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डेली न्यूज़

  • 23 Mar, 2024
  • 54 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लोबल मीथेन ट्रैकर 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, ग्लोबल मीथेन ट्रैकर 2024, बायोएनर्जी, ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, आर्द्रभूमि, हरित धारा, BS VI उत्सर्जन मानदंड, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, ग्लोबल मीथेन प्लेज

मेन्स के लिये:

ग्लोबल मीथेन ट्रैकर 2024 की मुख्य विशेषताएँ, मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के ग्लोबल मीथेन ट्रैकर 2024 के अनुसार वर्ष 2023 में ईंधन के उपयोग से मीथेन उत्सर्जन अपने उच्चतम रिकॉर्ड स्तर पर रहा जो वर्ष 2022 की तुलना में मामूली वृद्धि दर्शाता है।

ग्लोबल मीथेन ट्रैकर 2024 से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • मीथेन उत्सर्जन अवलोकन: वर्ष 2023 में जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित मीथेन की मात्र लगभग 120 मिलियन टन (माउंट) थी।
    • बायोएनर्जी (बड़े पैमाने पर बायोमास उपयोग से) से उत्सर्जित मीथेन 10 माउंट रहा। यह स्तर वर्ष 2019 से निरंतर बना हुआ है।
  • प्रमुख मीथेन उत्सर्जन घटनाओं में वृद्धि: प्रमुख मीथेन उत्सर्जन घटनाओं में वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में 50% से अधिक की वृद्धि हुई।
    • इन घटनाओं में विश्व स्तर पर जीवाश्म ईंधन रिसाव से हुआ 5 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक मीथेन उत्सर्जन शामिल है।
    • एक प्रमुख घटना कज़ाखस्तान में घटित हुई जहाँ एक बड़े कुँए में हुए विस्फोट से होने वाला रिसाव 200 दिनों तक जारी रहा।
  • शीर्ष उत्सर्जक देश: जीवाश्म ईंधन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में लगभग 70% योगदान शीर्ष 10 उत्सर्जक देशों का होता है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका तेल और गैस परिचालन से मीथेन का सबसे बड़ा उत्सर्जक है जिसके बाद रूस का स्थान है।
    • कोयला क्षेत्र में सबसे अधिक मीथेन उत्सर्जन चीन का है।
  • मीथेन उत्सर्जन में कटौती का महत्त्व: ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में 75% की कटौती करना महत्त्वपूर्ण है।
    •  IEA का अनुमान है कि इस लक्ष्य के लिये लगभग 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने की आवश्यकता होगी। यह वर्ष 2023 में जीवाश्म ईंधन उद्योग द्वारा उत्पन्न आय का 5% से भी कम है।  
    • वर्ष 2023 में जीवाश्म ईंधन से लगभग 40% उत्सर्जन को बिना किसी शुद्ध लागत के टाला जा सकता था।

मीथेन क्या है?

  • परिचय: मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं।
    • यह प्राकृतिक गैस का प्राथमिक घटक है, जिसमें प्रमुख विशेषताएँ हैं:
      • गंधहीन, रंगहीन और स्वादहीन गैस।
      • हवा से भी हल्की गैस।
      • पूर्ण दहन में नीली लौ के साथ जलता है, जिससे ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल (H2O) मुक्त होता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग में योगदान: कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद मीथेन दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है।
    • इसकी 20 वर्षीय ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) 84 है, जो दर्शाता है कि यह 20 वर्ष की अवधि में CO2 की तुलना में प्रति द्रव्यमान इकाई 84 गुना अधिक गर्मी को अवशोषित करता है, जिससे यह एक प्रबल GHG बन जाता है।
      • अपनी क्षमता के बावजूद, मीथेन का वायुमंडलीय जीवनकाल CO2 की तुलना में कम होता है, इसे अल्पकालिक GHG के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • ग्लोबल वार्मिंग में इसका बहुत बड़ा योगदान है, जो पूर्व-औद्योगिक युग के बाद से वैश्विक तापमान में लगभग 30% वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार है। 
    • मीथेन ज़मीनी स्तर पर ओज़ोन के निर्माण में भी योगदान देता है।
  • मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत:
    • प्राकृतिक स्रोत:
      • कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय अपघटन के कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार की आर्द्रभूमियाँ मीथेन उत्सर्जन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
    • कृषि गतिविधियाँ:
      • बाढ़ वाले धान के खेतों में अवायवीय स्थितियों के कारण बढ़ते धान के खेतों में मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।
      • मवेशियों और अन्य पशुओं के मल का आंत्र किण्वन होता है, जिससे उपोत्पाद के रूप में मीथेन का उत्पादन होता है।
    • दहन और औद्योगिक प्रक्रियाएँ:
      • तेल और प्राकृतिक गैस सहित जीवाश्म ईंधन के दहन से मीथेन का उत्सर्जन होता है।
      • लकड़ी और कृषि अवशेष जैसे बायोमास के दहन से भी मीथेन स्तर में योगदान होता है।
      • लैंडफिल और अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र जैसी औद्योगिक गतिविधियाँ अवायवीय वातावरण में जैविक अपशिष्ट अपघटन के दौरान मीथेन उत्पन्न करती हैं।
      • उर्वरक कारखाने और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाएँ भी उत्पादन तथा परिवहन के दौरान मीथेन उत्सर्जित कर सकती हैं।
  • मीथेन उत्सर्जन से निपटने की पहल:

वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा क्या है?

  • परिचय:
    • मीथेन उत्सर्जन में कमी हेतु कार्रवाई को उत्प्रेरित करने के लिये नवंबर 2021 में COP (पार्टियों का सम्मेलन) 26 में वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा शुरू की गई थी। इसका नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने किया था। इसमें 111 देश प्रतिभागी हैं जो मानव-जनित वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के 45% हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं।
      •  इसका अधिकांश उत्सर्जन कृषि क्षेत्र में देखा जा सकता है।
      • इस प्रतिज्ञा में शामिल होकर देश वर्ष 2030 तक वर्ष 2020 के स्तर से कम-से-कम 30% मीथेन उत्सर्जन को सामूहिक रूप से कम करने के लिये मिलकर काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • इस निर्णय के मुख्य कारणों में शामिल हैं:
    • भारत का तर्क है कि जलवायु परिवर्तन में प्राथमिक योगदानकर्त्ता CO2 है, जिसका जीवनकाल 100-1000 वर्ष है।
      • इसने मीथेन कटौती पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसका जीवनकाल केवल 12 वर्ष है, इस प्रकार CO2 क्षरण के बाद परिवर्तित हो जाती है।
    • भारत में मीथेन उत्सर्जन मुख्य रूप से आंत्र किण्वन और धान की खेती जैसी कृषि गतिविधियों से होता है, जो छोटे, सीमांत तथा मध्यम किसानों को प्रभावित करता है जिनकी आजीविका प्रतिज्ञा से खतरे में पड़ जाएगी।
      • यह विकसित देशों में प्रचलित औद्योगिक कृषि से भिन्न है।
      • इसके अलावा चावल उत्पादक और निर्यातक के रूप में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने से व्यापार तथा आर्थिक संभावनाएँ प्रभावित हो सकती हैं।
    • भारत दुनिया की सबसे बड़ी पशुधन आबादी का घर है, जो कई लोगों की आजीविका का समर्थन करता है।
      • हालाँकि कृषि उप-उत्पादों और अपरंपरागत आहार सामग्री से भरपूर उनके आहार के कारण वैश्विक आंत्र (enteric) मीथेन में भारतीय पशुधन का योगदान न्यूनतम है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी क्या है? 

  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1974 में पेरिस, फ्राँस में की गई थी।
  • IEA मुख्य रूप से अपनी ऊर्जा नीतियों पर ध्यान केंद्रित करता है जिसमें आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण शामिल है। इन नीतियों को IEA के 3 E के रूप में भी जाना जाता है।
    • भारत मार्च 2017 में IEA का सहयोगी सदस्य बना।

आगे की राह

  • उन्नत कृषि पद्धतियाँ: सटीक खेती, संरक्षित जुताई और एकीकृत फसल-पशुधन प्रणाली जैसी टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करने तथा अपनाने से कृषि गतिविधियों से मीथेन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • मीथेन-कैप्चरिंग तकनीकें: पशुधन संचालन और लैंडफिल में मीथेन कैप्चर प्रौद्योगिकियों को लागू करने से वायुमंडल में जारी होने से पहले मीथेन को कैप्चर किया जा सकता है, इसे उपयोगी ऊर्जा या अन्य उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • चावल की खेती की तकनीकें: पहले उल्लिखित चावल गहनता प्रणाली और चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण जैसी प्रथाओं को बढ़ावा देने से चावल के खेतों से मीथेन उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है।
  • बायोगैस उत्पादन: जैविक कचरे से बायोगैस के उत्पादन और उपयोग को प्रोत्साहित करने से अपशिष्ट अपघटन से मीथेन उत्सर्जन को कम करते हुए एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत प्रदान किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. 'मेथैन हाइड्रेट' के निक्षेपों के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2019)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मेथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल के अंदर मेथैन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. "वहनीय (एफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (S.D.G.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2024

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल ई-कचरा मॉनिटर 2024, ई-कचरा रीसाइक्लिंग, संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (UNITAR), ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व

मेन्स के लिये:

ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2024, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (UNITAR) ने ग्लोबल ई-कचरा मॉनिटर 2024 जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन दस्तावेज़ित ई-कचरा रीसाइक्लिंग की तुलना में पाँच गुना तेज़ी से बढ़ रहा है।

नोट: 

  • UNITAR संयुक्त राष्ट्र की एक प्रशिक्षण शाखा है जो सरकारों, संगठनों एवं व्यक्तियों को वैश्विक चुनौतियों से उबरने में सहायता करती है।
  • UNITAR कार्यशालाओं, सेमिनारों, सम्मेलनों, सार्वजनिक व्याख्यान तथा ऑनलाइन पाठ्यक्रमों सहित शिक्षण कार्यक्रम एवं समाधान प्रदान करता है। यह संगठनात्मक सलाहकार सेवाएँ, सम्मेलन एवं रिट्रीट सुविधा के साथ-साथ ऑनलाइन शिक्षण समाधान भी प्रदान करता है।

ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2024 रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ई-कचरा सृजन रुझान: 
    • वैश्विक ई-कचरा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2010 में 34 अरब किलोग्राम से बढ़कर वर्ष 2022 में 62 अरब किलोग्राम हो गया है।
      • यह प्रवृत्ति जारी रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2030 तक 82 अरब किलोग्राम तक पहुँच जाएगी।
    • इस 62 अरब किलोग्राम में से केवल 13.8 अरब किलोग्राम को 'पर्यावरण की दृष्टि से उचित तरीके से एकत्र एवं पुनर्नवीनीकरण' के रूप में प्रलेखित किया गया है।
      • 62 अरब किलोग्राम ई-कचरे में 31 अरब किलोग्राम धातु, 17 अरब किलोग्राम प्लास्टिक तथा 14 अरब किलोग्राम अन्य सामग्री (खनिज, काँच, मिश्रित सामग्री आदि) शामिल हैं।
  • ई-अपशिष्ट उत्पादन के चालक: 
    • ई-अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि के कारकों में तकनीकी प्रगति, उच्च खपत दर, सीमित मरम्मत विकल्प, लघु उत्पाद जीवन चक्र, बढ़ता विद्युतीकरण और अपर्याप्त ई-अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचा शामिल हैं।
  • अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र: 
    • अपर्याप्त औपचारिक ई-अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचे के कारण ई-अपशिष्ट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (उच्च और उच्च-मध्यम आय वाले देशों के साथ-साथ निम्न तथा निम्न-मध्यम आय वाले देशों में) अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • अनौपचारिक रीसाइक्लिंग प्रथाओं सहित ई-अपशिष्ट के अनुचित प्रबंधन से पारा/मर्करी और ब्रोमिनेटेड फ्लेम मंदक युक्त प्लास्टिक जैसे खतरनाक पदार्थ पर्यावरण में निकलते हैं, जिससे पर्यावरण तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों पर सीधा एवं गंभीर प्रभाव पड़ता है।
      • ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट एक रासायनिक यौगिक है जिसमें ब्रोमीन होता है जिसे आग के प्रज्वलन और प्रसार को रोकने या दबाने के लिये सामग्रियों में शामिल किया जाता है।
      • वे दहन प्रक्रिया में हस्तक्षेप करके, सामग्रियों की ज्वलनशीलता को कम करके और आग की लपटों के फैलने की दर को धीमा करके काम करते हैं।
    • प्रतिवर्ष भारी मात्रा में 58,000 किलोग्राम पारा और ब्रोमिनेटेड फ्लेम मंदक युक्त 45 मिलियन किलोग्राम प्लास्टिक पर्यावरण में छोड़ा जाता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • यूरोप में ई-अपशिष्ट के प्रलेखित औपचारिक संग्रह और पुनर्चक्रण की दर सबसे अधिक (42.8%) है, जबकि अफ्रीका कम मात्रा में ई-अपशिष्ट उत्पन्न करने के बावजूद कम पुनर्चक्रण दर (<1%) से जूझ रहा है।
    • भारत सहित एशिया, वैश्विक ई-अपशिष्ट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा उत्पन्न करता है लेकिन ई-अपशिष्ट प्रबंधन में सीमित प्रगति हुई है।
      • एशिया के देश दुनिया का लगभग आधा ई-कचरा (30 अरब किलोग्राम) उत्पन्न करते हैं, लेकिन उनमें से अपेक्षाकृत कुछ ने कानून बनाया है या स्पष्ट ई-कचरा संग्रह लक्ष्य स्थापित किये हैं।
  • प्रति व्यक्ति ई-अपशिष्ट उत्पादन और पुनर्चक्रण दर: 
    • यूरोप (17.6 किग्रा.), ओशिनिया (16.1 किग्रा.) और अमेरिका (14.1 किग्रा.) ने 2022 में प्रति व्यक्ति सबसे अधिक मात्रा में ई-कचरा उत्पन्न किया।
      • उनके पास उच्चतम प्रलेखित प्रति व्यक्ति संग्रह और पुनर्चक्रण दर (यूरोप में 7.53 किलोग्राम प्रति व्यक्ति, ओशिनिया में 6.66 किलोग्राम प्रति व्यक्ति तथा अमेरिका में 4.2 किलोग्राम प्रति व्यक्ति) थी।
      • ऐसा इसलिये था क्योंकि उनका संग्रह और पुनर्चक्रण बुनियादी ढाँचा सबसे उन्नत था।
  • उपकरणों द्वारा पुनर्चक्रण दरें: 
    • तापमान विनिमय उपकरण और स्क्रीन तथा मॉनिटर जैसे भारी एवं भारी उपकरणों के लिये संग्रह व पुनर्चक्रण दरें सबसे अधिक हैं।
    • इस प्रकार, जबकि खिलौने माइक्रोवेव ओवन, वैक्यूम क्लीनर और ई-सिगरेट दुनिया के ई-कचरे का एक तिहाई (20 बिलियन किलोग्राम) शामिल हैं, उनके लिये रीसाइक्लिंग दर विश्व स्तर पर बहुत कम 12% है।
      • छोटे आईटी और दूरसंचार उपकरण लैपटॉप, मोबाइल फोन, जीपीएस डिवाइस तथा राउटर से 5 अरब किलोग्राम ई-कचरा बनता है।
      • लेकिन इसका केवल 22% ही औपचारिक रूप से एकत्र और पुनर्नवीनीकरण के रूप में प्रलेखित है।
  • नीति अपनाना: 
    • 81 देशों ने ई-अपशिष्ट नीति, कानून या विनियमन अपनाया है।
    • 67 देशों में ई-कचरे के लिये विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व पर कानूनी प्रावधान हैं।
    • अन्य 46 में ई-कचरा संग्रहण दर लक्ष्य पर प्रावधान हैं। अंततः 36 देशों में ई-कचरा पुनर्चक्रण दर लक्ष्य पर प्रावधान हैं।

  ई-अपशिष्ट क्या है?

  • इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट) एक सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग सभी प्रकार के पुराने, खराब हो चुके या बेकार पड़े विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे घरेलू उपकरण, कार्यालय सूचना एवं संचार उपकरण आदि का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • ई-अपशिष्ट में सीसा, कैडमियम, पारद और निकल जैसी धातुओं सहित कई विषैले रसायन होते हैं।
  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर भारत ई-अपशिष्ट के सबसे बड़े उत्पादकों में केवल चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है।
    • भारत में ई-अपशिष्ट की मात्रा में वर्ष 2021-22 में 1.6 मिलियन टन की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
    • भारत के 65 शहर कुल उत्पन्न ई-अपशिष्ट का 60% से अधिक उत्पन्न करते हैं, जबकि 10 राज्य कुल ई-अपशिष्ट का 70% उत्पन्न करते हैं।

भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में क्या प्रावधान हैं?

  • वर्ष 2011 में, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 द्वारा शासित ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) विनियम 2010 से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण नोटिस जारी किया गया था।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को नियम के दायरे में शामिल 21 से अधिक उत्पादों (अनुसूची-I) के साथ पेश किया गया था।
    • इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) और अन्य पारा युक्त लैंप, साथ ही ऐसे अन्य उपकरण शामिल थे।
  • भारत सरकार ने ई-अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को डिजिटल बनाने और दृश्यता बढ़ाने के प्रमुख उद्देश्य के साथ ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 अधिसूचित किया।
    • यह विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों (जैसे- सीसा, पारा/पारद व कैडमियम) के उपयोग को भी प्रतिबंधित करता है जो मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
  • एक अतिरिक्त आर्थिक साधन के रूप में एक जमा वापसी योजना भी शुरू की गई है जिसमें निर्माता विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री के समय जमा राशि के रूप में उपभोक्ता से एक अतिरिक्त राशि लेता है तथा उपभोक्ता द्वरा एंड-ऑफ-लाइफ (EOL) विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वापस कर दिये जाने पर जमा राशि को ब्याज सहित लौटा दिया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कंप्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण, निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं? (2013)

  1. बोरिलियम
  2. कैडमियम
  3. क्रोमियम
  4. हेप्टाक्लोर
  5. पारद
  6. सीसा
  7. प्लूटोनियम

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7
(b) केवल 1, 2, 3, 5 और 6
(c) केवल 2, 4, 5 और 7
(d) 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस अपशिष्ट की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे विषैले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)


भारतीय अर्थव्यवस्था

बॉण्ड यील्ड/प्राप्ति

प्रिलिम्स के लिये:

बॉण्ड यील्ड/प्राप्ति, राज्य विकास ऋण, भारतीय रिज़र्व बैंक, सरकारी प्रतिभूतियाँ

मेन्स के लिये:

बॉण्ड यील्ड/प्राप्ति, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्य सरकारों ने राज्य विकास ऋण बॉण्ड की नीलामी के माध्यम से रिकॉर्ड 50,206 करोड़ रुपए जुटाए हैं, जो अब तक की सबसे बड़ी साप्ताहिक उधारी है।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, जुटाई गई धनराशि इस अवधि के लिये निर्धारित 27,810 करोड़ रुपए के सांकेतिक उधार लक्ष्य से कहीं अधिक है। यह वित्तीय बाज़ारों में राज्य सरकार की प्रतिभूतियों की प्रबल मांग का संकेत देता है।
  • SDL सरकारी प्रतिभूतियाँ का हिस्सा हैं, जहाँ राज्य सरकारें बाज़ार से ऋण जुटाती हैं। SDL केंद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों के लिये आयोजित नीलामियों के समान सामान्य नीलामी के माध्यम से जारी की गई दिनांकित प्रतिभूतियाँ हैं।

बॉण्ड क्या हैं?

  • परिचय:
    • बॉण्ड पैसे उधार लेने का एक साधन है। यह एक IOU (I owe you अर्थात् मैं आपका ऋणी हूँ) की तरह है।
      • IOU ऋण की एक लिखित स्वीकृति है जो एक पक्ष पर दूसरे पक्ष का बकाया है। IOU प्रॉमिसरी नोट्स की तुलना में कम औपचारिक और वैधानिक रूप से बाध्यकारी हैं।
    • किसी देश की सरकार या किसी कंपनी द्वारा धन जुटाने के लिये एक बॉण्ड जारी किया जा सकता है।
    • चूँकि सरकारी बॉण्ड (भारत में  G-सेक, अमेरिका में ट्रेज़री और यूके में गिल्ट्स के रूप में संदर्भित) संप्रभु गारंटी के साथ आते हैं, उन्हें सबसे सुरक्षित निवेशों में से एक माना जाता है।
  • सरकारी प्रतिभूतियों के प्रकार:
    • ट्रेज़री बिल (T-बिल): ट्रेज़री बिल शून्य कूपन प्रतिभूतियाँ हैं और कोई ब्याज नहीं देते हैं। इसके बजाय उन्हें छूट पर जारी किया जाता है और परिपक्वता पर अंकित मूल्य पर प्रतिदेय किया जाता है।
    • नकदी प्रबंधन बिल (CMB): वर्ष 2010 में, भारत सरकार ने RBI के परामर्श से भारत सरकार के नकदी प्रवाह में अस्थायी विसंगतियों को ठीक करने के लिये एक नया अल्पकालिक साधन पेश किया, जिसे CMB के रूप में जाना जाता है।
      • CMB में T-बिल का सामान्य चरित्र होता है लेकिन ये 91 दिनों से कम की परिपक्वता अवधि के लिये जारी किये जाते हैं।
    • दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ(G-Secs): दिनांकित G-Secs ऐसी प्रतिभूतियाँ हैं जिनमें एक निश्चित अथवा फ्लोटिंग कूपन दर (ब्याज दर) होती है जिसका भुगतान अर्ध-वार्षिक आधार पर अंकित मूल्य पर किया जाता है। सामान्यतः दिनांकित प्रतिभूतियों की अवधि 5 वर्ष से 40 वर्ष तक होती है।
    • राज्य विकास ऋण (SDLs): राज्य सरकारें भी बाज़ार से ऋण जुटाती हैं जिन्हें SDL कहा जाता है। SDL केंद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों के लिये आयोजित नीलामियों के समान सामान्य नीलामी के माध्यम से जारी की गई दिनांकित प्रतिभूतियाँ हैं।

  • बाॅण्ड यील्ड:
    • किसी बाॅण्ड यील्ड उसके द्वारा अर्जित रिटर्न की प्रभावी दर है। लेकिन रिटर्न की दर निश्चित नहीं है- यह बाॅण्ड की कीमत के साथ बदलती रहती है।
    • लेकिन इसे समझने के लिये पहले यह समझना होगा कि बाॅण्ड कैसे संरचित होते हैं।
    • प्रत्येक बाॅण्ड का एक अंकित मूल्य और एक कूपन भुगतान होता है। बाॅण्ड की कीमत भी होती है, जो बाॅण्ड के अंकित मूल्य के बराबर हो भी सकती है और नहीं भी
    • अंकित मूल्य एवं कूपन भुगतान के अतिरिक्त बाॅण्ड में एक कूपन दर भी होती है।
      • कूपन दर बाॅण्ड के अंकित मूल्य के प्रतिशत के रूप में व्यक्त की गई निश्चित वार्षिक ब्याज दर है।
      • उदाहरण के लिये, 10-वर्षीय G-sec का अंकित मूल्य 100 रुपए है और इसका कूपन भुगतान 5 रुपए है तथा कूपन दर 5% है।
    • इस बाॅण्ड के खरीदार सरकार को 100 रुपए (अंकित मूल्य) देंगे; बदले में, सरकार उन्हें अगले 10 वर्षों तक प्रतिवर्ष 5 रुपए (कूपन भुगतान) का भुगतान करेगी, तथा अंत में उनके 100 रुपए को वापस कर देगी।
      • इस बाॅण्ड पर 5 प्रतिशत की प्रभावी ब्याज दर या उपज है। अभी 100 रुपए छोड़ने और एक दशक तक इसे अपने अधिकार से दूर रखने के लिये निवेशक को पुरस्कृत करना प्रतिफल है।
  • यील्ड कर्व:
    • यील्ड कर्व विभिन्न परिपक्वता अवधि के लिये ऋण पर ब्याज दरों का एक चित्रमय प्रतिनिधित्व है।
    • यह दर्शाता है कि यदि कोई निवेशक एक निश्चित अवधि के लिये अपना पैसा उधार देता है तो वह कितना प्रतिफल अर्जित करने की उम्मीद कर रहा है।
    • एक निश्चित आय विश्लेषक उपज वक्र का उपयोग एक प्रमुख आर्थिक संकेतक के रूप में कर सकता है, खासकर जब यह उल्टे आकार में बदल जाता है, जो आर्थिक मंदी का संकेत देता है, क्योंकि दीर्घकालिक रिटर्न अल्पकालिक रिटर्न से कम होता है।

RBI बॉण्ड यील्ड का प्रबंधन कैसे करता है?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) बॉण्ड यील्ड को प्रबंधित करने और अर्थव्यवस्था के भीतर मौद्रिक स्थितियों को विनियमित करने के लिये ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) को एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में नियोजित करता है। OMO के माध्यम से, RBI रणनीतिक रूप से खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों (G-secs) को बेचता या खरीदता है।
  • जब RBI का लक्ष्य अतिरिक्त तरलता पर अंकुश लगाना और मुद्रास्फीति के दबाव को कम करना होता है, तो वह बाज़ार से तरलता को प्रभावी ढंग से अवशोषित करते हुए G-secs बेचता है। इसके विपरीत, आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने तथा तरलता को बढ़ाने के लिये RBI सिस्टम में धनराशि डालते हुए सरकारी प्रतिभूतियों को वापस खरीदता है।
    • जब RBI जी-सेक बेचता है, तो बॉण्ड यील्ड पर दबाव पड़ता है, जिससे उधार लेना महँगा हो जाता है और इस तरह अत्यधिक उधार लेने तथा व्यय पर अंकुश लगता है।
    • इसके विपरीत, सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद से बॉण्ड की कीमतें अधिक हो जाती हैं, जिससे बॉण्ड यील्ड कम हो जाती है, जिससे उधार लेने और निवेश को प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • OMO के साथ मिलकर, RBI रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात सहित मौद्रिक नीति उपकरणों का एक सूट नियोजित करता है।
    • इन उपकरणों को रणनीतिक रूप से तैनात करके, RBI बॉण्ड यील्ड के प्रबंधन और विकास तथा स्थिरता के लिये अनुकूल स्थिर आर्थिक स्थितियों को बढ़ावा देने हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण का आयोजन करता है।

उपज वक्र को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?

  • बाज़ार की मांग और बॉण्ड की कीमतें:
    • कल्पना कीजिये कि केवल एक बॉण्ड उपलब्ध है और दो खरीदार इसे खरीदना चाहते हैं। वे एक-दूसरे के विरुद्ध बोली लगा सकते हैं, जिससे बॉण्ड की कीमत बढ़ जाएगी
    • भले ही बॉण्ड का अंकित मूल्य 100 रुपए ही रहता है, यदि इसे 110 रुपए में बेचा जाता है, तो यील्ड कम हो जाती है, क्योंकि कूपन भुगतान 5 रुपए पर स्थिर रहता है। इसलिये बॉण्ड के लिये भुगतान की गई कीमत के आधार पर यील्ड की प्रभावी गणना की जाती है।
  • अर्थव्यवस्था की ब्याज दर के साथ संरेखण:
    • यदि अर्थव्यवस्था में ब्याज दर बॉण्ड के प्रारंभिक कूपन भुगतान से भिन्न है, तो बाज़ार की ताकतें मौजूदा ब्याज दर के साथ संरेखित करने के लिये बॉण्ड यील्ड को समायोजित करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, यदि अर्थव्यवस्था की ब्याज दर 4% है और कोई बॉण्ड 5% उपज प्रदान करता है, तो कई निवेशक उच्च रिटर्न हेतु इसे खरीदने के लिये भीड़ बढ़ जाती है।
    • यह मांग बॉण्ड की कीमत को तब तक बढ़ाती है जब तक कि इसकी यील्ड अर्थव्यवस्था की ब्याज दर से सुमेलित नहीं है।
      • इसके विपरीत यदि अर्थव्यवस्था की ब्याज दर बॉण्ड यील्ड से अधिक है, तो बॉण्ड की कीमत तब तक कम हो जाती है जब तक कि उसकी यील्ड प्रचलित दर से सुमेलित नहीं है।
    • मानता: यदि अर्थव्यवस्था की ब्याज दर बॉण्ड यील्ड से अधिक है, तो यह अर्थव्यवस्था की ब्याज दर के पक्ष में भारी भार होने जैसा है। इससे अर्थव्यवस्था की ब्याज दर पक्ष की ओर झुकाव होता है, जो दर्शाता है कि बॉण्ड यील्ड ब्याज दर के सापेक्ष कम है।
      • इसके विपरीत, यदि बॉण्ड यील्ड अर्थव्यवस्था की ब्याज दर से अधिक है, तो यह बॉण्ड यील्ड  के पक्ष में अत्यधिक भार रखने जैसा है। यह बॉण्ड के प्रतिफल पक्ष की ओर झुकाव रखता है, जो दर्शाता है कि बॉण्ड की प्रतिफल ब्याज दर के सापेक्ष अधिक है।

बॉण्ड यील्ड के सख्त होने का क्या असर होगा?

  • बैंकों और म्यूचुअल फंडों को नुकसान:
    • सरकारी प्रतिभूतियों (g-sec) रखने वाले बैंकों और म्यूचुअल फंड दोनों को बॉण्ड की कीमतों तथा यील्ड के बीच विपरीत संबंध के कारण नुकसान होगा। जैसे-जैसे बॉण्ड की यील्ड बढ़ती है, बॉण्ड की कीमतें गिरती हैं, जिससे इन संस्थानों को मार्क-टू-मार्केट घाटा होता है।
  • ऋण लागत में वृद्धि:
    • सरकारी प्रतिभूतियों पर उच्च प्रतिफल का अर्थ है कि सरकार को नवीन ऋण पर उच्च ब्याज दरों की पेशकश करनी होगी। सरकारी ऋण लेने की लागत में इस वृद्धि का संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे कॉरपोरेट्स के लिये उच्च ब्याज दरें और बैंकों के लिये संभावित रूप से उच्च ऋण दरें हो सकती हैं, जिससे व्यवसायों तथा व्यक्तियों के लिये उधार लेने की लागत प्रभावित हो सकती है।
  • कॉर्पोरेट बॉण्ड पर प्रभाव:
    • बाज़ार में बढ़ती बॉण्ड यील्ड के बीच निवेशकों को आकर्षित करने के लिये कॉरपोरेट्स को अपने बॉण्ड पर ब्याज दरें बढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है। इससे कंपनियों के लिये ऋण लेने की लागत बढ़ सकती है, जिससे संभावित रूप से उनकी लाभप्रदता और निवेश निर्णय प्रभावित हो सकते हैं।
  • इक्विटी बाज़ार पर प्रभाव: 
    • जैसे-जैसे बॉण्ड की संख्या बढ़ती है, इक्विटी में निवेश की अवसर लागत बढ़ जाती है क्योंकि स्टॉक की तुलना में निश्चित आय वाली प्रतिभूतियाँ अपेक्षाकृत अधिक आकर्षक हो जाती हैं। निवेशक अपने आवंटन को इक्विटी से हटाकर बॉण्ड की ओर स्थानांतरित कर सकते हैं जिससे स्टॉक की मांग और संभावित रूप से इक्विटी की कीमतों में भी कमी आएगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में सम्मिलित है? (2020)

  1. परिवारों का बकाया गृह ऋण
  2.  क्रेडिट कार्डों पर बकाया राशि 
  3.  राजकोष बिल

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारतीय रिज़र्व बैंक भारत सरकार की प्रतिभूतियों का प्रबंधन और सेवाएँ प्रदान करता है, लेकिन किसी राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का नहीं। 
  2.  भारत सरकार कोष-पत्र (ट्रेज़री बिल) जारी करती है और राज्य सरकारें कोई कोष-पत्र जारी नहीं करतीं। 
  3. कोष-पत्र ऑफर अपने समतुल्य मूल्य से बट्टे पर जारी किये जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, 'खुला बाज़ार प्रचालन' किसे निर्दिष्ट करता है? (2013) 

(a)  अनुसूचित बैंकों द्वारा RBI से ऋण लेना
(b) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उद्योग और व्यापार क्षेत्रों को ऋण देना
(c) RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय और विक्रय
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (c)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सुरक्षा परिषद सुधार के लिये भारत का प्रयास: G4 मॉडल

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, G4 देश, संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद में भारत की भागीदारी।

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार की आवश्यकता, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार की प्रक्रिया।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर्सरकारी वार्ता में भाग लेते हुए, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार के लिये G4 देशों की ओर से एक विस्तृत मॉडल प्रस्तुत किया है।

  • मॉडल में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नए स्थायी सदस्य शामिल हैं और वीटो मुद्दे पर लचीलापन दिखाता है।
  • G4 (ब्राज़ील, जर्मनी, भारत तथा जापान) वर्ष 2004 में निर्मित किया गया था और सुरक्षा परिषद सुधार को बढ़ावा दे रहा है।

G4 प्रस्तावित मॉडल की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? 

  • कम-प्रतिनिधित्व को संबोधित करना: मॉडल परिषद की वर्तमान संरचना में प्रमुख क्षेत्रों के "स्पष्ट रूप से कम-प्रतिनिधित्व एवं गैर-प्रतिनिधित्व" पर प्रकाश डालता है, जो इसकी वैधता तथा प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न करता है।
  • सदस्यता विस्तार: G4 मॉडल सुरक्षा परिषद की सदस्यता को मौजूदा 15 से बढ़ाकर 25-26 सदस्यों तक पहुँचाने की अनुशंसा करता है।
    • इस विस्तार में 6 स्थायी तथा 4 अथवा 5 गैर-स्थायी सदस्यों को सम्मिलित करना शामिल है।
    • अफ्रीकी राज्यों तथा एशिया प्रशांत राज्यों से प्रत्येक में दो नए स्थायी सदस्य प्रस्तावित हैं, एक लैटिन अमेरिकी एवं कैरेबियाई राज्यों से और एक पश्चिमी यूरोपीय एवं अन्य राज्यों से।
  • वीटो पर लचीलापन: मौजूदा ढाँचे से हटकर, जहाँ केवल पाँच स्थायी सदस्यों के पास वीटो शक्तियाँ होती हैं, G4 मॉडल वीटो मुद्दे पर लचीलापन प्रदान करता है।
    • नए स्थायी सदस्य रचनात्मक बातचीत में शामिल होने की इच्छा प्रदर्शित करने वाली समीक्षा प्रक्रिया के दौरान मामले पर निर्णय होने तक वीटो का प्रयोग करने से परहेज करेंगे।
  • लोकतांत्रिक और समावेशी चुनाव: प्रस्ताव इस बात पर बल देता है कि कौन-से सदस्य देश नई स्थायी सीटों पर कब्ज़ा करेंगे, इसका निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लोकतांत्रिक और समावेशी चुनाव के माध्यम से किया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है?

  • वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत स्थापित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
  • इसमें 15 सदस्य होते हैं, इसमें 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 गैर-स्थायी सदस्य शामिल होते हैं जो दो साल के लिये चुने जाते हैं।
    • स्थायी सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम हैं।
    • ओपेनहेम के अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार: संयुक्त राष्ट्र "द्वितीय विश्व युद्ध” के बाद उनके महत्त्व के आधार पर पाँच राज्यों को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्रदान की गई।
  • सुरक्षा परिषद में भारत की भागीदारी वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 और 2021-22 की अवधि के दौरान एक अस्थायी सदस्य के रूप में रही है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता क्यों है?

  • प्रतिनिधित्व और वैधता: सुरक्षा परिषद सभी सदस्य देशों को प्रभावित करने वाले बाध्यकारी निर्णयों के साथ शांति स्थापना और संघर्ष समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि इन निर्णयों का सम्मान किया जाए और सार्वभौमिक रूप से लागू किया जाए, परिषद के पास आवश्यक अधिकार तथा वैधता होनी चाहिये, जिसके लिये वर्तमान वैश्विक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करने वाले प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।
  • अप्रचलित संरचना: सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना, वर्ष 1945 की भू-राजनीतिक स्थिति पर आधारित और वर्ष 1963/65 में मामूली रूप से विस्तारित, वर्तमान में विश्व मंच का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
    • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से 142 नए देशों के शामिल होने के साथ, अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन जैसे क्षेत्रों का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है जिससे परिषद की संरचना में समायोजन की आवश्यकता होती है।
  • योगदान की मान्यता: संयुक्त राष्ट्र चार्टर स्वीकार करता है कि संगठन में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले देशों को सुरक्षा परिषद में भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त होना चाहिये।
    • यह मान्यता नई स्थायी सीटों के लिये भारत, जर्मनी और जापान जैसे देशों की उम्मीदवारी को रेखांकित करती है जो संयुक्त राष्ट्र के मिशन में उनके सार्थक योगदान को दर्शाती है।
  • वैकल्पिक निर्णय लेने वाले मंचों का जोखिम: सुधार के आभाव में निर्णय लेने की प्रक्रिया वैकल्पिक मंचों पर स्थानांतरित होने का जोखिम है जो संभावित रूप से सुरक्षा परिषद की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर सकती है।
    • प्रभुत्व पाने के लिये ऐसी प्रतिस्पर्द्धा प्रतिकूल है और सदस्य देशों के सामूहिक हित में नहीं है।
  • वीटो पावर का दुरुपयोग: वीटो पावर के उपयोग के संबंध में कई विशेषज्ञ और अधिकांश राज्य लगातार आलोचना करते रहे हैं तथा इसे "विशेषाधिकार प्राप्त राष्ट्रों का स्व-चयनित समूह" करार देते हैं जिसमें लोकतांत्रिक सिद्धांतों का अभाव है तथा P-5 सदस्यों में से किसी के हितों के साथ टकराव की स्थिति में परिषद की आवश्यक निर्णय लेने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
    • आज के वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में, विशेष निर्णय लेने की रूपरेखा पर निर्भर रहना अनुपयुक्त माना जाता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रक्रिया क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिये संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन की आवश्यकता है। अनुच्छेद 108 में निर्धारित प्रासंगिक प्रक्रिया में दो चरणों वाली प्रक्रिया शामिल है:
  • पहला चरण: महासभा, जहाँ 193 सदस्य राज्यों में से प्रत्येक के पास एक वोट होता है, को कम-से-कम 128 राज्यों के बराबर, दो-तिहाई बहुमत के साथ संशोधन का समर्थन करना होगा।
    • चार्टर के अनुच्छेद 27 के अनुसार, यह चरण वीटो के अधिकार के उपयोग की अनुमति नहीं देता है।
  • दूसरा चरण: पहले चरण में मंज़ूरी मिलने की दशा में संयुक्त राष्ट्र चार्टर, जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय संधि माना जाता है, में संशोधन किया जाता है।
    • इस संशोधित चार्टर को सुरक्षा परिषद के सभी पाँच स्थायी सदस्यों सहित कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य देशों द्वारा उनकी संबंधित राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का पालन करते हुए अनुसमर्थन की आवश्यकता है।
    •   इस चरण में, अनुसमर्थन प्रक्रिया स्थायी सदस्यों की संसदों द्वारा प्रभावित हो सकती है, जो संभावित रूप से संशोधित चार्टर के लागू होने को प्रभावित कर सकती है।

नोट: महासभा में स्थायी सदस्यों का एक नकारात्मक वोट उन्हें बाद में संशोधित चार्टर की पुष्टि करने पर प्रतिबंध नहीं लगाता है।

  • उदाहरण के लिये, वर्ष 1963 में सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिये हुए मतदान के दौरान केवल एक स्थायी सदस्य ने पक्ष में मतदान किया
  • हालाँकि वर्ष 1965 तक 18 महीनों के भीतर, सभी पाँच स्थायी सदस्यों ने संशोधित चार्टर की पुष्टि कर दी थी।

आगे की राह 

  • जुड़ाव और आम सहमति निर्माण: सदस्य देशों के बीच समावेशी संवाद और परामर्श को बढ़ावा देना, विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियन जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • सामान्य आधार की तलाश कर प्रतिनिधित्व, वैधता और प्रभावशीलता के महत्त्व पर बल देते हुए सुरक्षा परिषद सुधार के सिद्धांतों एवं उद्देश्यों पर आम सहमति बनाए जाने चाहिये।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन: अनुसमर्थन प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि संशोधित चार्टर समकालीन वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करता है, 5 स्थायी सदस्यों सहित सभी हितधारकों के बीच सहयोग एवं समन्वय को प्रोत्साहन मिलना चाहिये।
  • वीटो शक्ति में परिवर्तन करना: सुरक्षा परिषद के भीतर वीटो शक्ति के प्रयोग में सुधार के लिये रास्ते तलाशना तथा उन प्रस्तावों पर विचार करना चाहिये जो निष्पक्षता और समावेशिता के बारे में चिंताओं के साथ निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता को संतुलित करते हैं।
    • वीटो शक्ति के प्रयोग में पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रोत्साहित करना चाहिये, सुनिश्चित करना चाहिये कि यह अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिये परिषद के जनादेश के अनुरूप है।
  • परिषद की प्रभावशीलता को सुदृढ़ बनाना: संघर्षों, मानवीय संकटों और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों सहित उभरती वैश्विक चुनौतियों का तेज़ी से तथा प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिये परिषद की क्षमता को बढ़ाना।
    • शांति स्थापना और संघर्ष समाधान प्रयासों के लिये विशेषज्ञता तथा संसाधनों का लाभ उठाने हेतु अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों, क्षेत्रीय संगठनों एवं संबंधित हितधारकों के साथ सहयोग व समन्वय को बढ़ावा देना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. UN की सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्यों का चुनाव कितनी अवधि के लिये महासभा द्वारा किया जाता है? (2009)

(a) 1 वर्ष
(b) 2 वर्ष
(c) 3 वर्ष
(d) 5 वर्ष

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्राप्त करने में भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)


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