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डेली न्यूज़

  • 18 Dec, 2021
  • 62 min read
भारतीय राजनीति

भूल जाने का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

मौलिक अधिकार, निजता का अधिकार, पुट्टस्वामी मामला, बी. एन. श्रीकृष्ण समिति, डेटा संरक्षण विधेयक।

मेन्स के लिये:

भूल जाने के अधिकार से संबंधित मुद्दे और गोपनीयता की रक्षा हेतु उठाए गए सरकारी कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि भूल जाने के अधिकार की अंतर्राष्ट्रीय कानूनी अवधारणा भारत में विकसित हो रही है और यह निजता के अधिकार के अंतर्गत आता है।

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, निजता के अधिकार में भूलने का अधिकार (RTBF) और अकेले रहने का अधिकार भी शामिल है।

RTBF

प्रमुख बिंदु

  • निजता का अधिकार: पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले, 2017 में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
    • निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है।
  • भूल जाने का अधिकार: एक बार जब व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है, तो इंटरनेट, खोज, डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को हटाने का अधिकार है।
    • गूगल स्पेन मामले में यूरोपीय संघ के न्यायालय (CJEU) द्वारा वर्ष 2014 में दिये गए फैसले के बाद RTBF को महत्त्व मिला।
    • भारतीय संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 में कहा कि RTBF निजता के व्यापक अधिकार का एक हिस्सा था।
      • RTBF अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार से और आंशिक रूप से अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के अधिकार से निकलता है।
  • अकेले रहने का अधिकार: इसका मतलब यह नहीं है कि कोई समाज से अलग हो रहा है। यह एक अपेक्षा है कि समाज व्यक्ति द्वारा किये गए विकल्पों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि वे दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाते।
  • RTBF से जुड़े मुद्दे:
    • गोपनीयता बनाम सूचना: किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।
      • उदाहरण के लिये एक व्यक्ति अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी को गूगल से डी-लिंक करना चाहता है और लोगों के लिये कुछ पत्रकारिता रिपोर्टों तक पहुँचना मुश्किल बना सकता है।
      • यह अनुच्छेद 21 में वर्णित व्यक्ति के एकांतवास के अधिकार की अनुच्छेद 19 में वर्णित मीडिया द्वारा रिपोर्ट करने के अधिकारों से विरोधाभास की स्थिति को दर्शाता है।
    • निजी व्यक्तियों के खिलाफ प्रवर्तनीयता: RTBF का दावा आम तौर पर एक निजी पार्टी (एक मीडिया या समाचार वेबसाइट) के खिलाफ किया जाएगा।
      • इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या निजी व्यक्ति के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू किया जा सकता है, जो सामान्यत: राज्य राज्य के विरुद्ध लागू करने योग्य/प्रवर्तनीय है।
      • केवल अनुच्छेद 15(2), अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 23 एक निजी पार्टी के एक निजी अधिनियम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है जिसे संविधान के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी जाती है।
    • अस्पष्ट निर्णय: हाल के वर्षों में, RTBF को संहिताबद्ध करने के लिये डेटा संरक्षण कानून के बिना, विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अधिकार के कुछ असंगत और अस्पष्ट निर्णय लिये गये हैं।
      • भारत में न्यायालयों ने बार-बार RTBF के आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर दिया गया है, जबकि इससे जुड़े व्यापक संवैधानिक प्रश्नों को पूरी तरह से अनदेखा किया गया।

गोपनीयता की रक्षा हेतु सरकार द्वारा किये गये प्रयास 

  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019:
    • यह व्यक्तिगत डेटा से संबद्ध व्यक्तियों की गोपनीयता को सुरक्षा प्रदान करने एवं उक्त उद्देश्यों और किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा से संबंधित मामलों के लिये भारतीय डेटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है।
    • इसे बी. एन. श्रीकृष्ण समिति (2018) की सिफारिशों पर तैयार किया गया।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
    • यह कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने के प्रावधान हैं।

आगे की राह 

  • संसद और सर्वोच्च न्यायालय को RTBF का विस्तृत विश्लेषण करना चाहिये और निजता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये एक तंत्र विकसित करना चाहिये।
  • इस डिजिटल युग में, डेटा एक मूल्यवान संसाधन है जिसे अनियंत्रित नहीं छोड़ा जाना चाहिये अत: इस संदर्भ में, भारत द्वारा एक मजबूत डेटा संरक्षण व्यवस्था को अपनाने का समय आ गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-वियतनाम संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

व्यापक रणनीतिक साझेदारी, ‘लुक ईस्ट’ नीति, इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI), आसियान, वियतनाम का मेकांग डेल्टा क्षेत्र, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, मेकांग गंगा सहयोग, एशिया यूरोप बैठक (ASEM)।

मेन्स के लिये:

भारत और वियतनाम संबंधों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत और वियतनाम ने डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में सहयोग करने हेतु एक ‘आशय पत्र’ (LOI) पर हस्ताक्षर किये हैं, जिससे दोनों देशों के बीच साझेदारी को और मज़बूत करने का मार्ग प्रशस्त होगा।

  • जब दो देश एक दूसरे के साथ व्यापार सौदा करते हैं तो ‘आशय पत्र’ दो पक्षों की प्रारंभिक प्रतिबद्धता को संदर्भित करता है। यह संभावित सौदे की मुख्य शर्तों को भी रेखांकित करता है।
  • इससे पूर्व वर्ष 2020 में भारत और वियतनाम के रक्षा मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र (UN) शांति अभियानों, रक्षा उद्योग क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा की थी।

Vietnam

प्रमुख बिंदु

  • आशय पत्र: यह डाक और दूरसंचार के क्षेत्र में सहयोग हेतु दोनों देशों के संयुक्त उद्देश्यों को मान्यता प्रदान करता है।
    • यह सूचना और अनुभव के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है और मानव संसाधन विकास में परियोजनाओं को लागू करने में सहयोग करता है।
    • साथ ही यह दोनों देशों के नामित डाक ऑपरेटरों और सेवा प्रदाताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • यह नई प्रौद्योगिकियों और चुनौतियों, जैसे कि 'इन्फोडेमिक’ को लेकर द्विपक्षीय सहयोग को आकार देगा।
  • चर्चा का दायरा: वियतनाम ने ‘आत्मनिर्भर भारत" के तहत स्वदेशी 5G नेटवर्क विकसित करने हेतु भारत के प्रयासों की सराहना की है।
    • वियतनाम के सूचना एवं संचार मंत्री ने सुझाव दिया कि भारत को 5G के क्षेत्र में सहयोग करना चाहिये ताकि विश्व स्तर के स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किये गए 5G दूरसंचार उपकरण का उत्पादन किया जा सके।

भारत-वियतनाम संबंध

  • पृष्ठभूमि
    • यद्यपि रक्षा सहयोग, वर्ष 2016 में दोनों देशों द्वारा शुरू की गई ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ के सबसे महत्त्वपूर्ण स्तंभों में से एक रहा है, किंतु दोनों देशों के बीच संबंध काफी पुराने माने जाते हैं।
    • वर्ष 1956 में भारत ने हनोई (वियतनाम की राजधानी) में अपने महावाणिज्य दूतावास की स्थापना की थी।
      • वियतनाम ने वर्ष 1972 में भारत में अपने राजनयिक मिशन की स्थापना की।
    • भारत, वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप के विरूद्ध आवाज़ उठाने में वियतनाम के साथ खड़ा हुआ था, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों पर काफी प्रभाव पड़ा था।
    • वर्ष 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के साथ आर्थिक एकीकरण तथा राजनीतिक सहयोग के विशिष्ट उद्देश्य से भारत द्वारा अपनी ‘लुक ईस्ट नीति’ की शुरुआत के चलते भारत एवं वियतनाम के संबंध और भी मज़बूत हुए।
  • सहयोग के क्षेत्र
    • सामरिक भागीदारी
      • भारत और वियतनाम ने भारत की ‘हिंद-प्रशांत सागरीय पहल’ (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) और हिंद-प्रशांत के संदर्भ में आसियान के दृष्टिकोण (‘क्षेत्र में सभी के लिये साझा सुरक्षा, समृद्धि और प्रगति’) को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने पर सहमति व्यक्त की।
    • आर्थिक सहयोग:
      • आसियान-भारत मुक्त व्यापार संधि’ पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद से भारत और वियतनाम के बीच आर्थिक क्षेत्र के सहयोग में काफी प्रगति देखने को मिली है। 
      • भारत को पता है कि वियतनाम दक्षिण-पूर्व एशिया में राजनीतिक स्थिरता और पर्याप्त आर्थिक विकास के साथ एक संभावित क्षेत्रीय शक्ति है।
      • भारत द्वारा ‘त्वरित प्रभाव परियोजनाओं’ (Quick Impact Projects- QIP) के माध्यम से वियतनाम में विकास और क्षमता सहयोग में निवेश किया जा रहा है, इसके साथ ही वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन, ‘सतत् विकास लक्ष्य’ (SDG), और डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भी भारत द्वारा निवेश किया गया है। 
    • व्यापार सहयोग
      • वित्तीय वर्ष 2020-2021 के दौरान, भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय व्यापार 11.12 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया।
        • इस दौरान वियतनाम को भारतीय निर्यात 4.99 बिलियन अमरीकी डॉलर और वियतनाम से भारतीय आयात 6.12 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा।
    • रक्षा सहयोग:
      •  भारत रणनीतिक क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिये अपने दक्षिण-पूर्व एशियाई भागीदारों की रक्षा क्षमताओं को पर्याप्त रूप से विकसित करने में रुचि रखता है जबकि वियतनाम अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में रुचि रखता है।
      • वियतनाम भारत की ध्रुव उन्नत हल्के हेलीकाप्टरों, सतह से हवा में मार करने वाली आकाश प्रणाली और ब्रह्मोस मिसाइलों में रुचि रखता है।
      • इसके अलावा, रक्षा संबंधों में क्षमता निर्माण, सामान्य सुरक्षा चिंताओं से निपटना, कर्मियों का प्रशिक्षण और रक्षा अनुसंधान एवं विकास में सहयोग भी शामिल हैं।
      • दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने भारत और वियतनाम के बीच मज़बूत रक्षा संबंधों की पुष्टि की, जो कि दोनों देशों की ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ (2016) का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है।
        • इस वर्ष भारत और वियतनाम के बीच "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" के पाँच वर्ष पूरे हो रहे हैं और वर्ष 2022 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के पचास साल पूरे हो जाएँगे।
      • भारतीय नौसेना के जहाज़ INS किल्टन ने मध्य वियतनाम के लोगों को बाढ़ राहत सामग्री पहुँचाने के लिये हो ची मिन्ह सिटी का दौरा किया।
        • इसने वियतनाम पीपुल्स नेवी के साथ PASSEX अभ्यास में भी भाग लिया।
      • भारत और वियतनाम की संबंधित रणनीतिक गणना में चीन भी बहुत रुचि रखता है।
        • दोनों देशों ने चीन के साथ युद्ध लड़े थे और दोनों देशों का इसके साथ सीमा संबंधी विवाद है। चीन आक्रामक तरीके से दोनों देशों के क्षेत्रों में अतिक्रमण कर रहा है।
        • इसलिये चीन को उसकी आक्रामक कार्रवाइयों से रोकने के लिये दोनों देशों का करीब आना स्वाभाविक है।
    • एकाधिक मंचों पर सहयोग:
    • पीपल-टू-पीपल संपर्क:
      • वर्ष 2019 को आसियान-भारत पर्यटन वर्ष के रूप में मनाया गया तथा दोनों देशों ने द्विपक्षीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये वीज़ा व्यवस्था को सरल बनाया है।
      • भारतीय दूतावास ने वर्ष 2018-19 में महात्मा@150 को मनाने के लिये विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया। इनमें जयपुर कृत्रिम अंग फिटमेंट शिविर शामिल हैं, जो भारत सरकार की 'इंडिया फॉर ह्यूमैनिटी' पहल के तहत वियतनाम के चार प्रांतों में 1000 लोगों को लाभान्वित करते हुए आयोजित किये गए थे।

आगे की राह:

  • वर्ष 2016 में 15 वर्षों में पहली बार, एक भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा वियतनाम का दौरा करते हुए  यह संकेत दिया गया कि भारत अब चीन की परिधि क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने में संकोच नहीं कर रहा है।
  • भारत की विदेश नीति में भारत को एशिया एवं अफ्रीका में शांति, समृद्धि तथा स्थिरता के लिये एक मध्यस्थ की भूमिका निभाने की परिकल्पना की गई है और यह लक्ष्य वियतनाम के साथ संबंधों को गहरा करने से मज़बूत होगा।
  • चूँकि भारत तथा वियतनाम भौगोलिक रूप से उभरते हुए इंडो-पैसिफिक निर्माण के केंद्र में स्थित हैं और दोनों ही इस रणनीतिक क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाएंगे जो प्रमुख शक्तियों के बीच प्रभाव एवं प्रतिस्पर्द्धा के लिये एक प्रमुख रंगमंच बन रहा है।
  • व्यापक भारत-वियतनाम सहयोग ढाँचे के तहत रणनीतिक साझेदारी भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत निर्धारित दृष्टिकोण के निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण होगी, जो पारस्परिक रूप से सकारात्मक जुड़ाव का विस्तार करना चाहती है तथा इस क्षेत्र में सभी के लिये समावेशी विकास सुनिश्चित करती है।
  • वियतनाम के साथ संबंधों को मज़बूत करने से अंततः ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region -SAGAR)  पहल को साकार करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ेगा।
  • भारत और वियतनाम दोनों ही ब्लू इकोनॉमी और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में एक-दूसरे को लाभ पहुँचा सकते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन सह प्रोत्साहन, आत्मनिर्भरता, इलेक्ट्रॉनिक घटक और अर्द्धचालक/सेमीकंडक्टर्स, अर्द्धचालक तथा इनके उपयोग के निर्माण को बढ़ावा देने की योजना।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में सेमीकंडक्टिंग डिवाइस का महत्त्व, इलेक्ट्रॉनिक और सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता, भारत को आत्मनिर्भर बनाने में इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) ने देश में सेमीकंडक्टर्स/अर्द्धचालकों (Semiconductors) और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम (Display Manufacturing Ecosystems) के विकास के लिये एक व्यापक कार्यक्रम को मंज़ूरी दे दी है।

  • सरकार द्वारा अगले छह वर्षों में सेमीकंडक्टर्स और विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के विकास हेतु 76,000 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि को मंज़ूरी प्रदान की गई है।

अर्द्धचालक/सेमीकंडक्टर

  • एक कंडक्टर (Conductor) और इन्सुलेटर (Insulator) के बीच विद्युत चालकता में मध्यवर्ती क्रिस्टलीय ठोस का कोई भी वर्ग।
  • अर्द्धचालकों का उपयोग डायोड, ट्रांजिस्टर और एकीकृत सर्किट सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। इस तरह के उपकरणों को उनकी कॉम्पैक्टनेस, विश्वसनीयता, बिजली दक्षता और कम लागत के कारण व्यापकरूप से प्रयोग में लाया जाता है। 
  • अलग-अलग घटकों के रूप में, इनका उपयोग सॉलिड-स्टेट-लेज़र  सहित बिजली उपकरणों, ऑप्टिकल सेंसर और प्रकाश उत्सर्जक में किया जाता है। 

प्रमुख बिंदु 

  • कार्यक्रम के तहत प्रोत्साहन 
    • सेमीकंडक्टर फैब्स और डिस्प्ले फैब्स:
      • यह सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले फैब्रिकेशन इकाइयों की स्थापना के लिये परियोजना लागत के 50% तक की वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
      • केंद्र सरकार राज्यों के साथ मिलकर ज़मीन और सेमीकंडक्टर-ग्रेड वाटर (Semiconductor-Grade Water) जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचे वाले हाई-टेक क्लस्टर स्थापित करने के लिये राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगी।
    • सेमी-कंडक्टर लेबोरेटरी (SCL) 
      • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) सेमी-कंडक्टर लेबोरेटरी(SCL) के आधुनिकीकरण तथा व्यवसायीकरण हेतु आवश्यक कदम उठाएगा।
      • यह मंत्रालय ब्राउनफील्ड फैब संयंत्र के आधुनिकीकरण हेतु एक वाणिज्यिक फैब पार्टनर के साथ SCL के संयुक्त उद्यम की संभावनाओं की तलाश करेगा।
    • कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स: 
      • सरकार योजना के तहत स्वीकृत इकाइयों को पूंजीगत व्यय की 30 प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
      • सरकार के सहयोग से कंपाउंड सेमीकंडक्टरों और सेमीकंडक्टर पैकेजिंग की कम-से-कम 15 ऐसी इकाइयांँ स्थापित किये जाने की संभावना है।
    • सेमीकंडक्टर डिज़ाइन कंपनियांँ:
      • डिज़ाइन सह प्रोत्साहन (DLI) योजना के तहत पाँच वर्षों के लिये शुद्ध बिक्री पर 6 प्रतिशत– 4 प्रतिशत के पात्र व्यय एवं प्रोडक्ट डिप्लॉयमेंट लिंक्ड इंसेंटिव के 50 प्रतिशत तक उत्पाद डिज़ाइन से जुड़े प्रोत्साहन दिये जाएंगे। 
      • इंटीग्रेटेड सर्किट (IC), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (SOC), सिस्टम एवं आईपी कोर तथा सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिज़ाइन हेतु 100 घरेलू कंपनियों को सहायता प्रदान की जाएगी।  
    • इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन: 
      • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले के उत्पादन की एक सतत् प्रणाली विकसित करने हेतु दीर्घकालिक रणनीतियों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक विशेष और स्वतंत्र "इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM)" स्थापित किया जाएगा। 
      • इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन का नेतृत्व सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले उद्योग के क्षेत्र से जुड़े वैश्विक विशेषज्ञ करेंगे। यह सेमीकंडक्टरों एवं डिस्प्ले प्रणाली पर आधारित योजनाओं के कुशल तथा सुचारू कार्यान्वयन हेतु नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
    • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन राशि:
      • PLI के तहत बड़े पैमाने पर  इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, PLI के लिये आईटी हार्डवेयर, SPECS योजना और संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (ईएमसी 2.0) योजना के लिये 55,392 करोड़ रुपए (7.5 बिलियन अमरीकी डालर) की प्रोत्साहन सहायता को मंज़ूरी दी गई है। 
      • इसके अलावा, एसीसी बैटरी, ऑटो घटकों, दूरसंचार तथा नेटवर्किंग उत्पादों, सौर पीवी मॉड्यूल एवं व्हाइट गुड्स सहित संबद्ध क्षेत्रों के लिये 98,000 करोड़ रुपए (13 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की PLI प्रोत्साहन राशि स्वीकृत की गई हैं।
  • महत्त्व:
    • सामरिक महत्त्व: वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में, अर्द्धचालक और डिस्प्ले के विश्वसनीय स्रोत सामरिक महत्त्व रखते हैं जो महत्त्वपूर्ण सूचना बुनियादी ढांँचे की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण भी हैं।
    • रोज़गार: यह देश के जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने के लिये अत्यधिक कुशल रोज़गार के अवसर भी पैदा करेगा।
    • गुणक प्रभाव: सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले प्रणाली के विकास का वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ गहन एकीकरण के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अत्यधिक प्रभाव पड़ेगा। 
    • इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र को बढ़ावा: यह कार्यक्रम सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ डिज़ाइन में कंपनियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी प्रोत्साहन पैकेज प्रदान करके इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में एक नए युग की शुरुआत करेगा।
    • आत्मनिर्भरता: यह रणनीतिक महत्त्व और आर्थिक आत्मनिर्भरता के इन क्षेत्रों में भारत के तकनीकी नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त करेगा।

भारतीय इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र

  • परिचय:
    • भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र वर्ष 2023-24 तक 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद के साथ मज़बूती से आगे से बढ़ रहा है।
    • घरेलू उत्पादन वर्ष 2014-15 में 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019-20 में लगभग 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर (25% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) हो गया है।
    • इस उत्पादन का अधिकांश भाग भारत में स्थित अंतिम असेंबल इकाइयों (अंतिम-मील उद्योग) में होता है और उन पर ध्यान केंद्रित करने से अति पिछड़े क्षेत्रों को विकसित करने में मदद मिलेगी, इस प्रकार औद्योगिकीकरण को प्रेरित किया जाएगा।
  • आवश्यकता:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा का विचार:
      • अधिकांश चिपों के साथ ही भारतीय संचार और महत्त्वपूर्ण प्रणालियों में उपयोग किये जाने वाले घटकों का आयात किया जाता है।
      • यह राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को बाधित कर सकता है क्योंकि विनिर्माण के दौरान गुप्त सूचनाओं को चिपों में प्रोग्राम किया जा सकता है, जो नेटवर्क और साइबर सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
    • आयात में वृद्धि:
      • यह उम्मीद की जाती है कि इलेक्ट्रॉनिक्स आयात जल्द ही भारत की सबसे बड़ी आयात मद के रूप में कच्चे तेल से आगे निकल जाएगा।
    • कोविड के बीच बढ़ी मांग और कमी:
      • कोविड -19 महामारी और दुनिया भर में उसके बाद के लॉकडाउन ने जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका सहित देशों में महत्त्वपूर्ण चिप बनाने वाली सुविधाओं को बंद कर दिया।
      • इसकी कमी व्यापक प्रभाव का कारण बनती है, यह देखते हुए कि पहली बार मांग में कमी आई है जो अनुवर्ती अकाल का कारण बन जाती है।
    • चीन विरोधी भावनाओं से लाभ:
      • कोविड -19, भारत-चीन संघर्ष और इसके परिणामस्वरूप हाल के घटनाक्रमों के लिये चीन पर संयुक्त राज्य अमेरिका के आरोपों के कारण, कई बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पादन को चीन से बाहर स्थानांतरित कर रही हैं।
    • मेक इन इंडिया को बढ़ावा:
      • भारत में असेंबली इकाइयों के साथ-साथ सेमीकंडक्टर निर्माण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • यह घटकों के अधिक से अधिक स्थानीय उत्पादन को प्रेरित करेगा और समग्र रूप से उद्योग के विकास को बढ़ावा देगा, जिससे मेक इन इंडिया सफल हो सकेगा।
      • वर्ष 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति 2019 को अपनी मंज़ूरी दी, जो भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन और विनिर्माण के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की कल्पना करती है।
  • चुनौतियाँ:
    • अदृश्य लाभ:
      • भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन की प्रभावशाली वृद्धि के बावजूद, उत्पादन इकाइयों द्वारा जोड़ा गया शुद्ध मूल्य बहुत कम है।
      • शुद्ध मूल्यवर्द्धन 5% और 15% के बीच होता है, क्योंकि अधिकांश घटक स्थानीय रूप से प्राप्त करने के बजाय आयात किये जाते हैं।
      • इसका तात्पर्य यह है कि 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक बाज़ार में से स्थानीय मूल्यवर्द्धन मात्र 7-10 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • अपस्ट्रीम उद्योगों में सीमित स्वदेशी क्षमता:
      • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के युग में उत्पादन के अंतिम चरणों में मूल्यवर्द्धन बहुत कम है, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स में क्योंकि अधिक जटिल प्रक्रियाएँ, जिसमें अधिक मूल्यवर्द्धन शामिल है, असेंबली से पहले 'अपस्ट्रीम' उद्योगों में होती हैं।
      • इनमें प्रोसेसर, डिस्प्ले पैनल, मेमोरी चिप्स, कैमरा आदि का उत्पादन शामिल है।
    • फाउंड्री का अभाव:
      • फाउंड्री (अर्द्धचालक निर्माण संयंत्र जहाँ माइक्रोचिप्स का उत्पादन होता है) की अनुपस्थिति में, भारत को माइक्रोचिप्स का उत्पादन करने के लिये विदेशी ठेकेदारों पर निर्भर रहना पड़ता है।
      • फाउंड्रीज की स्थापना के लिये 2 बिलियन अमरीकी डालर और अधिक के बड़े पैमाने पर पूंजीगत व्यय की आवश्यकता होती है।
        • प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिये फाउंड्री को लगभग हर 18 महीने में नई तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाने की आवश्यकता होती है, जिसका अर्थ है- उच्च पूंजी मूल्यह्रास जो अक्सर उत्पादन लागत का 50-60% हिस्सा होता है।

आगे की राह

  • सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की नींव हैं जो उद्योग 4.0 के तहत डिजिटल परिवर्तन के अगले चरण को चला रहे हैं।
  • नए मिशन को कम-से-कम अभी के लिये, डिज़ाइन केंद्रों, परीक्षण सुविधाओं, पैकेजिंग आदि सहित चिप बनाने वाली शृंखला के अन्य भागों को वित्तीय सहायता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और सेमीकंडक्टर्स (SPECS) के निर्माण को माइक्रोचिप दिग्गजों को आकर्षित करने के लिये योजना के कुल परिव्यय को मौजूदा 3300 करोड़ रुपए से बढ़ाया जाना चाहिये।
    • भारत के सार्वजनिक उपक्रम जैसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का उपयोग एक वैश्विक प्रमुख की मदद से सेमीकंडक्टर फैब फाउंड्री स्थापित करने के लिये किया जा सकता है।
  • भारत को स्वदेशी सेमीकंडक्टर्स के लक्ष्य को छोड़ने की ज़रूरत है। इसके बजाय, इसका लक्ष्य एक विश्वसनीय, बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनना चाहिये।
    • बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये अनुकूल व्यापार नीतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।

स्रोत-पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

एल्गो ट्रेडिंग पर प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये:

कैपिटल मार्केट, सेबी, एल्गोरिथम ट्रेडिंग, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस।

मैन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में पूँजी बाज़ार और इसका महत्त्व, पूँजी बाज़ार से संबंधित कानून और इसके नियमन, एल्गो ट्रेडिंग से संबंधित चिंताएँ और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने एल्गोरिथम या एल्गो ट्रेडिंग, या स्वचालित निष्पादन और तर्क से उत्पन्न ट्रेडों को विनियमित करने पर एक चर्चा पत्र जारी किया है।

एल्गो ट्रेडिंग (Algo Trading)

  • डिज़िटल दुनिया में लगभग सब कुछ एल्गोरिदम पर आधारित है। एल्गोरिदम उपयोगककर्त्ता डेटा, व्यवहार और उपयोग पैटर्न का लाभ उठाते हैं तथा कुछ लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये पूर्व-निर्दिष्ट निर्देश प्राप्त करते हैं।
  • एल्गो ट्रेडिंग उन्नत गणितीय मॉडल के उपयोग से सुपरफास्ट गति से उत्पन्न ऑर्डर को संदर्भित करता है जिसमें व्यापार का स्वचालित निष्पादन शामिल होता है।
    • यहाँ तक कि स्प्लिट-सेकंड फास्ट एक्सेस को भी ट्रेडर को भारी लाभ दिलाने हेतु सक्षम माना जाता है।
  • एल्गो ट्रेडिंग सिस्टम स्वचालित रूप से लाइव स्टॉक की कीमतों की निगरानी करता है और दिये गए मानदंडों को पूरा करने पर एक ऑर्डर शुरू करता है। 
  • यह व्यापारियों के लिये लाइव स्टॉक की कीमतों की निगरानी और मैन्युअल ऑर्डर प्लेसमेंट शुरू करने को सरल बनता है।
  • यह एक ब्रोकर को एक विशिष्ट समय पर या एक निश्चित कीमत पर शेयर खरीदने या बेचने के लिये कहने जैसा है, सिवाय इसके कि एल्गोरिथम ट्रेडिंग की गति तेज़ है कंप्यूटर कम त्रुटि की गुंजाइश के साथ एक निश्चित समय में मानव की तुलना में बहुत अधिक डेटा का विश्लेषण करता है।
    • इसके अलावा, महत्त्वपूर्ण मूल्य परिवर्तन से बचा जा सकता है क्योंकि ऑर्डर सेकंडो के अंदर  निष्पादित होते हैं।
    • इस प्रकार, निवेशक अधिक ट्रेडों को तेज़ी से निष्पादित कर सकते हैं क्योंकि मॉनिटर करने, चयन करने, खरीदने, बेचने, ऑर्डर प्लेसमेंट शुरू करने आदि में मैन्युअल की अपेक्षा एल्गो ट्रेडिंग सिस्टम में कम समय लगता है।

प्रमुख बिंदु:

  • सेबी का प्रस्ताव:
    • रेगुलेटिंग फ्रेमवर्क: एल्गो ट्रेडिंग के लिये एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाने की ज़रूरत है।
    • एल्गो-ऑर्डर: API (एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) से निकलने वाले सभी ऑर्डर को एल्गो ऑर्डर के रूप में माना और स्टॉक ब्रोकर द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिये तथा  एल्गो ट्रेडिंग करने के लिये API को स्टॉक द्वारा प्रदान की गई अद्वितीय एल्गो आईडी के साथ टैग किया जाना चाहिये। स्टॉक एक्सचेंज एल्गो को मंज़ूरी दे रहा है।
      • एक्सचेंज स्वीकृति: प्रत्येक एल्गो रणनीति, चाहे वह ब्रोकर या क्लाइंट द्वारा उपयोग की जाती हो आदि को एक्सचेंज द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये और जैसा कि वर्तमान स्वरुप के अनुसार प्रत्येक एल्गो रणनीति को प्रमाणित सूचना प्रणाली लेखा परीक्षक (सीआईएसए)/सूचना प्रणाली लेखा परीक्षा (डीआईएसए) लेखा परीक्षकों में डिप्लोमा द्वारा प्रमाणित किया जाना है।
    • एल्गो-आईडी: स्टॉक एक्सचेंजों को यह सुनिश्चित करने के लिये एक प्रणाली विकसित करनी होगी कि केवल उन्हीं एल्गो को तैनात किया जा रहा है जो एक्सचेंज द्वारा अनुमोदित हैं और एक्सचेंज द्वारा प्रदान की गई एल्गो आईडी अद्वितीय हैं।
    • स्टॉक एक्सचेंजों को यह सुनिश्चित करने के लिये एक प्रणाली विकसित करनी होगी जो केवल स्टॉक एक्सचेंज द्वारा अनुमोदित हो बल्कि साथ ही स्टॉक एक्सचेंज द्वारा प्रदान की गई विशिष्ट एल्गो आईडी को ही तैनात किया जा रहा है।
    • क्लाइंट ऑर्डर को नियंत्रित करने के लिये ब्रोकर: किसी भी संस्था द्वारा विकसित सभी एल्गो को ब्रोकरों के सर्वर पर चलाना होता है, जिसमें ब्रोकर के पास क्लाइंट ऑर्डर  पुष्टिकरण और मार्ज़िन जानकारी का नियंत्रण होता है।
    • प्रमाणीकरण: ऐसी प्रत्येक प्रणाली में दो ऐसे प्रमाणीकरण कारक बनाए जाने चाहिये जो किसी भी एपीआई/एल्गो व्यापार हेतु निवेशको तक पहुँच को आसान बनाता हो।
  • सेबी की चिंताएँ:
    • बाज़ार के लिये जोखिम: अनियंत्रित और अस्वीकृत एल्गो, बाज़ार के लिये जोखिम पैदा करते हैं और व्यवस्थित बाज़ार में हेरफेर के साथ-साथ खुदरा निवेशकों को उच्च रिटर्न की गारंटी देकर उन्हें लुभाने के लिये इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
    • पहचान का मुद्दा: वर्तमान में एक्सचेंज केवल दलालों द्वारा प्रस्तुत किये गए एल्गो को मंज़ूरी देते हैं। हालाँकि APIs का उपयोग करने वाले खुदरा निवेशकों द्वारा तैनात किये गए एल्गो के लिये न तो एक्सचेंज और न ही दलाल यह पहचान सकते हैं कि APIs लिंक से निकलने वाला व्यापार एक एल्गो या गैर-एल्गो व्यापार है।
    • निवारण तंत्र का अभाव: असफल एल्गो रणनीति के मामले में संभावित नुकसान खुदरा निवेशकों के लिये बहुत बड़ा हो सकता है, क्योंकि इस संबंध में कोई भी निवेशक शिकायत निवारण तंत्र मौजूद नहीं है।
  • महत्त्व
    • खुदरा निवेशकों का संरक्षण: यह सुनिश्चित करेगा कि खुदरा निवेशकों के हितों की रक्षा हो और यह एल्गो ट्रेडिंग करने हेतु निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देगा।
    • मूल्य हेरफेर पर अंकुश: नियमों के एक सेट के साथ, किसी भी प्रकार का मूल्य हेरफेर संभव नहीं होगा और निवेशकों को इस प्रक्रिया में कोई भारी नुकसान नहीं होगा।
    • दलालों का सशक्तीकरण: इसके अतिरिक्त, यह दलालों के लिये अपने तकनीकी कौशल को बढ़ाने और अपने ग्राहकों का विस्तार करने में भी मदद करेगा।
  • बाज़ार संबंधी चिंताएँ
    • प्रक्रिया को थकाऊ बनाता है: एल्गो ट्रेडिंग शेयर बाज़ारों को गहरा करेगी और खुदरा निवेशकों की सहायता करेगी, जो स्टॉक ट्रेडिंग में पूर्णकालिक तौर पर संलग्न नहीं हैं। हालाँकि स्टॉक एक्सचेंजों से अपेक्षित अनुमति प्राप्त करना एक कठिन प्रक्रिया है, इसलिये ब्रोकरों को APIs सिस्टम का उपयोग बंद करना पड़ सकता है।
    • बाज़ार का नकारात्मक प्रभाव विकास: एक मौका है कि अगर API की अनुमति नहीं है तो निवेशक किसी अन्य प्रणाली में स्थानांतरित हो सकते हैं, प्रतिबंध लगाने से बाज़ार के विकास पर असर पड़ेगा।

एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस का कार्य

  • भारत में कई दलालों ने अपने ग्राहकों को API एक्सेस प्रदान करना शुरू कर दिया है, जो एक डेटा प्रदाता (स्टॉक ब्रोकर) और एक अंतिम-उपयोगकर्त्ता (क्लाइंट) के बीच एक ऑनलाइन कनेक्शन स्थापित करता है।
  • API एक्सेस निवेशकों को एक तृतीय-पक्ष एप्लिकेशन का उपयोग करने में सक्षम बनाता है जो उनकी सुविधा की ज़रूरतों के अनुरूप है या ऐसे निवेशक जिनके पास अपनी स्वयं की फ्रंट-एंड सुविधाओं का निर्माण करने की तकनीकी क्षमताएँ हैं।
  • ये तृतीय-पक्ष एप्लिकेशन किसी निवेशक को बाज़ार डेटा का विश्लेषण करने या किसी ट्रेडिंग या निवेश रणनीति का बैक-टेस्ट करने में मदद करते हैं। इन APIs का उपयोग निवेशक अपने व्यापार को स्वचालित करने के लिये कर रहे हैं।
  • वर्तमान में ब्रोकर API से निकलने वाले ऑर्डर की पहचान कर सकते हैं, लेकिन वे API से निकलने वाले एल्गो और नॉन-एल्गो ऑर्डर के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं।

आगे की राह

  • कोई भी विनियम किसी विशिष्ट बाज़ार के लिये किसी भी खतरे को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण होता है। लेकिन ऐसा करने में, इसे अक्सर नवाचारों को दबाना पड़ता है और कदाचार या दुरुपयोग से बचने के लिये जाँच-पड़ताल करनी पड़ती है।
  • यह आवश्यक है कि नियामक एल्गोरिदम के संचालन में अच्छी तरह से वाकिफ हों और जहाँ आवश्यक हो नए कानून में संलग्न होने में सक्षम होने के लिये लचीलापन हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

मध्य भारत में ताम्रपाषाण संस्कृति

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई), ताम्रपाषाण संस्कृति, हड़प्पा संस्कृति।

मेन्स के लिये:

ताम्रपाषाण संस्कृति और इसकी विशेषताएँ, भारत में ताम्रपाषाण स्थल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने मध्य भारत में ताम्रपाषाणिक संस्कृति से संबंधित दो प्रमुख स्थलों (ऐरण, ज़िला सागर और तेवर, ज़िला जबलपुर) मध्य प्रदेश राज्य में खुदाई की।

प्रमुख बिंदु

  • ताम्रपाषाणिक संस्कृति
    • परिचय: नवपाषाण काल ​​के अंत में धातुओं का उपयोग देखा गया। कई संस्कृतियाँ तांबे और पत्थर के औजारों के उपयोग पर आधारित थीं।
      • जैसा कि नाम से संकेत मिलता है, ताम्रपाषाण काल ​​(चाल्को = ताम्र और लिथिक = पाषाण) के दौरान, धातु और पत्थर दोनों का उपयोग दैनिक जीवन में उपकरणों के निर्माण के लिये किया जाता था।
      • ताम्रपाषाण संस्कृतियों ने कांस्य युग की हड़प्पा संस्कृति का अनुसरण किया।
      • यह लगभग 2500 ईसा पूर्व से 700 ईसा पूर्व तक फैला था।
    • मुख्य विशेषताएँ: विभिन्न क्षेत्र की ताम्रपाषाण संस्कृतियों को सिरेमिक और अन्य सांस्कृतिक उपकरणों जैसे तांबे की कलाकृतियों, अर्द्ध-कीमती पत्थरों के मोतियों, पत्थर के औजारों और टेराकोटा मूर्तियों में देखी गई कुछ मुख्य विशेषताओं के अनुसार परिभाषित किया गया था।
    • विशेषताएँ:
      • ग्रामीण बस्तियाँ: अधिकांश लोग ग्रामीण थे और पहाड़ियों और नदियों के पास रहते थे। 
        • ताम्रपाषाण युग के लोग शिकार, मछली पकड़ने और कृषि पर आश्रित रहे।
      • क्षेत्रीय भिन्नता: सामाजिक संरचना, अनाज और मिट्टी के बर्तनों में क्षेत्रीय अंतर दिखाई देते हैं।
      • प्रवासन: जनसंख्या समूहों के प्रवासन और प्रसार को अक्सर ताम्रपाषाण काल की विभिन्न संस्कृतियों की उत्पत्ति के कारणों के रूप में उद्धृत किया जाता है।
      • भारत में प्रथम धातु युग: चूँकि यह भारत में प्रथम धातु युग की शुरुआत थी इसलिये तांबे और इसकी मिश्र धातु कांसा जो कम तापमान पर पिघल जाती थी, इस अवधि के दौरान विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में उपयोग की जाती थी।
      • कला और शिल्प: ताम्रपाषाण संस्कृति की विशेषता पहिया एवं मिट्टी के बर्तन थे जो ज़्यादातर लाल और नारंगी रंग के होते थे।
        • ताम्रपाषाण काल के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के मृदभांडों का प्रयोग किया जाता था। काले और लाल मिट्टी के मृदभांड काफी प्रचलित थे।
        • गैरिक मृदभांडों (Ochre-Coloured Pottery- OCP) का भी प्रचलन था।

Chalcolithic-Sites

  • वर्ष 2020-21 में ऐरण में उत्खनन कार्य:
    • ऐरण (प्राचीन एयरिकिना) बीना (प्राचीन वेनवा) नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है जो तीन तरफ से नदी से घिरा हुआ है।
      • बीना नदी भारत के मध्य प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह बेतवा नदी (यमुना नदी की एक सहायक नदी) की एक प्रमुख सहायक नदी है।
    • ऐरण, सागर ज़िला मुख्यालय से 75 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
    • वर्ष 2020-21 में इस स्थल पर हुई खुदाई में तांबे का सिक्का, लोहे के तीर का सिरा, टेराकोटा मनका, पत्थर के मोतियों के साथ तांबे के सिक्के, पत्थर के सेल्ट, स्टीटाइट और जैस्पर के मोती, काँच, कारेलियन, देवनागरी में शिलालेख के साथ टेराकोटा व्हील, जानवरों की मूर्तियाँ, लघु बर्तन, लोहे की वस्तुएँ, मूसल और रेड-स्लिप्ड टेराकोटा सहित कई प्राचीन वस्तुओं का पता चला है।
    • सादे, पतले भूरे रंग के बर्तन भी उल्लेखनीय है।
    • कुछ धातु की वस्तुओं से लोहे के उपयोग के साक्ष्य भी मिले हैं।
    • स्थल पर इस उत्खनन से ताम्रपाषाण संस्कृति के अवशेषों का भी पता चला, जिनमें चार प्रमुख काल थे।
      • अवधि I: ताम्रपाषाण काल (18वीं -7वीं ईसा पूर्व),
      • अवधि II: प्रारंभिक इतिहास (7वीं-दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व-पहली शताब्दी ई.),
      • अवधि III: पहली से छठी शताब्दी ई.
      • अवधि IV: उत्तर मध्यकालीन (16 वीं-18 वीं शताब्दी ई.)
  • वर्ष 2020-21 के दौरान तेवर में प्रारंभिक ऐतिहासिक उत्खनन: 
    • तेवर (त्रिपुरी) गाँव जबलपुर ज़िले से 12 किमी पश्चिम में जबलपुर-भोपाल राजमार्ग पर स्थित है।
    • इस उत्खनन से सांस्कृतिक अनुक्रमों के संदर्भ में चार वंशों अर्थात् कुषाण, शुंग, सातवाहन और कलचुरी का पता चलता है।
    • इस उत्खनन में पुरातात्त्विक अवशेषों में मूर्तियों के अवशेष, हॉप्सकॉच, टेराकोटा बॉल, लोहे की कील, तांबे के सिक्के, टेराकोटा के मोती, लोहे और टेराकोटा की मूर्ति के उपकरण, सिरेमिक में लाल बर्तन, काले बर्तन, हांडी के आकार के साथ लाल फिसले हुए बर्तन, नलयुक्त बर्तन, छोटा बर्तन, बड़ा ज़ार आदि शामिल है और संरचनात्मक अवशेषों में ईंट की दीवार और बलुआ पत्थर के स्तंभों की संरचना शामिल है।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021, जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, नागोया प्रोटोकॉल

मेन्स के लिये:

जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 की मुख्य विशेषताएँ और संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021’ को संसद में प्रस्तुत किया गया है।

  • ये संशोधन राष्ट्रीय हितों से समझौता किये बिना कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने और अनुसंधान, पेटेंट और वाणिज्यिक उपयोग सहित जैविक संसाधनों की शृंखला में अधिक विदेशी निवेश लाने का प्रयास करते हैं।
  • हालाँकि, विपक्षी दलों ने विधेयक पर चिंता ज़ाहिर करते हुए इसे एक प्रवर समिति के पास भेजने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की है।

नोट

  • किसी विशेष विधेयक की जाँच के लिये एक प्रवर समिति का गठन किया जाता है और इसकी सदस्यता एक सदन के संसद सदस्यों तक सीमित होती है। इसकी अध्यक्षता सत्तारूढ़ दल के सांसद करते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • उद्देश्य: यह विधेयक ‘जैविक विविधता अधिनियम, 2002’ में कुछ नियमों को शिथिल करता है।
    • वर्ष 2002 के अधिनियम ने भारतीय चिकित्सा व्यवसायियों, बीज क्षेत्र, उद्योग और शोधकर्त्ताओं पर भारी ‘अनुपालन बोझ’ अधिरोपित किया और सहयोगी अनुसंधान तथा निवेश को कठिन बना दिया।
  • अनुसंधान प्रक्रिया को सरल बनाएँ: संशोधन पेटेंटिंग को प्रोत्साहित करने के लिये भारतीय शोधकर्त्ताओं के लिये पेटेंट की प्रक्रिया को भी कारगर बनाते हैं।
    • इसके लिये देशभर में क्षेत्रीय पेटेंट केंद्र खोले जाएंगे।
  • भारतीय चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देना: यह ‘भारतीय चिकित्सा प्रणाली’ को बढ़ावा देना चाहता है, और भारत में उपलब्ध जैविक संसाधनों का उपयोग करते हुए अनुसंधान की ट्रैकिंग, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया, अनुसंधान परिणामों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।
    • यह स्थानीय समुदायों को विशेष रूप से औषधीय मूल्य जैसे कि बीज के संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम होने के लिये सशक्त बनाना चाहता है।
    • यह विधेयक किसानों को औषधीय पौधों की खेती बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के उद्देश्यों से समझौता किये बिना इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना है।
  • कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करना: यह जैविक संसाधनों की शृंखला में कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने का प्रयास करता है।
    • इन परिवर्तनों को वर्ष 2012 में भारत के नागोया प्रोटोकॉल (सामान्य संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण) के अनुसमर्थन के अनुरूप लाया गया था।
  • विदेशी निवेश की अनुमति: यह जैवविविधता में अनुसंधान में विदेशी निवेश की भी अनुमति देता है हालाँकि यह निवेश आवश्यक रूप से जैवविविधता अनुसंधान में शामिल भारतीय कंपनियों के माध्यम से करना होगा।
    • विदेशी संस्थाओं के लिये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण से अनुमोदन आवश्यक है।
  • आयुष चिकित्सकों को छूट: विधेयक पंजीकृत आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करने वाले लोगों को कुछ उद्देश्यों के लिये जैविक संसाधनों तक पहुँचने हेतु राज्य, जैवविविधता बोर्डों को पूर्व सूचना देने से छूट देने का प्रयास करता है।
  • जैवविविधता अधिनियम, 2002: इसे संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था, जिसके तहत निम्नलिखित हेतु प्रावधान किया गया था:
    • जैवविविधता का संरक्षण,
    • इसके घटकों का सतत् उपयोग
    • जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत बंटवारा।
  • नागोया प्रोटोकॉल
    • यह अनिवार्य है कि जैविक संसाधनों के उपयोग से प्राप्त लाभों को स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के बीच निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से साझा किया जाए।
    • जब कोई भारतीय या विदेशी कंपनी या व्यक्ति औषधीय पौधों और संबंधित ज्ञान जैसे जैविक संसाधनों का उपयोग करता है, तो उसे राष्ट्रीय जैवविविधता बोर्ड (National Biodiversity Board) से पूर्व सहमति लेनी होती है।
    • बोर्ड एक लाभ-साझाकरण शुल्क या रॉयल्टी लगा सकता है या शर्तें लगा सकता है ताकि कंपनी इन संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग से होने वाले मौद्रिक लाभ को उन स्थानीय लोगों के साथ साझा करे जो क्षेत्र में जैवविविधता का संरक्षण कर रहे हैं।

विशेषज्ञों की चिंताएंँ:

  • संरक्षण की तुलना में व्यापार को प्राथमिकता: यह जैविक संसाधनों के संरक्षण के अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य की कीमत पर बौद्धिक संपदा और वाणिज्यिक व्यापार को प्राथमिकता देता है।
  • बायो-पायरेसी का खतरा: आयुष प्रैक्टिशनर्स (AYUSH Practitioners) को छूट के लिए अब मंज़ूरी लेने की आवश्यकता नहीं है, इससे ‘बायो पायरेसी’ (Biopiracy) का मार्ग प्रशस्त होगा।
    • बायोपायरेसी के व्यापार में स्वाभाविक रूप से होने वाली आनुवंशिक या जैव रासायनिक सामग्री का दोहन करने की प्रथा है।
  • जैवविविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) का हाशिये पर होना: प्रस्तावित संशोधन राज्य जैवविविधता बोर्डों को लाभ साझा करने की शर्तों को निर्धारित करने हेतु BMCs का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देते हैं।
    • जैवविविधता अधिनियम 2002 के तहत, राष्ट्रीय और राज्य जैवविविधता बोर्डों को जैविक संसाधनों के उपयोग से संबंधित कोई भी निर्णय लेते समय जैवविविधता प्रबंधन समितियों (प्रत्येक स्थानीय निकाय द्वारा गठित) से परामर्श करना आवश्यक है।
  • स्थानीय समुदाय को दरकिनार करना: विधेयक खेती वाले औषधीय पौधों को अधिनियम के दायरे से भी छूट देता है। हालांँकि यह पता लगाना व्यावहारिक रूप से असंभव है कि किन पौधों की खेती की जानी चाहिये और कौन-से पौधे जंगली हैं।
    • यह प्रावधान बड़ी कंपनियों को अधिनियम के दायरे और बेनिफिट-शेयरिंग प्रावधानों के तहत पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता से बचने या स्थानीय समुदायों के साथ लाभ साझा करने की अनुमति दे सकता है।

आगे की राह

  • वन अधिकार अधिनियम (FRA) का प्रभावी कार्यान्वयन: सरकार को क्षेत्र में अपनी एजेंसियों और इन वनों पर निर्भर लोगों के बीच विश्वास बनाने का प्रयास करना चाहिये, उन्हें देश में हर किसी की तरह समान नागरिक माना जाना चाहिये।
    • FRA की खामियों की पहचान पहले ही की जा चुकी है; बस ज़रूरत है इसमें संशोधन पर काम करने की।
  • अंतर्राष्ट्रीय संधियों का एकीकरण: नागोया प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन अलग-अलग काम नहीं कर सकता है और इस प्रकार अन्य अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप होना चाहिये।
    • इसलिये नागोया प्रोटोकॉल और खाद्य और कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (ITPGRFA) के बीच एकीकरण को एक दूसरे के पथ को पार करने वाले विधायी, प्रशासनिक और नीतिगत उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR): PBR का उद्देश्य संसाधनों की स्थिति, उपयोग, इतिहास, चल रहे परिवर्तनों और जैवविविधता संसाधनों में बदलाव लाने वाली ताकतों और इन संसाधनों को कैसे प्रबंधित किया जाए, इस बारे में लोगों की धारणाओं के लोक ज्ञान का दस्तावेज़ीकरण करना चाहिये।
    • PBR पारंपरिक ज्ञान पर किसानों या समुदायों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिये उपयोगी हो सकते हैं जो वे एक विशेष किस्म पर धारण कर सकते हैं।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


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