डेली न्यूज़ (22 Oct, 2024)



बाल सगाई पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, किशोर न्याय अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र महासभा, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012, 'खुले में शौच मुक्त गाँव' पहल, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5)

मेन्स के लिये:

बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006 के प्रभाव और कमियाँ, भारत में बाल विवाह का मुद्दा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बच्चे के अल्पवयस्क होने के दौरान की गई सगाई से उसकी "स्वतंत्र पसंद" एवं "बचपन" की आज़ादी का उल्लंघन होता है। इस क्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से बाल सगाई को गैर-कानूनी घोषित करने का आग्रह किया।

  • न्यायालय के अनुसार, महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) द्वारा वर्ष 1977 में इस समस्या को हल करने की महत्ता पर बल देने के बावजूद, भारत ने अभी तक बाल सगाई के मुद्दे का पूरी तरह से समाधान नहीं किया है।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006 में बाल विवाह को अपराध घोषित किया गया है, लेकिन इस अधिनियम के तहत सगाई की प्रथा पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।

महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) 

  • इस अंतर्राष्ट्रीय संधि का उद्देश्य लैंगिक समानता प्राप्त करना और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है। 
  • इसे महिलाओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय अधिकार विधेयक माना जाता है और यह संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख मानवाधिकार संधियों में से एक है।
  • CEDAW को वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था तथा 20 देशों द्वारा अनुमोदन के बाद यह वर्ष 1981 में प्रभावी हुआ।
    • भारत ने वर्ष 1980 में CEDAW पर हस्ताक्षर किये और वर्ष 1993 में इसका अनुसमर्थन किया।

भारत में बाल विवाह की स्थिति क्या है?

  • इतिहास:
    • ऐतिहासिक ग्रंथों से पता चलता है कि कम उम्र में विवाह (विशेष रूप से लड़कियों का) अक्सर सामाजिक-आर्थिक कारणों से या पारिवारिक संबंध सुनिश्चित करने के लिये प्रचलित थे।
    • मध्यकाल के दौरान कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक मानदंडों के प्रभाव के कारण यह प्रथा और भी अधिक प्रचलित हो गई। उस दौरान लड़कियों की शादी की उम्र काफी कम थी और अक्सर यौवन के तुरंत बाद ही उनका विवाह तय कर दिया जाता था।
    • राजा राम मोहन राय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे सामाजिक-धार्मिक सुधारकों से प्रभावित ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने बाल विवाह के नुकसान को पहचाना और इस मुद्दे पर ध्यान देना शुरू किया।
      • ब्रिटिश सरकार ने इस प्रथा पर अंकुश लगाने के लिये विधायी उपाय (विशेष रूप से वर्ष 1891 का सम्मति आयु अधिनियम, जिसके तहत विवाह के लिये सहमति की आयु बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गई) प्रस्तुत किये।
      • बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929), जिसे शारदा अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है, द्वारा लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष एवं लड़कों के लिये 18 वर्ष निर्धारित की गई, जो बाल विवाह को नियंत्रित करने के क्रम में पहला विधिक हस्तक्षेप था।
  • भारत में बाल विवाह की स्थिति:
    • बाल विवाह में बालिकाओं की हिस्सेदारी वर्ष 1993 के 49% से घटकर वर्ष 2021 में 22% रह गई। इसमें बालकों की हिस्सेदारी वर्ष 2006 के 7% से घटकर वर्ष 2021 में 2% रह गई, जो समग्र राष्ट्रीय गिरावट को दर्शाता है।
    • हालाँकि वर्ष 2016 से 2021 के बीच, इस दिशा में होने वाली प्रगति स्थिर हो गई तथा कुछ राज्यों में बाल विवाह में चिंताजनक वृद्धि देखी गई।
      • उल्लेखनीय है कि मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल सहित छह राज्यों में बालिका विवाह में वृद्धि देखी गई।
      • आठ राज्यों में बालकों के विवाह में वृद्धि देखी गई जिनमें छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं।
  • बाल विवाह रोकने के लिये विधिक उपाय:
    • बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) 2006
      • इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ, 2017 के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि एक पुरुष और उसकी पत्नी के बीच यौन संबंध (अगर उनकी उम्र 15 से 18 वर्ष के बीच है) को बलात्कार माना जाएगा।
      • उक्त निर्णय ने भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 375 के अपवाद 2 के दायरे को सीमित कर दिया और वैवाहिक यौन संबंध हेतु सहमति की आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया। 
    • सरकारी पहल:
      • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
      • धनलक्ष्मी योजना: यह बीमा कवरेज के साथ बालिकाओं के लिये सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है।
      • इसका उद्देश्य माता-पिता को चिकित्सा व्यय के लिये बीमा कवरेज प्रदान करने के साथ बालिकाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करके बाल विवाह को समाप्त करना भी है।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (PCMA) 2006 क्या है?

  • उद्देश्य: यह अधिनियम बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने के साथ विधिक उम्र से पूर्व बच्चों के विवाह पर रोक लगाता है।
  • विवाह की विधिक आयु: इस अधिनियम के तहत विवाह की विधिक आयु महिलाओं के लिये 18 वर्ष और पुरुषों के लिये 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
  • अमान्य विवाह: नाबालिगों के विवाह को किसी भी पक्ष की इच्छा पर अमान्य घोषित किया जा सकता है तथा वे वयस्क होने के दो वर्ष के अंदर विवाह को रद्द करने की मांग कर सकते हैं।
  • दंड: इस अधिनियम में बाल विवाह कराने या इसके लिये उकसाने वालों के साथ-साथ इसमें शामिल माता-पिता या अभिभावकों के लिये कारावास एवं जुर्माने सहित दंड का प्रावधान किया गया है।
  • बाल विवाह निषेध अधिकारी: यह अधिनियम राज्यों को बाल विवाह रोकने और कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये बाल विवाह निषेध अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार देता है।
  • संरक्षण और भरण-पोषण: यह अधिनियम ऐसे विवाहों में शामिल नाबालिगों को सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें बाल वधू के पुनर्विवाह तक भरण-पोषण का अधिकार भी शामिल है।
  • प्रयोज्यता: यह अधिनियम बाल विवाह की अनुमति देने वाले किसी भी रीति-रिवाज़, कानून या व्यक्तिगत धार्मिक कानून को रद्द करता है।

न्यायालय के निर्णय में क्या कहा गया? 

  • बचपन का समान अधिकार: न्यायालय ने बताया कि पुरुषत्व और यौन प्रभुत्व का पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण, साथ ही साथियों की गलत सूचना से अक्सर युवा लड़के अपनी बाल वधुओं के खिलाफ हिंसा करने के लिये प्रेरित होते हैं।
    • यद्यपि लड़कियाँ इससे असमान रूप से प्रभावित होती हैं फिर भी निर्णय में इस बात पर बल दिया गया है कि बचपन का अधिकार लिंग से परे सभी को है।
  • न्यायालय ने एक ऐसे बच्चे, जिसकी शादी तय हो चुकी थी, को किशोर न्याय अधिनियम के तहत "देखभाल एवं संरक्षण की ज़रूरत वाला नाबालिग घोषित किया।
  • बाल विवाह आधुनिक कानूनों के समक्ष खतरा: न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह की सदियों पुरानी प्रथा, पोक्सो अधिनियम, 2012 जैसे आधुनिक कानूनों को कमजोर करती है क्योंकि इससे विधिक सुरक्षा के बावजूद नाबालिग लड़कियाँ यौन शोषण हेतु संवेदनशील हो जाती हैं।
  • बाल विवाह का वस्तुकरण: न्यायालय ने माना कि बाल विवाह बच्चों को वस्तु बनाता है और उन पर वयस्क जिम्मेदारियाँ थोपता है, जिसमें प्रजनन क्षमता की अपेक्षाएँ भी शामिल हैं।
  • प्राकृतिक कामुकता में व्यवधान: न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह से व्यक्ति की यौन इच्छा और क्षमता अव्यवस्थित हो जाती है।
  • न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देश क्या हैं?
  • यौन शिक्षा के लिये दिशानिर्देश: न्यायालय ने सरकार को स्कूलों में बच्चों के लिये आयु-उपयुक्त और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील यौन शिक्षा लागू करने का निर्देश दिया।
  • बाल विवाह मुक्त गाँव पहल: इसमें 'खुले में शौच मुक्त गाँव' पहल के समान 'बाल विवाह मुक्त गाँव' बनाने के लिये एक अभियान का प्रस्ताव किया गया, जिसमें स्थानीय और सामुदायिक नेताओं को शामिल किया गया।
  • ऑनलाइन रिपोर्टिंग पोर्टल: न्यायालय ने गृह मंत्रालय को बाल विवाह की ऑनलाइन रिपोर्टिंग के लिये एक निर्दिष्ट पोर्टल स्थापित करने की सिफारिश की।
  • मुआवज़ा संबंधी योजना: न्यायालय ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से उन लड़कियों के लिये मुआवज़ा संबंधी योजना आरंभ करने का आग्रह किया, जो बाल विवाह से बाहर निकलना चाहती हैं।
  • वार्षिक बजट आबंटन: इसमें बाल विवाह को रोकने और प्रभावित व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने के लिये समर्पित वार्षिक बजट के आबंटन का भी आह्वान किया गया।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) 2012

  • उद्देश्य:
    • POCSO अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाना है। इसका उद्देश्य अपराध की गंभीरता के आधार पर अपराधियों को दंडित करना भी है। 
  • विशेषताएँ:
    • यह लैंगिक-तटस्थ है क्योंकि यह लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है। इसमें मामलों की सुनवाई के लिये विशेष अदालतों, पीड़ितों के लिये मुआवज़ा और किसी विश्वसनीय वयस्क की मौज़ूदगी में मेडिकल जाँच के प्रावधान भी शामिल हैं। 
  • संशोधन:
    • वर्ष 2019 में इसमें संशोधन करके मृत्युदंड सहित और भी कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
  • रिपोर्टिंग:
    • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की रिपोर्टिंग की सुविधा के लिये POCSO ई-बॉक्स लॉन्च किया।
  • मुआवज़ा:
    • पीड़ितों को तत्काल ज़रूरतों के लिये अंतरिम मुआवज़ा मिल सकता है, किसी भी नुकसान या क्षति के लिये अंतिम मुआवज़ा मिल सकता है। मुआवज़ा इस बात की परवाह किये बगैर दिया जाता है कि आरोपी दोषी पाया गया है या नहीं।

PCMA को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सांस्कृतिक मानदंड और सामाजिक दृष्टिकोण: गहरी जड़ें जमाए हुए सांस्कृतिक विश्वास और प्रथाएँ विभिन्न समुदायों में बाल विवाह को बढ़ावा देती रहती हैं, जिससे दृष्टिकोण में बदलाव लाना मुश्किल हो जाता है। 
    • कुछ सांस्कृतिक और धार्मिक कानून, जैसे मुस्लिम पर्सनल लॉ और पूर्वोत्तर में जनजातीय रीति-रिवाज़, बाल विवाह की अनुमति देते हैं, जिससे बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) इन मामलों में लागू नहीं होता है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) वर्ष 2019-21 के अनुसार, 20-24 वर्ष की आयु की लगभग 23% महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हो गई थी, जो इस प्रथा की निरंतर स्वीकृति को दर्शाता है।
  • कानूनों का अपर्याप्त प्रवर्तन: PCMA, 2006 के अस्तित्व के बावजूद प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है। स्थानीय अधिकारियों के पास बाल विवाह के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिये संसाधन या प्रतिबद्धता की कमी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप सज़ा की संभावना कम होती है।
  • लैंगिक असमानता: लैंगिक भेदभाव बाल विवाह को बढ़ावा देता है, क्योंकि लड़कियों को अक्सर आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है। 
  • सामाजिक दबाव: बच्चों में गलत सूचना और सामाजिक दबाव के चलते बाल विवाह को स्वीकार किया जा सकता है। इन प्रभावों का सामना करने के लिये सामुदायिक सहभागिता और सामाजिक शिक्षा कार्यक्रम आवश्यक हैं।
  • जागरुकता और शिक्षा का अभाव: कई समुदायों में बाल विवाह के विरुद्ध विधिक प्रावधानों और इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूकता का अभाव है। 
    • परिवारों को विवाह में विलंब के लाभ और बच्चों के अधिकारों के संबंध में जानकारी देने के लिये शैक्षिक अभियान चलाने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • विधिक ढाँचे और प्रवर्तन को सुदृढ़ करना: स्थानीय प्राधिकारियों और कानून प्रवर्तन की जवाबदेही बढ़ाकर बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रवर्तन को बढ़ाना। 
  • बाल विवाह को प्रभावी ढंग से रोकने और उससे निपटने के लिये अधिकारियों के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करना।
    • लड़कियों के लिये शैक्षिक और आर्थिक अवसरों का विस्तार करना: लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाली पहलों में निवेश करना और लड़कियों को स्कूल में रखने के लिये परिवारों को छात्रवृत्ति या वित्तीय सहायता प्रदान करना। उदाहरण के लिये असम की निजुत मोइना योजना सरकारी और सहायता प्राप्त संस्थानों में उच्चतर माध्यमिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की छात्राओं को मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
      • लड़कियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करना, जिससे कम उम्र में विवाह की प्रवृत्ति कम हो।
  • सहायता प्रणालियों और स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाना: बाल विवाह के जोखिम वाली लड़कियों के लिये परामर्श और स्वास्थ्य सेवाओं सहित सहायता नेटवर्क स्थापित करना।
  • बालिकाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने तथा प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • व्यापक जागरुकता अभियान चलाना: बाल विवाह के नकारात्मक प्रभावों और लड़कियों के लिये शिक्षा के लाभों पर ध्यान केंद्रित करते हुए राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाना। 
  • सांस्कृतिक बदलावों को बढ़ावा देने और हानिकारक प्रथाओं को छोड़ने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु समुदाय के नेताओं, अभिभावकों और युवाओं को शामिल करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में बाल विवाह के बच्चों के अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में, निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपरोक्त में से कौन-सा/से अधिकार बच्चों के हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3 
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मुख्य परीक्षा:

Q. ''महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (वर्ष 2019)


वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2024

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक भुखमरी सूचकांक, बाल विकास में कमी, अल्पपोषण (Undernourishment), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन), पीएम गरीब कल्याण योजना (PMGKAY), राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन

मेन्स के लिये:

भारत में गरीबी और भुखमरी से संबंधित मुद्दे, प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों को तैयार करने में विश्वसनीय आँकड़ों की भूमिका, खाद्य सुरक्षा, सरकारी पहल और भूख में योगदान देने वाले सामाजिक-आर्थिक कारक।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, भारत वर्ष 2024 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट- GHI) में 27.3 स्कोर के साथ 127 देशों में से 105 वें स्थान पर है, जो खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की चुनौतियों से प्रेरित "गंभीर" भूख संकट को उजागर करता है।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक क्या है?

  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) एक समकक्ष समीक्षा वाला सूचकांक है, जो कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहिल्फ द्वारा वार्षिक आधार पर प्रकाशित की किया जाता है।
  • GHI एक ऐसा उपकरण है जिसे वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी को व्यापक रूप से मापने और ट्रैक करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो समय के साथ भुखमरी के कई आयामों को दर्शाता है।
  • GHI स्कोर की गणना 100-बिंदु पैमाने पर की जाती है, जो भुखमरी को दर्शाता है - 0 सबसे अच्छा स्कोर है (जिसका अर्थ है भुखमरी नहीं है) और 100 सबसे खराब स्कोर है।

चार घटक संकेतक: 

  • अल्प-पोषण: जनसंख्या का वह हिस्सा जिसका कैलोरी सेवन अपर्याप्त है, यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा परिभाषित स्वस्थ जीवन को बनाए रखने के लिये अपर्याप्त कैलोरी सेवन को संदर्भित करता है।
  • बाल बौनापन: पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों का समूह जिनकी ऊँचाई उनकी उम्र के आधार पर कम है, दीर्घकालिक कुपोषण को दर्शाता है।
  • शिशु दुर्बलता: पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों का हिस्सा जिनका वजन उनकी ऊँचाई के अनुपात में कम है, गंभीर कुपोषण को दर्शाता है।
  • शिशु मृत्यु दर: अपने पाँच वें जन्मदिन से पहले मरने वाले बच्चों का समूह, जो कि आंशिक रूप से अपर्याप्त पोषण और अस्वास्थ्यकर वातावरण के घातक मिश्रण को दर्शाता है।

नोट: 

  • कंसर्न वर्ल्डवाइड एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय संगठन है जो विश्व के सबसे गरीब देशों में गरीबी को दूर और पीड़ा को कम करने पर केंद्रित है। 
  • वेल्टहंगरहिल्फ़, जिसकी स्थापना वर्ष 1962 में "भूख से मुक्त अभियान" की जर्मन शाखा के रूप में की गई थी, जर्मनी में स्थित एक निजी सहायता संगठन है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • भारत-विशिष्ट निष्कर्ष:2024 की रिपोर्ट में भारत का स्कोर 27.3 है जो भुखमरी का एक गंभीर स्तर है, जो GHI स्कोर (2023) - 28.7 ('गंभीर') से थोड़ा बेहतर प्रदर्शन को दर्शाता है। 
    • कुपोषित बच्चे - 13.7% 
    • अविकसित बच्चे - 35.5% 
    • कमज़ोर बच्चे - 18.7% (विश्व स्तर पर सबसे अधिक) 
    • शिशु मृत्यु दर - 2.9% 

 

  • GHI 2024 में वैश्विक रुझान: 
    • विश्व के लिये वर्ष 2024 का GHI स्कोर 18.3 है, जो वर्ष 2016 के 18.8 की तुलना में थोड़ा बेहतर प्रदर्शन है, तथा इसे "मध्यम" माना जाता है। 
    • बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश बेहतर प्रदर्शन करते हैं तथा "मध्यम" श्रेणी में आते हैं।
  • भारत के प्रयासों की मान्यता: रिपोर्ट विभिन्न पहलों के माध्यम से खाद्य और पोषण परिदृश्य में सुधार हेतु भारत की "महत्त्वपूर्ण राजनीतिक इच्छाशक्ति" को स्वीकार करती है: पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन), पीएम गरीब कल्याण योजना (PMGKAY), राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन
  • अपर्याप्त GDP वृद्धि: रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि भूख में कमी या बेहतर पोषण की गारंटी नहीं देती है, इसलिए गरीब-समर्थक विकास और सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करने पर केंद्रित नीतियों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

जीएचआई 2024 पर भारत की प्रतिक्रिया क्या है?

  • दोषपूर्ण कार्यप्रणाली: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पोषण ट्रैकर से प्राप्त आंकड़ों की अनुपस्थिति की आलोचना की है , जिसमें कथित तौर पर 7.2% बाल कुपोषण दर का संकेत मिलता है।
  • बाल स्वास्थ्य पर ध्यान: सरकार ने कहा कि चार जीएचआई संकेतकों में से तीन बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं और संभवतः ये संपूर्ण जनसंख्या का पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
  • छोटे नमूने का आकार: सरकार ने "अल्पपोषित जनसंख्या का अनुपात" सूचक की सटीकता के बारे में संदेह व्यक्त किया, क्योंकि यह एक छोटे नमूने के आकार के जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है।

भारत में भुखमरी से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अकुशल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): सुधारों के बावजूद, भारत की PDS को अभी भी सभी इच्छित लाभार्थियों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत 67% जनसंख्या को लाभ मिलता है, लेकिन लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) के अंतर्गत 90 मिलियन से अधिक पात्र लोग कानूनी अधिकारों से वंचित रह गए हैं ।
  • आय असमानता और गरीबी: हालाँकि भारत ने गरीबी कम करने में प्रगति की है (पिछले 9 वर्षों में 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं), फिर भी आय में भारी असमानताएँ बनी हुई हैं, जिससे खाद्य उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
  • पोषण संबंधी चुनौतियाँ और आहार विविधता: भारत में खाद्य सुरक्षा अक्सर पोषण संबंधी पर्याप्तता के बजाय कैलोरी पर्याप्तता पर केंद्रित होती है।
  • शहरीकरण और बदलती खाद्य प्रणालियाँ: भारत में तेज़ी से हो रहा शहरीकरण खाद्य प्रणालियों और उपभोग पैटर्न को बदल रहा है। 
    • टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट द्वारा वर्ष 2022 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले 51% परिवारों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।
  • लिंग आधारित पोषण अंतर: लिंग आधारित असमानताएँ भारत में भूख और कुपोषण को और बढ़ा देती हैं। महिलाओं और लड़कियों को अक्सर घरों में भोजन की असमान पहुँच का सामना करना पड़ता है, उन्हें कम मात्रा में या कम गुणवत्ता वाला भोजन मिलता है। 
    • यह असमानता, मातृ एवं शिशु देखभाल की मांग के साथ मिलकर, दीर्घकालिक कुपोषण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को बढ़ा देती है।

आगे की राह:

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार करना ताकि पारदर्शिता, विश्वसनीयता और पौष्टिक भोजन की सामर्थ्य को बढ़ाया जा सके और आर्थिक रूप से वंचितों को लाभ पहुँचाया जा सके
  • सामाजिक अंकेक्षण और जागरूकता: स्थानीय प्राधिकारियों की भागीदारी के साथ सभी ज़िलों में मध्याह्न भोजन योजना का सामाजिक अंकेक्षण लागू करना, आईटी के माध्यम से कार्यक्रम की निगरानी बढ़ाना, तथा महिलाओं और बच्चों के लिये संतुलित आहार पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्थानीय भाषाओं में समुदाय संचालित पोषण शिक्षा कार्यक्रम स्थापित करना।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SGD), विशेष रूप से SGD 12 (ज़िम्मेदार उपभोग और उत्पादन) तथा SGD 2 (ज़ीरो हंगर), सतत् उपभोग पैटर्न पर केंद्रित है।
  • कृषि में निवेश: एक समग्र खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण जो विविध और पौष्टिक खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिसमें बाज़रा जैसे पोषक अनाज भी शामिल हैं।
    • खाद्यान्न की बर्बादी को रोकना बहुत ज़रूरी है। एक मुख्य उपाय यह है कि कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिये गोदाम और कोल्ड स्टोरेज के बुनियादी ढाँचे में सुधार किया जाए।
  • स्वास्थ्य निवेश: बेहतर जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य प्रथाओं के माध्यम से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना।
  • परस्पर संबद्ध कारक: नीति-निर्माण में लिंग, जलवायु परिवर्तन और पोषण के बीच अंतर्संबंध को पहचानना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये कारक सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामाजिक समानता और सतत् विकास को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: भारत की 2024 वैश्विक भूख सूचकांक रैंकिंग और खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए इसके निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसी सरकारी पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये और सुधार के लिये रणनीति सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह/वे सूचक है/हैं, जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है?  (2016) 

  1. अल्प-पोषण 
  2. शिशु वृद्धिरोधन
  3. शिशु मृत्यु-दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (C)


मेन्स

प्रश्न. खाद्य सुरक्षा बिल से भारत में भूख व कुपोषण के विलोपन की आशा है। उसके प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न आशंकाओं की समालोचनात्मक विवेचना कीजिये। साथ ही यह भी बताइये कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इससे कौन-सी चिंताएँ उत्पन्न हो गई हैं? (2013)


भारत की वृद्ध होती जनसंख्या

प्रिलिम्स:

कार्यशील आयु वाली जनसंख्या, विश्व स्वास्थ्य संगठन, निर्भरता अनुपात, विश्व बैंक, प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर, पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर, वन चाइल्ड पॉलिसी, पेंशन प्रणाली, आंतरिक प्रवास

मेन्स:

वृद्ध होती जनसंख्या और जनसंख्या में गिरावट से संबंधित चिंताएँ, उनसे निपटने के लिये आवश्यक उपाय।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण भारत के कुछ राजनेताओं ने वृद्ध होती और घटती जनसंख्या से संबंधित चिंता व्यक्त की तथा राज्य के निवासियों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु एक कानून बनाने पर बल दिया है।

भारत में वृद्धावस्था और समग्र जनसंख्या आकार पर आँकड़े क्या कहते हैं?

  • समग्र जनसंख्या वृद्धि: वर्ष 2011 और वर्ष 2036 के बीच भारत की जनसंख्या में 31.1 करोड़ (311 मिलियन) की वृद्धि होने का अनुमान है
  • विकास का संकेंद्रण: लगभग आधा यानि 17 करोड़ पाँच राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश भी शामिल होंगे।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: अनुमानतः उत्तर प्रदेश में कुल जनसंख्या वृद्धि में 19% की वृद्धि होगी, जबकि पाँच दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु केवल 29 मिलियन या कुल वृद्धि में 9% का योगदान देंगे।
  • वृद्ध जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियाँ: 60 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों की संख्या वर्ष 2011 में 10 करोड़ (100 मिलियन) से दोगुनी होकर वर्ष 2036 तक 23 करोड़ (230 मिलियन) हो जाने की उम्मीद है, तथा कुल जनसंख्या में उनकी भागीदारी 8.4% से बढ़कर 14.9% हो जाएगी।

  • वृद्ध होती जनसंख्या में राज्य स्तर पर भिन्नताएँ: केरल में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों का अनुपात वर्ष 2011 में 13% से बढ़कर वर्ष 2036 तक 23% होने का अनुमान है, अर्थात् लगभग 4 में से 1 व्यक्ति इस आयु समूह में आता है।
    • उत्तर प्रदेश में 60 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या का हिस्सा वर्ष 2011 में 7% से बढ़कर वर्ष 2036 में 12% होने की उम्मीद है ।
  • उत्तर-दक्षिण विभाजन: 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के अनुपात में वृद्धि दक्षिण भारतीय राज्यों की तुलना में उत्तरी राज्यों में कम होगी।
    • दक्षिण भारतीय राज्यों ने प्रजनन दर कम करने की दिशा में पहले ही कदम बढ़ा दिये हैं। उदाहरण के लिये अनुमानतः उत्तर प्रदेश वर्ष 2025 में प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर (प्रति महिला 2.1 बच्चे) तक पहुँच जाएगा, जो आंध्र प्रदेश (वर्ष 2004) में दो दशक बाद देखने को मिलेगा।

नोट: उपरोक्त डेटा केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक तकनीकी समूह की वर्ष 2020 की रिपोर्ट के नवीनतम जनसंख्या अनुमानों पर आधारित है

वृद्धावस्था और घटती जनसंख्या के क्या कारण हैं?

  • गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन: गर्भनिरोधक और गर्भपात सेवाओं की बढ़ती उपलब्धता से व्यक्तियों को अपने प्रजनन विकल्पों पर अधिक नियंत्रण रखने की सुविधा मिलती है।
  • महिलाओं की आर्थिक भागीदारी: चूँकि महिला कार्यबल में तीव्र वृद्धि देखने को मिल रही है, इसलिये उनमें से कई ने बच्चे पैदा करने में विलंब करने या बच्चे पैदा करने से पूर्ण रूप से परहेज करने का विकल्प चुना है। 
    • यह बदलाव प्रायः कैरियर की आकांक्षाओं, वित्तीय स्थिरता और व्यक्तिगत लक्ष्यों की खोज से प्रेरित है।
  • बाल जीवन दर में सुधार: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर मृत्यु) वर्ष 1990 की तुलना में 126 से घटकर वर्ष 2019 में 34 हो गई।
    • वर्ष 1990 और 2019 के बीच, भारत ने पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 4.5% वार्षिक कमी दर्ज़ की गई, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1990 में मृत्यु दर 3.4 मिलियन से घटकर वर्ष 2019 में 824,000 हो गई।
    • पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में कमी आने के कारण लोगों द्वारा अधिक बच्चे पैदा करने की संभावना कम हो गई है।
  • शहरीकरण: जैसे-जैसे ज़्यादा लोग शहरी इलाकों की ओर जा रहे हैं, जीवन-यापन की लागत प्रायः बढ़ती जा रही है, जिससे परिवारों के लिये बच्चों का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है। शहरी जीवनशैली में परिवार के विस्तार की तुलना में करियर को प्राथमिकता दी जा सकती है।
  • प्रवासन: संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका जैसे विदेशी देशों के कारण भारतीयों के प्रवासन से भी भारत की जनसंख्या में गिरावट आती है।

वृद्ध होती जनसंख्या से संबंधित क्या चिंताएँ हैं?

  • संसद में न्यूनतम प्रतिनिधित्व: वृद्ध होती जनसंख्या तथा कम जनसंख्या वाले दक्षिणी राज्यों को आशंका है कि उत्तर भारत से पहले जनसांख्यिकीय परिवर्तन करने के कारण उन्हें लोकसभा में कम सीटों के रूप में दंडित किया जा सकता है।
    • बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को दक्षिणी राज्यों की तुलना में अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सकता है, जिससे नीतिगत प्राथमिकताएँ प्रभावित होंगी।
  • सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में कमी: वृद्ध होती जनसंख्या के कारण प्रायः GDP की वृद्धि दर में गिरावट आती है, जिसका मुख्य कारण श्रम शक्ति में कमी है।
    • उदाहरण के लिये अमेरिका में 20 से 64 वर्ष की आयु की जनसंख्या की वृद्धि दर 1.24% प्रति वर्ष (1975-2015) से घटकर केवल 0.29% (2015-2055) रहने की उम्मीद है, जिसके परिणामस्वरूप सकल घरेलू उत्पाद और समग्र उपभोग की वृद्धि दर में भी गिरावट आएगी।
  • उच्च निर्भरता अनुपात: जैसे-जैसे जनसंख्या की आयु बढ़ती है, कार्यशील आयु वाले व्यक्तियों की तुलना में आश्रितों (बुजुर्गों और बच्चों दोनों) का अनुपात अधिक होता है, जिससे कार्यशील आयु वाली जनसंख्या (15 से 64 वर्ष के लोगों) पर बोझ बढ़ता है।
    • विश्व बैंक के विकास संकेतकों के अनुसार, भारत का वर्तमान आयु निर्भरता अनुपात, जो वर्ष 2023 में 47% है, में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • उच्च सार्वजनिक व्यय: जनसंख्या की आयु बढ़ने के साथ स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन और दीर्घकालिक देखभाल के लिये सार्वजनिक कार्यक्रमों की लागत में काफी वृद्धि होगी।
    • इन बढ़ती लागतों को प्रबंधित करने के लिये  सरकारों को करों में वृद्धि करनी होगी या लाभों में कटौती करनी होगी।
  • अंतर-पीढ़ीगत समानता के मुद्दे: युवा आबादी को यह लग सकता है कि पुरानी पीढ़ी का भरण-पोषण करने के लिये उन पर अनुचित कर लगाया जा रहा है, जिसके कारण सामाजिक विभाजन की संभावना है तथा संसाधन आवंटन के संबंध में अन्याय की भावना उत्पन्न हो सकती है।
  • संस्थागत सुधार के लिये दबाव: जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, सेवानिवृत्ति की आयु, सामाजिक सुरक्षा लाभ और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सुधार की मांग बढ़ सकती है

जनसंख्या विस्फोट से जनसंख्या संकुचन की ओर बदलाव

  • लगभग पाँच दशक पहले, भारत के समक्ष मुख्य चिंता तीव्र जनसंख्या वृद्धि थी, जो प्रजनन क्षमता (प्रति महिला जन्म)  के उच्च स्तर से प्रेरित थी।
  • पिछले कई दशकों में भारत जनसंख्या वृद्धि की गति को रोकने में सफल रहा है, जिसका नेतृत्व कई दक्षिण भारतीय राज्य कर रहे हैं। 
    • आंध्रप्रदेश ने वर्ष 2004 में प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर हासिल कर लिया, जिससे वह केरल (1988), तमिलनाडु (2000), हिमाचल प्रदेश (2002) और पश्चिम बंगाल (2003) के बाद ऐसा करने वाला 5वाँ भारतीय राज्य बन गया।
  • आंध्रप्रदेश में एक कानून था, जिसके तहत दो से अधिक बच्चे होने पर स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक थी। बाद में इस कानून को निरस्त कर दिया गया।
  • अलग-अलग राज्यों में प्रजनन दर कम होने के बावजूद, भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश है।

वृद्ध होती जनसंख्या के प्रति देश क्या प्रतिक्रिया देते हैं?

  • चीन की थ्री चाइल्ड पॉलिसी: वर्ष 2016 में चीन ने अपने नागरिकों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी और वर्ष 2021 में, चीन ने घोषणा की कि परिवारों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति है।
  • जापान का पैतृक अवकाश: इसमें बारह माह का पैतृक अवकाश अनिवार्य करना, माता-पिता को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान करना, तथा सब्सिडीयुक्त बाल देखभाल में भारी निवेश करना शामिल है
  • विस्तारित सेवानिवृत्ति आयु: फ्राँस और नीदरलैंड जैसे कुछ देशों ने पेंशन प्रणालियों पर दबाव कम करने के लिये सेवानिवृत्ति की आयु या वह आयु जिस पर लोग पेंशन के लिये पात्र होते हैं, बढ़ा दी है
  • खुली आव्रजन नीति: ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अन्य देशों ने अपनी घटती जनसंख्या के कारण श्रम की कमी से निपटने के लिये अधिक खुली आव्रजन नीतियों को अपनाया है।

वृद्धावस्था और घटती जनसंख्या को रोकने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • प्रजनन-समर्थक नीतियाँ: स्कैंडिनेवियाई देशों ने प्रदर्शित किया है कि पारिवारिक समर्थन, बच्चों की देखभाल, लैंगिक समानता और पैतृक अवकाश नीतियाँ प्रजनन दर को बनाए रखने में सहायक हो सकती हैं।
    • बाल स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के लिये उचित सरकारी वित्तपोषण लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिये प्रेरित कर सकता है ।
  • आंतरिक प्रवास का लाभ उठाना: अधिक जनसंख्या वाले उत्तरी राज्यों और अधिक विकसित दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच आंतरिक प्रवास से कार्यशील आयु के व्यक्तियों का आगमन हो सकता है, जिससे वृद्ध होती जनसंख्या के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
    • प्रवासियों को शरण देने वाले राज्यों को युवा परिवारों के लिये शिक्षा और पालन-पोषण में निवेश करने की आवश्यकता के बिना ही श्रमिकों के तत्काल आगमन से लाभ होगा।
  • लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: साझा पालन-पोषण ज़िम्मेदारियों को बढ़ावा देने वाली लैंगिक समानता संबंधी पहल से प्रजनन दर में वृद्धि हो सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के कुछ राज्यों में घटती जनसंख्या के कारणों पर चर्चा कीजिये। इस जनसांख्यिकीय परिवर्तन के संभावित सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मुख्य परीक्षा:

Q. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) 

Q. ''महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (2019)

Q. समालोचनात्मक जाँच कीजिये कि क्या बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी भारत में जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (2015)


भारत-भूटान संबंध

प्रिलिम्स:

हरित ऊर्जा, हाइड्रोजन ईंधन वाली बस, भारत में बौद्ध स्थलों की तीर्थयात्रा, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), BBIN (बाँग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल) मोटर वाहन समझौता   

मेन्स:

भारत-भूटान संबंध, महत्त्व, चुनौतियाँ और आगे की राह

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भूटानी प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे की भारत यात्रा ने भूटान और भारत के बीच मज़बूत राजनयिक संबंधों को उज़ागर किया।

  • उनकी यात्रा के दौरान विभिन्न महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम और बैठकों का आयोजन हुआ, जिसमें स्थिरता, हरित ऊर्जा और द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने के प्रति उनकी साझा प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया।

नोट:

द्विपक्षीय बैठक की मुख्य बातें क्या हैं?

  • भारत की हरित हाइड्रोजन प्रगति का प्रदर्शन: भारत ने हाइड्रोजन-ईंधन वाली बस पेश करके हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी में अपनी प्रगति का प्रदर्शन किया, जिससे सतत् गतिशीलता में देश की प्रगति पर प्रकाश डाला गया।
    • भारत ने सतत् ऊर्जा समाधान के प्रति देश की प्रतिबद्धता पर बल दिया तथा स्वच्छ एवं हरित भविष्य को बढ़ावा देने के लिये भूटान के साथ सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की।
  • ऊर्जा सहयोग के अवसर: द्विपक्षीय सहयोग, विशेष रूप से ऊर्जा क्षेत्र में, बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। 
    • भूटान के प्रतिनिधिमंडल ने पर्यावरणीय स्थिरता के लिये भूटान की भावना के अनुरूप हरित हाइड्रोजन गतिशीलता को अपनाने और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को अपनाने में गहरी रुचि व्यक्त की।
  • महत्त्व: भारत का लक्ष्य हरित हाइड्रोजन उत्पादन में स्वयं को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करना है, भूटान के नेतृत्व के समक्ष अपनी प्रगति को प्रस्तुत करना और पारस्परिक लाभों पर प्रकाश डालना शामिल है। 
    • दोनों देशों के बीच सतत् विकास के लिये साझा दृष्टिकोण अक्षय ऊर्जा में सहयोग के लिये एक मज़बूत आधार स्थापित करता है, तथा भूटान को भारत के हरित ऊर्जा परिवर्तन में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करता है।

भारत-भूटान संबंध कैसे रहे हैं?

  • राजनयिक पृष्ठभूमि: भारत और भूटान के बीच राजनयिक संबंध वर्ष 1968 में आरंभ हुए, जो वर्ष 1949 की मैत्री और सहयोग संधि पर आधारित थे, जिसे समकालीन आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिये वर्ष 2007 में अद्यतन किया गया था।
  • सांस्कृतिक संबंध: वर्ष 2003 में स्थापित भारत-भूटान फाउंडेशन शैक्षिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है। 
    • भारत में बौद्ध स्थलों की तीर्थयात्रा एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक संबंध बनी हुई है।
  • मान्यता और पुरस्कार: भूटान के 114वें राष्ट्रीय दिवस पर, भारत के प्रधानमंत्री को भारत-भूटान संबंधों में उनके योगदान के लिये भूटान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो से सम्मानित किया गया।
  • विकास साझेदारी: भारत भूटान के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक सतत् साझेदार रहा है तथा वर्ष 1971 में प्रथम पंचवर्षीय योजना के बाद से ही इसकी पंचवर्षीय योजनाओं को समर्थन दे रहा है।
    • भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2018-2023) के लिये भारत ने विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिये 5,000 करोड़ रुपए प्रदान किये।
  • जलविद्युत सहयोग: जलविद्युत सहयोग भारत-भूटान संबंधों की आधारशिला है। भारत ने भूटान में चार प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं (HEP) के निर्माण में सहायता की है।
  • नये एवं उभरते क्षेत्रों में सहयोग:
    • अंतरिक्ष सहयोग: नवंबर 2022 में भारत-भूटान सैट के प्रक्षेपण के साथ यह एक महत्त्वपूर्ण नया क्षेत्र होगा।
      • यह उपग्रह प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में सहायता करता है तथा इसमें शौकिया रेडियो समुदाय के लिये डिजिटल रिपीटर भी शामिल है। 
    • फिन-टेक: रुपे कार्ड (2019, 2020 चरण) और भारत इंटरफेस फॉर मनी (BHIM) ऐप (2021) का लॉन्च भी इसमें शामिल हैं, ताकि कैशलेस भुगतान और सीमा पार अंतर-संचालन को सक्षम किया जा सके।
  • वाणिज्य और व्यापार: भारत भूटान का शीर्ष व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2014-15 में 484 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 1,615 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा।
    • वर्ष 2007 की भारत-भूटान मैत्री संधि और वर्ष 2016 के व्यापार, वाणिज्य और पारगमन समझौते के तहत एक मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित की गई है, जिसमें भारत के माध्यम से भूटान के सामानों के लिये शुल्क मुक्त पारगमन की व्यवस्था है।
    • भूटान के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में भारतीय निवेश का भाग 50% है, जो बैंकिंग, विनिर्माण, आतिथ्य और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ है।
    • गेलेफू में एक क्षेत्रीय आर्थिक केंद्र के लिये भूटान की योजना, क्षेत्रीय विकास और कनेक्टिविटी की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
      • दिसंबर 2023 में भूटान के राजा द्वारा आरंभ की गई इस परियोजना का उद्देश्य 1,000 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत गेलेफु माइंडफुलनेस सिटी (GMC) की स्थापना करना है।
  • वित्तीय सहायता: नवंबर 2022 में भारतीय रुपए की तरलता को प्रबंधित करने और विदेशी मुद्रा दबाव को कम करने के लिये दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) मुद्रा स्वैप व्यवस्था के तहत 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की व्यवस्था की गई थी।
  • स्वास्थ्य सेवा सहयोग: भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान कोविशील्ड वैक्सीन की खुराक और चिकित्सा संबंधी सुविधा प्रदान करके भूटान का समर्थन किया।
    • भारत ने अस्पताल बनाने और चिकित्सा आपूर्ति उपलब्ध कराने में भी सहायता की है।
  • भूटान में भारतीय प्रवासी: लगभग 50,000 भारतीय भूटान में कार्य करते हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। 
    • वर्ष 2023 में भारतीय शिक्षाविद संजीव मेहता को भूटान में शिक्षा में उनके योगदान के लिये प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया।

भारत के लिये भूटान का महत्त्व

  • रणनीतिक स्थान: भारत और चीन के बीच भूटान का स्थान भारत की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह एक बफर स्टेट के रूप में कार्य करता है, जो भारतीय क्षेत्र में चीन की सीधी पहुँच को रोकता है।
  • साझा विरासत: भारत और भूटान के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं, मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के माध्यम से। यह सांस्कृतिक संबंध आपसी समझ और लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाता है।
  • जैवविविधता संरक्षण: भूटान की समृद्ध जैवविविधता पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण है, जो संरक्षण प्रयासों में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय पर्यावरणीय लक्ष्यों का समर्थन करती है।

भारत-भूटान संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • चीन के साथ सीमा विवाद: विवादित क्षेत्रों में चीन के बुनियादी ढाँचे के विकास, विशेष रूप से भारत के पास रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण डोकलाम पठार के आसपास, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की बढ़ती उपस्थिति के कारण चिंताएँ बढ़ गई हैं। 
    • इसके साथ ही चीन और भूटान में सीमा मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिये तीन-चरणीय रोडमैप के माध्यम से कूटनीतिक प्रयास कर रहे हैं।
  • भारत के लिये भू-राजनीतिक निहितार्थ: विवादित डोकलाम क्षेत्र और PLA की गतिविधियाँ भारत के लिये बहुत चिंता का विषय हैं, क्योंकि नियंत्रण में कोई भी परिवर्तन सिलीगुड़ी कॉरिडोर (भारत का अपने पूर्वोत्तर राज्यों से संकीर्ण संपर्क) को खतरे में डाल सकता है।
    • भारत अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिये भूटान के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखना चाहता है तथा सिलीगुड़ी कॉरिडोर को सुरक्षा जोखिम में डालने वाले किसी भी बदलाव को रोकना चाहता है।
  • जलविद्युत परियोजना पर चिंताएँ: भूटान का जलविद्युत उद्योग उसकी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, तथा भारत इसकी प्रगति में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है। 
    • भूटान में कुछ जलविद्युत परियोजनाओं की भारत के लिये अनुकूल स्थितियों को लेकर चिंताएँ उभरी हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में भारत की भागीदारी के विरुद्ध सार्वजनिक असंतोष उत्पन्न हो रहा है
  • BBIN पहल: मूल BBIN (बाँग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल) मोटर वाहन समझौते पर जून 2015 में सभी चार देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे। हालाँकि स्थिरता और पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित भूटान में आपत्तियों के बाद भूटानी संसद ने योजना का समर्थन नहीं करने का विकल्प चुना। 
    • परिणामस्वरूप अन्य तीन देश वर्ष 2017 में वाहन आवागमन पहल (BIN-MVA) के साथ आगे बढ़े

आगे की राह

  • आर्थिक चिंताओं का समाधान: यह सुनिश्चित करना कि व्यापार समझौते और जलविद्युत परियोजनाएँ समतापूर्ण हों, निर्भरता और कथित असंतुलन के बारे में भूटान की चिंताओं का समाधान करना।
    • भूटान के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय निवेश को प्रोत्साहित करना, जलविद्युत पर निर्भरता कम करना तथा सतत् विकास को बढ़ावा देना।
  •  वैश्विक परिवर्तनों के साथ अनुकूलन: क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव पर नज़र रखना और उसके साथ अनुकूलन करना, यह सुनिश्चित करना कि भूटान अपने विदेश नीति निर्णयों में भारत द्वारा समर्थित और सुरक्षित महसूस करे।
    • अन्य देशों को शामिल करते हुए बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग करना, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
  • पर्यटन को बढ़ावा देना: संयुक्त पर्यटन पहल विकसित करना जिससे भारतीय पर्यटकों को भूटान आगमन के लिये प्रोत्साहित किया जा सके, आर्थिक संबंधों को बढ़ावा मिले तथा लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़े।
    • दोनों देशों की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करने वाले सांस्कृतिक उत्सवों और कार्यक्रमों का आयोजन करना तथा पारस्परिक प्रशंसा और समझ को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

भविष्य की ओर देखते हुए, भारत-भूटान संबंधों में विकास और सहयोग की महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं। समान आर्थिक प्रथाओं को प्राथमिकता देकर और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देते हुए दोनों देश अपने संबंधों को गहरा कर सकते हैं। सीमा विवादों और हस्तक्षेप की धारणाओं से संबंधित चिंताओं को संबोधित करना विश्वास बनाए रखने के लिये आवश्यक होगा। दोनों देशों के लिये स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने में आपसी सम्मान और साझा हित महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

Q. दुर्गम क्षेत्रों और कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली  सीमा प्रबंधन की चुनौतियों और रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। (2016)