शासन व्यवस्था
शिक्षा प्रणाली में मदरसा की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR), सर्वोच्च न्यायालय, शिक्षा का अधिकार, खुरासान, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004, धर्मनिरपेक्षता, संविधान, मूल अधिकार, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT)। मेन्स के लिये:शिक्षा के अधिकार का महत्त्व, शिक्षा प्रणाली में मदरसों की भूमिका। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया है कि मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में व्यापकता का अभाव है। इस प्रकार यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के आदेशों का उल्लंघन करता है।
- आयोग का तर्क है कि इन संस्थानों में प्रयुक्त पाठ्य पुस्तकें इस्लाम की सैद्धांतिक प्रधानता पर केंद्रित शिक्षाओं का प्रचार करती हैं।
- मदरसा शब्द अरबी भाषा से लिया गया है और इसका तात्पर्य मुख्य रूप से इस्लामी शिक्षाओं से संबंधित शैक्षणिक संस्थाओं से है।
मदरसों से संबंधित हालिया घटनाक्रम क्या हैं?
- सर्वोच्च न्यायालय (SC) का अंतरिम फैसला:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि RTE (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम की धारा 1(5) के अनुसार “इस अधिनियम में निहित कोई भी प्रावधान मदरसा, वैदिक पाठशालाओं और मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होगा।”
- किसी विशेष समुदाय से संबंधित संस्था को विनियमित करने वाला कानून स्वतः ही धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के उल्लंघन के तहत शामिल नहीं होता है।
- उत्तर प्रदेश:
- मार्च, 2024 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को “असंवैधानिक” घोषित कर दिया।
- न्यायालय का निर्णय इस आधार पर था कि यह अधिनियम संविधान में निहित "धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत" का उल्लंघन करता है और अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) के तहत गारंटीकृत मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- NCPCR ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली अपीलों के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय में अपनी दलील दी।
- NCPCR ने सिफारिश की है कि सभी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूलों में दाखिला दिया जाए।
- असम:
- वर्ष 2023 में असम सरकार ने राज्य प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय के तहत सामान्य स्कूलों में इनके परिवर्तन के बाद 1,281 मदरसों को "मिडिल इंग्लिश" (ME) स्कूलों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया।
- इस पहल का उद्देश्य राज्य की शिक्षा प्रणाली में एकरूपता और समावेशिता को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2023 में असम सरकार ने राज्य प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय के तहत सामान्य स्कूलों में इनके परिवर्तन के बाद 1,281 मदरसों को "मिडिल इंग्लिश" (ME) स्कूलों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004
- इस अधिनियम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों (इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों) के कार्यप्रणाली को विनियमित और संचालित करना था।
- इसने उत्तर प्रदेश में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन के लिये एक रूपरेखा प्रदान की।
- इस अधिनियम के तहत राज्य में मदरसों की गतिविधियों की देखरेख और पर्यवेक्षण के लिये उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई।
भारत में मदरसों की स्थिति क्या है?
भारत में मदरसों की संख्या:
- वर्ष 2018-19 तक भारत में कुल 24,010 मदरसे थे, जिनमें से 19,132 को मान्यता प्राप्त थी, जबकि 4,878 गैर-मान्यता प्राप्त थे।
- मान्यता प्राप्त मदरसे राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड से संबद्ध होते हैं, जबकि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे दारुल उलूम नदवतुल उलमा (लखनऊ) और दारुल उलूम देवबंद जैसे प्रमुख मदरसों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।
- देश में सबसे अधिक मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं, जहाँ 11,621 मान्यता प्राप्त और 2,907 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, जो भारत के कुल मदरसों का 60% है।
- राजस्थान में मदरसों की संख्या दूसरे स्थान पर है, जहाँ 2,464 मान्यता प्राप्त हैं और 29 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं।
- ग़ौरतलब है कि दिल्ली, असम, पंजाब, तमिलनाडु और तेलंगाना सहित कुछ राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में कोई भी मदरसा मान्यता प्राप्त नहीं है।
शिक्षा और पाठ्यक्रम:
- पाठ्यक्रम: मदरसों में शिक्षा मुख्यधारा के स्कूल और उच्च शिक्षा की संरचना को प्रतिबिंबित करती है, जिसमें छात्र मौलवी (कक्षा 10 के समकक्ष), आलिम (कक्षा 12 के समकक्ष), कामिल (स्नातक डिग्री के समकक्ष) तथा फाज़िल (मास्टर डिग्री के समकक्ष) जैसे विभिन्न स्तरों से आगे बढ़ते हैं।
- शिक्षण का माध्यम: धर्मार्थ मदरसा दरसे निजामी में शिक्षण का माध्यम अरबी, उर्दू और फारसी है, जबकि मदरसा दरसे आलिया में राज्य पाठ्यपुस्तक निगमों द्वारा प्रकाशित या राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा निर्धारित पाठ्यपुस्तकों का उपयोग किया जाता है।
- भारत में बड़ी संख्या में मदरसा बोर्डों ने NCERT पाठ्यक्रम को अपनाया है, जिसमें गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेज़ी और समाजशास्त्र जैसे अनिवार्य विषय शामिल हैं।
- मुख्य विषयों के अलावा छात्र वैकल्पिक पेपर चुन सकते हैं, जिसमें संस्कृत या दीनियत (धार्मिक अध्ययन, जिसमें कुरान और अन्य इस्लामी शिक्षाएँ शामिल हैं) में से कोई एक चुन सकते हैं। संस्कृत पेपर में हिंदू धार्मिक ग्रंथ एवं शिक्षाएँ शामिल हैं।
वित्तपोषण:
- मदरसों के लिये वित्त पोषण का प्राथमिक स्रोत संबंधित राज्य सरकारों से आता है तथा मदरसों/अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPEMM) के तहत केंद्र सरकार से पूरक सहायता भी मिलती है।
- SPEMM देश भर के मदरसों और अल्पसंख्यक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे उनके शैक्षिक विकास तथा समर्थन में सुविधा होती है।
- इसकी दो उप-योजनाएँ हैं:
- मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPQEM): यह शैक्षिक मानकों में सुधार पर केंद्रित है।
- अल्पसंख्यक संस्थानों का बुनियादी ढाँचा विकास (IDMI): यह बुनियादी ढाँचे में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करता है।
- अप्रैल 2021 में अधिक सुव्यवस्थित प्रशासन के लिये SPEMM को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से शिक्षा मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।
शिक्षा से संबंधित पहल क्या हैं?
भारतीय शिक्षा प्रणाली में मदरसों की क्या भूमिका है?
- सांस्कृतिक संरक्षण: ऐतिहासिक रूप से मदरसों ने भारत में मुस्लिम समुदायों के बीच इस्लामी संस्कृति, विश्वासों और मूल्यों को संरक्षित करने तथा प्रसारित करने का काम किया है, जिससे पहचान एवं सामुदायिक भावना को बढ़ावा मिला है।
- शिक्षा और साक्षरता: मदरसे मुस्लिम बच्चों के लिये एक शैक्षिक मंच प्रदान करते हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ औपचारिक स्कूली शिक्षा तक पहुँच सीमित है।
- हालाँकि शिक्षा की गुणवत्ता और मुस्लिम समुदायों में तुलनात्मक रूप से कम साक्षरता दर के बारे में चिंताएँ हैं, जिसके कारण कई छात्र माध्यमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
- विचारधारा पर प्रभाव: कुछ मदरसों की आलोचना चरमपंथी विचारधाराओं और राष्ट्र-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने के लिये की जाती है, जो देश के भीतर सामाजिक विभाजन तथा सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में संभावित रूप से योगदान करते हैं, जबकि मदरसे सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा दे सकते हैं।
- कानूनी और वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: मदरसों का अस्तित्व धर्मनिरपेक्षता और शिक्षा वित्तपोषण में समानता के बारे में सवाल उठाता है।
- आलोचकों का तर्क है कि सार्वजनिक धन का उपयोग धार्मिक शिक्षा के समर्थन के लिये नहीं किया जाना चाहिये ताकि एकरूपता और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित हो सके।
- एकीकरण की चुनौतियाँ: मदरसों के कई स्नातकों को व्यावसायिक कौशल और आधुनिक शिक्षा की कमी के कारण व्यापक कार्यबल में एकीकृत होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शैक्षिक दृष्टिकोण अक्सर मुख्यधारा के समाज से अलगाव की ओर ले जाता है, जिससे ऊपर की ओर गतिशीलता और सामाजिक सामंजस्य के अवसरों में बाधा उत्पन्न होती है।
मदरसा शिक्षा से संबंधित मुद्दे क्या हैं?
- शिक्षा की गुणवत्ता: कई मदरसे मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा पर केंद्रित पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं जिनमें अक्सर गणित, विज्ञान और भाषा जैसे विषयों पर कम ध्यान दिया जाता है।
- इससे छात्रों के समग्र शैक्षणिक विकास में अंतराल होने के साथ आगे की शिक्षा एवं रोज़गार के उनके अवसर सीमित हो सकते हैं।
- विनियामक चुनौतियाँ: काफी अधिक संख्या में मदरसे उचित सरकारी निगरानी या विनियमन के बिना संचालित होते हैं। विनियमन की कमी के कारण शिक्षा की गुणवत्ता में अंतराल हो सकता है।
- सामाजिक-आर्थिक कारक: मदरसा शिक्षा अक्सर हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये सुलभ होती है, जिससे परिवार आर्थिक बाधाओं के कारण इन संस्थानों को चुन सकते हैं। इससे गरीबी का चक्र बने रहने के साथ सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता सीमित हो सकती है।
- उग्रवाद और कट्टरपंथ: कुछ मदरसों की उग्रवादी विचारधाराओं को बढ़ावा देने या कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिये आलोचना की गई है।
- सीमित व्यावसायिक प्रशिक्षण: अधिकांश मदरसे व्यावसायिक प्रशिक्षण या कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान नहीं करते हैं। इससे छात्रों के व्यावहारिक कौशल के साथ रोज़गार क्षमता सीमित हो जाती है, जिससे व्यापक कार्यबल में उनका एकीकरण बाधित होता है।
- लैंगिक असमानताएँ: कई मदरसे ऐतिहासिक रूप से पुरुष-प्रधान रहे हैं, जहाँ बालिकाओं को कम अवसर मिलते हैं। इससे शिक्षा में लैंगिक असमानताएँ बढ़ने के साथ समाज में महिलाओं की भागीदारी सीमित हो सकती है।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई मदरसे अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से ग्रसित हैं जिसमें अपर्याप्त कक्षाएँ, पुस्तकालयों की कमी और अपर्याप्त शैक्षिक सामग्री की समस्याएँ हैं। इससे सीखने के माहौल पर काफी असर पड़ सकता है।
- आधुनिकीकरण का प्रतिरोध: कुछ मदरसों में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के क्रम में आधुनिक शैक्षिक प्रथाओं को अपनाने का प्रतिरोध हो सकता है, जिससे छात्रों के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
आगे की राह
- व्यावसायिक प्रशिक्षण: मदरसों में व्यावसायिक और कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करना ताकि छात्रों को व्यावहारिक कौशल से युक्त किया जा सके, जिससे वे नौकरी के बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम हो सकें।
- समग्र विकास: सभी के लिये शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के क्रम में सार्वजनिक संस्थानों को गुणवत्तापूर्ण औपचारिक शिक्षा का विस्तार करना चाहिये, जिसमें नैतिक शिक्षा एवं कौशल विकास को शामिल किया जाए। इसके साथ ही अनौपचारिक और धार्मिक शिक्षा प्रणालियों पर निर्भरता में कमी लानी चाहिये।
- गुणवत्ता मानक और मान्यता: आधुनिक शैक्षिक प्रथाओं के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये मान्यता प्रणाली सहित मदरसों के लिये नियामक ढाँचे और गुणवत्ता मानकों की स्थापना करना।
- न्यायसंगत वित्तपोषण: सभी शैक्षणिक संस्थानों को सहायता प्रदान करने वाली निष्पक्ष वित्तपोषण नीतियों को लागू करना तथा यह सुनिश्चित करना कि सार्वजनिक निधियों से धार्मिक विचारधाराओं को बढ़ावा दिये बिना शैक्षणिक गुणवत्ता और बुनियादी ढाँचे में वृद्धि हो।
- सामुदायिक सहभागिता: समग्र शिक्षा और साक्षरता के महत्त्व पर ज़ोर देने के लिये माता-पिता, सामुदायिक नेताओं तथा गैर सरकारी संगठनों के साथ जागरूकता एवं सहयोग को बढ़ावा देना, परिवारों को अपने बच्चों के लिये औपचारिक शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में मदरसों के वित्तपोषण और प्रशासन में सरकारों की भूमिका की जाँच करें। आधुनिक शिक्षा को धार्मिक शिक्षा के साथ एकीकृत करने में मदरसों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सरकार के समावेशित वृद्धि लक्ष्य को आगे ले जाने में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कार्य सहायक साबित हो सकता/सकते है/हैं? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिये, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (2019) प्रश्न. “शिक्षा एक निषेधाज्ञा नहीं है, यह व्यक्ति के समग्र विकास और सामाजिक बदलाव के लिये एक प्रभावी एवं व्यापक साधन है”। उपर्युक्त कथन के आलोक में नई शिक्षा नीति, 2020 (एन.ई.पी., 2020) का परीक्षण कीजिये। (2020) |


जैव विविधता और पर्यावरण
प्रमुख जैवविविधता क्षेत्रों (KBA) के तापमान में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र (KBA), कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढाँचा, एंडीज पर्वत, उष्णकटिबंधीय वन, बर्डलाइफ इंटरनेशनल, महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र (IBA), वर्ल्ड कंज़र्वेशन काॅन्ग्रेस, प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN), प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र साझेदारी, वर्षावन, मैंग्रोव, कार्बन पृथक्करण, पोषक चक्रण। मेन्स के लिये:उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों (KBA) पर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण को रोकने के लिये आवश्यक उपाय। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय वनों में प्रमुख जैव विविधता वाले क्षेत्र (key biodiversity areas- KBA) नई तापमान व्यवस्था/न्यू टेम्प्रेचर रैशिम (उच्च तापमान) में परिवर्तित हो गए हैं।
- कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क का लक्ष्य वर्ष 2030 तक विश्व की कम-से-कम 30% भूमि का संरक्षण करना है, जिसमें प्रमुख जैवविविधता क्षेत्रों (KBA) को मुख्य प्राथमिकता दी जाएगी।
नोट:
उष्णकटिबंधीय वर्षावन घने और उष्ण वन हैं जो आमतौर पर भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में 23.5 डिग्री के बीच पाए जाते हैं।
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) क्या है?
- परिचय: यह एक बहुपक्षीय संधि है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के नुकसान को रोकना और कम करना है। इसे दिसंबर, 2022 में UNCBD के पार्टियों के सम्मेलन (CoP) की 15वीं बैठक के दौरान अपनाया गया था।
- उद्देश्य और लक्ष्य: यह सुनिश्चित करता है कि वर्ष 2030 तक क्षीण हो चुके स्थलीय, अंतर्देशीय जल, तथा समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के कम-से-कम 30% क्षेत्रों का प्रभावी पुनर्स्थापन हो जाए।
- इसमें वर्ष 2030 तक के दशक में तत्काल कार्रवाई के लिये 23 कार्य-उन्मुख वैश्विक लक्ष्य हैं, जिनमें प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र (KBA) मुख्य प्राथमिकता के रूप में हैं।
- दीर्घकालिक दृष्टिकोण: इस रूपरेखा में यह परिकल्पना की गई है कि वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिये सामूहिक प्रतिबद्धता होगी, जो जैव विविधता संरक्षण और सतत् उपयोग पर वर्तमान कार्यों एवं नीतियों के लिये एक आधारभूत मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करेगी।
अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?
- KBA में तापमान परिवर्तन: उष्णकटिबंधीय वन KBA का 66% हिस्सा एक नए चरण में प्रवेश कर चुका है, जिसकी विशेषता नई औसत वार्षिक तापमान व्यवस्था है।
- क्षेत्रीय तापमान परिवर्तन: तापमान परिवर्तन का अनुभव करने वाले प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों (KBA) का प्रतिशत अफ्रीका में 72%, लैटिन अमेरिका में 59% और एशिया तथा ओशिनिया में 49% था।
- हालाँकि, एशिया और ओशिनिया में, 12% KBA ने नए तापमान परिदृश्य में परिवर्तन नहीं किया है, हालांकि इनमें से 23% असुरक्षित हैं।
- यद्यपि एशिया और ओशिनिया में 23% KBA असुरक्षित हैं, तथापि उनमें से 12% ने नए तापमान परिदृश्य को नहीं दर्शाया है।
- ऊर्ध्वाधर तापमान परिवर्तन: खुले वातावरण की तुलना में वनाच्छादन के नीचे की जलवायु अधिक स्थिर होती है तथा यहां तापमान में कम परिवर्तन होता है।
- असंगत प्रभाव: लैटिन अमेरिका (2.9%) तथा एशिया और ओशिनिया (0.4%) में कुछ KBA लगभग पूरी तरह से नई तापमान स्थितियों में स्थानांतरित हो गए हैं, जिसमें 80% से अधिक माप उनकी पिछली सीमाओं के बाहर हैं।
- इनमें इक्वाडोर, कोलंबिया, वेनेजुएला और पनामा के उष्णकटिबंधीय एंडीज पर्वतमाला के क्षेत्र शामिल हैं।
- स्थिर KBA: उष्णकटिबंधीय वन KBA का लगभग 34% हिस्सा अभी तक नए तापमान प्रारूप का अनुभव नहीं कर पाया है, तथा इनमें से आधे से अधिक किसी न किसी प्रकार के संरक्षण में हैं।
- उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के उष्णकटिबंधीय वन, नवीन तापमान स्थितियों से सबसे कम प्रभावित होने वाले वनों में से हैं।
प्रमुख जैवविविधता क्षेत्र (KBA) क्या हैं?
- अवधारणा की उत्पत्ति: बर्डलाइफ इंटरनेशनल ने महत्वपूर्ण पक्षी और जैवविविधता क्षेत्रों (IBA) की पहचान कर इस मॉडल की शुरुआत की। इस मॉडल की सफलता ने अन्य टैक्सोनोमिक समूहों, जैसे पौधों, तितलियों और मीठे पानी तथा समुद्री जैवविविधता को शामिल किया।
- वर्ष 2004 में बैंकॉक में वर्ल्ड कंज़र्वेशन काॅन्ग्रेस में, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने एक एकीकृत ढाँचे की आवश्यकता को पहचाना, जिसकी परिणति वर्ष 2016 के वैश्विक KBA मानक के रूप में हुई।
- KBA के बारे में: KBA वे स्थल हैं जो जैवविविधता की वैश्विक स्थिरता में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
- इनमें विशिष्ट प्रजातियाँ या केवल सीमित क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियाँ हो सकती हैं, और ये ग्रह के स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- मान्यता के लिये मानदंड: पाँच श्रेणियों के अंतर्गत 11 मानदंड हैं जिन्हें किसी साइट को KBA के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिये पूरा करना होगा। ये श्रेणियाँ हैं:
- संकटग्रस्त जैवविविधता
- भौगोलिक दृष्टि से प्रतिबंधित जैवविविधता
- पारिस्थितिक अखंडता
- जैविक प्रक्रियाएँ
- स्थिरता
- वैश्विक KBA उपस्थिति: वर्तमान तक, विश्व में 16,000 से अधिक KBA का मानचित्रण किया जा चुका है।
- प्रमुख जैवविविधता क्षेत्र साझेदारी, जिसमें 13 वैश्विक संरक्षण संगठन शामिल हैं , विश्व में KBA की पहचान, मानचित्रण और संरक्षण के लिये कार्य कर रही है।
- भारत में 862 प्रमुख जैवविविधता क्षेत्र (KBA) हैं, जो जैवविविधता के संरक्षण के लिये महत्वपूर्ण हैं, जैसे पश्चिमी घाट।
- प्रमुख जैवविविधता क्षेत्र साझेदारी, जिसमें 13 वैश्विक संरक्षण संगठन शामिल हैं , विश्व में KBA की पहचान, मानचित्रण और संरक्षण के लिये कार्य कर रही है।
उष्णकटिबंधीय वनों और KBA पर बढ़ते तापमान का क्या प्रभाव है?
- स्थिर सूक्ष्म जलवायु (माइक्रो-क्लाइमेट) में व्यवधान: अचानक होने वाले परिवर्तन उनकी तापीय सहनशीलता को पार कर सकते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है। स्थिर सूक्ष्म जलवायु के भीतर विशिष्ट स्थानों पर रहने वाली प्रजातियों को आवासों के नुकसान सामना करना पड़ सकता है।
- जैवविविधता के लिये खतरा: तापमान में वृद्धि से आवासों का नुकसान हो सकता है, विशेष रूप से वर्षा वनों, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों जैसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों में।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में परिवर्तन: बढ़ते तापमान से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ जैसे कार्बन पृथक्करण, जल विनियमन और पोषक चक्रण प्रभावित हो सकता है।
- आक्रामक प्रजातियों का खतरा: अधिक तापमान के कारण आक्रामक प्रजातियाँ में वृद्धि हो सकती हैं तथा देशी प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा में आगे निकल सकती हैं।
- वनों की कटाई और क्षरण: उच्च तापमान के कारण वनों की कटाई और क्षरण में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि इससे पारिस्थितिकी तंत्र वनाग्नि, कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकता है।
- प्रजातियों की संरचना में बदलाव: कई प्रजातियाँ ठंडी परिस्थितियों की तलाश में अधिक ऊँचाई या अक्षांशों की ओर पलायन कर सकती हैं, जिससे प्रजातियों का स्थानीय स्तर पर विलुप्त होना संभव है।
- मानव समुदायों पर प्रभाव: बढ़ते तापमान से वन उत्पादकता प्रभावित हो सकती है, जिससे भोजन, दवा और आश्रय के लिये उष्णकटिबंधीय वनों पर निर्भर स्थानीय एवं स्वदेशी समुदायों की आजीविका को खतरा हो सकता है।
बढ़ते तापमान से प्रमुख जैवविविधता क्षेत्रों की सुरक्षा किस प्रकार की जा सकती है?
प्रकृति-आधारित समाधान विकसित करना और उनका विस्तार करना |
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ उठाना, एकल-फसल वृक्षारोपण जैसी अनुपयुक्त प्रथाओं से बचना तथा विविध, अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्रों पर ध्यान केंद्रित करना। |
पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करना |
कार्बन अवशोषण और जैवविविधता को बढ़ाने के लिये वनों, आर्द्रभूमि, पीटलैंड और मैंग्रोव के संरक्षण एवं पुनर्स्थापन को प्राथमिकता दीजिये। |
पुनःवन्यीकरण पहल |
पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिये देशी प्रजातियों के पुन:प्रवेश सहित पुनःवनीकरण रणनीतियों का अन्वेषण करना। |
आवास संपर्क पहल |
खंडित आवासों को जोड़ने के लिये गलियारों का निर्माण करना, जिससे प्रजातियों को प्रवास करने तथा बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल अवसर प्राप्त हों। |
आक्रामक प्रजाति प्रबंधन |
आक्रामक प्रजातियों के प्रसार तथा विशेष रूप से आक्रामक प्रजातियों को निशाना बनाने वाले प्राकृतिक शिकारियों को रोकने के लिये, सीमाओं पर उत्पादों (पौधों, जानवरों और मिट्टी) की निगरानी और निरीक्षण किया जाना चाहिये। |
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: प्रमुख जैवविविधता क्षेत्र (KBA) क्या हैं? यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल उत्तर: (c) मेन्सभारत सरकार दवा कंपनियों द्वारा दवा के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से कैसे बचाव कर रही है? (वर्ष 2019) |
भारतीय राजव्यवस्था
नागरिकता अधिनियम की धारा 6A
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायलय, नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A, NGO, वर्ष 1985 का असम समझौता, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, मेन्स के लिये:नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की विशेषताएँ, असम समझौते से संबंधित मुद्दे, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के निहितार्थ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायलय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, जो असम में रहने वाले बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति प्रदान करता है, तथा इसे बंधुत्व के प्रस्तावना मूल्य से जुड़ा एक वैध कानून माना है।
- न्यायालय के अनुसार, बंधुत्व के सिद्धांत का प्रयोग असमिया नागरिकों के एक समूह के लिये चुनिंदा रूप से नहीं किया जा सकता, जबकि दूसरे समूह को "अवैध आप्रवासी" करार दिया जा सकता है।
- याचिकाकर्त्ता NGO ने न्यायालय में तर्क दिया कि धारा 6A अवैध आप्रवासियों को प्रवेश देकर और उनकी जनसांख्यिकी में बदलाव करके असमिया लोगों के अपनी राजनीतिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने के अधिकार को खतरे में डालती है।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या है?
- बहुमत के साथ निर्णय:
- संवैधानिक वैधता की पुनः पुष्टि: न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 6A संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 का उल्लंघन नहीं करती है, जिसमें पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने के लिये 26 जनवरी, 1950 की तिथि निर्धारित की गई है।
- धारा 6A अनुवर्ती तिथि से लागू होती है, अतः यह पूर्वर्ती संवैधानिक प्रावधानों से अलग कार्य करती है।
- 24 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने 26 मार्च, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेशी राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने के लिये ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया था।
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता यह साबित करने में असफल रहे कि धारा 6A के कारण असमिया लोगों की अपनी संस्कृति की रक्षा करने की क्षमता प्रभावित हुई है।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान पहले से ही असम के सांस्कृतिक और भाषाई हितों की रक्षा करते हैं।
- संघ की शक्ति: संसद ने अनुच्छेद 246 और संघ सूची की प्रविष्टि 17 से प्राप्त शक्तियों के तहत धारा 6A को अधिनियमित किया, जो नागरिकता, प्राकृतिककरण और विदेशियों से संबंधित है।
- असम का विशेष नागरिकता कानून अनुच्छेद 14 (समानता) का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि राज्य की प्रवासी स्थिति शेष भारत से भिन्न थी।
- मामले की पहचान: न्यायालय ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि असम बांग्लादेश से लगातार हो रहे प्रवास के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है।
- इस बात पर ज़ोर दिया गया कि एक राष्ट्र सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए तथा संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करते हुए आप्रवासियों और शरणार्थियों को एक साथ समायोजित कर सकता है।
- उत्तरदायित्त्व स्पष्ट करना: इस बात पर बल दिया गया कि इस स्थिति के लिये केवल धारा 6A को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिये।
- वर्ष 1971 के बाद बांग्लादेश से आए आप्रवासियों का समय पर पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने में सरकार की विफलता इसका एक प्रमुख कारण थी।
- व्यवस्था की आलोचना: न्यायालय ने पाया कि असम में अवैध आप्रवासियों की पहचान करने हेतु ज़िम्मेदार वर्तमान तंत्र और न्यायाधिकरण अपर्याप्त हैं।
- ये प्रणालियाँ धारा 6A और संबंधित कानूनों, जैसे कि आप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 तथा विदेशी अधिनियम, 1946 के समय पर प्रवर्तन के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
- निगरानी की आवश्यकता: आव्रजन और नागरिकता कानूनों के प्रवर्तन के लिये न्यायिक निगरानी की आवश्यकता होती है तथा इसे प्राधिकारियों के विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता।
- न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश से असम में इन कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक पीठ गठित करने को कहा।
- असहमतिपूर्ण राय:
- असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण: असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण ने धारा 6A को भावी प्रभाव से असंवैधानिक घोषित कर दिया, तथा इस चिंता को खारिज कर दिया कि विभिन्न जातीय समूह दूसरों के सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों का उल्लंघन करेंगे।
- अप्रवासन और विकास: असहमति जताते हुए कहा गया कि सतत् विकास और जनसंख्या वृद्धि बिना संघर्ष के साथ-साथ चल सकते हैं।
- अंतर्राज्यीय आवागमन पर प्रतिबंध याचिकाकर्त्ताओं की इस दलील को स्वीकार करने के परिणामस्वरूप लगाया जा सकता है कि अप्रवासन से सतत् विकास के स्थानीय अधिकार प्रभावित होते हैं।
नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A क्या है?
- धारा 6A:
- इसे वर्ष 1985 के असम समझौते के बाद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1985 के भाग के रूप में अधिनियमित किया गया था।
- यह विधेयक 1 जनवरी, 1966 से पहले बांग्लादेश से असम में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है।
- जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच भारत में आए, उन्हें कुछ निर्धारित प्रक्रियाओं तथा शर्तों को पूरा करने के बाद नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
- हालाँकि, यह धारा 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आये प्रवासियों को नागरिकता प्रदान नही करती है।
- असम समझौता:
- असम समझौता केंद्र सरकार, असम राज्य सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता था। इसका उद्देश्य बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों के प्रवेश को रोकना था।
- धारा 6A को असम समझौते के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों की नागरिकता को संबोधित करने के लिये एक विशेष प्रावधान के रूप में अधिनियमित किया गया था।
- यह प्रावधान वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से पहले बड़े पैमाने पर हुए प्रवास के मुद्दे को संबोधित करता है।
- इसमें 25 मार्च, 1971 (बांग्लादेश के गठन का दिन) के बाद असम में प्रवेश करने वाले विदेशियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने का प्रावधान है।
- धारा 6A का लागू होना इस महत्त्वपूर्ण अवधि के दौरान असम के सामने आई विशिष्ट ऐतिहासिक और जनसांख्यिकीय चुनौतियों को दर्शाता है।
इस निर्णय के निहितार्थ क्या हो सकते हैं?
- आप्रवासी मान्यता: धारा 6A को बरकरार रखते हुए, निर्णय बांग्लादेश से आए आप्रवासियों (25 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने वाले) को कानूनी संरक्षण और नागरिकता अधिकार प्रदान करता है।
- इससे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में विस्थापित हुए लोगों की सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता मज़बूत होती है।
- असमिया पहचान संरक्षण: बहुमत के साथ न्यायालय द्वारा इस धारणा को खारिज कर दिया गया कि आप्रवासियों की उपस्थिति स्वचालित रूप से असमिया लोगों के सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों का उल्लंघन करती है।
- इसका तात्पर्य यह है कि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के बावजूद, असमिया समुदाय के अधिकार मौजूदा संवैधानिक सुरक्षा प्रावधानों (अनुच्छेद 29 (1)) के माध्यम से संरक्षित हैं, किसके तहत उन्हें अपनी पहचान बनाए रखने की अनुमति प्राप्त है।
- जनसांख्यिकीय बदलाव पर दबाव: आलोचकों के अनुसार, असम की सांस्कृतिक पहचान और वित्तीय संसाधन खतरे में हैं, क्योंकि निरंतर अप्रवासन के कारण राज्य के जनसांख्यिकीय संतुलन पर दबाव पड़ रहा है।
- इससे स्थानीय स्तर पर सख्त अप्रवासन कानूनों की मांग या यहाँ तक कि सांस्कृतिक संरक्षण के लिये राजनीतिक सक्रियता को भी बढ़ावा मिल सकता है।
- संसाधन आवंटन: आप्रवासी नागरिकता और इसके साथ आने वाले संसाधनों तथा अधिकारों के लिये पात्र बने रहेंगे, जिससे असम के पहले से ही सीमित आर्थिक संसाधनों पर दबाव और बढ़ सकता है।
- इसके लिये समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने तथा आर्थिक असमानताओं को रोकने के लिए अधिक मज़बूत नीतियों की आवश्यकता हो सकती है।
- अप्रवासन कानूनों पर दबाव: निर्णय में अप्रवासन कानूनों के अधिक प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया गया है, विशेष रूप से वर्ष 1971 की निर्धारित तिथि के बाद प्रवेश करने वाले अवैध अप्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने पर।
- बांग्लादेश संबंध: वर्ष 1971 के बाद के प्रवासियों को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता न देने से, इस निर्णय से बांग्लादेश के साथ तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि इसे भारत द्वारा इन प्रवासियों के लिये अपने पड़ोसी पर ज़िम्मेदारी डालने के रूप में देखा जा सकता है, जिससे संभावित रूप से राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है।
- इस निर्णय से सीमा प्रबंधन, प्रवासन नियंत्रण और सुरक्षा पर क्षेत्रीय सहयोग प्रभावित हो सकता है, तथा भारत-बांग्लादेश संबंध जटिल हो सकते हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: नागरिकता अधिनियम की धारा 6A पर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले का असम पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये। यह फैसला मानवीय चिंताओं और स्थानीय विकास चुनौतियों के बीच किस तरह संतुलन स्थापित करता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (A) |