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मानसून-पूर्व फसल

  • 01 Apr 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

मानसून-पूर्व फसल, भारत में शस्य प्रतिरूप

मेन्स के लिये:

भारतीय फसल 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के चलते कर्नाटक सहित अनेक राज्यों में मानसून-पूर्व फसल (Pre-monsoon Crop) के प्रभावित होने की संभावना है। 

मुख्य बिंदु:

  • सामान्यतः मानसून-पूर्व फसलों की बुवाई का कार्य अप्रैल के प्रथम सप्ताह से प्रारंभ हो जाता है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार कुछ स्थानों पर बुवाई का कार्य पूरा कर लिया गया है, लेकिन यह कई स्थानों पर शुरू ही नहीं किया गया है। 
  • लॉकडाउन के चलते लोग घरों के अंदर रुके हुए हैं, इससे श्रम, बीज एवं उर्वरकों की आपूर्ति में कमी आई है।
  • उत्तरी कर्नाटक के सिंचित क्षेत्रों में धान की बेल्ट में किसान फसल की कटाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन किसानों को श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
  • यद्यपि ज़िला प्रशासन का कहना है कि वह बीज और उर्वरकों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये डीलरों के साथ लगातार काम कर रहा है। 

कर्नाटक राज्य में फसल उत्पादन:

  • कर्नाटक राज्य में मुख्यत: रागी तथा मक्का (खरीफ फसल) का उत्पादन किया जाता है तथा रागी उत्पादन में यह अग्रणी राज्य है। राज्य में मानसून पूर्व मौसम में हरे चने, काले चने तथा तिल की खेती मैसूर, चामराजनगर, मांड्या तथा हासन ज़िलों में की जाती है। 

मानसून पूर्व फसलों का महत्त्व:

  • ग्रीष्मकाल-पूर्व की फसलों की कटाई के बाद पौधों के ठूँठों (Stubs) को खेत में छोड़ दिया जाता है इससे मानसून के समय जब किसान खेत तैयार करते हैं तो इन पौधों के ठूँठ हरी खाद में बदल जाते हैं, जो मानसून फसलों के लिये लाभप्रद होते हैं। यद्यपि मानसून पूर्व फसल का कर्नाटक राज्य के कुल कृषि उत्पादन में 10% से कम योगदान है परंतु फिर भी इसका बहुत अधिक महत्त्व है। 
  • मानसून पूर्व की फसल वर्षा सिंचित क्षेत्रों (rain-fed regions) में शुरुआती बारिश पर निर्भर करती है, लेकिन जिन किसानों के पास अपनी सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध है वे किसान बारिश का इंतजार नहीं करते हैं।
  • कृषि में उत्पादन में उचित समय पर कृषि क्रियाओं यथा- बुवाई, जुताई, तथा कटाई का बहुत अधिक महत्त्व होता है। यदि बुवाई में देरी होती है, तो इससे उपज और समग्र उत्पादकता को नुकसान होता है।

ग्रीष्म ऋतु: 

  • मार्च में सूर्य के कर्क रेखा की ओर आभासी बढ़त के साथ ही उत्तरी भारत में तापमान बढ़ने लगता है। अप्रैल, मई व जून में उत्तरी भारत में स्पष्ट रूप से ग्रीष्म ऋतु होती हैै। भारत के अधिकांश भागों में तापमान 30° से 32° सेल्सियस तक पाया जाता है। मार्च में दक्कन पठार पर दिन का अधिकतम तापमान 38° सेल्सियस हो जाता है, जबकि अप्रैल में गुजरात और मध्य प्रदेश में यह तापमान 38° से 43° सेल्सियस के बीच पाया जाता है। मई में ताप पेटी और अधिक उत्तर में खिसक जाती है, जिससे देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में 48° सेल्सियस के आसपास तापमान का होना असामान्य बात नहीं है। 
  • दक्षिणी भारत में ग्रीष्म ऋतु मृदु होती है तथा उत्तरी भारत जैसी प्रखर नहीं होती। दक्षिणी भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण यहाँ के तापमान को उत्तरी भारत में प्रचलित तापमानों से नीचे रखती है। अतः दक्षिण में तापमान 26° से 32° सेल्सियस के बीच रहता है।

भारत में शस्य प्रतिरूप :

  • कालिक संदर्भ में भारत में रबी, खरीफ और जायद तीन शस्य ऋतुएँ हैं ।
  • रबी फसल:
    • इनको शीत ऋतु में अक्तूबर से दिसंबर के मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों आदि मुख्य रबी की फसलें हैं।
    • ये फसलें देश के विस्तृत भाग में बोई जाती हैं। उत्तर और उत्तरी पश्चिमी राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में गेहूँ और अन्य रबी फ़सलों के उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण राज्य हैं।
    • शीत ऋतु में शीतोष्ण पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा इन फ़सलों के अधिक उत्पादन में सहायक होती है।
  • खरीफ फसल:
    • देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ बोई जाती हैं और सितंबर-अक्तूबर में काट ली जाती हैं। इस ऋतु में बोई जाने वाली मुख्य फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुर,अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन शामिल हैं।
  • ज़ायद फसल:
    • रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसल को ज़ायद कहा जाता है। इस ऋतु में मुख्यत: तरबूज, खरबूज, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है।

स्रोत: द स्रोत

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