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भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद

  • 15 Dec 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?


चिकित्सा उपकरण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (Department of Industrial Policy and Promotion -DIPP) के तहत राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद (National Medical Devices Promotion Council-NMDPC) का गठन करने की घोषणा की गई है।

चिकित्सा उपकरण उद्योग का महत्त्व

  • चिकित्सा उपकरण उद्योग (Medical Devices Industry- MDI) स्वास्थ्य सुविधा प्रणाली के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और देश के सभी नागरिकों के लिये स्वास्थ्य लक्ष्य प्राप्त करने में अहम है। भारत में इस क्षेत्र में विभिन्न उत्पादों का निर्माण तेज़ी से किया जा रहा है।

संरचना

  • राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद का नेतृत्व औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के सचिव करेंगे।
  • आंध्र प्रदेश का मेडटेक ज़ोन (MedTech Zone) परिषद को तकनीकी समर्थन प्रदान करेगा।

राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन परिषद के कार्यों में शामिल होगा-

  • भारत के चिकित्सा उपकरण उद्योग को प्रोत्साहन और विकास की सुविधा देना।
  • समय-समय पर गोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन करना।
  • एजेंसियों और संबंधित विभागों को तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • चिकित्सा उपकरणों के लिये अंतर्राष्ट्रीय नियम और मानकों के प्रति उद्योग को जागरूक बनाना।
  • राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण संवर्द्धन से संबंधित नीतियों और प्रक्रियाओं के बारे में सरकार को सुझाव देना।


औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग

  • औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग की स्थापना 1995 में हुई थी तथा औद्योगिक विकास विभाग के विलय के साथ वर्ष 2000 में इसका पुनर्गठन किया गया था।
  • इससे पहले अक्तूबर 1999 में लघु उद्योग तथा कृषि एवं ग्रामीण उद्योग (Small Scale Industries & Agro and Rural Industries -SSI&A&RI) और भारी उद्योग तथा सार्वजनिक उद्यम (Heavy Industries and Public Enterprises- HI&PE) के लिये अलग-अलग मंत्रालयों की स्थापना की गई थी।

कार्य एवं भूमिका

  • विकास की आवश्यकता और राष्ट्रीय उद्देश्यों के अनुरूप औद्योगिक विकास के लिये औद्योगिक नीति और रणनीतियों का निर्माण एवं कार्यान्वयन।
  • सामान्य रूप से औद्योगिक विकास की निगरानी करना और विशेष रूप से सभी औद्योगिक एवं तकनीकी मामलों पर सलाह सहित निर्दिष्ट उद्योगों के प्रदर्शन की निगरानी।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment -FDI) नीति का निर्माण करना और FDI को स्वीकृति देना, प्रोत्साहन देना और FDI को सहज बनाना।
  • उद्योग स्तर पर विदेशी प्रौद्योगिकी सहयोग को प्रोत्साहन देना और इसके लिये नीतिगत मानक तैयार करना।
  • पेटेंट, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेतक आदि के लिये हेतु बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत नीतियों का निर्माण।
  • विकास और विनियमन अधिनियम, 1951 के तहत उद्योगों का प्रशासन।
  • औद्योगिक साझेदारी के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सहित औद्योगिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना।

स्रोत : पी.आई.बी एवं DIPP वेबसाइट

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