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डेली न्यूज़

  • 23 Sep, 2021
  • 45 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश: विश्व स्वास्थ्य संगठन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

भारत में प्रदूषण की स्थिति और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशा-निर्देश तथा उनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नए वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश (AQGs) जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों के तहत ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने प्रदूषकों के अनुशंसित स्तर को और कम कर दिया है, जिन्हें मानव स्वास्थ्य के लिये सुरक्षित माना जा सकता है।

  • यह वर्ष 2005 के बाद से ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का पहला अपडेट है। इन दिशा-निर्देशों का लक्ष्य सभी देशों के लिये अनुशंसित वायु गुणवत्ता स्तर प्राप्त करना है।

प्रमुख बिंदु

  • नए दिशा-निर्देश:
    • ये दिशा-निर्देश प्रमुख वायु प्रदूषकों के स्तर को कम करके विश्व आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये नए वायु गुणवत्ता स्तरों की सिफारिश करते हैं, जिनमें से कुछ जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।
    • इन दिशा-निर्देशों के तहत अनुशंसित स्तरों को प्राप्त करने का प्रयास कर सभी देशों को अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के साथ-साथ वैश्विक जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलेगी।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह कदम सरकार द्वारा नए सख्त मानकों को विकसित करने की दिशा में नीति में अंतिम बदलाव के लिये मंच तैयार करता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संस्ग्थान के नए दिशा-निर्देश उन 6 प्रदूषकों के लिये वायु गुणवत्ता के स्तर की अनुशंसा करते हैं, जिनके कारण स्वास्थ्य पर सबसे अधिक जोखिम उत्पन्न होता है।
      • इन 6 प्रदूषकों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और 10), ओज़ोन (O₃), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) शामिल हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए वैश्विक AQGs बनाम भारत का NAAQS:

Air-Quality-Standard

  • मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वायु प्रदूषण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरों में से एक है।
    • एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 7 मिलियन लोगों की मृत्यु समय से पूर्व हो जाती है और इसके परिणामस्वरूप लोगों के जीवन के लाखों स्वस्थ वर्षों का नुकसान होता है।
    • बच्चों में इसके अनेक प्रभाव दिखाई देते हैं, जैसे- फेफड़ों की वृद्धि और कार्य में कमी, श्वसन प्रणाली में संक्रमण, अस्थमा आदि।
    • वयस्कों में हृदय रोग और स्ट्रोक बाह्य वायु प्रदूषण के कारण समय से पूर्व मृत्यु के सबसे सामान्य कारण हैं तथा मधुमेह और तंत्रिका तंत्र का कमज़ोर होना या न्यूरोडीजेनेरेटिव (Neurodegenerative) स्थितियों जैसे अन्य प्रभावों के प्रमाण भी सामने आ रहे हैं।
    • वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों को अन्य प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य जोखिमों जैसे- अस्वास्थ्यकर आहार और तंबाकू धूम्रपान के कारण होने वाले रोगों के समान माना गया है।
    • वायु प्रदूषण के जोखिम के मामले में दुनिया भर में असमानताएँ बढ़ रही है, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बड़े पैमाने पर शहरीकरण एवं आर्थिक विकास के चलते वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का प्रभाव पड़ रहा है, जिसका कारण काफी हद तक जीवाश्म ईंधन का दहन है।
  • भारत में प्रदूषण की स्थिति: 
    • भारत विश्व के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है, जिसमें प्रदूषक स्तरअनुशंसित स्तरों (Recommended Levels) से कई गुना अधिक है।
      • उदाहरण के लिये ग्रीनपीस के एक अध्ययन में वर्ष 2020 में नई दिल्ली में PM2.5 की औसत सांद्रता प्रदूषण के अनुशंसित स्तरों से लगभग 17 गुना अधिक पाई गई। 
      • मुंबई में प्रदूषण का स्तर आठ गुना अधिक, कोलकाता में नौ गुना और चेन्नई में पाँच गुना अधिक था।
    • ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी (Global Burden of Disease study) के विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की 95% से अधिक आबादी पहले से ही उन क्षेत्रों में रहती है जहांँ प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के वर्ष 2005 के मानदंडों से अधिक था।
    • WHO के वर्ष 2005 के मानदंडों की तुलना में भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक बहुत अधिक उदार हैं।
      • उदाहरण के लिये 24 घंटे की अवधि में अनुशंसित PM2.5 सांद्रता 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि WHO के वर्ष 2005 के दिशा-निर्देशों में 25 माइक्रोग्राम की सलाह दी गई है। 
      • लेकिन मानकों के इस निम्न स्तर को शायद ही पूरा किया जाता है।
  • नए दिशानिर्देशों का भारत पर प्रभाव: 
    • नए वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों का मतलब है कि लगभग पूरे भारत को वर्ष के अधिकांश समय के लिये प्रदूषित क्षेत्र माना जाएगा।
      • हालाँकि WHO ने स्वयं माना है कि विश्व की 90% से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जो वर्ष 2005 के प्रदूषण मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
    • WHO के नए मानदंडों के आधार पर भारत को अपनी हवा को साफ और सुरक्षित बनाने हेतु कड़ी मेहनत करनी चाहिये।
    • इसके अलावा विशेष रूप से भारत सहित दक्षिण एशिया जैसे चुनौतीपूर्ण भू-जलवायु क्षेत्रों में नए दिशा-निर्देशों को लागू करने की व्यवहार्यता संदिग्ध है।
      • विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र में मौसम और जलवायु परिस्थितियाँ चुनौतीपूर्ण हैं, जिसमें धुंध स्तंभ (Haze Columns), ऊष्मा द्वीप (Heat Island) का प्रभाव तथा बहुत अधिक आधार प्रदूषण की अतिरिक्त चुनौती है।
    • हालाँकि WHO के दिशा-निर्देश बाध्यकारी नहीं हैं, उसके इस कदम का भारत पर तुरंत प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) WHO के मौजूदा मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
      • सरकार का अपना एक समर्पित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक वर्ष 2017 के स्तर को आधार वर्ष मानते हुए 122 शहरों में कणों की सांद्रता में 20% से 30% तक की कमी लाना है।

आगे की राह

  • भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य डेटा को मज़बूत करने और तद्नुसार राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को संशोधित करने की आवश्यकता है। 
  • इसके अलावा महामारी के दौरान कठिन लॉकडाउन चरणों की अवधि में प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई थी, इससे स्थानीय प्रदूषण और क्षेत्रीय प्रभावों को कम करना संभव प्रतीत होता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर

प्रिलिम्स के लिये:

पद्मनाभस्वामी मंदिर,सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर ट्रस्ट द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें पिछले वर्ष (2020) अदालत के आदेश के अनुसार इसे 25 साल के ऑडिट से छूट देने की मांग की गई थी।

Sree-Padmanabhaswamy-Temple

प्रमुख बिंदु 

  •  पद्मनाभस्वामी मंदिर के बारे में:
    • यह मंदिर वर्ष 2011 में उस समय चर्चा में आया जब इसकी भूमिगत तिजोरियों में रखे गए 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक के खजाने की खोज की गई।
    • वर्ष 2011 में  सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रथागत कानून के अनुसार, अंतिम शासक की मृत्यु के बाद भी शाही परिवार के सदस्यों के पास शेबैत अधिकार/ प्रबंधन करने का अधिकार (Shebait Rights) है।
      • शेबैत अधिकारों का अर्थ है देवता के वित्तीय मामलों के प्रबंधन का अधिकार।
      • पद्मनाभस्वामी मंदिर ट्रस्ट को पूर्व त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा बनाया गया है।
    • हालांँकि न्यायालय ने भविष्य में मंदिर के पारदर्शी प्रशासन के लिये तिरुवनंतपुरम ज़िला न्यायाधीश को अध्यक्ष के रूप में एक प्रशासनिक समिति के गठन का निर्देश दिया।
    • ट्रस्ट का तर्क है, चूँकि इसका गठन (न्यायालय के पूर्व के आदेश पर) मंदिर के अनुष्ठानों की देख-रेख के लिये किया गया था, प्रशासन में इसकी कोई भूमिका नहीं थी, यह मंदिर से अलग एक इकाई है और इसे ऑडिट में शामिल नहीं किया जा सकता है। 
    • प्रशासनिक समिति के अनुसार, यह अत्यधिक वित्तीय तनाव की स्थिति है और त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा संचालित मंदिर से संबंधित ट्रस्ट ऑडिट की मांग के खर्च को पूरा करने में सक्षम नहीं है।
  • पद्मनाभस्वामी मंदिर:
    • इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर 8वीं शताब्दी का है लेकिन वर्तमान संरचना का निर्माण 18वीं शताब्दी में तत्कालीन त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा (Marthanda Varma) द्वारा किया गया था।
      • यह मंदिर शुरू में लकड़ी का बना था लेकिन बाद में इसे ग्रेनाइट से बनाया गया।
    • यह मंदिर वास्तुकला की अनूठी चेरा शैली में निर्मित है तथा यहाँ के मुख्य देवता भगवान विष्णु हैं जो आदिश या सभी नागों के राजा अनंत शयन मुद्रा (शाश्वत योग की झुकी हुई मुद्रा) में विराजमान हैं।
    • इसे भारत में वैष्णववाद से जुड़े 108 पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

ब्लू फ्लैग प्रमाणीकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फाउंडेशन फॉर एन्वायरनमेंटल एजुकेशन (FEE), डेनमार्क ने कोवलम (तमिलनाडु) और ईडन (पुद्दुचेरी) को ब्लू फ्लैग प्रमाणीकरण से पुरस्कृत किया है, जिसके पश्चात् देश में ब्लू फ्लैग प्रमाण-पत्र प्राप्त करने वाले समुद्र तटों की कुल संख्या 10 हो गई है।

  • समुद्र तट पर लहराता हुआ “ब्लू फ्लैग”, 33 कड़े मानदंडों का 100% अनुपालन और समुद्र तट के अच्छे स्वास्थ्य का संकेत होता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्तएक इको-लेबल है जिसे 33 मानदंडों के आधार पर प्रदान किया जाता है। इन मानदंडों को 4 प्रमुख शीर्षकों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं-
      • पर्यावरण शिक्षा और सूचना
      • स्नान के पानी की गुणवत्ता
      • पर्यावरण प्रबंधन
      • समुद्र तटों पर संरक्षण और सुरक्षा सेवाएँ
    • ब्लू फ्लैग समुद्र तटों को दुनिया का सबसे साफ समुद्र तट माना जाता है। यह एक ईको-टूरिज़्म मॉडल है, जो पर्यटकों/समुद्र तट पर आने वालों को नहाने के लिये साफ एवं स्वच्छ जल, सुविधाओं, सुरक्षित एवं स्वस्थ वातावरण प्रदान करने के साथ क्षेत्र के सतत् विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
    • यह प्रतिष्ठित सदस्यों- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO), डेनमार्क स्थित एनजीओ फाउंडेशन फॉर एन्वायरनमेंटल एजुकेशन (FEE) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) से गठित एक अंतर्राष्ट्रीय जूरी द्वारा प्रदान किया जाता है।
    • ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन की तरह ही भारत ने भी अपना इको-लेबल बीच एन्वायरनमेंट एंड एस्थेटिक्स मैनेजमेंट सर्विसेज़’ (Beach Environment and Aesthetics Management Services- BEAMS) लॉन्च किया है।
  • अन्य आठ समुद्र तट जिन्हें ब्लू फ्लैग प्रमाणन प्राप्त हुआ है:
    • शिवराजपुर, गुजरात
    • घोघला, दमन व दीव
    • कासरकोड, कर्नाटक
    • पदुबिद्री तट, कर्नाटक
    • कप्पड़, केरल
    • रुशिकोंडा, आंध्र प्रदेश
    • गोल्डन बीच, ओडिशा
    • राधानगर तट, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

India

बीच एन्वायरनमेंट एंड एस्थेटिक्स मैनेजमेंट सर्विसेज़ (BEAMS)

  • BEAMS का आशय समुद्र तट का पर्यावरण और सौंदर्यशास्त्र प्रबंधन सेवाएँ है।
  • बीच एन्वायरनमेंट एंड एस्थेटिक्स मैनेजमेंट सर्विस, एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management- ICZM) परियोजना के तहत आती है।
  • इसे सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट (Society of Integrated Coastal Management- SICOM) एवं केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • BEAMS कार्यक्रम के उद्देश्य हैं:
    • तटीय जल प्रदूषण को न्यून करना
    • समुद्र तट पर सुविधाओं के सतत् विकास को बढ़ावा देना
    • तटीय पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण
    • स्वच्छता के उच्च मानकों को मज़बूत करना और उन्हें बनाए रखना
    • तटीय वातावरण एवं नियमों के अनुसार समुद्र तट के लिये स्वच्छता और सुरक्षा।
  • इसने पुनर्चक्रण के माध्यम से 1,100 मिली/वर्ष नगरपालिका के पानी को बचाने में मदद की है; समुद्र तट पर जाने वाले 1,25,000 लोगों को समुद्र तटों पर ज़िम्मेदार व्यवहार बनाए रखने के लिये शिक्षित किया गया। प्रदूषण में कमी, सुरक्षा और सेवाओं के माध्यम से 500 मछुआरा परिवारों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान किये गए तथा समुद्र तटों पर मनोरंजन गतिविधियों के लिये पर्यटकों की संख्या में लगभग 80% की वृद्धि हुई है जिससे आर्थिक विकास हुआ है।

स्रोत: पीआईबी


कृषि

हल्दी की नई किस्में

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, सीआईएम-पीताम्बर, केशरी किस्म, केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान

मेन्स के लिये:

हल्दी की नई किस्मों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में ओडिशा के नबरंगपुर (आकांक्षी ज़िलों में से एक) में हल्दी की उच्च उपज देने वाली करक्यूमिनोइड-समृद्ध सीआईएम-पीताम्बर (CIM-Pitamber) और राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute- NBRI) द्वारा विकसित केशरी किस्म (Keshari Variety) पेश की गई है।

प्रमुख बिंदु 

  •  सीआईएम-पीताम्बर:
    •  सीआईएम-पीताम्बर के बारे में:
      • यह केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (CIMAP) द्वारा विकसित हल्दी की एक उच्च उपज देने वाली करक्यूमिनोइड-समृद्ध (Curcuminoid-Rich) किस्म है।
        • बीजों की उच्च उपज देने वाली किस्मों (High yielding varieties- HYV) में वे बीज आते हैं जो बड़ी मात्रा में फसलों विशेषकर गेहूंँ और चावल का उत्पादन करते हैं।
        • इन बीजों के उपयोग के लिये पानी की नियमित आपूर्ति, उर्वरकों का अधिकतम उपयोग और सही अनुपात में कीटनाशकों का उपयोग आवश्यक है।
      • इस किस्म में हल्दी के अन्य मौजूदा किस्मों की तुलना में करक्यूमिनोइड तत्त्व 12.5% अधिक होता है।
        • करक्यूमिनोइड हल्दी से प्राप्त होने वाला एक पदार्थ है जिसमें कैंसर-रोधी गुण, शरीर की सूजन को कम करने का गुण, एंटी-एजिंग, मधुमेह-रोधी और कई अन्य औषधीय गुण विद्यमान हैं।
    • लाभ:
      • यह हल्दी की मौजूदा किस्मों की तुलना में 50% अधिक उपज देने में सक्षम  है जो किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में मददगार साबित हो सकती है। यह हल्दी में पत्ती धब्बा रोग (Leaf Blotch Disease of Turmeric) के प्रति भी सहिष्णु है।
      • करक्यूमिनोइड (Curcuminoid) की उच्च मात्रा वाली हल्दी यूरोपीय देशों और उत्तरी अमेरिका द्वारा पसंद की जाती है। करक्यूमिन की अधिक मात्रा होने पर इसका निर्यात और बिक्री मूल्य अधिक होगा।
  • केशरी किस्म:
    • यह सर्दियों के दौरान कम तापमान और पाले के प्रति सहनशील है। अन्य किस्मों की तुलना में इसकी वृद्धि अवधि लंबी होती है, जो उच्च गुणवत्ता की उच्च ताज़ा प्रकंद उपज (Fresh Rhizome Yield) देती है।
    • मौजूदा अन्य किस्मों की तुलना में इस किस्म में सर्दियों के दौरान पत्तियों के पीले होने और गिरने की समस्या कम उत्पन्न होती है, जिससे इस किस्म की जीवन अवधि (Life Period) बढ़ जाती है।
    • इसमें करक्यूमिनोइड की कुल मात्रा लगभग 1.16% है, जो उत्तर भारत में की जाने वाली अन्य मौजूदा हल्दी की खेती की किस्मों से भी अधिक है।
  • हल्दी:
    • हल्दी एक पुष्पीय पौधा है, यह जिंजर फेमिली से संबंधित है जिसका वानस्पतिक नाम करकुमा लोंगा (Curcuma Longa ) है, इसका उपयोग धार्मिक समारोहों के अलावा मसाला, डाई, दवा और कॉस्मेटिक के रूप में भी किया जाता है।
    • इसका पीला रंग मुख्य रूप से करक्यूमिन (Curcumin) नामक एक चमकीले पीले फेनोलिक यौगिक (Phenolic Compound) के कारण होता है।
    • भारत विश्व में हल्दी का एक प्रमुख उत्पादक और निर्यातक देश है जो वैश्विक स्तर पर हल्दी का 80% उत्पादन करता है।
      • वर्ष 2018 में तेलंगाना, भारत में हल्दी का प्रमुख उत्पादक राज्य था। महाराष्ट्र और तमिलनाडु उस वर्ष रैंकिंग में दूसरे और तीसरे स्थान पर थे।
    • इसे समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊँचाई, विभिन्न उष्णकटिबंधीय परिस्थितियाँ, 20-350 डिग्री  तापमान,1500 मिमी या उससे अधिक की वार्षिक वर्षा तथा बरसाती या सिंचित परिस्थितियों में उगाया जा सकता है।

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (CIMAP)

  • CIMAP, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक अग्रणी पादप अनुसंधान प्रयोगशाला है जिसे वर्ष 1959 में ‘केंद्रीय भारतीय औषधीय पादप संगठन’ (Central Indian Medicinal Plants Organisation- CIMPO) के रूप में स्थापित किया गया था।  
  • यह जैविक और रासायनिक विज्ञान में बहु-विषयक उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान का संचालन कर रहा है और औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती करने वाले किसानों और उद्यमियों तक प्रौद्योगिकियों और सेवाओं का विस्तार कर रहा है।
  • इसका मुख्यालय लखनऊ में है।

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान

यह 1953 में स्थापित CSIR के घटक अनुसंधान संस्थानों में से एक है। इसका मुख्यालय लखनऊ में है।

यह वनस्पति विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान करता है, जिसमें प्रलेखन, संरक्षण और आनुवंशिक सुधार शामिल है।

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सीईपीए: भारत-यूएई

प्रिलिम्स के लिये:

व्यापक आर्थिक सहयोग तथा भागीदारी समझौते, बौद्धिक संपदा अधिकार

मेन्स के लिये:

भारत-यूएई आर्थिक एवं अन्य संबंध

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने औपचारिक रूप से भारत-यूएई व्यापक आर्थिक सहयोग तथा भागीदारी समझौते (CEPA) पर वार्ता शुरू की।

  • वर्ष 2017 में हस्ताक्षरित व्यापक रणनीतिक साझेदारी के तहत दोनों देशों द्वारा की गई प्रगति को आगे बढ़ाने के लिये दोनों देशों ने पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक समझौते तक पहुंँचने की इच्छा व्यक्त की।

UAE

प्रमुख बिंदु 

  • व्यापक आर्थिक सहयोग तथा भागीदारी समझौता (CEPA):
    • यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें सेवाओं एवं निवेश के संबंध में व्यापार और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों पर बातचीत करना शामिल है। यह व्यापार सुविधा और सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा  तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे क्षेत्रों पर बातचीत किये जाने पर भी विचार कर सकता है।
    • साझेदारी या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।
    • CEPA व्यापार के नियामक पहलू को भी देखता है और नियामक मुद्दों को कवर करने वाले एक समझौते को शामिल करता है।
    • भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • भारत-यूएई आर्थिक संबंध:
    • वर्ष 2019-2020 में संयुक्त अरब अमीरात द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है, जिसका मूल्य 59 बिलियन अमेरिकी डाॅलर है।
    • संयुक्त अरब अमीरात अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है, जिसका निर्यात वर्ष 2019-2020 में लगभग 29 बिलियन अमेरिकी डाॅलर था।
    • यूएई भारत में आठवांँ सबसे बड़ा निवेशक है, जिसने अप्रैल 2000 और मार्च 2021 के बीच 11 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का निवेश किया है, जबकि यूएई में भारतीय कंपनियों द्वारा 85 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक का निवेश किये जाने का अनुमान है।
    • प्रमुख निर्यात: पेट्रोलियम उत्पाद, कीमती धातुएंँ, पत्थर, रत्न और आभूषण, खनिज आदि।
    • प्रमुख आयात: पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद, कीमती धातु, पत्थर, रत्न और आभूषण, खनिज आदि।
  • भारत-यूएई सीईपीए का महत्त्व:
    • यह हस्ताक्षरित समझौते के पाँच वर्षों के भीतर वस्तुओं में द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक बढ़ाने तथा सेवाओं के क्षेत्र में व्यापार को बढ़ाकर 15 बिलियन अमेरिकी डाॅलर करने की संभावना व्यक्त करता है, जिससे दोनों देशों में व्यापक सामाजिक और आर्थिक अवसर सृजित होंगे।

अन्य प्रकार के व्यापारिक समझौते

  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
    • यह एक ऐसा समझौता है जिसे दो या दो से अधिक देशों द्वारा भागीदार देश को तरजीही व्यापार समझौतों, टैरिफ रियायत या सीमा शुल्क में छूट आदि प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है।
    • भारत ने कई देशों के साथ FTA पर बातचीत की है जैसे श्रीलंका और विभिन्न व्यापारिक ब्लॉकों से आसियान के मुद्दे पर।
  • अधिमान्य या तरजीही व्यापार समझौता (PTA):
    • इस प्रकार के समझौते में दो या दो से अधिक भागीदार कुछ उत्पादों के संबंध में प्रवेश का अधिमान्य या तरजीही अधिकार देते हैं। यह टैरिफ लाइनों की एक सहमत संख्या पर शुल्क को कम करके किया जाता है।
    • यहाँ तक कि PTA में भी कुछ उत्पादों के लिये शुल्क को घटाकर शून्य किया जा सकता है। भारत ने अफगानिस्तान के साथ एक PTA पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA):
    • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA ) आमतौर पर केवल व्यापार शुल्क और टैरिफ-रेट कोटा (TRQ) दरों को  बातचीत के माध्यम से तय करता है। यह CECA जितना व्यापक नहीं है। भारत ने मलेशिया के साथ CECA पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • द्विपक्षीय निवेश संधियाँ (BIT):
    • यह एक द्विपक्षीय समझौता है जिसमें दो देश एक संयुक्त बैठक करते हैं तथा दोनों देशों के नागरिकों और फर्मों/कंपनियों द्वारा निजी निवेश के लिये नियमों एवं शर्तों को तय किया जाता है।
  • व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क समझौता (TIFA):
    • यह दो या दो से अधिक देशों के बीच एक व्यापार समझौता है जो व्यापार के विस्तार और देशों के बीच मौजूदा विवादों को हल करने के लिये एक रूपरेखा तय करता है।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु-प्रेरित प्रवासन और आधुनिक दासता

प्रिलिम्स के लिये:

आधुनिक दासता, मानव तस्करी, जलवायु परिवर्तन, सुंदरबन

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन : प्रवासन एवं चुनैतियाँ, आधुनिक दासता के रूप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण और विकास संस्थान (IIED) तथा एंटी-स्लेवरी इंटरनेशनल ने जलवायु-प्रेरित प्रवासन एवं आधुनिक दासता (Climate-Induced Migration and Modern Slavery) ​नामक एक रिपोर्ट जारी की।

  • IIED एक नीति और कार्य अनुसंधान संगठन है जो सतत् विकास को बढ़ावा देता है तथा स्थानीय प्राथमिकताओं को वैश्विक चुनौतियों से जोड़ता है। यह लंदन, यूके में स्थित है।
  • एंटी-स्लेवरी इंटरनेशनल दुनिया का सबसे पुराना अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1839 में हुई थी। यह एकमात्र ब्रिटिश चैरिटी है जो विशेष रूप से सभी प्रकार की गुलामी/दासता को खत्म करने के लिये कार्यरत है।

प्रमुख बिंदु

  • बढ़ती असमानताएँ:
    • जलवायु परिवर्तन पृथ्वी को नष्ट कर रहा है, जिससे वैश्विक असमानता के साथ-साथ भूमि, जल और दुर्लभ संसाधनों के उपयोग पर विवाद बढ़ रहे हैं।
  • बढ़ता प्रवासन:
    • संसाधनों और आय की तलाश में लोग देश की सीमाओं के भीतर और बाहर पलायन करने के लिये मजबूर होते हैं।
      • वर्ष 2020 में चरम मौसमी घटनाओं के कारण कम-से-कम 55 मिलियन लोग अपने देशों के भीतर आंतरिक रूप से विस्थापित हुए थे।
    • विश्व बैंक की ग्राउंड्सवेल रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक जलवायु संकट का प्रभाव (जैसे- फसल की कम पैदावार, जल की कमी और समुद्र का बढ़ता स्तर) उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका सहित छह क्षेत्रों में 216 मिलियन से अधिक लोगों को अपने देशों से स्थानांतरित करने के लिये मज़बूर कर सकता है।  
  • आधुनिक दासता:
    • जलवायु परिवर्तन से प्रेरित चरम मौसमी घटनाओं ने महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों को आधुनिक दासता एवं मानव तस्करी जैसे खतरों की ओर धकेल दिया है। इस प्रकार की घटनाएँ अन्य देशों के साथ-साथ भारत में भी बढ़ रही है।
      • दुनिया में 40.3 मिलियन लोग दासता में जीवनयापन कर रहे हैं।
    • आधुनिक दासता के प्रति संवेदनशीलता के चालक जटिल हैं और जोखिम के कई चरणों से प्रभावित हैं। जबकि कई सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और संस्थागत जोखिम भेद्यता को आकार देते हैं लेकिन उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और पर्यावरणीय गिरावट से भी खराब माना जाता है।

Sundarbans

  • सुंदरबन की स्थिति:
    • सुंदरबन क्षेत्र में लोग तीव्र, बार-बार और अचानक शुरू होने वाली आपदाओं से प्रभावित रहते है, इस वजह से सुंदरबन में लाखों लोग वर्ष के अधिकांश समय काम करने में असमर्थ होते हैं।
      • सुंदरबन डेल्टा में गंभीर चक्रवात और बाढ़ ने कृषि के लिये भूमि को भी कम कर दिया, जो आजीविका का प्रमुख स्रोत है।
    • जबकि सीमावर्ती देशों द्वारा तस्करी पर प्रतिबंध लगाए गए थे फिर भी आपदा प्रभावित क्षेत्र में सक्रिय तस्करों द्वारा उन विधवाओं और पुरुषों को लक्षित किया गया जो रोज़गार की तलाश में सीमा पार कर भारत आने के इच्छुक थे। 
      • महिलाओं की तस्करी कर अक्सर उन्हें कड़ी मेहनत और वेश्यावृत्ति के लिये मज़बूर किया जाता था, जिनमें से कुछ सीमा पर स्वेटशॉप (Sweatshop) में काम करती थीं।
      • अपने गंतव्य स्थानों पर संसाधनों, कौशल या सामाजिक नेटवर्क के अभाव के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में विस्थापित और प्रवास करने वाले लोगों को एजेंटों और/या तस्करों द्वारा लक्षित किया जाता है।
  • सुझाव:
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को पहचानना:
      • जलवायु और विकास नीति-निर्माताओं को तत्काल यह पहचानने की आवश्यकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित हुए लाखों लोग क्या गुलामी के शिकार हो रहे हैं या आने वाले दशकों में गुलामी के शिकार होंगे।
    • लक्षित कार्रवाइयों को विकसित करना:
      • नीति निर्माताओं को इस मुद्दे के समाधान हेतु राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लक्षित कार्रवाइयाँ विकसित करनी चाहिये। विकास और जलवायु नीति पर वैश्विक एवं क्षेत्रीय चर्चा में जलवायु आघातों के कारण होने वाली तस्करी तथा दासता के जोखिमों पर विचार किया जाना चाहिये।  
    • प्रतिबद्ध वित्तपोषण:
      • जी 20 को जलवायु प्रभावों के कारण बार-बार होने वाले विस्थापन के संदर्भ में गुलामी-विरोधी प्रयासों (Anti-Slavery Efforts) को संबोधित करने हेतु दीर्घकालिक वित्तपोषण प्रदान करने के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये।
    • पहलों का समन्वय करना:
      • कई संचालित पहलें जिनमें विस्थापन पर वारसॉ इंटरनेशनल मैकेनिज़्म टास्क फोर्स (WIM TFD), सेंदाई फ्रेमवर्क आदि शामिल हैं, को जलवायु-प्रेरित प्रवास/विस्थापन तथा आधुनिक दासता के बढ़ते जोखिमों की समझ और उसके प्रति जगरूकता बढ़ाने के लिये समन्वित किया जाना चाहिये।
    • आधुनिक दासता से निपटने का प्रयास:
      • यह रिपोर्ट नवंबर 2021 में ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (CoP 26) से पहले विश्व नेताओं के लिये एक चेतावनी है।
      • यह जलवायु आपातकाल के समाधान के साथ-साथ आधुनिक दासता से निपटने के लिये सुनिश्चित प्रयास करने का आह्वान करता है।

आधुनिक दासता के रूप

  • मानव तस्करी: इसमें जबरन वेश्यावृत्ति, श्रम, अपराध, विवाह या मानव अंगों की चोरी जैसे उद्देश्यों के लिये लोगों का शोषण करना, हिंसा, धमकियों या उनके साथ जबरदस्ती करना, उन्हें बेचने या उन्हें परेशान करना शामिल है।
  • जबरन मज़दूरी कराना: इसमें किसी भी कार्य या सेवा में संलग्न लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध सज़ा के तौर पर कार्य करने के लिये मजबूर किया जाता है।
  • ऋण बंधन/ बंधुआ मज़दूरी: यह गुलामी का विश्व में सबसे व्यापक रूप है। गरीबी में लोग जीवन यापन के लिये पैसे उधार लेते हैं और कर्ज चुकाने के लिये अमानवीय स्थिति में कार्य करने को मजबूर होते हैं, अपनी रोज़गार की स्थिति और कर्ज दोनों पर उनका नियंत्रण समाप्त हो जाता है।
  • वंश-आधारित दासता: गुलामी का पारंपरिक रूप जिसमें लोगों को संपत्ति के रूप में माना जाता है तथा उनकी ‘गुलाम’ की स्थिति मातृ रेखा (Maternal Line) से नीचे चली जाती है।
  • बच्चों को गुलाम बनाना: जब किसी और के लाभ के लिये किसी बच्चे का शोषण किया जाता है। इसमें बाल तस्करी, बाल सैनिक, बाल विवाह और बाल घरेलू दासता शामिल हो सकते हैं।
  • जबरन और जल्दी शादी करना: जब किसी की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ की जाती है और वह अपने साथी को छोड़ भी नहीं सकता। अधिकांश बाल विवाहों को दासता माना जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह

प्रिलिम्स के लिये:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया पहल, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना

मेन्स के लिये:

भारत में FDI को बढ़ावा देने के लिये सरकारी प्रयास

चर्चा में क्यों?

वित्त वर्ष 2021-22 के प्रथम चार महीनों (अप्रैल-जुलाई) के दौरान भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में पिछले वर्ष (2020-21) की इसी अवधि की तुलना में 62% की वृद्धि हुई है।

  • भारत ने प्रथम चार महीनों के दौरान 27.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर के FDI प्रवाह को आकर्षित किया है।
  • वित्त वर्ष 2020-21 में भारत ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 10% (82 अरब डॉलर) की वृद्धि दर्ज की है।

प्रमुख बिंदु

  • FDI इक्विटी:
    • पिछले वर्ष की अप्रैल-जुलाई अवधि (9.61 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में वित्त वर्ष 2020-21 में FDI इक्विटी प्रवाह में 112% की वृद्धि हुई है।
  • शीर्ष क्षेत्र:
    • 'ऑटोमोबाइल उद्योग' शीर्ष क्षेत्र के रूप में उभरा है। FDI इक्विटी प्रवाह में इसका कुल योगदान 23% रहा है, इसके बाद कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर (18%) तथा सेवा क्षेत्र (10%) का स्थान रहा है।
  • शीर्ष FDI प्राप्तकर्त्ता राज्य:
    • कुल FDI इक्विटी प्रवाह में 45 प्रतिशत हिस्से के साथ कर्नाटक शीर्ष प्राप्तकर्त्ता राज्य रहा है, इसके बाद महाराष्ट्र (23%) और दिल्ली (12%) का स्थान है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

  • परिभाषा: 
    • FDI एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश (मूल देश) के निवासी किसी अन्य देश (मेज़बान देश) में एक फर्म के उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त करते हैं।
      • यह विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) से भिन्न है, जिसमें विदेशी इकाई केवल एक कंपनी के स्टॉक और बॉण्ड खरीदती है किंतु इससे FPI निवेशक को व्यवसाय पर नियंत्रण का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
  • तीन घटक:
    • इक्विटी कैपिटल: यह विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक की अपने देश के अलावा किसी अन्य देश के उद्यम के शेयरों की खरीद से संबंधित है।
    • पुनर्निवेशित आय: इसमें प्रत्यक्ष निवेशकों की कमाई का वह हिस्सा शामिल होता है जिसे किसी कंपनी के सहयोगियों (Affiliates) द्वारा लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाता है या यह कमाई प्रत्यक्ष निवेशक को प्राप्त नहीं होती है। सहयोगियों द्वारा इस तरह के लाभ को पुनर्निवेश किया जाता है।
    • इंट्रा-कंपनी ऋण: इसमें प्रत्यक्ष निवेशकों (या उद्यमों) और संबद्ध उद्यमों के बीच अल्पकालिक या दीर्घकालिक उधार और निधियों का उधार शामिल होता है।
  • भारत में FDI संबंधी मार्ग
  • FDI को बढ़ावा देने के लिये सरकारी प्रयास:

स्रोत: पीआईबी   


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