प्रवासी प्रजातियों का अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण
प्रीलिम्स के लियेCOP-13, CMS, IUCN मेन्स के लियेप्रवासी पक्षियों के संरक्षण से संबंधित प्रमुख प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
गुजरात के गांधीनगर में आयोजित किये जा रहे ‘प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र के काॅप-13 सम्मेलन (United Nations 13th Conference of the Parties to the Convention on Migratory Species) में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई हाथी और बंगाल फ्लोरिकन को प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के परिशिष्ट-I में शामिल करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है।
एशियाई हाथी
- भारत सरकार ने भारतीय हाथी को राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित किया है। भारतीय हाथी को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध करके कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है।
- CMS अभिसमय के परिशिष्ट I में भारतीय हाथी के शामिल होने से भारत की सीमाओं पर इसके प्राकृतिक प्रवास को सुरक्षित किया जा सकेगा। इससे हमारी भावी पीढ़ियों के लिये इस लुप्तप्राय प्रजाति के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
- मुख्य भूमि से संबंधित एशियाई या भारतीय हाथी भोजन तथा आवास की खोज में एक राज्य से दूसरे राज्य तथा एक देश की सीमा से दूसरे देश की सीमा में विचरण करते हुए चले जाते हैं। अधिकांश एशियाई हाथी आवास स्थान की हानि एवं विखंडन, मानव-हाथी संघर्ष, अवैध शिकार तथा अवैध व्यापार जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- भारत मुख्यभूमि से संबंधित एशियाई हाथियों का प्राकृतिक घर है, इसलिये वह हाथियों के संरक्षण के लिये पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard) अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से लुप्तप्राय, संरक्षण पर निर्भर और पारगमन संकेतों को प्रदर्शित करने वाली प्रजाति है, इसका प्रवासन भारत-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में इसके अवैध शिकार और विद्युत तारों से टकराने जैसे खतरों को उजागर करता है।
- इसे CMS के परिशिष्ट I में शामिल करने का निर्णय अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण निकायों तथा मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौते द्वारा सुव्यवस्थित संरक्षण प्रयासों में सहयोगी होगा।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है। इसकी लगभग 100–150 की संख्या में एक छोटी आबादी है जो भारत में राजस्थान के थार रेगिस्तान तक सीमित है। इस प्रजाति की 50 वर्षों (छह पीढ़ियों) के भीतर 90% आबादी कम हो गई है और भविष्य में इस पर खतरे बढ़ने की आशंका है।
बंगाल फ्लोरिकन
- बंगाल फ्लोरिकन IUCN की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है। पारगमन प्रवासन के कारण आवास क्षेत्र में बदलाव तथा प्रवास के दौरान भारत-नेपाल सीमा पर विद्युत तारों की चपेट में आने से इनकी संख्या में निरंतर कमी आ रही है।
- आवास कम होने और अत्यधिक शिकार के कारण इनकी आबादी कम हो रही है। यह प्रजाति असम के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारतीय उपमहाद्वीप में संरक्षित क्षेत्रों से बाहर प्रजनन नहीं करती हैं।
- इसे CMS के परिशिष्ट I में शामिल करना संरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा।
- बंगाल फ्लोरिकन असम के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारतीय उपमहाद्वीप के संरक्षित क्षेत्रों से बाहर नहीं पाए जाते हैं।
भारत के कौन से प्रस्ताव स्वीकार किये गए?
- भारत ने इस कन्वेंशन के परिशिष्ट- I में तीन प्रजातियों को शामिल करने का प्रस्ताव दिया।
- परिशिष्ट- I में ऐसी प्रजातियों को सूचीबद्ध किया जाता हैं जिनके विलुप्त होने का खतरा है।
- परिशिष्ट- II में ऐसी प्रजातियों को सूचीबद्ध किया जाता हैं जिन्हें आवश्यक अनुकूल संरक्षण स्थिति के लिये वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।
- यदि किसी प्रजाति को परिशिष्ट- I में सूचीबद्ध किया जाता है, तो इससे प्रजाति विशेष के सीमा-पार संरक्षण प्रयास सहज हो जाते हैं।
भारत द्वारा प्रस्तुत इस प्रस्ताव को सम्मेलन में सर्वसम्मति से स्वीकार तो कर लिया गया है लेकिन पाकिस्तान, जो कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के रेंज वाला एक अन्य देश है, ने प्रस्ताव पर होने वाली चर्चा में भाग नहीं लिया। हालाँकि इस संबंध में अभी अंतिम निर्णय आना बाकी है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ
- IUCN एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। जो प्रकृति के संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधनों के धारणीय उपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करती है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी।
- इसका मुख्यालय ग्लैंड (स्विटज़रलैंड) में स्थित है।
- IUCN द्वारा जारी की जाने वाली लाल सूची दुनिया की सबसे व्यापक सूची है, जिसमें पौधों और जानवरों की प्रजातियों की वैश्विक संरक्षण की स्थिति को दर्शाया जाता है।
- IUCN द्वारा प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का मूल्यांकन करने के लिये कुछ विशेष मापदंडों का उपयोग किया जाता है। ये मानदंड दुनिया की अधिकांश प्रजातियों के लिये प्रासंगिक हैं।
प्रवासी वन्यजीव प्रजातियों के संरक्षण के लिये सम्मेलन
- CMS संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे बाॅन कंवेंशन के नाम से भी जाना जाता है। CMS का उद्देश्य स्थलीय, समुद्री तथा उड़ने वाले अप्रवासी जीव जंतुओं का संरक्षण करना है।
- यह कन्वेंशन अप्रवासी वन्यजीवों तथा उनके प्राकृतिक आवास पर विचार-विमर्श के लिये एक वैश्विक मंच प्रदान करता है।
- इस संधि पर वर्ष 1979 में जर्मनी के बाॅन में हस्ताक्षर किये गए थे। यह संधि वर्ष 1983 में लागू हुई थी।
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- उक्त तीन प्रजातियों के अलावा, सात अन्य प्रजातियों को भी CMS परिशिष्टों में सूचीबद्ध करने लिये प्रस्ताव प्रस्तुत किये गए हैं, इनमें शामिल हैं- जगुआर, यूरियाल, लिटिल बस्टर्ड, एंटीपोडियन अल्बाट्रॉस, ओशनिक व्हाइट-टिप शार्क, स्मूथ हैमरहेड शार्क और टोपे शार्क।
- COP13 के तहत समुद्री ध्वनि प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण, कीटों की संख्या में अत्यधिक व्वृद्धि से उत्पन्न मुद्दे आदि पर भी चर्चा की जा रही है।