शासन व्यवस्था
उड़ान योजना
प्रिलिम्स के लिये:उड़ान योजना मेन्स के लिये:उड़ान योजना का महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
21 अक्तूबर, उड़ान दिवस से पहले नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने उड़ान योजना के तहत उत्तर-पूर्वी भारत की हवाई कनेक्टिविटी का विस्तार करते हुए 6 मार्गों को हरी झंडी दिखाई।
- भारत सरकार ने योजना में योगदान के मद्देनज़र 21 अक्तूबर को उड़ान दिवस घोषित किया है, इसी दिन इस योजना से संबंधी दस्तावेज़ पहली बार जारी किये गए थे।
प्रमुख बिंदु
- लॉन्च:
- उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान) को 2016 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस) के रूप में शुरू किया गया था।
- उद्देश्य:
- क्षेत्रीय विमानन बाज़ार का विकास करना।
- छोटे शहरों में भी आम आदमी को क्षेत्रीय मार्गों पर किफायती, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक हवाई यात्रा की सुविधा प्रदान करना।
- विशेषताएँ:
- इस योजना में मौजूदा हवाई पट्टियों और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के असेवित और कम सेवा वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। यह योजना 10 वर्षों की अवधि के लिये परिचालित है।
- कम सेवा वाले हवाई अड्डे वे होते हैं जिनमें एक दिन में एक से अधिक उड़ानें नहीं होती हैं, जबकि अनारक्षित हवाई अड्डे वे होते हैं जहाँ कोई परिचालन नहीं होता है।
- केंद्र, राज्य सरकारों और हवाई अड्डा संचालकों की ओर से चयनित एयरलाइंस को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है ताकि असेवित तथा कम सेवा वाले हवाई अड्डों से संचालन को प्रोत्साहित किया जा सके एवं हवाई किराए को किफायती रखा जा सके।
- इस योजना में मौजूदा हवाई पट्टियों और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के असेवित और कम सेवा वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। यह योजना 10 वर्षों की अवधि के लिये परिचालित है।
- अब तक की उपलब्धियाँ:
- अब तक 387 मार्गों और 60 हवाई अड्डों का संचालन किया जा चुका है, जिनमें से 100 मार्ग अकेले उत्तर-पूर्व के हैं।
- कृषि उड़ान योजना के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र के निर्यात अवसरों को बढ़ाने के लिये 16 हवाई अड्डों की पहचान की गई है, जिससे माल ढुलाई और निर्यात में वृद्धि जैसे दोहरे लाभ प्राप्त हो रहे हैं।
उड़ान 1.0
- इस चरण के तहत 5 एयरलाइन कंपनियों को 70 हवाई अड्डों (36 नए बनाए गए परिचालन हवाई अड्डों सहित) के लिये 128 उड़ान मार्ग प्रदान किये गए।
उड़ान 2.0
- वर्ष 2018 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 73 ऐसे हवाई अड्डों की घोषणा की जहाँ कोई सेवा प्रदान नही की गई थी या उनके द्वारा की गई सेवा बहुत कम थी।
- उड़ान योजना के दूसरे चरण के तहत पहली बार हेलीपैड भी योजना से जोड़े गए थे।
उड़ान 3.0
- पर्यटन मंत्रालय के समन्वय में उड़ान 3.0 के तहत पर्यटन मार्गों का समावेश।
- जलीय हवाई अड्डे को जोड़ने के लिये जल विमान का समावेश।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई मार्गों को उड़ान के दायरे में लाना।
उड़ान 4.0
- वर्ष 2020 में देश के दूरस्थ क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (उड़ान) के चौथे संस्करण के तहत 78 नए मार्गों के लिये मंज़ूरी दी गई थी।
- लक्षद्वीप के मिनिकॉय, कवरत्ती और अगत्ती द्वीपों को उड़ान 4.0 के तहत नए मार्गों से जोड़ने की योजना बनाई गई है।
उड़ान 4.1
- उड़ान 4.1 मुख्यतः छोटे हवाई अड्डों, विशेष तौर पर हेलीकॉप्टर और सी-प्लेन मार्गों को जोड़ने पर केंद्रित है।
- सागरमाला विमान सेवा के तहत कुछ नए मार्ग प्रस्तावित हैं।
- सागरमाला सी-प्लेन सेवा संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे अक्तूबर 2020 में शुरू किया गया था।
आगे की राह
- एयरलाइंस ने इस योजना का लाभ रणनीतिक रूप से भीड़भाड़ वाले टियर-1 हवाई अड्डों पर अतिरिक्त स्लॉट हासिल करने, मार्गों पर एकाधिकार की स्थिति और कम परिचालन लागत प्राप्त करने की दिशा में उठाया है। इस प्रकार हितधारकों को उड़ान योजना को टिकाऊ बनाने और इसकी दक्षता में सुधार करने की दिशा में काम करना चाहिये।
- एयरलाइंस को मार्केटिंग हेतु पहल करनी चाहिये ताकि अधिक से अधिक लोग उड़ान योजना का लाभ उठा सकें।
- देश भर में योजना के सफल कार्यान्वयन के लिये बुनियादी ढाँचे की और अधिक मज़बूत करने आवश्यकता है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
कच्चे तेल की ऊँची कीमतें
प्रिलिम्स के लिये:WTI, ओपेक मेन्स के लिये:कच्चे तेल की बढ़ती कीमत का कारण और प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
जैसे-जैसे वैश्विक रिकवरी मज़बूत होती जा रही है, कच्चे तेल की कीमत वर्ष 2018 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच रही है।
- ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 85.89 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जो अक्तूबर 2018 के बाद से सबसे अधिक कीमत है। यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) कच्चे तेल की कीमतें अक्तूबर 2014 के बाद से 83.40 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई हैं।
- दूसरी ओर, प्राकृतिक गैस और कोयले की कीमतें तीव्र अधिशेष की कमी के बीच रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच रही हैं।
प्रमुख बिंदु
- तेल मूल्य निर्धारण:
- आमतौर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) एक कार्टेल के रूप में काम करता था और एक अनुकूल बैंड में कीमतें तय करता था।
- ओपेक का नेतृत्व सऊदी अरब करता है, जो दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है (वैश्विक मांग का 10% अकेले ही निर्यात करता है)।
- ओपेक के कुल 13 देश सदस्य हैं। ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला और वेनेज़ुएला।
- ओपेक तेल उत्पादन बढ़ाकर कीमतों में कमी ला सकता है और उत्पादन में कटौती कर कीमतें बढ़ा सकता है।
- वैश्विक तेल मूल्य निर्धारण मुख्य रूप से एक अच्छी तरह से काम करने वाली प्रतिस्पर्द्धा के बजाय वैश्विक तेल निर्यातकों के बीच साझेदारी पर निर्भर करता है।
- तेल उत्पादन में कटौती या तेल के कुओं को पूरी तरह से बंद करना एक कठिन निर्णय है, क्योंकि इन्हें फिर से शुरू करना बेहद महँगा और जटिल है।
- इसके अलावा यदि कोई देश उत्पादन में कटौती करता है, तो अन्य देशों द्वारा नियमों का पालन न करने पर बाज़ार हिस्सेदारी में हानि का जोखिम होता है।
- हाल ही में ओपेक रूस के साथ ओपेक+ के रूप में वैश्विक कीमतों और आपूर्ति को सुव्यवस्थित करने के लिये काम कर रहा है।
- वर्ष 2016 में ओपेक ने ओपेक+ नामक एक और अधिक शक्तिशाली इकाई बनाने के लिये अन्य शीर्ष गैर-ओपेक तेल निर्यातक देशों के साथ गठबंधन किया।
- आमतौर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) एक कार्टेल के रूप में काम करता था और एक अनुकूल बैंड में कीमतें तय करता था।
- उच्च कीमतों का कारण:
- धीमा उत्पादन:
- वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में तेज़ वृद्धि के बावजूद प्रमुख तेल उत्पादक देशों द्वारा कच्चे तेल की आपूर्ति को धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।
- ओपेक+ ने वर्ष 2020 में कोविड-19 के कारण वैश्विक यात्रा प्रतिबंधों के के चलते वर्ष 2020 में आपूर्ति में तेज़ कटौती पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन उत्पादन को बढ़ावा देने में संगठन सुस्त रहा, जबकि मांग में सुधार हुआ है।
- वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में तेज़ वृद्धि के बावजूद प्रमुख तेल उत्पादक देशों द्वारा कच्चे तेल की आपूर्ति को धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।
- आपूर्ति पक्ष संबंधी मुद्दे:
- अमेरिका में आपूर्ति पक्ष के मुद्दों सहित तूफान इडा के कारण व्यवधान और यूरोप में बढ़ती मांग के बीच रूस से अपेक्षित प्राकृतिक गैस की आपूर्ति ने भविष्य में प्राकृतिक गैस की कमी की संभावना को बढ़ा दिया है।
- धीमा उत्पादन:
- भारत पर प्रभाव:
- चालू खाता घाटा:
- देश के आयात बिल में तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण बढ़ोतरी होगी, जिससे चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) और बढ़ जाएगा।
- मुद्रास्फीति:
- कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण पिछले कुछ महीनों से बना मुद्रास्फीति का दबाव और बढ़ सकता है।
- राजकोषीय स्थिति:
- तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो सरकार को पेट्रोलियम और डीज़ल पर करों में कटौती करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है। इससे राजकोषीय संतुलन (Fiscal Balance) बिगड़ सकता है।
- भारत पिछले दो वर्षों में कम आर्थिक वृद्धि के कारण कर राजस्व की कमी के चलते अनिश्चित वित्तीय स्थिति में है।
- राजस्व में कमी की वजह से केंद्र के विभाजन योग्य कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा और राज्य सरकारों को माल तथा सेवा कर (GST) ढाँचे के तहत राजस्व की कमी के लिये दिया जाने वाला मुआवज़ा प्रभावित होगा।
- तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो सरकार को पेट्रोलियम और डीज़ल पर करों में कटौती करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है। इससे राजकोषीय संतुलन (Fiscal Balance) बिगड़ सकता है।
- आर्थिक रिकवरी:
- हालाँकि बढ़ती कीमतों ने दुनिया को प्रभावित किया है, भारत विशेष रूप से नुकसान में है क्योंकि वैश्विक कीमतों में कोई भी वृद्धि उसके आयात बिल को प्रभावित कर सकती है, मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है और इसके व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है, जो इसके आर्थिक सुधार को धीमा कर देगा।
- भारत और अन्य तेल आयातक देशों ने ओपेक+ से तेल आपूर्ति को तेज़ी से बढ़ाने का आह्वान किया है, यह तर्क देते हुए कि कच्चे तेल की ऊँची कीमतें वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर को कमज़ोर कर सकती हैं।
- हालाँकि बढ़ती कीमतों ने दुनिया को प्रभावित किया है, भारत विशेष रूप से नुकसान में है क्योंकि वैश्विक कीमतों में कोई भी वृद्धि उसके आयात बिल को प्रभावित कर सकती है, मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है और इसके व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है, जो इसके आर्थिक सुधार को धीमा कर देगा।
- प्राकृतिक गैस की कीमत:
- गैस की कीमतों में वृद्धि ने परिवहन ईंधन के रूप में उपयोग की जाने वाली संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) और खाना पकाने के ईंधन के रूप में उपयोग की जाने वाली पाइप्ड प्राकृतिक गैस (पीएनजी), दोनों की कीमतों पर और दबाव डाला है।
- चालू खाता घाटा:
ब्रेंट और WTI के बीच अंतर
उत्पत्ति:
- ब्रेंट क्रूड ऑयल का उत्पादन उत्तरी सागर में शेटलैंड द्वीप (Shetland Islands) और नॉर्वे के बीच तेल क्षेत्रों में होता है।
- वेस्ट क्रूड इंटरमीडिएट (WTI) ऑयल क्षेत्र मुख्यत: अमेरिका (टेक्सास, लुइसियाना और नॉर्थ डकोटा) में अवस्थित हैं।
लाइट एंड स्वीट:
- ब्रेंट क्रूड ऑयल और WTI दोनों ही हल्के और स्वीट (Light and Sweet) होते हैं, लेकिन ब्रेंट में API भार थोड़ा अधिक होता है।
- अमेरिकी पेट्रोलियम संस्थान (API) कच्चे तेल या परिष्कृत उत्पादों के घनत्व का एक संकेतक है।
- ब्रेंट (0.37%) की तुलना में WTI में कम सल्फर सामग्री (0.24%) होने के कारण इसे तुलनात्मक रूप में ‘मीठा’ कहा जाता है।
बेंचमार्क मूल्य:
- OPEC द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला ब्रेंट क्रूड ऑयल मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क मूल्य (Benchmark Price) है, जबकि अमेरिकी तेल कीमतों के लिये WTI क्रूड ऑयल मूल्य एक बेंचमार्क है।
- भारत मुख्य रूप से क्रूड ऑयल का आयात OPEC देशों से करता है, अतः भारत में तेल की कीमतों के लिये ब्रेंट बेंचमार्क है।
शिपिंग लागत:
- आमतौर पर ब्रेंट क्रूड ऑयल के लिये शिपिंग की लागत कम होती है, क्योंकि इसका उत्पादन समुद्र के पास होता है, जिससे इसे कार्गो जहाज़ों में तुरंत लादा जा सकता है।
- WTI कच्चे तेल की शिपिंग का मूल्य अधिक होता है क्योंकि इसका उत्पादन भूमि वाले क्षेत्रों में होता है, जहाँ भंडारण की सुविधा सीमित है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कृषि
डाइ-अमोनियम फॉस्फेट की कमी
प्रिलिम्स के लिये:DAP मेन्स के लिये:DAP का महत्त्व और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक सहित कई राज्यों के किसान रबी मौसम से पहले मुख्य रूप से डाइ-अमोनियम फॉस्फेट की कमी (DAP) के उर्वरकों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं।
- इससे पहले सरकार ने डाइ-अमोनियम फॉस्फेट की कमी (DAP) उर्वरक पर सब्सिडी बढ़ाकर 140 फीसदी कर दी थी।
प्रमुख बिंदु
- DAP के बारे में:
- DAP यूरिया के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उर्वरक है।
- किसान आमतौर पर इस उर्वरक का प्रयोग बुवाई से ठीक पहले या बुवाई की शुरुआत में करते हैं, क्योंकि इसमें फास्फोरस (पी) की मात्रा अधिक होती है जो जड़ के विकास में सहायक होता है।
- DAP में 46% फास्फोरस, 18% नाइट्रोजन पाई जाती है जो किसानों के लिये फास्फोरस का पसंदीदा स्रोत है।
- यह यूरिया के समान है, जो उनका पसंदीदा नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक है जिसमें 46% नाइट्रोजन होता है।
- कमी का कारण:
- वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान:
- महामारी के चलते वैश्विक आपूर्ति और रसद शृंखला में व्यवधान के कारण वैश्विक स्तर पर उर्वरक की कीमतों में वृद्धि हुई है।
- वैश्विक कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत ने अपने आयात को कम किया है, जिससे देश में उर्वरक स्टॉक में और कमी आई है।
- कच्चे माल की बढ़ी कीमतें:
- उर्वरकों के साथ-साथ फॉस्फोरिक एसिड, अमोनिया और सल्फर जैसे इनपुट की बढ़ती वैश्विक कीमतों को देखते हुए आयात तभी व्यवहार्य होगा जब सरकार द्वारा प्रदान की गई सब्सिडी युक्त उर्वरक किसानों को उपलब्ध हो सकेगी।
- कंपनियों को निश्चित सब्सिडी:
- उर्वरक कंपनियों के अनुसार केंद्र द्वारा दी जा रही सब्सिडी की निश्चित दर तुलनात्मक रूप से काफी कम है।
- इसलिये उन्होंने आपूर्ति को प्रभावित करने वाले DAP के उत्पादन को कम कर दिया है।
- वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान:
- कमी के निहितार्थ:
- यह उन राज्यों में रबी फसलों की बुवाई में बाधा उत्पन्न कर सकता है जो बड़े पैमाने पर मिट्टी की नमी और जलाशयों में पानी की उपलब्धता पर निर्भर हैं।
- बुवाई के मौसम में उर्वरकों की पर्याप्त मात्रा की अनुपलब्धता भी उत्पादन लक्ष्य को प्रभावित कर सकती है।
आगे की राह
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सामग्री को बंदरगाहों से उपभोग केंद्रों तक शीघ्रता से ले जाया जाए। एक बार जब किसानों को पर्याप्त स्टॉक का आश्वासन हो जायेगा तो अस्थिरता की स्थिति समाप्त हो जाएगी।
- किसानों को DAP के स्थान पर यूरिया-सिंगल सुपर फास्फेट के मिश्रण का उपयोग करने की सलाह दी जा सकती है।
स्रोत: द हिंदू
भूगोल
‘डबल-डिप’ ला नीना
प्रिलिम्स के लिये:अल नीनो-दक्षिणी दोलन, अल नीनो, ला नीना मेन्स के लिये:‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ के विभिन्न चरण और उसके प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (अमेरिकी वैज्ञानिक एजेंसी) ने घोषणा की है कि ‘ला नीना’ पुनः विकसित हो रहा है। लगातार ‘ला नीना’ की घटना को ‘डबल-डिप’ (Double-Dip) कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- ‘ला नीना’, ‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ (ENSO) चक्र का एक हिस्सा है, जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्री और वायुमंडलीय परिस्थितियों के गर्म एवं ठंडे चरणों की विपरीत अवस्थाओं को प्रदर्शित करता है।
- ENSO-तटस्थ स्थितियों के माध्यम से ट्रांज़ीशन के बाद लगातार ‘ला नीना’ असामान्य घटना नहीं है और इसे प्रायः ‘डबल-डिप’ के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।
- वर्ष 2020 में ला नीना अगस्त महीने के दौरान विकसित हुअ और फिर अप्रैल 2021 में ENSO-तटस्थ स्थितियों में वापस आने के बाद समाप्त हो गया।
- आगामी सर्दियों के मौसम (दिसंबर 2021 से फरवरी 2022) में ‘ला नीना’ के विकसित होने की संभावना तकरीबन 87% है।
- इससे पूर्व ‘ला नीना’ को वर्ष 2020-2021 और वर्ष 2017-2018 की सर्दियों के दौरान देखा गया था, वहीं ‘अल नीनो’ वर्ष 2018-2019 में विकसित हुआ था।
- अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO):
- ‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ समुद्र की सतह के तापमान (अल नीनो) और भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर के वातावरण (दक्षिणी दोलन) के वायु दाब में एक आवधिक उतार-चढ़ाव है।
- अल नीनो और ला नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में बदलाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले जटिल मौसम पैटर्न हैं। वे ENSO चक्र के विपरीत चरण हैं।
- अल नीनो और ला नीना घटनाएँ आमतौर पर 9 से 12 महीने तक चलती हैं, लेकिन कुछ लंबी घटनाएँ वर्षों तक जारी रह सकती हैं।
अल नीनो और ला नीना
तुलना का आधार |
अल नीनो |
ला नीना |
परिचय |
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घटना |
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प्रभाव |
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स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
UNEP उत्पादन अंतराल रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:उत्पादन अंतराल रिपोर्ट मेन्स के लिये:ग्रीन हाउस गैस के कारण और प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रमुख शोध संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा वर्ष 2021 के लिये उत्पादन अंतराल रिपोर्ट जारी की गई।
- 2019 में पहली बार लॉन्च की गई उत्पादन अंतराल रिपोर्ट, सरकारों द्वारा नियोजित जीवाश्म ईंधन उत्पादन और वैश्विक उत्पादन स्तरों के बीच विसंगति को 1.5 डिग्री सेल्सियस या 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अनुरूप है।
- UNEP की प्रमुख रिपोर्ट्स: एमिशन गैप रिपोर्ट, एडेप्टेशन गैप रिपोर्ट, ग्लोबल एन्वायरनमेंट आउटलुक, मेकिंग पीस विद नेचर।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट का निष्कर्ष:
- उत्पादन अंतराल में वृद्धि:
- जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में उत्पादन अंतराल कोयले के परिप्रेक्ष्य में सबसे अधिक है क्योंकि सरकारों द्वारा उत्पादन योजनाओं और अनुमानित वैश्विक स्तर की तुलना में वर्ष 2030 में लगभग 240% अधिक कोयला, 57% अधिक तेल और 71% अधिक गैस का प्रयोग होगा जो भारत के एनडीसी लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस के प्रतिकूल है।
- सबसे चिंताजनक बात यह है कि लगभग सभी प्रमुख कोयला, तेल और गैस उत्पादक कम-से-कम वर्ष 2030 या उससे आगे तक अपना उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।
- कोविड-19 के प्रभाव:
- नोवेल कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) के ठीक होने के बाद के चरण में स्वच्छ ऊर्जा की तुलना में जीवाश्म ईंधन की ओर पूंजी प्रवाह में वृद्धि से उत्पादन अंतर को बढ़ावा मिला है।
- 20 देशों के समूह (G20) ने महामारी की शुरुआत के बाद से जीवाश्म ईंधन के लिये 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर व्यय किया है और इन देशों में यह क्षेत्र अभी भी महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रोत्साहन प्राप्त कर रहा है।
- नोवेल कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) के ठीक होने के बाद के चरण में स्वच्छ ऊर्जा की तुलना में जीवाश्म ईंधन की ओर पूंजी प्रवाह में वृद्धि से उत्पादन अंतर को बढ़ावा मिला है।
- उत्पादन अंतराल में वृद्धि:
- भारत की स्थिति:
- वर्ष 2016 में जारी भारत के पहले एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) ने 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की "उत्सर्जन तीव्रता" में 33%-35% की कमी का वादा किया।
- रिपोर्ट में कोयला उत्पादन बढ़ाने की भारत की योजनाओं पर प्रकाश डालने के लिये भारत सरकार की वर्ष 2020 की प्रेस विज्ञप्ति का हवाला दिया गया है।
- सरकार द्वारा वर्ष 2023-24 तक परिकल्पित महत्त्वाकांक्षी आर्थिक विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कोयले को ऊर्जा के रूप में प्रयोग करने पर ज़ोर दिया जा रहा है जो 2030 तक लक्षित एनडीसी के आदर्शवादी दृष्टिकोण से भिन्न है।
- भारत वर्ष 2019 के 730 मिलियन टन से वर्ष 2024 में 1,149 मिलियन टन कोयला उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रहा है।
- भारत का लक्ष्य त्वरित अन्वेषण लाइसेंसिंग, अन्वेषण और गैस विपणन सुधारों जैसे उपायों के माध्यम से इसी अवधि में कुल तेल और गैस उत्पादन में 40% से अधिक की वृद्धि करना है।
- सुझाव:
- जीवाश्म ईंधन के उत्पादन के लिये विकास वित्त संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीयन में कटौती के शुरुआती प्रयास उत्साहजनक हैं, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये ठोस और महत्त्वाकांक्षी जीवाश्म ईंधन बहिष्करण नीतियों द्वारा इन परिवर्तनों का पालन करने की आवश्यकता है।
- जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों को उत्पादन को बंद करने और दुनिया को एक सुरक्षित जलवायु भविष्य की ओर ले जाने में अपनी भूमिका और ज़िम्मेदारी उठानी चाहिये।
- जैसे-जैसे देश मध्य शताब्दी तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लिये तेज़ी से प्रतिबद्ध होंगे वैसे ही जीवाश्म ईंधन उत्पादन में तेज़ी से कमी लाने की आवश्यकता होती है, जिसके लिये नवीन जलवायु लक्ष्यों की आवश्यकता होगी।
जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करने के लिये भारत द्वारा किये गए उपाय
- भारत ग्रीनहाउस गैस (GHG) कार्यक्रम: भारत GHG कार्यक्रम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने और प्रबंधित करने के लिये एक उद्योग के नेतृत्व वाला स्वैच्छिक ढाँचा है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): NAPCC को वर्ष 2008 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य जनप्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के मध्य जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे तथा चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये जागरूकता पैदा करना है।
- भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत द्वारा भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों को अपना लिया गया है।
- अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय इतिहास
माउंट मणिपुर और एंग्लो-मणिपुर युद्ध
प्रिलिम्स के लियेअंडमान और निकोबार द्वीप समूह, एंग्लो-मणिपुर युद्ध मेन्स के लियेभारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वोत्तर भारत की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ‘माउंट हैरियट’ का नाम बदलकर ‘माउंट मणिपुर’ कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- ‘माउंट हैरियट’ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है, जहाँ मणिपुर के महाराजा कुलचंद्र सिंह और 22 अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को एंग्लो-मणिपुर युद्ध (1891) के दौरान कैद किया गया था।
- मणिपुर के उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में इसका नाम परिवर्तित किया गया है।
- मणिपुर 23 अप्रैल को एंग्लो-मणिपुर युद्ध के स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में खोंगजोम दिवस मनाता है।
- एंग्लो-मणिपुर युद्ध:
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1886 में जब सुरचंद्र को अपने पिता चंद्रकीर्ति सिंह से सिंहासन विरासत में मिला, तब मणिपुर का राज्य ब्रिटिश शासन के अधीन नहीं था, लेकिन विभिन्न संधियों के माध्यम से यह ब्रिटिश शासन से जुड़ा हुआ था।
- हालाँकि सुरचंद्र के सिंहासन पर आते ही राज्य में विवाद उत्पन्न हो गया और उनके छोटे भाइयों- कुलचद्र और टिकेंद्रजीत ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया।
- विद्रोही गुट द्वारा वर्ष 1890 के तख्तापलट में सुरचंद्र को हटा दिया गया और कुलचंद्र को राजा घोषित किया गया। सुरचंद्र अंग्रेज़ों की मदद लेने के लिये कलकत्ता भाग गए।
- ब्रिटिश अधिरोपण:
- अंग्रेज़ों ने असम के मुख्य आयुक्त जेम्स क्विंटन को सेना के साथ मणिपुर भेजा। उनका मिशन कुलचंद्र को राजा के रूप में इस शर्त के तहत मान्यता देना था कि उन्हें तख्तापलट के नेता टिकेंद्रजीत को गिरफ्तार करने और उन्हें मणिपुर से निर्वासित करने की अनुमति दी जाए।
- एक संप्रभु राज्य में ब्रिटिश कानून के इस अतिक्रमण को राजा द्वारा खारिज कर दिया गया, जिससे वर्ष 1891 का एंग्लो-मणिपुर युद्ध शुरू हो गया।
- परिणति:
- युद्ध के पहले चरण में अंग्रेज़ों ने आत्मसमर्पण कर दिया और उनके अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से मार डाला गया।
- दूसरे चरण में अंग्रेज़ों ने तीन तरफ से मणिपुर पर हमला किया और अंत में इंफाल के कांगला किले पर कब्ज़ा कर लिया।
- राजकुमार टिकेंद्रजीत और चार अन्य लोगों को अंग्रेज़ों ने फाँसी पर लटका दिया, जबकि कुलचंद्र को 22 अन्य लोगों के साथ अंडमान द्वीप समूह भेज दिया गया।
- जीत के बावजूद इस युद्ध में पाँच महत्त्वपूर्ण अधिकारियों की मौत हो गई थी।
- भारत में इसे वर्ष 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सामान्य विद्रोह का हिस्सा माना जाता है।
युद्ध के कारण मणिपुर आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश ताज के अप्रत्यक्ष शासन के तहत एक रियासत बन गया।
- पृष्ठभूमि:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
काला सागर
प्रिलिम्स के लिये:काला सागर की भौगोलिक स्थिति मेन्स के लिये:काला सागर का सामरिक महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी रक्षा सचिव ने रूस द्वारा काला सागर के "सैन्यीकरण" के समय नाटो सदस्यों से अधिक मित्रवत रक्षा सहयोग का आग्रह किया है।
- यह आग्रह नाटो मंत्रियों के शिखर सम्मेलन से पहले आया है।
प्रमुख बिंदु
- काला सागर की भौगोलिक स्थिति:
- काला सागर पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के बीच स्थित है।
- यह क्रमशः दक्षिण, पूर्व और उत्तर में पोंटिक, काकेशस तथा क्रीमियन पहाड़ों से घिरा हुआ है।
- काला सागर भी कर्च जलडमरूमध्य द्वारा आज़ोव सागर से जुड़ा हुआ है।
- तुर्की जलडमरूमध्य प्रणाली - दर्दनल्स, बोस्पोरस और मरमारा सागर - भूमध्य तथा काला सागर के बीच एक संक्रमणकालीन क्षेत्र बनाती है।
- काला सागर के सीमावर्ती देश हैं: रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, तुर्की, बुल्गारिया और रोमानिया।
- काला सागर के जल में ऑक्सीजन की भारी कमी है।।
- काला सागर में रूस की रुचि:
- काला सागर क्षेत्र का अद्वितीय भूगोल रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करता है।
- सबसे पहले, यह पूरे क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक स्थल है।
- काला सागर तक पहुँच सभी तटवर्ती और पड़ोसी राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है तथा जिससे आसन्न क्षेत्रों में शक्ति संवर्द्धन सुनिश्चित करता है।
- दूसरे, यह क्षेत्र माल और ऊर्जा के लिये एक महत्त्वपूर्ण पारगमन गलियारा है।
- तीसरा, काला सागर क्षेत्र सांस्कृतिक और जातीय विविधता में समृद्ध है तथा भौगोलिक निकटता के कारण रूस के साथ घनिष्ठ ऐतिहासिक संबंध साझा करता है।
- सबसे पहले, यह पूरे क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक स्थल है।
- रूस ने 2014 में यूक्रेन के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रायद्वीप क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया, जो इस सदी में एक संप्रभु राज्य के सबसे ज़्यादा क्षेत्र पर कब्ज़ा है।
- अधिकांश देश इस कब्ज़े को मान्यता नहीं देते हैं और यूक्रेन का समर्थन करते हैं।
- नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की गई थी, जिससे इस मुद्दे पर पुराने सहयोगी रूस का समर्थन किया गया था।
- काला सागर क्षेत्र का अद्वितीय भूगोल रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करता है।
- काला सागर में अमेरिका की रुचि:
- काला सागर बुल्गारिया, जॉर्जिया, रोमानिया, रूस, तुर्की और यूक्रेन से घिरा है। ये सभी नाटो देश हैं।
- नाटो देशों और रूस के बीच इस टकराव के कारण काला सागर सामरिक महत्त्व का क्षेत्र है और एक संभावित समुद्री फ्लैशपॉइंट है।
- नाटो के सदस्य तुर्की, ग्रीस, रोमानिया और बुल्गारिया काला सागर से प्रत्यक्ष रूप से संबद्ध हैं, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य नाटो सहयोगियों के युद्धपोतों ने भी यूक्रेन के समर्थन हेतु लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
- रूस ने अक्सर क्रीमिया के पास नाटो युद्धपोतों की आवाजाही को इस क्षेत्र को अस्थिर करने वाला कदम बताया है।