डेली न्यूज़ (19 Jul, 2023)



वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 2023


निर्यात तैयारी सूचकांक 2022

प्रिलिम्स के लिये:

निर्यात तैयारी सूचकांक, नीति आयोग, निर्यात संवर्द्धन, अनुसंधान और विकास, वैश्विक व्यापार संदर्भ

मेन्स के लिये:

निर्यात तैयारी सूचकांक

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नीति आयोग ने भारत के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये ‘निर्यात तैयारी सूचकांक (Export Preparedness Index- EPI) 2022’ नामक रिपोर्ट का तीसरा संस्करण जारी किया।

  • इस रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2022 में प्रचलित वैश्विक व्यापार संदर्भ में भारत के निर्यात प्रदर्शन की व्याख्या की गई है और देश के क्षेत्र-विशिष्ट निर्यात प्रदर्शन का अवलोकन किया गया है। 

निर्यात तैयारी सूचकांक: 

  • परिचय: 
    • EPI एक व्यापक व्यवस्था है जो भारत में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की निर्यात तैयारियों का आकलन करता है।
    • किसी भी राष्ट्र में आर्थिक विकास और प्रगति की संभावनाओं का पता लगाने के लिये निर्यात सफलता को प्रभावित करने वाले कारकों को समझना आवश्यक है।
    • यह सूचकांक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की ताकत और कमज़ोरियों की पहचान करने के लिये निर्यात-संबंधित मापदंडों का व्यापक विश्लेषण करता है। 
  • मुख्य स्तंभ: 
    • नीति: निर्यात-आयात के लिये रणनीतिक दिशा प्रदान करने वाली एक व्यापक व्यापार नीति।
    • बिज़नेस इकोसिस्टम: एक कुशल बिज़नेस इकोसिस्टम राज्यों को निवेश आकर्षित करने और व्यक्तियों के लिये स्टार्ट-अप शुरू करने हेतु एक सक्षम बुनियादी ढाँचा तैयार करने में मदद करता है।
    • निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र: निर्यात के लिये विशिष्ट कारोबारी माहौल का आकलन।
    • निर्यात प्रदर्शन: यह एकमात्र आउटपुट-आधारित पैरामीटर है जो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्यात फुटप्रिंट की पहुँच की जाँच करता है। 
  • उप स्तंभ: 
    • इस सूचकांक में 10 उप-स्तंभों; निर्यात संवर्द्धन नीति, संस्थागत ढाँचा, व्यापारिक वातावरण, आधारभूत संरचना, परिवहन कनेक्टिविटी, निर्यात अवसंरचना, व्यापार समर्थन, अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना, निर्यात विविधीकरण और विकास उन्मुखीकरण को भी शामिल किया गया है।
  • विशेषताएँ: EPI उप-राष्ट्रीय स्तर (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों) में निर्यात प्रोत्साहन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करने हेतु एक डेटा-संचालित प्रयास है।
    • यह प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश द्वारा किये गए विभिन्न योगदानों की जाँच कर भारत की निर्यात क्षमता का पता लगाता है और उस पर प्रकाश डालता है।

EPI 2022 के प्रमुख बिंदु: 

  • राज्यों का प्रदर्शन: 
    • शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:  
      • EPI 2022 में तमिलनाडु शीर्ष पर है, उसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक का स्थान है।
        • EPI 2021 (जो कि वर्ष 2022 में जारी किया गया था) में गुजरात शीर्ष स्थान पर था, लेकिन EPI 2022 में यह चौथे स्थान पर चला गया है।
      • निर्यात मूल्य, निर्यात एकाग्रता और वैश्विक बाज़ार फुटप्रिंट सहित निर्यात प्रदर्शन संकेतकों के कारण तमिलनाडु शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता है।
        • तमिलनाडु ऑटोमोटिव्स, चमड़ा, वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे क्षेत्रों में लगातार अग्रणी रहा है।
    • पहाड़ी/हिमालयी राज्य:  
      • EPI 2022 में पहाड़ी/हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड ने शीर्ष स्थान हासिल किया है। इसके बाद हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम का स्थान है।
    • स्थलरुद्ध क्षेत्र:  
      • EPI 2022 में भूमि से घिरे क्षेत्रों में हरियाणा शीर्ष पर है, यह निर्यात क्षेत्र में उसकी तैयारियों को प्रदर्शित करता है।
      • इसके बाद तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान है। 
    • केंद्रशासित प्रदेश/छोटे राज्य:  
      • केंद्रशासित प्रदेशों और छोटे राज्यों में गोवा EPI 2022 में पहले स्थान पर है।
        • जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लद्दाख क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें स्थान पर रहे हैं।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था: 
    • वर्ष 2021 में वैश्विक व्यापार कोविड-19 महामारी के प्रभावों से उबरता पाया गया। वस्तुओं की बढ़ती मांग, राजकोषीय नीतियों, वैक्सीन वितरण और प्रतिबंधों में ढील जैसे कारकों का विगत वर्ष की तुलना में वस्तु व्यापार में 27% की वृद्धि और सेवा व्यापार में 16% की वृद्धि का योगदान रहा।
    • फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा जिस कारण अनाज, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए।
    • वस्तुओं के व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई और वर्ष 2021 की चौथी तिमाही तक सेवा क्षेत्र व्यापार महामारी-पूर्व स्तर पर पहुँच गया। 
  • भारत का निर्यात रुझान: 
    • वैश्विक मंदी के बावजूद वर्ष 2021-22 में भारत का निर्यात अभूतपूर्व रूप से 675 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया, जिसमें वस्तु व्यापार 420 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
    • वित्त वर्ष 2022 में वस्तु निर्यात मूल्य 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर (सरकार द्वारा निर्धारित एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य) से अधिक रहा, मार्च 2022 तक यह 422 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया
      • इस प्रदर्शन के कई कारण हैं, वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की बढ़ती कीमतें और विकसित देशों से बढ़ती मांग के कारण भारत के वस्तु निर्यात में काफी वृद्धि हुई।  

निर्यात तैयारी सूचकांक के मुख्य निष्कर्ष: 

  • इस सूचकांक में शीर्ष राज्यों में से छह तटीय राज्यों ने सभी संकेतकों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
    • तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्य (इन राज्यों द्वारा कम-से-कम एक स्तंभ में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन)।
  • जहाँ तक नीतिगत पारिस्थितिकी तंत्र के सकारात्मक पहलुओं का सवाल है, कई सरकारों ने अपनी सीमाओं के भीतर निर्यात को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक उपाय व नीतियाँ लागू की हैं।
    • सकारात्मक पक्ष को देखें तो नीतिगत पारिस्थितिकी तंत्र एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करती है जिसमें कई राज्य अपने राज्यों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक नीतिगत उपाय अपना रहे हैं।
  • ज़िला स्तर पर देश के 73% ज़िलों में निर्यात कार्य योजना के साथ 99% से अधिक 'एक ज़िला एक उत्पाद' योजना के अंतर्गत आते हैं।
    • परिवहन कनेक्टिविटी के मामले में राज्य पिछड़े मालूम पड़ते हैं। हवाई कनेक्टिविटी के अभाव के कारण विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं की आवाजाही में बाधा उत्पन्न होती है, खासकर उन राज्यों में जो चारों तरफ से स्थल से घिरे हुए हैं अथवा भौगोलिक रूप से उतने संपन्न नहीं हैं।
  • अनुसंधान और विकास के मामले में देश का निम्न प्रदर्शन निर्यात क्षेत्र में नवाचार की भूमिका पर ध्यान दिये जाने की कमी को स्पष्टतः दर्शाता है।
    • राज्य सरकार को संघर्षरत उद्योगों का समर्थन जारी रखने और उन्हें प्रोत्साहित करते रहने की आवश्यकता है।
    • देश के 26 राज्यों ने अपने विनिर्माण क्षेत्र के सकल मूल्यवर्द्धन में कमी दर्ज की है।
    • 10 राज्यों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह में कमी दर्ज की गई है। 
  • निर्यातकों के लिये क्षमता-निर्माण कार्यशालाओं के आयोजन की कमी के कारण उनका वैश्विक बाज़ारों में प्रवेश करने की क्षमता बाधित होती है, प्राप्त जानकरी के अनुसार, 36 में से 25 राज्यों ने एक वर्ष में 10 से भी कम कार्यशालाएँ आयोजित की हैं।
    • राज्यों को समर्थन देने के लिये मौजूदा सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता के लिये परियोजनाओं की समयबद्ध मंज़ूरी काफी अहम है।

EPI को देखते हुए आगामी योजना: 

  • अच्छी प्रथाओं को अपनाना: राज्यों को अपने समकक्षों से अच्छी प्रथाओं (यदि वे उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप हों) को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। सफल राज्यों का अनुकरण करते हुए निम्न प्रदर्शन वाले राज्यों को अपने निर्यात प्रदर्शन में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
  • अनुसंधान और विकास में निवेश: राज्यों को उत्पाद नवाचार, बाज़ार-विशिष्ट उत्पाद निर्माण, उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार, लागत में कमी लाने और दक्षता में सुधार करने के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • नियमित वित्तपोषण के साथ समर्पित अनुसंधान संस्थानों की स्थापना से राज्य अपने निर्यात में सुधार कर सकते हैं।
  • भौगोलिक संकेतक उत्पादों का लाभ उठाना: वैश्विक बाज़ार में उपस्थिति दर्ज करने के लिये राज्यों को अपने अद्वितीय GI उत्पादों का लाभ उठाना चाहिये। GI उत्पादों के विनिर्माण और गुणवत्ता को बढ़ावा देने तथा सुधार करने से निर्यात क्षेत्र को काफी बढ़ावा मिल सकता है।
    • उदाहरण के लिये काँचीपुरम सिल्क उत्पाद का निर्यात केवल तमिलनाडु द्वारा किया जा सकता है और वर्तमान स्थिति यह है कि पूरे देश में उससे प्रतिस्पर्द्धा करने वाला कोई नहीं है।
  • निर्यात बाज़ारों का विविधीकरण: सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव्स, वस्त्र और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों की पहचान करने तथा उन्हें प्रोत्साहित कर भारत की निर्यात क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। 

स्रोत: पी.आई.बी.


राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक, नीति आयोग, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, गरीबी, सतत् विकास लक्ष्य 

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नीति आयोग ने "राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: प्रगति समीक्षा 2023" रिपोर्ट जारी की है जिसमें दावा किया गया है कि भारत में बड़ी संख्या में लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आ गए हैं।

राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक:

  • यह रिपोर्ट नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (वर्ष 2019-21) के आधार पर तैयार की गई है तथा राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) का दूसरा संस्करण है।
  • MPI अपने कई आयामों में गरीबी को मापने का प्रयास करता है तथा प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के आधार पर मौजूदा गरीबी के आँकड़ों का पूरक है।
  • इसके तीन समान महत्त्व वाले आयाम हैं- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर
    • इन तीन आयामों को पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, विद्युत, आवास, संपत्ति और बैंक खाते जैसे 12 संकेतकों द्वारा दर्शाया जाता है। 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु: 

  • बहुआयामी गरीबी में कमी:
    • वर्ष 2015-16 और वर्ष 2019-21 के बीच भारत में बहुआयामी गरीब व्यक्तियों की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई।
    • इस अवधि में लगभग 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले। 
  • गरीबी प्रतिशत में गिरावट:  
    • बहुआयामी गरीबी में जीने वाली भारत की जनसंख्या वर्ष 2015-16 के 24.85% से घटकर वर्ष 2019-21 में 14.96% हो गई, यह 9.89% अंकों की गिरावट दर्शाती है।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन:  
    • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में सबसे तेज़ गिरावट देखी गई है, वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच गरीबी दर 32.59% से गिरकर 19.28% हो गई।
    • इसी अवधि में शहरी क्षेत्रों में गरीबी दर 8.65% से घटकर 5.27% हो गई।
  • राज्य स्तरीय प्रगति:  
    • MPI गरीबों की संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश में गरीब व्यक्तियों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई, जहाँ 3.43 करोड़ (34.3 मिलियन) लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए।
    • बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिसा और राजस्थान राज्यों में भी बहुआयामी गरीबी को कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखी गई।
    • बिहार में पूर्ण रूप से MPI मूल्य में सबसे तेज़ गिरावट (वर्ष 2019-21 में बहुआयामी गरीबों की 51.89% से घटकर 33.76%) देखी गई, इसके बाद मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का स्थान है।

  • SDG लक्ष्य:  
    • भारत के लिये MPI मूल्य वर्ष 2015-16 और वर्ष 2019-21 के बीच 0.117 से लगभग आधा होकर 0.066 हो गया है।
    • गरीबी की तीव्रता 47% से घटकर 44% हो गई है, जो दर्शाता है कि भारत वर्ष 2030 की निर्धारित समयसीमा से पहले SDG (सतत विकास लक्ष्य) लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम-से-कम आधा करना) हासिल करने की राह पर है।
  • संकेतकों में सुधार:
    • बहुआयामी गरीबी को मापने के लिये उपयोग किये जाने वाले सभी 12 संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया।
    • स्वच्छ भारत मिशन (SBM) और जल जीवन मिशन (JJM) का प्रभाव स्वच्छता में तेज़ी से 21.8% अंकों के सुधार से स्पष्ट है।
    • पोषण अभियान एवं एनीमिया मुक्त भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र में अभावों को कम करने में योगदान दिया है।
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) में सब्सिडी के माध्यम से खाना पकाने के ईंधन के प्रावधान ने जीवन को सकारात्मक रूप से बदल दिया है, खाना पकाने के ईंधन की कमी में 14.6% का सुधार देखा गया।

अभावों को कम करने एवं नागरिकों के कल्याण में सुधार के लिये सरकारी पहल:


UNAIDS रिपोर्ट: HIV/AIDS के विरुद्ध लड़ाई में प्रगति और चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व एड्स दिवस, एड्स, एचआईवी

मेन्स के लिये:

वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर एड्स की स्थिति, एड्स, HIV, संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?  

HIV/AIDS पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (Joint United Nations Programme on HIV/AIDS- UNAIDS) द्वारा "द पाथ दैट एंड्स एड्स" शीर्षक से एक हालिया रिपोर्ट में इस बीमारी से निपटने में हुई प्रगति पर प्रकाश डाला गया है। यह एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (AIDS) और ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में मौजूदा चुनौतियों और प्रगति को उज़ागर करता है।

  • यह रिपोर्ट उपचार तक पहुँच सुनिश्चित करने, असमानताओं को दूर करने, सामाजिक भेदभाव से निपटने और पर्याप्त वित्तीयन सुरक्षित करने के लिये निरंतर प्रयासों की आवश्यकता पर बल देती है

UNAIDS रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु: 

  • AIDS के कारण होने वाली मृत्यु और उपचार तक पहुँच: 
    • वर्ष 2022 में एड्स की वजह से प्रत्येक मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई
    • वर्ष 2022 में विश्व भर में HIV से पीड़ित लगभग 9.2 मिलियन लोगों के पास इलाज तक पहुँच की सुविधा नहीं थी।
    • उपचार प्राप्त कर रहे 2.1 मिलियन लोगों में से कई लोग वायरली सप्रेस्ड (HIV से पीड़ित लोगों का प्रतिशत, जिनके प्रति मिलीलीटर रक्त में HIV की 200 से कम प्रतियाँ हों।) नहीं थे।
  • उपचार संबंधी प्रगति और वैश्विक लक्ष्य: 
    • वैश्विक स्तर पर HIV से पीड़ित 39 मिलियन लोगों में से 29.8 मिलियन लोगों को जीवन रक्षक उपचार प्रदान किया जा रहा है।
    • वर्ष 2020 और 2022 के बीच प्रत्येक वर्ष 1.6 मिलियन अतिरिक्त लोगों को HIV का उपचार प्रदान किया गया।
    • यदि इसी प्रकार प्रगति जारी रही तो वर्ष 2025 तक 35 मिलियन लोगों को HIV उपचार प्रदान करने का वैश्विक लक्ष्य निश्चय ही हासिल किया जा सकता है। 
  • कुछ क्षेत्रों में उपचार की धीमी प्रगति: 
    • पूर्वी यूरोप, मध्य एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में उपचार की धीमी प्रगति देखी गई।
    • इन क्षेत्रों में HIV से पीड़ित दो मिलियन से अधिक लोगों में से केवल आधे को ही वर्ष 2022 में एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (Antiretroviral Therapy) प्राप्त हुई।
  • लिंग भेदभाव और उपचार दर:
    • उप-सहारा अफ्रीका, कैरेबियन, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में HIV से पीड़ित पुरुषों को महिलाओं की तुलना में उपचार मिलने की संभावना कम है।
    • उपचार तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये लिंग भेदभाव पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • बच्चों पर प्रभाव:
    • वर्ष 2010 से 2022 तक बच्चों में एड्स के कारण मृत्यु के आँकड़ों में 64% तक की कमी आई।
      • हालाँकि वर्ष 2022 में लगभग 84,000 बच्चों की HIV से मृत्यु हो गई।
    • वर्ष 2022 में HIV से पीड़ित 1.5 मिलियन बच्चों में से लगभग 43% को उपचार नहीं मिला
  • HIV रोकथाम में चुनौतियाँ:
    • उप-सहारा अफ्रीका में सभी नए HIV संक्रमण से पीड़ितों में 63% महिलाएँ और लड़कियाँ हैं।
    • इस क्षेत्र में HIV की अधिक घटनाओं वाले 42 प्रतिशत ज़िलों में ही विशेष रोकथाम कार्यक्रम हैं।
    • इस अंतर को दूर करने के लिये उन्नत रोकथाम प्रयासों की आवश्यकता है।
  • कोषीय अंतराल:
    • रोकथाम निधि में वृद्धि वाले क्षेत्रों में HIV की घटनाओं में गिरावट आई है।
    • पूर्वी यूरोप, मध्य एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका को कोष की कमी के कारण HIV महामारी में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • वर्ष 2022 में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में HIV कार्यक्रमों के लिये केवल 20.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध थे, जो वर्ष 2025 तक आवश्यक 29.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम था।
    • अस्थिर कोष स्तर:
      • वर्ष 2010 की शुरुआत में कोष में काफी वृद्धि हुई, लेकिन तब से यह वर्ष 2013 के स्तर पर वापस आ गया है।
      • वर्ष 2022 में पिछले वर्ष की तुलना में कोष में 2.6% की गिरावट आई, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में HIV कार्यक्रमों के लिये केवल 20.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध थे।
      • फंडिंग का अंतर महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, क्योंकि वर्ष 2025 तक आवश्यक राशि 29.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

HIV/AIDS पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम: 

  • यह सतत् विकास लक्ष्यों के हिस्से के रूप में वर्ष 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में समाप्त करने के वैश्विक प्रयास का नेतृत्व कर रहा है। इसकी शुरुआत वर्ष 1996 में की गई थी।
  • UN-AIDS का दृष्टिकोण HIV संक्रमण को शून्य करने के साथ इससे होने वाली मृत्यु को समाप्त करना तथा किसी को भी पीछे न छोड़ने के सिद्धांत पर कार्य करना है।
  • एड्स को समाप्त करने को लेकर संयुक्त राष्ट्र की राजनीतिक घोषणा को वर्ष 2016 में अपनाया गया था, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में समाप्त करना है।

AIDS: 

  • परिचय:  
    • AIDS, HIV के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक संभावित जीवन-घातक स्वास्थ्य स्थिति है जो संक्रमण से लड़ने की शरीर की क्षमता में हस्तक्षेप करती है।
    • HIV शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में CD4, एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका (T कोशिकाएँ) पर हमला करता है।
      • T कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ हैं जो शरीर की कोशिकाओं में विसंगतियों और संक्रमण का पता लगाती हैं।
    • शरीर में प्रवेश करने के बाद HIV स्वयं की वृद्धि करता है और CD4 कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिससे मानव प्रतिरक्षा प्रणाली गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती है। एक बार यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाए तो इसे कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता है।
    • HIV से संक्रमित व्यक्ति के CD4 की संख्या काफी कम हो जाती है। एक स्वस्थ शरीर में CD4 की संख्या 500-1600 के बीच होती है, लेकिन संक्रमित शरीर में यह कम होकर 200 तक भी पहुँच सकती है।
  • प्रसार: 
    • एचआईवी (HIV) किसी संक्रमित व्यक्ति के शरीर के कुछ तरल पदार्थों (रक्त, वीर्य, आदि) के संपर्क में आने से फैलता है।  
    • एचआईवी संचरण में असुरक्षित यौन संबंध, दूषित सुइयों का उपयोग करना और बच्चे के जन्म या स्तनपान के दौरान माँ से बच्चे में प्रसारित होना शामिल है।
  • लक्षण: 
    • इसके शुरुआती लक्षणों में थकान, बुखार और घाव/फोड़ा शामिल हैं।
    • एड्स (AIDS) के बढ़ने से निमोनिया और कुछ कैंसर जैसे गंभीर लक्षण हो सकते हैं। 
  • निवारण: 
    • माँ से बच्चे में संक्रमण को रोकने के लिये सावधानियाँ बरती जा सकती हैं।
    • इसका शीघ्र निदान और उपचार किया जाना चाहिये।
    • समग्र सुरक्षा के लिये विवाह पूर्व एचआईवी परीक्षण पर विचार किया जा सकता है।
    • यौन संचारित रोगों से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सुरक्षात्मक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिये।

एड्स रोग पर अंकुश लगाने के लिये भारत की पहल:

  • एचआईवी और एड्स (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017:
    • इस अधिनियम के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें एचआईवी या एड्स के प्रसार को रोकने के लिये उपाय सुनिश्चित करेंगी।
  • ART तक पहुँच:  
  • समझौता ज्ञापन (MoU):  
    • वर्ष 2019 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने नशीली दवाओं के दुरुपयोग तथा एचआईवी/एड्स से पीड़ित बच्चों और लोगों के खिलाफ सामाजिक कलंक एवं भेदभाव की घटनाओं को कम करने हेतु एचआईवी/एड्स उपचार को बढ़ाने के लिये सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। 
  • प्रोजेक्ट सनराइज़: 
    • वर्ष 2016 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में विशेषकर नशीली दवाओं का इंजेक्शन लेने वाले लोगों में बढ़ते एचआईवी प्रसार से निपटने हेतु यह प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया था।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी बीमारी टैटू बनवाने के कारण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रसारित हो सकती है? (2013) 

  1. चिकनगुनिया
  2. हेपेटाइटिस B 
  3. एचआईवी-एड्स

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगाँठ

प्रिलिम्स के लिये:

राफेल जेट, P75 कार्यक्रम, पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, सुपरकंप्यूटिंग, ब्लू इकॉनमी, अभ्यास शक्ति, अभ्यास वरुण, अभ्यास गरुड़, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, पेरिस समझौता

मेन्स के लिये:

भारत और फ्राँस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

चर्चा में क्यों ?  

बैस्टिल डे परेड समारोह में भारतीय प्रधानमंत्री ने फ्राँसीसी राष्ट्रपति के साथ विशिष्ट अतिथि के तौर पर हिस्सा लिया, इस परेड में भारत की तीनों सेवाओं के मार्चिंग दल ने भाग लिया। भारतीय वायु सेना के राफेल जेट भी फ्लाईपास्ट का हिस्सा बने।

  • इस अवसर पर फ्राँस और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगाँठ: भारत-फ्राँस संबंधों की शताब्दी की ओर शीर्षक वाला संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जो वर्ष 2047 तक द्विपक्षीय संबंधों के लिये मार्ग प्रशस्त करता है।
  • इस संबंध में तीन स्तंभों पर रोडमैप बनाया गया है: सुरक्षा और संप्रभुता के लिये साझेदारी, ग्रह के लिये साझेदारी और लोगों के लिये साझेदारी

यात्रा की प्रमुख झलकियाँ: 

  • स्तंभ 1: सुरक्षा और संप्रभुता के लिये साझेदारी:
    • रक्षा: भारतीय वायुसेना के लिये 36 राफेल जेट की समय पर डिलीवरी और P75 कार्यक्रम (छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों) की सफलता के बाद लड़ाकू जेट और पनडुब्बियों के संबंध में सहयोग जारी रखना।
    • अंतरिक्ष: फ्राँस के CNES और भारत के इसरो के बीच समझौतों के माध्यम से वैज्ञानिक और वाणिज्यिक साझेदारी को बढ़ाना।
      • इसमें संयुक्त पृथ्वी अवलोकन उपग्रह तृष्णा, हिंद महासागर में समुद्री निगरानी उपग्रह और कक्षा में भारत-फ्राँसीसी उपग्रहों की सुरक्षा शामिल है।
    • परमाणु ऊर्जा: जैतापुर, महाराष्ट्र में 6-यूरोपीय दबावयुक्त रिएक्टर विद्युत संयंत्र परियोजना पर प्रगति के साथ छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों और उन्नत मॉड्यूलर रिएक्टरों पर एक सहयोग कार्यक्रम का शुभारंभ।
    • हिंद-प्रशांत: हिंद-प्रशांत में संयुक्त कार्रवाई के लिये एक रोडमैप को अपनाना, जिसमें इस क्षेत्र के लिये व्यापक रणनीति के सभी पहलुओं को शामिल किया गया हो।
      • तीसरी दुनिया के देशों के लिये भारत-फ्राँस विकास निधि को अंतिम रूप देने पर चर्चा, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सतत् विकास परियोजनाओं के संयुक्त वित्तपोषण को सक्षम किया जा सके। 
    • आतंकवाद-निरोध: फ्राँस के GIGN और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के बीच सहयोग को मज़बूत करना।
    • महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी: सुपरकंप्यूटिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्वांटम कंप्यूटिंग सहित अत्याधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी पर सहयोग को मज़बूत करना।
      • सुपरकंप्यूटर की आपूर्ति के लिये Atos और भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के बीच एक समझौते की घोषणा।
    • नागरिक उड्डयन: फ्राँस और भारत के बीच मार्गों और भारतीय नागरिक उड्डयन बाज़ार के विस्तार का समर्थन करने के लिये नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में तकनीकी और सुरक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर करना।
  • स्तंभ 2: ग्रह और वैश्विक मुद्दों के लिये भागीदारी:  
    • प्लास्टिक प्रदूषण: प्लास्टिक उत्पादों के पूरे जीवन चक्र के दौरान प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संधि को अपनाने हेतु फ्राँस और भारत की प्रतिबद्धता।
    • स्वास्थ्य: अस्पतालों, चिकित्सा अनुसंधान, डिजिटल प्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सूक्ष्म जीवाणु प्रतिरोध से निपटने में सहयोग के लिये स्वास्थ्य और चिकित्सा को लेकर एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर।
    • ब्लू इकॉनमी: ब्लू इकॉनमी और महासागर गवर्नेंस रोडमैप के अंर्तगत समुद्री अनुसंधान पर फ्राँस के IFREMER और भारत के राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के बीच साझेदारी का शुभारंभ।
    • ऊर्जा संक्रमण के लिये वित्तपोषण: भारत के सतत् शहरों के कार्यक्रम "CITIIS 2.0" के लिये फ्राँसीसी विकास एजेंसी से वित्तपोषण तथा दक्षिण एशिया ग्रोथ फंड (SAGF III) के लिये प्रोपार्को से वित्तपोषण की घोषणा की गई है।
    • डीकार्बोनाइज़्ड हाइड्रोजन: डीकार्बोनाइज़्ड हाइड्रोजन के लिये इंडो-फ्रेंच रोडमैप के अनुरूप भारत में इलेक्ट्रोलाइज़र का निर्माण किया जाएगा।
  • स्तंभ 3: लोगों की साझेदारी:  
    • छात्र गतिशीलता: वर्ष 2030 तक फ्राँस में 30,000 भारतीय छात्रों का स्वागत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
      • फ्राँसीसी विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री वाले भारतीय छात्रों के लिये 5 वर्ष का अल्पकालिक शेंगेन वीज़ा जारी किया जाएगा।
    • राजनयिक और दूतावास संबंध: मार्सिले, फ्राँस में भारत का एक महावाणिज्य दूतावास और हैदराबाद, भारत में एक ब्यूरो डी फ्राँस का उद्घाटन किया गया।
    • संस्कृति: नई दिल्ली में नए राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना के लिये भारत के भागीदार के रूप में फ्राँस का चयन किया गया है।
      • ऑडियो-विज़ुअल सामग्री के आदान-प्रदान और कार्यक्रमों के सह-उत्पादन के लिये फ्राँस मेडियास मोंडे और प्रसार भारती के बीच समझौता हुआ है।
    • अनुसंधान: नई परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये उन्नत अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु इंडो-फ्रेंच सेंटर के लिये वित्तपोषण में वृद्धि की गई है।
  • अन्य मुख्य बिंदु:  
    • फ्राँस ने भारत को वर्ष 1916 की तस्वीर की एक फ्रेमयुक्त प्रतिकृति उपहार में दी है जिसमें पेरिसवासी एक सिख अधिकारी को फूल भेंट करते हुए दिखाया गया है। 
    • फ्राँस ने शारलेमेन शतरंज खिलाड़ियों की प्रतिकृति और मार्सेल प्राउस्ट के उपन्यासों की एक शृंखला भी प्रस्तुत की है।
    • भारतीय प्रधानमंत्री को उनकी यात्रा के दौरान फ्राँस के सर्वोच्च नागरिक और सैन्य सम्मान ग्रैंड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त अंतिम संयुक्त बयान में तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की खरीद और लड़ाकू विमान इंजन के संयुक्त विकास पर समझौते का कोई संदर्भ नहीं लिया गया।

भारत और फ्राँस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र:  

  • पृष्ठभूमि:  
    • जनवरी 1998 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद फ्राँस उन पहले देशों में से एक था जिसके साथ भारत ने "रणनीतिक साझेदारी" पर हस्ताक्षर किये।
    • फ्राँस वर्ष 1998 में भारत द्वारा परमाणु हथियारों के परीक्षण के फैसले का समर्थन करने वाले गिने चुने देशों में से एक था।

  • रक्षा सहयोग: वर्ष 2017-2021 में दूसरे सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्त्ता बनने के साथ फ्राँस भारत के लिये एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में उभरा है।
  • आर्थिक सहयोग: वर्ष 2022-23 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 13.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नए प्रतिमान पर पहुँच गया, भारत द्वारा किया जाने वाला निर्यात 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी अधिक रहा।
    • अप्रैल 2000 से दिसंबर 2022 तक 10.49 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी निवेश के साथ फ्राँस भारत में 11वाँ सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहयोग: फ्राँस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के साथ-साथ परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में प्रवेश के लिये भारत का समर्थन करता है।
  • जलवायु सहयोग: जलवायु परिवर्तन दोनों देशों के लिये चिंता का विषय है, भारत ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये अपनी ठोस प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए पेरिस समझौते में फ्राँस का समर्थन किया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) 

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारंभ किया गया था।
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


बिम्सटेक

प्रिलिम्स के लिये:

बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक), भारत-प्रशांत क्षेत्र, हिंद महासागर, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ

मेन्स के लिये:

क्षेत्रीय सहयोग के लिये बिम्सटेक का महत्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) की पहली विदेश मंत्रियों की बैठक बैंकॉक में शुरू हुई। 

  • इस बैठक में भोजन, स्वास्थ्य और ऊर्जा सुरक्षा सहित अन्य सामूहिक चुनौतियों के क्षेत्रों पर चर्चा की गई।

बिम्सटेक: 

  • परिचय: 
    • बिम्सटेक सात सदस्य देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसमें दक्षिण एशिया के पाँच देश- बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के दो देश-  म्याँमार एवं थाईलैंड शामिल हैं।
    • यह उप-क्षेत्रीय संगठन 6 जून, 1997 को बैंकाक घोषणा के माध्यम से अस्तित्त्व में आया।
    • BIMSTEC का सचिवालय बांग्लादेश के ढाका में है। 
  • संस्थागत तंत्र: 
    • बिम्सटेक शिखर सम्मेलन
    • मंत्रिस्तरीय बैठक
    • वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक
    • बिम्सटेक कार्य समूह
    • व्यापार मंच एवं आर्थिक मंच
  • सहयोग: 
    • बिम्सटेक के अंर्तगत सहयोग प्रारंभ में वर्ष 1997 में 6 क्षेत्रों (व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन और मत्स्य पालन) पर केंद्रित था तथा बाद में वर्ष 2008 में अन्य क्षेत्रों में विस्तारित हुआ।
    • प्रत्येक सदस्य देश ने पुनर्गठन के बाद वर्ष 2021 में विशिष्ट क्षेत्रों का नेतृत्व ग्रहण किया।
    • भारत आतंकवाद और अंतर्राष्ट्रीय अपराध, आपदा प्रबंधन तथा ऊर्जा सहयोग के साथ-साथ सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

बिम्सटेक का महत्त्व: 

  • वैश्विक स्तर पर महत्त्व: 
    • विश्व की लगभग 22% आबादी बंगाल की खाड़ी के आसपास के सात देशों में रहती है जिनकी संयुक्त GDP 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब है।
    • वर्ष 2012 से 2016 तक सभी सात देशों की औसत वार्षिक वृद्धि दर 3.4% और 7.5% के बीच बनी रही।
    • प्रत्येक वर्ष विश्व के एक-चौथाई माल का व्यापार खाड़ी के माध्यम से किया जाता है।
  • क्षेत्रीय रणनीतिक प्रोत्साहन: 
    • बिम्सटेक (BIMSTEC) के विकास हेतु बिम्सटेक देशों के पास रणनीतिक प्रोत्साहन प्राप्त है।
    • उदाहरण के लिये बांग्लादेश बिम्सटेक को बंगाल की खाड़ी पर एक लघु देश न मानकर अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये एक मंच के रूप में देखता है।
    • श्रीलंका इसे दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़ने तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र का व्यापक केंद्र बनने के अवसर के रूप में देखता है।
    • नेपाल और भूटान का लक्ष्य अपनी स्थलरुद्ध भौगोलिक स्थिति पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिये बंगाल की खाड़ी क्षेत्र से जुड़ना है।
    • म्याँमार एवं थाईलैंड भारत और बिम्सटेक के साथ गहरे संबंधों को भारत के बढ़ते उपभोक्ता बाज़ार तक पहुँचने, क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन की उपस्थिति के विकल्प के तौर पर विकसित करने के साधन के रूप में देखते हैं।
    • यह आर्थिक एकीकरण, क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग और शांति एवं विकास हेतु साझा मूल्यों का लाभ उठाने की अनुमति प्रदान करता है।
  • भारत के लिये महत्त्व: 
    • बिम्सटेक न केवल दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ता है बल्कि महान हिमालय और बंगाल की खाड़ी की पारिस्थितिकी को भी शामिल करता है।
    • भारत बिम्सटेक को "नेबरहुड फर्स्ट" और "एक्ट ईस्ट" के अपने विदेश नीति उद्देश्यों को प्राथमिकता देने के लिये एक सहज मंच के रूप में देखता है।
      • बिम्सटेक का महत्त्व तब सामने आया जब इसके कुछ सदस्य देशों ने इस्लामाबाद में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) शिखर सम्मेलन के बहिष्कार के भारत के आह्वान का समर्थन किया, जिसके कारण इसे बाद में स्थगित करना पड़ा था। 
      • इस कदम से भारत ने पाकिस्तान को इससे बाहर रखने में सफलता हासिल की थी।
  • चीन की आक्रामकता : 
    • हिंद महासागर तक अपने पहुँच के मार्ग को बनाए रखने में तेज़ी से मुखर हो रहे चीन के लिये बंगाल की खाड़ी का काफी महत्त्व है।
      • भूटान और भारत को छोड़कर, चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण तथा निर्माण के लिये एक वृहत अभियान शुरू किया है, जिस कारण बिम्सटेक भारत और चीन के बीच प्रभुत्त्व के संघर्ष के लिये एक नया मोर्चा बन गया है।
    • बिम्सटेक की सहायता से भारत, चीनी निवेश का मुकाबला करने के लिये एक रचनात्मक एजेंडे का निर्माण कर सकता है और/या फिर मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के आधार पर कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन कर सकता है। 
      • चीनी परियोजनाओं को व्यापक रूप से इन मानदंडों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है।
  • शांति और नौवहन की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना:
    • दक्षिण चीन सागर में चीन के रवैये के विपरीत बंगाल की खाड़ी को खुले और शांतिपूर्ण क्षेत्र के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।
    • यह नौवहन की स्वतंत्रता को संरक्षित करने और मौजूदा समुद्री कानून को क्षेत्रीय स्तर पर लागू करने वाले आचार संहिता का विकास कर सकता है।
    • इसके अतिरिक्त बिम्सटेक बंगाल की खाड़ी क्षेत्र की शांति जैसी पहल स्थापित करके इस क्षेत्र में बढ़ते सैन्यीकरण को रोक सकता है जिसका उद्देश्य अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों की आक्रामक कार्रवाइयों पर लगाम लगाना है।

बिमस्टेक की सार्क से भिन्नता 

सार्क 

बिमस्टेक 

1. दक्षिण एशिया पर नज़र रखने वाला एक क्षेत्रीय संगठन

2. शीतयुद्ध काल के दौरान वर्ष 1985 में स्थापित।

3. सदस्य देशों को अविश्वास और संदेह का खामियाजा भुगतना पड़ता है।

4. क्षेत्रीय राजनीति से पीड़ित।

5. असममित शक्ति संतुलन।

6. अंतर-क्षेत्रीय व्यापार केवल 5 प्रतिशत।

1.दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने वाला अंतर्क्षेत्रीय संगठन।

2. शीत युद्ध के बाद वर्ष 1997 में स्थापित।

3. सदस्य यथोचित मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखते हैं।

4. मुख्य उद्देश्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग में सुधार करना है।

5. ब्लॉक में थाईलैंड और भारत की उपस्थिति के साथ शक्ति संतुलन।

6. एक दशक में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार लगभग 6 प्रतिशत बढ़ गया है।

आगे की राह 

  • बिमस्टेक सदस्य देशों को व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन, सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी, आपदा प्रबंधन और ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • संगठन को वर्तमान समझौतों को लागू करने और सहयोग के लिये नए रास्ते तलाशने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
  • बिमस्टेक को व्यापार सुविधा बढ़ाने, बाधाओं को कम करने और सदस्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
  • संगठन को क्षेत्रीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के अवसर तलाशने चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. आपके विचार में क्या बिमस्टेक (BIMSTEC) सार्क (SAARC ) की तरह एक समानांतर संगठन है? इन दोनों के बीच क्या समानताएँ और असमानताएँ हैं? इस नए संगठन के बनाए जाने से भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य कैसे प्राप्त हुए हैं? (2022) 

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस