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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत के पक्षियों की स्थिति: 2020 रिपोर्ट

  • 20 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 रिपोर्ट से संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये:

भारत में पक्षियों की आबादी में कमी और इसके कारण

चर्चा में क्यों?

गुजरात के गांधीनगर में चल रहे ‘प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र के पार्टियों के 13वें अभिसमय’ (United Nations 13th Conference of the Parties to the Convention on Migratory Species) में स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 (State of India’s Birds- SoIB) नामक रिपोर्ट जारी की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट में पक्षियों की 867 प्रजातियों को शामिल किया गया जिनका विश्लेषण पक्षी प्रेमियों द्वारा ऑनलाइन मंच, ई-बर्ड (eBird) पर अपलोड किये गए डेटा की मदद से किया गया।
  • लगभग 867 भारतीय प्रजातियों का यह विश्लेषण स्पष्ट करता है कि समग्र रूप से पक्षियों की संख्या में कमी आ रही है। उल्लेखनीय है कि भारत में अब तक पक्षियों की कुल 1,333 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।
  • भारत में पक्षियों की कुल आबादी के पाँचवें हिस्से को 25 वर्षों में दीर्घकालिक गिरावट का सामना करना पड़ा है।
  • हालिया वार्षिक रुझान कई सामान्य पक्षियों की आबादी में 80% तक की कमी की ओर इंगित करते हैं।
  • मुख्य रूप से मानव निवास क्षेत्रों में जीवित रहने की उनकी क्षमता के कारण 126 प्रजातियों की संख्या में वृद्धि की संभावना है। इसमें मोर, घरेलू गौरैया, एशियाई कोयल, रोज़-रिंग पाराकेट और आम टेलोरबर्ड शामिल हैं।
  • आवास, आहार, प्रवासी स्थिति और स्थानिकता (Endemicity) के विश्लेषण से पता चलता है कि रैप्टर (चील, बाज आदि) की संख्या में गिरावट आ रही है।
  • प्रवासी तटीय तथा कुछ विशेष आवासों में रहने वाले पक्षी पिछले दशकों में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
  • घास के मैदानों, स्क्रबलैंड और वेटलैंड में रहने वाले पक्षियों की प्रजातियों की संख्या में गिरावट आई है।
  • पश्चिमी घाट में भी पक्षियों की संख्या में भी वर्ष 2000 के बाद से लगभग 75 प्रतिशत की गिरावट आई है। गौरतलब है कि पश्चिमी घाट को दुनिया की सबसे अग्रणी जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक माना जाता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में गौरैया की आबादी में लंबे समय से गिरावट दर्ज़ की जा रही थी किंतु इनकी संख्या वर्तमान में स्थिर बनी हुई है। हालाँकि मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बंगलूरु, हैदराबाद, चेन्नई जैसे बड़े शहरों में यह अब भी दुर्लभ हैं।

संभावित कारण

  • गौरैया की संख्या में कमी के संभावित कारणों में आहार और आवास, मोबाइल फोन टावर्स के रेडिएशन जैसे कारक शामिल हैं। हालाँकि ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित होता हो कि मोबाइल फोन टावर्स के रेडिएशन का इनकी संख्या पर कोई प्रभाव पड़ता है।
  • निवास स्थान की क्षति, विषाक्त पदार्थों की व्यापक उपस्थिति तथा शिकार इनकी कमी के प्रमुख कारण बताए गए हैं। लेकिन गिरावट के कारणों को इंगित करने के लिये लक्षित अनुसंधान की आवश्यकता है।

हाई कंज़र्वेशन कंसर्न

  • रिपोर्ट के अनुसार, पक्षियों की 101 प्रजातियों को हाई कंज़र्वेशन कंसर्न (High Conservation Concern) नामक श्रेणी में रखा गया है।
  • हाई कंजर्वेशन कंसर्न सूची में शामिल रूफस-फ्रंटेड प्रिंसिया, नीलगिरि थ्रश, नीलगिरि पिपिट और भारतीय गिद्ध की आबादी में वर्तमान में गिरावट की पुष्टि की गई है।

रिपोर्ट के सुझाव

  • स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 रिपोर्ट के अनुसार IUCN की विलुप्तप्राय प्रजातियों की रेड लिस्ट में संशोधन किया जाए।
  • वैज्ञानिकों तथा नागरिकों द्वारा सहयोगात्मक शोध के ज़रिये सूचनाओं के अंतराल को कम करने पर विशेष ध्यान देते हुए नीति निर्माण किया जाए।
  • हाई कंसर्न प्रजातियों के मामले में विशेष रूप घास के मैदानों, स्क्रबलैंड, वेटलैंड तथा पश्चिमी घाट के आवासों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट के बारे में

  • स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स 2020 एक वैज्ञानिक रिपोर्ट है जिसे 10 संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया गया है।
  • इस रिपोर्ट द्वारा भारत में नियमित रूप से पाई जाने वाली अधिकांश पक्षी प्रजातियों के लिये वितरण रेंज, उनकी आबादी के रुझान और संरक्षण की स्थिति का पहली बार व्यापक मूल्यांकन किया गया है।
  • इन पक्षियों का डेटा नागरिक विज्ञान ऐप ई-बर्ड (e-Bird) के माध्यम से एकत्र किया गया है, जिसके तहत लगभग 15,500 नागरिक वैज्ञानिकों द्वारा भेजी गई रिकॉर्ड दस मिलियन प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई थीं।

प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय

  • प्रजातियों पर अभिसमय (Convention on Migratory Species- CMS), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्त्वावधान में एक पर्यावरण संधि के रूप में प्रवासी जीवों और उनके आवास के संरक्षण तथा स्थायी उपयोग के लिये एक वैश्विक मंच प्रदान करता है।

स्रोत: द हिंदू

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