आसियान-भारत आर्थिक मंत्रियों की बैठक
प्रिलिम्स के लिये:आसियान/ASEAN, एक्ट ईस्ट पॉलिसी। मेन्स के लिये:भारत के लिये आसियान का महत्त्व, भारत-आसियान सहयोग के क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और कंबोडिया ने कंबोडिया में 19वीं आसियान/ASEAN -भारत आर्थिक मंत्रियों की बैठक की सह-अध्यक्षता की।
- इस बैठक में सभी 10 आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) देशों के आर्थिक मंत्रियों या उनके प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय आर्थिक संबंध:
- मंत्रियों के अनुसार, आसियान और भारत के बीच व्यापार एवं आर्थिक संबंध कोविड-19 महामारी के प्रभाव से उबरने लगे हैं तथा आसियान व भारत के बीच दोतरफा व्यापार वर्ष 2021 में 91.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जो वार्षिक आधार पर 39.2% बढ़ा है।
- आसियान-भारत व्यापार परिषद (ASEAN-India Business Council):
- मंत्रियों ने आसियान-भारत व्यापार परिषद (AIBC) द्वारा आसियान-भारत आर्थिक साझेदारी को बढ़ाने और वर्ष 2022 में AIBC द्वारा की गई गतिविधियों पर भी ध्यान केंद्रित किया।
- आसियान-भारत व्यापार परिषद (AIBC) की स्थापना मार्च 2003 में भारत और आसियान देशों के प्रमुख निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ताओं को व्यापार नेटवर्किंग एवं विचारों को साझा करने के लिये एक मंच पर लाने हेतु की गई थी।
- मंत्रियों ने आसियान-भारत व्यापार परिषद (AIBC) द्वारा आसियान-भारत आर्थिक साझेदारी को बढ़ाने और वर्ष 2022 में AIBC द्वारा की गई गतिविधियों पर भी ध्यान केंद्रित किया।
- कोविड-19 के बाद सुधार:
- मंत्रियों ने महामारी के आर्थिक प्रभाव को कम करने और कोविड-19 के बाद स्थायी सुधार की दिशा में काम करने के लिये सामूहिक कार्रवाई करने की अपनी प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की।
- आपूर्ति शृंखला काॅनेक्टविटी :
- मंत्रियों ने आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता (ASEAN-India Trade in Goods Agreement-AITIGA) उन्नयन वार्ता, कोविड-19 टीकाकरण की पारस्परिक मान्यता, टीकों के उत्पादन, सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी और चिकित्सा प्रौद्योगिकियों के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह को बनाए रखने के लिये एक मज़बूत आपूर्ति शृंखला काॅनेक्टविटी हासिल करने हेतु सामूहिक कार्रवाई करने के लिये आसियान तथा भारत का स्वागत किया।
- आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता:
- मंत्रियों ने AITIGA की समीक्षा के दायरे का समर्थन किया ताकि इसे व्यवसायों के लिये अधिक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल, सरल और व्यापार सुविधा के साथ-साथ आपूर्ति शृंखला व्यवधानों सहित वर्तमान वैश्विक एवं क्षेत्रीय चुनौतियों के प्रति उत्तरदायी बनाया जा सके।
- मंत्रियों ने AITIGA की समीक्षा में तेज़ी लाने के लिये AITIGA संयुक्त समिति को भी सक्रिय किया।
दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ:
- परिचय:
- यह एक क्षेत्रीय समूह है जो आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देता है।
- इसकी स्थापना अगस्त 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापकों अर्थात् इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर एवं थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई।
- इसके सदस्य राज्यों को अंग्रेज़ी नामों के वर्णानुक्रम के आधार पर इसकी अध्यक्षता वार्षिक रूप से प्रदान की जाती है।
- आसियान देशों की कुल आबादी 650 मिलियन है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP)8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह लगभग 86.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- अप्रैल 2021- फरवरी 2022 की अवधि में भारत और आसियान क्षेत्र के बीच कमोडिटी व्यापार 98.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। भारत के व्यापारिक संबंध मुख्य तौर पर इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम और थाईलैंड के साथ हैं।
- सदस्य:
- आसियान दस दक्षिण पूर्व एशियाई देशों- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम को एक मंच पर लाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये:(2018)
उपर्युक्त में से कौन आसियान (ASEAN) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं? (A) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: C व्याख्या:
अतः विकल्प (C) सही उत्तर है। प्रश्न. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) पद किन देशों के समूहों के संदर्भ में अक्सर सुर्ख़ियों में रहता है? (A) जी20 उत्तर: (B) व्याख्या:
अतः विकल्प (B) सही है। प्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प C सही है। मेन्सप्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये। |
स्रोत: द प्रिंट
राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM)
प्रिलिम्स के लिये:वस्त्र मंत्रालय, राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, मेक इन इंडिया, वस्त्र क्षेत्र के लिये उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना। मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में तकनीकी वस्त्र का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
वस्त्र मंत्रालय ने हाल ही में फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘नेशनल टेक्निकल टेक्सटाइल्स मिशन’ (NTTM) के अंतर्गत स्पेशियलिटी फाइबर्स, कम्पोज़िट्स, सस्टेनेबल टेक्सटाइल्स, मोबिलटेक, स्पोर्टेक और जियोटेक क्षेत्रों में 60 करोड़ रुपए की 23 रणनीतिक परियोजनाओं को मंज़ूरी दी।
तकनीकी वस्त्र:
- तकनीकी वस्त्रोे के निर्माण का मुख्य उद्देश्य कार्यात्मक (Functionality) होता है। तकनीकी वस्त्रों का उपयोग कृषि, वैज्ञानिक शोध, चिकित्सा, सैन्य क्षेत्र, व्यक्तिगत सुरक्षा, उद्योग तथा खेलकूद के क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर होता है।
- तकनीकी वस्त्र उत्पाद किसी देश में विकास और औद्योगीकरण से अपनी मांग प्राप्त करते हैं।
- उपयोग के आधार पर 12 तकनीकी वस्त्र क्षेत्र हैं: एग्रोटेक, मेडिटेक, बिल्डटेक, मोबिलटेक, क्लॉथटेक, ओकोटेक, जियोटेक, पैकटेक, होमटेक, प्रोटेक, इंडुटेक और स्पोर्टेक।
- उदाहरण के लिये 'मोबिलटेक' वाहनों के उत्पादों को संदर्भित करता है जैसे सीट बेल्ट और एयरबैग, हवाई जहाज़ की सीट; जियोटेक जो संयोग से सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला उप-क्षेत्र है, इसका उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता वापस लाने/बनाए रखने के लिये किया जाता है।
राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM):
- परिचय:
- इसे वर्ष 2020 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा 1480 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया था।
- कार्यान्वयन की अवधि वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2023-24 तक चार वर्ष है।
- उद्देश्य:
- मिशन का उद्देश्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार का आकार 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुँचा कर तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक लीडर के रूप में भारत को स्थापित करना है।
- यह संबंधित मशीनरी और उपकरणों के घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने वाली 'मेक इन इंडिया' पहल का भी समर्थन करता है।
- घटक:
- पहला घटक: 1,000 करोड़ रुपए के परिव्यय वाले मिशन का पहला घटक अनुसंधान, नवाचार और विकास पर केंद्रित होगा।
- इस घटक के तहत (1) कार्बन, फाइबर, अरामिड फाइबर, नायलॉन फाइबर और कम्पोज़िट में अग्रणी तकनीकी उत्पादों के उद्देश्य से फाइबर स्तर पर मौलिक अनुसंधान (2) भू-टेक्सटाइल, कृषि-टेक्सटाइल, चिकित्सा-टेक्सटाइल, मोबाइल-टेक्सटाइल और खेल-टेक्सटाइल के विकास पर आधारित अनुसंधान अनुप्रयोगों को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
- दूसरा घटक: यह तकनीकी वस्त्रों हेतु बाज़ार के प्रचार और विकास के लिये होगा।
- विकसित देशों में 30-70% के स्तर के मुकाबले भारत में तकनीकी वस्त्रों का प्रवेश स्तर 5-10% के बीच काफी कम है।
- मिशन का लक्ष्य वर्ष 2024 तक औसतन 15-20% प्रतिवर्ष की वृद्धि दर है।
- तीसरा घटक: इस घटक के तहत तकनीकी वस्त्रों के निर्यात को बढ़ाकर वर्ष 2021-22 तक 20,000 करोड़ रुपए किये जाने का लक्ष्य है जो कि वर्तमान में लगभग 14,000 करोड़ रुपए है। साथ ही वर्ष 2023-24 तक प्रतिवर्ष निर्यात में 10 प्रतिशत औसत वृद्धि भी सुनिश्चित की जाएगी।
- तकनीकी वस्त्रों के लिये एक निर्यात प्रोत्साहन परिषद की स्थापना की जाएगी।
- चौथा घटक: यह शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास पर केंद्रित होगा।
- यह मिशन तकनीकी वस्त्रों और इसके अनुप्रयोग क्षेत्रों से संबंधित उच्च इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी स्तरों पर तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देगा।
- पहला घटक: 1,000 करोड़ रुपए के परिव्यय वाले मिशन का पहला घटक अनुसंधान, नवाचार और विकास पर केंद्रित होगा।
- कपड़ा क्षेत्र का परिदृश्य:
- भारत में तकनीकी वस्त्रों के विकास ने पिछले पाँच वर्षों में गति पकड़ी है, जो वर्तमान में 8% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है।
- इसका लक्ष्य अगले पांच वर्षों के दौरान इस वृद्धि को 15-20% की श्रेणी में ले जाना है।
- भारतीय तकनीकी वस्त्र क्षेत्र 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है जो कि 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक तकनीकी वस्त्र बाज़ार का लगभग 6% है।
- इस क्षेत्र में सबसे बड़े अभिकर्त्ता संयुक्त्त राज्य अमेरिका,पश्चिमी यूरोप,चीन और जापान (20-40% हिस्सेदारी) हैं।
- भारत में तकनीकी वस्त्रों के विकास ने पिछले पाँच वर्षों में गति पकड़ी है, जो वर्तमान में 8% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है।
- कार्यान्वयन और शासन:
- मिशन को तीन स्तरीय संस्थागत तंत्र के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- मिशन संचालन समूह: समूह को मिशन की योज़नाओं, घटकों और कार्यक्रम के संबंध में सभी वित्तीय मानदंडों को मंजूरी देने के लिये अधिकृत किया जाएगा।
- मिशन के तहत सभी वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान परियोजनाओं को मंज़ूरी देने की ज़िम्मेदारी भी इस समूह को सौंपी जाएगी।
- अधिकार प्राप्त कार्यक्रम समिति: इस समिति का कार्य मिशन संचालन समूह द्वारा अनुमोदित विभिन्न कार्यक्रमों की वित्तीय सीमाओं के भीतर सभी परियोज़नाओं (अनुसंधान परियोज़नाओं को छोड़कर) को अनुमोदित करना होगा।
- समिति को मिशन के विभिन्न घटकों के कार्यान्वयन की निगरानी की भी ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी।
- अनुसंधान, विकास और नवाचार संबंधी तकनीकी वस्त्र समिति: यह समिति अनुमोदन के लिये मिशन संचालन समूह को अनुसंधान परियोजनाओं की पहचान और सिफारिश करने हेतु जिम्मेदार होगी।
- ये परियोज़नाएँ अंतरिक्ष, सुरक्षा, रक्षा, अर्द्धसैनिक और परमाणु ऊर्जा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों से संबंधित होंगी।
- मिशन संचालन समूह: समूह को मिशन की योज़नाओं, घटकों और कार्यक्रम के संबंध में सभी वित्तीय मानदंडों को मंजूरी देने के लिये अधिकृत किया जाएगा।
- मिशन को तीन स्तरीय संस्थागत तंत्र के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
वस्त्र उद्योग से संबंधित पहल:
- कपड़ा क्षेत्र के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना: इसका उद्देश्य उच्च गुणवत्ता के मानव निर्मित फाइबर (एमएमएफ) वस्त्र और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
- एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP): यह योजना कपड़ा इकाइयों की स्थापना के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु सहायता प्रदान करती है।
- स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI: भारत सरकार स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देती है। अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी कपड़ा निर्माताओं जैसे अहलस्ट्रॉम, जॉनसन एंड जॉनसन आदि ने पहले ही भारत में परिचालन शुरू कर दिया है।
- समर्थ (कपड़ा क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु योजना): कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिये वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु समर्थ योजना (SAMARTH Scheme) की शुरुआत की गई।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र संवर्द्धन योजना (North East Region Textile Promotion Scheme- NERTPS): यह कपड़ा उद्योग के सभी क्षेत्रों को बुनियादी ढांँचा, क्षमता निर्माण और विपणन सहायता प्रदान करके NER में कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने से संबंधित योजना है।
- पावर-टेक्स इंडिया: इसमें पावरलूम टेक्सटाइल में नए अनुसंधान और विकास, नए बाज़ार, ब्रांडिंग, सब्सिडी एवं श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजनाएंँ शामिल हैं।
- रेशम समग्र योजना: यह योजना घरेलू रेशम की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है ताकि आयातित रेशम पर देश की निर्भरता कम हो सके।
- जूट आईकेयर: वर्ष 2015 में शुरू की गई इस पायलट परियोजना का उद्देश्य जूट की खेती करने वालों को रियायती दरों पर प्रमाणित बीज प्रदान करना और सीमित जल वाली परिस्थितियों में कई नई विकसित रेटिंग प्रौद्योगिकियों को लोकप्रिय बनाने के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न: निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही है। प्रश्न: भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के कारकों का विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013) |
स्रोत: पी.आई.बी.
आर्थिक विकास को गति देने में परोपकार की भूमिका
मेन्स के लिये:भारत में परोपकार और प्रमुख चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारत वर्ष 2047 तक अर्थात् भारत @100 तक 15,000 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय तक पहुँच सकता है, जिससे समावेशी और सतत् आर्थिक विकास में तेज़ी आएगी।
परोपकार क्या है?
- परोपकार से तात्पर्य धर्मार्थ कार्यों या अन्य अच्छे कार्यों से है जो दूसरों या समाज को समग्र रूप से मदद करते हैं।
- परोपकार में एक उचित कारण के लिये धन दान करना या समय, प्रयास या परोपकार के अन्य रूपों में स्वयंसेवा करना शामिल हो सकता है।
भारत में परोपकार:
- पूर्व-औद्योगिक भारत:
- परोपकार लंबे समय से भारतीय समाज के ताने-बाने में अंतर्निहित है और आधुनिक भारत के निर्माण में इसका बहुत बड़ा योगदान है।
- पूर्व-औद्योगिक भारत में देखा गया कि व्यापारिक घराने अपनी आय का एक हिस्सा स्थानीय स्तर पर दान में देते हैं।
- औद्योगीकरण ने तेज़ी से धन सृजन को सक्षम बनाया; सर जमशेदजी टाटा जैसे व्यापारिक नेताओं ने सामाजिक भलाई के लिये धन का उपयोग करने, अनुकरणीय संस्थानों को बनाने के लिये बड़ी मात्रा में दान करने पर अपनी राय व्यक्त की।
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान:
- महात्मा गांधी ने व्यापारियों को समाज में अपनी संपत्ति का योगदान करने के लिये प्रोत्साहित किया क्योंकि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ था।
- जमनालाल बजाज और जीडी बिड़ला जैसे उद्योगपतियों ने अपने स्वयं के परोपकारी हितों के अतिरिक्त स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी की पहल का समर्थन किया।
संयुक्त राज्य अमेरिका में परोपकारी मॉडल क्या है?
- भारतीय व्यापारिक राजघरानों के साथ परोपकार में प्रगति देखी जा रही थी, इसी समय अमेरिका में परोपकार का कार्नेगी-रॉकफेलर युग सक्रिय था।
- एंड्रयू कार्नेगी ने प्रभावशाली संस्थानों (जैसे कार्नेगी लाइब्रेरी और कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी) का निर्माण किया और अन्य अमीरों को भी प्रेरित किया।
- उनकी पुस्तक की अंतिम पंक्ति में लिखा है: "जो आदमी अमीर मरता है, वह बदनाम होकर मरता है।"
- जॉन डी. रॉकफेलर, एक कठोर एकाधिकारवादी, ने अंततः प्रणालीगत सुधारों के लिये बड़ी मात्रा में धन दान किया, विशेष रूप से शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिये।
- रॉकफेलर फाउंडेशन ने भी येलो फीवर के लिये टीका विकसित करने हेतु वित्तीय सहायता की।
भारतीय परोपकार में प्रमुख चुनौतियाँ:
- विश्वास में कमी:
- नवोदित परोपकारी लोग अभी तक प्रभाव क्षेत्र में किये जा रहे अच्छे कार्यों की पूरी तरह से सराहना नहीं कर पाए हैं।
- दान की संकीर्ण प्रकृति:
- देश के कुछ सबसे गरीब हिस्सों को जोखिम में डालने की संकीर्ण प्रकृति की अनदेखी की जा रही है।
- दान की प्रोग्रामेटिक प्रकृति:
- दान की प्रोग्रामेटिक प्रकृति के परिणाम असंतोषजनक हैं।
- उदाहरण: कई फाउंडेशन और गैर-सरकारी संगठन स्कूली शिक्षा पर काम करते हैं, फिर भी सीखने के परिणामों में सुधार नहीं हुआ है।
आगे का राह
- संस्थानों का निर्माण करना:
- भारत में नए विश्वविद्यालयों के निर्माण के लिये सामूहिक परोपकार की ज़रूरत है।
- अपनी रैंकिंग में सुधार के लिये IIT और IIM के पूर्व छात्र अनुसंधान केंद्रों को निधि दे सकते हैं।
- दानकर्ता थिंक-टैंक को फंड प्रदान कर सकते हैं और क्षेत्र-विशिष्ट (जैसे- ऊर्जा संक्रमण पर) या भूगोल-विशिष्ट (जैसे- पूर्वी उत्तर प्रदेश) संस्थानों का निर्माण कर सकते हैं।
- उदाहरण:
- टाटा परिवार ने जमशेदजी टाटा की परोपकार की परंपरा को जारी रखा और यह बंगलूरू में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (टीईआरआई), टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, आदि जैसे संस्थानों के निर्माण में अग्रणी रहा है।
- सरकार के लिये जोखिम युक्त अनुसंधान एवं विकास निधि:
- सरकारें सामाजिक क्षेत्र में प्रमुख कर्ता हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर करोड़ों खर्च करती हैं।
- हालाँकि सरकार की संरचना बहुत जटिल है और इसलिये निरंतर आधार पर प्रयोग या नवाचार नहीं कर सकती है; इसके अतिरिक्त राज्य/सरकार की क्षमता भी सीमित है।
- परोपकारी लोग नवोन्मेषी मॉडलों को वित्तपोषित कर सकते हैं और गैर-लाभ के माध्यम से नए विचारों का परीक्षण कर सकते हैं, सबूत बनाकर, नीति परिवर्तन की वकालत कर सकते हैं और सरकारी कार्यान्वयन का समर्थन कर सकते हैं।
- उदाहरण:
- नंदन नीलेकणी ने एक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जो भारत के लिये एक सर्वश्रेष्ठ-इन-क्लास डिजिटल आर्किटेक्चर विकसित करने में सरकार का समर्थन करता है (आधार, एकीकृत भुगतान इंटरफेस और ईकेवाईसी के बारे में सोचें)।
- वितरण में सुधार के लिये सरकारों का समर्थन करें:
- एक परोपकारी संस्था के रूप में सरकार के साथ साझेदारी एक स्केलेबल और टिकाऊ प्रभाव बनाने का सबसे प्रभावी तरीका है।
- इसके लिये परोपकारी लोगों को एनजीओ (जैसे स्कूलों में मिड-डे मील के लिये फंडिंग) के माध्यम से फंडिंग प्रोग्राम डिलीवरी से लेकर सरकार की डिलीवरी की व्यवस्था में सुधार करने वाली पहलों के लिये अपने अभिविन्यास को बदलने की ज़रूरत है।
- उदाहरण:
- पीरामल फाउंडेशन एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स कलेक्टिव का समर्थन कर रहा है; वेदिस फाउंडेशन सरकारों के साक्ष्य आधार और परिणाम उन्मुखीकरण में सुधार के लिये पहल कर रहा है।
- आर्थिक विकास को सक्षम करें:
- परोपकारी लोग अपने धन और अनुभव का उपयोग नीतियों की वकालत करने, निवेश, निर्यात तथा रोज़गार सृजन के लिये अनुकूल परिस्थितियों में सुधार का समर्थन करने एवं भारत की अर्थव्यवस्था को बदलने में मदद करने के लिये कर सकते हैं।
स्रोत: लाइवमिंट
28वाँ विश्व ओज़ोन दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व ओज़ोन दिवस, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP), किगाली संशोधन, ओज़ोन रिक्तीकरण, पर्यावरण के लिये जीवन-शैली (LiFE), COP26, मेक इन इंडिया, स्किल्स इंडिया मिशन, ऑस्ट्रेलिया फाॅरेस्ट फायर, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)। मेन्स के लिये:ओजोन परत क्षरण के प्रभाव, संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने 28वाँ विश्व ओज़ोन दिवस मनाया।
- ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को विश्व ओज़ोन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- विश्व ओज़ोन दिवस 2022 का विषय "मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल @ 35: पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने के लिये वैश्विक सहयोग" है।
प्रमुख बिंदु
- इस अवसर पर "द मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: इंडियाज़ सक्सेस स्टोरी" का 23वाँ संस्करण जारी किया गया।
- इस अवसर पर जारी किये गए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) के ओज़ोन सेल के अन्य प्रकाशनों में शामिल हैं:
- भवनों में थीमेटिक एरिया स्पेस कूलिंग के लिये इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) की सिफारिशों को लागू करने हेतु कार्ययोजना।
- गैर- ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (ODS) आधारित रेफ्रिजरेंट का उपयोग करने वाले रेफ्रिज़रेशन और एयर कंडीशनिंग (RAC) उपकरण के लिये सार्वजनिक खरीद नीतियों की अध्ययन रिपोर्ट।
- गैर- ODS और निम्न- GWP रेफ्रिजरेंट को बढ़ावा देने के लिये भारत में कोल्डचेन क्षेत्र पर अध्ययन रिपोर्ट।
- रूम एयर कंडीशनर के ऊर्जा कुशल संचालन के लिये अच्छी सर्विसिंग प्रथाओं पर पुस्तिका।
- स्कूली बच्चों के लिये आयोजित 'सेव अवर ओज़ोन लेयर' पर राष्ट्रीय स्तर की पोस्टर मेकिंग और स्लोगन राइटिंग प्रतियोगिता के विजेता प्रविष्टियों की घोषणा की गई।
- बैठक में पर्यावरण के लिये जीवन-शैली (LiFE) को अपनाने का आह्वान किया गया क्योंकि यह टिकाऊ जीवन-शैली की अवधारणा के अनुरूप है, जो हमें बिना सोचे-समझे नहीं बल्कि सावधानी से संसाधनों के उपभोग और उपयोग के लिये प्रोत्साहित करता है।
- सम्मिश्रणों सहित कम ग्लोबल वार्मिंग की संभावना वाले रसायनों के अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिये आठ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (बॉम्बे, रुड़की, हैदराबाद, कानपुर, गुवाहाटी, बनारस, मद्रास और दिल्ली) के साथ सहयोग किया जाएगा। इन्हें मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत नियंत्रित पदार्थों के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
- यह सरकार की मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा देने में भी मदद करेगा।
इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP):
- परिचय:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मार्च 2019 में इंडियन कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) लॉन्च किया गया था।
- अगले 20 वर्षों तक सभी क्षेत्रों में शीतलता से संबंधित आवश्यकताओं से जुड़ी मांग तथा ऊर्जा आवश्यकता का आकलन करना।
- लक्ष्य:
- वर्ष 2037-38 तक विभिन्न क्षेत्रों में शीतलक मांग (Cooling Demand ) को 20% से 25% तक कम करना।
- वर्ष 2037-38 तक रेफ्रीजरेंट डिमांड (Refrigerant Demand) को 25% से 30% तक कम करना।
- वर्ष 2037-38 तक शीतलन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता को 25% से 40% तक कम करना।
- शीतलता के लिये उपलब्ध तकनीकों की पहचान के साथ ही वैकल्पिक तकनीकों, अप्रत्यक्ष उपायों और अलग प्रकार की तकनीकों की पहचान करना।
- वर्ष 2022-23 तक कौशल भारत मिशन के तालमेल से सर्विसिंग सेक्टर के 100,000 तकनीशियनों को प्रशिक्षण एवं प्रमाण-पत्र उपलब्ध कराना।
- महत्त्व:
- ICAP, कार्यों के कार्यान्वयन से किगाली संशोधन के तहत हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) की चरणबद्ध तरीके से कमी के दौरान जलवायु के अनुकूल विकल्पों को अपनाने और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के प्रयासों में मदद मिलेगी।
- यह 2021 में पार्टियों के 26वें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (CoP26) में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिबद्ध 'पंचामृत' के माध्यम से वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने में भारत की जलवायु कार्रवाई में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।
- ICAP, कार्यों के कार्यान्वयन से किगाली संशोधन के तहत हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) की चरणबद्ध तरीके से कमी के दौरान जलवायु के अनुकूल विकल्पों को अपनाने और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के प्रयासों में मदद मिलेगी।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन को रोकने के लिये एक विश्वव्यापी समझौता है।
- 16 सितंबर, 1987 को अपनाया गया प्रोटोकॉल अब तक की एकमात्र संयुक्त राष्ट्र संधि है जिसे पृथ्वी पर प्रत्येक देश एवं सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य राज्यों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
- इसने रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर और कई अन्य उत्पादों में 99% ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है।
- भारत जून 1992 से मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पक्षकार है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन में भारत की उपलब्धियाँ:
- भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अनुसूची के अनुरूप 1 जनवरी, 2010 को नियंत्रित उपयोग के लिये क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), कार्बन टेट्राक्लोराइड, हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया।
- वर्तमान में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के त्वरित कार्यक्रम के अनुसार हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन (HCFC) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है।
- हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन चरणबद्ध प्रतिबंध (फेज़ आउट) प्रबंधन योजना (HPMP) चरण- I को वर्ष 2012 से 2016 तक सफलतापूर्वक लागू किया गया है।
- HPMP चरण - II वर्ष 2017 से लागू है और वर्ष 2023 तक पूरा हो जाएगा।
- HPMP चरण-III, शेष HCFCs को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये HPMPs का अंतिम चरण- 2023-2030 से कार्यान्वित किया जाएगा।
- रेफ्रिजरेशन और एयर-कंडीशनिंग मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सहित सभी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में HCFC का फेज़ आउट 1 जनवरी, 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा और सर्विसिंग सेक्टर से संबंधित गतिविधियाँ वर्ष 2030 तक जारी रहेंगी।
ओज़ोन परत
- रासायनिक सूत्र O3 के साथ ओज़ोन ऑक्सीजन का एक विशेष रूप है। हम जिस ऑक्सीजन में साँस लेते हैं और जो पृथ्वी पर जीवन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, वह O2 है।
- ओज़ोन का लगभग 90% प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल (समताप मंडल) में पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किमी के बीच होता है, जहाँ यह एक सुरक्षात्मक परत बनाता है जो हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
- यह "अच्छा" ओज़ोन धीरे-धीरे मानव निर्मित रसायनों द्वारा नष्ट किया जा रहा है, जिन्हें ओज़ोन-घटाने वाला पदार्थ (ODS-Ozone Depleting Substance) कहा जाता है, जिसमें सीएफ़सी, एचसीएफसी, हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
- जब समताप मंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु ओज़ोन के संपर्क में आते हैं, तो वे ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं।
- समताप मंडल से हटाए जाने से पहले एक क्लोरीन परमाणु 100,000 से अधिक ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर सकता है।
- प्राकृतिक रूप से बनने की तुलना में ओज़ोन अधिक तेज़ी से नष्ट हो सकता है।
- ओज़ोन परत के क्षरण से मनुष्यों में त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद की घटनाओं में वृद्धि होती है।
वनाग्नि ओज़ोन परत को कैसे प्रभावित कर रही है?
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के अनुसार, बढ़ते वैश्विक तापमान और शुष्क परिस्थितियों के कारण दुनिया भर में लगातार, बड़े पैमाने पर जंगल में आग लग रही है।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, 2050 तक भीषण वनाग्नि की तीव्रता में 30% की वृद्धि होने की संभावना है।
- इस तरह की घटनाएँ मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत 35 वर्षों के प्रयासों को पूर्ववत स्थिति में ला सकती हैं।
- वनाग्नि भी इस दुष्चक्र को बढ़ा सकती है। ओज़ोन परत में कमी/क्षरण दक्षिणी ध्रुवीय भंँवर (Poller Vortex), दक्षिणी ध्रुव पर निम्न वायुदाब और शीतल वायु के प्रभाव को मज़बूत करती है।
- यह एक फीडबैक लूप बनाता है: ध्रुवीय भँवर जितना मज़बूत होता है, उतना ही यह आसपास के ओज़ोन को कम करता है और उतने ही अधिक समय तक यह ओज़ोन छिद्र को खुला रखता है।
- ऑस्ट्रेलिया में जंगल की आग जून 2019 से मार्च 2020 तक जारी रही और इससे 1 मिलियन टन से अधिक धुआँ निकला जो समताप मंडल तक पहुँच गया जिसने ओन परत के छिद्रों के आकर में वृद्धि में मदद की।
- इस वनाग्नि के कारण 33 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि जल गई, 3 अरब जानवर मर गए या विस्थापित हो गए और जितनी संपत्ति का नुकसान हुआ, उसकी वजह से यह देश की सबसे खराब प्राकृतिक आपदा बन गई।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने (फेजिंग आउट) के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015) (a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन उत्तर: (b)
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स्रोत: पी.आई.बी.
राष्ट्रमंडल का भविष्य
प्रिलिम्स:राष्ट्रमंडल राष्ट्र, ब्रिटिश राजतंत्र, गणराज्य।। मेन्स के लिए:राष्ट्रमंडल की प्रासंगिकता और उसका भविष्य। |
चर्चा में क्यों?
यूनाइटेड किंगडम की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय की मृत्यु, न केवल ब्रिटिश राजतंत्र के एक युग के अंत का प्रतीक है, बल्कि 14 राष्ट्रमंडल क्षेत्रों, जिनकी वे प्रमुख थीं, के लिये भी एक निर्णायक बिंदु है।
पृष्ठभूमि:
- महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय की मृत्यु के बाद से 14 देशों के सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है।
- इन 14 में से कई देशों ने गणतंत्र स्थापित करने और ब्रिटिश राजशाही से ऐतिहासिक संबंधों से मुक्त होने का आह्वान किया।
- गणतंत्र, सरकार का वह रूप है जिसमें "सर्वोच्च शक्ति लोगों और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के पास होती है"।
- इस प्रकार यह संभावना है कि रानी के उत्तराधिकारी, राजा चार्ल्स III के शासनकाल के दौरान अधिक राष्ट्र बारबाडोस के नक्शेकदम पर चलेंगे।
- 2021 में बारबाडोस ब्रिटिश सम्राट को राज्य के प्रमुख की भूमिका से हटाने और उन्हें एक राष्ट्रीय सरकारी अधिकारी के साथ प्रतिस्थापित करने वाला 18वाँ देश बन गया।
राष्ट्रमंडल:
- विषय:
- राष्ट्रमंडल 56 देशों का एक संगठन है जिसमें मुख्य रूप से पूर्व में ब्रिटिश उपनिवेश रह चुके राष्ट्र हैं।
- इसकी स्थापना 1949 में लंदन घोषणापत्र द्वारा की गई थी।
- जबकि राष्ट्रमंडल के सदस्य मुख्य रूप से अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और प्रशांत में स्थित हैं, उनमें से कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इस समूह के तीन यूरोपीय सदस्य साइप्रस, माल्टा और यूके हैं।
- राष्ट्रमंडल के विकसित राष्ट्र ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूज़ीलैंड हैं।
- गणराज्य और क्षेत्र:
- राष्ट्रमंडल में गणराज्य और राज्य दोनों शामिल हैं।
- ब्रिटिश सम्राट राज्य का प्रमुख है, जबकि गणराज्यों पर निर्वाचित सरकारों द्वारा शासन किया जाता है, सिवाय पाँच देशों के ब्रुनेई दारुस्सलाम, इस्वातिनी, लेसोथो, मलेशिया और टोंगा, ये प्रत्येक देश स्व-शासित राजतंत्र है।
- ये क्षेत्र एंटीगुआ और बारबुडा, ऑस्ट्रेलिया, बहामास, बेलीज, कनाडा, ग्रेनाडा, जमैका, न्यूज़ीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, सोलोमन द्वीप और तुवालु हैं।
राष्ट्रमंडल की वर्तमान दुनिया में प्रासंगिकता:
- यद्यपि महारानी की मृत्यु के बाद राष्ट्रमंडल एक पुराने मंच की तरह लग सकता है, फिर भी यह एक उपयुक्त प्रासंगिकता बरकरार रखता है जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के विघटन के बाद भी समय के साथ इसे कायम रखा है।
- बहुपक्षीय कूटनीति के युग में जहाँ राज्य अपने विचार व्यक्त करने, अपने हितों को आगे बढ़ाने और वैश्विक मानदंडों को आकार देने के लिये एक मंच चाहते हैं, राष्ट्रमंडल ठीक ऐसा ही मंच प्रदान करता है।
- सम्राट केवल प्रतीकात्मक मुखिया होता है, स्वतंत्र विश्व के नेता राष्ट्रमंडल का काम करते हैं।
- अपने पूरे शासनकाल में महारानी एलिजाबेथ ने संगठन को समर्थ बनाने और समूह की प्रासंगिकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, साथ ही नियमित रूप से दुनिया भर के राष्ट्रमंडल देशों के नेताओं से मिलने के लिये यात्रा की।
राष्ट्रमंडल का भविष्य:
- ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और बहामास के भविष्य में गणतंत्र बनने की संभावना है।
- पाँच अन्य कैरिबियाई देशों- एंटीगुआ और बारबुडा, बेलीज़, ग्रेनाडा, जमैका तथा सेंट किट्स एवं नेविस में सरकारों ने इसी तरह से कार्य करने के अपने इरादे का संकेत दिया है।
- इस प्रकार यह कल्पना से परे नहीं है कि महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद राष्ट्रमंडल का महत्त्व कम हो सकता हैं और उपनिवेशवाद के इतिहास का सामना करने वाले राष्ट्र सहायक एवं संसाधन निष्कर्षण के साथ खुद को गणराज्यों के रूप में स्थापित करने के लिये आगे बढ़ेंगे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. सर स्टैफर्ड क्रिप्स की योजना में यह परिकल्पना थी कि द्वितीय युद्ध के बाद (a) भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिये उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, हिंद महासागर द्विध्रुवीय, मानसून अवसाद। मेन्स के लिये:भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अनुसंधान से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग, मानसून में विचलन/अस्थिरता को बढ़ाती है, जिसके परिणामस्वरूप लंबी शुष्क अवधि और भारी बारिश की अल्प अवधि दोनों होती है।
- वर्ष 2022 में वर्ष 1902 के बाद से दूसरी सबसे बड़ी चरम घटनाएँ देखी गई हैं। बाढ़ और सूखे जैसी खतरनाक घटनाएँ बढ़ गई है।
भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:
- विपरीत वर्षा प्रतिरूप:
- मानसून प्रणालियों के मार्ग में बदलाव देखा गया है जैसे कि कम दबाव और गर्त अपनी स्थिति के दक्षिण की तरफ स्थांतरित होने तथा फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएँ हो रही हैं।
- मानसून गर्त मूल रूप से एक कम दबाव प्रणाली को संदर्भित करता है जो गर्मियों में उत्तरी हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी को प्रभावित करता है। इसमें अपेक्षाकृत बड़ा क्षेत्र शामिल है एवं बंद आइसोबार का व्यास 1000 किमी जितना चौड़ा हो सकता है।
- मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में वर्ष 2022 में अधिक बारिश दर्ज की गई, इसके विपरीत पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में वर्षा नहीं हुई।
- अगस्त 2022 में भी बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक दो मानसून गर्त बने और पूरे मध्य भारत को प्रभावित किया।
- जबकि प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अद्वितीय होती है, वर्ष 2022 में वर्षा में एक बड़ी क्षेत्रीय और अस्थायी परिवर्तनशीलता रही है।
- मानसून प्रणालियों के मार्ग में बदलाव देखा गया है जैसे कि कम दबाव और गर्त अपनी स्थिति के दक्षिण की तरफ स्थांतरित होने तथा फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएँ हो रही हैं।
- कारण:
- तीव्र ला नीना स्थितियों का बना रहना, पूर्वी हिंद महासागर का असामान्य रूप से गर्म होना, नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD), अधिकांश मानसून गर्तों की दक्षिण की ओर गति और हिमालयी क्षेत्र में प्री-मॉनसून हीटिंग तथा ग्लेशियरों का पिघलना।
- IOD को दो क्षेत्रों के बीच समुद्र की सतह के तापमान में अंतर से परिभाषित किया जाता है - पहला, अरब सागर (पश्चिमी हिंद महासागर) में पश्चिमी ध्रुव और दूसरा इंडोनेशिया के दक्षिण में तथा पूर्वी हिंद महासागर में पूर्वी ध्रुव।
- IOD ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर बेसिन के आसपास के अन्य देशों की जलवायु को प्रभावित करता है, और इस क्षेत्र में वर्षा परिवर्तनशीलता में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है।
- तीव्र ला नीना स्थितियों का बना रहना, पूर्वी हिंद महासागर का असामान्य रूप से गर्म होना, नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD), अधिकांश मानसून गर्तों की दक्षिण की ओर गति और हिमालयी क्षेत्र में प्री-मॉनसून हीटिंग तथा ग्लेशियरों का पिघलना।
- प्रभाव:
- खरीफ फसलें:
- मानसून प्रणाली के मार्ग में बदलाव के प्रमुख प्रभावों में से एक खरीफ फसलों, विशेष रूप से चावल उत्पादन पर देखा जा सकता है। वे इस अवधि के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50% से अधिक का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं।
- खरीफ उत्पादन में गिरावट से चावल की कीमतें उच्च स्तर पर पहुँच सकती हैं।
- बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश, जो देश के कुल चावल उत्पादन का एक- तिहाई हिस्सा उत्पादित करते हैं, में जुलाई और अगस्त में सक्रिय मानसून के बावजूद अत्यधिक कमी रही है।
- अनाज की गुणवत्ता:
- यह असमान वर्षा वितरण अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है तथा साथ ही पोषण मूल्य भी बदल सकता है।
- 'भारत में जलवायु परिवर्तन, मानसून और चावल की पैदावार' नामक एक अध्ययन के अनुसार, बहुत अधिक तापमान (> 35 डिग्री सेल्सियस) ऊष्मा को प्रेरित करता है जो पौधों की शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है जिससे बौनापन, उर्वरता में कमी, गैर-व्यवहार्य पराग और अनाज की गुणवत्ता कम हो जाती है।
- यह असमान वर्षा वितरण अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है तथा साथ ही पोषण मूल्य भी बदल सकता है।
- खाद्य सुरक्षा:
- 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान भारत में मानसून की वर्षा कम बार लेकिन अधिक तीव्र हो गई।
- वैज्ञानिकों और खाद्य विशेषज्ञों का मानना है कि बेहतर वर्षा से फसल बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- हालाँकि भारत के करोड़ों चावल उत्पादक और उपभोक्ता इन अभूतपूर्व परिवर्तनों से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं जो खाद्य सुरक्षा पर भी चिंताएँ बढ़ा रहे हैं।
- खरीफ फसलें:
आगे की राह
- विश्वसनीयता और स्थिरता प्राप्त करने के लिये भारत को मानसून पूर्वानुमान की बेहतर भविष्यवाणी में अधिक संसाधनों का निवेश करने की आवश्यकता है।
- गर्म होती जलवायु के साथ वायुमंडल में अधिक नमी होगी, जिससे भारी वर्षा होगी, परिणामस्वरूप, भविष्य में मानसून की अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता में वृद्धि होगी। देश को इस बदलाव के लिये तैयार रहने की ज़रूरत है।
- इस प्रकार भारत के जलवायु पैटर्न को सुरक्षित और स्थिर बनाने के लिये हमें न केवल घरेलू मोर्चे (जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना) बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन) पर भी प्रभावी तथा समय पर कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि हम एक साझा भविष्य के साथ एक साझा विश्व में रहते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: B व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) प्रश्न. मानसून एशिया में रहने वाली संसार की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण में सफल मानसून जलवायु को क्या अभिलक्षण अनुदेशित किये जा सकते हैं? (2017) प्रश्न. आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीकारी दृश्यभूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन होता रहा है। चर्चा कीजिये। (2015) |
स्रोत: द हिंदू
पीएम प्रणाम (PM PRANAM) योजना
प्रिलिम्स के लिये:पीएम प्रणाम (कृषि प्रबंधन के लिये वैकल्पिक पोषक तत्त्वों को प्रोत्साहन योज़ना), IFMS (एकीकृत उर्वरक प्रबंधन प्रणाली), यूरिया, DAP (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), MOP (पोटाश का म्यूरेट), NPKS (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम), यूरिया की नीम कोटिंग, नई यूरिया नीति (NUP) 2015 मेन्स के लिये:उर्वरकों पर सब्सिडी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने के लिये सरकार पीएम प्रणाम यानी कृषि प्रबंधन हेतु वैकल्पिक पोषक तत्त्वों का संवर्द्धन (Promotion of Alternate Nutrients for Agriculture Management Yojana- PM PRANAM) योजना शुरू करने की योजना बना रही है।
योजना के बारे में:
- उद्देश्य:
- जैव उर्वरकों और जैविक उर्वरकों के संयोजन के साथ उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करना।
- लक्ष्य:
- रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी के बोझ को कम करना, जो 2022-23 में 2.25 लाख करोड़ रुपए तक पहुँचने का अनुमान है – 2021 के 1.62 लाख करोड़ रुपए के आँकड़े से 39% अधिक है।
- प्रस्तावित योजना की विशेषताएँ:
- इस योजना का कोई अलग बजट नहीं होगा और उर्वरक विभाग द्वारा संचालित योजनाओं के तहत "मौजूदा उर्वरक सब्सिडी की बचत" के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा।
- सब्सिडी बचत का 50% उस राज्य को अनुदान के रूप में दिया जाएगा जो पैसा बचाता है।
- योजना के तहत प्रदान किये गए अनुदान का 70% गाँव, ब्लॉक और ज़िला स्तर पर वैकल्पिक उर्वरकों और वैकल्पिक उर्वरक उत्पादन इकाइयों के तकनीकी अपनाने से संबंधित परिसंपत्ति सृजन के लिये उपयोग किया जा सकता है।
- शेष 30% अनुदान राशि का उपयोग किसानों, पंचायतों, किसान उत्पादक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों को पुरस्कृत करने तथा प्रोत्साहित करने के लिये किया जा सकता है जो उर्वरक उपयोग को कम करने व जागरूकता पैदा करने में शामिल हैं।
- एक वर्ष में यूरिया के रासायनिक उर्वरक उपयोग को कम करने की गणना की तुलना पिछले तीन वर्षों के दौरान यूरिया की औसत खपत से की जाएगी।
- इस उद्देश्य के लिये, उर्वरक मंत्रालय के डैशबोर्ड, एकीकृत उर्वरक प्रबंधन प्रणाली (Integrated Fertilizer Management System-IFMS) पर उपलब्ध डेटा का उपयोग किया जाएगा।
योजना की आवश्यकता:
- सरकार पर सब्सिडी का बोझ:
- किसान अपनी सामान्य आपूर्ति-और-मांग-आधारित बाज़ार दरों या उनके उत्पादन/आयात की लागत से कम अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक खरीदते हैं।
- उदाहरण के लिये, नीम लेपित यूरिया की MRP सरकार द्वारा 5,922.22 रुपए प्रति टन तय की गई है, जबकि घरेलू निर्माताओं और आयातकों को देय इसकी औसत लागत-प्लस कीमत क्रमशः लगभग 17,000 रुपए और 23,000 रुपए प्रति टन है।
- शेष भाग, जो संयंत्र-वार उत्पादन लागत और आयात मूल्य के अनुसार भिन्न होता है, केंद्र द्वारा सब्सिडी के रूप में रखा जाता है, यह अंततः कंपनियों को जाता है।
- गैर-यूरिया उर्वरकों का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय किया जाता है। हालांकि उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये केंद्र इन पोषक तत्त्वों पर एक समान प्रति टन सब्सिडी का भुगतान करता है।
- विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के लिये प्रति टन सब्सिडी 10,231 से 24,000 रूपए है। ।
- केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करती है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना आवश्यक है।
- किसान अपनी सामान्य आपूर्ति-और-मांग-आधारित बाज़ार दरों या उनके उत्पादन/आयात की लागत से कम अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक खरीदते हैं।
भारत में उर्वरक उपयोग की वर्तमान स्थिति:
- वर्ष 2020-21 में उर्वरक सब्सिडी पर व्यय 1.62 लाख करोड़ रुपए था और वर्ष 2022 के दौरान यह 2.25 लाख करोड़ रुपए के आँकड़े को पार कर सकता है।
- वर्ष 2020-21 के दौरान देश में चार उर्वरकों- यूरिया, DAP (डाई-अमोनियम फॉस्फेट), MOP (म्यूरिएट ऑफ पोटाश), NPKS (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) की कुल आवश्यकता 21% बढ़कर 640.27 लाख मीट्रिक टन (LMT) हो गई जो वर्ष 2017-18 में 528.86 लाख मीट्रिक टन थी।
- अधिकतम 25.44% की वृद्धि DAP की आवश्यकता में दर्ज की गई है। यह वर्ष 2017-18 के 98.77 LMT से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 123.9 LMT के स्तर पर पहुँच गई।
- देश में सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले रासायनिक उर्वरक यूरिया ने पिछले पाँच वर्षों में 19.64 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। इसकी आवश्यकता 2017-18 के 298 LMT से बढ़कर 2021-22 में 356.53 LMT हो गई।
सरकार द्वारा शुरू की गई अन्य संबंधित पहलें क्या हैं?
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण: केंद्र ने अक्तूबर 2016 से उर्वरकों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत विभिन्न उर्वरक ग्रेड पर उर्वरक कंपनियों को खुदरा विक्रेताओं द्वारा लाभार्थियों को की गई वास्तविक बिक्री के आधार पर 100% सब्सिडी जारी की जाती है।
- नए पोषक तत्त्वों का समावेश: सरकार ने उर्वरक नियंत्रण आदेश-1985 (FCO) में नैनो यूरिया और "जैव-उत्तेजक" जैसे नए पोषक तत्त्वों को शामिल किया था।
- यूरिया की नीम कोटिंग: उर्वरक विभाग (DOF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये नीम लेपित यूरिया (NCU) के रूप में 100% यूरिया का उत्पादन करना अनिवार्य कर दिया है।
- NCU के उपयोग के लाभ निम्नानुसार हैं:-
- मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
- पादप संरक्षण रसायनों के उपयोग में कमी।
- कीट हमले और रोग में कमी।
- धान, गन्ना, मक्का, सोयाबीन, अरहर/लाल चना की उपज में वृद्धि।
- NCU के उपयोग के लाभ निम्नानुसार हैं:-
- नई यूरिया नीति (NUP) 2015 के उद्देश्य हैं:
- स्वदेशी यूरिया उत्पादन को अधिकतम करना।
- यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
- भारत सरकार पर सब्सिडी के बोझ को तर्कसंगत बनाना।
- उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग: DoF ने भूवैज्ञानिक के सहयोग से इसरो के तहत राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र द्वारा "रॉक फॉस्फेट का रिफ्लेक्सेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी और पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके" तीन साल का पायलट अध्ययन शुरू किया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न: भारत सरकार कृषि में 'नीम-लेपित यूरिया (नीम कोटेड यूरिया)' के उपयोग को क्यों बढ़ावा देती है? (2016) (a) मृदा में नीम के तेल के प्रयोग से मृदा के सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ जाता है। उत्तर: b व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |