भारतीय राजव्यवस्था
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 पर निर्णय
- 29 Aug 2024
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया। न्यायालय ने जिस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर विचार किया, वह यह था कि अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्यों को धमकाने या उनका अपमान करने के कृत्य स्वतः ही अधिनियम के उल्लंघन हैं या नहीं।
- यह निर्णय एक YouTube चैनल के संपादक को अग्रिम जमानत देने के संदर्भ में आया, जिस पर अधिनियम के तहत आरोप लगे थे।
SC/ST अधिनियम, 1989 के तहत अपमान पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय है?
- मामले की पृष्ठभूमि: यह मामला इन आरोपों पर आधारित था कि संपादक (YouTuber) ने विधानसभा के एक सदस्य (MLA) के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी, जो SC समुदाय से संबंधित है।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- अधिनियम का दायरा: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि SC/ST के सदस्यों को निशाना बनाकर किया गया अपमान या धमकी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत स्वतः ही अपराध नहीं माना जाता।
- यदि अपमान या धमकी पीड़ित की जातिगत पहचान से विशेष रूप से जुड़ा है तो ही अधिनियम लागू किया जाना चाहिये।
- अधिनियम की धारा 3(1)(r) के तहत न्यायालय ने 'अपमान करने के इरादे' की व्याख्या पीड़ित की जातिगत पहचान से निकटता से जुड़े होने के रूप में की।
- केवल पीड़ित की SC/ST स्थिति जानना पर्याप्त नहीं है; अपमान का उद्देश्य जाति के आधार पर अपमानित करना होना चाहिये।
- यदि अपमान या धमकी पीड़ित की जातिगत पहचान से विशेष रूप से जुड़ा है तो ही अधिनियम लागू किया जाना चाहिये।
- धारा 18 पर स्पष्टीकरण: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 18, जो परंपरागत रूप से अग्रिम जमानत को प्रतिबंधित करती है, ऐसी जमानत देने पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाती।
- न्यायालयों को धारा 18 लागू करने से पहले यह निर्धारित करने के लिये प्रारंभिक जाँच करनी चाहिये कि क्या आरोप अधिनियम के तहत अपराध के मानदंडों को पूरा करते हैं।
- न्यायालय ने संपादक को अग्रिम जमानत दे दी, क्योंकि प्रथम दृष्टया ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला कि उसके द्वारा की गई टिप्पणी विधायक की जातिगत पहचान के कारण उन्हें अपमानित करने के इरादे से की गई थी।
- निष्कर्ष के आधार पर न्यायालय ने यह कहा कि संपादक की टिप्पणियों का उद्देश्य विधायक की अनुसूचित जाति की स्थिति के आधार पर अपमान करना नहीं था।
- अधिनियम का दायरा: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि SC/ST के सदस्यों को निशाना बनाकर किया गया अपमान या धमकी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत स्वतः ही अपराध नहीं माना जाता।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 क्या है?
- परिचय: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जिसे SC/ST अधिनियम 1989 के रूप में भी जाना जाता है, एससी और एसटी के सदस्यों को जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा से बचाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 17 में निहित, इस अधिनियम का उद्देश्य इन हाशिये पर स्थित समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और पिछले कानूनों की अपर्याप्तता को दूर करना है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: यह अधिनियम अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 और नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 पर आधारित है, जो जाति के आधार पर अस्पृश्यता तथा भेदभाव को समाप्त करने के लिये स्थापित किये गए थे।
- नियम और कार्यान्वयन: केंद्र सरकार अधिनियम के कार्यान्वयन के लिये नियम बनाने हेतु अधिकृत है, जबकि राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश केंद्रीय सहायता से इसे लागू करते हैं।
- मुख्य प्रावधान: SC/ST अधिनियम सदस्यों के खिलाफ शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और सामाजिक भेदभाव सहित विशिष्ट अपराधों को परिभाषित करता है। यह इन कृत्यों को "अत्याचार" के रूप में मान्यता देता है और अपराधियों के लिये कठोर दंड निर्धारित करता है।
- अधिनियम में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार करने के दोषी पाए जाने वालों के लिये कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। इसमें भारतीय दंड संहिता 1860 (जिसे अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) के तहत दिये गए दंड से अधिक दंड शामिल हैं।
- अग्रिम जमानत प्रावधान, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 की धारा 18 दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (जिसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) की धारा 438 के कार्यान्वयन पर रोक लगाती है, जो अग्रिम जमानत का प्रावधान करती है।
- अधिनियम में त्वरित सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना और अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में राज्य स्तर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संरक्षण प्रकोष्ठों की स्थापना का आदेश दिया गया है।
- अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच पुलिस उपाधीक्षक (DSP) के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं की जानी चाहिये और निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी की जानी चाहिये।
- इस अधिनियम में पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने का प्रावधान है, जिसमें वित्तीय मुआवज़ा, कानूनी सहायता और सहायक सेवाएँ शामिल हैं।
- बहिष्करण: यह अधिनियम अनुचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच हुए अपराधों को कवर नहीं करता है; इनमें से कोई भी एक-दूसरे के खिलाफ अधिनियम को लागू नहीं कर सकता है।
- वर्तमान संशोधन:
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015: वर्ष 2015 के संशोधन का उद्देश्य अधिक कठोर प्रावधानों को शामिल करके और अधिनियम के दायरे का विस्तार करके अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को दी जाने वाली सुरक्षा को मज़बूत करना था।
- जूते की माला पहनाना, मैला ढोने के लिये मजबूर करना और सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार तथा किसी भी तरह का सामाजिक बहिष्कार करना जैसे अपराधों की नई श्रेणियों को अब अपराध माना जाता है।
- यौन शोषण और बिना सहमति के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को जानबूझकर छूना अपराध माना जाता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को देवदासी बनाने जैसी प्रथाएँ स्पष्ट रूप से गैरकानूनी हैं।
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कर्तव्यों की उपेक्षा करने वाले लोक सेवकों को कारावास का सामना करना पड़ता है।
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018: किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंज़ूरी की आवश्यकता को हटा दिया गया है। बिना पूर्व मंज़ूरी के तत्काल गिरफ्तारी की अनुमति दी गई है।
SC और ST अधिनियम, 1989 की कमियाँ क्या हैं?
- विशेष न्यायालयों के लिये अपर्याप्त संसाधन: अत्याचार के मामलों को निपटाने हेतु नामित विशेष न्यायालयों में अक्सर पर्याप्त संसाधनों और बुनियादी ढाँचे का अभाव होता है।
- इनमें से कई अदालतें SC/ST अधिनियम के दायरे से बाहर के मामलों को संभालती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अत्याचार के मामलों का लंबित होना और उनका धीमी गति से निपटारा होता है।
- अपर्याप्त पुनर्वास प्रावधान: अधिनियम पीड़ितों के पुनर्वास पर सीमित विवरण प्रदान करता है तथा अस्पष्ट तरीके से केवल सामाजिक और आर्थिक सहायता पर ही ध्यान केंद्रित करता है।
- पीड़ितों को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कठिनाइयों सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पीड़ितों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में सहायता करने के लिये अधिक व्यापक पुनर्वास उपायों की आवश्यकता है।
- जागरूकता का अभाव: पीड़ितों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों सहित लाभार्थियों में अक्सर अधिनियम के प्रावधानों के बारे में जागरूकता का अभाव होता है।
- इस कानून के सख्त प्रावधानों, जिसमें बिना वारंट के गिरफ्तारी और गैर-ज़मानती अपराध शामिल हैं, के कारण दुरुपयोग के आरोप लगे हैं। आलोचकों का तर्क है कि कानून के व्यापक दायरे के कारण गैर-SC/ST पृष्ठभूमि के व्यक्तियों पर झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं और उन्हें परेशान किया जा सकता है।
- कवर किये गए अपराधों का सीमित दायरा: कुछ अपराध, जैसे ब्लैकमेलिंग, जिसके कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बीच अत्याचार होते हैं, इस अधिनियम के अंतर्गत स्पष्ट रूप से कवर नहीं किये गए हैं।
- अधिनियम की अत्याचार की परिभाषा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों द्वारा सामना किये जाने वाले सभी प्रकार के दुर्व्यवहार शामिल नहीं हो सकते हैं, इसलिये ऐसे अपराधों को शामिल करने के लिये संशोधन की आवश्यकता है।
SC और ST अधिनियम, 1989 के संबंध में न्यायिक अंतर्दृष्टि
- कनुभाई एम. परमार बनाम गुजरात राज्य, 2000: गुजरात उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि यह अधिनियम अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के बीच किये गए अपराधों पर लागू नहीं होता है।
- तर्क यह है कि इस अधिनियम का उद्देश्य अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों को उनके समुदाय से बाहर के व्यक्तियों द्वारा किये गए अत्याचारों से बचाना है।
- राजमल बनाम रतन सिंह, 1988: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि SC एवं ST अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालय, विशेष रूप से अधिनियम से संबंधित अपराधों की सुनवाई के लिये नामित हैं।
- फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि इन अदालतों को नियमित मजिस्ट्रेट या सत्र अदालतों के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिये।
- अरुमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का अपमान करना SC और ST अधिनियम के तहत अपराध है।
- सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत प्रावधानों का बहिष्कार पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
- इसका अर्थ यह है कि भले ही धारा 18 अग्रिम जमानत पर रोक लगाती हो, फिर भी अदालत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत दे सकती है, जहाँ अत्याचार या उल्लंघन के आरोप झूठे प्रतीत होते हों।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. SC/ST अधिनियम, 1989 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिये। हाल के संशोधन और न्यायिक निर्णय इस कानून के प्रवर्तन और व्याख्या को किस प्रकार आकार देते हैं? |
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