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सामाजिक न्याय

दिव्यांगजनों के जीवन को बेहतर बनाने की कवायद

  • 06 Jan 2018
  • 12 min read

संदर्भ

  • अपने रोज़मर्रा के कार्यों में व्यस्त आपने कभी सोचा है कि कोई दिव्यांग व्यक्ति कैसे अपनी व्हीलचेयर के सहारे सरकारी इमारतों की सीढ़ियाँ चढ़ पाएगा? सार्वजानिक परिवहन के साधनों का बिना किसी सहायता के कैसे इस्तेमाल कर पाएगा?
  • वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की कुल जनसंख्या में 2.21 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले दिव्यांगजनों की समाज में सम्पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने पर बल देने वाले कानूनों की उपस्थिति के बावजूद सरकारों ने इस ओर कम ही ध्यान दिया है।
  • लेकिन, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित समय-सीमा के अंदर दिव्यांगजनों की सार्वजनिक सुविधाओं तक पूर्ण पहुँच सुनिश्चित करने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किये हैं।
  • दरअसल, पिछले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने समस-समय पर विभिन्न दिशा-निर्देश दिये हैं, ताकि सार्वजनिक अवसंरचना तक दिव्यांगजनों की सुलभ पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
  • विदित हो कि सरकार द्वारा दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) पारित किया जा चुका है ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन अपरिहार्य हो जाता है।

इस लेख में हम दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम तथा दिव्यांगजनों के कल्याण हेतु सरकार द्वारा चलाई जा रही कुछ प्रमुख योजनाओं के संबंध में चर्चा करेंगे, लेकिन पहले देख लेते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देश क्या हैं?

सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देश

क्या है दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016?

  • दिव्यांगजन अधिकार विधेयक, वर्ष 2016 के अंत में राज्यसभा द्वारा पारित होते ही दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 बन गया जो वर्ष 1995 के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम को निरस्त करता है।

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की विशेषताएँ

  • विकलांगता की परिभाषा में बदलाव:

⇒ दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में विकलांगता की परिभाषा में बदलाव लाते हुए इसे और भी व्यापक बनाया गया है।
⇒ दरअसल, इस अधिनियम में विकलांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है और अपंगता के मौजूदा प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है।
⇒ साथ ही केंद्र सरकार को इन प्रकारों में वृद्धि की शक्ति भी दी गई है।

  • आरक्षण की व्यवस्था:

⇒ गौरतलब है कि शिक्षा और सरकारी नौकरियों में दिव्यांग व्यक्तियों को अब तक 3% आरक्षण दिये जाने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन इस अधिनियम में इसे बढ़ाकर 4% कर दिया गया है।

  • शिक्षा संबंधी सुधार:

⇒ इस अधिनियम में बेंचमार्क विकलांगता (benchmark-disability) से पीड़ित 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है।
⇒ साथ ही सरकारी वित्त पोषित शैक्षिक संस्थानों और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों को दिव्यांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान करनी होगी।

  • फंड की व्यवस्था:

⇒ दिव्यांगजनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये ‘राष्ट्रीय और राज्य निधि’ (National and State Fund) का निर्माण किया जाएगा।
⇒ उल्लेखनीय है कि इस संबंध में बनाए गए अन्य फंड्स का इस नए फंड में विलय कर दिया जाएगा।

  • अवसरंचना संबंधी सुधार:

⇒ सुलभ भारत अभियान को मज़बूती प्रदान करने एवं निर्धारित समय-सीमा में सार्वजनिक इमारतों (सरकारी और निजी दोनों) में दिव्यांगजनों की पहुँच सुनिश्चित करने पर बल दिया गया है।

  • गार्डियनशिप की व्यवस्था:

⇒ यह विधेयक ज़िला न्यायालय द्वारा गार्डियनशिप की व्यवस्था प्रदान करता है जिसके तहत अभिभावक और विकलांग व्यक्तियों के बीच संयुक्त निर्णय लेने की व्यवस्था होगी।

  • बेंचमार्क विकलांगता के लिये विशेष प्रावधान:

⇒ गौरतलब है कि इस अधिनियम में बेंचमार्क विकलांगता यानी न्यूनतम 40 फीसदी विकलांगता के शिकार लोगों को शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण का लाभ देने का भी प्रावधान है और ऐसे लोगों को सरकारी योजनाओं और अन्य प्रकार की योजनाओं में भी प्राथमिकता दी जाएगी।

  • अन्य महत्त्वपूर्ण प्रावधान:

⇒ दिव्यांगजनों के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों के निपटारे के लिये प्रत्येक ज़िले में विशेष न्यायालयों को नामित किया जाएगा।
⇒ नया अधिनियम इस संबंध में भारत में बनने वाले कानूनों को विकलांग व्यक्तियों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन (यूएनसीआरपीडी) के उद्देश्यों के सापेक्ष ला खड़ा करेगा।
⇒ भारत यूएनसीआरपीडी का एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है और यह अधिनियम यूएनसीआरपीडी के संदर्भ में भारत के दायित्वों को पूरा करेगा।

इस संबंध में सरकार के प्रयास

  • सुगम्य भारत अभियान:

⇒ दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 15 दिसंबर, 2015 को सुगम्य भारत अभियान का शुभारंभ किया गया।
⇒ इस अभियान का उद्देश्य दिव्यांगजनों के लिये एक सक्षम और बाधारहित वातावरण सुनिश्चित करना है। इस अभियान के तहत तीन प्रमुख उद्देश्यों- विद्यमान वातावरण में सुगम्यता सुनिश्चित करना, परिवहन प्रणाली में सुगम्यता तथा ज्ञान एवं आईसीटी के माध्यम से दिव्यांगो को सशक्त बनाना शामिल हैं।

  • सुगम्य पुस्तकालय:

⇒ सरकार द्वारा वर्ष 2016 में एक ऑनलाइन मंच “सुगम्य पुस्तकालय” की शुरुआत की गई है, जहाँ दिव्यांगजन इंटरनेट के माध्यम से पुस्तकालय से संबद्ध सभी प्रकार की उपयोगी पुस्तकों को पढ़ सकते हैं।
⇒ नेत्रहीन व्यक्तियों के लिये अलग से व्यवस्था की गई है। सुगम्य पुस्तकालय में नेत्रहीन व्यक्ति भी अपनी पसंद के किसी भी उपकरण जैसे- मोबाइल फोन, टैबलेट, कम्प्यूटर इत्यादि का उपयोग कर ब्रेल डिस्प्ले की मदद से पढ़ सकते हैं।

  • यूडीआईडी कार्ड:

⇒ भारत सरकार द्वारा वेब आधारित असाधारण दिव्यांग पहचान (यूडीआईडी) कार्ड शुरू किया गया है।
⇒ इस पहल से दिव्यांग प्रमाण-पत्र की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी तथा अलग-अलग कार्यों के लिये कई प्रमाण-पत्र साथ रखने की परेशानी भी दूर होगी।
⇒ इसके तहत विकलांगता के प्रकार सहित विभिन्न विवरण ऑनलाइन उपलब्ध कराए जाएंगे।

  • स्वावलंबन योजना:

⇒ दिव्यांग व्यक्तियों के कौशल प्रशिक्षण के लिये एक राष्ट्रीय कार्ययोजना की शुरुआत की गई है। उल्लेखनीय है कि दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग द्वारा पाँच लाख दिव्यांग व्यक्तियों को कौशल प्रशिक्षण देने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया गया है।
⇒ इस कार्ययोजना का उद्देश्य वर्ष 2022 के अंत तक 25 लाख दिव्यांगजनों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।

चिंताएँ

  • दिव्यांगजनों के लिये के लिये समय-समय पर विशेष भर्ती अभियान चलाए जाने के बावजूद सरकारी नौकरियों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये पूर्व में आरक्षित 3 प्रतिशत (अब 4 प्रतिशत) सीटों में से लगभग 1 प्रतिशत सीटों पर ही भर्तियाँ हो पाई हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में अभी भी 73 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगजन श्रमशक्ति के दायरे से बाहर हैं।
  • मानसिक रूप से अक्षम लोग, दिव्यांग महिलाएँ तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले दिव्यांगजन सबसे अधिक उपेक्षित हैं।
  • सरकार द्वारा दिव्यांग बच्चों को स्कूल में भर्ती कराने हेतु कई कदम उठाने के बावजूद आधे से अधिक दिव्यांग बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं।
  • रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में सुगम्यता का आभाव विकलांगों के साथ-साथ बुजुर्ग यात्रियों के लिये भी एक बड़ी समस्या है।

समाधान

  • नए अधिनियम में मानसिक रूप से विकलांग, दिव्यांग महिलाएँ तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले दिव्यांगजनों की अन्य चिंताओं के साथ-साथ रोज़गार चिंताओं का भी संज्ञान लिया गया है, फिर भी सुधार तभी संभव है जब प्रावधानों का समुचित अनुपालन हो।
  • दिव्यांगजनों की सहायता और सहायक उपकरणों के संबंध में अनुसंधान और विकास को भी आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि विभिन्न सुविधाओं तक उनकी पहुँच को आसान बनाया जा सके।
  • यदि शिक्षा के अधिकार को अक्षरक्षः कार्यान्वित किया जाए तो दिव्यांग बच्चों के स्कूल न जाने की स्थिति बदल सकती है, जबकि नया अधिनियम भी शिक्षा संबंधी सुधारों की बात करता है।
  • साथ ही स्मार्ट सिटी और शहरी सुविधाओं की  बेहतरी पर ज़ोर देते हुए दिव्यांगजनों की चिंताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • रेलवे को सभी स्टेशनों को दिव्यांगजन सुगम बनाने के लिये एक कार्यक्रम तत्काल शुरू करना चाहिये और ‘पोर्टेबल स्टेप सीढ़ी’ जैसे उपायों को आजमाना चाहिये।
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