग लेने वाले लोगों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
    • सुरक्षा
      • बाँधों के क्षतिग्रस्त होने का खतरा हमेशा बना रहता है और इसलिए उनकी सुरक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है। विधेयक में बाँध सुरक्षा मानकों के निर्माण का प्रावधान है।
  • चिंता:
    • विसंगत
      • केंद्रीय जल आयोग सभी बाँध परियोजनाओं के तकनीकी-आर्थिक मूल्यांकन के लिये ज़िम्मेदार होगा। इसे उसी परियोजना (यदि परियोजना विफल हो जाती है) का ऑडिट करने का भी अधिकार है।
      • यह अपने मामले में स्वयं न्यायाधीश के रूप में कार्य करने जैसा है।
    • क्षतिपूर्ति पर निरुत्तर:
      • बाँध परियोजनाओं से प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति के लिये भुगतान पर विधेयक निरुत्तर है।
    • संघीय ढाँचे में हस्तक्षेप:
      • राज्यों ने आरोप लगाया कि यह असंवैधानिक है इसलिये इसकी जाँच की जानी चाहिये क्योंकि और राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। विधेयक के कुछ प्रावधान संघीय ढाँचे में हस्तक्षेप करते हैं।

विधेयक की संवैधानिक वैधता

  • हालाँकि जल को राज्य सूची की प्रविष्टि-17 में रखा गया है, केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत संघ सूची की प्रविष्टि 56 और प्रविष्टि 97 के साथ कानून प्रस्तुत किया है।
    • राज्य सूची, प्रविष्टि 17: जल, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी एवं तटबंध, जल भंडारण व जल शक्ति सूची I की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के अधीन है।
    • सूची I की प्रविष्टि, 56 संसद को अंतर-राज्यीय नदियों व नदी घाटियों के नियमन पर कानून बनाने की अनुमति देती है जो इस तरह के विनियमन को सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित करती है। 
  • अनुच्छेद 246 संसद को संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची की सूची I में सूचीबद्ध किसी भी मामले पर कानून बनाने का अधिकार देता है।
  • प्रविष्टि 97 संसद को सूची II या सूची III में सूचीबद्ध किसी भी अन्य मामले पर कानून बनाने की अनुमति देता है, जिसमें कर सहित उन सूचियों में से किसी में भी उल्लेख नहीं किया गया है।

आगे की राह 

  • चूँकि बाँध की सुरक्षा कई बाहरी कारकों पर निर्भर है, इसलिये पर्यावरणविदों और पर्यावरण के दृष्टिकोण को ध्यान में रखा जाना चाहिये। बदलती जलवायु के साथ पानी के मुद्दे पर सावधानीपूर्वक और सटीक रूप से विचार करना आवश्यक है। 
  • राज्य के सिंचाई विभाग और केंद्रीय जल आयोग को मज़बूत करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि बाँधों का निरीक्षण संबंधित राज्य की सरकार करे।
  • बाँधों के मामले में विफलताओं से बचने के लिये एक निवारक तंत्र आवश्यक है क्योंकि यदि बाँध निर्माण के उद्देश्यों में विफलता प्राप्त होती है तो कितनी बड़ी सज़ा क्यों न दी जाए वह जीवन के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती है।

स्रोत: द हिंदू

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