भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल
प्रिलिम्स के लिये:भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल, टाइगर ट्रायम्फ, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, मिशन 500' पहल, TRUST, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका संबंध, बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग, चुनौतियाँ और आगे की राह |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 21वीं सदी के अमेरिका-इंडिया कॉम्पैक्ट (सैन्य साझेदारी, त्वरणित वाणिज्य और प्रौद्योगिकी हेतु अवसरों का उत्प्रेरण) का शुभारंभ किया गया।
भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- रक्षा सहयोग: अमेरिका-भारत प्रमुख रक्षा साझेदारी (2025-2035) के लिये एक नवीन 10-वर्षीय फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किये जाएंगे, जिससे रक्षा बिक्री का विस्तार होगा और जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों का सह-उत्पादन होगा तथा टाइगर ट्रायम्फ जैसे संयुक्त अभ्यासों को परिवर्द्धित किया जाएगा।
- इस पहल में निर्बाध रक्षा व्यापार के लिये पारस्परिक रक्षा खरीद (RDP) समझौता और AI-संचालित स्वायत्त रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिये स्वायत्त प्रणाली उद्योग गठबंधन (ASIA) शामिल हैं।
- व्यापार और निवेश विस्तार: कॉम्पैक्ट पहल के तहत, द्विपक्षीय व्यापार को वर्ष 2030 तक 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने के लिये 'मिशन 500' पहल शुरू की गई, जिसे द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) के लिये वार्ता द्वारा समर्थित किया गया।
- इसके अंतर्गत किये जाने वाले प्रयासों में कृषि वस्तुओं और औद्योगिक निर्यात के लिये बाज़ार पहुँच में विस्तार के साथ व्यापार बाधाओं जैसे पेय पदार्थों, वाहनों और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) उत्पादों पर टैरिफ में कटौती को कम करना शामिल है।
- ऊर्जा सुरक्षा: अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) में भारत की सदस्यता के समर्थन के साथ परमाणु, गैस और तेल के क्षेत्र में सहयोग में विस्तार होगा।
- प्रौद्योगिकी उन्नति: क्रांतिक और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (iCET) को TRUST (रणनीतिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर संबंधों में परिवर्तन) के रूप में पुनः ब्रांड किया गया, जिसमें अर्द्धचालक, क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- इसके अंतर्गत किये जाने वाले प्रयासों से लिथियम और दुर्लभ मृदा तत्त्व पुनर्प्राप्ति परियोजनाओं सहित क्रांतिक खनिज आपूर्ति शृंखलाओं का विस्तार होगा।
- NASA-ISRO पहलों के माध्यम से नागरिक अंतरिक्ष सहयोग में विस्तार होगा, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिये भारतीय अंतरिक्ष यात्री का मिशन और NISAR का प्रक्षेपण शामिल है।
- बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग: इस पहल से क्वाड साझेदारी का सुदृढ़ीकरण होगा, आतंकवाद-रोधी प्रयासों में सुधार होगा, हिंद-प्रशांत सुरक्षा और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाओं में विस्तार होगा।
- लोगों के बीच सहभागिता: कॉम्पैक्ट पहल से शैक्षणिक और कार्यबल गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा, विधिक प्रवासन का सरलीकरण होगा तथा मानव तस्करी और अंतरराष्ट्रीय अपराध के विरुद्ध विधि प्रवर्तन सहयोग का सुदृढ़ीकरण होगा।
भारत-अमेरिका संबंध
- व्यापार और निवेश: भारत-अमेरिका संबंधो का विकास "वैश्विक रणनीतिक साझेदारी" के रूप में हो गया है।
- वर्ष 2024 में, अमेरिका के साथ भारत का कुल माल व्यापार 129.2 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। भारत ने अमेरिका में 87.4 बिलियन अमरीकी डॉलर का निर्यात किया, जबकि अमेरिका से आयात 41.8 बिलियन अमरीकी डॉलर था। वर्ष 2024 में भारत का अमेरिका के साथ 45.7 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार अधिशेष रहा।
- वर्ष 2000 से वर्ष 2024 की अवधि में 65.19 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के साथ अमेरिका भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत और अमेरिका संयुक्त राष्ट्र, G-20, दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ, विश्व व्यापार संगठन, I2U2 समूह और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) जैसे बहुपक्षीय मंचों में सहयोग करते हैं।
- रक्षा सहयोग: वर्ष 2005 के रक्षा ढाँचे से भारत-अमेरिका रक्षा संबंधो का सुदृढ़ीकरण हुआ, जिसे वर्ष 2015 में नवीनीकृत किया गया।
- भारत अमेरिका का एक प्रमुख रक्षा साझेदार है, जिसे सामरिक व्यापार प्राधिकरण-1 (STA‑1) का दर्जा प्राप्त है (जिससे अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकियों के सरल अभिगम की सुविधा मिलती है)।
- संयुक्त अभ्यास: वज्र प्रहार (सेना), साल्वेक्स (भारतीय नौसेना), कोप इंडिया (वायु सेना) और मालाबार अभ्यास (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का चतुर्भुज नौसैनिक अभ्यास)।
- लोगों के बीच संबंध: 3.5 मिलियन भारतीय अमेरिकी समुदाय अमेरिकी समाज में प्रमुख भूमिका निभाने के साथ भारत-अमेरिका संबंधों को मज़बूत बनाने में सहायक है।
भारत-अमेरिका संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- टैरिफ विवाद: राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत के "उच्च टैरिफ" (उच्च आयात शुल्क) की आलोचना करते हुए "पारस्परिक टैरिफ" (किसी अन्य देश द्वारा टैरिफ की प्रतिक्रिया में लगाया जाने वाला समान टैरिफ) की अपनी नीति पर बल दिया, जिससे भारतीय निर्यातकों की लागत बढ़ सकती है। इसके अलावा, मुक्त व्यापार समझौता न होने से टैरिफ में वृद्धि के साथ व्यापार प्रतिबंधित होता है।
- अमेरिका के साथ भारत का वर्तमान व्यापार अधिशेष कम हो सकता है क्योंकि यह 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार लक्ष्य तक पहुँचने हेतु आयात बढ़ा रहा है, जिस क्रम में संभवतः चुनिंदा टैरिफ कटौतियों से भारत की व्यापक आर्थिक दक्षता की तुलना में अमेरिकी हितों को प्राथमिकता मिलेगी।
- आव्रजन नीतियाँ: भारत ने 2,20,000-7,00,000 भारतीय आप्रवासियों (जिनके पास आवश्यक दस्तावेज़ नहीं हैं) की वापसी की सुविधा देने पर सहमति व्यक्त की, जिसे ट्रंप के सख्त आव्रजन दृष्टिकोण के अनुरूप देखा गया।
- IT पेशेवरों के लिये H-1B वीज़ा पर भारत की निर्भरता के बावजूद इस संदर्भ में कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं जताई गई, जिससे सिलिकॉन वैली और ट्रंप की राष्ट्रवादी नीतियों के बीच के तनाव पर प्रकाश पड़ता है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: रक्षा संबंधों में गहनता के बावजूद AI, ड्रोन और मिसाइल प्रौद्योगिकी पर अमेरिकी प्रतिबंध से भारत की उन्नत रक्षा प्रणालियों तक पहुँच में बाधा आ सकती है।
- डेटा स्थानीयकरण: अमेरिका द्वारा भारत के डेटा संप्रभुता कानूनों का विरोध किया जाता है। इनका तर्क है कि इससे अमेरिकी तकनीकी फर्मों को नुकसान होगा।
- भू-राजनीतिक और बहुपक्षीय मतभेद: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये अमेरिकी समर्थन के बावजूद, वैश्विक शासन में मतभेद बने हुए हैं। रूस क्षेत्र में युद्ध समाप्त करने के क्रम में अमेरिका, भारत से रूस के साथ अपने संबंधों का लाभ उठाने का आग्रह कर रहा है जबकि भारत इसमें तटस्थ दृष्टिकोण अपना रहा है।
- रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक रक्षा एवं ऊर्जा संबंध, मास्को को अलग-थलग करने के अमेरिकी प्रयासों के साथ टकराव की स्थिति में हैं।
आगे की राह
- BTA: व्यापार संबंधी तनाव को कम करने के लिये BTA को अंतिम रूप देना, सेमीकंडक्टर और फार्मास्यूटिकल्स में आपूर्ति शृंखला एकीकरण में सुधार करना तथा निवेश आकर्षित करने के लिये अमेरिकी मानदंडों के साथ नियामक मानकों को सुसंगत बनाना आवश्यक है।
- कार्यबल गतिशीलता: भारत को पेशेवरों एवं तकनीकी प्रतिभाओं को समर्थन देने के क्रम में H-1B कोटा के साथ वीज़ा प्रसंस्करण को सुलभ बनाने पर बल देना चाहिये।
- डेटा गवर्नेंस: भारत को डेटा स्थानीयकरण मानदंडों को आसान बनाना चाहिये। भारत में अमेरिकी तकनीकी निवेश को सुविधाजनक बनाने के साथ डिजिटल गवर्नेंस में विश्वास बढ़ाने के लिये संयुक्त साइबर सुरक्षा ढाँचा विकसित करना चाहिये।
- कूटनीतिक जुड़ाव: वैश्विक शासन संबंधी मतभेदों को दूर करने एवं आर्थिक तथा सुरक्षा प्रभाव को बढ़ावा देने के लिये ग्लोबल साउथ में भारत की रणनीतिक भूमिका का लाभ उठाते हुए क्वाड, IPEF जैसे बहुपक्षीय मंचों में अमेरिका-भारत समन्वय को मज़बूत बनाना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने में भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल के महत्त्व पर चर्चा कीजिये |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:प्रश्न . निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुक्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं? (a) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |
UGC विनियम प्रारूप 2025
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शिक्षा नीति, समवर्ती सूची, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मेन्स के लिये:उच्च शिक्षा नीतियाँ, शिक्षा प्रशासन, शिक्षा में समानता |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
भारत के छह राज्यों ने संघीय स्वायत्तता और शैक्षिक मानकों पर चिंताओं का हवाला देते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षकों तथा अकादमिक स्टाफ की नियुक्ति एवं पदोन्नति हेतु न्यूनतम योग्यता व उच्च शिक्षा के मानकों के अनुरक्षण के उपाय) विनियम प्रारूप 2025 को वापस लेने की मांग की।
UGC विनियम 2025 के प्रारूप में कौन-से प्रमुख प्रावधान किये गए हैं?
- प्रारूप में कुलपतियों (VC) की नियुक्ति में राज्य सरकारों की भूमिका को समाप्त कर इनकी चयन प्रक्रिया को केंद्रीकृत किया गया है।
- अनुपालन में विफल रहने वाले विश्वविद्यालयों को UGC योजनाओं से वंचित किया जा सकता है तथा वित्त पोषण से वंचित किया जा सकता है।
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प्रारूप में कुलपति की पदावधि को तीन वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष करने का प्रस्ताव किया गया है।
- इसके अंतर्गत लोक प्रशासन और लोक नीति में न्यूनतम 10 वर्ष के वरिष्ठ स्तर के अनुभव वाले गैर-शैक्षणिक व्यक्तियों की नियुक्ति की अनुमति दी गई है।
- मसौदे में स्नातक पाठ्यक्रमों के लिये प्रवेश परीक्षा अनिवार्य करने का प्रस्ताव है।
- यह मसौदा अकादमिक-उद्योग सहयोग को मज़बूत करता है, अकादमिक प्रकाशन में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देता है, पारदर्शिता बढ़ाता है और शिक्षण भूमिकाओं में खिलाड़ियों को शामिल करता है।
- यह मसौदा अकादमिक-उद्योग की पारदर्शिता, शैक्षणिक प्रकाशनों में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को प्रोत्साहित तथा उद्योग-अकादमिक सहयोग को सुदृढ़ करता है, तथा शिक्षण पदों पर एथलीटों को शामिल करता है।
UGC के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- उत्पत्ति: राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली स्थापित करने का भारत का पहला प्रयास 1944 की सार्जेंट रिपोर्ट के साथ शुरू हुआ, जिसमें विश्वविद्यालय अनुदान समिति बनाने की सिफारिश की गई थी।
- वर्ष 1945 में गठित इस समिति ने शुरुआत में अलीगढ़, बनारस और दिल्ली विश्वविद्यालयों को विनियमित किया। वर्ष 1947 तक इसका दायरा सभी मौजूदा विश्वविद्यालयों तक विस्तृत हो गया।
- वर्ष 1948 में, डॉ. एस. राधाकृष्णन के नेतृत्व में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने ब्रिटेन के मॉडल के आधार पर इसके पुनर्गठन की सिफारिश की।
- वर्ष 1952 में, केंद्र सरकार ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये अनुदान की देखरेख के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को नामित किया।
- वर्ष 1953 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद द्वारा औपचारिक रूप से इसका उद्घाटन किया गया, यह वर्ष 1956 में एक वैधानिक निकाय बन गया। UGC का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- संरचना: UGC में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और 10 अन्य सदस्य होते हैं। केंद्र सरकार UGC के सभी सदस्यों की नियुक्ति करती है।
- प्रमुख कार्य: विश्वविद्यालयों की वित्तीय आवश्यकताओं का आकलन, रखरखाव, विकास तथा अन्य उद्देश्यों के लिये अनुदान आवंटित और वितरित करना।
- उच्च शिक्षा में सुधार की सिफारिश करता है तथा कार्यान्वयन में सहायता करता है।
भारत में शिक्षा का विनियमन
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शिक्षा को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया जिससे स्थानीय शिक्षा प्रशासन में राज्य की स्वायत्तता को संरक्षित करते हुए केंद्र सरकार को नीति निर्माण में अधिक भागीदारी की अनुमति मिली।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 जैसी नीतियाँ और UGC एवं अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) जैसी संस्थाओं की भूमिका, समवर्ती सूची से प्रेरित है।
- 7वीं अनुसूची में शिक्षा:
संघ सूची (सूची I) |
राज्य सूची (सूची II) |
समवर्ती सूची (सूची III) |
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शिक्षा, जिसमें तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा, विश्वविद्यालय और व्यावसायिक प्रशिक्षण शामिल हैं (इस पर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं)। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों में से कौन से प्रावधान भारत की शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
(b) केवल 3, 4 और 5 (c) केवल 1, 2 और 5 (d) 1, 2, 3, 4 और 5उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |
NCST का 22वाँ स्थापना दिवस
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, ST से संबंधित प्रावधान मेन्स के लिये:जनजातीय कल्याण में NCST का महत्त्व, अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने अपना 22वाँ स्थापना दिवस (19 फरवरी) मनाया, जिसमें अनुसूचित जनजातियों (ST) के अधिकारों की रक्षा में आयोग की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- उत्पत्ति और विकास: वर्ष 1992 में अनुसूचित जातियों (SC) और ST के लिये एक वैधानिक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गई थी। बाद में, ST की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिये, 19 फरवरी, 2004 को 89वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 338 में संशोधन करके तथा संविधान में अनुच्छेद 338A जोड़कर NCST की स्थापना की गई।
- संरचना और कार्यकाल:
- संरचना: NCST में एक अध्यक्ष (कैबिनेट मंत्री स्तर), एक उपाध्यक्ष (राज्य मंत्री स्तर) और तीन सदस्य (सचिव स्तर) होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- कम-से-कम एक अन्य सदस्य महिला होनी चाहिये।
- कार्यकाल और पुनर्नियुक्ति: सभी सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। किसी सदस्य को अधिकतम दो कार्यकाल के लिये पुनर्नियुक्त किया जा सकता है।
- प्रमुख कार्य: अनुच्छेद 338A(5) के तहत, NCST ST के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों की निगरानी, जनजातीय अधिकारों के मुद्दों को संबोधित तथा सामाजिक-आर्थिक विकास पर सलाह प्रदान करता है।
- जनजातीय कल्याण पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपता है, नीतिगत उपाय सुझाता है, तथा अनुसूचित जनजाति कल्याण कार्यक्रमों की देखरेख करता है।
- इसके अतिरिक्त, NCST (अन्य कार्यों का विनिर्देश) नियम, 2005 के अंतर्गत, आयोग आदिवासियों के लिये भूमि स्वामित्त्व अधिकारों (वन अधिकार अधिनियम, 2006) की सिफारिश करता है, तथा वैकल्पिक आजीविका रणनीतियों का सुझाव प्रदान करता है।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) के पूर्ण कार्यान्वयन का समर्थन, तथा स्थानांतरित खेती को कम करने तथा समाप्त करने के समाधान की मांग की।
भारत में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित प्रावधान कौन-से हैं?
और पढ़ें.. भारत में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित प्रावधान
NCST से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- प्रशासनिक और वित्तीय बाधाएँ: NCST जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, जिसमें वित्तीय और परिचालन स्वायत्तता का अभाव है, जिससे बजट तथा संचालन में इसकी स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- संविधान के अनुच्छेद 338A(9) में यह प्रावधान है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर NCST से परामर्श करेंगी।
- हालाँकि, अनेक राज्य और विभाग यह परामर्श करने में विफल रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी जनजातीय कल्याण नीतियों का निर्माण होता है जिनमें आयोग की भूमिका नहीं होती है।
- संविधान के अनुच्छेद 338A(9) में यह प्रावधान है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर NCST से परामर्श करेंगी।
- जनशक्ति का अभाव: NCST जनजातीय कल्याण योजनाओं की समीक्षा करता है, लेकिन सीमित कर्मचारियों और खराब समन्वय के कारण इसकी प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न होता है।
- ऐतिहासिक दृष्टि से, NCST में प्रमुख पदों जैसे- अध्यक्ष और सदस्यों की लंबे समय से रिक्तियाँ बनी हुई हैं।
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जनशक्ति के अभाव और नौकरशाही देरी के कारण समाधान में लंबा समय लग जाता है, जिससे कई मामले वर्षों तक लंबित रह जाते हैं और जनता का विश्वास प्रभावित होता है।
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कमज़ोर प्रवर्तन शक्तियाँ: NCST की सिफारिशें आबद्धकर नहीं हैं, जिससे अनुसूचित जनजातियों के लिये सुरक्षात्मक उपायों का क्रियान्वन करने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
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जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार, भूमि के अन्यसंक्रामण (Alienation) और आरक्षण लाभ से वंचित करने के संबंध में अनेक याचिकाएँ प्राप्त होने के बावजूद NCST के पास स्वयं के निर्देशों का कार्यान्वन करने की शक्ति का अभाव है।
- इससे इसका (आयोग) का प्राधिकार प्रभावित होता है और सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही कम होती है।
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- जागरूकता और जनसंपर्क का अभाव: अनेक जनजातीय समूह अपने अधिकारों और NCST के अस्तित्व से अनभिज्ञ हैं जो दर्शाता है कि आयोग की मूल स्तर पर मज़बूत उपस्थिति का अभाव है।
आगे की राह
- विधिक अधिदेश का सुदृढ़ीकरण: NCST को सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के विभिन्न प्रावधानों के कार्यान्वयन के संदर्भ में केंद्रीय सूचना आयोग को दी गई शक्तियों की तर्ज पर दंड अधिरोपित किये जाने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिये।
- क्षमता निर्माण: NCST में स्टाफ की कमी से इसके संचालन को अप्रभावित रखने हेतु इसके कर्मियों के लिये एक अलग कैडर बनाया जाना चाहिये।
- नीतियों पर अनिवार्य परामर्श: सरकार को अनुच्छेद 338A(9) का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये, जिससे मंत्रालयों और राज्यों के लिये सभी जनजातीय कल्याण नीतियों पर NCST से परामर्श करना अनिवार्य हो जाए।
- शिकायतें: NCST के पास हिंसा, विस्थापन और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर कार्रवाई के लिये एक समर्पित शिकायत निवारण प्रकोष्ठ होना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अधिदेश क्या है? जनजातीय अधिकारों की रक्षा में इसकी प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022) (a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |