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डेली न्यूज़

  • 24 May, 2021
  • 45 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रिक्स खगोल विज्ञान कार्य-समूह (BAWG) की बैठक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने ब्रिक्स 2021 के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की दिशा में ब्रिक्स खगोल विज्ञान कार्य-समूह (BAWG) की 7वीं बैठक की वर्चुअल (online) मेज़बानी की ।

प्रमुख बिंदु 

ब्रिक्स (BRICS):

  • ब्रिक्स दुनिया की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
  • वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्री जिम ओ’ नील द्वारा ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं के वर्णन करने के लिये BRICS शब्द की चर्चा की।
    • वर्ष 2006 में ब्रिक (BRIC) विदेश मंत्रियों की प्रथम बैठक के दौरान समूह को एक  नियमित अनौपचारिक रूप प्रदान किया गया।
    • दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को ब्रिक (BRIC) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया, जिसके बाद दक्षिण अफ्रीका ने चीन में आयोजित तीसरे शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और समूह ने संक्षिप्त रूप ब्रिक्स (BRICS) को अपनाया।
  • जनवरी 2021 में भारत ने ब्रिक्स की अध्यक्षता ग्रहण की है।

संरचना :

  • ब्रिक्स कोई संगठन का रूप नहीं है, बल्कि यह पाँच देशों के सर्वोच्च नेताओं के बीच एक वार्षिक शिखर सम्मेलन है।
  • ब्रिक्स शिखर सम्मलेन फोरम की अध्यक्षता प्रतिवर्ष B-R-I-C-S क्रमानुसार सदस्य देशों द्वारा की जाती है।

सहयोग तंत्र: सदस्यों के बीच निम्नलिखित माध्यमों से सहयोग किया जाता है:

  • ट्रैक I: राष्ट्रीय सरकारों के बीच औपचारिक राजनयिक जुड़ाव।
  • ट्रैक II: सरकार से संबद्ध संस्थानों के माध्यम से संबंध, उदाहरण के लिये राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम और व्यापार परिषद।
  • ट्रैक III: सिविल सोसायटी और पीपल-टू-पीपल कॉन्टेक्ट।

सहयोग के क्षेत्र:

  • आर्थिक सहयोग:
    • ब्रिक्स समझौतों से आर्थिक और व्यापारिक सहयोग, नवाचार सहयोग, सीमा शुल्क सहयोग, ब्रिक्स व्यापार परिषद, आकस्मिक रिज़र्व समझौते और न्यू डेवलपमेंट बैंक के बीच रणनीतिक सहयोग आदि सामने आए हैं।
  •  पीपल-टू-पीपल एक्सचेंज:
    • पीपल-टू-पीपल एक्सचेंज द्वारा नए मित्र स्थापित करना; ब्रिक्स सदस्यों के बीच खुलापन, समावेशिता, विविधता और सीखने की भावना आदि मामलों में संबंधों के मज़बूत होने की अपेक्षा की जाती है।
    • पीपल-टू-पीपल एक्सचेंज में यंग डिप्लोमेट्स फोरम, पार्लियामेंट्री फोरम, ट्रेड यूनियन फोरम, सिविल ब्रिक्स के साथ-साथ मीडिया फोरम भी शामिल हैं।
  • राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग:
    • ब्रिक्स सदस्यों के मध्य राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग का उद्देश्य विश्व को शांति, सुरक्षा, विकास और अधिक न्यायसंगत एवं निष्पक्ष बनाने में सहयोग करना है।
    • दक्षिण अफ्रीका की विदेश नीति की प्राथमिकताओं के लिये ब्रिक्स को एक माध्यम के रूप में उपयोग किया जाता है जिसमें अफ्रीकी एजेंडा और दक्षिण-दक्षिण सहयोग शामिल हैं।

ब्रिक्स खगोल विज्ञान कार्य-समूह (BAWG) के बारे में:

  • यह ब्रिक्स सदस्य देशों को खगोल विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग करने के लिये एक मंच प्रदान करता है, साथ ही यह अनुशंसा करता है कि प्रत्येक देश में अपने केंद्र-बिंदु में किये जा रहे कार्यों के वैज्ञानिक परिणाम प्रस्तुत करे।
  • जब भी ब्रिक्स फंडिंग एजेंसियों द्वारा फंडिंग के अवसरों की घोषणा की जाती है, तो यह फ्लैगशिप प्रोजेक्ट को साकार करने के लिये फंडिंग सपोर्ट लेने में मदद करेगा।
  • बैठक में कार्य-समूह के सदस्यों ने इस क्षेत्र में भविष्य के अनुसंधान की दिशा के बारे में भी संकेत दिये जैसे-  इंटेलीजेंट टेलीस्कोप का नेटवर्क और डेटा नेटवर्क का निर्माण, ब्रह्मांड में होने वाली क्षणिक खगोलीय घटनाओं का अध्ययन, बिग डेटा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बेहतर मल्टी-वेवलेंथ टेलीस्कोप वेधशाला की वजह से उत्पन्न होने वाले बेहद विशाल आँकड़ों को संसाधित करने के लिये मशीन लर्निंग एप्लीकेशन आदि।

आगे की राह 

  • ब्रिक्स ने अपने पहले दशक में सभी सदस्यों के सामान्य हितों के मुद्दों की पहचान करने और इन मुद्दों को हल करने के लिये मंच प्रदान करने में सफलता पाई है।
  • ब्रिक्स को और अधिक प्रासंगिक बनाए रखने के लिये इसके प्रत्येक सदस्य को अवसरों और इनमें निहित सीमाओं का यथार्थवादी मूल्यांकन करना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस

 चर्चा में क्यों? 

 हर वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (International Day for Biological Diversity- IDB) के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु: 

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के बारे में:

  • वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) ने जैव विविधता के मुद्दों पर  समझ और जागरूकता बढ़ाने हेतु 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (IDB) के रूप में घोषित किया।
    •   वर्ष 2011-2020 की अवधि को UNGA द्वारा संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) के जैव विविधता दशक के रूप में घोषित किया गया ताकि जैव विविधता पर एक रणनीतिक योजना के कार्यान्वयन को बढ़ावा  दिया जा सके, साथ ही प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने के समग्र दृष्टि को बढ़ावा  दिया जा सके।
    •   वर्ष 2021-2030 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत् विकास हेतु महासागर विज्ञान दशक' (Decade of Ocean Science for Sustainable Development) और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (UN Decade on Ecosystem Restoration) के रूप में घोषित किया गया।

वर्ष 2021 की थीम: 

  • वर्ष 2021 में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस की थीम  “हम समाधान का हिस्सा हैं” (We’re Part Of The Solution) है। इस वर्ष की थीम वर्ष 2020 की थीम- “हमारे समाधान प्रकृति में हैं” (Our Solutions Are In Nature) की निरंतरता को दर्शाती है। 
    • जैव विविधता द्वारा कई सतत् विकास (Sustainable Development) चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करने के लिये यह एक अनुस्मारक (Reminder) के रूप में कार्य करता है।

जैव विविधता के संरक्षण हेतु कुछ वैश्विक  पहलें:

जैव विविधता:

  • जैव विविधता शब्द का प्रयोग पृथ्वी पर जीवन की विशाल विविधता का वर्णन करने के संदर्भ में किया जाता है। इसका उपयोग विशेष रूप से एक क्षेत्र या पारिस्थितिकी तंत्र में सभी प्रजातियों को संदर्भित करने हेतु किया जा सकता है। जैव विविधता पौधों, बैक्टीरिया, जानवरों और मनुष्यों सहित हर जीवित चीज को संदर्भित करती है।
  • इसे अक्सर पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की विस्तृत विविधता के संदर्भ में समझा जाता है, लेकिन इसमें प्रत्येक प्रजाति में विद्यमान आनुवंशिक अंतर भी शामिल होता है।

चिंताएँ:

  • वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (World Wide Fund for Nature) द्वारा अपनी प्रमुख लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 (Living Planet Report 2020) में इस बात के प्रति चेताया गया है कि वैश्विक स्तर पर जैव विविधता में भारी गिरावट आ रही है।
  • इस रिपोर्ट में 50 वर्षों से भी कम समय में 68 प्रतिशत वैश्विक प्रजातियों के नष्ट होने  की बात  कही गई है जबकि पहले प्रजातियों में इतनी गिरावट नहीं देखी गई।

संरक्षण की आवश्यकता:

  • जैव विविधता  के  संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती  है जहांँ प्रत्येक प्रजाति, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, सभी की महत्त्वपूर्ण  भूमिका होती है।
  • पौधों की प्रजातियों की एक बड़ी संख्या के होने का अर्थ है, फसलों की अधिक विविधता। अधिक प्रजाति विविधता सभी जीवन रूपों की प्राकृतिक स्थिरता सुनिश्चित करती है।
  • जैव विविधता के संरक्षण हेतु वैश्विक स्तर पर  संरक्षण किया जाना चाहिये ताकि खाद्य शृंखलाएँ बनी रहें। खाद्य शृंखला में गड़बड़ी पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकती है।

जैव विविधता के संरक्षण हेतु कुछ भारतीय पहलें:

अन्य महत्त्वपूर्ण पहलें:

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय विरासत और संस्कृति

विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल छः स्थल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छः भारतीय स्थानों को यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) के विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची (Tentative List) में जोड़ा गया है।

प्रमुख बिंदु

अस्थायी सूची:

  • यूनेस्को के संचालनात्मक दिशा-निर्देश (Operational Guidelines), 2019 के अनुसार किसी भी स्मारक/स्थल को विश्व विरासत स्थल (World Heritage Site) की सूची में अंतिम रूप से शामिल करने से पहले उसे एक वर्ष के लिये इसके अस्थायी सूची में रखना अनिवार्य है।
    • इसमें नामांकन हो जाने के बाद इसे विश्व विरासत केंद्र (World Heritage Centre) को भेज दिया जाता है।
  • इस सूची में भारत के अब तक कुल 48 स्थल शामिल किये गए हैं।

विश्व विरासत स्थल:

  • यूनेस्को की विश्व विरासत सूची (World Heritage List) में विभिन्न क्षेत्रों या वस्तुओं को अंकित किया गया है।
  • यह सूची यूनेस्को द्वारा वर्ष 1972 में अपनाई गई ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है।
    • विश्व विरासत केंद्र वर्ष 1972 में हुए कन्वेंशन का सचिवालय है।
  • यह पूरे विश्व में उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों के प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण को बढ़ावा देता है।
  • इसमें तीन प्रकार के स्थल शामिल हैं: सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित।
    • सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) स्थलों में ऐतिहासिक इमारत, शहर स्थल, महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थल, स्मारकीय मूर्तिकला और पेंटिंग कार्य शामिल किये जाते हैं।
    • प्राकृतिक विरासत (Natural Heritage) में उत्कृष्ट पारिस्थितिक और विकासवादी प्रक्रियाएँ, अद्वितीय प्राकृतिक घटनाएँ, दुर्लभ या लुप्तप्राय प्रजातियों के आवास स्थल आदि शामिल किये जाते हैं।
    • मिश्रित विरासत (Mixed Heritage) स्थलों में प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों प्रकार के महत्त्वपूर्ण तत्त्व शामिल होते हैं।
  • भारत में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त कुल 38 विरासत धरोहर स्थल (30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित) हैं। इनमें शामिल जयपुर शहर (राजस्थान) सबसे नया है।

अस्थायी सूची में शामिल छः नए स्थलों के विषय में:

  • सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व (मध्य प्रदेश):
    • यह सरीसृप सहित हिमालयी क्षेत्र की 26 प्रजातियों और नीलगिरि क्षेत्रों की 42 प्रजातियों का घर है, जहाँ बाघों के लिये अरक्षित सबसे बढ़ा क्षेत्र है और बाघों की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है।

Satapuda-Tiger-Reserve

  • वाराणसी के घाट (उत्तर प्रदेश):
    • ये घाट 14वीं शताब्दी के हैं, लेकिन अधिकांश का पुनर्निर्माण 18वीं शताब्दी में मराठा शासकों के सहयोग से किया गया।
    •  इन घाटों का हिंदू पौराणिक कथाओं में (विशेष रूप से स्नान और हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने में) विशेष महत्त्व है।

Varanasi-Ghat

  • हायर बेनकल का महापाषाण स्थल (कर्नाटक):
    • यह लगभग 2,800 वर्ष पुराना सबसे बड़ी प्रागैतिहासिक महापाषाण बस्तियों में से एक महापाषाणिक स्थल  है जहाँ कुछ अंत्येष्टि स्मारक अभी भी मौजूद हैं।
    • इस स्थान पर ग्रेनाइट के ताबूतों वाले स्मारक हैं। इस स्थान को नवपाषाण (Neolithic)  कालीन स्मारकों के अत्यंत मूल्यवान संग्रह के कारण विश्व विरासत स्थल की मान्यता के लिये प्रस्तावित किया गया था।

Karnataka-Art-and-Culture

  • मराठा सैन्य वास्तुकला (महाराष्ट्र):
    • महाराष्ट्र में 17वीं शताब्दी के मराठा राजा छत्रपति शिवाजी के समय के 12 किले (शिवनेरी, रायगढ़, तोरणा, राजगढ़, साल्हेर-मुल्हेर, पन्हाला, प्रतापगढ़, लोहागढ़, सिंधुदुर्ग, पद्मदुर्ग, विजयदुर्ग और कोलाबा) हैं।
    • ये किले रॉक-कट सुविधाओं, पहाड़ियों और ढलानों पर परतों में परिधि की दीवारों के निर्माण, मंदिरों, महलों, बाज़ारों, आवासीय क्षेत्रों तथा मध्ययुगीन वास्तुकला के लगभग हर रूप सहित वास्तुकला के विभिन्न रूपों में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

Maharashtra-Art

  • नर्मदा घाटी में भेड़ाघाट-लमेताघाट, जबलपुर (मध्य प्रदेश):
    • भेड़ाघाट, जिसे भारत का ग्रांड कैन्यन कहा जाता है, जबलपुर ज़िले का एक शहर है।
    • नर्मदा नदी के दोनों ओर संगमरमर की सौ फीट ऊँची चट्टानें और उनके विभिन्न रूप भेड़ाघाट की खासियत है।
    •  नर्मदा घाटी में विशेष रूप से जबलपुर के भेड़ाघाट-लमेताघाट क्षेत्र में डायनासोर के कई जीवाश्म पाए गए हैं।
    • नर्मदा नदी संगमरमर की चट्टानों से होकर गुज़रती संकरी होती जाती है और अंत में एक झरने के रूप में नीचे गिरती है, जिसका नाम धुआँधार जलप्रपात है।

Narmada-Ghati

  • कांचीपुरम के मंदिर (तमिलनाडु):
    • कांचीपुरम अपनी आध्यात्मिकता, शांति और रेशम के लिये जाना जाता है।
    • यह वेगावती नदी के तट पर स्थित है।
    • इस ऐतिहासिक शहर में कभी 1,000 मंदिर थे, जिनमें से अब केवल 126 (108 शैव और 18 वैष्णव) ही शेष बचे हैं।
    • इसे पल्लव राजवंश ने 6वीं और 7वीं शताब्दी के बीच अपनी राजधानी बनाया। ये मंदिर द्रविड़ (Dravidian) शैलियों का एक अच्छा उदाहरण है।

Kanchipuram-Temple

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

DAP पर सब्सिडी बढ़ी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने किसानों के लिये बिक्री मूल्य को मौजूदा स्तर पर बनाए रखने हेतु डी-अमोनियम फॉस्फेट (Di-Ammonium Phosphate- DAP) उर्वरक पर सब्सिडी को बढ़ाकर 140 प्रतिशत कर दिया है।

  • हाल ही में DAP में इस्तेमाल होने वाले फॉस्फोरिक एसिड, अमोनिया आदि की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें 60% से 70% तक बढ़ गई हैं।

प्रमुख बिंदु

डी-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) के बारे में:

  • यूरिया के बाद DAP भारत में दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उर्वरक है।
  • किसान आमतौर पर इस उर्वरक का प्रयोग बुवाई से ठीक पहले या शुरुआत में ही करते हैं, क्योंकि इसमें फॉस्फोरस (P) की मात्रा अधिक होती है जो जड़ के विकास में वृद्धि करता है।
  • DAP (46% पी, 18% नाइट्रोजन) किसानों के लिये फॉस्फोरस का पसंदीदा स्रोत है। यह यूरिया के समान है, जो उनका पसंदीदा नाइट्रोजन युक्त उर्वरक है जिसमें 46% N होता है।

उर्वरकों के लिये सब्सिडी योजना के बारे में:

  • वर्तमान योजना के तहत यूरिया की MRP तय है लेकिन सब्सिडी अलग-अलग हो सकती है, जबकि DAP की MRP नियंत्रणमुक्त है (यानी सब्सिडी तय है लेकिन MRP अलग-अलग हो सकती है)।
  • सभी गैर-यूरिया आधारित उर्वरकों को पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना के तहत विनियमित किया जाता है।

पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS )

  • NBS के तहत इन उर्वरकों में निहित पोषक तत्त्वों (N, P, K & S) के आधार पर किसानों को रियायती दरों पर उर्वरक प्रदान किये जाते हैं।
  • साथ ही जिन उर्वरकों को माध्यमिक और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे मोलिब्डेनम (Molybdenum- Mo) और ज़स्ता के साथ मज़बूत किया जाता है, उन्हें अतिरिक्त सब्सिडी दी जाती है।
  • फॉस्फेटिक और पोटैसिक (P&K) उर्वरकों पर सब्सिडी की घोषणा सरकार द्वारा प्रति किलो के आधार पर प्रत्येक पोषक तत्त्व के लिये वार्षिक आधार पर की जाती है जो कि P&K उर्वरकों की अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू कीमतों, विनिमय दर, देश में सूची स्तर आदि को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जाती है।
  • NBS नीति का इरादा P&K उर्वरकों की खपत में वृद्धि करना है ताकि NPK उर्वरक का इष्टतम संतुलन (N:P:K= 4:2:1) हासिल किया जा सके।
    • इससे मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होगा और परिणामस्वरूप फसलों की उपज में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में वृद्धि होगी।
    • साथ ही सरकार को उर्वरकों के तर्कसंगत उपयोग की उम्मीद है, इससे उर्वरक सब्सिडी का बोझ भी कम होगा।
  • इसे उर्वरक और रसायन मंत्रालय के उर्वरक विभाग द्वारा अप्रैल 2010 से क्रियान्वित किया जा रहा है।

NBS से संबंधित मुद्दे:

  • उर्वरकों की कीमत में असंतुलन: 
    • इस योजना में यूरिया को छोड़ दिया गया है और इसलिये इसका मूल्य नियंत्रण में रहता है क्योंकि केवल अन्य उर्वरकों पर ही NBS लागू किया गया है।
    • उर्वरकों (यूरिया के अलावा) की कीमत जो कि विनियंत्रित थी, 2010-2020 दशक के दौरान 2.5 से चार गुना तक बढ़ गई है।
    • हालाँकि वर्ष 2010 के बाद से यूरिया की कीमत में केवल 11% की वृद्धि हुई है। इससे किसान पहले की तुलना में अधिक यूरिया का उपयोग कर रहे हैं, जिससे उर्वरक असंतुलन में और अधिक वृद्धि हुई है।
  • अर्थव्यवस्था और पर्यावरण लागत:
    • खाद्य सब्सिडी के बाद उर्वरक सब्सिडी दूसरी सबसे बड़ी सब्सिडी है, NBS नीति न केवल अर्थव्यवस्था के वित्तीय स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रही है बल्कि देश की मिट्टी के स्वास्थ्य के लिये भी हानिकारक साबित हो रही है।
  • कालाबाज़ारी: सब्सिडी वाले यूरिया को थोक खरीदारों/व्यापारियों या यहाँ तक कि गैर-कृषि उपयोगकर्त्ताओं जैसे कि प्लाईवुड और पशु चारा निर्माताओं को दिया जा रहा है।
    • इसकी तस्करी बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में की जा रही है।

DAP पर सब्सिडी बढ़ाने के निहितार्थ:

  • चूँकि किसान खरीफ फसलों के लिये बुवाई का कार्य शुरू कर देंगे, इसलिये उनके लिये सब्सिडी दर पर उर्वरक प्राप्त करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ताकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा जा सके।
  • राजनीतिक रूप से सरकार चाहती है कि कोविड की दूसरी लहर के समय किसान विरोध को रोका जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ (Kyasanur Forest Disease- KFD) के तीव्रता से निदान में एक नया ‘पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण’ (Point-Of-Care Test) अत्यधिक संवेदनशील पाया गया है।

  • इस रोग को मंकी फीवर (Monkey Fever) के नाम से भी जाना जाता है।

प्रमुख  बिंदु: 

पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण’ के बारे में:

  • इसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR)- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा विकसित किया गया है।
  • पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण में बैटरी से चलने वाला पॉलीमर चैन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction- PCR) एनालाइज़र शामिल है, जो एक पोर्टेबल, हल्का और यूनिवर्सल कार्ट्रिज-आधारित सैंपल प्री-ट्रीटमेंट किट और न्यूक्लिक एसिड एक्सट्रैक्शन डिवाइस (Nucleic Acid Extraction Device) है जो देखभाल के स्तर पर सैंपल प्रोसेसिंग में सहायता करता है। 
  • लाभ:
    • यह क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ के निदान में फायदेमंद साबित होगा क्योंकि इसका प्रकोप मुख्य रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में होता है, जहांँ परीक्षण हेतु अच्छी तरह से सुसज्जित लैब सुविधाओं का अभाव होता है।
    • यह त्वरित रोगी प्रबंधन और वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में उपयोगी होगा।

क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़:

  • यह क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ वायरस (Kyasanur Forest disease Virus- KFDV) के कारण होता है, जो मुख्य रूप से मनुष्यों और बंदरों को प्रभावित करता है।
  • वर्ष 1957 में इस रोग की पहचान सबसे पहले  कर्नाटक के क्यासानूर जंगल (Kyasanur Forest) के एक बीमार बंदर में की गई थी। तब से प्रतिवर्ष 400-500 लोगों के इस रोग से ग्रसित होने के  मामले सामने आए हैं।
  • परिणामस्वरूप KFD पूरे पश्चिमी घाट में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरी है।
  • संचरण:
    • यह वायरस मुख्य रूप से हार्ड टिकस ( हेमाफिसालिस स्पिनिगेरा), बंदरों, कृन्तकों (Rodents) और पक्षियों में  उपस्थित होता है।
    • मनुष्यों  में, यह कुटकी/टिक नामक कीट के काटने या संक्रमित जानवर (एक बीमार या हाल ही में मृत बंदर) के संपर्क में आने से फैलता है।

लक्षण:

  • ठंड लगना, सिरदर्द, शरीर में दर्द और 5 से 12 दिनों तक तेज़ बुखार का आना आदि। इनके कारण होने वाले मृत्यु की दर 3-5% है।
  • निदान:
    • रक्त से वायरस को अलग करके या पॉलीमर शृंखला अभिक्रिया द्वारा आणविक परीक्षण (Molecular Detection) से बीमारी के प्रारंभिक चरण में निदान किया जा सकता है।
    • बाद में सेरोलॉजिकल परीक्षण (Serologic Testing) में एंजाइम-लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेंट सेरोलॉजिक ऐसे-एलिसा  (Enzyme-linked Immunosorbent Serologic Assay- ELISA) का उपयोग किया जा सकता है।।

उपचार और रोकथाम:

  • मंकी फीवर का कोई विशेष इलाज नहीं है।
  • केएफडी हेतु फॉर्मेलिन इनएक्टिवेटेड केएफडीवी वैक्सीन मौजूद है जिसका उपयोग भारत के स्थानिक क्षेत्रों में किया जाता है।
    • हालांँकि इस रोग में यह देखा गया  कि जब एक बार व्यक्ति बुखार से संक्रमित हो जाता है तो वैक्सीन कारगर साबित नहीं होती है।

KFD

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

सुंदरलाल बहुगुणा: चिपको आंदोलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गांधीवादी सुंदरलाल बहुगुणा जो चिपको आंदोलन के प्रणेता थे, की कोविड -19 के कारण मृत्यु हो गई।

प्रमुख बिंदु:

चिपको आंदोलन:

  • यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
  • इस आंदोलन का नाम 'चिपको' 'वृक्षों के आलिंगन' के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
  • जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
  • इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
    • इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।

सुंदरलाल बहुगुणा (1927-2021):

Sunderlal-Bahuguna

  • इन्होंने हिमालय की ढलानों पर वृक्षों की रक्षा के लिये चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
  • इसके अलावा इन्हें चिपको का नारा 'पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है' गढ़ने के लिये जाना जाता है।
    • 1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने विश्व में यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिये।
  • भागीरथी नदी पर टिहरी बाँध के खिलाफ अभियान चलाया, जो विनाशकारी परिणामों वाली एक मेगा परियोजना है। उन्होंने आज़ादी के बाद भारत में 56 दिनों से अधिक समय तक लंबा उपवास किया।
  • पूरे हिमालयी क्षेत्र पर ध्यान आकर्षित करने के लिये 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा (पैदल मार्च) की।
  • उन्हें वर्ष  2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

भारत में प्रमुख पर्यावरण आंदोलन:

नाम 

वर्ष 

स्थान

प्रमुख

विवरण

बिशनोई आंदोलन

1700

राजस्थान का खेजड़ी, मारवाड़ क्षेत्र

अमृता देवी

चिपको आंदोलन

1973

उत्तराखंड

सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट

खेजड़ी (जोधपुर) राजस्थान में 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। इसी आंदोलन ने आज़ादी के बाद हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था।

साईलेंट वैली प्रोजेक्ट

1978

केरल में कुंतीपुझा नदी

केरल शास्त्र साहित्य परिषद सुगाथाकुमारी

केरल में साइलेंट वैली मूवमेंट कुद्रेमुख परियोजना के तहत कुंतीपुझा नदी पर एक पनबिजली बांँध के निर्माण के विरुद्ध था।

जंगल बचाओ आंदोलन

1982

बिहार का सिंहभूम ज़िला

सिंहभूम की जनजातियाँ

यह आंदोलन प्राकृतिक साल वन को सागौन से बदलने के सरकार के फैसले के खिलाफ था।

अप्पिको आंदोलन

1983

कर्नाटक

लक्ष्मी नरसिम्हा

प्राकृतिक पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए। सागौन और नीलगिरि के पेड़ों के व्यावसायिक वानिकी के खिलाफ।

टिहरी बाँध

1980-90

उत्तराखंड में टिहरी पर भागीरथी और भिलंगना नदी

टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति, सुंदरलाल बहुगुणा और वीरा दत्त सकलानी

नर्मदा बचाओ आंदोलन

1980 से वर्तमान तक

गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र

मेधा पाटकर, अरुंधती राय, सुंदरलाल बहुगुणा, बाबा आम्टे 

हाल के आंदोलन:

नाम

वर्ष 

स्थान

प्रमुख

विवरण

क्लाइमेट एक्सन स्ट्राइक

2019

छात्रों द्वारा दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई आदि मेट्रो शहरों में  

ग्रेटा थनबर्ग, बिट्टू केआर

‘सांस लेने का अधिकार’ आंदोलन

5 नवंबर, 2019

इंडिया गेट, नई दिल्ली

लियोनार्डो डी कैपरियो

नई दिल्ली पिछले दो वर्षों से सबसे प्रदूषित शहर बना है। इसका वायु गुणवत्ता इंडेक्स (AQI) 494 तक गिर गया है।

देहिंग पटकाई बचाओ आंदोलन

अप्रैल 2020

तिनसुकिया, असम

रोहित चौधरी, आदिल हुसैन, रणदीप हुड्डा, जो बरुआ और जाधव पीयेंग को भारत के जंगल मैन के रूप में जाना जाता है। अखिल असम छात्र संघ (AASU) और अखिल असम मटक यूथ संघ

देहिंग पटकाई बचाओ आंदोलन अप्रैल 2020 में नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (NBWL) द्वारा नार्थ-ईस्टर कोल फील्ड (NECF) को इस अभयारण्य में कोयला खनन की अनुमति देने के कारण शुरू हुआ।

आरे बचाओ आंदोलन

2019-20

आरे राष्ट्रीय उद्यान, मुंबई

मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRLC) की मेट्रो 3 कार शेड के लिये आरे कॉलोनी में वृक्षों की कटाई के खिलाफ।

सुंदरबन बचाओ अभियान

मई 2020

सुंदरबन विश्व में सबसे बड़े मैंग्रोव वन हैं, ये गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टा क्षेत्र में स्थित हैं

एक ऑनलाइन अभियान #savethesundarbans

मई 2020 में आया चक्रवात अम्फान, वर्ष 1737 के बाद से सबसे भीषण चक्रवात था जो सुंदरबन में विनाश के चिह्न छोड़ गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

कॉर्पोरेट ऋण के लिये व्यक्तिगत गारंटर का दायित्त्व

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा जारी वर्ष 2019 की उस अधिसूचना को बरकरार रखा है जो ऋणदाताओं को व्यक्तिगत गारंटर के विरुद्ध दिवाला कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देता है।

  • यह अधिसूचना ‘कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया’ (CIRP) के समापन के बाद ऋणदाताओं को व्यक्तिगत गारंटर से अपने शेष ऋण की वसूली करने की अनुमति देती है।
  • CIRP एक रिकवरी तंत्र है, जो ‘इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड’ 2016 (IBC) के तहत लेनदारों को उपलब्ध कराया गया है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • परिभाषा: व्यक्तिगत गारंटर का आशय एक ऐसे व्यक्ति या एक संस्था से है, जो किसी अन्य व्यक्ति के ऋण का भुगतान करने की गारंटी देता है या वादा करता है, यदि ऋण लेने वाला व्यक्ति ऋण चुकाने में असमर्थ रहता है।
  • केंद्र सरकार की वर्ष 2019 की अधिसूचना: इस अधिसूचना के माध्यम से दिवालिया कार्यवाही का सामना कर रही कंपनियों के ‘व्यक्तिगत गारंटर’ को ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (IBC) के दायरे में लाया गया।
    • ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (IBC) की धारा 1(3) केंद्र सरकार को कोड के विभिन्न प्रावधानों को अधिसूचित करने की अनुमति देती है, ताकि इसे समय के साथ सही ढंग से लागू किया जा सके।
    • इन नियमों और विनियमों में कॉर्पोरेट देनदारों को व्यक्तिगत गारंटर के विरुद्ध दिवाला समाधान और दिवालियापन की कार्यवाही शुरू करने, लेनदारों से दावों को आमंत्रित करने और ऐसे आवेदनों को वापस लेने आदि की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
  • नए नियम और विनियम लेनदारों को ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण’ (NCLT) के समक्ष प्रमुख उधारकर्त्ता, यानी कंपनी और व्यक्तिगत गारंटर के विरुद्ध एक साथ कानूनी कार्यवाही की अनुमति देते हैं।
    • अब तक IBC कोड केवल कॉर्पोरेट देनदारों के दिवाला समाधान और परिसमापन को कवर करता था।
  • विपक्षी तर्क: केंद्र सरकार के पास कॉर्पोरेट देनदारों के व्यक्तिगत गारंटरों के लिये चुनिंदा IBC प्रावधान लाने की शक्ति नहीं है।
    • गारंटर को अलग करना समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • स्वाभाविक संबंध: व्यक्तिगत गारंटर और उनके कॉर्पोरेट देनदारों के बीच एक ‘स्वाभाविक संबंध’ है।
    • IBC कोड की धारा 60 (2) के तहत कॉर्पोरेट देनदारों और उनके व्यक्तिगत गारंटर की दिवालियापन की कार्यवाही को एक सामान्य मंच यानी NCLT के समक्ष आयोजित करने को अनिवार्य बनाया गया है।
  • निर्णायक प्राधिकरण: यदि  कॉर्पोरेट देनदार, जिसके लिये गारंटी दी गई है, के संबंध में समानांतर समाधान प्रक्रिया लंबित है तो व्यक्तिगत गारंटर के लिये निर्णायक प्राधिकरण NCLT ही होगा। 
    • इस तरह यदि कॉर्पोरेट देनदारों और उनके व्यक्तिगत गारंटरों दोनों से संबंधित कार्यवाही एक ही स्थान पर होगी तो इससे ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण’ (NCLT) के समक्ष स्थिति और स्पष्ट हो सकेगी।

‘गारंटी’ की अवधारणा: 'गारंटी' की अवधारणा को भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 126 से लिया गया है।

  • गारंटी संबंधी अनुबंध देनदार, लेनदार और गारंटर के बीच किया जाता है।
  • इस स्थिति में यदि देनदार, लेनदार को ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो राशि का भुगतान करने का बोझ गारंटर पर आ जाता है।
  • यदि ‘गारंटर’ भी भुगतान करने में विफल रहता है तो ऐसी स्थिति में लेनदार के पास व्यक्तिगत गारंटर के विरुद्ध दिवाला कार्यवाही शुरू करने का अधिकार होता है।

संभावित लाभ

  • व्यक्तिगत गारंटर के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने से इस बात की संभावना अधिक बढ़ जाती है कि वे त्वरित निर्वहन के लिये लेनदार बैंक को ऋण के भुगतान की ‘व्यवस्था’ करेंगे।
  • लेनदार बैंक कटौती करने या ब्याज राशि को छोड़ने के लिये तैयार होंगे ताकि व्यक्तिगत गारंटर को ऋण का भुगतान करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • इससे संपत्ति का मूल्य अधिकतम होगा और उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा।

नोट

  • दिवाला: इसका अर्थ एक ऐसी स्थिति से है, जहाँ एक व्यक्ति या कंपनी अपना बकाया ऋण  चुकाने में असमर्थ होती है।
  • दिवालियापन: यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें सक्षम क्षेत्राधिकार द्वारा किसी व्यक्ति या कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और इसके समाधान के लिये तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा के लिये उचित आदेश पारित किया जाता है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि दिवालियापन ऋण के भुगतान में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।

स्रोत: द हिंदू


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