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डेली न्यूज़

  • 19 Jan, 2024
  • 61 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

केरल में अवसंरचना को प्रोत्साहन

प्रिलिम्स के लिये:

राष्‍ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP), प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना, विश्व बैंक द्वारा भारत की शहरी अवसंरचना आवश्यकताओं का वित्तपोषण, राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण और विकास बैंक (NBFID), विकसित भारत, अमृत काल, मेक इन इंडिया

मेन्स के लिये:

भारत का बुनियादी ढाँचा क्षेत्र- महत्त्व, चुनौतियाँ और संबंधित पहल

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री (Prime Minister- PM) ने कोच्चि, केरल में तीन परियोजनाओं का उद्घाटन किया जिसमें कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) में न्यू ड्राई डॉक (NDD), CSL की अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ मरम्मत सुविधा (International Ship Repair Facility- ISRF) एवं इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) का LPG आयात टर्मिनल शामिल हैं।

  • ये प्रमुख अवसंरचना परियोजनाएँ भारत के बंदरगाहों, पोत परिवहन और जलमार्ग क्षेत्र को बदलने तथा इसमें क्षमता सृजन एवं आत्मनिर्भरता के लिये प्रधानमंत्री के विज़न के अनुरूप हैं।

केरल में उद्घाटन की गई तीन विभिन्न परियोजनाएँ क्या हैं?

  • न्यू ड्राई डॉक:
    • 310 मीटर की लंबाई के साथ न्यू ड्राई डॉक (NDD) अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया गया है।
    • यह राष्ट्रीय गौरव इंजीनियरिंग का चमत्कार है जो INS विक्रांत अथवा अन्य बड़े जहाज़ों के विस्थापन से दोगुने विमान वाहक को संभालने में सक्षम है।
    • भारत के इंजीनियरिंग कौशल और परियोजना प्रबंधन क्षमताओं को दर्शाने वाली एक प्रमुख परियोजना NDD इस क्षेत्र के सबसे बड़े समुद्री अवसंरचना में से एक है।
    • इसमें दक्षता, सुरक्षा और पर्यावरणीय संधारणीयता सुनिश्चित करने के लिये नवीनतम तकनीक तथा नवाचारों को शामिल किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ मरम्मत सुविधा:
    • अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ मरम्मत सुविधा (ISRF) भारत का पहला पूर्ण रूप से विकसित शुद्ध जहाज़ मरम्मत पारिस्थितिकी तंत्र है जो जहाज़ मरम्मत उद्योग की क्षमता में 25% की वृद्धि करेगा।
    • ₹970 करोड़ के निवेश पर निर्मित यह आपातकालीन स्थिति के दौरान भारत के नौसेना और तटरक्षक जहाज़ों के लिये त्वरित टर्नअराउंड (जहाज़ पर से माल उतारने व लादने की क्रिया) प्रदान करेगा।
    • ISRF, CSL की वर्तमान जहाज़ मरम्मत क्षमताओं का आधुनिकीकरण तथा विस्तार करेगा एवं इसे एक वैश्विक जहाज़ मरम्मत केंद्र के रूप में परिवर्तित करेगा।
  • IOCL के लिये LPG आयात टर्मिनल:
    • IOCL के लिये एक LPG आयात टर्मिनल का भी कोच्चि में उद्घाटन किया गया, जिसमें 3.5 किमी. लंबी क्रॉस कंट्री पाइपलाइन के माध्यम से मल्टी-यूज़र लिक्विड टर्मिनल जेट्टी से जुड़े अत्याधुनिक अवसंरचना के साथ काम किया गया है। 
    • टर्मिनल का लक्ष्य 1.2 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MMTPA) का कारोबार प्राप्त करना है। यह सड़क व पाइपलाइन हस्तांतरण के माध्यम से LPG वितरण सुनिश्चित करेगा, जिससे केरल और तमिलनाडु में बॉटलिंग संयंत्रों को प्रत्यक्ष लाभ होगा।
    • यह LPG की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करके भारत के ऊर्जा अवसंरचना को भी महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगा, जिससे क्षेत्र और उसके आसपास के लाखों परिवारों एवं व्यवसायों को लाभ होगा।
    • यह परियोजना सभी के लिये सुलभ और सस्ती ऊर्जा सुनिश्चित करने की दिशा में भारत के प्रयासों को और मज़बूत करेगी।

इन परियोजनाओं का महत्त्व क्या है?

  • समुद्री विकास हेतु रणनीतिक दृष्टिकोण:
    • प्रधानमंत्री ने 'सबका साथ, सबका विकास' दृष्टिकोण से जुड़ी परियोजनाओं द्वारा स्थापित वैश्विक बेंचमार्क पर ज़ोर दिया।
    • मैरीटाइम अमृत काल विज़न- 2047 कोच्चि को एक प्रमुख समुद्री क्लस्टर और ग्रीन शिप हेतु एक वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की रूपरेखा तैयार करता है, जो उत्कृष्टता एवं नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • समुद्री क्षेत्र में निवेश और रोज़गार:
    • इस पहल का लक्ष्य 45,000 करोड़ रुपए का महत्त्वपूर्ण निवेश प्राप्त कर समुद्री क्षेत्र में 50,000 से अधिक लोगों के लिये रोज़गार सृजन करना है।
    • ये प्रयास भारत के टन भार को बढ़ाने, आत्मनिर्भर बनने और विदेशी जहाज़ों पर भारत की निर्भरता को कम करने पर केंद्रित हैं।
  • कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) की भूमिका:
    • CSL, जिसे नॉर्वे में स्वायत्त इलेक्ट्रिक नौकाएँ/जहाज़ (Barges) उपलब्ध कराने के लिये विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है, एक प्रमुख समुद्री/मैरीटाइम अग्रणी के रूप में भारत के पुनरुत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
    • अगली पीढ़ी के हरित प्रौद्योगिकी (Next-Generation Green Technology) जहाज़ों सहित शिपयार्ड का प्रभावशाली उत्पाद पोर्टफोलियो इसे भारत के समुद्री उद्योग में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में स्थापित करता है।
  • राष्ट्रीय गौरव और पर्यावरणीय प्रभाव:
    • कोच्चि में राष्ट्रीय गौरव की प्रतीक परियोजनाएँ भारत की अभियांत्रिकी शक्ति को प्रदर्शित करती हैं। इनसे पर्यावरणीय दायित्व पर ज़ोर देते हुए महत्त्वपूर्ण लॉजिस्टिक बचत और CO2 उत्सर्जन को कम करने की उम्मीद की जाती है।
  • वैश्विक दृष्टि के साथ संरेखण:
  • समुद्री बुनियादी ढाँचे के लिये भविष्य की योजनाएँ:
    • बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय इन परियोजनाओं के आधार पर भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें शामिल हैं:
      • जहाज़ निर्माण एवं मरम्मत में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना।
      • रणनीतिक स्थानों पर जहाज़ मरम्मत समूहों का निर्माण।
      • जहाज़ मरम्मत क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये व्यापार शर्तों में छूट।
      • वाडिनार में जहाज़ मरम्मत सुविधा के लिये चर्चा चल रही है।

प्रमुख एवं छोटे बंदरगाह:

  • भारत के प्रमुख बंदरगाह:
    • देश में 12 प्रमुख बंदरगाह और 200 गैर-प्रमुख बंदरगाह (छोटे बंदरगाह) हैं।
    • प्रमुख बंदरगाहों में दीनदयाल (पूर्ववर्ती कांडला), मुंबई, जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट, मरमुगाओ, न्यू मैंगलोर, कोचीन, चेन्नई, कामराजर (पहले एन्नोर), वी. ओ. चिदंबरनार, विशाखापत्तनम, पारादीप और कोलकाता (हल्दिया सहित) शामिल हैं।
  • प्रमुख बंदरगाह बनाम छोटे बंदरगाह:
    • भारत में बंदरगाहों को भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 के तहत परिभाषित केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के अनुसार प्रमुख एवं छोटे बंदरगाहों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • सभी 12 बंदरगाह, प्रमुख बंदरगाह ट्रस्ट अधिनियम, 1963 के तहत शासित हैं और केंद्र सरकार के स्वामित्व और प्रबंधन में हैं।
    • सभी छोटे बंदरगाह, भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 के तहत शासित हैं और राज्य सरकारों के स्वामित्व तथा प्रबंधन में हैं।
  • हाल में हुए विकास:
    • भारतीय बंदरगाहों ने पिछले 10 वर्षों में दोहरे अंक की वार्षिक वृद्धि हासिल की है।
    • जब बदलाव के समय की बात आती है तो भारत कई विकसित देशों से आगे निकल गया है।
    • भारतीय नाविकों से संबंधित कानूनों में समय पर बदलाव से उनकी संख्या में 140% की वृद्धि हुई है।

बुनियादी ढाँचा क्षेत्र को मज़बूत करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • नीति/नियामक ढाँचे में निरंतरता सुनिश्चित करना:
    • निविदा प्रक्रिया में एक बेहतर नियामक वातावरण और निरंतरता की आवश्यकता है। विभिन्न सरकारी विभागों में निरंतरता और नीतिगत सामंजस्य की कमी को प्राथमिकता से संबोधित किया जाना चाहिये।
    • तनावग्रस्त परिसंपत्तियों की समस्या से निपटने के लिये सरकार और RBI के मध्य एक समग्र दृष्टिकोण होना चाहिये। 
      • गैर-निष्पादित संपत्तियों, PSUs के पुनरुद्धार के लिये सभी क्षेत्रों में एक समर्पित नीति का निर्माण करने की आवश्यकता है।
  • उचित उपयोगकर्त्ता शुल्क: 
    • यह अवसंरचन वित्तपोषण, अवसंरचना सेवा प्रदाताओं की वित्तीय व्यवहार्यता और पर्यावरण एवं संसाधन उपयोग संवहनीयता को बढ़ाने के लिये यह आवश्यक है।
    • उपयोगकर्त्ता शुल्क महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि देश भर के कई क्षेत्रों में आंशिक रूप से शून्य या बहुत कम उपयोगकर्त्ता शुल्क के कारण कीमती संसाधनों (जैसे- भूजल) का अत्यधिक उपयोग एवं अपव्यय होता है।
    • उचित उपयोगकर्त्ता मूल्यों से प्रेरित पर्यावरणीय संवहनीयता एवं संसाधन उपयोग दक्षता के अलावा इस नीति प्राथमिकता में अपार संसाधन सृजन क्षमता भी है।
  • स्वायत्त अवसंरचना के विनियमन: 
    • जैसे-जैसे भारत और विश्व निजी भागीदारी के लिये अधिक क्षेत्रों को खोलेंगे, निजी क्षेत्र अनिवार्य रूप से स्वायत्त अवसंरचना के विनियमन की मांग करेगा।
    • विश्व में रुझान बहु-क्षेत्रीय नियामकों की ओर है क्योंकि बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों में नियामक भूमिका आम है और ऐसे संस्थान नियामक क्षमता का निर्माण करते हैं, संसाधनों का संरक्षण करते हैं तथा नियामक कब्ज़े को रोकते हैं।
  • परिसंपत्ति पुनर्चक्रण (AR) और BAM: 
    • ब्राउनफील्ड परिसंपत्ति मुद्रीकरण (Brownfield Asset Monetisation - BAM) का मूल विचार जोखिम रहित ब्राउनफील्ड सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों में बँधे धन को मुक्त करके त्वरित ग्रीनफील्ड निवेश के लिये ब्राउनफील्ड AR के माध्यम से अवसंरचना के संसाधनों को बढ़ाना है।
    • इन परिसंपत्तियों को एक ट्रस्ट {इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT)} या एक कॉर्पोरेट संरचना (टोल ऑपरेट ट्रांसफर (TOT) मॉडल) में स्थानांतरित किया जा सकता है, जो पूंजीगत विचार के बदले में संस्थागत निवेशकों का निवेश प्राप्त करता है (जो इन अंतर्निहित परिसंपत्तियों से भविष्य के नकदी प्रवाह के मूल्य को प्राप्त करता है)।
    • भारत के पास बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों में ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों का एक बड़ा भंडार है।
  • घरेलू निधियों का उपयोग: 
    • भारतीय पेंशन फंड जैसे घरेलू स्रोत, जो निष्क्रिय पड़े हैं, यदि कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाए तो इस क्षेत्र को बड़ा बढ़ावा मिल सकता है।
    • भारत अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देने के लिये घरेलू धन के कुशल उपयोग पर कनाडा, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों की प्रथाओं का अनुकरण कर सकता है।

अवसंरचना से संबंधित विभिन्न सरकारी पहल क्या हैं?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी अवसंरचना कोष' के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?  (वर्ष 2017)

  1. यह नीति आयोग का एक अंग है।
  2. वर्तमान में इसके पास 4,00,000 करोड़ का कोष है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 और 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (D)


प्रश्न 2. भारत में "सार्वजनिक रूप से महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना" शब्द का प्रयोग किसके संदर्भ में किया जाता है (वर्ष 2020)

(A) डिजिटल सुरक्षा बुनियादी अवसंरचना
(B) खाद्य सुरक्षा बुनियादी अवसंरचना
(C) स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा हेतु बुनियादी अवसंरचना
(D) दूरसंचार और परिवहन बुनियादी अवसंरचना

उत्तर: (A)


मेन्स

प्रश्न. अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (वर्ष 2021)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

NQM की कार्यान्वयन रणनीति को अंतिम रूप

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM), क्वांटम प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), मिशन समन्वय सेल (MCC)

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और क्वांटम प्रौद्योगिकी विकसित करने में इसकी भूमिका, क्वांटम प्रौद्योगिकी: अनुप्रयोग, चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों ? 

हाल ही में राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) के मिशन गवर्निंग बोर्ड (Mission Governing Board- MGB) की पहली बैठक में NQM की कार्यान्वयन रणनीति और समय-सीमा के साथ-साथ मिशन समन्वयन प्रकोष्ठ (Mission Coordination Cell- MCC) के गठन पर चर्चा हुई। 

  • अर्हता और मौजूदा बुनियादी ढाँचे के आधार पर विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा चिह्नित किये गए संस्थान में मिशन समन्वयन प्रकोष्ठ (MCC) की स्थापना की जाएगी एवं यह मिशन प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद् (Mission Technology Research Council- MTRC) के समग्र पर्यवेक्षण व मार्गदर्शन के तत्त्वावधान में कार्य करेगी।  

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2023-2031 के लिये योजनाबद्ध मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना तथा क्वांटम टेक्नोलॉजी (QT) में एक जीवंत व अभिनव पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
    • इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत DST द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
    • इस मिशन के लॉन्च के साथ, भारत अमेरिका, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, फ्राँस, कनाडा और चीन के बाद समर्पित क्वांटम मिशन वाला सातवाँ देश होगा।
  • NQM की मुख्य विशेषताएँ: 
    • इसका लक्ष्य 5 वर्षों में 50-100 फिज़िकल क्यूबिट और 8 वर्षों में 50-1000 फिज़िकल क्यूबिट वाले मध्यवर्ती पैमाने के क्वांटम कंप्यूटर विकसित करना होगा।
    • जिस प्रकार बिट्स/bits (1 और 0) आधारभूत इकाइयाँ हैं जिनके द्वारा पारंपरिक कंप्यूटर जानकारी प्रोसेस करते हैं, 'क्यूबिट्स (qubits)' या 'क्वांटम बिट्स' क्वांटम कंप्यूटरों के प्रोसेस की इकाइयाँ हैं।
    • यह मिशन सटीक समय (एटॉमिक क्लॉक/परमाणु घड़ियाँ), संचार और नेविगेशन के लिये उच्च संवेदनशीलता वाले मैग्नेटोमीटर विकसित करने में सहायक होगा।
    • यह क्वांटम उपकरणों के निर्माण हेतु सुपरकंडक्टर्स, नवीन अर्द्धचालक संरचनाओं और टोपोलॉजिकल सामग्रियों जैसे क्वांटम सामग्रियों के डिज़ाइन एवं संश्लेषण का भी समर्थन करेगा।
  • क्वांटम संचार का विकास:
    • भारत के भीतर 2000 किमी. की सीमा में ग्राउंड स्टेशनों के बीच उपग्रह आधारित सुरक्षित क्वांटम संचार।
    • लंबी दूरी तक अन्य देशों के साथ सुरक्षित क्वांटम संचार।
    • 2000 किमी. से अधिक दूरी तक में इंटर-सिटी क्वांटम-की (quantum key) वितरण।
    • क्वांटम मेमोरी के साथ मल्टी-नोड क्वांटम नेटवर्क।
  • क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शीर्ष शैक्षणिक और राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में चार थीमैटिक हब (T-Hubs) स्थापित किये जाएंगे:

क्वांटम प्रौद्योगिकी:

  • परिचय:
    • क्वांटम प्रौद्योगिकी विज्ञान और इंजीनियरिंग का एक क्षेत्र है जो क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों से संबंधित है, जो कि सबसे छोटे पैमाने पर पदार्थ तथा ऊर्जा के व्यवहार का अध्ययन है। 
    • क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की वह शाखा है जो परमाणु और उप-परमाण्विक स्तर पर पदार्थ तथा ऊर्जा के व्यवहार का वर्णन करती है।
  • भारत और चीन के बीच एक तुलना:
    • चीन में अनुसंधान एवं विकास: चीन ने क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपना अनुसंधान एवं विकास (R&D) कार्य वर्ष 2008 में शुरू किया था।
      • वर्ष 2022 में परिदृश्य यह है की चीन विश्व का पहला क्वांटम उपग्रह विकसित करने, बीजिंग एवं शंघाई के बीच एक क्वांटम संचार लाइन का निर्माण करने और विश्व के दो सबसे तेज़ क्वांटम कंप्यूटरों का स्वामी होने का दावा रखता है।   
      • यह एक दशक लंबे चले अनुसंधान का परिणाम है जिसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त करने की इच्छा और आशा के साथ बल प्रदान किया गया था।
    • भारत की स्थिति: दूसरी ओर क्वांटम प्रौद्योगिकी भारत में ऐसा क्षेत्र रहा है जो दीर्घकालिक अनुसंधान एवं विकास पर अत्यधिक केंद्रित है।
      • वर्तमान में अनुसंधानकर्त्ताओं, औद्योगिकी पेशेवरों, शिक्षाविदों और उद्यमियों की एक सीमित संख्या ही इस क्षेत्र में सक्रिय है तथा अनुसंधान एवं विकास पर निरंतर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया है।

क्वांटम प्रौद्योगिकी के लाभ क्या हैं?

  • कंप्यूटिंग शक्ति में वृद्धि: क्वांटम कंप्यूटर वर्तमान के कंप्यूटरों की तुलना में बहुत तेज़ हैं। उनमें उन जटिल समस्याओं को हल करने की भी क्षमता है जो वर्तमान में हमारी पहुँच से परे हैं।
  • उन्नत सुरक्षा: क्योंकि वे क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों पर भरोसा करते हैं, क्वांटम एन्क्रिप्शन तकनीक पारंपरिक एन्क्रिप्शन विधियों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं।
  • तीव्र संचार: क्वांटम संचार नेटवर्क पूरी तरह से अनहैक करने योग्य संचार की क्षमता के साथ, पारंपरिक नेटवर्क की तुलना में तेज़ी से और अधिक सुरक्षित रूप से सूचना प्रसारित कर सकते हैं।
  • उन्नत AI: क्वांटम मशीन लर्निंग एल्गोरिदम संभावित रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडल के अधिक कुशल और सटीक प्रशिक्षण को सक्षम कर सकता है।
  • बेहतर संवेदन और मापन: क्वांटम सेंसर पर्यावरण में बेहद छोटे बदलावों का पता लगा सकते हैं, जिससे वे चिकित्सा निदान, पर्यावरण निगरानी और भूवैज्ञानिक अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में उपयोगी हो जाते हैं।

क्वांटम प्रौद्योगिकी के नुकसान क्या हैं?

  • अधिक लागत: प्रौद्योगिकी के लिये विशेष उपकरणों और सामग्रियों की आवश्यकता होती है जो इसे पारंपरिक प्रौद्योगिकियों की तुलना में अधिक लागत आती है।
  • सीमित अनुप्रयोग: वर्तमान में क्वांटम तकनीक केवल क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम संचार जैसे विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिये उपयोगी है।
  • पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता: क्वांटम तकनीक तापमान परिवर्तन, चुंबकीय क्षेत्र और कंपन जैसे पर्यावरणीय हस्तक्षेप के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
    • क्यूबिट अपने परिवेश से आसानी से बाधित हो जाते हैं जिसके कारण वे अपने क्वांटम गुण खो सकते हैं और गणना में गलतियाँ कर सकते हैं।
  • सीमित नियंत्रण: क्वांटम प्रणालियों को नियंत्रित करना और उनमें हेरफेर करना कठिन है। क्वांटम-संचालित AI अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न कर सकता है।
    • क्वांटम-चलित AI  सिस्टम संभावित रूप से ऐसे निष्कर्षों पर पहुँच सकते हैं जो अप्रत्याशित या समझाने में मुश्किल हैं क्योंकि वे उन सिद्धांतों पर काम करते हैं जो शास्त्रीय कंप्यूटिंग से मौलिक रूप से भिन्न हैं।

आगे का राह

  • निवेश बढ़ाना: क्वांटम प्रौद्योगिकी को अपनी पूर्ण क्षमता प्राप्त करने के लिये अनुसंधान और विकास, अवसंरचन तथा मानव संसाधनों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
    • भारत ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए 6000 करोड़ रुपए के बजट के साथ राष्ट्रीय क्वांटम मिशन लॉन्च किया। 
    • हालाँकि, क्वांटम स्टार्ट-अप्स, सेवा प्रदाताओं तथा शैक्षणिक संस्थानों के विकास का समर्थन करने के लिये और अधिक सार्वजनिक एवं निजी वित्तपोषण की आवश्यकता है।
      • संबद्ध क्षेत्र में निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण को बढ़ाया जा सकता है जो विकसित देशों की तुलना में भारत में पहले से ही बहुत कम है।
  • नियामक ढाँचे की आवश्यकता: क्वांटम प्रौद्योगिकी नैतिक, कानूनी और सामाजिक चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करती हैं, जिनके व्यापक हो जाने से पहले ही इन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ क्वांटम सेंसिंग निजता संबंधी अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है तथा क्वांटम हथियार सामूहिक विनाश का कारण बन सकते हैं।
    • इस प्रकार, नवाचार और सुरक्षा को संतुलित करने वाली क्वांटम प्रौद्योगिकी के लिये एक नियामक ढाँचा विकसित करना विवेकपूर्ण होगा।
  • क्वांटम शिक्षा को बढ़ावा देना: क्वांटम प्रौद्योगिकी के लिये कुशल एवं प्रशिक्षित पेशेवरों की भी आवश्यकता होती है जो इसके सिद्धांतों एवं विधियों को समझ सकें एवं इन्हें अनुप्रयुक्त कर सकें। इसलिये विभिन्न विषयों में छात्रों व शोधकर्त्ताओं के बीच क्वांटम शिक्षा एवं जागरूकता को बढ़ावा देना आवश्यक है।
    • स्कूलों-कॉलेजों में क्वांटम पाठ्यक्रम शुरू करने, कार्यशालाओं एवं सेमिनारों के आयोजन और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म एवं संसाधनों का निर्माण करने के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है।
  • विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग: क्वांटम प्रौद्योगिकी की बेहतर समझ के लिये सरकारी अभिकरणों, उद्योग के अभिकर्त्ताओं और संस्थानों जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच सहकार्यता एवं सहयोग का स्थापित होना आवश्यक है।
    • यह क्वांटम प्रौद्योगिकी के विभिन्न डोमेन एवं अनुप्रयोगों में ज्ञान साझेदारी, नवाचार और मानकीकरण को बढ़ावा दे सकता है।
    • यह भारत को क्वांटम प्रौद्योगिकी पर वैश्विक पहलों और नेटवर्क में भाग लेने में भी सक्षम बना सकता है

संबंधित सरकारी पहल कौन-सी हैं?


भारतीय अर्थव्यवस्था

PLI योजनाओं के तहत निवेश

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, औषध, खाद्य प्रसंस्करण, दूरसंचार व नेटवर्किंग उत्पाद, पेनिसिलिन-G

मेन्स के लिये:

विनिर्माण क्षेत्र में विकास में उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का महत्त्व

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजनाओं में नवंबर, 2023 तक 1.03 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया गया है।

  • इससे 8.61 लाख करोड़ रुपए के बराबर उत्पादन/बिक्री हुई है तथा 6.78 लाख से अधिक रोज़गार उत्पन्न हुए हैं।

PLI योजना की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • PLI योजनाओं में वृहत् इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, औषध, खाद्य प्रसंस्करण तथा दूरसंचार व नेटवर्किंग उत्पाद जैसे विभिन्न क्षेत्रों के महत्त्वपूर्ण योगदान के साथ निर्यात 3.20 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।
  • PLI के लाभार्थियों में थोक औषधि, चिकित्सा उपकरण, औषध, दूरसंचार, भारी उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएँ (White Goods), खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र और ड्रोन जैसे क्षेत्रों के 176 लघु तथा मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) शामिल हैं।
  • 8 क्षेत्रों के लिये PLI योजनाओं के तहत लगभग 4,415 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन धनराशि वितरित की गई। इनमें वृहत् इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (Large-Scale Electronics Manufacturing- LSEM), IT हार्डवेयर, थोक औषधि, चिकित्सा उपकरण, औषध, दूरसंचार व नेटवर्किंग उत्पाद, खाद्य प्रसंस्करण और ड्रोन व इसके घटक शामिल हैं।
  • PLI योजना के कारण औषधि क्षेत्र में कच्चे माल के आयात में काफी कमी आई है।
    • भारत में पेनिसिलिन-G सहित अद्वितीय मध्यवर्ती सामग्री और थोक दवाओं का विनिर्माण किया जा रहा है।
    • इसके अतिरिक्त 39 चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन शुरू किया गया है। इनमें सीटी-स्कैन, लीनियर एक्सेलेरेटर (LINAC), रोटेशनल कोबाल्ट मशीन, C-Arm, MRI, कैथ लैब, अल्ट्रासोनोग्राफी, डायलिसिस मशीन, हार्ट वॉल्व, स्टेंट आदि शामिल है।
  • दूरसंचार क्षेत्र में 60 फीसदी का आयात प्रतिस्थापन प्राप्त किया गया है तथा वित्तीय वर्ष 2023-24 में PLI लाभार्थी कंपनियों द्वारा दूरसंचार व नेटवर्किंग उत्पादों की बिक्री में आधार वर्ष (वित्त वर्ष 2019-20) की तुलना में 370 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
    • इसके अतिरिक्त 90.74% की मिश्रित वार्षिक वृद्धि दर (Compounded Annual Growth Rate- CAGR) के साथ ड्रोन उद्योग में निवेश पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
  • खाद्य प्रसंस्करण के लिये PLI योजना, भारत से कच्चे माल की सोर्सिंग में काफी वृद्धि हुई है जिससे भारतीय किसानों और MSME की आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
    • जैविक उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई और विदेशों में ब्रांडिंग तथा मार्केटिंग के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय ब्रांड की दृश्यता बढ़ी।
    • इस योजना से बाजरा खरीद भी 668 मीट्रिक टन (वित्त वर्ष 2020-21) से बढ़कर 3,703 मीट्रिक टन (वित्त वर्ष 2022-23) हो गई है।
  • इन प्रमुख विशिष्ट क्षेत्रों में PLI योजना भारतीय निर्माताओं को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने, मुख्य योग्यता और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने तथा भारत को वैश्विक मूल्य शृंखला का एक अभिन्न अंग बनाने के लिये शुरू हुई है।
    • इसने भारत की निर्यात टोकरी को पारंपरिक वस्तुओं से उच्च मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार सामान, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों आदि में बदल दिया है।
  • वित्त वर्ष 2020-21 के बाद से मोबाइल फोन का उत्पादन 125% से अधिक बढ़ गया और मोबाइल फोन का निर्यात 4 गुना बढ़ गया।
  • LSEM के लिये PLI योजना की शुरुआत के बाद से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment - FDI) में 254% की वृद्धि हुई है।

प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम (PLI) क्या है?

  • परिचय:
    • PLI योजना की कल्पना घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ उच्च आयात प्रतिस्थापन और रोज़गार सृजन के लिये की गई थी। मार्च 2020 में शुरू की गई इस योजना ने आरंभ में तीन उद्योगों को लक्षित किया:
      • मोबाइल और संबद्ध घटक विनिर्माण
      • विद्युत घटक विनिर्माण
      • चिकित्सा उपकरण
    • बाद में इसे 14 क्षेत्रों तक बढ़ा दिया गया: मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरणों का विनिर्माण, ऑटोमोबाइल और इसके घटक, फार्मास्यूटिकल्स, दवाएँ, विशेष इस्पात, दूरसंचार एवं नेटवर्किंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, घरेलू उपकरण (ACs व LEDs), खाद्य उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी तथा ड्रोन व इसके घटक।
    • PLI योजना में घरेलू और विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण के लिये पाँच वर्षों तक उनके राजस्व के प्रतिशत के आधार पर वित्तीय लाभ प्राप्त होता है।

PLI योजना के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • प्रतिस्पर्द्धा एवं बाज़ार की गतिशीलता: यह योजना भाग लेने वाली कंपनियों के बीच मूल्य युद्ध या बाज़ार विकृतियाँ उत्पन्न कर सकती है, जिससे उनकी लाभप्रदता एवं स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
  • अनुपालन और रिपोर्टिंग बोझ: इस योजना के तहत कंपनियों को प्रोत्साहन का दावा करने के लिये विभिन्न दस्तावेज़ और रिपोर्ट जमा करने की आवश्यकता होती है, जिससे उनकी प्रशासनिक लागत बढ़ने के साथ विलंब हो सकता है।
  • संयोजन बनाम मूल्य संवर्धन: घटकों को आयात करने और उन्हें भारत में संयोजित करने से उत्पन्न मूल्य योजना के तहत भारत में विनिर्माण द्वारा जोड़े गए मूल्य से अलग नहीं है। इसके परिणामस्वरूप घरेलू उद्योग में कम मूल्यवर्धन एवं नवाचार की प्राप्ति की जा सकती है।
  • कम मूल्य वाली वस्तुओं का उत्पादन: कम मूल्य वाली वस्तुओं का उत्पादन उच्च मूल्य वाली वस्तुओं की तुलना में अधिक प्रचलित है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ मुख्य रूप से उच्च मूल्य वाली वस्तुओं से जुड़े लेन-देन में संलग्न हैं।
  • अनुसंधान और विकास: निर्यातोन्मुखी नीतियों के निर्माण में अनुसंधान एवं विकास पर अपर्याप्त ध्यान दिया जाता है।
  • कार्यान्वयन एवं समन्वय मुद्दे: इस योजना में कई मंत्रालय और विभाग शामिल हैं, जो योजना के कार्यान्वयन एवं निगरानी में भ्रम तथा असंगतता उत्पन्न कर सकते हैं।

आगे की राह

  • बाज़ार प्रभाव आकलन: संभावित विकृतियों की पहचान करने के लिये बाज़ार प्रभाव का गहन मूल्यांकन करना। अस्वास्थ्यकर मूल्य निर्धारण युद्धों को रोकने के लिये नियम या सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करना।
  • दस्तावेज़ीकरण: प्रशासनिक बोझ को कम करने के लिये दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं को सुव्यवस्थित करना।
    • प्रशासनिक बोझ को कम करने के लिये दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं को सरल बनाना।
  • मूल्य संवर्धन एवं नवप्रवर्तन: ऐसे मानदंड प्रस्तुत करना जो उच्च-मूल्यवर्धन एवं नवाचार को प्रोत्साहित करना।
  • हितधारकों के साथ जुड़ें: प्रदूषण, भूमि अधिग्रहण एवं श्रम अधिकारों से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये उचित हितधारकों के साथ जुड़ाव।
    • सतत् एवं सुसंगत नीति प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिये अंतर-मंत्रालयी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • अनुसंधान एवं विकास: अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने वाली कंपनियों के लिये अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रस्तुत करना। नवाचार को बढ़ाने के लिये उद्योग एवं अनुसंधान संस्थानों के बीच साझेदारी को सुविधाजनक बनाना।
  • कोष की स्थापना: नवोन्मेषी परियोजनाओं एवं प्रौद्योगिकियों का समर्थन करने के लिये एक समर्पित कोष स्थापित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

कथन-I वस्तुओं के वैश्विक निर्यात में भारत का निर्यात 3.2% है।

कथन-II भारत में कार्यरत अनेक स्थानीय कंपनियों एवं भारत में कार्यरत कुछ विदेशी कंपनियों ने भारत की ‘उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव)’ योजना का लाभ उठाया है।

उपर्युक्त कथनों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है।
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है।
(c) कथन-I सही है किंतु कथन-II गलत है।
(d) कथन-I गलत है किंतु कथन-II सही है।

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • हाल ही में विश्व व्यापार संगठन की वैश्विक व्यापार आउटलुक एवं स्टैटिक्स रिपोर्ट के अनुसार, भारत वस्तुओं के वैश्विक निर्यात में 1.8 % हिस्सेदारी रखता है। अतः कथन 1 गलत है।
  • वर्ष 2024 के लिये अनुमानित 3.2% के लक्ष्य तक पहुँचने से पूर्व वर्ष 2023 में विश्व वाणिज्यिक वस्तु व्यापार की मात्रा में 1.7% वृद्धि का अनुमान है।
  • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव) योजना कंपनियों को भारत में निर्मित उत्पादों के वृद्धिशील विक्रय पर प्रोत्साहन प्रदान करती है। इसका उद्देश्य विदेशी कंपनियों को भारत में इकाइयाँ स्थापित करने के लिये आकर्षित करना है, जबकि स्थानीय कंपनियों को अपनी विनिर्माण इकाइयों का विस्तार करने एवं अधिक रोज़गार सृजन तथा आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिये प्रोत्साहित करना है। अतः कथन 2 सही है।

मेन्स:

प्रश्न. हाल ही के कुछ वर्षों में भारत व जापान के मध्य आर्थिक संबंधों में विकास हुआ है पर अभी भी वह संभाविता से बहुत कम है। उन नीतिगत दबावों (व्यवरोधों) को स्पष्ट कीजिये जिनके कारण यह विकास अवरुद्ध है। (2013)

प्रश्न. श्रम-प्रधान निर्यातों के लक्ष्य को प्राप्त करने में विनिर्माण क्षेत्रक की विफलता के कारण बताइए। पूंजी-प्रधान निर्यात के अपेक्षा अधिक श्रम-प्रधान निर्यात के लिये, उपायों को सुझाइए? (2017)

प्रश्न. हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में अपने तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में बाज़ार एकाधिकार और कानून

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India - CCI), प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002, प्रमुख बाज़ार स्थिति का दुरुपयोग, प्रतिस्पर्धा संशोधन विधेयक, 2022

मेन्स के लिये:

भारत में बाज़ार एकाधिकार और कानून, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: मनी कंट्रोल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India - CCI) ने एक प्रमुख मल्टीप्लेक्स शृंखला PVR के विरुद्ध एक शिकायत को खारिज़ कर दिया है, जिसमें कथित तौर पर अपनी प्रमुख बाज़ार स्थिति का दुरुपयोग करते हुए बाज़ार एकाधिकार की चिंता जताई गई थी।

आरोप और CCI का फैसला?

  • यह आरोप लगाया गया था कि PVR ने शक्तिशाली और आर्थिक रूप से समृद्ध प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों को प्रमुख वरीयता देकर अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग किया तथा इस प्रकार स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं की फिल्मों में प्रवेश में बाधाएँ उत्पन्न कीं।
    • PVR ने आरोपों का यह कहते हुए खंडन किया कि उनके पास सहायक सबूतों की कमी है, यह तर्क देते हुए कि शिकायत का उद्देश्य बिना किसी कानूनी बाध्यता के उनकी फिल्म के प्रदर्शन पर दबाव डालना था।
  • CCI को प्रतिस्पर्द्धा संबंधी किसी प्रकार की चिंताएँ स्पष्ट नहीं हो सकी। इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि जब तक प्रतिस्पर्धा को नुकसान स्पष्ट न हो, विनियामक हस्तक्षेप से अवांछनीय परिणाम हो सकते हैं, जिससे प्रदर्शकों की स्वायत्तता बरकरार रहेगी।

बाज़ार एकाधिकार क्या है?

  • परिचय:
    • बाज़ार एकाधिकार उस स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें एक एकल कंपनी या कंपनियों का समूह किसी विशेष बाज़ार या उद्योग के महत्त्वपूर्ण हिस्से पर हावी होता है और नियंत्रित करता है।
    • एकाधिकार में, केवल एक विक्रेता या निर्माता होता है जो एक विशिष्ट उत्पाद या सेवा प्रदान करता है और उपभोक्ताओं के लिये कोई करीबी विकल्प उपलब्ध नहीं होता है।
    • यह एकाधिकारवादी इकाई को पर्याप्त बाज़ार शक्ति प्रदान करता है, जिससे उसे बाज़ार की स्थितियों को प्रभावित करने, कीमतें निर्धारित करने और वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति को नियंत्रित करने की अनुमति मिलती है।
  • बाज़ार एकाधिकार की विशेषताएँ:
    • एकल विक्रेता या निर्माता:
      • एकाधिकार में, केवल एक इकाई होती है जो पूरे बाज़ार पर हावी होती है। यह कंपनी किसी विशेष उत्पाद या सेवा की अनन्य प्रदाता है।
    • प्रवेश में उच्च बाधाएँ:
      • एकाधिकार अक्सर तब उत्पन्न होता है जब नए प्रतिस्पर्धियों को बाज़ार में प्रवेश करने से रोकने वाली महत्त्वपूर्ण बाधाएँ होती हैं। बाधाओं में उच्च स्टार्टअप लागत, संसाधनों तक विशेष पहुँच, सरकारी नियम या मज़बूत ब्रांड वफादारी शामिल हो सकती है।
    • कोई विकल्प न होना:
      • एकाधिकारवादी कंपनी द्वारा पेश किये गए उत्पाद या सेवा के लिये उपभोक्ताओं के पास सीमित या कोई वैकल्पिक विकल्प नहीं है। बाज़ार में इसका कोई करीबी विकल्प उपलब्ध नहीं है।
    • बाज़ार की शक्ति एवं मूल्य नियंत्रण:
      • एकाधिकार बाज़ार में अत्यधिक शक्ति होती है, जो उसे प्रतिस्पर्द्धा के महत्त्वपूर्ण डर के बिना कीमतों को नियंत्रित करने की अनुमति प्रदान करता है। इससे उपभोक्ताओं के लिये कीमतें अधिक हो सकती हैं और संभावित रूप से उत्पादन में कमी आ सकती है।
    • आपूर्ति पर प्रभाव:
      • एकाधिकार का उत्पाद या सेवा की आपूर्ति पर नियंत्रण होता है। यह उत्पादित मात्रा निर्धारित कर सकता है और साथ ही बाज़ार को प्रभावित करने के लिये आपूर्ति को समायोजित कर सकता है।
    • प्रतिस्पर्द्धा का अभाव:
      • प्रतिस्पर्द्धियों की अनुपस्थिति के कारण, एकाधिकार ऐसे वातावरण में संचालित होते हैं जहाँ उनके विशिष्ट उत्पाद या सेवा के लिये कोई सीधी प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती है। प्रतिस्पर्द्धा की इस कमी के परिणामस्वरूप नवाचार एवं दक्षता के लिये प्रोत्साहन में कमी आ सकती है।

प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं से संबंधित प्रमुख शर्तें

  • बेहद सस्ती कीमत:
    • बेहद सस्ती मूल्य निर्धारण तब होता है जब कोई कंपनी प्रतिस्पर्द्धियों को बाज़ार से बाहर करने के लिये जानबूझकर अपनी कीमतें लागत से कम निर्धारित करती है। एक बार जब प्रतिस्पर्द्धा समाप्त हो जाते हैं, तो कंपनी घाटे की भरपाई करने एवं एकाधिकार स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिये कीमतें बढ़ा सकती है।
  • कार्टेल:
    • कार्टेल स्वतंत्र कंपनियों या राष्ट्रों के समूह हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्माण, बिक्री तथा वितरण को नियंत्रित करने के लिये एक साथ आते हैं।
    • कार्टेल आमतौर पर अवैध होते हैं और प्रतिस्पर्द्धा विरोधी व्यवहार को बढ़ावा देने के लिये जाने जाते हैं।
  • आपसी साँठ-गाँठ:
    • साँठ-गाँठ दो या दो से अधिक पक्षों के बीच दूसरों को गुमराह करके, धोखा देकर या प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करने का एक समझौता है। इसमें प्राय: अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिये गुप्तरूप से सहयोग करना शामिल होता है।
  • विलय:
    • विलय में दो या दो से अधिक कंपनियों का एक इकाई में संयोजन शामिल होता है। हालाँकि सभी विलय प्रतिस्पर्द्धा विरोधी नहीं हैं, कुछ विशेष बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा को कम कर सकते हैं, जिससे नियामक जाँच हो सकती है।
  • मूल्य विभेदन:
    • मूल्य भेदभाव तब होता है जब एक विक्रेता एक ही उत्पाद या सेवा के लिये अलग-अलग ग्राहकों से अलग-अलग कीमतें वसूलता है। हालाँकि यह हमेशा अवैध नहीं होता है, लेकिन अगर यह प्रतिस्पर्द्धा को हानि पहुँचाता है तो इसे प्रतिस्पर्द्धा विरोधी माना जा सकता है।
  • मूल्य निर्धारण अनुबंध:
    • मूल्य निर्धारण में प्रतिस्पर्द्धियों के बीच उनके उत्पादों अथवा सेवाओं के लिये एक विशिष्ट मूल्य निर्धारित करने हेतु एक समझौता शामिल होता है। यह प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करता है साथ ही कृत्रिम रूप से कीमतें बढ़ाता है, जिससे अविश्वास कानूनों का उल्लंघन होता है।

भारत बाज़ार एकाधिकार की प्रथाओं से कैसे निपटता है?

  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 भारत में अविश्वास संबंधी मुद्दों को संबोधित करने वाला प्राथमिक कानून है। इसे बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने एवं उसे बनाए रखने, प्रतिस्पर्द्धा विरोधी प्रथाओं को रोकने के साथ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
      • यह अधिनियम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों और उद्यमों द्वारा अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध करता है तथा समुच्चयों का विनियमन करता है, क्योंकि इनकी वजह से भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022:
      • प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य नियामक ढांँचे को और मज़बूत करना, उभरती चुनौतियों का समाधान करना तथा प्रतिस्पर्द्धी कानून प्रवर्तन की प्रभावशीलता को बढ़ाना है।
  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI):
    • CCI भारतीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत प्रतिस्पर्धा का नियामक है, यह प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के उद्देश्यों को लागू करने के लिये उत्तरदायी है। इसमें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और सदस्य होते हैं।
    • CCI प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं, प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों की जाँच करती है तथा कार्रवाई करती है।
  • प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण और NCLAT:
    • प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) शुरू में CCI निर्णयों के खिलाफ अपील सुनने के लिये उत्तरदायी था।
    • हालाँकि वर्ष 2017 में सरकार ने COMPAT को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) से बदल दिया, जो अब प्रतिस्पर्द्धा मामलों से संबंधित अपीलों को संभालता है।

प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं पर अंकुश लगाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय पहल क्या हैं?

  • OECD प्रतियोगिता समिति:
    • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) तथा OECD प्रतिस्पर्द्धा समिति सहित विभिन्न पहलों के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को संबोधित करता है, जो प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच चर्चा एवं सहयोग की सुविधा प्रदान करता है।
  • व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD):
    • UNCTAD अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विकास को बढ़ावा देने के लिये काम करता है। यह प्रतिस्पर्द्धा कानून और नीति पर अपने अंतर सरकारी विशेषज्ञों के समूह के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा नीति तथा कानून पर मार्गदर्शन प्रदान करता है, प्रभावी प्रतिस्पर्द्धा ढाँचे को लागू करने में देशों का समर्थन करता है।
    • यह उपभोक्ताओं को दुरुपयोग से बचाने और प्रतिस्पर्द्धा को दबाने वाले नियमों पर अंकुश लगाने की नीतियों से भी संबंधित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा नेटवर्क (ICN):
    • ICN दुनिया भर के प्रतिस्पर्द्धा प्राधिकरणों का एक नेटवर्क है। यह वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा चुनौतियों से निपटने के लिये सदस्य न्यायालयों के बीच संचार और सहयोग की सुविधा प्रदान करता है। ICN प्रतिस्पर्द्धा कानून के विभिन्न पहलुओं पर सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने तथा दिशा-निर्देश विकसित करने हेतु एक मंच प्रदान करता है।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO):
    • मुख्य रूप से व्यापार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, WTO व्यापार और प्रतिस्पर्द्धा नीति के बीच बातचीत पर अपने कार्य समूह के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा नीति को संबोधित करता है।
      • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रतिस्पर्द्धा नीतियाँ व्यापार में अनावश्यक बाधाएँ पैदा न करें।

भारत में बाज़ार एकाधिकार से संबंधित निर्णय क्या हैं?

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग बनाम भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (SAIL) (2010):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय रेलवे को रेल की आपूर्ति में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के लिये SAIL की जाँच करने हेतु CCI के आदेश को बरकरार रखा।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि SAIL को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम से छूट नहीं थी और प्रारंभिक चरण में इस आदेश पर कोई अपील नहीं की जा सकती थी।
    • न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि COMPAT के समक्ष किसी भी अपील में CCI एक आवश्यक अथवा उचित पक्ष था।
  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग बनाम गूगल LLC एवं अन्य (2021):
    • CCI ने भारत के स्मार्ट टीवी और एंड्रॉइड एप स्टोर बाज़ारों में गूगल द्वारा कथित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं की जाँच करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की।
    • उच्च न्यायालय ने अधिकार क्षेत्र की कमी और गूगल के पास अपना मामला पेश करने का कोई अवसर न होने के कारण CCI के आदेश को रद्द कर दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने CCI की जाँच पर रोक लगा दी और इसमें शामिल सभी पक्षों को नोटिस जारी किया।

आगे की राह

  • अविश्वास कानूनों की निरंतर समीक्षा तथा सुदृढ़ीकरण करना जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका कार्यान्वन सही है एवं कारोबारी परिवेश में उभरती चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम हैं। नियमित अपडेट विधिक ढाँचे को उभरते बाज़ार की गतिशीलता के अनुकूल बनाने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
  • अविश्वास कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा आयोग जैसे नियामक प्राधिकरणों को सशक्त एवं पर्याप्त रूप से वित्त पोषित करना। अधिकारियों को प्रतिस्पर्द्धा-रोधी व्यवहार की जाँच करने, दंडित करने तथा इसे रोकने के लिये सक्षम बनाना।
  • विलय तथा अधिग्रहण की समीक्षा के लिये पारदर्शी व कुशल प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करना। एक स्पष्ट एवं गहन समीक्षा समेकन के माध्यम से एकाधिकार के निर्माण अथवा मज़बूती को रोकने में सहायता प्राप्त हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय विधान के प्रावधानों के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)

  1. उपभोक्ताओं को खाद्य की जाँच करने के लिये नमूने लेने का अधिकार है।
  2. उपभोक्ता यदि उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज करता है तो उसे इसके लिये कोई फीस नहीं देनी होगी।
  3. उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर उसका वैधानिक उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज कर सकता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


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