डेली न्यूज़ (18 Jan, 2024)



भारत में मगरमच्छ की प्रजातियाँ


पुलिस महानिदेशकों का अखिल भारतीय सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

पुलिस महानिदेशकों का 58वाँ अखिल भारतीय सम्मेलन, पुलिस महानिदेशक (DGP), पुलिस महानिरीक्षक (IGP), आपराधिक कानून

मेन्स के लिये:

महानिदेशकों का अखिल भारतीय सम्मेलन

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने जयपुर, राजस्थान में पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षकों के 58वें अखिल भारतीय सम्मेलन में भाग लिया।

  • यह तीन दिवसीय कार्यक्रम था जिसे हाइब्रिड मोड में पुलिस महानिदेशक (DGP), पुलिस महानिरीक्षक (IGP) तथा केंद्रीय पुलिस संगठनों के प्रमुखों के साथ आयोजित किया गया था।
  • आयोजित सम्मेलन में साइबर अपराध, पुलिस व्यवस्था में प्रौद्योगिकी, आतंकवाद-रोधी चुनौतियाँ, वामपंथी उग्रवाद तथा जेल सुधार एवं आंतरिक सुरक्षा मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया।
  • सम्मेलन का एक अन्य प्रमुख एजेंडा नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन के लिये रोड मैप पर विचार-विमर्श है।

प्रधानमंत्री के संबोधन से संबंधित मुख्य बातें क्या हैं?

  • आपराधिक न्याय में आदर्श बदलाव:
    • प्रधानमंत्री ने नए आपराधिक कानूनों के अधिनियमन द्वारा लाए गए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पर प्रकाश डाला तथा नागरिक गरिमा, अधिकारों एवं न्याय पर ध्यान केंद्रित करने वाली न्याय प्रणाली को प्राथमिकता देते हुए दंडात्मक उपायों के स्थान पर डेटा-संचालित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
    • उन्होंने नए कानूनों के तहत महिलाओं तथा लड़कियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला और पुलिस से उनकी सुरक्षा एवं कभी भी, कहीं भी निडर होकर कार्य करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया।
  • पुलिस की सकारात्मक छवि:
    • उन्होंने सकारात्मक जानकारी तथा संदेशों के प्रसार के लिये ज़मीनी स्तर पर सोशल मीडिया के उपयोग का सुझाव देते हुए नागरिकों के बीच पुलिस के प्रति सकारात्मक धारणा को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।
    • इसके अतिरिक्त आपदा चेतावनी तथा राहत प्रयासों के लिये सोशल मीडिया का उपयोग करने  का सुझाव दिया गया।
  • नागरिक-पुलिस संबंध:
    • उन्होंने नागरिकों तथा पुलिस बल के बीच संबंधों को सशक्त करने के लिये खेल आयोजनों के आयोजन का समर्थन किया।
    • उन्होंने सरकारी अधिकारियों को स्थानीय लोगों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने के लिये सीमावर्ती ग्रामों में रहने के लिये भी प्रोत्साहित किया।
  • पुलिस बल में परिवर्तन:
    • भारत की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय प्रमुखता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने भारतीय पुलिस से वर्ष 2047 तक देश के विकास को आगे बढ़ाने के लक्ष्य के साथ एक अत्याधुनिक, विश्व स्तरीय बल के रूप में विकसित होने के लिये प्रोत्साहित किया

पुलिस बलों से सम्बंधित मुद्दे क्या हैं?

  • हिरासत में होने वाली मृत्यु:
    • हिरासत/अभिरक्षा में होने वाली मृत्यु का आशय पुलिस अथवा अन्य विधि प्रवर्तन अभिकरणों की हिरासत में हुई किसी व्यक्ति की मृत्यु से है।
  • बल का अत्यधिक प्रयोग:
    • पुलिस द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग की घटनाएँ सामने आई हैं, जिससे चोटें आईं और मौतें हुईं।
    • उचित प्रशिक्षण और निरीक्षण का अभाव कुछ मामलों में बल के दुरुपयोग में योगदान देता है।
      • एक पुलिस अधिकारी एक लोक सेवक है और इसलिये उससे अपने नागरिकों के साथ वैध तरीके से व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है।
  • भ्रष्टाचार:
    • रिश्वतखोरी और अन्य प्रकार के कदाचार सहित पुलिस बल के भीतर भ्रष्टाचार, जनता के विश्वास को कमज़ोर करता है।
    • उच्च-रैंकिंग के पुलिस अधिकारियों को कभी-कभी भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने के रूप में उजागर किया गया है और निचली-रैंकिंग के पुलिस अधिकारियों को रिश्वत लेने के रूप में भी उजागर किया गया है।
    • उदाहरणार्थ: निषेध कानून प्रवर्तन।
      • ये कानून शराब जैसे प्रतिबंधित पदार्थों की मांग को बढ़ाकर पुलिस भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। 
      • बढ़ी हुई लाभप्रदता और कानून प्रवर्तन विवेक का संयोजन अधिकारियों को भ्रष्ट आचरण में शामिल होने के लिये प्रेरित करता है।
  • विश्वास के मुद्दे:
    • पुलिस और समुदाय के बीच विश्वास की बहुत कमी है, जिससे सहयोग तथा सूचना साझाकरण प्रभावित हो रहा है।
    • पुलिस कदाचार के हाई-प्रोफाइल मामले जनता में संदेह और अविश्वास को बढ़ावा देते हैं।
  • पुलिस द्वारा न्यायेतर हत्या:
    • आत्मरक्षा के नाम पर पुलिस द्वारा न्यायेतर हत्याओं के कई मामले सामने आए हैं, जिन्हें आमतौर पर 'मुठभेड़' के रूप में जाना जाता है।
    • भारतीय कानून में ऐसा कोई रहस्यमय/अज्ञेय प्रावधान या कानून नहीं है जो मुठभेड़ में की गई हत्या को वैध बनाता हो। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में नीतिगत ज़्यादतियों/अतिरेक के उपयोग को सीमित कर दिया था।
      • वर्ष 2020-2021 के दौरान एनकाउंटर के नाम पर 82 लोगों की हत्या की गई जो वर्ष 2021-2022 के दौरान बढ़कर 151 हो गई।

पुलिस सुधार के लिये क्या सिफारिशें हैं?

  • पुलिस शिकायत प्राधिकरण:
    • प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ, 2006 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के सभी राज्यों में पुलिस शिकायत प्राधिकरण स्थापित करने का निर्देश दिया।
      • पुलिस शिकायत प्राधिकरण पुलिस अधीक्षक से उच्च, नीचले स्तर के पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार के कदाचार से संबंधित मामलों की जाँच करने के लिये अधिकृत है।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिसिंग/पुलिस व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिये जाँच एवं कानून व्यवस्था कार्यों को अलग करने, राज्य सुरक्षा आयोग (State Security Commission- SSC) की स्थापना करने का भी निर्देश दिया, जिसमें नागरिक समाज के सदस्य होंगे और एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशें:
    • भारत में राष्ट्रीय पुलिस आयोग (वर्ष 1977-1981) ने कार्यात्मक स्वायत्तता और जवाबदेही की आवश्यकता पर बल देते हुए पुलिस सुधारों के लिये सिफारिशें कीं।
  • श्री रिबेरो समिति:
    • पुलिस सुधारों पर की गई कार्रवाई की समीक्षा करने और आयोग की सिफारिशों को लागू करने के तरीके सुझाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर वर्ष 1998 में श्री रिबेरो समिति का गठन किया गया था।
    • रिबेरो समिति ने कुछ संशोधनों के साथ राष्ट्रीय पुलिस आयोग (वर्ष 1978-82) की प्रमुख सिफारिशों का समर्थन किया।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार पर मलिमथ समिति:
    • आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार पर वर्ष 2000 में वी.एस. की अध्यक्षता में मलिमथ समिति की स्थापना की गई। मलिमथ ने एक केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसी की स्थापना सहित 158 सिफारिशें कीं।
  • मॉडल पुलिस अधिनियम:
    • मॉडल पुलिस अधिनियम, 2006 के अनुसार, प्रत्येक राज्य को सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, नागरिक समाज के सदस्यों, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों एवं दूसरे राज्य के सार्वजनिक प्रशासकों से बना एक प्राधिकरण स्थापित करना होगा।
      • इसने पुलिस एजेंसी की कार्यात्मक स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित किया, व्यावसायिकता को प्रोत्साहित किया और प्रदर्शन एवं आचरण दोनों के लिये जवाबदेही को सर्वोपरि बनाया।


वैश्विक शल्य चिकित्सा

प्रिलिम्स के लिये:

निम्न और मध्यम आय वाले देश, रोग नियंत्रण प्राथमिकता नेटवर्क, विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

मेन्स के लिये:

वैश्विक शल्य चिकित्सा, स्वास्थ्य सेवा से संबंधित सरकारी पहल।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद भी अक्सर स्वास्थ्य पहलों में अक्सर वैश्विक शल्य चिकित्सा (Global surgery) की उपेक्षा देखी गई है। दक्षिण एशिया में यह उपेक्षा और अधिक चौंकाने वाली है, जहाँ वैश्विक स्तर पर बड़ी आबादी के पास आवश्यक शल्य चिकित्सा तक पहुँच का अभाव है।

वैश्विक शल्य चिकित्सा क्या है?

  • परिचय:
    • वैश्विक शल्य चिकित्सा आपातकालीन और आवश्यक चिकित्सा तक समान पहुँच पर केंद्रित है। हालाँकि यह मुख्य रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों (Low- and Middle-Income Countries - LMICs) पर ध्यान केंद्रित करता है, यह उच्च आय वाले देशों (High-Income Countries - HICs) में पहुँच संबंधी असमानताओं और कम सेवा वाली आबादी को भी प्राथमिकता देता है।
    • इन "चिकित्साओं" में शल्य चिकित्सा(Surgery), प्रसूति (Obstetrics),आघात (Trauma) और एनेस्थीसिया (Anaesthesia) (SOTA) जैसी आवश्यक तथा आपातकालीन चिकित्सा शामिल हैं।
  • ऐतिहासिक:
    • वर्ष 2015 में, जिसे अक्सर "एनस मिराबिलिस (Annus Mirabilis)" या वैश्विक शल्य चिकित्सा के लिये चमत्कारिक वर्ष कहा जाता है, प्रमुख विकासों ने इस क्षेत्र को बदल दिया। विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित रोग नियंत्रण प्राथमिकता नेटवर्क (Disease Control Priorities Network - DCPN) रिपोर्ट ने आवश्यक चिकित्सा की लागत-प्रभावशीलता और महत्त्वपूर्ण बीमारी पर प्रकाश डाला, जिसे शल्य चिकित्सा द्वारा संबोधित किया जा सकता है।
    • ग्लोबल सर्जरी पर लैंसेट कमीशन ने वैश्विक सर्जिकल (Lancet Commission on Global Surgery - LCoGS) देखभाल पहुँच का आकलन करने, तत्परता के लिये संकेतकों को परिभाषित करने तथा राष्ट्रीय सर्जिकल, प्रसूति और एनेस्थीसिया योजना (National Surgical, Obstetrics, and Anaesthesia Plan - NSOAP) जैसी रणनीतियों का प्रस्ताव देकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • इसने सुरक्षित सर्जरी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization - WHO)  की घोषणा (WHO संकल्प 68.15) के लिये आधार तैयार किया, जिसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage) प्राप्त करने में चिकित्सीय सिस्टम की आवश्यक भूमिका पर ज़ोर दिया गया।

वैश्विक शल्य चिकित्सा में चुनौतियाँ और असमानताएँ क्या हैं?

  • अप्राप्यता:
    • LCoGS के अनुसार, वैश्विक आबादी के 70% से अधिक या पाँच अरब लोगों को ज़रूरत पड़ने पर सुरक्षित और किफायती चिकित्सा देखभाल तक समय पर पहुँच का अभाव है।
    • निम्न और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों (LLMIC) में, क्रमशः 99% तथा 96% आबादी को पहुँच/अभिगम अंतराल का सामना करना पड़ता है, जबकि उच्च-आय वाले देशों (HIC) में यह 24% है।
    • विशेष रूप से दक्षिण एशिया में, 98% से अधिक आबादी के पास सुरक्षित और किफायती शल्य चिकित्सा देखभाल तक पहुँच/अभिगम का अभाव है।
  • रोगों के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र पर पड़ने वाला बोझ:
    • शल्य चिकित्सा द्वारा उपचार योग्य स्थितियों के कारण वर्ष 2010 में लगभग 17 मिलियन मौतें हुईं, जो ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV)/ एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (AIDS), तपेदिक और मलेरिया के संयुक्त मृत्यु दर को पार कर गईं।
    • निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में शल्य चिकित्सा द्वारा नियंत्रण योग्य विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्ष (Disability-Adjusted Life-Years: DALY) मामले 77 मिलियन से अधिक हैं, जो इन देशों में कुल बीमारी के बोझ का 3.5% है।
      • दक्षिण एशिया में LMIC औसत की तुलना में DALY दर अधिक है, जो नवजात और मातृ रोगों, जन्मजात विसंगतियों, पाचन स्थितियों तथा आघात में शल्य चिकित्सा द्वारा टाले जाने वाले रोग बोझ का बहुत बड़ा करण है।
  • आर्थिक बोझ:
    • शल्य चिकित्सा देखभाल में वृद्धि के अभाव के परिणामस्वरूप वर्ष 2030 तक 128 देशों में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 20.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (क्रय शक्ति समता के संदर्भ में) का संचयी नुकसान होने का अनुमान है।
    • 175 देशों में सामाजिक कल्याण में लगभग 14.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वार्षिक हानि होने का अनुमान है।
    • वैश्विक लुप्त कल्याण (Global Lost Welfare) में दक्षिण एशिया का योगदान लगभग 7% है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य रिपोर्ट में सीमित प्रतिनिधित्व:
    • विश्व बैंक, WHO और UNICEF जैसे संगठनों द्वारा प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य रिपोर्टों में उल्लिखित संकेतकों में शल्य चिकित्सा का योगदान 1% से भी कम है।
    • प्रतिनिधित्व की कमी के परिणामस्वरूप वैश्विक स्वास्थ्य पहल और संसाधन आवंटन में प्राथमिकता कम हो सकती है।
  • राष्ट्रीय नीति निर्माण में उपेक्षा:
    • अफ्रीका और भारत जैसे विभिन्न देशों की राष्ट्रीय स्वास्थ्य रणनीतिक योजनाएँ प्रायः शल्य चिकित्सा पर सीमित ध्यान देती हैं। कुछ योजनाओं में सर्जरी या शल्य चिकित्सा स्थितियों का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं किया जाता है, जबकि अन्य में उनका उल्लेख बहुत कम होता है।
    • राष्ट्रीय नीतियों में इसकी प्राथमिकता के अभाव के कारण व्यापक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • शोध संबंधी असमानताएँ:
    • व्यापक वैश्विक स्वास्थ्य विषयों की तुलना में वैश्विक शल्य चिकित्सा संबंधी शोध कम किये जाते हैं और साथ ही इनके बीच वित्त पोषण संबंधी अंतराल भी मौजूद है।
    • PubMed जैसे डेटाबेस में 'वैश्विक स्वास्थ्य' शीर्षकों की तुलना में 'वैश्विक सर्जरी' शीर्षकों की सीमित संख्या अनुसंधान क्षेत्र में दोनों के बीच विद्यमान असमानता को उजागर करती है।
    • यह असमानता शल्य चिकित्सा देखभाल में साक्ष्य-आधारित प्रथाओं की पीढ़ी में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  • परस्पर संबंधी चुनौतियाँ:
    • नीति अथवा अनुसंधान में किसी एक पहलू की उपेक्षा के परिणामस्वरूप अन्य क्षेत्रों में भी इसकी उपेक्षा की स्थिति कायम रहती है जिससे इसका अल्प प्राथमिकता का चक्र आगे जारी रह सकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों में इसके प्रतिनिधित्व की कमी इससे संबंधी राष्ट्रीय नीतियों को प्रभावित कर सकती है जिसके परिणामस्वरूप इसकी अनुसंधान निधि एवं संबद्ध क्षेत्र में इस पर केंद्रित ध्यान प्रभावित हो सकता है।

आगे की राह

  • साक्ष्य-आधारित प्रथाओं, नवाचारों और समाधानों को उत्पन्न करने के लिये वैश्विक सर्जरी में अनुसंधान को समर्थन तथा प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। सर्जिकल हस्तक्षेपों, परिणामों तथा स्वास्थ्य देखभाल वितरण मॉडल हेतु अनुसंधान निधि को प्राथमिकता दें जिन्हें संसाधन-सीमित सेटिंग्स के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर सर्जिकल देखभाल में सुधार के लिये प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए देशों को NSOAP विकसित करने और लागू करने हेतु प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। NSOAP सर्जिकल सिस्टम, बुनियादी ढाँचे और कार्यबल को मज़बूत करने के लिये एक रोडमैप प्रदान करता है।
  • सर्जिकल देखभाल के लिये निरंतर और बढ़े हुए वित्तपोषण का समर्थन करने की आवश्यकता है। ऐसे फंडिंग तंत्र विकसित करें जो सर्जिकल बुनियादी ढाँचे, प्रशिक्षण तथा सेवा वितरण को प्राथमिकता दें। वैश्विक सर्जरी पहल हेतु संसाधन आवंटित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं, सरकारों एवं परोपकारी संगठनों के साथ जुड़ें।

सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जाँच हेतु पूर्व अनुमोदन

प्रिलिम्स के लिये:

पूर्व अनुमोदन, सर्वोच्च न्यायालय (SC), प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), कौशल विकास घोटाला मामला, अपराध जाँच विभाग (CID)।

मेन्स के लिये:

पूर्व अनुमोदन।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कथित कौशल विकास घोटाला मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Investigation Report- FIR) को रद्द करने की आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की याचिका को रद्द करने का फैसला सुनाया है।

  • न्यायाधीशों के बीच असहमति इस बात को लेकर है कि क्या आंध्र प्रदेश अपराध जाँच विभाग (Crime Investigation Department- CID) को भ्रष्टाचार के आरोपी सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ जाँच करने से पहले राज्य सरकार से 'पूर्व अनुमोदन' लेने की आवश्यकता थी।

क्या था सर्वोच्च न्यायालय का फैसला?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17A की व्याख्या और प्रयोज्यता को रद्द करने का फैसला सुनाया है।
  • एक न्यायाधीश ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ PC अधिनियम के तहत कथित अपराधों की जाँच करने के लिये पूर्व अनुमोदन आवश्यक थी। हालाँकि उन्होंने रिमांड आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया और राज्य को ऐसी अनुमति लेने की स्वतंत्रता दी।
  • अन्य न्यायाधीश के अनुसार धारा 17A का पूर्वव्यापी/भूतलक्षी रूप से कार्यान्वन नहीं किया जाएगा तथा FIR को रद्द करने से इनकार करने वाले उच्च न्यायालय के निर्णय को ज्यों का त्यों रखा जाएगा। 
    • न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि रिमांड का विवादित आदेश तथा उच्च न्यायालय के निर्णय में कोई अवैधता नहीं है।
  • एक समान मत न होने के कारणवश मामले को उचित निर्देशों हेतु भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) को प्रेषित किया गया है।

आंध्र प्रदेश में कौशल विकास घोटाला क्या था?

  • आंध्र प्रदेश में कौशल विकास घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के विरुद्ध कौशल विकास कार्यक्रम के लिये निर्धारित धन राशि का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया।
  • वर्ष 2021 में 3,356 करोड़ रुपए का कौशल विकास प्रोजेक्ट की जाँच शुरू हुई।
  • दिसंबर 2021 में चंद्रबाबू नायडू के विरुद्ध FIR दर्ज की गई। अपराध अन्वेषण विभाग (Crime Investigation Department- CID) ने आरोप लगाया कि परियोजना के लिये आवंटित लगभग 241 करोड़ रुपए का अंतरण पाँच शेल कंपनियों को किया गया था।

सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध जाँच हेतु पूर्व अनुमोदन क्या है?

  • परिचय:
    • पूर्व अनुमोदन जाँचकर्त्ताओं, विशेष रूप से अपराध अन्वेषण विभाग (CID) अथवा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) जैसे अभिकरणों के लिये सरकारी अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच अथवा जाँच शुरू करने से पूर्व सरकार अथवा सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता को संदर्भित करता है।
    • किसी भी औपचारिक कार्रवाई, जैसे कि FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज करना या विस्तृत जाँच करने से पहले यह मंज़ूरी आवश्यक है।
  • कानूनी प्रावधान:
    • 'पूर्व अनुमोदन' की आवश्यकता दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 में संशोधन के माध्यम से शुरू किये गए कानूनी प्रावधानों में निहित है, जिसे बाद में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में शामिल किया गया।
    • यह शर्त पहली बार वर्ष 2003 में अपनाई गई थी, जिसमें कहा गया था कि यदि आरोपी संयुक्त सचिव से ऊपर का पद रखता है तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच करने से पहले केंद्र सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
    • हालाँकि SC ने वर्ष 2014 में इस आवश्यकता को रद्द कर दिया। इसके बाद, वर्ष 2018 में, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन के माध्यम से एक समान प्रावधान (धारा 17A) को फिर से पेश किया गया।
      • इस प्रावधान के अनुसार, यदि किसी लोक सेवक पर अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय अधिनियम के तहत अपराध करने का आरोप लगाया जाता है, तो पूछताछ या जाँच शुरू करने से पहले केंद्र या राज्य सरकार या सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
  • तर्क:
    • 'पूर्व अनुमोदन' की आवश्यकता के पीछे तर्क सार्वजनिक अधिकारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की पूछताछ की आवश्यकता को संभावित आधारहीन या राजनीति से प्रेरित जाँच से अधिकारियों की सुरक्षा के साथ संतुलित करना है।
    • इसे यह सुनिश्चित करने के लिये एक प्रक्रियात्मक सुरक्षा के रूप में देखा जाता है कि अन्वेषण/जाँच विवेकपूर्ण ढंग से और उचित निरीक्षण के साथ की जाए, जिससे अन्वेषण शक्तियों का दुरुपयोग रोका जा सके।

पूर्व अनुमोदन के प्रावधान में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • 'पूर्व अनुमोदन' की आवश्यकता से यह निर्धारित करना अत्यंत कठिन हो जाता है कि क्या किसी सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय कोई अपराध किया गया था।
  • प्रारंभिक जाँच क्षमता के बिना, साक्ष्य एकत्रित करना और यह स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है कि अधिकारी के खिलाफ कोई वैध मामला है या नहीं।
  • पुलिस अधिकारियों और जाँच एजेंसियों पर 'पूर्व अनुमोदन' प्राप्त करने का ज़िम्मेदारी डालने से भ्रष्टाचार के आरोपों का तुरंत तथा प्रभावी ढंग से समाधान करने की उनकी क्षमता में बाधा आ सकती है।
  • यह ज़िम्मेदारी जाँच प्रक्रिया को धीमा कर सकता है, जिससे संभावित रूप से भ्रष्ट अधिकारियों को जाँच से बचने या अपनी गतिविधियों को जारी रखने में सहायता मिल सकती है।

आगे की राह 

  • 'पूर्व अनुमोदन' से संबंधित मौजूदा कानून की व्यापक समीक्षा करने और हितधारकों की चिंताओं को दूर करने के लिये संशोधनों पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • 'पूर्व अनुमोदन' द्वारा प्रदान की गई निगरानी और शीघ्र जाँच की आवश्यकता के बीच संतुलन की तलाश करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिये अनुमोदन प्राप्त करने के मानदंडों को परिष्कृत करने पर विचार किया जाना चाहिये कि इससे पूछताछ शुरू करने में अनावश्यक देरी न हो।
  • लोक अधिकारियों की जाँच के लिये 'पूर्व अनुमोदन' देने हेतु स्पष्ट और पारदर्शी मानदंड स्थापित करने की आवश्यकता है। इसमें आरोपों की गंभीरता या इसमें शामिल अधिकारी के पद के लिये सीमा निर्दिष्ट करना शामिल हो सकता है।


कश्मीर में हिमपात न होने के प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

कश्मीर में हिमपात न होने के प्रभाव, पश्चिमी विक्षोभ, जलवायु परिवर्तन, हिमालयी क्षेत्र, अल-नीनो

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय परिघटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनकी अवस्थिति, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

सर्दियों के मौसम के दौरान कश्मीर में हिमपात की अनुपस्थिति न केवल क्षेत्र के, विशेषकर गुलमर्ग जैसे लोकप्रिय स्थलों के, पर्यटन उद्योग को प्रभावित कर रही है अपितु इसका स्थानीय पर्यावरण तथा अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

कश्मीर में हिमपात न होने का क्या कारण है?

  • जलवायु और मौसम पैटर्न:
    • संपूर्ण जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख क्षेत्रों में इस सर्दी में वर्षा अथवा हिमपात की कमी देखी गई है, जिसके अनुसार दिसंबर 2023 में वर्षा में 80% की उल्लेखनीय कमी तथा जनवरी 2024 में अभी तक 100% (कोई वर्षा नहीं) की कमी दर्ज की गई है।
    • इन क्षेत्रों में शीतकालीन वर्षा मुख्यतः हिमपात के रूप में होती है जो स्थानीय जलवायु के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • पश्चिमी विक्षोभ में कमी:
    • बर्फबारी में कमी की समग्र प्रवृत्ति को पश्चिमी विक्षोभ की घटनाओं में कमी और तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है, जो संभवतः जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है।
    • पश्चिमी विक्षोभ हिमालय क्षेत्र में शीतकालीन वर्षा का प्राथमिक स्रोत हैं।
      • पश्चिमी विक्षोभ की घटनाओं की संख्या में कमी देखी जा रही है, जिससे सर्दियों के महीनों के दौरान कुल वर्षा कम हो रही है।
      • पश्चिमी विक्षोभ पूर्व की ओर बढ़ने वाली विशाल वर्षा-वाहक पवन प्रणाली है जो अफगानिस्तान और ईरान से आगे शुरू होती है, जो भूमध्य सागर तथा यहाँ तक ​​कि अटलांटिक महासागर तक नमी लाती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन एवं अल नीनो की भूमिका:
    • विभिन्न अध्ययनों से ज्ञात होता है कि कश्मीर में बर्फबारी में कमी के लिये जलवायु परिवर्तन को एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है।
    • पूर्वी प्रशांत महासागर में वर्तमान अल-नीनो घटना को वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण को प्रभावित करने और क्षेत्र में कम वर्षा में योगदान देने वाले एक अतिरिक्त कारक के रूप में सुझाया गया है।
      •  पिछले एक दशक में वर्ष 2022, 2018, 2015 में जम्मू और कश्मीर में सर्दियाँ अपेक्षाकृत शुष्क रही हैं तथा हिमपात में कमी आयी है।

कश्मीर में हिमपात न होने के क्या प्रभाव हैं?

  • लघु एवं दीर्घकालिक प्रभाव:
    • अल्पकालिक प्रभावों में वनाग्नि में वृद्धि, कृषि संबंधित अनावृष्टि और फसल उत्पादन में गिरावट शामिल है।
    • दीर्घकालिक परिणामों में जलविद्युत/पनबिजली उत्पादन में कमी, हिमनद के पिघलने में वृद्धि और भूजल के कम पुनर्भरण के कारण पेयजल आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव शामिल हैं।
  • शीतकालीन फसलों के लिये महत्त्वपूर्ण:
    • सर्दियों की बर्फ/हिम, जो मृदा में नमी के लिये महत्त्वपूर्ण है, शीतकालीन फसलों, विशेषकर बागवानी के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। पर्याप्त हिमपात के अभाव में स्थानीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान देने वाले सेब और केसर की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • पर्यटन पर प्रभाव:
    • कश्मीर के प्रमुख शीतकालीन पर्यटन स्थल गुलमर्ग में अपर्याप्त बर्फबारी के कारण इस मौसम में पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट देखी जा रही है। वर्ष 2023 में पर्यटकों की पर्याप्त संख्या के बावजूद, अधिकारियों का अनुमान है कि पर्यटकों की संख्या में कम-से-कम 60% की कमी आएगी।
    • बर्फ की कमी स्की रिसॉर्ट्स (Skiresort) और संबंधित व्यवसायों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर-पृष्ठ के तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल-नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती है। क्या आप सहमत हैं? (2014) 


आपराधिक मामलों में बरी हुए व्यक्तियों के लिये सरकारी नौकरियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP), यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012, नैतिक अधमता, भारतीय दंड संहिता, 1860, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF),

मेन्स के लिये:

नैतिक अधमता और रोज़गार निर्णयों पर इसके प्रभाव से जुड़े मामलों में दोषमुक्ति पर विचार।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह  भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कांस्टेबल के रूप में हरियाणा के एक व्यक्ति की नियुक्ति पर पुनर्विचार करे, क्योंकि उसे यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 के तहत वर्ष 2019 के मामले में बरी कर दिया गया था।

  • गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs - MHA) द्वारा जारी आदेश ने नैतिक अधमता के आधार पर व्यक्ति की नियुक्ति रद्द कर दी।

नैतिक अधमता क्या है? 

  • "नैतिक अधमता (moral turpitude)" शब्द, जैसा कि पी. मोहनसुंदरम बनाम राष्ट्रपति, 2013 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किया गया था, में एक विशिष्ट परिभाषा का अभाव है।
  • इसमें न्याय, ईमानदारी, शील या अच्छी नैतिकता के विपरीत कार्य शामिल हैं, जो ऐसे आचरण के आरोपी व्यक्ति के भ्रष्ट और दुष्ट चरित्र या स्वभाव का सुझाव देते हैं।

क्या है मामला?

  • वर्ष 2022 में अनुकंपा के आधार पर नियुक्त कांस्टेबल को प्रवेशन यौन उत्पीड़न से संबंधित POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 4 के तहत वर्ष 2018 के आपराधिक मामले में बरी होने का खुलासा करने के बाद अपनी नियुक्ति रद्द करने का सामना करना पड़ा।
  • इसके अलावा, उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की कई धाराओं के तहत आरोपों का सामना करना पड़ा, जिनमें ज़हर, अपहरण और आपराधिक संबंधी धमकी से नुकसान पहुँचाने से संबंधित अपराध शामिल थे।
  •   वर्ष 2019 में कैथल कोर्ट (हरियाणा) द्वारा सभी आरोपों से बरी किये जाने के बावजूद, उन्हें अपनी नियुक्ति रद्द करने का सामना करना पड़ा।
    • यह कार्रवाई गृह मंत्रालय द्वारा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) में नियुक्तियों के लिये जारी एक नीति के अनुसार की गई थी, जो उन व्यक्तियों के लिये की गई थी जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, वे परीक्षण के अधीन हैं या पूछताछ के अधीन हैं।   
    • आपराधिक मामले में गंभीर आरोपों या नैतिक अधमता का सामना करने वाले व्यक्तियों को, भले ही बाद में संदेह के लाभ या गवाह को डराने-धमकाने के कारण बरी कर दिया गया हो, आम तौर पर CAPF में नियुक्ति के लिये अनुपयुक्त माना जाता है।

लोक सेवा में आपराधिक मामलों वाले व्यक्तियों की नियुक्ति हेतु न्यायालय ने क्या आदेश निर्धारित किये हैं?

  • अवतार सिंह बनाम भारत संघ, 2016 में सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने एक आपराधिक मामले में शामिल उम्मीदवार की नियुक्ति पर विचार किया।
    • इसने निर्णय सुनाया कि किसी उम्मीदवार की सज़ा, दोषमुक्ति, गिरफ्तारी या लंबित आपराधिक मामले के बारे में नियोक्ता को दी गई जानकारी सच होनी चाहिये और बिना किसी दमन या गलत जानकारी के होनी चाहिये।
    • ऐसे मामलों में दोषसिद्धि के लिये जो मामूली नहीं हैं, नियोक्ता कर्मचारी की उम्मीदवारी रद्द कर सकता है या उसकी सेवाएँ समाप्त कर सकता है।
  • यदि कोई बरी नैतिक अधमता या तकनीकी आधार पर गंभीर अपराध से जुड़े मामले में हुआ है और यह स्पष्ट बरी नहीं है या उचित संदेह पर आधारित है, तो नियोक्ता व्यक्ति की पृष्ठभूमि के बारे में सभी प्रासंगिक जानकारी का आकलन कर सकता है तथा कर्मचारी की सेवा-निरंतरता के संबंध में उचित निर्णय ले सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय में सतीश चंद्र यादव बनाम भारत संघ, 2023 मामला "आपराधिक मामले में बरी होने से उम्मीदवार स्वचालित रूप से पद पर नियुक्ति का हकदार नहीं होगा" और यह अभी भी नियोक्ता के लिये उनके पूर्ववृत्त पर विचार करने तथा उम्मीदवार के रूप में उनकी उपयुक्तता की जाँच करने हेतु खुला रहेगा।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 क्या है?

  • परिचय:
    • POCSO अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ, जो वर्ष 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।
    • इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन शोषण के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया था या पर्याप्त रूप से दंडित नहीं किया गया था।
    • अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है। अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार सज़ा का प्रावधान करता है।
      • अपराधियों को रोकने और बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराधों को रोकने के उद्देश्य से, बच्चों पर यौन अपराध करने के लिये मृत्युदंड सहित अधिक कठोर सज़ा का प्रावधान करने हेतु वर्ष 2019 में अधिनियम की समीक्षा तथा संशोधन किया गया।
      • भारत सरकार ने POCSO नियम, 2020 को भी अधिसूचित कर दिया है।
  • विशेषताएँ:
    • लिंग-निष्पक्ष प्रकृति:
      • अधिनियम के अनुसार लड़के तथा लड़कियाँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
        • यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा का अधिकार है तथा लिंग के आधार पर कानूनों को भेदभाव नहीं करना चाहिये।
    • मामलों की रिपोर्टिंग में आसानी:
      • न केवल व्यक्तियों द्वारा बल्कि संस्थान भी अब नाबालिगों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये पर्याप्त रूप से जागरूक हैं क्योंकि रिपोर्ट न करना POCSO अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है। इससे बच्चों से संबंधित यौन अपराधों को छिपाना तुलनात्मक रूप से कठिन हो गया है।

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (ITBPF) क्या है?

  • भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (Indo-Tibetan Border Police Force- ITBPF) भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत एक केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (Central Armed Police Force) है।
    • ITBP की स्थापना 24 अक्टूबर 1962 को भारत-चीन युद्ध के दौरान की गई थी तथा यह एक सीमा सुरक्षा पुलिस बल है जो उच्च तुंगता वाले अभियानों में विशेषज्ञता रखता है।
    • वर्तमान में ITBP लद्दाख में काराकोरम दर्रे से अरुणाचल प्रदेश में जाचेप ला तक 3,488 किमी. लंबी भारत-चीन सीमा की सुरक्षा के लिये तैनात है। 
    • बल को नक्सल विरोधी अभियानों तथा अन्य आंतरिक सुरक्षा कर्त्तव्यों के लिये भी तैनात किया गया है।