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डेली न्यूज़

  • 17 Sep, 2022
  • 61 min read
इन्फोग्राफिक्स

मानव विकास रिपोर्ट

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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पूर्वी आर्थिक मंच

प्रिलिम्स के लिये:

रूस के सुदूर पूर्व का महत्त्व, IPEF, चीन का RCEP,

मेन्स के लिये:

पूर्वी आर्थिक मंच और भारत का संतुलन अधिनियम,

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस ने व्लादिवोस्तोक में 7वें पूर्वी आर्थिक मंच (Eastern Economic Forum-EEF) की मेज़बानी की।

Russia

पूर्वी आर्थिक मंच (Eastern Economic Forum):

  • परिचय:
    • EEF की स्थापना वर्ष 2015 में RFE में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये की गई थी।
    • EEF क्षेत्र में आर्थिक क्षमता, उपयुक्त व्यावसायिक परिस्थितियों और निवेश के अवसरों को प्रदर्शित करता है।
    • EEF में हस्ताक्षरित समझौते वर्ष 2017 के 217 से बढ़कर 2021 में 380 हो गए, जिनकी कीमत 3.6 ट्रिलियन रूबल है।
    • समझौते बुनियादी ढाँचे, परिवहन परियोजनाओं, खनिज उत्खनन, निर्माण, उद्योग और कृषि पर केंद्रित हैं।
  • प्रमुख अभिकर्त्ता:
    • चीन, दक्षिण कोरिया, जापान और भारत इस क्षेत्र के प्रमुख अभिकर्त्ता हैं, जहाँ चीन सबसे बड़ा निवेशक है।
      • चीन RFE में चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और पोलर सी रूट को बढ़ावा देने की क्षमता देखता है।
      • इस क्षेत्र में चीन द्वारा किया गया निवेश कुल निवेश का 90% है।
  • उद्देश्य:
    • रूस ने एशियाई व्यापारिक मार्गों से रूस को जोड़ने के उद्देश्य से इस क्षेत्र को रणनीतिक रूप से विकसित किया है।
    • व्लादिवोस्तोक, खाबरोवस्क, उलान-उडे, चिता और अन्य शहरों के तेज़ी से आधुनिकीकरण के साथ रूस का लक्ष्य इस क्षेत्र में अधिक निवेश आकर्षित करना है।
    • चीन और अन्य एशियाई शक्तियों की मदद से आर्थिक संकट और प्रतिबंधों से बचना।

RFE का महत्त्व:

  • इस क्षेत्र में रूस का एक-तिहाई क्षेत्र शामिल है और यह मछली, तेल, प्राकृतिक गैस, लकड़ी, हीरे तथा अन्य खनिजों जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है।
  • इस क्षेत्र में रहने वाली छोटी आबादी को सुदूर पूर्व में प्रवास करने और काम करने के लिये प्रोत्साहित करने का एक अन्य कारक है।
  • इस क्षेत्र की संपत्ति और संसाधन रूस के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 5% योगदान करते हैं।
    • लेकिन सामग्री की प्रचुरता और उपलब्धता के बावजूद कर्मियों की अनुपलब्धता के कारण उनकी खरीद और आपूर्ति एक समस्या है।
  • RFE भौगोलिक रूप से एक रणनीतिक अवस्थिति के रूप में है, जो एशिया में प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।

फोरम का भारत के लिये महत्त्व:

  • भारत RFE में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है। फोरम में भारत ने रूस में व्यापार, संपर्क और निवेश के विस्तार के लिये अपनी तत्परता व्यक्त की।
  • भारत ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स, समुद्री संपर्क, स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन, हीरा उद्योग और आर्कटिक में अपने सहयोग को मज़बूत करने का इच्छुक है।
    • वर्ष 2019 में भारत ने इस क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिये 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की लाइन ऑफ क्रेडिट की पेशकश की।
  • EEF के माध्यम से भारत का लक्ष्य रूस के साथ मज़बूत अंतर-राज्यीय संपर्क स्थापित करना है।
    • गुजरात और सखा गणराज्य (रूस) के व्यापार प्रतिनिधियों ने हीरा एवं फार्मास्यूटिकल्स उद्योग में समझौते किये हैं।

भारत EEF और IPEF के बीच संतुलन:

  • चूँकि EEF के लिये म्याँमार, आर्मेनिया, रूस और चीन जैसे देशों का एक साथ आना अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में प्रतिबंध-विरोधी समूह के गठन की तरह लगता है, इसलिये दोनों मंचों, EEF और अमेरिका के नेतृत्व वाले इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) में भारत के निहित स्वार्थ हैं।
  • भारत वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के बावजूद रूस द्वारा शुरू किये गए EEF में निवेश करने से पीछे नहीं हट रहा है, जबकि पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाया है।
  • वहीं भारत ने IPEF के चार में से तीन स्तंभों की पुष्टि कर अपनी स्वीकृति दे दी है।
  • भारत RFE के विकास में शामिल होने के लाभों को समझता है लेकिन यह IPEF को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में भी मानता है।
  • IPEF चीन के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी या ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी के लिये व्यापक और प्रगतिशील समझौते जैसे अन्य क्षेत्रीय समूहों का हिस्सा बने बिना भारत के लिये इस क्षेत्र में कार्य करने का एक आदर्श अवसर प्रदान करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न. भारत निम्नलिखित में से किसका सदस्य है? (2015)

  1. एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग
  2. दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ
  3. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) भारत इनमें से किसी का भी सदस्य नहीं है

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • वर्ष 1989 में स्थापित एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) न्यूनतम पात्रता निर्धारित करता है कि सदस्य बनने के लिये देशों को प्रशांत महासागर के साथ सीमा साझा करनी चाहिये। भारत इसका सदस्य नहीं है और नवंबर 2011 में पहली बार पर्यवेक्षक बनने के लिये आमंत्रित किया गया था। यह 21 सदस्यीय निकाय है। अतः 1 सही नहीं है।
  • वर्ष 1961 में स्थापित दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ (आसियान/ ASEAN) क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जिसमें दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देश शामिल हैं, जो अंतर-सरकारी सहयोग को बढ़ावा देता है और अपने सदस्यों एवं एशिया के अन्य देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य, शैक्षिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक एकीकरण की सुविधा प्रदान करता है। भारत दक्षिण एशिया में स्थित है तथा आसियान का सदस्य नहीं है। अतः 2 सही नहीं है।
  • वर्ष 2005 में स्थापित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) भारत-प्रशांत क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों पर रणनीतिक बातचीत एवं सहयोग के लिये 18 सदस्यीय राज्य निकाय है। इसमें 8 सदस्यों-ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के सदस्य देश शामिल हैं। अत: कथन 3 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा सौदों पर भारत-अमेरिका रक्षा सौदों का क्या महत्त्व है? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), ग्रामीण विकास मंत्रालय, गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल), सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011, ग्राम सभा और जियो-टैगिंग।

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)’, जो कि एक प्रमुख ग्रामीण आवास योजना है, को पूरा करने में किसी भी देरी के लिये दंड का प्रावधान किया है।

दंड प्रावधान की आवश्यकता:

  • परिचय:
    • जुर्माना राज्य सरकार पर लगाया जाएगा। यदि आवास जारी होने की तिथि से एक माह से अधिक समय तक आवास की स्वीकृति में विलंब होता है तो राज्य सरकार पर विलंब के पहले माह के लिये 10 रुपए प्रति आवास तथा बाद के प्रत्येक माह के विलंब हेतु प्रति आवास 20 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा।
    • इसी प्रकार यदि लाभार्थी को देय प्रथम किश्त स्वीकृति की तिथि से सात दिन से अधिक विलंबित होती है, तो राज्य सरकारों को प्रति आवास प्रति सप्ताह 10 रुपए अतिरिक्त भुगतान करना होगा।
    • यदि राज्य के पास केंद्रीय निधि उपलब्ध नहीं है तो कोई जुर्माना नहीं लगाया जाएगा।
  • आवश्यकता:
    • अधिक फोकस करना: कोविड-19 के कारण योजना के कार्यान्वयन में सुस्ती देखी गई थी, इसलिये केंद्र सरकार दंड लगाकर यह सुनिश्चित कर रही है कि राज्य कार्यक्रम पर अधिक ध्यान दें।
    • राज्य सरकारों के मुद्दे: असम के साथ पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा प्रमुख चार पिछड़े राज्य हैं जो अपने लक्ष्य से बहुत पीछे हैं।
      • इसके अलावा पश्चिम बंगाल सरकार ने इस योजना को "बांग्ला आवास योजना" के रूप में पुनः लॉन्च किया, इस कारण केंद्र सरकार ने योजना के लिये धन रोक दिया।

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण:

  • संबंधित मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय।
  • उद्देश्य: मार्च 2022 के अंत तक सभी ग्रामीण परिवार जो बेघर हैं या कच्चे या जीर्ण-शीर्ण घरों में रह रहे हैं, को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्का घर उपलब्ध कराना।
    • गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवन व्यतीत कर रहे ग्रामीण परिवारों को आवासीय इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों के उन्नयन हेतु पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करना।
  • लाभार्थी: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित लोग, मुक्त बंधुआ मज़दूर और गैर-एससी/एसटी वर्ग, विधवा महिलाएँ, रक्षाकर्मियों के परिजन, पूर्व सैनिक तथा अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, विकलांग व्यक्ति एवं अल्पसंख्यक।
  • लाभार्थियों का चयन: तीन चरणों- सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011, ग्राम सभा, और भू-टैगिंग के सत्यापन के माध्यम से
  • लागत साझा करना: यूनिट सहायता की लागत मैदानी क्षेत्रों में 60:40 और उत्तर-पूर्वी तथा पहाड़ी राज्यों के लिये 90:10 के अनुपात में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझा की जाती है।
  • विशेषताएँ:
    • मैदानी राज्यों में यूनिट सहायता को 70,000 रुपए से बढ़ाकर 1.20 लाख रुपए और पहाड़ी राज्यों में 75,000 रुपए से बढ़ाकर 1.30 लाख रुपए कर दिया गया है।
    • स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G), मनरेगा या वित्तपोषण के किसी अन्य समर्पित स्रोत के साथ अभिसरण के माध्यम से शौचालयों के निर्माण के लिये सहायता का लाभ उठाया जाएगा।
  • प्रदर्शन:
    • योजना के तहत सरकार ने 2.95 करोड़ आवासों का लक्ष्य रखा है तथा अगस्त 2022 तक 2.02 करोड़ घरों का निर्माण किया जा चुका है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण गरीबों की आजीविका के विकल्पों में कैसे सुधार करता है? (2012)

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग और कृषि व्यवसाय केंद्र तथा बड़ी संख्या में नए विनिर्माण स्थापित कर।
  2. 'स्वयं सहायता समूहों' को मज़बूती तथा कौशल विकास प्रदान कर।
  3. बीज, उर्वरक, डीज़ल पंप-सेट की आपूर्ति करके और किसानों को सूक्ष्म सिंचाई उपकरण नि:शुल्क प्रदान कर।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित एक गरीबी उन्मूलन परियोजना है। यह योजना स्वरोज़गार को बढ़ावा देने और ग्रामीण गरीबों के संगठन पर केंद्रित है। इस कार्यक्रम के पीछे मूल विचार गरीबों को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) में संगठित करना और उन्हें स्वरोज़गार के लिये सक्षम बनाना है।
  • NRLM के स्तंभ:
    • गरीबों हेतु मौजूदा आजीविका विकल्पों को बढ़ाना और उनका विस्तार करना,
    • साथ ही बाहर नौकरी के लिये कौशल का निर्माण करना,
    • स्वरोज़गार और उद्यमियों का पोषण करना। अत: कथन 2 सही है।
  • मिशन न तो बड़ी संख्या में नए विनिर्माण उद्योगों की स्थापना, न ही ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि व्यवसाय केंद्र पर ध्यान केंद्रित करता है। इसका उद्देश्य बीज, उर्वरक, डीज़ल पंप-सेट और सूक्ष्म सिंचाई उपकरण की आपूर्ति करना नहीं है। अतः कथन 1 और 3 सही नहीं हैं।

अतः विकल्प (b) सही है।


प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएँ प्रदान करने का आधार (PURA) संपर्क स्थापित करने में निहित है। टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

पुनर्गठित राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद (NMDPC) की पहली बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद (NMDPC), CDSCO, FDI, PLI, चिकित्सा उपकरण पार्क, NABL प्रत्यायन, चिकित्सा उपकरण नियम, 2017, राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति 2022

मेन्स के लिये:

भारत के चिकित्सा उपकरण उद्योग के संबंध में चुनौतियाँ और मुद्दे, भारत के चिकित्सा उपकरण उद्योग को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पुनर्गठित राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद (NMDPC) की पहली बैठक में चिकित्सा प्रौद्योगिकी (Medical Technology-MedTech) उद्योग के महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है।

प्रमुख बिंदु

NMDPC की प्रमुख सिफारिशें:

  • लेबलिंग प्रावधानों को सुसंगत बनाना:
    • लाइसेंस प्राप्त चिकित्सा उपकरणों के लिये कानूनी माप विज्ञान (पैकेज की गई वस्तु) नियम, 2011 के तहत चिकित्सा उपकरणों की लेबलिंग के प्रावधानों को चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 के सुसंगत बनाने की आवश्यकता है।
  • चिकित्सा उपकरण पार्क में निवेश:
    • चिकित्सा उपकरण उद्योग संघों के प्रतिनिधियों को राज्यों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने के लिये प्रोत्साहित किया गया था, जिन्हें सामान्य बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु विभाग द्वारा चिकित्सा उपकरण पार्क स्वीकृत किये गए थे, साथ ही घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये प्रस्तावित पार्कों में निवेश किया गया।
  • नेशनल चिकित्सा प्रौद्योगिकी एक्सपो, 2022 में सक्रिय भागीदारी:
    • भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग की ताकत और क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिये प्रस्तावित नेशनल चिकित्सा प्रौद्योगिकी/मेडटेक एक्सपो, 2022 हेतु उद्योग का समर्थन भी मांगा गया था।
  • अधिक प्रमाणित चिकित्सा उपकरण परीक्षण प्रयोगशालाओं की आवश्यकता:
    • मानक परीक्षण के लिये देश के विभिन्न क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं सहित पर्याप्त सामान्य बुनियादी ढांचा होना चाहिये।
  • पोस्ट-मार्केट निगरानी प्रणाली और चिकित्सा उपकरण रजिस्ट्री:
    • प्रत्यारोपण के प्रदर्शन का आकलन करने के लिये विशेष रूप से प्रत्यारोपण कराने वाले रोगी का पता लगाने हेतु एक मज़बूत आईटी सक्षम फीडबैक संचालित पोस्ट-मार्केट निगरानी प्रणाली तथा चिकित्सा उपकरण रजिस्ट्री होनी चाहिये।
  • नए नियामक के लिये नया कानून:
  • अनुसंधान संबद्ध प्रोत्साहन (RLI) योजना:
    • समिति ने विभाग के लिये पीएलआई स्कीम के अनुरूप आरएलआई स्कीम शुरू करने की सिफारिश की।
  • चिकित्सा उपकरण अधिकारियों की दक्षता बढ़ाना:
    • मंत्रालय को राज्य सरकारों के साथ समन्वय में काम करना चाहिये और स्थानीय चिकित्सा उपकरण अधिकारियों को आवश्यक कौशल प्रदान करना चाहिये।
  • एकल खिड़की समाशोधन मंच (Single window clearing platform):
    • विनिर्माण, निर्यात, आयात तथा लाइसेंस के आवेदन हेतु एक ‘एकल खिड़की समाशोधन मंच’ स्थापित किया जाना चाहिये जो चिकित्सा उपकरणों के नियमन में शामिल इन सभी निकायों को भी एकीकृत करेगा।
      • मंत्रालय को चिकित्सा उपकरणों के नियमन के लिये प्रस्तावित नए पृथक अधिनियम में इस तरह की एक व्यापक "एकल खिड़की समाशोधन/अनुमोदन प्रणाली" को शामिल करना चाहिये।

राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद (NMDPC):

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद (NMDPC) की अध्यक्षता रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्युटिकल विभाग के सचिव द्वारा की जाती है।
      • इसमें हितधारक विभागों सदस्य होते हैं जिनका इस क्षेत्र के विकास पर प्रभाव पड़ता है।
      • इसके अलावा इसमें भारत में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले कई चिकित्सा उपकरण उद्योग संघों का प्रतिनिधित्व है।
  • महत्त्व:
    • एनएमडीपीसी के आगे चलकर चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र से संबंधित सभी मुद्दों के लिये एक जीवंत मंच बनने की उम्मीद है, जो सामाजिक दायित्वों और भारत की आर्थिक आकांक्षाओं के लिये विशाल संभावनाओं वाला एक उभरता हुआ क्षेत्र है।

स्रोत: द हिंदू


नीतिशास्त्र

दवाओं का नैतिक विपणन

मेन्स के लिये:

उत्पादों का नैतिक विपणन, मानव क्रियाओं में नैतिकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (The Central Board for Direct Taxes-CBDT) ने डोलो-650 टैबलेट के निर्माताओं पर दवा लिखने हेतु डॉक्टरों को फ्रीबीज (मुफ्त उपहार) देने के लिये 1,000 करोड़ रुपए खर्च करने का आरोप लगाया है।

दवा विपणन में फ्रीबीज:

  • परिचय:
    • दवा निर्माण कंपनियों को 'उपहार देने' का प्रयास करते हुए देखा गया है: अपने उत्पाद विपणन के लिये डॉक्टरों को मुफ्त रात्रिभोज और दवा के नमूनों से लेकर प्रचारक माल तक मुफ्त उपहार प्रदान करना।
      • अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये फार्मा कंपनियाँ डॉक्टरों द्वारा आयोजित सम्मेलनों में कथित तौर पर उनके लिये पाँच सितारा होटलों, स्थानीय दर्शनीय स्थलों आदि में आवास की व्यवस्था करती हैं।
    • यह गंभीर रैकेट है जो दवा (फार्मा) कंपनियों को विपणन की आड़ में अपनी-अपनी दवाओं को आगे बढ़ाने के लिये डॉक्टरों को 'उपहार' प्रदान करतें है।
  • फार्मा कंपनी का पक्ष:
    • दवा कंपनियाँ डॉक्टरों को ब्रांडेड स्मृति चिह्न जैसे- पेन स्टैंड, कैलेंडर, डायरी या सैनिटाइज़र प्रदान करेंगी।
      • इसके पीछे यह सुनिश्चित करने का विचार है कि उनके ब्रांड्स को सबसे पहले याद किया जाए।
      • भारतीय बाज़ार कीमत नियंत्रित है। इसलिये यहाँ ब्रांड महत्त्व कम है।
    • हालाँकि ये प्रथाएँ यह सुनिश्चित नहीं करती हैं कि डॉक्टर उनकी दवाएँ लिखेंगे। यह सिर्फ एक विपणन/मार्केटिंग रणनीति है।
    • उपहार में दी जा रही लगभग 95% वस्तुओं की कीमत 500 रुपए से कम है।
      • यह रिश्वत को बढ़ावा नहीं देता है बल्कि यह एक समान मूल्य के सैकड़ों अन्य ब्रांड के बीच डॉक्टर को याद दिलाने के लिये किया जाता है।
  • ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क का पक्ष:
    • नैतिक विपणन और प्रचार-प्रसार के लिये तैयार किये जा रहे नए औषधि, चिकित्सा उपकरण और सौंदर्य प्रसाधनों को अधिनियम के दायरे में लाया जाना चाहिये।
    • यह देखा गया है कि अक्सर डॉक्टरों को नैदानिक परीक्षणों में प्रमुख जाँचकर्त्ता बना दिया जाता है, या उन समितियों का हिस्सा बना दिया जाता है जिनके लिये वे मोटी फीस कमाते हैं।

यूनिफॉर्म कोड फॉर फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज़ (UCPMP)

  • परिचय:
    • यह दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के संवर्द्धन तथा विपणन के लिये दवा उद्योग हेतु दिसंबर 2014 में केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
    • हालाँकि ये दिशा-निर्देश स्वैच्छिक सहिंता हैं और कंपनियों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।
  • महत्त्व:
    • यह सहिंता फार्मास्यूटिकल कंपनियों को उनके विपणन व्यवहारों में आचरण को नियंत्रित करती है, जिसमें चिकित्सा प्रतिनिधि, पाठ्य और श्रव्य-दृश्य प्रचार सामग्री, नमूने, उपहार आदि जैसे विभिन्न पहलुओं को विधिवत शामिल किया गया है।
    • कोड स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ संबंध स्थापित करता है, जिसमें चिकित्सकों या उनके परिवारों को यात्रा सुविधाओं, आतिथ्य और नकद या मौद्रिक अनुदान से संबंधित विस्तृत प्रावधान किये गए हैं।
  • मुख्य प्रावधान:
    • यूसीपीएमपी के क्लॉज 7.2 के अनुसार, "कंपनियां या उनके संघ/प्रतिनिधि किसी भी बहाने से स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सकों और उनके परिवार के सदस्यों को होटल आवास जैसी कोई आतिथ्य प्रदान नहीं करेंगे"।
    • सक्षम प्राधिकारी द्वारा विपणन अनुमोदन प्राप्त करने से पहले किसी दवा को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिये।
      • दवा का प्रचार विपणन अनुमोदन की शर्तों के अनुरूप होना चाहिये।
    • किसी दवा कंपनी द्वारा दवाओं को निर्धारित करने या आपूर्ति करने के लिये योग्य व्यक्तियों को कोई उपहार, आर्थिक लाभ या अन्य लाभ प्रदान नहीं किया जा सकता है।
    • स्वास्थ्य पेशेवरों और परिवार के सदस्यों के व्यक्तिगत लाभ के लिये भी उपहार प्रदान नहीं किये जाने चाहिये।

आगे की राह

  • यदि डॉक्टरों को अनैतिक रूप से दवा ब्रांडों को बढ़ावा देने का दोषी पाया जाता है, तो कंपनियों को उसी प्रकार दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना होगा जैसा कि रिश्वत और इसी तरह की अन्य अनैतिक प्रथाओं के लिये भारतीय दंड संहिता में वर्णित है।
  • सरकार को यह अनिवार्य करना चाहिये कि कंपनियों द्वारा डॉक्टरों और पेशेवर निकायों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अन्य पार्टियों के माध्यम से किये गए भुगतानों का समय-समय पर खुलासा जनता के समक्ष सुलभ हो। प्रकटीकरण में राशि, व्यय का उद्देश्य और भुगतान पाने वाली पार्टी की जानकारी शामिल होनी चाहिये।
  • यूसीपीएमपी को कंपनियों के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी होना चाहिये। वर्तमान संहिताओं के पास कंपनियों को दंडित करने की न तो शक्ति है और न ही प्रोत्साहन।
    • स्वैच्छिक कोड को लागू करने की ज़िम्मेदारी फार्मा संघों की है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


नीतिशास्त्र

असिस्टेड सुसाइड और यूथनेशिया

मेन्स के लिये:

असिस्टेड सुसाइड और यूथनेशिया तथा संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फ्रांँसीसी न्यू वेव सिनेमा के दिग्गजों में से एक जीन-ल्यूक गोडार्ड की 91 वर्ष की आयु में असिस्टेड सुसाइड के कारण मृत्यु हो गई।

असिस्टेड सुसाइड:

  • परिचय:
    • असिस्टेड सुसाइड और यूथनेशिया/इच्छा मृत्यु दोनों ऐसी प्रथाएँ हैं जिनके तहत एक व्यक्ति जान-बूझकर दूसरों की सक्रिय सहायता से अपना जीवन समाप्त करता है।
    • कई यूरोपीय राष्ट्र, ऑस्ट्रेलिया के कुछ राज्य और दक्षिण अमेरिका में कोलंबिया कुछ परिस्थितियों में असिस्टेड सुसाइड एवं यूथनेशिया की अनुमति देते हैं।
  • प्रकार:
    • सक्रिय/एक्टिव:
      • सक्रिय यूथनेशिया, जो केवल कुछ देशों में वैध है, रोगी के जीवन को समाप्त करने के लिये पदार्थों के उपयोग पर ज़ोर देती है।
    • निष्क्रिय/पैसिव:
      • इसमें रोगी या परिवार के किसी सदस्य या रोगी का प्रतिनिधित्व करने वाले करीबी दोस्त की सहमति से जीवन रक्षक उपचार या चिकित्सा हस्तक्षेप को रोकना शामिल है।

असिस्टेड सुसाइड के पक्ष और विपक्ष में तर्क:

  • पक्ष:
    • चयन का अधिकार:
      • लोगों का तर्क है कि व्यक्ति को अपनी पसंद/चयन बनाने में सक्षम होना चाहिये।
    • जीवन स्तर:
      • केवल व्यक्ति ही वास्तव में जानता है कि वह कैसा महसूस करता है और बीमारी व लंबी मृत्यु का शारीरिक तथा भावनात्मक दर्द उसके जीवन की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करता है।
    • गरिमा:
      • प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने में सक्षम होना चाहिये।
    • साधन:
      • यह अत्यधिक कुशल कर्मचारियों, उपकरणों, अस्पताल के बिस्तरों, और दवाओं जैसे संसाधन जीवन रक्षक उपचारों की दिशा में उन लोगों के लिये अधिक उपयुक्त है जो जीवित रहना चाहते हैं, न कि उन लोगों के लिये जो जीना नहीं चाहते हैं।
    • मानवीय:
      • यह अधिक मानवीय है कि किसी व्यक्ति को उस पीड़ा को समाप्त करने के लिये चुनने की अनुमति दी जाए या उसे असाध्य पीड़ा हो।
    • प्रियजन:
      • यह प्रियजनों के दुख और पीड़ा को कम करने में मदद कर सकता है।
  • विपक्ष:
    • नैतिक और धार्मिक तर्क:
      • कई धर्म यूथनेशिया को हत्या और नैतिक रूप से अस्वीकार्य के रूप में देखते हैं। कुछ धर्मों में आत्महत्या भी "अवैध" है। नैतिक रूप से, एक तर्क है कि यूथनेशिया जीवन की पवित्रता के लिये समाज के सम्मान को कमज़ोर कर देगी।
    • रोगी क्षमता:
      • यूथनेशिया केवल स्वैच्छिक है यदि रोगी उपलब्ध विकल्पों और परिणामों की स्पष्ट समझ के साथ मानसिक रूप से सक्षम है तथा उस समझ को व्यक्त करने की क्षमता एवं अपने स्वयं के जीवन को समाप्त करने की उसकी इच्छा है। क्षमता का निर्धारण या इसे परिभाषित करना सरल नहीं है।
    • अपराध बोध:
      • मरीज़ो को लग सकता है कि वे संसाधनों पर बोझ हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से सहमति के लिये दबाव डाला जाता है। उन्हें लग सकता है कि उनके परिवार पर आर्थिक, भावनात्मक और मानसिक बोझ बहुत अधिक है।
    • जोखिम:
      • यहाँ एक जोखिम है कि चिकित्सक असिस्टेड सुसाइड उन लोगों के लिये उपयोग करते हैं जो गंभीर रूप से बीमार हैं और असहनीय पीड़ा के कारण, यूथनेशिया चाहते हैं, लेकिन बाद में इसका दुर्पयोग भी किया जा सकता है।
    • विनियमन: यूथनेशिया को ठीक से विनियमित नहीं किया जा सकता है।

भारत असिस्टेड सुसाइड  या यूथनेशिया की अनुमति:

  • एक ऐतिहासिक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में निष्क्रिय/पैसिव यूथनेशिया को यह कहते हुए वैध कर दिया कि यह 'जीवित इच्छा' का मामला था।
  • निर्णय के अनुसार, अपने चेतन मन में एक वयस्क को चिकित्सा उपचार से इनकार करने या कुछ शर्तों के तहत प्राकृतिक तरीके से मृत्यु को प्राप्त करने के लिये स्वेच्छा से चिकित्सा उपचार नहीं लेने का निर्णय करने की अनुमति है।
  • न्यायालय ने 'लिविंग विल' के लिये दिशा-निर्देशों का एक सेट निर्धारित किया और निष्क्रिय यूथनेशिया तथा यूथनेशिया को भी परिभाषित किया।
  • इसने मानसिक रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाए गए 'लिविंग विल' के लिये दिशा-निर्देश भी निर्धारित किये, जो पहले से ही स्थायी वेजेटेटिव स्टेट (vegetative state) में जाने की संभावना के बारे में जानते हैं।
  • न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि ऐसे मामलों में रोगी के अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के दायरे से बाहर नहीं होंगे।
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला मार्च 2011 में एक अलग याचिका पर अपने फैसले के अनुसार था।
  • अरुणा शानबाग की ओर से दाखिल एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने उस नर्स के लिये निष्क्रिय यूथनेशिया की अनुमति दी थी, जिसने दशकों तक एक वनस्पति अवस्था में बिताया था। शानबाग केस भारत में मरने के अधिकार और यूथनेशिया की वैधता पर बहस का केंद्र बन गया था।
    • एक वेजेटेटिव स्टेट तब होती है जब कोई व्यक्ति जाग रहा होता है लेकिन जागरूकता के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।
  • हालाँकि वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने निष्क्रिय यूथनेशिया पर पहले के फैसलों में विसंगतियों का हवाला दिया, जिसमें शानबाग मामले में दिये गए कुछ निर्णय भी शामिल था और इन मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रीन फिन्स हब

प्रिलिम्स के लिये: 

ग्रीन फिन्स हब, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), प्रवाल भित्ति, तटीय और समुद्री पर्यटन, सस्टेनेबल टूरिज़्म, ब्लू इकॉनमी, सस्टेनेबल ब्लू इकॉनमी फाइनेंस इनिशिएटिव, डीप ओशन मिशन, ओ-स्मार्ट, इंटीग्रेटेड कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट।

मेन्स के लिये:

ग्रीन फिन्स हब और इसका महत्त्व, सतत् तटीय और समुद्री पर्यटन, चुनौतियाँ एवं पहल को बढ़ावा देना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने यूके स्थित चैरिटी रीफ-वर्ल्ड फाउंडेशन के साथ मिलकर ग्रीन फिन्स हब लॉन्च किया।

  • ग्रीन फिन्स हब दुनिया भर में डाइविंग और स्नॉर्कलिंग ऑपरेटरों के लिये वैश्विक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।

ग्रीन फिन्स

  • परिचय:
    • ग्रीन फिन्स द रीफ-वर्ल्ड फाउंडेशन और UNEP द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वित संरक्षण प्रबंधन दृष्टिकोण है जो समुद्री पर्यटन से जुड़े नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों में औसत दर्जे की कमी को प्रदर्शित करता है।
    • मूल रूप से वर्ष 2004 में थाईलैंड में स्थापित ग्रीन फिन्स दृष्टिकोण डाइविंग और स्नॉर्कलिंग पर्यटन उद्योग में सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने तथा कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिये एक उपकरण है।
  • लक्ष्य:
    • इसका उद्देश्य स्थायी डाइविंग और स्नॉर्कलिंग को बढ़ावा देने वाले पर्यावरण के अनुकूल दिशा-निर्देशों के माध्यम से प्रवाल भित्तियों की रक्षा करना है।
    • यह समुद्री पर्यटन के लिये एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पर्यावरण मानक प्रदान करता है और इसकी मज़बूत मूल्यांकन प्रणाली अनुपालन को मापती है।

ग्रीन फिन्स हब

  • परिचय:
    • ग्रीन फिन्स हब अब तक का पहला वैश्विक समुद्री पर्यटन उद्योग मंच है।
    • यह स्थायी समुद्री पर्यटन को 'बढ़ावा' देगा।
    • इसके 14 देशों के लगभग 700 ऑपरेटरों से दुनिया भर में संभावित 30,000 ऑपरेटरों तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • महत्त्व:
    • इसका उद्देश्य ग्रीन फिन्स सदस्यता के माध्यम से समुद्री पर्यटन क्षेत्र में स्थिरता की दिशा में भूकंपीय बदलाव को उत्प्रेरित करना है।
    • प्रवाल भित्तियाँ कम-से-कम 25% समुद्री जीवन का घर हैं, समुद्री-संबंधित पर्यटन के लिये मक्का है, कुछ द्वीप राष्ट्रों में सकल घरेलू उत्पाद में 40% या उससे अधिक का योगदान करते हैं। हालाँकि वे सबसे कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र हैं, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के लिये 1.5 या 20C के वैश्विक तापमान वृद्धि के बीच प्रवाल भित्ति अस्तित्व में है।
      • ग्रीन फिन्स हब के माध्यम से सर्वोत्तम अभ्यास, ज्ञान और नागरिक विज्ञान की बढ़ती पहुँच प्रवाल भित्तियों तथा अन्य नाजुक समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों के भविष्य को सुनिश्चित करने में एक गेम चेंजर हो सकती है।
    • प्लेटफॉर्म दुनिया भर में डाइविंग और स्नॉर्कलिंग ऑपरेटरों द्वारा परीक्षण किये गए समाधानों का उपयोग करके अपनी दैनिक प्रथाओं में सरल, लागत प्रभावी परिवर्तन करने में मदद करेगा।
      • यह उन्हें अपने वार्षिक सुधारों पर नज़र रखने और अपने समुदायों तथा ग्राहकों के साथ संवाद करने में भी मदद करेगा।

सतत् तटीय और समुद्री पर्यटन:

  • सतत् पर्यटन का तात्पर्य पर्यटन उद्योग की सतत् कार्यप्रणाली से है। यह मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों पर हरित पर्यटन क्षेत्र के मुद्दों को संबोधित करता है।
    • संयुक्त राज्य के अनुसार,सतत् पर्यटन में निम्नलिखित को शामिल किया जाना चाहिये:
      • पर्यावरणीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग करें जो पर्यटन विकास में एक प्रमुख तत्त्व का गठन करते हैं, आवश्यक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखते हैं और प्राकृतिक विरासत एवं जैवविविधता के संरक्षण में मदद करते हैं।
      • मेज़बान समुदायों की सामाजिक-सांस्कृतिक प्रामाणिकता का सम्मान करें, उनकी निर्मित और जीवित सांस्कृतिक विरासत तथा पारंपरिक मूल्यों का संरक्षण करें एवं अंतर-सांस्कृतिक समझ व सहिष्णुता में योगदान करें।
      • व्यवहार्य, दीर्घकालिक आर्थिक संचालन सुनिश्चित करना, सभी हितधारकों को सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करना जो उचित रूप से वितरित हो, जिसमें स्थिर रोज़गार और आय-अर्जन के अवसर तथा समुदायों की मेज़बानी के लिये सामाजिक सेवाएँ व गरीबी उन्मूलन में योगदान करना शामिल है।
  • तटीय और समुद्री पर्यटन (सीएमटी) कुल वैश्विक पर्यटन का कम-से-कम 50% हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। यह अधिकांश छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) और कई तटीय राज्यों के लिये सबसे बड़ा आर्थिक क्षेत्र है।
    • 5 फ़ीसदी की अनुमानित वैश्विक विकास दर से तटीय और समुद्री पर्यटन के वर्ष 2036 तक 26 फीसदी के साथ समुद्री अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा मूल्यवर्द्धित खंड बनने की उम्मीद है

तटीय और समुद्री पर्यटन से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • प्राकृतिसंपत्तियों का निरंतर ह्रास और अपकर्षण इस पर भरोसा करने वाले स्थानीय समुदायों के साथ-साथ उद्योग की स्थिरता एवं व्यवहार्यता को जोखिम में डाल रहा है।
  • कोविड -19 महामारी ने पर्यटन उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया। वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज़्म काउंसिल ने लगभग 75 मिलियन नौकरियों के नुकसान तथा वैश्विक स्तर पर $ 2 ट्रिलियन से अधिक की पर्यटन-प्रेरित जीडीपी में कमी का अनुमान लगाया है।
  • तापमान में वृद्धि, अधिक लगातार पर्यावरणीय घटनाओं, जल की कमी और समुद्र के स्तर में वृद्धि (SLR) के माध्यम से जलवायु परिवर्तन उच्च मानवजनित भेद्यता वाले तटीय क्षेत्रों को दृढ़ता से प्रभावित करेगा।

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तटीय और समुद्री पर्यटन की दिशा में अन्य पहल

  • वैश्विक पहल:
    • ग्लोबल सस्टेनेबल टूरिज्म काउंसिल (GSTC) और वर्ल्ड वाइल्ड फंड (WWF) प्रकृति-सकारात्मक पर्यटन बनाने के लिये होटल, क्रूज़ जहाज़ो, टूर ऑपरेटरों और उद्योग के साथ साझेदारी कर रहे है जहाँ सभी आपूर्ति शृंखला अभिकर्त्ताओं, प्रकृति और व्यवसायों के लिये मूल्य बनाने के लिये एकजुट होते हैं।
    • सस्टेनेबल ब्लू इकोनॉमी फाइनेंस इनिशिएटिव संयुक्त राष्ट्र द्वारा विनियमित वैश्विक समुदाय है, जो कि सस्टेनेबल ब्लू इकोनॉमी फाइनेंस प्रिंसिपल्स के कार्यान्वयन का समर्थन करते हुए, निजी वित्त और महासागर स्वास्थ्य के बीच प्रतिच्छेदन पर केंद्रित सहयोग करता है।
      • सस्टेनेबल ब्लू इकोनॉमी फाइनेंस प्रिंसिपल्स महासागर अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिये मूलभूत आधारशिला हैं। इसे वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया जो बैंकों, बीमाकर्त्ताओं और निवेशकों से मिलकर सतत् ब्लू इकोनॉमी को वित्तपोषित करने हेतु दुनिया का पहला वैश्विक मार्गदर्शक ढाँचा है। वे SDG 14 (जल के नीचे जीवन) के कार्यान्वयन को बढ़ावा देते हैं, और महासागर-विशिष्ट मानकों को निर्धारित करते हैं।
    • ओशन रिकवरी एलायंस एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के सहयोग से UNEP और विश्व पर्यटन संगठन के नेतृत्व में ग्लोबल टूरिज़्म प्लास्टिक इनिशिएटिव का हस्ताक्षरकर्त्ता बन गया है।
      • ग्लोबल टूरिज़्म प्लास्टिक इनिशिएटिव का उद्देश्य पर्यटन कार्यों में प्लास्टिक की चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर एक बदलाव को बढ़ावा देकर प्लास्टिक प्रदूषण से निपटना है, जहाँ प्लास्टिक कभी भी बेकार नहीं जाता है, बल्कि सभी पर्यटन गतिविधियों से प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म करना है।
  • भारतीय पहलें:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. विश्व की अधिकांश प्रवाल भित्तियाँ उष्णकटिबंधीय जल में मौजूद हैं।
  2. विश्व की एक-तिहाई से अधिक प्रवाल भित्तियाँ ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस के क्षेत्रों में स्थित हैं।
  3. प्रवाल भित्तियाँ उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की तुलना में कहीं अधिक संख्या में जंतुओं की मेज़बानी करती हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D

व्याख्या:

  • प्रवाल भित्तियाँ बड़ी पानी के भीतर की संरचनाएँ हैं जो कोरल के कंकालों से बनी होती हैं, जो समुद्री अकशेरुकी जानवर हैं। प्रवाल भित्तियाँ या मूंँगे की चट्टानें (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं। कैल्शियम कार्बोनेट से निर्मित एक कठोर, टिकाऊ एक्सोस्केलेटन होता और जो मूँगों के नरम, शरीर की रक्षा करता है। अन्य स्थितियों के अलावा, प्रवाल भित्तियों को समुद्र के तापमान (20 से 28 डिग्री सेल्सियस) की आवश्यकता होती है। इसलिए अधिकांश प्रवाल भित्तियाँ उष्णकटिबंधीय जल में पाई जाती हैं। अत: कथन 1 सही है
  • रीफ-बिल्डिंग कोरल पूरे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी अटलांटिक एवं हिंद-प्रशांत महासागरों में आमतौर पर 30° N और 30° S अक्षांशों के भीतर बिखरे हुए हैं। विश्व की तीन-चौथाई से अधिक रीफ-बिल्डिंग कोरल प्रजातियाँ "कोरल ट्राएंगल" के पानी के भीतर पाई जाती हैं, जो उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस व पापुआ न्यू गिनी की चट्टानों को कवर करने वाला क्षेत्र पश्चिम में इंडोनेशिया से पूर्व में सोलोमन द्वीप समूह और उत्तर में फिलीपींस तक फैली हुई है। अत: कथन 2 सही है।
  • प्रवाल भित्तियों में उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में पाए जाने वाले लोगों की तुलना में बहुत अधिक एनिमल फाइला होता है। उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में 9 की तुलना में 34 मान्यता प्राप्त एनिमल फाइला में से 32 प्रवाल भित्तियों पर पाए जाते हैं। अतः कथन 3 सही है।

अतः विकल्प D सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2022

प्रिलिम्स के लिये:

शंघाई सहयोग संगठन (SCO), अफगानिस्तान, रूस, लचीली आपूर्ति शृंखला, बाजरे का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष, पारंपरिक दवाओं के लिये वैश्विक केंद्र।

मेन्स के लिये:

भारत और शंघाई सहयोग संगठन (SCO)।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2022 उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित किया गया।

  • समरकंद घोषणा पर सदस्य राज्यों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।
  • भारत ने वर्ष 2023 के लिये SCO की अध्यक्षता संँभाली।

शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएंँ:

  • समरकंद घोषणा ने "बातचीत और परामर्श के माध्यम से देशों के बीच मतभेदों और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये प्रतिबद्धता" की वकालत की।
  • संप्रभुता, स्वतंत्रता, राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता, समानता, पारस्परिक लाभ, आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप की बात की गई और इस बात पर ज़ोर दिया गया कि बल के उपयोग की धमकी के लिये पारस्परिक सम्मान के सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सतत विकास के आधार हैं।
  • सदस्य देश आतंकवादियों, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एक एकीकृत सूची बनाने के लिये सामान्य सिद्धांतों तथा दृष्टिकोणों को विकसित करने की योजना बना रहे हैं जिनकी गतिविधियांँ SCO सदस्य राज्यों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं।
  • रूस भी अपनी गैस के निर्यात के लिये अधिक ग्राहकों की तलाश कर रहा है क्योंकि पश्चिमी देश इस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं।
  • रूस ने सुझाव दिया कि संगठन को अपनी बड़ी एथलेटिक प्रतियोगिता आयोजित करने के बारे में सोचना चाहिये।
  • भारतीय परिप्रेक्ष्य:
    • संपर्क: भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों से एक-दूसरे को पारगमन का पूरा अधिकार देने का आग्रह किया, क्योंकि इससे संपर्क बढ़ेगा और क्षेत्र में विश्वसनीय एवं लचीली आपूर्ति शृंखला स्थापित करने में मदद मिलेगी।
    • खाद्य सुरक्षा: पूरी दुनिया एक अभूतपूर्व ऊर्जा और खाद्य संकट का सामना कर रही है, भारत ने बाजरा को बढ़ावा देने तथा खाद्य सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को हल करने की पहल पर ज़ोर दिया।
      • इस संदर्भ में भारत बाजरा को लोकप्रिय बनाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि SCO 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में चिह्नित करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
    • पारंपरिक चिकित्सा पर कार्य समूह: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अप्रैल 2022 में गुजरात में पारंपरिक चिकित्सा के लिये अपना वैश्विक केंद्र खोल
      • WHO द्वारा स्थापित पारंपरिक चिकित्सा के लिये यह पहला और एकमात्र विश्वव्यापी केंद्र था।
    • पर्यटन: लोगों की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत तथा SCO सदस्य राज्यों की पर्यटन क्षमता को बढ़ावा देने के लिये वाराणसी को 2022-2023 के लिये SCO पर्यटन और सांस्कृतिक राजधानी घोषित किया गया था।
      • इसके अलावा यह भारत और SCO सदस्य देशों के बीच पर्यटन, सांस्कृतिक व मानवीय आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा।
    • यह SCO के सदस्य देशों, विशेष रूप से मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ भारत के प्राचीन सभ्यतागत संबंधों को भी रेखांकित करता है।
      • इस प्रमुख सांस्कृतिक आउटरीच कार्यक्रम के ढांँचे के तहत, 2022-23 के दौरान वाराणसी में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा

शंघाई सहयोग संगठन (SCO):

  • परिचय:
    • यह एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसे वर्ष 2001 में बनाया गया था।
    • SCO चार्टर वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित किया गया था और वर्ष 2003 में लागू हुआ।
    • यह एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता बनाए रखना है।
    • इसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है, यह नौ सदस्यीय आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है तथा सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है।
  • आधिकारिक भाषाएँ:
    • रूसी और चीनी।
  • स्थायी निकाय:
  • अध्यक्षता:
    • अध्यक्षता एक वर्ष पश्चात् सदस्य देशों द्वारा रोटेशन के माध्यम से की जाती है।
  • उत्पत्ति:
    • वर्ष 2001 में SCO के गठन से पहले, कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस और ताजिकिस्तान शंघाई फाइव के सदस्य थे।
    • शंघाई फाइव (1996) सीमाओं के सीमांकन और विसैन्यीकरण वार्त्ता की एक शृंखला से उभरा, जिसे चार पूर्व सोवियत गणराज्यों ने चीन के साथ सीमाओं पर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आयोजित किया था।
    • वर्ष 2001 में संगठन में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद शंघाई फाइव का नाम बदलकर SCO कर दिया गया।
    • भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके सदस्य बने।
    • वर्तमान सदस्य: कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान।
    • ईरान 2023 में SCO का स्थायी सदस्य बनने के लिये तैयार है।
      • भारत को वर्ष 2005 में SCO में एक पर्यवेक्षक बनाया गया था और इसने आमतौर पर समूह की मंत्री स्तरीय बैठकों में भाग लिया है जो मुख्य रूप से यूरेशियन क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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