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डेली न्यूज़

  • 18 Oct, 2024
  • 41 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-कनाडा संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA), राष्ट्रमंडल, G20, अंतरिक्ष सहयोग

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय संबंध, भारत-कनाडा, व्यापार समझौते और करार, बहुपक्षीय संस्थाएँ, सुरक्षा और विकास। 

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कनाडा में एक खालिस्तानी नेता की हत्या में भारत की संलिप्तता के आरोपों के बाद भारत-कनाडा संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

भारत-कनाडा संबंधों में हाल की घटनाएँ क्या हैं? 

  • निज्जर की हत्या: ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि इसमें भारतीय अधिकारी शामिल थे, जिसे भारत ने स्पष्ट रूप से "निराधार" बताकर अस्वीकार किया है।
  • राजनयिक परिणाम: राजनयिक संबंधों में गिरावट आने के साथ दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है और वाणिज्य दूतावास सेवाएँ स्थगित कर दी हैं।
  • फाइव आईज़ एलायंस से समर्थन: कनाडा ने गंभीर आरोपों को लेकर भारत के साथ बढ़ते कूटनीतिक तनाव के बीच अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिये फाइव आईज़ खुफिया गठबंधन की मदद ली है।

फाइव आईज़ एलायंस क्या है?

  • परिचय: 
    • फाइव आईज़ एक खुफिया गठबंधन है जिसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका जैसे देश शामिल हैं।
    • ये देश बहुपक्षीय UK-USA समझौते के पक्षकार हैं, जो सिग्नल इंटेलिजेंस में संयुक्त सहयोग के लिये एक संधि है।
  • विशेषताएँ: 
    • ये साझेदार देश सहयोग के एक भाग के रूप में विश्व के सबसे सुदृढ़ बहुपक्षीय समझौतों में से एक के अंतर्गत व्यापक स्तर की खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं।
    • अपनी स्थापना के बाद से इस एजेंसी ने बाद में अपने मुख्य समूह को 'नाइन आइज़' और 14 आइज़ गठबंधनों तक विस्तारित किया तथा सुरक्षा साझेदारों के रूप में और अधिक देशों को इसमें शामिल किया।
      • 'नाइन आइज़' समूह में नीदरलैंड, डेनमार्क, फ्राँस और नॉर्वे शामिल हैं जबकि 14 आइज़ समूह में बेल्जियम, इटली, जर्मनी, स्पेन और स्वीडन शामिल हैं।

भारत-कनाडा संबंध के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?

  • राजनीतिक संबंध: 
  • आर्थिक सहयोग: 
    • भारत और कनाडा के बीच वस्तुओं का कुल द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023 में 9.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जिसमें कनाडा भारत में 18वाँ सबसे बड़ा विदेशी निवेशक रहा, जिसने अप्रैल 2000 से मार्च 2023 तक लगभग 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
    • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के लिये चल रही वार्ता का उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और व्यापार सुविधा में व्यापार को शामिल करके आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना है।
  • प्रवासी संबंध: 
    • कनाडा में भारतीय मूल के 1.6 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं जिनमें लगभग 700,000 अनिवासी भारतीय (NRIs) शामिल हैं, जो इसे विश्व स्तर पर सबसे बड़े भारतीय प्रवासियों वाले देश में से एक बनाता है।
    • प्रवासी समुदाय सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक गतिविधियों और द्विपक्षीय संबंधों में काफी योगदान देते हैं जिससे दोनों देशों के बीच मज़बूत सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को बढ़ावा मिलता है।
  • शिक्षा और अंतरिक्ष नवाचार: 
    • स्वास्थ्य देखभाल, कृषि, जैव प्रौद्योगिकी और अपशिष्ट प्रबंधन में संयुक्त अनुसंधान पहल को  IC-IMPACTS जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से आगे बढ़ाया जा रहा है, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है।
    • अंतरिक्ष सहयोग में ISRO और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के बीच समझौते शामिल हैं, जिसमें ISRO द्वारा कनाडाई उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण भी शामिल है।
    • दोनों के बीच शैक्षिक आदान-प्रदान महत्त्वपूर्ण हैं। कनाडा की अंतर्राष्ट्रीय छात्र आबादी में भारतीय छात्रों की संख्या लगभग 40% है, जिससे सांस्कृतिक विविधता बढ़ रही है।
    • वर्ष 2010 में हस्ताक्षरित परमाणु सहयोग समझौता (जो वर्ष 2013 से प्रभावी हुआ) यूरेनियम आपूर्ति को सक्षम बनाता है तथा निगरानी के लिये एक संयुक्त समिति की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • सामरिक महत्व: 

व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) क्या है?

  • यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है, जिसमें सेवाओं और निवेश में व्यापार तथा आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों में समन्वय शामिल है।
  • इसके तहत व्यापार सुविधा और सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा और IPR जैसे क्षेत्रों में समन्वय भी होता है।
  • साझेदारी समझौते या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक होते हैं।
  • CEPA के तहत व्यापार के नियामक पहलू पर विचार करने के साथ नियामक मुद्दों को शामिल करने वाला समझौता भी होता है।

भारत-कनाडा संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • राजनयिक प्रतिरक्षा का मुद्दा: 
    • कनाडा ने वियना कन्वेंशन का हवाला देते हुए भारत में बढ़ते तनाव के बीच अपने राजनयिक कर्मचारियों और नागरिकों की सुरक्षा की आवश्यकता पर बल दिया है।
    • इन चिंताओं के प्रति भारत की प्रतिक्रिया तथा कूटनीतिक मानदंडों का पालन, द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • खालिस्तान मुद्दा:
    • भारत खालिस्तानी अलगाववादी समूहों के प्रति कनाडा की सहिष्णुता को अपनी क्षेत्रीय अखंडता के लिये प्रत्यक्ष खतरा मानता है।
    • खालिस्तान के एक प्रमुख समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में कथित भारतीय संलिप्तता की कनाडा द्वारा की जा रही जाँच से इस तनाव को और बढ़ावा मिला है। यह मुद्दा दोनों देशों के बीच कूटनीतिक एवं राजनीतिक विश्वास को कमज़ोर कर रहा है।
  • आर्थिक एवं व्यापारिक बाधाएँ:
    • इससे बढ़ती राजनीतिक दूरी के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) को अंतिम रूप देने के प्रयास बाधित हुए हैं।
    • दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार शिथिल हो गया है तथा राजनयिक संकट के कारण भारत में कनाडाई निवेश के समक्ष अनिश्चितता बनी हुई है।
  •  वीज़ा और आव्रजन मुद्दे: 
    • भारत में कनाडाई राजनयिक कर्मचारियों की संख्या में कमी के कारण, वीज़ा के लिये आवेदन करने वाले भारतीयों को काफ़ी विलंब का सामना करना पड़ रहा है। इसका प्रभाव नए आवेदकों (विशेष रूप से कनाडाई संस्थानों में प्रवेश लेने के इच्छुक छात्रों) पर पड़ रहा है।
  •  भू-राजनीतिक निहितार्थ: 
    • यदि आरोप सही साबित हुए तो भारत-कनाडा के बीच कूटनीतिक गतिरोध से G20 में भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है।
    • कनाडा की G7 सदस्यता और फाइव आईज़ गठबंधन के साथ संबंध अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और जापान सहित भारत के रणनीतिक साझेदारों हेतु स्थिति को जटिल बनाते हैं।
    • कनाडा की हिंद-प्रशांत रणनीति (जो कभी भारत को शामिल करने पर केंद्रित थी) इन राजनीतिक तनावों के कारण शिथिल हो गई है, जिससे इस क्षेत्र में सुरक्षा एवं आर्थिक मुद्दों पर सहयोग सीमित हो रहा है।

राजनयिक प्रतिरक्षा पर वियना कन्वेंशन क्या है?

  •  वियना कन्वेंशन: 
    • वियना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमेटिक रिलेशंस (1961) के तहत स्वतंत्र देशों के बीच राजनयिक संबंधों के लिये रूपरेखा स्थापित की गई है। इसमें राजनयिक मिशनों एवं उनके कर्मियों के अधिकारों तथा ज़िम्मेदारियों को रेखांकित किया गया है।
    • वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस (1963) के तहत कॉन्सुलर अधिकारियों के कार्यों और विदेशी नागरिकों के साथ इनके व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है।
  •  प्रमुख प्रावधान: 
    • राजनयिक उन्मुक्ति: राजनयिकों को गिरफ्तारी और नज़रबंदी से उन्मुक्ति प्रदान की जाती है, जिससे उन्हें मेजबान देश में कानूनी प्रक्रियाओं से सुरक्षा मिलती है।
    • राजनयिक परिसर की अखंडता: राजनयिक परिसर में बिना अनुमति के प्रवेश नहीं किया जा सकता, जिससे संचार की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित होती है।
    • वाणिज्य दूतावास अधिकारियों की सुरक्षा: ये अभिसमय यह सुनिश्चित करते हैं कि वाणिज्य दूतावास अधिकारी बिना किसी हस्तक्षेप के अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सकें तथा विदेश में अपने नागरिकों को सहायता प्रदान कर सकें।

आगे की राह 

  • खालिस्तान मुद्दे पर चर्चा:
    • भारतीय प्रवासियों और खालिस्तान अलगाववाद से जुड़ी चिंताओं को हल करने के लिये दोनों सरकारों के बीच सक्रिय बातचीत आवश्यक है। इन संवेदनशील मुद्दों को हल करने में एक-दूसरे की संप्रभुता एवं विधिक ढाँचों का सम्मान करना भी आवश्यक है।
  • आर्थिक संबंधों को मज़बूत करना:
    • प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) को महत्त्व देना चाहिये।
    • पारस्परिक रूप से लाभकारी अवसर प्राप्त करने के लिये व्यापार और निवेश ढाँचे को मज़बूत बनाना चाहिये।
  • भू-राजनीतिक हितों में संतुलन:
    • दोनों देशों को संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करने की आवश्यकता है।
    • इन गतिशीलताओं को नियंत्रित करने तथा संघर्षों के बिना रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने के लिये सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाना:
    • वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और साझा मूल्यों को बढ़ावा देने के लिये G7, फाइव आईज़ जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिये, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने में योगदान मिल सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

प्रश्न: विशेष रूप से सिख प्रवासी और खालिस्तानी अलगाववाद के संदर्भ में भारत-कनाडा संबंधों में गिरावट हेतु ज़िम्मेदार कारकों पर चर्चा कीजिये। दोनों देश अपने द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में किस प्रकार भूमिका निभा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G-20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रीनवाॅशिंग से निपटने हेतु दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीनवाॅशिंग, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), ग्रीनवाॅशिंग दिशा-निर्देश, COP-27

मेन्स के लिये:

उपभोक्ता संरक्षण और पर्यावरण संबंधी दावे, कॉर्पोरेट जवाबदेही और ग्रीनवाॅशिंग, वैश्विक पर्यावरण शासन, ग्रीनवाॅशिंग के समक्ष चुनौतियाँ, पर्यावरण नैतिकता और सतत् विकास

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने जनता और उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुँचाने वाले भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों में किये जाने वाले गलत दावों की जानकारी (ग्रीनवाॅशिंग) पर रोक लगाने की प्रक्रिया को विनियमित करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इस पहल का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल विपणन प्रथाओं में पारदर्शिता और उपभोक्ता विश्वास सुनिश्चित करना है।

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA)

  • CCPA उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), वर्ष 2019 की धारा 10 के तहत स्थापित नियामक निकाय है, यह उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और अनुचित व्यापार प्रथाओं से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
    • यह अधिनियम CCPA को झूठे या भ्रामक विज्ञापनों को रोकने तथा उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • यह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

ग्रीनवाॅशिंग क्या है?

  • परिचय:
    • ग्रीनवॉशिंग शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1986 में एक अमेरिकी पर्यावरणविद् तथा शोधकर्त्ता  जे वेस्टरवेल्ड द्वारा किया गया था।
    • इसका तात्पर्य किसी भी भ्रामक या गुमराह करने वाले व्यवहार से है जिसमें अतिशयोक्ति, अप्रमाणित या झूठे पर्यावरणीय दावे शामिल हों।
    • भ्रामक भाषा, छवियों या प्रतीकों का उपयोग जो पर्यावरण के लाभकारी पहलुओं पर ज़ोर देते हैं जबकि नकारात्मक पहलुओं को छिपाते हैं
      • अपवर्जन: इसमें प्रत्यक्ष अतिशयोक्ति, आडम्बर, तथा सामान्य, गैर-भ्रामक रंग और चित्र शामिल नहीं हैं।
      • पर्यावरणीय दावों से तात्पर्य वस्तुओं या सेवाओं के बारे में उनके घटकों, विनिर्माण प्रक्रियाओं, पैकेजिंग, उपयोग या निपटान से है, जो पर्यावरण के अनुकूल विशेषताओं का सुझाव देते हैं।
  • ग्रीनवाॅशिंग के उदाहरण:
    • वोक्सवैगन घोटाला: जर्मन कार निर्माता कंपनी पर अपने कथित पर्यावरण-अनुकूल डीजल वाहनों के उत्सर्जन परीक्षणों में धोखाधड़ी का आरोप लगा, जो ग्रीनवाॅशिंग का एक उदाहरण है।
    • कोका-कोला तथा तेल दिग्गज़ बी.पी. और शेल जैसी कई अन्य वैश्विक कंपनियों पर भी ग्रीनवॉशिंग का आरोप लगाया गया है।

ग्रीनवाॅशिंग दिशा-निर्देशों के मुख्य बिंदु क्या हैं? 

  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य ग्रीनवाॅशिंग से निपटना है, जो एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कंपनियाँ विश्वसनीय प्रमाण के बिना उत्पादों को पर्यावरण के अनुकूल या पर्यावरण से जुड़े मामलों पर किये गए दावे को सही और सार्थक बताकर गलत तरीके से प्रचारित करती हैं, ताकि उपभोक्ताओं को भ्रामक विपणन युक्तियों से बचाया जा सके।
  • प्रयोज्यता: 
    • ये दिशा-निर्देश निर्माताओं, सेवा प्रदाताओं, व्यापारियों, विज्ञापन एजेंसियों और विज्ञापनदाताओं को लक्षित करते हैं तथा उनसे पर्यावरणीय दावों को प्रमाणित करने की अपेक्षा करते हैं।
    • पर्यावरण अनुकूल, हरित, सतत्, प्राकृतिक और अन्य जैसे शब्दों को विश्वसनीय साक्ष्य द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये, तथा अस्पष्ट या भ्रामक विवरणों से बचना चाहिये। 
      • उदाहरण के लिये, 100% पर्यावरण अनुकूल या शून्य उत्सर्जन जैसे शब्दों को उत्पाद या सेवा के बारे में सटीक जानकारी के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
    • ये दिशा-निर्देश उन विज्ञापनों या संचारों पर लागू नहीं होते जो किसी उत्पाद या सेवा से संबंधित नहीं हैं, जब तक कि वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी उत्पाद या सेवा का संदर्भ न देते हों।
  • सत्यापन एवं प्रकटीकरण:
    • कंपनियों को अपने पर्यावरणीय दावों का समर्थन स्वतंत्र अध्ययन, तीसरे पक्ष के प्रमाणन या विश्वसनीय वैज्ञानिक साक्ष्य से करना होगा।
    • दावों में यह स्पष्ट किया जाना चाहिये कि उत्पाद का कौन-सा भाग (जैसे, पैकेजिंग, विनिर्माण) पर्यावरण अनुकूल है तथा क्यूआर कोड, यूआरएल या स्पष्ट विज्ञापनों के माध्यम से अनुकूल।
  • भ्रामक दावों के लिये दंड: 
    • इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाली किसी भी कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के तहत भ्रामक विज्ञापन और अनुचित व्यापार के लिये दंड का सामना करना पड़ सकता है।
    • भविष्योन्मुख दावे (जैसे, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य) केवल तभी किये जा सकते हैं जब उनके पीछे कार्यान्वयन योग्य और पारदर्शी योजनाएँ हों।
    • विशिष्ट पर्यावरणीय दावे जैसे "खाद योग्य", "प्लास्टिक मुक्त ", "पुनर्चक्रण योग्य", आदि को वैज्ञानिक साक्ष्य या तीसरे पक्ष के सत्यापन द्वारा समर्थित तथा उपभोक्ता संदर्भ के लिये उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
  • तकनीकी शब्द: 
    •   उपभोक्ताओं की समझ को बेहतर बनाने के लिये, कंपनियों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन या पर्यावरण प्रभाव आकलन जैसे तकनीकी शब्दों को उपयोगकर्त्ता के अनुकूल भाषा में समझाना आवश्यक है।
  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की भूमिका: 
    • CCPA इन दिशा-निर्देशों के प्रवर्तन की देखरेख करेगा तथा अनुपालन सुनिश्चित करने, उपभोक्ताओं को होने वाले नुकसान को रोकने तथा सच्चे पर्यावरणीय विज्ञापन को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न हितधारकों के साथ कार्य करेगा।

भारत में ग्रीनवाॅशिंग को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?

  • पर्यावरण जागरूकता: पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में भारतीय उपभोक्ताओं के बीच बढ़ती जागरूकता के कारण पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की मांग बढ़ गई है। 
    • कम्पनियाँ इस मांग को पूरा करने के लिये बढ़ा-चढ़ाकर दावे कर सकती हैं, जिससे उपभोक्ता हरित उत्पाद हेतु अधिक भुगतान करने को तैयार हो सकते हैं।
  • नियामक दबाव: कंपनियों पर सरकारी नियमों, जैसे  विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) कार्यक्रम, के कारण पर्यावरण के प्रति जागरूक होने का दबाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी धोखाधड़ी वाले दावे देखने को मिलते हैं।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR): कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत अनिवार्य 2% CSR व्यय की आवश्यकता को पूरा करने के लिये कंपनियों द्वारा अपने पर्यावरणीय प्रयासों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, ग्रीनवाॅशिंग को बढ़ावा देता है।
  • मीडिया और NGOs की सक्रियता: मीडिया और NGOs ग्रीनवाॅशिंग को उजागर करते हैं, तथा कंपनियों को अधिक पारदर्शिता की ओर प्रेरित करते हैं। 
    • परीक्षण से भ्रामक पर्यावरणीय दावे देखने कू मिलते हैं, जैसे कि भ्रामक जैव-निम्नीकरणीयता लेबल।
  • उपभोक्ता संशय: लगातार ग्रीनवाॅशिंग के कारण, भारतीय उपभोक्ता स्थिरता के दावों पर अविश्वास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप तीसरे पक्ष के प्रमाणन की मांग बढ़ जाती है।

ग्रीनवाॅशिंग से निपटने के लिये वैश्विक पहल

  • UNFCCC COP27 घोषणा- पत्र: संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने व्यवसायों से अपनी प्रथाओं को बदलने का आग्रह किया और ग्रीनवाशिंग के प्रति शून्य सहिष्णुता की घोषणा की।
  • यूरोपीय संघ के ग्रीन बॉण्ड स्टैण्डर्ड: अक्तूबर 2023 में, यूरोपीय संघ ने पारदर्शिता को बढ़ावा देते हुए ग्रीनवाॅशिंग से निपटने हेतु नए मानकों को मंजूरी प्रदान की।
  • यूरोपीय ग्रीन बॉण्ड लेबल: इसके लिये आवश्यक है कि 85% धनराशि को जलवायु तटस्थता लक्ष्यों को समर्थन प्रदान करने वाली स्थायी गतिविधियों की ओर निर्देशित किया जाए।

ग्रीनवाॅशिंग से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • जलवायु लक्ष्यों का कमज़ोर होना: भ्रामक दावे वास्तविक पर्यावरणीय प्रयासों की विश्वसनीयता को कमज़ोर करते हैं।
  • अनुचित मान्यता: ग्रीनवाशिंग में संलग्न संगठनों को उनके अनुचित कार्यों के लिये अत्यधिक मुआवज़ा देना पड़ सकता है।
  • बाज़ार विकृति: ग्रीनवाॅशिंग से बाजार में असंतुलन उत्पन्न होता है, जिससे वास्तविक पर्यावरणीय मानकों वाली कंपनियों को नुकसान होता है।
  • विनियमनों का अभाव: पर्यावरणीय दावों के लिये अपर्याप्त मानकों के कारण ग्रीनवाॅशिंग को अनियंत्रित रूप से जारी रहने की अनुमति मिलती है।
  • कार्बन क्रेडिट: ग्रीनवाॅशिंग कार्बन क्रेडिट प्रणालियों की विश्वसनीयता को (विशेष रूप से अनियमित बाज़ारों को) प्रभावित करता है।

आगे की राह:

  • जवाबदेहिता: कंपनियों को अपने पर्यावरणीय कार्यों के लिये जवाबदेह होना चाहिये तथा अपनी नीतियों, प्रथाओं और चुनौतियों का खुलासा करना चाहिये।
  • हरित पहल का समर्थन करना: ग्राहकों को उन कंपनियों का समर्थन करना चाहिए जिनका सामाजिक उत्तरदायित्त्व और पर्यावरण प्रदर्शन का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा हो।
  • व्यापक विनियमन: जवाबदेहिता और पारदर्शिता में सुधार हेतु पर्यावरणीय दावों के लिये व्यापक नियम और दिशा-निर्देश निर्धारित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

प्रश्न: ग्रीनवाॅशिंग क्या है? भारत में ग्रीनवाॅशिंग को कम करने के उपाय सुझाएँ।

अधिक पढ़ें: ग्रीनहशिंग और इसके निहितार्थ। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में कौन-सा एक ‘‘ग्रीनवाशिंग’’ शब्द का सर्वोत्तम वर्णन है? (2022)

(a) मिथ्या रूप से यह प्रभाव व्यक्त करना कि कंपनी के उत्पाद पारिस्थितिक-अनुकूली (ईको-फ्रेंडली) और पर्यावरणीय रूप से उपयुक्त हैं
(b) किसी देश के वार्षिक वित्तीय विवरणों में पारिस्थितिक/पर्यावरणीय लागतों को शामिल नहीं करना
(c) आधारिक संरचना विकसित करते समय अनर्थकारी पारिस्थितिक दुष्परिणामों की उपेक्षा करना
(d) किसी सरकारी परियोजना/कार्यक्रम में पर्यावरणीय लागतों के लिए अनिवार्य उपबंध करना

उत्तर: (a)


जैव विविधता और पर्यावरण

मेसोफोटिक प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

कोरल ब्लीचिंग, ला नीना, अल नीनो, लाल सागर, हिंद महासागर, कार्बन पृथक्करण, बढ़ता समुद्री तापमान, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, नवीकरणीय ऊर्जा, ग्लोबल वार्मिंग

मेन्स के लिये:

प्रवाल विरंजन का प्रभाव, प्रवाल विरंजन को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक, जलवायु परिवर्तन और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रभाव।

स्रोत: SD

चर्चा में क्यों?

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री के शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में मेसोफोटिक प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष दोहरा खतरा (नीचे से सतही ठंडे जल के संपर्क के साथ ऊपर के गर्म जल से विरंजन होना) है।

  • साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित इस अध्ययन में इस प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य एवं कार्यक्षमता के संदर्भ में बढ़ते खतरों पर प्रकाश डाला गया है।

मेसोफोटिक प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र क्या हैं?

  • परिचय:
    • मेसोफोटिक प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 100 से 490 फीट की गहराई पर मिलते हैं।
      • इन पारिस्थितिकी तंत्रों के प्रमुख जीवों में प्रवाल, स्पंज और शैवाल शामिल हैं, जो विभिन्न जीवों के साथ अंतर्क्रिया करते हैं।
  • महत्त्व:
    • ये पारिस्थितिकी तंत्र प्रवाल भित्तियों के विकास में सहायक होने के साथ प्रजनन और भोजन के लिये कुछ मछली प्रजातियों को आवास प्रदान कर सकते हैं।
    • मेसोफोटिक प्रवालों में विशेष प्रतिरक्षा क्षमता वाले जीव होते हैं, जिनसे चिकित्सीय उपयोग हेतु प्राकृतिक उत्पादों का विकास हो सकता है।
  • सीमित शोध:
    • तकनीकी बाधाओं के कारण इन पारिस्थितिकी प्रणालियों पर सीमित शोध किया जा सका है क्योंकि ये पारंपरिक स्कूबा डाइविंग के संदर्भ में बहुत गहरे हैं और गहन समुद्र के उपकरणों के संदर्भ में बहुत उथले हैं।
      • हाल की तकनीकी प्रगति ने अब इन पारिस्थितिकी तंत्रों का अध्ययन करना संभव बना दिया है।

Coral Reefs

जलवायु परिवर्तन से मेसोफोटिक प्रवाल भित्तियों पर क्या प्रभाव होंगे?

  • ला नीना घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि: हाल के शोध से पता चलता है कि निकट भविष्य में ला नीना घटनाओं की आवृति और तीव्रता बढ़ने का अनुमान है। 
  • जलवायु पैटर्न में इस परिवर्तन का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है।
  • क्रमिक घटनाएँ: जलवायु संबंधी भविष्यवाणी से पता चलता है कि चरम अल नीनो घटनाओं के बाद चरम ला नीना घटनाएँ तेज़ी से बढ़ेंगी। इससे पर्यावरण की स्थितियों में तेज़ी से बदलाव होने से प्रवाल स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
  • ठंडे जल से संपर्क: यदि ये पूर्वानुमान सही साबित होते हैं तो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में गहन और मध्यम गहराई वाली प्रवाल भित्तियों को सतही गर्म तापीय स्ट्रेस का अनुभव करने के तुरंत बाद असामान्य रूप से ठंडे जल के संपर्क में आने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • इस दोहरे प्रभाव से प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र पर तनाव बढ़ सकता है।
  • शीत-जल विरंजन के दीर्घकालिक प्रभाव: शीत-जल विरंजन चिंताजनक है क्योंकि इससे पता चलता है कि गहन प्रवाल भित्तियों पर ऐसी घटनाओं के प्रभाव क्षणिक नहीं हो सकते हैं। 
    • देखे गए विरंजन की गंभीरता और उससे संबंधित प्रवाल मृत्यु दर को देखते हुए, ये ठंडे जल की घटनाएँ लंबी अवधि में मेसोफोटिक प्रवाल पारिस्थितिकी प्रणालियों के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता को व्यापक रूप से बाधित कर सकती हैं।
  • कोरल ब्लीचिंग का व्यापक संदर्भ: लाल सागर और हिंद महासागर सहित अन्य क्षेत्रों में मेसोफ़ोटिक रीफ को प्रभावित करने वाले गर्म जल से विरंजन की इसी तरह की रिपोर्टों से चिंताएँ और भी बढ़ जाती हैं। इससे प्रदर्शित होता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व भर में कोरल पारिस्थितिकी तंत्र तापमान-संबंधी तनावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।

प्रवाल विरंजन के क्या निहितार्थ हैं?

  • जैवविविधता का नुकसान: प्रवाल भित्तियाँ विभिन्न समुद्री प्रजातियों का आवास स्थल हैं। विरंजन से इन पारिस्थितिकी प्रणालियों को नुकसान हो सकता है, जिससे आश्रय एवं भोजन के लिये प्रवालों पर निर्भर प्रजातियों की गिरावट होने के साथ इनकी विलुप्ति हो सकती है।
  • आर्थिक प्रभाव: प्रवाल भित्तियाँ मत्स्यन, पर्यटन और तटीय संरक्षण में सहायक होती हैं। विरंजन से मछलियों की संख्या कम हो जाती है और प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुँचता है, जिससे पर्यटन एवं मत्स्य पालन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • तटीय क्षरण: प्रवाल भित्तियाँ प्राकृतिक अवरोधों के रूप में कार्य करती हैं जो तटीय क्षेत्रों को तूफानी लहरों और क्षरण से बचाती हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन में भूमिका: प्रवाल भित्तियाँ कार्बन अवशोषण में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जब इनमें विरंजन होता है तो ये कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित नहीं कर पातीं हैं जिससे जलवायु परिवर्तन तीव्र हो जाता है।
  • प्राकृतिक औषधियों में कमी: प्रवाल भित्तियाँ औषधियों के विकास में उपयोग किये जाने वाले यौगिकों का स्रोत हैं। प्रवाल भित्तियों के नष्ट होने से नए औषधीय यौगिकों की खोज के अवसर कम हो जाते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिये लाभकारी हो सकते हैं।

प्रवाल विरंजन को रोकने के विभिन्न तरीके क्या हैं?

  • ग्लोबल वार्मिंग को कम करना: प्रवाल विरंजन का प्राथमिक कारण जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री तापमान का बढ़ना है। 
  • प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करना: सक्रिय पुनर्स्थापना कार्यक्रम, जैसे प्रवाल बागवानी और क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में स्वस्थ प्रवालों को प्रत्यारोपित करना, क्षतिग्रस्त भित्तियों को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकते हैं। 
    • इन पहलों में प्रवाल प्रजातियों का प्रजनन भी शामिल है जो बढ़ते तापमान का बेहतर ढंग से सामना कर सकें।
  • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) में सुधार: यदि MPA का विस्तार और उसका प्रबंधन अच्छी तरह से किया जाए तो कोरल रीफ सुरक्षित वातावरण में जीवित रह सकते हैं। MPA कोरल पारिस्थितिकी तंत्र को विरंजन घटनाओं तथा उन्हें मानवीय गतिविधियों से बचाने को सक्षम बनाते हैं।
    • उदाहरण के लिये अत्यधिक और हानिकारक मत्स्य संग्रहण प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। समुद्री संरक्षित क्षेत्रों जैसे संधारणीय तरीके प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा तथा रीफ की बहाली में सहायता कर सकते हैं।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना: प्रवाल भित्तियों को बेहतर ढंग से समझने के लिये अनुसंधान में निवेश करना तथा प्रवाल की ऐसी किस्मों का विकास करना, जो गर्म पानी में भी जीवित रह सकें।
    • वैज्ञानिक ऊष्मा प्रतिरोधी प्रवालों तथा उनकी वृद्धि को बढ़ावा देने के तरीकों का अध्ययन कर रहे हैं।
  • पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देना: हानिकारक पर्यटन गतिविधियों जैसे कि रीफ पर नावों को खड़ा करना, प्रवाल को छूना या उन पर चलना सीमित करना इन पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने में मदद कर सकता है। सतत् पर्यटन दिशा-निर्देश कोरल रीफ पर मानवीय प्रभाव को कम कर सकते हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: प्रवाल विरंजन के कारणों और प्रभावों पर चर्चा कीजिये तथा इसके प्रभाव को कम करने और प्रवाल संरक्षण को बढ़ावा देने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. विश्व की सर्वाधिक प्रवाल भित्तियाँ उष्णकटिबंधीय सागर जलों में मिलती हैं।  
  2. विश्व की एक तिहाई से अधिक प्रवाल भित्तियाँ ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस के राज्य-क्षेत्रों में स्थित हैं।  
  3. उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की अपेक्षा, प्रवाल भित्तियाँ कहीं अधिक संख्या में जंतु संघों का परपोषण करती हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)

  1. अंडमान और नोकोबार द्वीप समूह  
  2. कच्छ की खाड़ी  
  3. मन्नार की खाड़ी  
  4. सुंदरबन

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स: 

प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019)


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