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डेली न्यूज़

  • 22 Sep, 2023
  • 36 min read
शासन व्यवस्था

भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना और पीएम-वाणी

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम-वाणी, भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI)

मेन्स के लिये:

भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI), डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में पीएम-वाणी की भूमिका

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI) योजना भारत में सार्वजनिक वाई-फाई में क्रांति लाने के उद्देश्य से तैयार की गई है। इस योजना में भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को पूरी तरह से बदलने की क्षमता है।

  • यह योजना छोटे रिटेल डेटा कार्यालयों के माध्यम से सार्वजनिक वाई-फाई डेटा सेवा की सुविधा उपलब्ध कराती है, जो संभावित रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में न्यूनतम लागत के साथ ब्रॉडबैंड इंटरनेट प्रदान करती है।

पीएम-वाणी:

  • परिचय:
    • दिसंबर 2020 में दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा लॉन्च की गई पीएम-वाणी (PM-WANI), देश भर में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में एक मज़बूत डिजिटल संचार अवसंरचना स्थापित करने के लिये सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट तक पहुँच में वृद्धि के उद्देश्य से शुरू की गई एक प्रमुख योजना है।
    • यह खुदरा व थोक दुकानदार, चाय की दुकान अथवा किराना स्टोर के मालिकों को सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट सेवा प्रदाता बनकर ग्राहकों को इंटरनेट सेवा प्रदान करने में सक्षम बनाती है।
    • यह राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 (National Digital Communications Policy- NDCP) के तहत मज़बूत डिजिटल संचार अवसंरचना के निर्माण के लक्ष्य को आगे बढ़ाती है।
  • महत्त्व:
    • इस योजना को व्यवसाय संचालन में सुगमता प्रदान करने और स्थानीय दुकानों व छोटे प्रतिष्ठानों को वाई-फाई प्रदाता बनने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु मंज़ूरी दे दी गई है। दूरदराज़ के क्षेत्रों में सार्वजनिक वाई-फाई प्रदाताओं को किसी भी लाइसेंस, पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी और न ही उन्हें DoT को कोई शुल्क देने की आवश्यकता होगी।
  • पीएम-वाणी (PM-WANI) इकोसिस्टम:
    • PM-WANI में चार घटक शामिल हैं:
      • सार्वजनिक डेटा कार्यालय (PDO): PDO वह इकाई है जो वाई-फाई हॉटस्पॉट की स्थापना, रखरखाव और संचालन करती है तथा दूरसंचार सेवा प्रदाताओं या इंटरनेट सेवा प्रदाताओं से इंटरनेट बैंडविड्थ प्राप्त कर उपयोगकर्ताओं को अंतिम-मील कनेक्टिविटी (अंतिम उपयोगकर्ता तक पहुँच) प्रदान करती है।
      • पब्लिक डेटा ऑफिसर एग्रीगेटर (PDOA): PDOA वह इकाई है जो PDO को प्राधिकरण और लेखांकन जैसी एग्रीगेशन सर्विसेज़ प्रदान करती है तथा उन्हें अंतिम उपयोगकर्ताओं को सेवाएँ प्रदान करने में सुविधा प्रदान करती है।
      • एप प्रदाता(App Provider): यह वह इकाई है जो उपयोगकर्ताओं को पंजीकृत करने और इंटरनेट सेवा तक पहुँच के लिये PM-WANI के अनुरूप वाई-फाई हॉटस्पॉट खोजने और प्रदर्शित करने हेतु एक एप्लीकेशन विकसित करती है तथा संभावित उपयोगकर्ताओं को प्रमाणित भी करती है।
      • केंद्रीय रजिस्ट्री: यह वह इकाई है जो एप प्रदाताओं, PDOA और PDO का विवरण रखती है। वर्तमान में इसका रखरखाव सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (C-DoT) द्वारा किया जाता है।
    • स्थिति:
      • नवंबर 2022 तक PM-WANI केंद्रीय रजिस्ट्री के तहत 188 PDO एग्रीगेटर्स, 109 एप प्रदाताओं और 11,50,394 सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट के अस्तित्व की सूचना दी गई।
  • PM-WANI के लाभ:
    • यह ग्रामीण और दूरदराज़ के इलाकों में इंटरनेट पहुँच का विस्तार कर सकता है।
    • यह 5G जैसी मोबाइल प्रौद्योगिकियों की तुलना में इंटरनेट एक्सेस हेतु एक किफायती और सुविधाजनक विकल्प प्रदान कर सकता है, जिसके लिये उच्च निवेश तथा सदस्यता लागत की आवश्यकता होती है।
    • यह इंटरनेट बाज़ार में नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • PM-WANI की चुनौतियाँ:
    • यह वाई-फाई गुणवत्ता और उपयोगकर्ता अनुभव सुनिश्चित करने, बैंडविड्थ उपलब्धता, उपयोगकर्ता संख्या प्रबंधित करने, डिवाइस अनुकूलता एवं डेटा सुरक्षा तथा गोपनीयता बनाए रखने से संबंधित चुनौतियाँ पेश कर सकता है।
    • डेटा लीक, हैकिंग और मैलवेयर जैसे सुरक्षा खतरे उपयोगकर्ता और प्रदाता की गोपनीयता को खतरे में डाल सकते हैं।
    • PM-WANI की क्षमता और पहुँच के कारण मोबाइल टेलीकॉम कंपनियों को बाज़ार हिस्सेदारी एवं राजस्व हानि सहित अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • कम इंटरनेट मांग और उच्च परिचालन लागत वाले ग्रामीण तथा दूरदराज़ के क्षेत्रों में PM-WANI का विस्तार एवं रखरखाव चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

PM-WANI भारत की डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना के लिये गेम-चेंजर: 

  • PM-WANI भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह इंटरनेट की पहुँच को सार्वभौमिक बना सकता है और बिना किसी लाइसेंस, पंजीकरण या शुल्क के किसी को भी वाई-फाई प्रदाता एवं वाई-फाई उपयोगकर्ता बनने में सक्षम बनाकर डिजिटल विभाजन को कम कर सकता है।
  • वाई-फाई हॉटस्पॉट का एक वितरित और विकेंद्रीकृत नेटवर्क बनाने के लिये मौजूदा भौतिक एवं सामाजिक बुनियादी ढाँचे, जैसे- दुकानें, CSC, SDC, डाकघर, स्कूल, पंचायत आदि का लाभ उठाना तथा मौजूदा सुविधाओं का भी उपयोग करना। वाई-फाई सेवाओं के निर्बाध और सुरक्षित प्रमाणीकरण और भुगतान को सक्षम बनाने के लिये आधार, UPI, e-KYC, e-Sign  इत्यादि जैसे डिजिटल बुनियादी ढाँचे।
  • नागरिकों, समुदायों को सूचना, ज्ञान, अवसर व सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके सशक्त बनाना जो उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं तथा उन्हें डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं  समाज में भागीदारी और योगदान करने में भी सक्षम बनाते हैं।

डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI):

  • परिचय:
    • DPI डिजिटल पहचान, भुगतान बुनियादी ढाँचे और डेटा एक्सचेंज समाधान जैसे ब्लॉक या प्लेटफॉर्म को संदर्भित करता है जो देशों को अपने नागरिकों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने, उन्हें सशक्त बनाने एवं डिजिटल समावेशन को सक्षम कर जीवन में सुधार करने में सहायता करता है।
    •  DPI जन, धन और सूचना के प्रवाह में मध्यस्थता की भूमिका निभाती है। सबसे पहले, डिजिटल ID प्रणाली के माध्यम से लोगों की पहचान और उनका प्रमाणीकरण। दूसरा, कम समय में तेज़ भुगतान प्रणाली के माध्यम से धन का प्रवाह। तीसरा, DPI के लाभों को साकार करने और डेटा को नियंत्रित करने की वास्तविक क्षमता के साथ नागरिकों को सशक्त बनाने के लिये सहमति-आधारित डेटा-साझाकरण प्रणाली के माध्यम से व्यक्तिगत सूचना का प्रवाह।
      • ये तीन पहलू एक प्रभावी DPI पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की नींव बनाते हैं।
    • यह खुले, पारदर्शी और सहभागी शासन के तहत कार्य करता है।
    • भारत, इंडिया स्टैक के माध्यम से डेटा एम्पावरमेंट प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) पर निर्मित सभी तीन मूलभूत DPI- डिजिटल पहचान (आधार), रियल-टाइम फास्ट पेमेंट (UPI) और अकाउंट एग्रीगेटर विकसित करने वाला पहला देश बन गया है।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) का गठन:
    • DPI में तीन आधारभूत स्तर शामिल हैं:
      • बाज़ार: समावेशी उत्पाद डिज़ाइन करने वाले नवोन्वेषी और प्रतिस्पर्द्धी प्रतिभागी।
      • शासन: कानूनी और संस्थागत ढाँचे, सार्वजनिक कार्यक्रम और नीतियाँ।
      • प्रौद्योगिकी मानक: अंतर-संचालनीयता के लिये पहचान, भुगतान और डेटा साझाकरण मानक।
  • DPI दृष्टिकोण के लाभ:
    • कम विकास लागत और मॉड्यूलर अंतिम-उपयोगकर्ता समाधान।
    • विविध अनुप्रयोगों और कम प्रवेश बाधाओं का एक पारिस्थितिकी तंत्र।
    • अंतर्निहित स्केलेबिलिटी के साथ एक लोकतांत्रिक, गैर-एकाधिकार प्रणाली।
  • भारत में सफल DPI पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. आधार कार्ड का प्रयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता है।
  2. एक बार जारी करने के पश्चात् इसे निर्गत करने वाला प्राधिकरण आधार संख्या को निष्क्रिय या लुप्त नहीं कर सकता।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट 2023

प्रिलिम्स के लिये:

स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट 2023, सामाजिक मुद्दे, कोविड-19, बेरोज़गारी, भारतीय कार्यबल की स्थिति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति

मेन्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी की स्थिति और समस्याएँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट ने भारतीय कार्यबल की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए "स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

  • इस रिपोर्ट में बेरोज़गारी दर, महिलाओं की भागीदारी, अंतर-पीढ़ीगत बदलाव और जाति के आधार पर कार्यबल पैटर्न को शामिल किया गया है।
  • इस रिपोर्ट में विभिन्न डेटा स्रोतों का उपयोग किया गया है, जैसे- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किये गए सर्वेक्षण, रोज़गार-बेरोज़गारी सर्वेक्षण और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण तथा इंडिया वर्किंग सर्वे

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • संरचनात्मक स्तर पर बड़े बदलाव: 
    • 1980 के दशक से चली आ रही स्थिरता के बाद वर्ष 2004 से नियमित या मासिक आधार पर वेतन प्राप्त करने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। पुरुषों के मामले में यह 18% से बढ़कर 25% और महिलाओं के संदर्भ में 10% से बढ़कर 25% हो गई है।
    • वर्ष 2004 और 2017 के बीच सालाना लगभग 3 मिलियन नियमित वेतन वाले रोज़गार सृजित हुए। यह संख्या वर्ष 2017 और 2019 के बीच बढ़कर 5 मिलियन प्रतिवर्ष हो गई।
    • वर्ष 2019 के बाद से विकास में मंदी और महामारी के कारण नियमित वेतन वाली नौकरियों के सृजन की गति में कमी आई है।
  • लिंग आधारित आय असमानताओं में कमी: 
    • वर्ष 2004 में वेतनभोगी महिला कर्मचारी की आय पुरुषों की कुल आय का मात्र 70% थी।
    • वर्ष 2017 तक यह अंतर कम हो गया और महिलाओं की आय पुरुषों की कुल आय की तुलना में 76% हो गई थी। तब से यह अंतर वर्ष 2021-22 तक स्थिर बना हुआ है।
  • बेरोज़गारी दर और शिक्षा:
    • कुल बेरोज़गारी दर वर्ष 2017-18 के 8.7% से घटकर वर्ष 2021-22 में 6.6% हो गई।
    • हालाँकि 25 वर्ष से कम आयु के स्नातकों की बेरोज़गारी दर 42.3% थी। 
    • इसके विपरीत उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले व्यक्तियों के मामले में बेरोज़गारी दर 21.4% थी।
  • महिला कार्यबल भागीदारी:
    • कोविड-19 महामारी के बाद 60% महिलाएँ स्व-रोज़गार में थीं, जबकि पहले यह आँकड़ा 50% था।
    • हालाँकि कार्यबल की भागीदारी में इस वृद्धि के साथ-साथ स्व-रोज़गार आय में गिरावट आई, जो महामारी के संकटपूर्ण प्रभाव को दर्शाता है।
  • अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता:
    • अंतर-पीढ़ीगत ऊर्ध्वगामी गतिशीलता ने ऊपर की ओर रुझान दिखाया है, जो सामाजिक-आर्थिक प्रगति का संकेत देता है।
    • हालाँकि सामान्य जातियों की तुलना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के श्रमिकों के संदर्भ में यह प्रवृत्ति कमज़ोर रही।
      • वर्ष 2018 में आकस्मिक वेतन वाले कार्य में लगे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के 75.6% पुरुषों के बेटे भी आकस्मिक वेतन वाले कार्य में शामिल थे। इसकी तुलना में वर्ष 2004 में यह आँकड़ा 86.5% था, जो दर्शाता है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित आकस्मिक वेतन वाले श्रमिकों के बेटेअन्य प्रकार के रोज़गार, विशेष रूप से अनौपचारिक नियमित वेतन वाले कार्य में शामिल हो गए हैं। 
  • जाति आधारित कार्यबल भागीदारी:
    • पिछले कुछ वर्षों में जाति के अनुसार कार्यबल भागीदारी में बदलाव आया है।
    • आकस्मिक वेतन वाले कार्य में अनुसूचित जाति के श्रमिकों की हिस्सेदारी काफी कम हो गई है, लेकिन सामान्य जाति वर्ग में यह कमी अधिक स्पष्ट है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2021 में सामान्य जाति के 13% श्रमिकों की तुलना में अनुसूचित जाति के 40% श्रमिक आकस्मिक रोज़गार में शामिल थे।
      • इसके अलावा सामान्य जाति के 32% श्रमिकों के विपरीत लगभग अनुसूचित जाति के 22% श्रमिक नियमित वेतनभोगी कर्मचारी थे।
  • आर्थिक विकास बनाम रोज़गार सृजन:
    • आर्थिक विकास आनुपातिक रूप से रोज़गार सृजन में परिवर्तित नहीं हुआ है, GDP (सकल घरेलू उत्पाद) में वृद्धि के साथ रोज़गार उत्पन्न करने की क्षमता में गिरावट आ रही है।
    • कृषि से अन्य क्षेत्रों में संक्रमण ने वेतनभोगी रोज़गार में बदलाव सुनिश्चित नहीं किया है।
  • अनौपचारिक वैतनिक कार्य: 
    • वैतनिक रोज़गार की आकांक्षा के बावजूद अधिकांश वैतनिक कार्य अनौपचारिक हैं, जिनमें अनुबंधों और लाभों का अभाव देखा गया है। उचित लाभ एवं अच्छी वेतन वाली नौकरियाँ कम प्रमुख होती जा रही हैं।
  • स्नातक बेरोज़गारी को प्रभावित करने वाले कारक:
    • स्नातक बेरोज़गारी को उच्च आकांक्षाओं और वेतन मांगों के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है जिन्हें अर्थव्यवस्था पूरा नहीं कर सकती है। इसके अतिरिक्त संपन्न घरों के स्नातकों के बेरोज़गार रहने का कारण उनकी विलासिता हो सकती है।  

बेरोज़गारी पर नियंत्रण के लिये सरकार की पहल: 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ होता है: (2013) 

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)


मेन्स:

Q. "जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज कर देते हैं।" क्या हम ऐसा करने में कोई चूक रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएंगे? स्पष्ट कीजिये। (2014)


सामाजिक न्याय

उच्च रक्तचाप पर वैश्विक रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), उच्च रक्तचाप, भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण पहल (India Hypertension Control Initiative- IHCI)

मेन्स के लिये:

उच्च रक्तचाप और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 78वें सत्र के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने "उच्च रक्तचाप पर वैश्विक रिपोर्ट: द रेस अगेंस्ट अ साइलेंट किलर" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

  • यह उच्च रक्तचाप के विश्वव्यापी प्रभावों पर WHO की पहली रिपोर्ट है, जिसे सामान्यतः हाइपरटेंशन कहा जाता है।

रिपोर्ट के मुख्य तथ्य:

  • एक वैश्विक महामारी:
    • विश्व में तीन में से एक वयस्क उच्च रक्तचाप से पीड़ित है।
    • वर्ष 1990 और वर्ष 2019 के बीच उच्च रक्तचाप के मामलों की संख्या 650 मिलियन से दोगुनी होकर 1.3 बिलियन हो गई है।
    • उच्च रक्तचाप विश्व में 30-79 आयु वर्ग के लगभग 33% वयस्कों को प्रभावित करता है।
    • उच्च रक्तचाप से पीड़ित प्रत्येक पाँच में से लगभग चार व्यक्तियों को पर्याप्त इलाज नहीं मिलता है।
  • भारत का उच्च रक्तचाप बोझ:
    • अकेले भारत में 30-79 वर्ष की आयु के अनुमानित 188.3 मिलियन वयस्क उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे हैं।
    • भारत में उच्च रक्तचाप की व्यापकता वैश्विक औसत 31% से थोड़ी कम है।
    • 50% नियंत्रण दर तक पहुँचने के लिये भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उच्च रक्तचाप से पीड़ित अतिरिक्त 67 मिलियन व्यक्तियों को प्रभावी उपचार मिले।
      • यदि प्रगति परिदृश्य हासिल कर लिया गया, तो वर्ष 2040 तक उच्च रक्तचाप के कारण होने वाली 4.6 मिलियन मौतों को रोका जा सकेगा।
  • अपर्याप्त उपचार:
    • उच्च रक्तचाप से पीड़ित लगभग 80% व्यक्तियों को पर्याप्त उपचार नहीं मिल पाता है।
      • प्रभावी उच्च रक्तचाप उपचार में वर्ष 2050 तक 76 मिलियन मौतों, 120 मिलियन स्ट्रोक, 79 मिलियन दिल के दौरे और 17 मिलियन दिल की विफलता के मामलों को रोकने की क्षमता है।
  • उपचार कवरेज में असमानताएँ:
    • उच्च आय वाले देशों में उच्च रक्तचाप के लिये उपचार कवरेज अधिक अनुकूल कवरेज दर वाले देशों के बीच महत्त्वपूर्ण असमानताओं को दर्शाता है।
      • WHO के तहत अमेरिकी क्षेत्र 60% उपचार कवरेज दर के साथ सबसे आगे है, जबकि अफ्रीकी क्षेत्र 27% के साथ उससे पीछे है।
    • उच्च रक्तचाप से पीड़ित तीन-चौथाई से अधिक वयस्क निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
  • समय पर उपचार की आवश्यकता:
    • अनियंत्रित उच्च रक्तचाप वाले लगभग 30% व्यक्तियों का रक्तचाप का  माप, सीमा से ऊपर है, जिसके लिये तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है।
      • वैश्विक स्तर पर उच्च रक्तचाप की दवा लेने वाले 30-70 वर्ष की आयु के वयस्कों का प्रतिशत वर्ष1990 में 22% से दोगुना होकर वर्ष 2019 में 42% हो गया है।
    • इसी अवधि के दौरान प्रभावी उपचार कवरेज चौगुना होकर 21% तक पहुँच गया है।
  • कार्रवाई के लिये WHO का आह्वान:
    • यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य लाभ पैकेज के हिस्से के रूप में उच्च रक्तचाप की रोकथाम, शीघ्र पता लगाने और प्रभावी प्रबंधन को प्राथमिकता देने का आह्वान करता है।
  • सिफारिशें:
    • उन उच्च रक्तचाप नियंत्रण कार्यक्रमों को मज़बूत करने की आवश्यकता है जिन्हें कम प्राथमिकता दी जाती है और बहुत कम वित्त प्राप्त होता है।
    • उच्च रक्तचाप नियंत्रण सुनिश्चित करना सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज़ की दिशा में हर देश का एक अभिन्न अंग होना चाहिये।

रक्तचाप:

  • परिचय:
    • उच्च रक्तचाप तब होता है जब रक्त वाहिकाओं में दबाव बहुत अधिक (140/90 mmHg या अधिक) होता है। यह सामान्य है लेकिन अगर उपचार न किया जाए तो यह गंभीर हो सकता है।
      • रक्तचाप को दो संख्याओं के रूप में लिखा जाता है:
        • पहली (सिस्टोलिक) संख्या हृदय के संकुचन या स्पंदन पर रक्त वाहिकाओं में दबाव को दर्शाती है।
        • दूसरी (डायस्टोलिक) संख्या वाहिकाओं में दबाव को दर्शाती है, जब धड़कनों के बीच हृदय आराम करता है। 
    • उच्च रक्तचाप को लेकर जागरूकता को बढ़ावा देने और लोगों को इस मूक किंतु जानलेवा बीमारी को रोकने एवं नियंत्रित करने के लिये प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रत्येक वर्ष 17 मई को विश्व उच्च रक्तचाप दिवस मनाया जाता है।
  • जोखिम:
    • उच्च नमक वाले आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी और अत्यधिक शराब का सेवन उच्च रक्तचाप के सबसे प्रमुख योगदानकर्ता हैं, माना जाता है कि आनुवंशिकी भी उच्च रक्तचाप में भूमिका निभाती है।
  • लक्षण: 
    • उच्च रक्तचाप से ग्रसित अधिकांश लोगों में कोई लक्षण महसूस नहीं किया जाता है। बहुत उच्च रक्तचाप के कारण सिरदर्द, धुँधली दृष्टि, सीने में दर्द और अन्य लक्षण हो सकते हैं।
  • अनियंत्रित उच्च रक्तचाप की जटिलताएँ:
    • उच्च रक्तचाप के कारण हृदय से संबद्ध गंभीर समस्याएँ, जिनमें सीने में दर्द, दिल का दौरा, हृदयाघात और  हृदय की अनियमित धड़कन शामिल हैं, साथ ही मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह भी प्रभावित होता है जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
  • उपचार:
    • जीवनशैली में बदलाव जैसे- कम नमक वाला आहार अपनाना, वज़न कम करना, शारीरिक गतिविधि के साथ औषधियों का सेवन करना चाहिये और तंबाकू आदि मादक पदार्थों का सेवन त्यागना चाहिये।
  • विभिन्न पहल:
    • वैश्विक:
      • वर्ष 2025 तक उच्च रक्तचाप के प्रसार को 25% तक कम करने का वैश्विक लक्ष्य प्राप्त करने के लिये WHO और यूनाइटेड स्टेट्स सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने वर्ष 2016 में ग्लोबल हार्ट्स इनिशिएटिव लॉन्च किया।
      • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 3 (SDG 3) का उद्देश्य सभी के लिये स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और कल्याण को बढ़ावा देना है।
    • भारत:

सामाजिक न्याय

स्कूलों में बच्चों के नामांकन में तेज़ी लाना

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र का शिक्षा परिवर्तन शिखर सम्मेलन, SDG-4, प्राथमिक शिक्षा, उच्च माध्यमिक शिक्षा

मेन्स के लिये:

वर्ष 2030 तक के लिये निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु बच्चों के नामांकन में सुधार की आवश्यकता

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनेस्को द्वारा जारी 'SDG 4 मिड-टर्म प्रोग्रेस रिव्यू' शीर्षक के साथ वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट, 2023 जारी की गई है। यह रिपोर्ट अविकसित और विकासशील देशों में प्राथमिक स्तर पर बच्चों के नामांकन की एक गंभीर तस्वीर पेश करती है।

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में स्कूल में गैर-नामांकित बच्चों की संख्या 250 मिलियन है, यह  वर्ष 2021 की तुलना में छह मिलियन अधिक है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक प्रत्येक वर्ष 1.4 मिलियन बच्चों को प्री-स्कूल में नामांकित तथा प्राथमिक शिक्षा पूर्णता दर को लगभग तीन गुना किये जाने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • परिचय: 
    • 2023 वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट वर्ष 2015 के बाद से सभी SDG 4 लक्ष्यों द्वारा की गई प्रगति को दर्शाती है। यह काफी हद तक यूनेस्को इंस्टीट्यूट फॉर स्टैटिस्टिक्स के आँकड़ों पर आधारित है, जो 12 वैश्विक संकेतकों में से 10 की देखरेख करता है।
  • रिपोर्ट में वर्ष 2015-2021 के दौरान की स्थिति:
    • प्रारंभिक बचपन: संगठित शिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने वाले आधिकारिक प्राथमिक प्रवेश आयु से एक वर्ष कम उम्र के बच्चों का प्रतिशत 75% पर स्थिर बना हुआ है।
    • उच्च शिक्षा: तृतीयक शिक्षा सकल नामांकन अनुपात 37% से बढ़कर 41% हो गया, महिलाओं (44%) में पुरुषों (38%) की तुलना में छह प्रतिशत अंक का अंतर है।
    • वयस्क शिक्षा: 57 मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों में औपचारिक या गैर-औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण में वयस्कों की भागीदारी दर में 10% की गिरावट आई है, जो ज़्यादातर कोविड-19 के परिणामस्वरूप हुआ है।
    • लैंगिक तुलना: प्रति 100 युवा पुरुषों पर माध्यमिक विद्यालय स्तर तक की शिक्षा पूरा करने वाली युवतियों की संख्या वैश्विक स्तर पर 102 से बढ़कर 105 हो गई है और उप-सहारा अफ्रीका में 84 से बढ़कर 88 हो गई है, जो वह क्षेत्र है जहाँ युवतियों को सबसे अधिक उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।
    • स्कूल की अवसंरचना: प्राथमिक शिक्षा में बिज़ली की सुविधा वाले स्कूलों की हिस्सेदारी 66% से बढ़कर 76% और उच्च माध्यमिक शिक्षा में 88% से बढ़कर 90% हो गई।
    • शिक्षक: प्राथमिक शिक्षा में प्रशिक्षित शिक्षकों का प्रतिशत लगभग 86% पर स्थिर बना हुआ है। उप-सहारा अफ्रीका में प्रशिक्षित पूर्व-प्राथमिक शिक्षकों का प्रतिशत 53% से बढ़कर 60% हो गया।
    • पहुँच में असमानता: कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन सीखने की ओर तेज़ी से बदलाव के कारण विश्व में कम-से-कम आधे अरब छात्र वंचित रह गए, जिससे सबसे गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्रभावित हुए।
    • शिक्षा पूर्णता दर:
      •  उप-सहारा देश:
        • प्राथमिक शिक्षा में उप-सहारा अफ्रीका वैश्विक औसत से 20% से अधिक (64%) नीचे रहा।
        • वहीं उच्च माध्यमिक शिक्षा में यह वैश्विक औसत (27%) से नीचे रहा।
      • वियतनाम:
        • प्राथमिक विद्यालय के अंत में सीखने की प्रगति को मापने वाले 31 निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में वियतनाम एकमात्र ऐसा देश है जहाँ अधिकांश बच्चों ने पढ़ने एवं गणित दोनों में न्यूनतम दक्षता हासिल की है।

शिक्षा के लिये सतत् विकास लक्ष्य: 

  • परिचय
    • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडे के हिस्से के रूप में वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित 17 वैश्विक लक्ष्यों का एक समूह है।
    • ये लक्ष्य सभी को एक स्थायी भविष्य प्राप्त करने हेतु सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करते हैं।
  • SDG और शिक्षा:
    • SDG 4 में शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हुए 10 लक्ष्य हैं।
    • सात लक्ष्य ऐसे हैं जो अपेक्षित परिणाम हैं और तीन लक्ष्य ऐसे हैं जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन हैं।
    • वर्ष 2030 तक यह सुनिश्चित करना कि सभी लड़कियाँ और लड़के निःशुल्क, न्यायसंगत एवं गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा पूरी करें ताकि सीखने के प्रासंगिक एवं प्रभावी परिणाम प्राप्त हों।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. धारणीय विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) पहली बार वर्ष 1972 में एक वैश्विक विचार मंडल (थिंक टैंक) ने, जिसे 'क्लब ऑफ रोम' कहा जाता था, प्रस्तावित किया था।
  2. धारणीय विकास लक्ष्य वर्ष 2030 तक प्राप्त किये जाने हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

  • वर्ष 2015 में अपनाया गया SDG जनवरी 2016 में प्रभावी हुआ। इसे 2030 तक हासिल किया जाना है। अतः कथन 2 सही है।
  • SDG की उत्पति वर्ष 2012 में रियो डी जनेरियो में सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हुई थी। क्लब ऑफ रोम ने पहली बार वर्ष 1968 में अधिक व्यवस्थित तरीके से संसाधनों के संरक्षण की वकालत की थी। अतः कथन 1 सही नहीं है।

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