स्थानीय फिनटेक अभिकर्त्ताओं को प्रोत्साहन
प्रिलिम्स के लिये:फिनटेक सेक्टर, साइबर सुरक्षा, संसद समितियाँ, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड मेन्स के लिये:भारत का डिजिटल भुगतान इकोसिस्टम, पूंजी बाज़ार |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
संसद में पेश की गई हालिया रिपोर्ट में, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने भारत के डिजिटल भुगतान इकोसिस्टम में विदेशी स्वामित्व वाले फिनटेक (Fintech) ऐप्स के प्रभुत्व को लेकर चिंता व्यक्त की है।
- फिनटेक का आशय वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म के उपयोग से है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- प्रभावी विनियमन पर ज़ोर:
- भारत में भुगतान करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग बढ़ रहा है इसलिये समिति ने रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया कि डिजिटल भुगतान ऐप्स को प्रभावी ढंग से विनियमित किया जाना चाहिये।
- इस रिपोर्ट में के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) जैसे नियामक निकायों को विदेशी ऐप्स की तुलना में स्थानीय ऐप्स को विनियमित करना अधिक 'व्यवहार्य' होगा क्योंकि विदेशी ऐप्स से संबंधित अधिकारिता में भिन्नता है।
- विदेशी स्वामित्व वाली फिनटेक कंपनियों का प्रभुत्व:
- भारतीय फिनटेक क्षेत्र में विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व वाली फिनटेक कंपनियों जैसे फोनपे (PhonePe) और गूगल पे (Google Pay) की बाज़ार हिस्सेदारी अत्यधिक है।
- बाज़ार हिस्सेदारी: अक्तूबर-नवंबर 2023 तक के आँकड़ों के अनुसार PhonePe की हिस्सेदारी सबसे अधिक (46.91%) है तथा उसके बाद Google Pay (36.39%) और BHIM UPI (0.22%) का स्थान आता है।
- भारतीय फिनटेक क्षेत्र में विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व वाली फिनटेक कंपनियों जैसे फोनपे (PhonePe) और गूगल पे (Google Pay) की बाज़ार हिस्सेदारी अत्यधिक है।
- NPCI द्वारा लेन-देन की उच्चतम सीमा का निर्धारण (वॉल्यूम कैप):
- समिति की अनुशंसाएँ काफी हद तक NPCI द्वारा नवंबर 2020 में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) का उपयोग करके लेन-देन की उच्चतम सीमा (वॉल्यूम कैप) 30% निर्धारित करने के अनुरूप हैं।
- NPCI द्वारा निर्धारित यह सीमा PhonePe और Amazon Pay जैसे तृतीय-पक्ष ऐप्स को तीन माह में UPI की कुल लेन-देन के 30% से अधिक की हिस्सेदारी होने से प्रतिबंधित करती है।
- निर्धारित उच्चतम सीमा से अधिक लेन-देन प्रबंधित करने वाले ऐप्स को दो वर्ष की चरणबद्ध अनुपालन अवधि (दिसंबर 2022- दिसंबर 2024) दी गई थी।
- इस उच्चतम सीमा (वॉल्यूम कैप) का उद्देश्य UPI भुगतान में वृद्धि के दौरान होने वाले संभावित जोखिमों को कम करना और UPI भुगतान इकोसिस्टम की सुरक्षा करना है।
- NCPI ने UPI विकास को बढ़ावा देने और बाज़ार संतुलन में स्थिरता बनाए रखने के लिये बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों द्वारा उपभोक्ता पहुँच में विस्तार करने पर ज़ोर दिया।
- समिति की अनुशंसाएँ काफी हद तक NPCI द्वारा नवंबर 2020 में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) का उपयोग करके लेन-देन की उच्चतम सीमा (वॉल्यूम कैप) 30% निर्धारित करने के अनुरूप हैं।
- धोखाधड़ी संबंधी चिंताएँ:
- समिति ने चीनी घोटालेबाज़ों द्वारा अबू धाबी की Pyppl ऐप का दुरुपयोग करने जैसे मामलों को आधार बनाते हुए धन शोधन के लिये फिनटेक प्लेटफाॅर्मों के दुरुपयोग से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश डाला।
- पिछले पाँच वर्षों में भुगतान की मात्रा में वृद्धि के बावजूद धोखाधड़ी से बिक्री (F2S) अनुपात काफी हद तक 0.0015% के आसपास बना हुआ है।
- UPI धोखाधड़ी से प्रभावित उपयोगकर्त्ताओं का प्रतिशत 0.0189% था।
- F2S एक मात्रा आधारित प्रतिशत है जो किसी व्यवसाय में उनकी मासिक बिक्री की मात्रा की तुलना में किसी दिये गए महीने में की गई धोखाधड़ी वाले लेन-देन की संख्या को मापता है।
फिनटेक क्या है?
- परिचय:
- फिनटेक, एक वित्तीय प्रौद्योगिकी, भुगतान, उधार, बीमा, धन प्रबंधन तथा अन्य वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने अथवा उनको अधिक सुविधाजनक बनाने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म, सॉफ्टवेयर एवं सेवाओं का उपयोग है।
- महत्त्व:
- फिनटेक, भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सहायता कर सकता है:
- भारत में, विशेष रूप से ग्रामीण एवं दूरदराज़ के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बैंक रहित तथा कम बैंकिंग सुविधा वाली आबादी तक वित्तीय सेवाओं की पहुँच के साथ समावेशन का विस्तार करना है ।
- पारंपरिक तरीकों में शामिल लागत, समय एवं घर्षण को कम करके वित्तीय लेन-देन की दक्षता तथा सुविधा को बढ़ाना।
- उद्यमियों, स्टार्टअप एवं उपभोक्ताओं के लिये नए अवसर एवं बाज़ार सृजित करके भारतीय अर्थव्यवस्था के नवाचार एवं विकास को बढ़ावा देना।
- फिनटेक, भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सहायता कर सकता है:
- भारत के फिनटेक उद्योग के भाग एवं कार्यप्रणाली:
- फिनटेक के अंतर्गत प्रमुख क्षेत्रों में भुगतान, डिजिटल ऋण, इंश्योरटेक, वेल्थटेक शामिल हैं।
- डिजिटल भुगतान, जो ऑनलाइन या मोबाइल प्लेटफॉर्म, जैसे कि QR, वॉलेट, कार्ड एवं QR कोड के माध्यम से धन अथवा मूल्य के हस्तांतरण को सक्षम बनाता है।
- डिजिटल ऋण, जो वैकल्पिक डेटा स्रोतों एवं एल्गोरिदम का उपयोग करके ऑनलाइन अथवा मोबाइल प्लेटफॉर्म के माध्यम से व्यक्तियों अथवा व्यवसायों को ऋण प्रदान करता है।
- इंश्योरटेक, जो बीमा उत्पादों के साथ-साथ सेवाओं के वितरण, एवं प्रबंधन में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी लागू करता है।
- वेल्थटेक, जो निवेश, धन प्रबंधन एवं वित्तीय सलाहकरी सेवाओं के लिये ऑनलाइन अथवा मोबाइल मंच प्रदान करता है।
- भारत, दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ते फिनटेक बाज़ारों में से एक है। यहाँ लगभग 7,000 से अधिक फिनटेक स्टार्ट-अप है।
- भारतीय फिनटेक उद्योग का बाज़ार आकार वर्ष 2021 में 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा और साथ ही वर्ष 2025 तक इसके लगभग 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
- फिनटेक के अंतर्गत प्रमुख क्षेत्रों में भुगतान, डिजिटल ऋण, इंश्योरटेक, वेल्थटेक शामिल हैं।
- भारत में फिनटेक के लिये प्रमुख नियामक संस्थाएँ:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI):
- RBI, बैंकों, NBFC, PSP तथा क्रेडिट ब्यूरो को विनियमित करता है।
- भारत के मुद्रा बाज़ार तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- डिजिटल भुगतान जैसे फिनटेक क्षेत्रों की निगरानी करता है,
- डिजिटल ऋण तथा डिजिटल अथवा नव-बैंक(नियोबैंक)।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI):
- प्रतिभूति बाज़ारों एवं स्टॉकब्रोकरों तथा निवेश सलाहकारों जैसे मध्यस्थों को विनियमित करता है।
- प्रतिभूति, बाज़ारों और स्टॉकब्रोकरों तथा निवेश सलाहकारों जैसे मध्यस्थों को नियंत्रित करता है।
- स्टॉकब्रोकिंग और निवेश सलाहकार जैसी सेवाएँ इसके अधिकार क्षेत्र में आती हैं।
- भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI):
- बीमाकर्त्ताओं, कॉर्पोरेट एजेंटों, बीमा के लिये वेब एग्रीगेटर्स और तीसरे पक्ष के एजेंटों को विनियमित करता है।
- बीमा क्षेत्र में अनुपालन और अखंडता सुनिश्चित करता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI):
स्थानीय फिनटेक अभिकर्त्ताओं के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- अधिक प्रतिस्पर्द्धा:
- भारतीय फिनटेक क्षेत्र अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी है, जिसमें कई स्थानीय और विदेशी खिलाड़ी बाज़ार हिस्सेदारी की तलाश में हैं। यह तीव्र प्रतिस्पर्द्धा स्थानीय अभिकर्त्ताओं के लिये अलग दिखना और एक महत्त्वपूर्ण उपयोगकर्त्ता आधार हासिल करना कठिन बना सकती है।
- स्थानीय अभिकर्त्ताओं को अक्सर विशाल संसाधनों और अनुभव वाले स्थापित वैश्विक फिनटेक दिग्गजों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है। ये दिग्गज ग्राहकों को आकर्षित करने तथा प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल करने के लिये अपनी ब्रांड पहचान एवं तकनीकी प्रगति का लाभ उठा सकते हैं।
- भारतीय फिनटेक क्षेत्र अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी है, जिसमें कई स्थानीय और विदेशी खिलाड़ी बाज़ार हिस्सेदारी की तलाश में हैं। यह तीव्र प्रतिस्पर्द्धा स्थानीय अभिकर्त्ताओं के लिये अलग दिखना और एक महत्त्वपूर्ण उपयोगकर्त्ता आधार हासिल करना कठिन बना सकती है।
- नियामक बाधाएँ:
- फिनटेक के लिये भारतीय नियामक परिदृश्य लगातार विकसित हो रहा है, जिससे स्थानीय खिलाड़ियों हेतु अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- इन जटिलताओं से निपटना, विशेष रूप से छोटे स्टार्टअप के लिये, समय लेने वाला और संसाधन-गहन हो सकता है।
- डेटा गोपनीयता और सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताएँ स्थानीय अभिकर्त्ताओं के लिये चुनौतियाँ पैदा करती हैं। उन्हें उपयोगकर्त्ता का विश्वास हासिल करने हेतु मज़बूत डेटा सुरक्षा उपायों में निवेश करने और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण जैसे डेटा गोपनीयता नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- फिनटेक के लिये भारतीय नियामक परिदृश्य लगातार विकसित हो रहा है, जिससे स्थानीय खिलाड़ियों हेतु अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- वित्तीय बाधाएँ:
- अपने विदेशी समकक्षों की तुलना में, स्थानीय अभिकर्त्ताओं के पास अक्सर फंडिंग तक सीमित पहुँच होती है, जिससे नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करने, अपनी पहुँच का विस्तार करने और प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्द्धा करने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
- जबकि UPI जैसे त्वरित भुगतान ने भारतीय बाज़ार में क्रांति ला दी है, उनकी न्यूनतम लेन-देन शुल्क स्थानीय अभिकर्त्ताओं के लिये राजस्व सृजन को सीमित कर सकती है, खासकर उन लोगों हेतु जो पूरी तरह से इस सेगमेंट पर निर्भर हैं।
- मैकिन्से (McKinsey's) की रिपोर्ट (2023) के अनुसार भारत में तत्काल भुगतान भविष्य की राजस्व वृद्धि में 10% से कम योगदान दे सकता है।
- यह अनुमान UPI के माध्यम से किये गए लेन-देन के लिये लगाए गए शुल्क की अनुपस्थिति के कारण है, जबकि UPI न्यूनतम लेन-देन शुल्क लगाता है, फिर भी यह शुल्क-कम नकद लेन-देन की तुलना में अधिक राजस्व उत्पन्न करता है।
- महंगे नकदी प्रबंधन की तुलना में कागज़ रहित लेन-देन डिजिटल वाणिज्य की सुरक्षा और पहुँच को बढ़ाता है।
- यह अनुमान UPI के माध्यम से किये गए लेन-देन के लिये लगाए गए शुल्क की अनुपस्थिति के कारण है, जबकि UPI न्यूनतम लेन-देन शुल्क लगाता है, फिर भी यह शुल्क-कम नकद लेन-देन की तुलना में अधिक राजस्व उत्पन्न करता है।
- अपने विदेशी समकक्षों की तुलना में, स्थानीय अभिकर्त्ताओं के पास अक्सर फंडिंग तक सीमित पहुँच होती है, जिससे नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करने, अपनी पहुँच का विस्तार करने और प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्द्धा करने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
- तकनीकी सीमाएँ:
- वैश्विक फिनटेक परिदृश्य में तेज़ी से तकनीकी प्रगति स्थानीय अभिकर्त्ताओं के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकती है। प्रतिस्पर्द्धी बने रहने और नवीन समाधान पेश करने हेतु उन्हें अनुसंधान तथा विकास में लगातार निवेश करने की आवश्यकता है।
- उन्नत तकनीकी बुनियादी ढाँचे तक पहुँच की कमी, जैसे कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी, स्थानीय फिनटेक सॉल्यूशन की पहुँच और समावेशिता में बाधा बन सकती है।
- वैश्विक फिनटेक परिदृश्य में तेज़ी से तकनीकी प्रगति स्थानीय अभिकर्त्ताओं के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकती है। प्रतिस्पर्द्धी बने रहने और नवीन समाधान पेश करने हेतु उन्हें अनुसंधान तथा विकास में लगातार निवेश करने की आवश्यकता है।
- उपयोगकर्त्ता का विश्वास और व्यवहार:
- डिजिटल साक्षरता, डेटा सुरक्षा और संभावित धोखाधड़ी के बारे में चिंताओं के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोगकर्त्ताओं में विश्वास स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। स्थानीय अभिकर्त्ता को उपयोगकर्त्ताओं के लिये शिक्षा में निवेश करने और पारदर्शी प्रथाओं के माध्यम से विश्वास बनाने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- स्थानीय और विदेशी फिनटेक अभिकर्त्ता:
- भुगतान, ऋण, धन प्रबंधन और बीमा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सेवा देने के लिये स्थानीय तथा विदेशी फिनटेक अभिकर्त्ताओं का संतुलित संयोजन आवश्यक है।
- इष्टतम संयोजन/मिश्रण को भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र के हितों और ज़रूरतों को संतुलित करना चाहिये, जिसमें उपयोगकर्त्ता, प्रदाता, नियामक तथा समाज शामिल हैं।
- भुगतान, ऋण, धन प्रबंधन और बीमा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सेवा देने के लिये स्थानीय तथा विदेशी फिनटेक अभिकर्त्ताओं का संतुलित संयोजन आवश्यक है।
- उन्नत नियामक सहभागिता:
- स्थानीय फिनटेक अभिकर्त्ताओं को बढ़ती अनुपालन आवश्यकताओं को समझने एवं नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिये नियामक निकायों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।
- नियामकों के साथ सहयोग जवाबदेही और अनुपालन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने एवं नवाचार तथा विकास के लिये अनुकूल नियामक वातावरण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
- उपयोगकर्त्ता का अनुभव:
- उपयोगकर्त्ता के अनुकूल इंटरफेस और कार्यक्षमताएँ डिज़ाइन की जानी चाहिये जो सुलभ हों तथा डिजिटल साक्षरता के विभिन्न स्तरों को पूरा करें, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- फंडिंग तक पहुँच:
- स्थानीय अभिकर्त्ताओं के लिये उद्यम पूंजी निवेश या सरकारी अनुदान जैसे फंडिंग तक आसान पहुँच की सुविधा के लिये पहल का पता लगाने की आवश्यकता है, जो उन्हें प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद कर सकता है।
- ग्राहक का भरोसा:
- विश्वास कायम करने के लिये शिक्षा, पारदर्शी संचार और मज़बूत सुरक्षा उपायों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नभारत के संदर्भ में, निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपरोक्त में से किसे भारत में "वित्तीय समावेशन" प्राप्त करने के लिये उठाया गया कदम माना जा सकता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण चिंता का विषय
प्रिलिम्स के लिये:नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), लोक लेखा समिति (PAC), विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 मेन्स के लिये:प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण तथा इसका पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव। |
स्रोत:टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक संसदीय पैनल ने नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए देश में प्लास्टिक कचरे के अप्रभावी प्रबंधन पर चिंता जताई।
- पैनल ने इस मुद्दे को संबोधित करने के लिये अपने शिथिल दृष्टिकोण के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की आलोचना की तथा साथ ही पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से समन्वय में सुधार करने एवं प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये ठोस कदम उठाने का आग्रह किया।
PAC रिपोर्ट का निष्कर्ष क्या है?
- मंत्रालय के प्रयासों की सराहना: लोक लेखा समिति (PAC) ने मई 2021 से प्लास्टिक कचरे पर मंत्रालय के प्रयासों को स्वीकार करने के साथ-साथ लोगों को प्लास्टिक प्रदूषण के खतरों से बचाने के लिये और अधिक प्रभावी उपायों की आवश्यकता पर बल दिया।
- प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि: प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन वर्ष 2015-16 में 15.9 लाख टन प्रति वर्ष (TPA) से काफी हद तक बढ़कर वर्ष 2020-21 में 41.2 लाख TPA हो गया है।
- अप्रयुक्त प्लास्टिक अपशिष्ट तथा पर्यावरणीय प्रभाव: वर्ष 2019-20 के आँकड़ों से पता चलता है कि देश में कुल प्लास्टिक कचरे का 50% (34.7 लाख TPA) अप्रयुक्त रह गया, जिससे यह वायु, जल एवं मृदा को प्रदूषित करता है और अंततः मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
- डेटा अंतराल एवं विसंगतियाँ: PAC ने CAG के वर्ष 2022 ऑडिट निष्कर्षों से यह देखते हुए एक बड़ा डेटा अंतराल स्पष्ट किया कि कई राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) ने वर्ष 2016-18 की अवधि के लिये प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन पर डेटा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को उपलब्ध नहीं कराया था।
- यह भी स्पष्ट किया गया कि SPCB से प्राप्त डेटा को CPCB द्वारा मान्य नहीं किया गया था और साथ ही कुछ मामलों में शहरी स्थानीय निकायों (ULB) द्वारा SPCB के साथ साझा किये गए डेटा में विसंगतियाँ थीं।
- प्लास्टिक के विकल्प खोजने का महत्त्व: इसमें पाया गया कि "प्लास्टिक का लागत प्रभावी एवं भरोसेमंद विकल्प ढूंढना" इसके उन्मूलन के लिये एक पूर्व शर्त थी।
प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिये क्या उपाय किये गए हैं?
- वैश्विक स्तर पर किये गए उपाय:
- प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने का संकल्प:
- वर्ष 2022 में भारत सहित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के 124 देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लक्ष्य के साथ विधिक रूप से बाध्यकारी समझौता तैयार करने के लिये एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये।
- क्लोज़िंग द लूप:
- यह एशिया और प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की एक परियोजना है जिसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान करने के लिये अधिक प्रभावशील नीतियाँ बनाने में शहरों की सहायता करना है।
- ग्लोबल टूरिज़्म प्लास्टिक्स इनिशिएटिव:
- इस पहल का लक्ष्य वर्ष 2025 तक अभिकल्पित प्रतिबद्धताओं के माध्यम से पर्यटन क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना है।
- यूरोपीय संघ:
- यूरोपीय संघ (EU) ने जुलाई 2021 में, एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर दिशा-निर्देश जारी किये।
- प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने का संकल्प:
- भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- हार्ड-टू-कलेक्ट/रीसायकल एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध (SUP): पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हार्ड-टू-कलेक्ट/रीसायकल एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया।
- 120 माइक्रोन से पतले प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, आयात, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 के तहत प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) पर दिशा-निर्देश जारी किये गए।
- ये दिशा-निर्देश EPR, प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के पुनर्चक्रण, कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग के पुन: उपयोग और पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक सामग्री के उपयोग के लिये अनिवार्य लक्ष्य निर्धारित करते हैं।
- स्थानीय निकाय की ज़िम्मेदारी: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार प्रत्येक स्थानीय निकाय को प्लास्टिक अपशिष्ट के पृथक्करण, संग्रह, प्रसंस्करण और निपटान के लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण पहल:
- हार्ड-टू-कलेक्ट/रीसायकल एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध (SUP): पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हार्ड-टू-कलेक्ट/रीसायकल एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया।
PAC रिपोर्ट की अनुशंसाएँ क्या हैं?
- विश्वसनीय डेटा मूल्यांकन का महत्त्व: डेटा में अंतराल को रेखांकित करते हुए, पैनल ने वातावरण में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा का "विश्वसनीय मूल्यांकन" करने की आवश्यकता व्यक्त की और कहा कि यह समस्या को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने की दिशा में पहला कदम होना चाहिये।
- राष्ट्रीय डैशबोर्ड पर अनिवार्य रिपोर्टिंग: इसने राष्ट्रीय डैशबोर्ड पर ऑनलाइन डेटा की "अनिवार्य" रिपोर्टिंग की सिफारिश की।
- प्रवर्तन के लिये तत्काल और प्रभावी उपाय: EPR के अलावा तत्काल और प्रभावी कदम, जिसमें पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों तथा SUP के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, विकल्प खोजने पर अनुसंधान एवं विकास कार्य के लिये धन उपलब्ध कराना, कार्यान्वयन एजेंसियों को जवाबदेह बनाना, पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है। सामग्री और बढ़ती रीसाइक्लिंग सुविधाओं को "वास्तविक तौर पर SUP पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू करने" के लिये उठाए जा सकते हैं।
- औद्योगिक प्रथाओं पर सतर्कता: यह देखने के लिये उद्योगों पर कड़ी नज़र रखने की आवश्यकता है कि क्या उन्हें वास्तव में संग्रह और पुनर्चक्रण की आवश्यकता है या इसके बदले वे झूठे दावे करते हैं।
- बॉटम-अप दृष्टिकोण को अपनाना: बॉटम-अप दृष्टिकोण अपनाने की भी आवश्यकता है जहाँ देश के प्रत्येक ब्लॉक में कम-से-कम एक प्लास्टिक अपशिष्ट रीसाइक्लिंग इकाई होनी चाहिये।
- उद्योग की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: उद्योगों या निजी संस्थाओं को स्थानीय स्तर पर ऐसी इकाइयाँ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और बदले में उन्हें प्रभावी पारिश्रमिक उपायों के माध्यम से कचरा बीनने वालों के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB)
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB), एक वैधानिक संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1974 में जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत किया गया था।
- CPCB को वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत शक्तियाँ तथा कार्य भी सौंपे गए थे।
- यह एक क्षेत्रीय गठन के रूप में कार्य करता है और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।
लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee- PAC)
- PAC तीन वित्तीय संसदीय समितियों में से एक है, अन्य दो प्राक्कलन समिति और सार्वजनिक उपक्रम समिति हैं।
- संसदीय समितियाँ अनुच्छेद 105 (संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों पर) और अनुच्छेद 118 (अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने के लिये नियम बनाने हेतु संसद के अधिकार पर) से अपना अधिकार प्राप्त करती हैं।
- स्थापना:
- लोक लेखा समिति की शुरुआत वर्ष 1921 में भारत सरकार अधिनियम, 1919 में पहली बार उल्लेख के बाद की गई थी, जिसे मोंटफोर्ड सुधार भी कहा जाता है।
- लोक सभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 308 के तहत अब प्रत्येक वर्ष लोक लेखा समिति का गठन किया जाता है।
- नियुक्ति:
- समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
- गौरतलब है कि चूँकि यह समिति कार्यकारी निकाय नहीं है, अतः यह केवल ऐसे निर्णय ले सकती है जो सलाहकार प्रकृति के हों।
- समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
- सदस्य:
- इसमें वर्तमान में केवल एक वर्ष की अवधि के साथ 22 सदस्य (लोकसभा अध्यक्ष द्वारा चुने गए 15 सदस्य और राज्यसभा के सभापति द्वारा चुने गए 7 सदस्य) शामिल होते हैं।
EPR क्या है?
- यह उत्पादकों को उनके जीवन चक्र के दौरान उनके उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभावों के लिये ज़िम्मेदार बनाता है।
- EPR का उद्देश्य बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना और नगरपालिकाओं पर बोझ कम करना है।
- यह पर्यावरण की लागत को उत्पाद की कीमतों में एकीकृत करता है और पर्यावरण की दृष्टि से अच्छे उत्पादों के डिज़ाइन को प्रोत्साहित करता है।
- EPR विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट पर लागू होता है, जिसमें प्लास्टिक अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट और बैटरी अपशिष्ट शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.1 भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्त्व' आरंभ किया गया था? (2019) (a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998 उत्तर: (c) प्रश्न. 2 राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन. जी. टी.) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) से भिन्न है? (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
ला नीना का वायु गुणवत्ता से संबंध
प्रिलिम्स के लिये:ला नीना का वायु गुणवत्ता से संबंध, अल नीनो और ला नीना घटनाएँ, PM2.5, गंगा का मैदान मेन्स के लिये:ला नीना का वायु गुणवत्ता से संबंध, विश्व के भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान और बंगलुरु स्थित राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान के शोधकर्त्ताओं द्वारा एक नया अध्ययन प्रकाशित किया गया है, जिसमें बताया गया है कि भारत में वायु गुणवत्ता भी एल नीनो तथा ला नीना घटनाओं से प्रभावित हो सकती है।
- अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि वर्ष 2022 की सर्दियों में कुछ भारतीय शहरों में असामान्य वायु गुणवत्ता को उस समय प्रचलित ला नीना के रिकॉर्ड तोड़ने के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- भारत में प्रदूषण और सर्दियों के महीनों के बीच संबंध:
- अक्तूबर से जनवरी के दौरान, दिल्ली जैसे उत्तरी भारतीय शहरों में विभिन्न मौसम संबंधी कारकों और पंजाब तथा हरियाणा जैसे क्षेत्रों से प्रदूषण परिवहन के कारण आमतौर पर PM2.5 का स्तर उच्च होता है।
- देश के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में महासागरों से निकटता के कारण हमेशा प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम रहा है।
- हालाँकि वर्ष 2022 की सर्दियों में इस सामान्य से एक महत्त्वपूर्ण विचलन देखा गया।
- दिल्ली सहित उत्तरी भारतीय शहर सामान्य से अधिक स्वच्छ थे, जबकि पश्चिम और दक्षिण के मुंबई, बंगलुरु तथा चेन्नई जैसे शहरों में हवा की गुणवत्ता सामान्य से अधिक खराब थी।
- शीतकालीन 2022 में असामान्य व्यवहार:
- गाज़ियाबाद और नोएडा में PM2.5 की सांद्रता काफी कम हो गई, जबकि दिल्ली में थोड़ी कमी देखी गई। इसके विपरीत मुंबई और बंगलुरु में PM2.5 के स्तर में वृद्धि देखी गई।
- उत्तरी भारतीय शहरों में पश्चिमी और दक्षिणी शहरों की तुलना में स्वच्छ पवन थी।
- गाज़ियाबाद और नोएडा में PM2.5 की सांद्रता काफी कम हो गई, जबकि दिल्ली में थोड़ी कमी देखी गई। इसके विपरीत मुंबई और बंगलुरु में PM2.5 के स्तर में वृद्धि देखी गई।
- विसंगति उत्पन्न करने वाले कारक:
- वर्ष 2022 की सर्दियों की विसंगति उत्पन्न करने में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक सामान्य पवन की दिशा में बदलाव था।
- सर्दियों के दौरान पवन आमतौर पर उत्तर-पश्चिमी दिशा में चलती है। उदाहरण के लिये, पंजाब से दिल्ली की ओर और आगे गंगा के मैदानी क्षेत्रों में।
- यह पंजाब और हरियाणा से कृषि अपशिष्ट प्रदूषकों को दिल्ली में ले जाने का एक कारक है।
- हालाँकि वर्ष 2022 की सर्दियों में पवन का प्रवाह उत्तर-दक्षिण दिशा में था।
- पंजाब और हरियाणा से आने वाले प्रदूषक तत्त्वों का प्रवाह दिल्ली एवं निकटवर्ती क्षेत्रों को पार करते हुए राजस्थान व गुजरात से होते हुए दक्षिणी क्षेत्रों की ओर हो गया।
- ला नीना का प्रभाव:
- विस्तृत ला नीना वर्ष 2022 की सर्दियों तक असामान्य रूप से दीर्घकालिक अर्थात् तीन वर्षों तक बना रहेगा, जिससे पवन के पैटर्न पर असर पड़ेगा।
- एक असामान्य "ट्रिपल-डिप" परिघटना— निरंतर तीन वर्षीय ला नीना स्थितियों (वर्ष 2020-23) का विश्व भर में समुद्र और जलवायु पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।
- सभी ला नीना घटनाएँ भारत में पवन परिसंचरण में उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं ला सकती हैं।
- वर्ष 2022 की घटना विशेष रूप से प्रबल थी और वायु परिसंचरण पर प्रभाव ला नीना के तीसरे वर्ष में ही स्पष्ट हो गया। तो इसका संचयी प्रभाव अनुमानित है।
- अध्ययन से पता चलता है कि भारत में वायु गुणवत्ता पर अल नीनो का प्रभाव अस्पष्ट है।
- विस्तृत ला नीना वर्ष 2022 की सर्दियों तक असामान्य रूप से दीर्घकालिक अर्थात् तीन वर्षों तक बना रहेगा, जिससे पवन के पैटर्न पर असर पड़ेगा।
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM)
- IITM पुणे, महाराष्ट्र में स्थित एक वैज्ञानिक संस्थान है। इसे उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर पर विशेष ध्यान देने के साथ उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान से संबंधित अनुसंधान का विस्तार करने में विशिष्टता प्राप्त है।
- अध्ययन के प्रमुख क्षेत्रों में दक्षिण एशियाई जलवायु में मानसून मौसम विज्ञान और वायु-समुद्र संपर्क शामिल हैं।
- IITM, भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में कार्य करता है।
राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान (NIAS)
- NIAS, एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है जो बेंगलुरु (भारत) में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1988 में स्वर्गीय श्री जे.आर.डी.टाटा की दूरदृष्टि एवं पहल से हुई थी।
- संस्थान का लक्ष्य विद्वानों, प्रबंधकों एवं नेताओं के एक व्यापक आधार पर पोषित करना है जो अंतःविषय दृष्टिकोण के माध्यम से जटिल सामाजिक चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
- NIAS मानविकी, सामाजिक विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान, इंजीनियरिंग, के साथ-साथ संघर्ष तथा सुरक्षा अध्ययन सहित विभिन्न क्षेत्रों में उन्नत बहु-विषयक अनुसंधान आयोजित करता है।
निष्कर्ष
- वर्ष 2022 की शीतऋतु के दौरान भारत में वायु गुणवत्ता पर ला-नीना का प्रभाव स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितियों में वैश्विक जलवायु प्रणालियों को समझने के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
- भारत में जलवायु घटनाओं तथा वायु गुणवत्ता के बीच जटिल अंतःक्रियाओं को स्पष्ट करने के साथ और अधिक शोध करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. सूखे को उसके स्थानिक विस्तार, कालिक अवधि, मंथर प्रारंभ और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सितंबर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धातों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिये तैयारी की कार्यविधियों पर चर्चा कीजिये। (2014) प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल-नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती है। क्या आप सहमत हैं? (2014) |
प्राकृतिक रबर क्षेत्र के सतत् एवं समावेशी विकास की योजना
प्रिलिम्स के लिये:पॉलीआइसोप्रीन, प्राकृतिक रबर क्षेत्र, प्राकृतिक रबर, रबर उत्पादक समितियों (RPS) का सतत् एवं समावेशी विकास। मेन्स के लिये:प्राकृतिक रबर क्षेत्र का सतत् एवं समावेशी विकास, देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसल प्रणाली। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
'प्राकृतिक रबर क्षेत्र के सतत् एवं समावेशी विकास (SIDNRS)' के तहत रबर क्षेत्र के लिये वित्तीय सहायता अगले 2 वित्तीय वर्षों (2024-25 एवं 2025-26) के लिये 576.41 करोड़ रुपए से 23% बढ़ाकर 708.69 करोड़ रुपए कर दी गई है।
- सरकार द्वारा पूर्वोत्तर क्षेत्र में रबर आधारित उद्योगों के विकास को बढ़ावा देने के लिये तीन नोडल रबर प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने की योजना की भी घोषणा की है।
- यह रबर उत्पादकों के सशक्तीकरण के लिये रबर उत्पादक सोसायटी (RPS) के गठन को भी बढ़ावा देगा।
प्राकृतिक रबर क्षेत्र का सतत् एवं समावेशी विकास (SIDNRS) योजना क्या है?
- परिचय:
- SIDNRS योजना भारत में प्राकृतिक रबर क्षेत्र के सतत् एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा प्रारंभ की गई एक पहल है।
- SIDNRS योजना वित्त वर्ष 2017-18 में लॉन्च की गई थी।
- इसे वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय रबर बोर्ड द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- SIDNRS योजना भारत में प्राकृतिक रबर क्षेत्र के सतत् एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा प्रारंभ की गई एक पहल है।
- योजना के उद्देश्य:
- प्राकृतिक रबर उत्पादन की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में सुधार करना।
- सतत् रबर उत्पादन पद्धतियों को अपनाने को बढ़ावा देना।
- रबर उत्पादकों की आय एवं आजीविका में सुधार करना।
- रबर क्षेत्र में रोज़गार के अवसर सृजित करना।
- रबर आधारित उद्योग के विकास को बढ़ावा देना।
- योजना के घटक:
- पुराने तथा अलाभकारी रबर के पेड़ों को दोबारा लगाने के लिये सब्सिडी: अधिक उपज देने वाले और रोग प्रतिरोधी किस्मों वाले पुराने एवं अलाभकारी रबर के पेड़ों को दोबारा लगाने के लिये रबर उत्पादकों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- पुराने और अलाभकारी रबर के पेड़ों को दोबारा लगाने हेतु सब्सिडी: पुराने और अलाभकारी रबर के पेड़ों को उच्च उपज देने वाली तथा रोग प्रतिरोधी किस्मों के साथ दोबारा लगाने के लिये रबर उत्पादकों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
- इंटरक्रॉपिंग को बढ़ावा देना: अनानास, केला और कोको जैसी अन्य फसलों के साथ रबर की इंटरक्रॉपिंग कृषि के लिये रबर उत्पादकों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई। इंटरक्रॉपिंग से मिट्टी की उर्वरता में सुधार, नमी का संरक्षण तथा रबर उत्पादकों को अतिरिक्त आय प्रदान करने में मदद मिलती है।
- क्षमता निर्माण के लिये सहायता: रबर उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन में सर्वोत्तम प्रथाओं पर रबर उत्पादकों को प्रशिक्षण तथा विस्तार सेवाएँ प्रदान की गईं।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: रबर उगाने वाले क्षेत्रों में सड़कों, जल संचयन संरचनाओं और प्रसंस्करण इकाइयों जैसी बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
- रबर आधारित उद्योगों को बढ़ावा: रबर आधारित उद्योगों जैसे टायर निर्माण, जूते निर्माण और लेटेक्स प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना तथा विस्तार के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
प्राकृतिक रबर से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- प्राकृतिक रबर:
- प्राकृतिक रबर एक बहुपयोगी और आवश्यक कच्चा माल है जो कुछ पौधों की प्रजातियों (मुख्य रूप से रबर के पेड़) के लेटेक्स अथवा दूधिया तरल पदार्थ से प्राप्त होता है, जिसे वैज्ञानिक रूप से हेविया ब्रासिलिएन्सिस के नाम से जाना जाता है।
- इस लेटेक्स में कार्बनिक यौगिकों का एक जटिल मिश्रण होता है, जिसका प्राथमिक घटक पॉलीआइसोप्रीन नामक बहुलक होता है।
- इसे 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटिश सरकार द्वारा उष्णकटिबंधीय एशिया और अफ्रीका में पेश किया गया था।
- प्राकृतिक रबर एक बहुपयोगी और आवश्यक कच्चा माल है जो कुछ पौधों की प्रजातियों (मुख्य रूप से रबर के पेड़) के लेटेक्स अथवा दूधिया तरल पदार्थ से प्राप्त होता है, जिसे वैज्ञानिक रूप से हेविया ब्रासिलिएन्सिस के नाम से जाना जाता है।
- स्थितियों में वृद्धि:
- इसकी खेती के लिये 2000-4500 मि.मी. वार्षिक वर्षा वाली उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है।
- न्यूनतम और अधिकतम तापमान 25 से 34 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिये जिसमें 80% सापेक्ष आर्द्रता खेती के लिये आदर्श है।
- तीव्र पवनों की संभावना वाले क्षेत्रों से बचना चाहिये।
- इसके उत्पादन हेतु संपूर्ण अवधि के दौरान प्रति दिन 6 घंटे की दर से वर्ष भर में लगभग 2000 घंटे के सूर्य प्रकाश की आवश्यकता होती है।
- रबर उत्पादन और खपत:
- भारत वर्तमान में प्राकृतिक रबर क्षेत्र का विश्व का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है तथा वैश्विक स्तर पर (चीन के बाद) रबर सामग्री का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- थाईलैंड विश्व का अग्रणी प्राकृतिक रबर उत्पादक देश है (वर्ष 2022 में कुल वैश्विक प्राकृतिक रबर उत्पादन में लगभग 35% योगदान)।
- दक्षिण एशिया में, थाईलैंड, इंडोनेशिया और वियतनाम के बाद चौथा सबसे बड़ा योगदान भारत का है।
- भारत की कुल प्राकृतिक रबर खपत का लगभग 40% वर्तमान में आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है।
- भारत वर्तमान में प्राकृतिक रबर क्षेत्र का विश्व का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है तथा वैश्विक स्तर पर (चीन के बाद) रबर सामग्री का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- रबर वितरण:
- वर्तमान में भारत में लगभग 8.5 लाख हेक्टेयर रबर के बागान मौजूद हैं।
- प्रमुख रबर उत्पादक राज्यों में केरल, तमिलनाडु, त्रिपुरा और असम शामिल हैं।
- रबर उत्पादन का बड़ा हिस्सा, लगभग 5 लाख हेक्टेयर, दक्षिणी राज्यों केरल और तमिलनाडु के कन्याकुमारी ज़िले में केंद्रित है।
- इसके अतिरिक्त, त्रिपुरा रबर उत्पादन परिदृश्य में लगभग 1 लाख हेक्टेयर का योगदान देता है।
- प्रमुख अनुप्रयोग:
- ऑटोमोबाइल: रबर अपनी उत्कृष्ट पकड़ और घिसावट-रोधी प्रकृति के परिणामस्वरूप टायर उत्पादन में एक प्रमुख घटक है। इसका उपयोग वाहनों के लिये सील, गैसकेट, होज़ और विभिन्न घटकों में किया जाता है।
- प्राकृतिक रबर का मुख्य उपयोग ऑटोमोबाइल में होता है। लगभग 65% प्राकृतिक रबर की खपत ऑटोमोबाइल उद्योग द्वारा की जाती है।
- फुटवियर: सामान्यतः रबर के कुशनिंग और स्लिप-रोधी गुणों के कारण इसका उपयोग जूतों के सोल बनाने के लिये किया जाता है।
- औद्योगिक उत्पाद: कन्वेयर बेल्ट, होसेस और मशीनरी घटकों में रबर का उपयोग किया जाता है।
- चिकित्सा उपकरण: रबर का उपयोग दस्ताने, सिरिंज प्लंजर और अन्य चिकित्सा उपकरणों में किया जाता है।
- उपभोक्ता वस्तुएँ: गुब्बारे, इरेज़र और घरेलू दस्ताने जैसे उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
- खेल का सामान: टेनिस बॉल, गोल्फ बॉल और सुरक्षात्मक गियर जैसी वस्तुओं में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- ऑटोमोबाइल: रबर अपनी उत्कृष्ट पकड़ और घिसावट-रोधी प्रकृति के परिणामस्वरूप टायर उत्पादन में एक प्रमुख घटक है। इसका उपयोग वाहनों के लिये सील, गैसकेट, होज़ और विभिन्न घटकों में किया जाता है।
रबर बोर्ड क्या है?
- रबर बोर्ड रबर अधिनियम, 1947 की धारा (4) के तहत गठित एक वैधानिक संगठन है जो वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्य करता है।
- इस बोर्ड का नेतृत्व केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष द्वारा किया जाता है और इसमें प्राकृतिक रबर उद्योग के विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले 28 सदस्य हैं।
- बोर्ड का मुख्यालय केरल के कोट्टायम में स्थित है।
- यह बोर्ड रबर से संबंधित अनुसंधान, विकास, विस्तार और प्रशिक्षण गतिविधियों को सहायता एवं प्रोत्साहित करके देश में रबर उद्योग के विकास में योगदान देता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:निम्नलिखित में से कौन-सा एक पादप-समूह को 'नवीन विश्व (न्यू वर्ल्ड)' में कृषि-योग्य बनाया गया तथा इसका 'प्राचीन विश्व (ओल्ड वर्ल्ड)' में प्रचलन शुरू किया गया? (2019) (a) तंबाकू, कोको और रबर उत्तर: (a) Q. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कर सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (2008)
कूट: A B C D (a) 2 4 3 1 उत्तर: (b) |
NeSDA की वे फॉरवर्ड रिपोर्ट- 2023
प्रिलिम्स के लिये:प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग, ई-सेवाएँ, ई-उन्नत (संयुक्त, एकीकृत, सुलभ और पारदर्शी) मेन्स के लिये:NeSDA की वार्षिक वे फॉरवर्ड रिपोर्ट- 2023, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन व कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने 'वार्षिक राष्ट्रीय ई-शासन सेवा वितरण मूल्यांकन (NeSDA) वे फॉरवर्ड रिपोर्ट-2023' जारी की है, जिसमें दर्शाया गया है कि NeSDA वे फॉरवर्ड डैशबोर्ड पर मूल्यांकित की गई 1,117 ई-सेवाओं के साथ जम्मू और कश्मीर का वर्चस्व है।
- यह रिपोर्ट राष्ट्रीय ई-शासन सेवा वितरण मूल्यांकन (National e-Governance Services Delivery Assessment- NeSDA) फ्रेमवर्क पर आधारित है।
- यह ढाँचा ई-सेवाओं के वितरण के संबंध में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रालयों का मूल्यांकन करने के लिये एक बेंचमार्किंग अभ्यास के रूप में कार्य करता है।
वार्षिक NeSDA वे फॉरवर्ड रिपोर्ट-2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- कुल मुल्यांकित ई-सेवाएँ:
- दिसंबर 2023 के अंत तक, कुल 16,487 ई-सेवाओं का NeSDA वे फॉरवर्ड डैशबोर्ड पर मूल्यांकन किया गया, जो विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल सेवा वितरण की सीमा को दर्शाता है।
- ई-सेवा वितरण में, जम्मू और कश्मीर के बाद तमिलनाडु (1,101 ई-सेवाएँ), मध्य प्रदेश (1010 ई-सेवाएँ) तथा केरल (911 ई-सेवाएँ) राज्य हैं।
- मणिपुर के अलावा, निचले चार राज्य/केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप (42), लद्दाख (46), सिक्किम (51) और नगालैंड (64) हैं।
- ई-गवर्नेंस में जम्मू-कश्मीर ने सराहनीय प्रगति की जिसके तहत 1120 ई-सेवाओं के प्रावधान और उनके एकीकृत ई-UNNAT (एकीकृत, एकीकृत, सुलभ और पारदर्शी) प्लेटफॉर्म के माध्यम से 100% सेवा वितरण लक्ष्य प्राप्त किया जिसने मणिपुर में ई-सेवाओं की प्रतिकृति तथा प्रसार के स्रोत के रूप में कार्य किया।
- दिसंबर 2023 के अंत तक, कुल 16,487 ई-सेवाओं का NeSDA वे फॉरवर्ड डैशबोर्ड पर मूल्यांकन किया गया, जो विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल सेवा वितरण की सीमा को दर्शाता है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 16,487 ई-सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। जम्मू-कश्मीर सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे अधिक (1117) ई-सेवाएँ प्रदान करता है।
- अधिकतम ई-सेवाएँ स्थानीय शासन और जनोपयोगी सेवाओं के क्षेत्र में प्रदान की जाती हैं।
- पर्यटन क्षेत्र ने 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 23 में सभी अनिवार्य ई-सेवाओं के प्रावधान के लिये उच्चतम संतृप्ति हासिल की है। इसके बाद 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 20 में पर्यावरण और श्रम एवं रोज़गार क्षेत्र का स्थान है।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 16,487 ई-सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। जम्मू-कश्मीर सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे अधिक (1117) ई-सेवाएँ प्रदान करता है।
- अनिवार्य सेवा:
- अनिवार्य ई-सेवाओं की संतृप्ति में NeSDA वे फॉरवर्ड (2023) में 76% की वृद्धि हुई जो कि वर्ष 2019 में 48% और वर्ष 2021 में 69% थी।
- ई-सेवा वितरण में चुनौतियाँ:
- राज्यों के बीच वितरण से संबंधित असमानताएँ हैं, मणिपुर को अन्य क्षेत्रों की तुलना में ई-सेवाएँ प्रदान करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो पिछड़े राज्यों में डिजिटल प्रशासन में सुधार के लिये अधिक व्यापक प्रयासों की आवश्यकता का संकेत देता है।
राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण मूल्यांकन (NeSDA) क्या है?
- परिचय:
- प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) ने सात क्षेत्रों को कवर करते हुए एक बेंचमार्किंग अभ्यास के रूप में ई-सेवाओं के वितरण के संबंध में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रालयों का आकलन करने के लिये NeSDA फ्रेमवर्क तैयार किया।
- सात क्षेत्र हैं- स्थानीय शासन और उपयोगिता सेवाएँ, स्वास्थ्य, कृषि, घर तथा सुरक्षा सहित समाज कल्याण, वित्त, श्रम एवं रोज़गार, शिक्षा, पर्यावरण, पर्यटन।
- यह कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है।
- इस मूल्यांकन में, इस परियोजना में सेवा पोर्टलों का उनके मूल मंत्रालय/पोर्टल विभागों के साथ मूल्यांकन किया गया था।
- प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) ने सात क्षेत्रों को कवर करते हुए एक बेंचमार्किंग अभ्यास के रूप में ई-सेवाओं के वितरण के संबंध में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रालयों का आकलन करने के लिये NeSDA फ्रेमवर्क तैयार किया।
- पोर्टल का वर्गीकरण:
- मूल्यांकन किये गए सभी सरकारी पोर्टलों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया था-
- राज्य/केंद्रशासित प्रदेश/केंद्रीय मंत्रालय पोर्टल।
- राज्य/केंद्रशासित प्रदेश/केंद्रीय मंत्रालय सेवा पोर्टल।
- मूल्यांकन किये गए सभी सरकारी पोर्टलों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया था-
- पैरामीटर:
- मूल्यांकन के चार मुख्य मानक थे:-
- अभिगम्यता।
- सामग्री उपलब्धता।
- उपयोग में आसानी और सूचना सुरक्षा।
- केंद्रीय मंत्रालय पोर्टलों के लिये गोपनीयता।
- केंद्रीय मंत्रालय सेवा पोर्टल के लिये अतिरिक्त तीन मापदंडों का भी उपयोग किया गया-
- अंतिम सेवा वितरण।
- एकीकृत सेवा वितरण।
- स्थिति और अनुरोध ट्रैकिंग।
- मूल्यांकन के चार मुख्य मानक थे:-
एकीकृत सेवा वितरण:
- एक एकीकृत सेवा वितरण पोर्टल बेहतर प्रशासन और सेवा उपलब्धता प्रदान करने के लिये विभागों में सेवाओं को निर्बाध रूप से एकीकृत करता है।
- इनसे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि सभी नागरिक अधिकार क्लाउड पर उपलब्ध हैं, व्यापार करने में सुगमता बढ़ती है और विकास गतिविधियों के लिये कई प्रौद्योगिकियों को एकीकृत किया जाता है।
- सेवाओं की एकीकृत और निर्बाध डिलीवरी NeSDA ढाँचे का मुख्य सिद्धांत है तथा ऐसे पोर्टलों को मज़बूत करने से नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण बढ़ेगा।
भारत में ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल क्या हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |