डेली न्यूज़ (18 May, 2023)



खेलो इंडिया


भारत का मत्स्य क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

सागर परिक्रमा, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, भारतीय नीली क्रांति, जीपीएस नेविगेशन सिस्टम, पाक बे योजना, मत्‍स्‍य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (FIDF), एक्वापोनिक्स

मेन्स के लिये:

भारत में मत्स्य क्षेत्र की स्थिति  

चर्चा में क्यों?  

सरकार की सागर परिक्रमा एक विकासवादी यात्रा है, जिसकी परिकल्पना तटीय क्षेत्र में समुद्र में की गई है, इसका उद्देश्य मछुआरों और अन्य हितधारकों के मुद्दों को हल करना तथा  PMMSY (प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना) एवं KCC (किसान क्रेडिट कार्ड) सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से उनका आर्थिक उत्थान करना है।   

सागर परिक्रमा पहल: 

  • परिचय
    • सागर परिक्रमा’ कार्यक्रम में समुद्री राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को चरणबद्ध तरीके से कवर करने की परिकल्पना की गई है। यह यात्रा 5 मार्च, 2022 को मांडवी, गुजरात से शुरू हुई।
    • यह यात्रा मछुआरा समुदायों की अपेक्षाओं में अंतर को पाटने, मत्स्यन गाँवों को विकसित करने तथा मत्स्यन पत्तन और मत्स्यन केंद्रों जैसे बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने पर केंद्रित है। 
  • सागर परिक्रमा के चरण:
    • चरण I: यात्रा ने गुजरात में तीन स्थानों को कवर किया- मांडवी, ओखा-द्वारका और पोरबंदर।
    • चरण II: इसमें मांगरोल, वेरावल, दीव, जाफराबाद, सूरत, दमन और वलसाड सहित सात स्थानों को कवर किया गया।
    • चरण III: सतपती, वसई, वर्सोवा, न्यू फेरी व्हार्फ (भौचा ढक्का) और मुंबई में सैसन डॉक सहित उत्तरी महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र इस चरण का हिस्सा थे।
    • चरण IV: कर्नाटक में उडुपी और दक्षिण कन्नड़ ज़िले इस चरण के दौरान शामिल किये गए थे।
    • आगामी चरण V: सागर परिक्रमा के चरण V में निम्नलिखित छह स्थान शामिल होंगे:
    •  महाराष्ट्र में रायगढ़, रत्नागिरी एवं सिंधुदुर्ग ज़िले और गोवा में वास्को, मौरुगोआ व  कैनाकोना।
      • 720 किमी. की विस्तृत तटरेखा के साथ महाराष्ट्र में मत्स्य पालन क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं जिनका दोहन नहीं किया गया है।
      • महाराष्ट्र राज्य देश में मछली उत्पादन में 7वें स्थान पर है, जिसमें समुद्री मत्स्य पालन 82% और अंतर्देशीय मत्स्य पालन 18% का योगदान देता है।
      • गोवा 104 किमी. की तटरेखा के साथ समुद्री मत्स्य क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो बड़ी संख्या में लोगों को आजीविका प्रदान करता है। 

भारत में मत्स्य क्षेत्र की स्थिति: 

  • परिचय:
    • वैश्विक स्तर पर तीसरे सबसे बड़े मछली उत्पादक और दूसरे सबसे बड़े एक्वाकल्चर उत्पादक के रूप में भारत में मत्स्य पालन एवं एक्वाकल्चर उद्योग का बहुत महत्त्व है।
    • भारतीय नीली क्रांति ने मछली पकड़ने और एक्वाकल्चर उद्योगों में काफी सुधार किया है। उद्योगों को सनराइज़ सेक्टर्स के रूप में माना जाता है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
    • भारतीय मत्स्य पालन ने हाल ही में अंतर्देशीय से समुद्री वर्चस्व वाले मत्स्य पालन में एक प्रतिमान परिवर्तन देखा है, यह वर्ष 1980 के दशक के मध्य मछली उत्पादन में 36% से हाल के दिनों में 70% के साथ प्रमुख योगदानकर्ता बन गया है।
    • वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान मछली उत्पादन 16.25 एमएमटी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया और 57,586 करोड़ रुपए मूल्य का समुद्री निर्यात किया गया।
  • शीर्ष उत्पादक राज्य:
    • भारत में पश्चिम बंगाल के बाद आंध्र प्रदेश सबसे बड़ा मछली उत्पादक है

 

 

वर्तमान चुनौतियाँ:  

  • अवैध, गैर-सूचित और अविनियमित (Illegal, Unreported and Unregulated- IUU) मत्स्यन : IUU मत्स्यन, मत्स्यन में  अत्यधिक वृद्धि करता है और इस क्षेत्र की स्थिरता को कम करता है।
    • IUU मत्स्यन में उचित लाइसेंस के बिना मत्स्यन, प्रतिबंधित उपकरण का उपयोग करने और मत्स्यन की सीमा की अवहेलना करने जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। कमज़ोर जाँच और निगरानी प्रणालियों के चलते इस समस्या को प्रभावी ढंग से समाप्त करना कठिन है।  
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और प्रौद्योगिकी: अप्रचलित मत्स्यन जहाज़, उपकरण (जैसे- जाल) और प्रसंस्करण सुविधाएँ क्षेत्र की दक्षता एवं उत्पादकता में बाधा डालती हैं।अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और परिवहन अवसंरचना के परिणामस्वरूप मत्स्यन संबंधी नुकसान होता है।  
    • यह मत्स्यन से जुड़ी आधुनिक तकनीकों तक सीमित पहुँच, जैसे कि फिश फाइंडर और GPS नेविगेशन सिस्टम, फिश स्टॉक का सही पता लगाने की क्षमता को प्रतिबंधित करता है।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण: समुद्र के बढ़ते तापमान, समुद्र के अम्लीकरण और बदलती धाराओं का समुद्री पारिस्थितिक तंत्र तथा मत्स्य आबादी पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण  मत्स्य वितरण में बदलाव, उत्पादकता में कमी और रोगों में वृद्धि होती है। प्रदूषण, आवास विनाश एवं तटीय विकास समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति को और खराब करते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक मुद्दे: भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र में बड़ी संख्या में लघु स्तर के कारीगर मछुआरे हैं जो कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हैं।  
    • कम आय, ऋण एवं बीमा की कमी और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा उपाय मछुआरा समुदायों की दयनीय स्थिति के प्रमुख करण हैं।
    • मत्स्य पालन में महिलाओं का हाशिये पर होना और लैंगिक असमानताओं के कारण भी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • बाज़ार अभिगम और मूल्य शृंखला अक्षमताएँ: भारत में पर्याप्त मछली उत्पादन के बावजूद इसके लिये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त करना चुनौती है।
    • अपर्याप्त उत्पादन के बाद का प्रबंधन, सीमित मूल्यवर्द्धन और अपर्याप्त बाज़ार संपर्क के कारण मछुआरों की लाभप्रदता बाधित होती है।
  • मत्स्य पालन क्षेत्र से संबंधित पहल: 

आगे की राह

  • एक्वापोनिक्स का समावेश: भारत एक्वापोनिक्स को बढ़ावा दे सकता है, जो मत्स्य पालन को हाइड्रोपोनिक्स के साथ जोड़ने वाली एक स्थायी कृषि तकनीक है।  
    • यह तकनीक एक ही समय में मछली और पौधों की खेती में सक्षम बनाती है क्योंकि इससे मछलियों का मल पौधों के विकास हेतु जैविक खाद के रूप उपलब्ध होता है, यह  मछलियों के लिये जल को शुद्ध करने का कार्य करता है और इस प्रकार एक संतुलित पारिस्थितिकी-तंत्र का निर्माण होता है।  
    • एक्वापोनिक्स पानी के उपयोग को न्यून करता है, भूमि की उत्पादकता को अधिकतम करता है और मछुआरों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करता है।
  • कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना: उत्पादन के बाद के नुकसान को कम करने और मछली उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिये कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार की ज़रूरत है।
    • इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में व्यवस्थित मत्स्य संग्रह केंद्र स्थापित करने और उन्हें आधुनिक भंडारण सुविधाओं, परिवहन प्रणालियों और प्रसंस्करण इकाइयों के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • यह मछली के कुशल संरक्षण और वितरण को सक्षम बनाएगा। यह अधिक प्रभावी मत्स्य भंडारण एवं वितरण, उत्पाद के खराब होने की दर में कमी और बाज़ार मूल्य में वृद्धि करेगा
  • समर्थन मूल्य संवर्द्धन और विविधीकरण: मत्स्य पालकों को अपनी आय बढ़ाने के लिये मूल्यवर्द्धन गतिविधियों में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित करना। मत्स्य प्रसंस्करण, पैकेजिंग और ब्रांडिंग हेतु प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना।
    • नवोन्मेषी मत्स्य उत्पादों जैसे रेडी-टू-ईट स्नैक्स, मछली के तेल की खुराक, मछली के चमड़े और कोलेजन उत्पादों के विकास को बढ़ावा देना। इससे बाज़ार के अवसरों का विस्तार होगा और मूल्य शृंखला में वृद्धि होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत निम्नलिखित में से किन-किन उद्देश्यों के लिये कृषकों को अल्पकालीन ऋण समर्थन उपलब्ध कराया जाता है? (2020)

  1. फार्म संपत्तियों के रख-रखाव हेतु कार्यशील पूंजी के लिये
  2. कंबाइन कटाई मशीनों, ट्रैक्टरों एवं मिनी ट्रकों के क्रय के लिये
  3. फार्म परिवारों की उपभोग आवश्यकताओं के लिये 
  4. फसल कटाई के बाद के खर्चों के लिये
  5. परिवार के लिये घर निर्माण तथा गाँव में शीतागार सुविधा की स्थापना के लिये  

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 5 
(b) केवल 1, 3 और 4 
(c)  केवल 2, 3, 4 और 5  
(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर: (b) 


मेन्स

प्रश्न. ‘नीली क्रांति’ को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्य पालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (2018)

स्रोत: पी.आई.बी.


समुद्री तितलियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

समुद्री तितलियाँ, महासागरीय अम्लीकरण

मेन्स के लिये:

समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, महासागरीय अम्लीकरण

चर्चा में क्यों? 

जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिणी महासागर में समुद्री तितलियों की आबादी कम हो रही है, जिससे वे बेहद कमज़ोर हो गई हैं।

समुद्री तितलियाँ: 

  • परिचय: 
    • समुद्री तितलियाँ, वैज्ञानिक नाम थेकोसोमाटा, समुद्री घोंघे का एक उपसमूह है जिसे शेल्ड टेरोपोड्स के रूप में जाना जाता है।
    • उनके मांसल पैर होते हैं जो उन्हें ठोस सतहों पर ग्लाइडिंग के बदले जल में तैरने की अनुमति देते हैं। 
    • समुद्री तितलियाँ होलोप्लांकटोनिक हैं (ऐसे जीव जो अपना पूरा जीवन तैरते हुए, बहते हुए या जल में स्वतंत्र रूप से तैरते हुए गुज़ारते हैं) और अपना पूरा जीवन चक्र जल स्तंभ में व्यतीत करती हैं।
    • वे सभी महासागरों में पाई जाती हैं लेकिन ठंडे पानी में अधिक विविध और प्रचुर मात्रा में होती हैं।
    • समुद्री तितलियों में दोहरी समरूपता पाई जाती है और विभिन्न आकृतियों एवं आकारों का एक कुंडलित या बिना खोल वाला कवच पाया जाता है।
      • उनका कवच ज़्यादातर पारदर्शी और बहुत नाजुक होता है जो समुद्र के अम्लीकरण के कारण आसानी से नष्ट हो सकता है।
    • उनके पास प्रणोदन के लिये पंखों की तरह लोब या पैरापोडिया की एक जोड़ी होती है, साथ ही आँख, स्पर्शक और शिकार को पकड़ने के लिये एक लंबी सूंड एवं सिर होता है।
    • उनमें गलफड़ों की कमी होती है और ओक्सीजन के लिये उन्हें अपने शरीर की सतह पर निर्भर रहना पड़ता है।

  • महत्त्व: 
    • वे कई मछलियों, समुद्री पक्षियों, व्हेल और अन्य समुद्री जीवों के लिये प्रमुख भोजन स्रोत हैं।
    • वे अपने कवच या संरचना और मल के माध्यम से कार्बन को सतह से गहरे समुद्र तक ले जाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जलवायु परिवर्तन का समुद्री तितलियों की आबादी पर प्रभाव:

  • महासागरीय अम्लीकरण:
    • समुद्र द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में वृद्धि से उच्च अम्लता की स्थिति देखी जाती है। 
    • इनमें खोल निर्माण और रख-रखाव हेतु आवश्यक कार्बोनेट आयनों की उपलब्धता की कमी होती है।
    • चूँकि अधिक CO2 सर्दियों के दौरान ठंडे जल से अवशोषित हो जाती है, इसलिये महासागर अपने सबसे अम्लीय स्तर पर होता है। जो यह इंगित करता है कि समुद्री तितलियों को सर्दियों के दौरान सबसे अधिक खतरा होता है।
      • समुद्री तितलियों (Sea Butterflies) के कवच नष्ट हो सकते हैं, कमज़ोर हो सकते हैं या खराब हो सकते हैं।
      • परभक्षियों, संक्रमणों और तनाव के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि।
      • चयापचय, विकास, प्रजनन और अस्तित्व को प्रभावित करता है।
  • महासागर उष्मीकरण: 
    • जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है। 
    • समुद्री तितलियों के निवास वितरण और प्रचुरता में परिवर्तन। 
    • विकास और अस्तित्व के लिये इष्टतम तापीय स्थितियों की खोज। 
    • भोजन की उपलब्धता और गुणवत्ता में कमी।
    • यह समुद्री धाराओं को प्रभावित कर समुद्री तितलियों के परिवहन को प्रभावित करता है।
  • महासागर डी-ऑक्सीजनेशन: 
    • गर्म और स्तरीकृत महासागर ऑक्सीजन के स्तर को कम करता है। 
    • समुद्री तितलियों की श्वसन और ऊर्जा संतुलन को प्रभावित करता है।
    • वर्टिकल माइग्रेशन पैटर्न को बदल देता है। 
    • कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता को बढ़ाकर समुद्र के अम्लीकरण के प्रभावों को बढ़ाता है।

तितलियों की आबादी में कमी का अंटार्कटिक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:

  • उच्च पोषण स्तर के भोजन की उपलब्धता में कमी:
    • समुद्री तितलियाँ, मछली समेत समुद्री पक्षी, व्हेल और अन्य समुद्री जीवों के लिये एक प्रमुख खाद्य स्रोत के रूप में कार्य करती हैं। 
      • समुद्री तितलियों की आबादी में गिरावट से इनके उपभोक्ता और शिकार के समक्ष भुखमरी, कुपोषण या कम प्रजनन का संकट उत्पन्न हो सकता है। 
  • समुद्री खाद्य जाल के संतुलन को बाधित करना: 
    • समुद्री तितलियाँ प्राथमिक उत्पादकों (फाइटोप्लांकटन) को द्वितीयक उपभोक्ताओं (ज़ूप्लंकटन) और उच्च ट्रॉफिक स्तरों से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • समुद्री तितलियों की आबादी में गिरावट समुद्री खाद्य जाल की संरचना और कार्य को बदल सकती है।
    • अंटार्कटिक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की जैवविविधता और उत्पादकता प्रभावित हो सकती है।
  • महासागर की कार्बन पृथक्करण क्षमता में कमी:
    • समुद्री तितलियाँ कार्बन को सतह से गहरे समुद्र तक शैल और मल पट्टी (Shells and Fecal Pellets) के माध्यम से ले जाने में योगदान करती हैं।
    • इनकी आबादी में गिरावट से समुद्र में कार्बन प्रच्छादित (वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण और उसे संग्रहीत करने की प्रक्रिया) मात्रा कम हो जाती है। 
    • इसके परिणामस्वरूप वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है और समुद्र का अम्लीकरण हो जाता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. महासागरों का अम्लीकरण बढ़ रहा है। यह घटना क्यों चिंता का विषय है?

1- कैल्सियमी पादपप्लवक की वृद्धि और उत्तरजीविता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी।
2- प्रवाल-भित्ति की वृद्धि और उत्तरजीविता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी।
3- कुछ प्राणी, जिनके डिम्भक पादपप्लवकीय होते है, की उत्तरजीविता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी।
4- मेघ बीजन और मेघों का बनना प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. प्रवाल जीवन तंत्र पर वैश्विक तापन के प्रभाव का उदाहरण सहित आकलन कीजिये। (2019)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट- 2023

प्रिलिम्स के लिये:

आंतरिक विस्थापन- 2023 पर वैश्विक रिपोर्ट, आंतरिक विस्थापन, संघर्ष और हिंसा, रूस-यूक्रेन संघर्ष, आपदा, बाढ़, मानसून

मेन्स के लिये:

आंतरिक विस्थापन और मुद्दे, आंतरिक विस्थापन- 2023 पर वैश्विक रिपोर्ट

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (Internal Displacement Monitoring Centre- IDMC) ने आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट (Global Report on Internal Displacement- GRID 2023) नामक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार, आपदाओं के कारण वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में विस्थापित लोगों की संख्या में 40% की वृद्धि हुई।

  • IDMC, आंतरिक विस्थापन पर डेटा एवं विश्लेषण का विश्व का प्रमुख स्रोत है। यह आंतरिक विस्थापन पर उच्च गुणवत्ता वाला डेटा, विश्लेषण और विशेषज्ञता प्रदान करता है जिसका उद्देश्य नीति एवं परिचालन निर्णयों को सूचित करना है जो भविष्य में विस्थापन के जोखिम को कम कर सकते हैं।

GRID- 2023 की प्रमुख खोज क्या हैं? 

  • विस्थापन की कुल संख्या: 
    • आंतरिक विस्थापन में रहने वाले लोगों की संख्या 110 देशों और क्षेत्रों में 71.1 मिलियन के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच चुकी है। 
    • 62.5 मिलियन लोग संघर्ष एवं हिंसा के चलते जबकि 8.7 मिलियन आपदाओं के चलते विस्थापित हुए हैं।
      • आपदाओं ने दिसंबर 2022 तक 88 देशों और क्षेत्रों से 8.7 मिलियन लोगों को आंतरिक रूप से विस्थापित किया।
      • इससे पाकिस्तान, नाइजीरिया और ब्राज़ील सहित कई देशों में बाढ़ से विस्थापितों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2021 तक आपदाओं के कारण 30.7 मिलियन लोग विस्थापित हुए। वर्ष 2022 में लगभग 150 देशों/क्षेत्रों ने इस तरह के विस्थापन की सूचना दी।
  • देशों के अनुसार परिदृश्य:
    • वर्ष 2022 में दुनिया में सबसे अधिक 8.16 मिलियन लोग आपदा के कारण पाकिस्तान में विस्थापित हुए थे।
      • पाकिस्तान में बाढ़ ने लाखों लोगों को विस्थापित किया, जो वैश्विक आपदा विस्थापन के एक-चौथाई के लिये ज़िम्मेदार है।
    • 5.44 मिलियन विस्थापन के साथ फिलीपींस दूसरे स्थान और 3.63 मिलियन के साथ चीन तीसरे स्थान पर था।
    • भारत ने 2.5 मिलियन विस्थापन के साथ चौथा सबसे बड़ा आपदा विस्थापन दर्ज किया और नाइजीरिया 2.4 मिलियन के साथ पाँचवें स्थान पर रहा।
  • विस्थापन के कारक:
    • आपदा: आपदाओं में वृद्धि विशेष रूप से मौसम संबंधी प्रभाव, काफी हद तक ला नीना के प्रभाव का परिणाम है जो लगातार तीसरे वर्ष जारी रहा।
      • "ट्रिपल-डिप" ला नीना ने दुनिया भर में व्यापक आपदाएँ उत्पन्न कीं।
    • रूस-यूक्रेन प्रेरित विस्थापन: 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण विस्थापित हुए लोगों की संख्या में वृद्धि हुई।
      • संघर्ष के कारण 16.9 मिलियन लोगों का विस्थापन हुआ "किसी भी देश के लिये अब तक का सबसे अधिक आँकड़ा दर्ज किया गया।"
      • संघर्ष और हिंसा से जुड़े विस्थापनों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 28.3 मिलियन हो गई।
  • आशय:
    • गंभीर संघर्ष, आपदाओं एवं विस्थापन ने वर्ष 2022 में वैश्विक खाद्य सुरक्षा को और खराब कर दिया, जो कोविड-19 महामारी से मंद तथा असमान वसूली के परिणामस्वरूप पहले से ही एक चिंता का विषय बना था।
    • निम्न-आय वाले देश, जिनमें से कई आंतरिक विस्थापन से संबंधित हैं, खाद्य तथा उर्वरक आयात और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता पर उनकी निर्भरता को देखते हुए सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
      • खाद्य सुरक्षा संकट के स्तर का सामना कर रहे 75% देशों में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (Internally Displaced People- IDP) हैं।

भारतीय परिदृश्य:

  • भारत में 2022 में संघर्ष और हिंसा के कारण 631,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए, जबकि 25 लाख लोग आपदा के कारण विस्थापित हुए।
  • भारत और बांग्लादेश में मानसून के मौसम की आधिकारिक पुष्टि से पहले ही बाढ़ की स्थिति देखी गई, जो प्राय: मध्य जुलाई तथा सितंबर के बीच की अवधि है।
    • भारत का उत्तर-पूर्वी राज्य असम मई 2022 में शुरुआती बाढ़ से प्रभावित हुआ था और जून में एक बार फिर उन्हीं क्षेत्रों में बाढ़ आई थी। इससे पूरे राज्य में लगभग पाँच लाख लोग प्रभावित हुए।
  • भारत के कुछ हिस्सों में जुलाई 2022 में  पिछले 122 वर्षों में सबसे कम वर्षा दर्ज की गई।
  • मानसूनी अवधि की समाप्ति तक पूरे भारत में 2.1 मिलियन लोग विस्थापित हुए, जो वर्ष 2021 के मौसम के दौरान 5 मिलियन की तुलना में काफी कम थे।

आंतरिक विस्थापन 

  • परिचय: आंतरिक विस्थापन उन लोगों की स्थिति का वर्णन करता है जिन्हें अपने घर छोड़ने के लिये मजबूर किया गया है लेकिन उन्होंने अपना देश नहीं छोड़ा है। 
  • विस्थापन के कारक: प्रत्येक वर्ष लाखों लोग संघर्ष, हिंसा, विकास परियोजनाओं, आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में अपने घरों या निवास स्थानों को छोड़कर अपने देशों की सीमाओं के भीतर विस्थापित हो जाते हैं। 
  • घटक: आंतरिक विस्थापन दो घटकों पर आधारित है:
    • यदि लोगों का विस्थापन ज़बरदस्ती या अनैच्छिक है (उन्हें आर्थिक और अन्य स्वैच्छिक प्रवासियों से अलग करने हेतु); 
    • यदि व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त राज्य की सीमाओं के भीतर रहता है (उन्हें शरणार्थियों से अलग करने हेतु)।
  • शरणार्थी से भिन्नता:  वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन के अनुसार, "शरणार्थी" वह व्यक्ति है जिस पर अत्याचार किया गया हो और जिसे अपने मूल देश को छोड़ने के लिये मजबूर किया गया हो।
    • शरणार्थी माने जाने की एक पूर्व शर्त यह है कि वह व्यक्ति किसी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करता हो।
    • शरणार्थियों के विपरीत आंतरिक रूप से विस्थापित लोग किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का विषय नहीं हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों की सुरक्षा और सहायता पर वैश्विक नेतृत्व के रूप में किसी एक एजेंसी या संगठन को नामित नहीं किया गया है। 
    • हालाँकि आंतरिक विस्थापन पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।

सिफारिशें:   

  • निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार करना आवश्यक है: गरीबी में कमी, आपदा जोखिम में कमी, शांति निर्माण, आपदा समाधान, जलवायु लचीलापन और खाद्य सुरक्षा।
  • विस्थापित व्यक्तियों के सामने आने वाली समस्याओं के निपटारे हेतु स्थायी समाधान अधिक आवश्यक होते जा रहे हैं। इसमें नकद सहायता एवं आजीविका पहलों को बढ़ाना शामिल है  जिन्हें जोखिम को कम करने हेतु रणनीतिक निवेश के माध्यम से आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (Internally Displaced People- IDP) की वित्तीय स्थिरता को बढ़ाते हैं।
  • तत्काल मानवीय सहायता के अलावा विस्थापित समुदायों के लचीलेपन को बढ़ाने वाली सक्रिय कार्रवाई और साथ ही जोखिम कम करने की रणनीतियों में निवेश की आवश्यकता है।
  • आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDP) की आजीविका और कौशल विकसित करने से उनकी खाद्य सुरक्षा व  उनके समुदायों तथा देशों की आत्मनिर्भरता में वृद्धि करके टिकाऊ समाधान की सुविधा प्रदान करने में मदद मिलेगी।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शिक्षा में PwD को सशक्त बनाने पर राष्ट्रीय कार्यशाला

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का अनुच्छेद 41, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, सुगम्य भारत अभियान, दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना, दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप

मेन्स के लिये:

भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये संवैधानिक और विधायी ढाँचा, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में मध्य प्रदेश के जबलपुर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के संदर्भ में "दिव्यांग के क्षेत्र में प्रशिक्षण संस्थानों और मानव संसाधन विकास की क्षमता निर्माण" पर राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया गया।

  • भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) द्वारा आयोजित कार्यशाला का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों को सशक्त बनाना और NEP 2020 के लक्ष्यों को लागू करना है।
  • इसके अलावा दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारिता विभाग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, 18 मई, 2023 को वैश्विक पहुँच जागरूकता दिवस (GAAD) मना रहा है।

वैश्विक सुगम्यता जागरूकता दिवस (GAAD):

  • GAAD मई के तीसरे गुरुवार को मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो दिव्यांग व्यक्तियों के लिये डिजिटल एक्सेसिबिलिटी/सुगम्यता के साथ जागरूकता और समझ को बढ़ावा देने के लिये समर्पित है।
  • यह सुगम्यता को ध्यान में रखते हुए डिजिटल तकनीकों को डिज़ाइन करने और विकसित करने के महत्त्व पर ज़ोर देता है, यह सुनिश्चित करता है कि हर कोई जानकारी तक पहुँच सके, ऑनलाइन गतिविधियों में संलग्न हो सके तथा बिना किसी बाधा के डिजिटल दुनिया में भाग ले सके।

भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) के लिये संवैधानिक और विधायी ढाँचा:

  • भारत का संविधान सभी व्यक्तियों की समानता, स्वतंत्रता, न्याय और गरिमा सुनिश्चित करता है तथा दिव्यांग व्यक्तियों सहित सभी के लिये एक समावेशी समाज को स्पष्ट रूप से अधिदेशित करता है।
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy- DPSP) के अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के अंदर कार्य, शिक्षा और बेरोज़गारी, बुढ़ापा, बीमारी तथा अक्षमता के मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान करेगा।
  • दिव्यांगता अधिकारों पर मुख्य कानून दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 है।
    • यह अधिनियम निर्दिष्ट दिव्यांगों की एक विस्तृत शृंखला को कवर करता है और बेंचमार्क दिव्यांगों एवं उच्च समर्थन की आवश्यकताओं वाले लोगों को अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है।
    • यह अधिनियम ज़िला न्यायालय या राज्य सरकार द्वारा नामित किसी प्राधिकरण की  संरक्षकता प्रदान करने का भी प्रावधान करता है जिसके तहत अभिभावक एवं दिव्यांग व्यक्तियों के बीच संयुक्त निर्णय लिया जाएगा

भारत में दिव्यांग व्यक्ति से जुड़े मुद्दे: 

  • अभिगम्यता चिंता: सार्वजनिक क्षेत्रों, परिवहन, संरचनाओं और बुनियादी ढाँचे में पहुँच की कमी मुख्य चुनौतियों में से एक है। कई जगहों पर रैंप, लिफ्ट या सुलभ शौचालय नहीं हैं, जिससे दिव्यांग व्यक्तियों के लिये स्वतंत्र रूप से घूमना मुश्किल हो जाता है।
  • शिक्षा तक पहुँच का अभाव: दिव्यांग व्यक्तियों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सीमित है।
    • विशेष शिक्षा सुविधाएँ और प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव है तथा समावेशी शिक्षा प्रथाओं को व्यापक रूप से लागू नहीं किया जाता है। शैक्षिक अवसरों की यह कमी उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास में बाधा डालती है।
  • उचित स्वास्थ्य सेवा का अभाव: बड़ी संख्या में दिव्यांगताओं को रोका जा सकता है, जिनमें जन्म के दौरान चिकित्सा संबंधी समस्याएँ, मातृ स्थिति, कुपोषण, साथ ही इसमें दुर्घटनाओं के कारण चोट लगना शामिल है।
    • हालाँकि यहाँ जागरूकता की कमी, देखभाल और अच्छी एवं  सुलभ चिकित्सा सुविधाओं की कमी है। 
  • सामाजिक कलंक और भेदभाव: भारतीय समाज में निःशक्तता को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक कलंक प्रचलित हैं।
    • दिव्यांग लोगों को अक्सर भेदभाव, बहिष्करण और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, जो उनके आत्मसम्मान और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करता है।

पीडब्ल्यूडी (PWD) के सशक्तीकरण के लिये हाल की पहलें: 

नोट: भारतीय पुनर्वास परिषद, संसद के एक अधिनियम द्वारा एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित, प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मानकीकृत, विनियमित एवं मॉनिटर करने, केंद्रीय पुनर्वास रजिस्टर (Central Rehabilitation Register- CRR) को बनाए रखने एवं विशेष शिक्षा व दिव्यांगता के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु अधिकृत है।

आगे की राह

  • समावेशन को बढ़ावा: सुलभ भवनों, सार्वजनिक स्थानों, ट्रांज़िट नेटवर्क और संचार प्रौद्योगिकी के डिज़ाइन एवं निर्माण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। रैंप, लिफ्ट, टैक्टाइल वॉकवे, ऑडियो अनाउंसमेंट और ब्रेल संकेत ऐसी सुविधाएँ इसके उदाहरण हैं।
  • अत्याधुनिक समाधानों के साथ क्षमताओं को सशक्त बनाना: प्रोस्थेटिक्स, गतिशीलता उपकरणों, श्रवण यंत्रों और संचार उपकरणों जैसी सस्ती एवं स्थानीय रूप से सहायक तकनीकों के विकास तथा इन्हें अपनाने को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इन व्यक्तियों हेतु समाधानों को अनुकूलित करने के लिये 3D प्रिंटिंग व कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • ज्ञान और समानता के अवसर: समावेशी शिक्षा नीतियों हेतु लागू करना जो दिव्यांग छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करती है। इसमें सहायक उपकरण, शिक्षकों हेतु विशेष प्रशिक्षण, सुलभ शिक्षण सामग्री एवं समावेशी पाठ्यक्रम विकास शामिल है।
  • जागरूकता और संवेदनशीलता के माध्यम से कलंक/स्टिग्मा का समापन: समावेशिता को बढ़ावा देने और दिव्यांगता संबंधी सामाजिक कलंक को कम करने हेतु जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
    • इसमें दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और क्षमताओं के बारे में समुदायों, नियोक्ताओं, शिक्षकों एवं स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को संवेदनशील बनाना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत लाखों विकलांग लोगों का घर है।  कानून के तहत उन्हें क्या लाभ मिलते हैं?  (वर्ष 2011)

  1. सरकारी विद्यालयों में 18 वर्ष की आयु तक निशुल्क शिक्षा।
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन। 
  3. सार्वजनिक भवनों में रैंप। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

स्रोत: पीआईबी  


कृत्रिम मधुरक

प्रिलिम्स के लिये:

कृत्रिम मधुरक, हाइपरटेंशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO), टाइप -2 मधुमेह

मेन्स के लिये:

कृत्रिम मधुरक और शर्करा के विकल्प के रूप में उनकी भूमिका, कृत्रिम मधुरक के स्वास्थ्य के लिये संभावित जोखिम

चर्चा में क्यों?  

कम कैलोरी की मांग करने वाले तथा उनके प्रति जागरूक व्यक्तियों के बीच कृत्रिम मधुरक की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। हालाँकि हाल के अध्ययनों ने वज़न घटने और संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के लिये उसकी दीर्घकालिक प्रभावशीलता के बारे में चिंता जताई है।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने वज़न नियंत्रण और जीवनशैली संबंधी बीमारियों की रोकथाम के लिये कृत्रिम मधुरक के उपयोग के खिलाफ सिफारिशें जारी की हैं।

कृत्रिम मधुरक:

  • परिचय: 
    • कृत्रिम मधुरक शर्करा का विकल्प है जिसका उपयोग प्राकृतिक शर्करा के विकल्प के रूप में किया जाता है।
    • ये मधुरक रासायनिक रूप से संश्लेषित होते हैं और नियमित शर्करा की उच्च कैलोरी की उपस्थिति के बिना मीठा स्वाद प्रदान करते हैं।
    • वे प्राय: विभिन्न खाद्य और पेय उत्पादों में उपयोग किये जाते हैं, जिनमें डाइट सोडा, सुगर फ्री मिठाई तथा कम कैलोरी वाले स्नैक्स शामिल हैं।
      • कृत्रिम मधुरक के कुछ उदाहरण हैं- सैकरिन, एस्पार्टेम, इससल्फेम पोटेशियम (Ace-K), सुक्रालोज़, नियोटेम और एडवांटेम।
  • लाभ: 
    • कृत्रिम मधुरक वज़न प्रबंधन, मधुमेह नियंत्रण, दाँतों की सड़न की रोकथाम में लाभ प्रदान करता है। यह एक प्रकार के आनुवंशिक विकार- फिनाइलकीटोनयूरिया (Phenylketonuria - PKU) वाले रोगियों के लिये सुरक्षित विकल्प है। फिनाइलकीटोनयूरिया किसी व्यक्ति के शरीर में कम या शून्य-कैलोरी पदार्थ, रक्त शर्करा के स्तर पर न्यूनतम प्रभाव, गैर-किण्वनीय प्रकृति और फिनाइलएलानिन की अनुपस्थिति के कारण होता है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • विवादास्पद स्वास्थ्य प्रभाव:
      • कुछ अध्ययन कृत्रिम मधुरक के संभावित नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों का सुझाव देते हैं, जैसे कि चयापचय (Metabolic) संबंधी विकारों का बढ़ता जोखिम और बाधित आंत माइक्रोबायोटा। हालाँकि वैज्ञानिक प्रमाण अभी भी अस्पष्ट हैं।
    • पाचन संबंधी समस्याएँ:
      • कृत्रिम मधुरक वाले उत्पादों का सेवन करने के बाद कुछ लोगों को पाचन संबंधी परेशानी, जैसे- सूजन, गैस या अतिसार की शिकायत हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • जाँच - परिणाम: 
    • WHO नए वज़न को नियंत्रित करने या गैर-संचारी रोगों के जोखिम को कम करने के साधन के रूप में कृत्रिम मधुरक का उपयोग करने के खिलाफ सलाह दी है।
    • हालाँकि इसके अल्पकालिक उपयोग से वज़न और बॉडी मास इंडेक्स (BMI) कम हो सकता है, लेकिन कृत्रिम मधुरक के लंबे समय तक सेवन को वज़न बढ़ने से जोड़ा गया है।
    • कुछ अध्ययन कृत्रिम मधुरक को मूत्राशय का कैंसर /ब्लैडर कैंसर और गर्भवती महिलाओं में समय से पहले शिशु के जन्म का कारण दर्शाते हैं।
    • कृत्रिम मधुरक का अधिक सेवन, विशेष रूप से पेय पदार्थों में और खाद्य पदार्थों में, टाइप-2 मधुमेह, हृदय रोग (स्ट्रोक एवं उच्च रक्तचाप सहित) एवं समय से पहले जन्म के बढ़ते जोखिम से संबंधित है।
  • WHO की सिफारिशें: 
    • पूरी तरह से मधुरक पर निर्भर रहने के बजाय WHO मुक्त शर्करा के सेवन को कम करने के लिये अन्य तरीकों पर विचार करने की सिफारिश करता है, जैसे कि फलों से प्राकृतिक रूप से प्राप्त शर्करा का सेवन करना या बिना पके भोजन एवं पेय पदार्थों का चयन करना।
      • WHO की ये सिफारिशें उन व्यक्तियों पर लागू होती हैं, जिन्हें मधुमेह रोग नहीं है। मधुमेह रोगियों को व्यक्तिगत सावधानी बरतनी चाहिये और सलाह हेतु स्वास्थ्य पेशेवरों से परामर्श करना चाहिये।
  • विशेषज्ञ की राय: 
    • मधुमेह रोगियों को भी सतर्क रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि उन्हें हृदय रोग और कैंसर का खतरा अधिक होता है। 
    • विशेषज्ञ कृत्रिम मधुरक के सेवन से जुड़े इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप -2 मधुमेह के संभावित जोखिम पर प्रकाश डालते हैं। विशेषज्ञ, कृत्रिम मधुरक के उपयोग से जुड़े इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप-2 मधुमेह के संभावित जोखिम पर बल देते हैं। 
  • डायट कोला (पेय) के हानिकारक प्रभाव: 
    • सामान्य कोला के शून्य-कैलोरी विकल्प के रूप में विपणन किये गए डायट कोला में शून्य-कैलोरी दावे को प्राप्त करने के लिये कृत्रिम मधुरक का उपयोग किया जाता है। 
    • कृत्रिम मधुरक की तीव्र मिठास स्वाद की धारणा को बदल सकती है, जिससे सामान्य मिठाइयाँ कम मीठी लगती हैं और संभावित रूप से अधिक शर्करा वाले खाद्य पदार्थों की लालसा होती है।
    • एरिथ्रिटोल पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है, जबकि इसके संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के कारण इससे परहेज करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. बाज़ार में बिकने वाला ऐस्परटेम कृत्रिम मधुरक है। यह ऐमीनो अम्लों से बना होता है और अन्य ऐमीनो अम्लों के समान ही कैलोरी प्रदान करता है। फिर भी यह भोज्य पदार्थों में कम कैलोरी मधुरक के रूप में इस्तेमाल होता है। उसके इस्तेमाल का क्या आधार है? (2011) 

(a) ऐस्परटेम सामान्य चीनी जितना ही मीठा होता है, किंतु चीनी के विपरीत यह मानव शरीर में आवश्यक एन्जाइमों के अभाव के कारण शीघ्र ऑक्सीकृत नहीं हो पाता है।
(b) जब ऐस्परटेम आहार प्रसंस्करण में प्रयुक्त होता है, तब उसका मीठा स्वाद तो बना रहता है किंतु यह ऑक्सीकरण-प्रतिरोधी हो जाता है।
(c) ऐस्परटेम चीनी जितना ही मीठा होता है, किंतु शरीर में अंतर्गहण होने के बाद यह कुछ ऐसे मेटाबोलाइट्स में परिवर्तित हो जाता है जो कोई कैलोरी नहीं देते हैं।
(d) ऐस्परटेम सामान्य चीनी से कई गुना अधिक मीठा होता है, अतः थोड़े से ऐस्परटेम में बने भोज्य पदार्थ ऑक्सीकृत होने पर कम कैलोरी प्रदान करते हैं।

उत्तर: (d) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस