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डेली न्यूज़

  • 17 Sep, 2021
  • 52 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

यूनाइटेड इन साइंस 2021 : WMO

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने 'यूनाइटेड इन साइंस 2021' (United in Science 2021) शीर्षक नामक एक रिपोर्ट जारी की है।

United-in-Science

प्रमुख बिंदु 

  • जलवायु परिवर्तन :
    • वैश्विक कोविड-19 महामारी से जलवायु परिवर्तन की गति धीमी नहीं हुई है तथा अभी भी दुनिया कार्बन उत्सर्जन में कटौती की अपनी स्थिति में पीछे है।
      • यह वर्ष 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में केवल एक अस्थायी गिरावट का कारण बना है।
      • उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों और अफ्रीका के साहेल क्षेत्र (Sahel Region) में हाल के दिनों की तुलना में 2021–2025 तक अधिक आर्द्र रहने की संभावना है।
    • कटौती के लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा रहा है और इस बात की संभावना बढ़ रही है कि दुनिया पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के पेरिस समझौते के अपने लक्ष्य से पीछे रह जाएगी।
      • इस बात की संभावना बढ़ रही है कि अगले पाँच वर्षों में तापमान अस्थायी रूप से पूर्व-औद्योगिक युग से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक की सीमा को पार कर जाएगा।
  • तापमान:
    • पिछले पाँच वर्षों में औसत वैश्विक तापमान रिकॉर्ड सबसे अधिक था।
    • बढ़ता वैश्विक तापमान अर्थव्यवस्थाओं और समाजों पर बढ़ते प्रभावों के साथ, विश्व भर में विनाशकारी प्रभाव चरम मौसम को बढ़ावा दे रहे हैं।
      • हीट वेव्स, वनाग्नि और खराब वायु गुणवत्ता जैसे जलवायु जोखिम विश्व में मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं, जिसने कमज़ोर आबादी को जोखिम में डाल दिया है।
  • ग्रीनहाउस गैसें:
    • पिछले वर्ष और वर्ष 2021 की पहली छमाही के दौरान वातावरण में प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि जारी रही।
  • जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन:
    • कोयला, गैस, सीमेंट आदि के कारण जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन वर्ष 2019 के स्तर पर वापस आ गया था बल्कि वर्ष 2021 में इससे भी अधिक रहा।
  • समुद्री स्तर:
    • वैश्विक औसत समुद्र स्तर में वर्ष 1900 से 2018 तक 20 सेमी. की वृद्धि देखि गई है। भले ही उत्सर्जन को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक सीमित करने के लिये उत्सर्जन को कम कर दिया गया हो, वैश्विक औसत समुद्र के स्तर में वर्ष 2100 तक 0.3-0.6 मीटर की वृद्धि होने की संभावना है और वर्ष 2300 तक इसमें 0.3-3.1 मीटर तक की वृद्धि हो सकती है।
  • काम के घंटों में कमी:
    • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2000 की तुलना में वर्ष 2019 में संभावित 103 बिलियन से अधिक काम के घंटों में कमी आई है।
      • यह कमी बढ़ते तापमान के कारण गर्मी से संबंधित मृत्यु दर और काम के नुकसान के कारण थी।
  • सुझाव:
    • अधिक देशों को दीर्घकालिक रणनीतियांँ विकसित करनी चाहिये जो वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के अनुरूप हों।
    • शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धताओं (Net-zero commitments) को मज़बूत छोटी अवधि की नीतियों और कार्रवाई द्वारा पूरा किये जाने की आवश्यकता है।
    • उन क्षेत्रों में अनुकूलन रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है विशेष रूप से निचले तटीयक्षेत्र, छोटे द्वीपों, डेल्टा और तटीय शहरों में, जहांँ इनका अभाव होता है।
    • कोविड-19 से  उभरने के प्रयासों (Covid-19 recovery efforts) को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता रणनीतियों के साथ जोड़ा जाना चाहिये ताकि जटिल और व्यापक जलवायु खतरों से जोखिमों को कम किया जा सके और स्वास्थ्य सह-लाभ प्राप्त किया जा सके।

आगे की राह  

  • मौजूदा समय में दुनिया भर के लोगों और उनकी आजीविका की रक्षा करना काफी महत्त्वपूर्ण है, इसके लिये आवश्यक है कि कम-से-कम 50 प्रतिशत सार्वजनिक जलवायु वित्त लचीलेपन का निर्माण और लोगों को अनुकूलित करने हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की जाए।
  • इसके अलावा विभिन्न देशों के बीच एकजुटता की आवश्यकता है, जिसमें विकासशील देशों को जलवायु कार्रवाई में मदद करने हेतु विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त प्रतिज्ञा को पूरा करना भी शामिल है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

15वीं ‘पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन ऊर्जा मंत्रियों की बैठक’

प्रिलिम्स के लिये

दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन

मेन्स के लिये

ऊर्जा ट्रांज़िशन हेतु भारत द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री ने 15वीं ‘पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन ऊर्जा मंत्रियों की बैठक’ में हिस्सा लिया।

  • इस बैठक का विषय था- ‘वी केयर, वी प्रिपेयर, वी प्रॉस्पर’ (We Care, We Prepare, We Prosper)।

प्रमुख बिंदु

  • बैठक के विषय में
    • बैठक का उद्देश्य ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा ट्रांज़िशन के लक्ष्य को आगे बढ़ाने हेतु दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) देशों के प्रयासों का समन्वय करना था, जिससे क्षेत्र के लोगों को अधिकतम लाभ प्रदान किया सके।
    • भारत ने पुष्टि की कि आसियान बहुत ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और आसियान के साथ जुड़ाव भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति का एक अनिवार्य तत्त्व है।
      • ‘एक्ट ईस्ट’ भारत के इंडो-पैसिफिक विज़न का एक केंद्रीय तत्त्व है।
    • भारत ने ऊर्जा ट्रांज़िशन योजनाओं, नीतियों, चुनौतियों और डीकार्बोनाइज़ेशन की दिशा में प्रयासों की मौजूदा स्थिति का संक्षिप्त ब्योरा भी प्रदान किया।

China

पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन:

  • पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के बारे में:
    • वर्ष 2005 में स्थापित, यह भारत-प्रशांत क्षेत्र के समक्ष उत्पन्न होने वाली प्रमुख राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों पर रणनीतिक बातचीत एवं सहयोग हेतु 18 क्षेत्रीय नेताओं (देशों) का एक मंच है।
    • वर्ष 1991 में पहली बार पूर्वी एशिया समूह की अवधारणा को तत्कालीन मलेशियाई प्रधानमंत्री, महाथिर बिन मोहम्मद द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
    • EAS के ढांँचे में  क्षेत्रीय सहयोग के छह प्राथमिकता वाले क्षेत्र शामिल हैं जो इस प्रकार हैं - पर्यावरण और ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दे और महामारी रोग, प्राकृतिक आपदा प्रबंधन तथा आसियान कनेक्टिविटी।
  • सदस्यता:
    • इसमें आसियान के दस सदस्य देशों- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार,फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के साथ 8 अन्य देश- ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
    • यह आसियान देशों पर केंद्रित एक मंच है, इसलिये इसकी अध्यक्षता केवल आसियान सदस्य ही कर सकता है।
      • वर्ष 2021 के लिये इसकी अध्यक्षता ब्रुनेई दारुस्सलाम (Brunei Darussalam) के पास है।
  • पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और प्रक्रियाएँ :
    • पूर्वी एशिया शिखर (EAS) सम्मेलन की वार्षिक सूची नेताओं के शिखर सम्मेलन के साथ समाप्त होती है, जिसका आयोजन आमतौर पर प्रत्येक वर्ष की चौथी तिमाही में आसियान नेताओं की बैठकों के साथ किया जाता है।
    • EAS विदेश मंत्रियों और आर्थिक मंत्रियों (Economic Ministers) की बैठकें भी प्रतिवर्ष आयोजित की जाती हैं। 
  • भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन :
    • भारत पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के संस्थापक सदस्यों में से एक है।
    • भारत ने नवंबर 2019 में बैंकॉक में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारत की इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI) का अनावरण किया था, जिसका उद्देश्य एक सुरक्षित और स्थिर समुद्री डोमेन या अधिकार क्षेत्र बनाने के लिये भागीदार बनाना है।
  • अन्य संबंधित समूह:
    • आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक प्लस (ADMM PLUS):
      • यह 10 आसियान देशों और आठ संवाद भागीदार देशों के रक्षा मंत्रियों की वार्षिक बैठक है।
      • ADMM-Plus में दस आसियान सदस्य देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूसी संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
    • आसियान क्षेत्रीय मंच:
      • वर्ष 1994 में स्थापित, आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा वार्ता के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच है।
      • इसमें 27 सदस्य शामिल हैं: 10 आसियान सदस्य देश, 10 आसियान संवाद भागीदार [ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य (ROK), रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका]; बांग्लादेश, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया, मंगोलिया, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा तिमोर-लेस्ते; और एक आसियान पर्यवेक्षक (पापुआ न्यू गिनी)।

स्रोत: पीआईबी


सामाजिक न्याय

क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2020: एनसीआरबी

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019

मेन्स के लिये:

क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2020 के महत्त्वपूर्ण बिंदु 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2020 जारी की गई है ।

  • हालाँकि वर्ष 2020 में महामारी के कारण राष्ट्रीय तालाबंदी/लॉकडाउन (Lockdown के महीनों के रूप में चिह्नित एक वर्ष में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ पारंपरिक अपराधों में कमी  देखी गई है, जबकि इसी बीच नागरिक संघर्षों (Civil Conflicts) में बड़ी वृद्धि देखी गई।

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प्रमुख बिंदु 

  • दंगे (नागरिक संघर्ष):
    • सांप्रदायिक दंगों में पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2020 में 96% की वृद्धि दर्ज की गई। 
      • अकेले दिल्ली पुलिस ने पूरे वर्ष में सांप्रदायिक दंगों के सबसे अधिक अर्थात् 520 मामले दर्ज किये, जबकि वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश (यूपी) में सांप्रदायिक हिंसा का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया।
    • जातिगत दंगों में करीब 50%, कृषि से जुड़े दंगों में 38% और 'आंदोलन/मोर्चा' के दौरान दंगों में 33% की वृद्धि देखी गई।
  • पारंपरिक अपराध:
    • महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ अपराध, चोरी, सेंधमारी, डकैती सहित अन्य दर्ज मामलों की संख्या में लगभग 2 लाख की गिरावट आई है।
    • "हिंसक अपराधों" (Violent Crimes) की श्रेणी में शामिल अपराधों में 0.5% की कमी के बावजूद हत्या के मामलों में 1% की मामूली वृद्धि दर्ज  की गई।
    • दिल्ली महिलाओं के लिये सबसे असुरक्षित शहर है। राजधानी में वर्ष 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 10,093 से ज़्यादा मामले दर्ज किये गए।
  • पर्यावरण संबंधी अपराध:
    • वर्ष 2020 में देश में 'पर्यावरण से संबंधित अपराधों' ( Environment-Related Offences’ ) की श्रेणी के मामलों में 78.1% की वृद्धि हुई।
  • साइबर अपराध:
    • साइबर अपराध की दर (प्रति लाख जनसंख्या पर घटनाएंँ) भी वर्ष 2020 में बढ़कर 3.7% हो गई है जो वर्ष 2019 में 3.3% थी।
  • राज्य के खिलाफ अपराध:
    • वर्ष 2019 में 27% की गिरावट के साथ राज्य के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों में भी महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गई।
    • हालाँकि उत्तर प्रदेश इस श्रेणी में वृद्धि दर्ज करने वाला एकमात्र प्रमुख राज्य था, ज़्यादातर राज्यों द्वारा दर्ज 'सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान' के मामलों की बड़ी संख्या का कारण CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम), 2019 के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन था।
    • राज्य के खिलाफ अपराधों में देशद्रोह और राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने से संबंधित मामले शामिल हैं, जो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), 1967, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत आते हैं।
  • राज्यवार डेटा:

Crime-file

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

  • NCRB की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस में कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रौद्योगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान करके समर्थ बनाया जा सके।
  • यह राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय के कार्य बल (1985) की सिफारिशों के आधार पर स्थापित किया गया था।
  • NCRB देश भर में अपराध के वार्षिक व्यापक आँकड़े ('भारत में अपराध' रिपोर्ट) एकत्रित करता है।
    • वर्ष 1953 से प्रकाशित होने के बाद यह रिपोर्ट देश भर में कानून और व्यवस्था की स्थिति को समझने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती है।
  • NCRB के दूसरे सीसीटीएनएस हैकथॉन और साइबर चैलेंज 2020-21 का उद्घाटन समारोह नई दिल्ली में आयोजित किया गया।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ऑटो और ड्रोन उद्योगों के लिये PLI योजना

प्रिलिम्स के लिये

उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना

मेन्स के लिये

ऑटो और ड्रोन उद्योगों के लिये PLI योजना का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देने हेतु ऑटो, ऑटो-कंपोनेंट्स और ड्रोन उद्योगों के लिये 26,058 करोड़ रुपए की ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन' (PLI) योजना को मंज़ूरी दी है।

  • ऑटो, ऑटो-कंपोनेंट्स और ड्रोन उद्योगों के लिये शुरू की गई ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना, केंद्रीय बजट 2021-22 के दौरान 13 क्षेत्रों के लिये घोषित PLI योजना का हिस्सा है, जिसमें 1.97 लाख करोड़ रुपए का परिव्यय शामिल है।
  • यह 'आत्मनिर्भरता' की दिशा में भारत की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है और भारत को ऑटो एवं ड्रोन निर्माता देशों की शीर्ष सूची में शामिल करने में मददगार हो सकता है।

Takeaways

प्रमुख बिंदु

Incentive-Work

  • ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना
    • मार्च 2020 में शुरू की गई ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना का उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों की बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है।
    • विदेशी कंपनियों को भारत में इकाई की  स्थापना के लिये आमंत्रित करने के अलावा इस योजना का उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को मौजूदा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना या विस्तार हेतु प्रोत्साहित करना भी है।
    • इस योजना को ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी हार्डवेयर जैसे- लैपटॉप, मोबाइल फोन और दूरसंचार उपकरण, व्हाइट गुड्स, रासायनिक सेल, खाद्य प्रसंस्करण एवं वस्त्र उद्योग आदि क्षेत्रों के लिये भी अनुमोदित किया गया है।
  • ऑटो सेक्टर के लिये PLI योजना
    • इसमें पारंपरिक पेट्रोल, डीज़ल और CNG सेगमेंट (आंतरिक दहन इंजन) को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि भारत में इनकी पर्याप्त क्षमता मौजूद है।
    • इसके तहत केवल एडवांस ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकियों या ऑटो घटकों को ही प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिनकी आपूर्ति शृंखला भारत में कमज़ोर या निष्क्रिय है।
    • इसका उद्देश्य नई तकनीक और स्वच्छ ईंधन की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
  • अवयव:
    • चैंपियन मूल उपकरण निर्माता (Original Equipment Manufacturers- OEM) योजना:
      • यह एक सेल्स वैल्यू लिंक्ड प्लान है, जो सभी सेगमेंट के बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहनों पर लागू होता है।
    • चैंपियन प्रोत्साहन योजना:
      • यह उन्नत प्रौद्योगिकी घटकों, कंप्लीट-नॉक्ड डाउन (CKD) या सेमी-नॉक्ड डाउन (SKD) किट, दोपहिया वाहनों, तीन पहिया वाहनों, यात्री वाहनों, वाणिज्यिक वाहनों और ट्रैक्टरों के लिये बिक्री मूल्य से जुड़ी योजना है।
  • महत्त्व:
    • उन्नत रसायन बैटरी (Advanced Chemistry Cell) के लिये पहले से शुरू की गई PLI और फास्टर एडॉप्शन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME) योजना के साथ यह योजना भी इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा देगी।
    • यह कार्बन उत्सर्जन और तेल आयात को कम करने में योगदान देगा।
    • यह उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके ऑटो घटकों के उत्पादन को प्रोत्साहित करेगा जो स्थानीयकरण, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देगा और विदेशी निवेश को भी आकर्षित करेगा।
    • यह नई सुविधाएँ स्थापित करने और अधिक रोज़गार सृजित करने में मदद करेगा। इससे ऑटो सेक्टर के लिये 7.5 लाख नौकरियाँ पैदा होने की उम्मीद है।
  • ड्रोन सेक्टर हेतु प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) :
    • परिचय :
      • इसमें एयरफ्रेम, प्रोपल्शन सिस्टम, पावर सिस्टम, बैटरी, इनर्टियल मेजरमेंट यूनिट, फ्लाइट कंट्रोल मॉड्यूल, ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन, कम्युनिकेशन सिस्टम, कैमरा, सेंसर, स्प्रेइंग सिस्टम, इमरजेंसी रिकवरी सिस्टम और ट्रैकर्स सहित विभिन्न प्रकार के ड्रोन कंपोनेंट्स शामिल हैं।
      • इससे 5,000 करोड़ रुपए से अधिक के नए निवेश को बढ़ावा एवं 1,500 करोड़ रुपए से अधिक के वृद्धिशील उत्पादन तथा लगभग 10,000 नौकरियों के अतिरिक्त रोज़गार सृजित होने की संभावना व्यक्त की गई है। 
    • महत्त्व :
      • यह उद्यमियों को वैश्विक बाज़ार के लिये ड्रोन, घटकों और सॉफ्टवेयर के निर्माण की दिशा में प्रयास करने हेतु प्रोत्साहित करेगा। यह ड्रोन के अनुप्रयोग के लिये विभिन्न प्रकार के कार्यक्षेत्र भी खोलेगा।
      • इससे आयात कम करने में मदद मिलेगी। वर्तमान में भारत में 90% ड्रोन आयातित हैं।
        • सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत को वैश्विक ड्रोन का हब (केंद्र) बनाना है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

दूरसंचार क्षेत्र में सुधार

प्रिलिम्स के लिये

समायोजित सकल राजस्व, एमसीएलआर, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, डिजिटल इंडिया

मेन्स के लिये:

दूरसंचार क्षेत्र में विभिन्न सुधार एवं इनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दूरसंचार क्षेत्र में कई संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधारों को मंज़ूरी दी है।

  • इन सुधारों में समायोजित सकल राजस्व (AGR) की बहुप्रचारित अवधारणा को फिर से परिभाषित करना, संचार सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) को सरकार के बकाया चुकाने पर चार वर्ष की मोहलत देना शामिल है।

Relief-and-reforms

प्रमुख बिंदु

  • सुधारों के बारे में:
    • स्पेक्ट्रम संबंधी सुधार: स्पेक्ट्रम की नीलामी सामान्यत: प्रत्येक वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही (फिक्स्ड कैलेंडर) में आयोजित की जाएगी।
      • भविष्य में स्पेक्ट्रम की नीलामी मौजूदा 20 वर्ष के बजाय 30 वर्ष की अवधि हेतु की जाएगी।
      • एक टेल्को को खरीद की तारीख से 10 वर्ष की लॉक-इन अवधि पूरी करने के बाद अपना स्पेक्ट्रम सरेंडर करने की अनुमति होगी।
      • स्पेक्ट्रम साझाकरण को प्रोत्साहित किया जा रहा है और स्पेक्ट्रम साझा करने हेतु 0.5% के अतिरिक्त SUC (स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क) को हटा दिया गया है।
      • स्पेक्ट्रम मोबाइल उद्योग और अन्य क्षेत्रों को एयरवेव्स पर संचार के लिये आवंटित रेडियो फ्रीक्वेंसी से संबंधित है।
    • AGR का युक्तिकरण:
      • AGR को पहले कंपनी के मुख्य दूरसंचार व्यवसाय से जुड़े होने के बजाय सभी राजस्व पर आधारित होने के रूप में व्याख्यायित किया गया था।
      • सरकार ने स्वीकार किया है कि यह व्याख्या समस्याग्रस्त थी, जिससे कंपनियों पर भविष्य का वित्तीय बोझ कम होगा।
      • दूरसंचार कंपनियों को सरकार को वैधानिक शुल्क के रूप में AGR (गैर-दूरसंचार राजस्व को छोड़कर) का एक पूर्व-निर्धारित प्रतिशत का भुगतान करना पड़ता है।
    • बकाया समायोजित सकल (AGR) राजस्व पर प्रतिबंध: दूरसंचार विभाग द्वारा समर्थित और वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरकरार AGR की पूर्व परिभाषा ने दूरसंचार कंपनियों को 1.6 लाख करोड़ रुपए का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी बनाया था।
      • इस भुगतान ने दूरसंचार क्षेत्र में नकदी की कमी कर दी है, जिसके कारण वोडाफोन जैसी दूरसंचार कंपनियों को व्यापार में  नुकसान हुआ और एक एकाधिकार (रिलायंस जियो और भारती एयरटेल) की स्थापना हुई।
      • दूरसंचार क्षेत्र को पुनर्जीवित करने हेतु सभी स्पेक्ट्रम और बकाया समायोजित सकल बकाया पर चार वर्ष की मोहलत को मंज़ूरी दी गई है।
      • हालांकि स्थगन (Moratorium) का विकल्प चुनने वाले टीएसपी को लाभ के तहत ली गई राशि पर ब्याज का भुगतान करना होगा।
  • ब्याज दरों को युक्तिसंगत बनाया गया और ज़ुर्माना हटाना:
    • मासिक चक्रवृद्धि ब्याज जो कि अब तक स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (SUC) पर लागू किया जाता था, को अब वार्षिक रूप लागू किया जाएगा तथा MCLR + 4% के बजाय MCLR+2% के आधार पर ब्याज की गणना करके इसकी दर कम हो जाएगी।
      • MCLR सबसे कम उधार दर को संदर्भित करता है जो उधार दर (Lending Rate) पर आधारित  फंड/निधि की सीमांत लागत (Marginal Cost of Funds) है।
    • इसके अतिरिक्त ज़ुर्माने पर लगने वाला ज़ुर्माना और ब्याज हटा दिया गया है।
  • FDI सुधार: इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को 49% की मौजूदा सीमा को  स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक की अनुमति दी गई है।

समायोजित सकल राजस्व

  • समायोजित सकल राजस्व (AGR) सरकार और दूरसंचार कंपनियों के बीच एक शुल्क-साझाकरण तंत्र है, जो वर्ष 1999 में 'निश्चित लाइसेंस शुल्क' मॉडल से 'राजस्व-साझाकरण शुल्क' मॉडल में स्थानांतरित हो गया था।
    • इस क्रम में दूरसंचार कंपनियों को सरकार के साथ AGR का एक प्रतिशत साझा करना होता है।
  • इसके तहत मोबाइल टेलीफोन ऑपरेटरों को अपने AGR का एक प्रतिशत वार्षिक लाइसेंस शुल्क (LF) और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (SUC) के रूप में सरकार के साथ साझा करना आवश्यक था।
  • वर्ष 2005 में सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने सरकार द्वारा दी गई AGR की परिभाषा को चुनौती दी।
    • वर्ष 2015 में ‘दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील प्राधिकरण’ (Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal- TDSAT) ने दूरसंचार कंपनियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और कहा कि पूंजीगत प्राप्तियों तथा गैर-प्रमुख स्रोतों से प्राप्त राजस्व जैसे- किराया, अचल संपत्तियों की बिक्री पर लाभ, लाभांश, ब्याज़ आदि को AGR से बाहर रखा जाएगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अक्तूबर 2019 में DoT (दूरसंचार और गैर-दूरसंचार सेवाओं दोनों से राजस्व) द्वारा निर्धारित AGR की परिभाषा को बरकरार रखा।
  • इन सुधारों का महत्त्व: 
    • प्रतिस्पर्द्धा को पुनर्जीवित करना: चार वर्ष की मोहलत कंपनियों को ग्राहक सेवा और नई तकनीक में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करेगी।
    • ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को प्रोत्साहित करना: इस क्षेत्र में (स्वचालित मार्ग के माध्यम से) शत प्रतिशत एफडीआई की अनुमति का निर्णय सरकार द्वारा विवादास्पद पूर्वव्यापी कर व्यवस्था को समाप्त करने के निर्णय के तुरंत बाद लिया गया है।
      • संयुक्त तौर पर ये सभी निर्णय निवेशक-अनुकूल माहौल का निर्माण कर सकते हैं।
    • डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देना: दूरसंचार क्षेत्र अर्थव्यवस्था के प्रमुख प्रेरकों में से एक है और सरकार द्वारा घोषित उपायों से उद्योग को डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
    • तकनीकी प्रगति: इन उपायों से इस क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर निवेश का मार्ग प्रशस्त होगा, जिसमें 5G प्रौद्योगिकी परिनियोजन भी शामिल है और साथ ही इससे रोज़गार सृजन को भी बढ़ावा मिलेगा।

आगे की राह

  • समायोजित सकल राजस्व (AGR) बकाया और स्पेक्ट्रम बकाया पर अधिस्थगन केवल अस्थायी राहत ही प्रदान करेगा और अंततः ब्याज के साथ देय राशि का भुगतान करना होगा। ऐसे में इसमें शामिल सभी हितधारकों को एक स्थायी टैरिफ नीति विकसित करने का एक तरीका खोजने पर विचार करना होगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन: थाईलैंड

प्रिलिम्स के लिये

पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन, सतत् विकास लक्ष्य 

मेन्स के लिये

‘पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन’ का महत्त्व और इसकी प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?

थाईलैंड का मानना ​​है कि ‘पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन’ (SEP) का उसका घरेलू विकास दृष्टिकोण ‘सतत् विकास लक्ष्यों’ (SDGs) को प्राप्त करने हेतु एक वैकल्पिक दृष्टिकोण के रूप में काम कर सकता है।

  • वर्ष 2020 में भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ आंदोलन की घोषणा की थी, जिसमें भारत और उसके नागरिकों को सभी क्षेत्रों में स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिये इसी प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाया गया है। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है तो इसमें ‘आत्मकेंद्रित’ व्यवस्था की हिमायत नहीं की जाती है, बल्कि यह संपूर्ण विश्व के सुख, सहयोग और शांति पर ज़ोर देता है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन’ (SEP)
    • यह विकास के लिये एक अभिनव दृष्टिकोण है, जिसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं और स्थितियों के लिये एक व्यावहारिक अनुप्रयोग के तौर पर डिज़ाइन किया गया है।
      • यह थाईलैंड की ‘मौलिक प्रशासन नीति’ का भी हिस्सा है।
      • इसे वर्ष 1997 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद थाईलैंड द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
    • यह एक ऐसा दर्शन है, जो बाह्य झटकों से स्वयं को प्रतिरक्षित करने हेतु आंतरिक मार्गदर्शन करता है और इसे किसी भी स्थिति एवं किसी भी स्तर पर लागू किया जा सकता है।
  • स्तर :
    • व्यक्तिगत एवं पारिवारिक स्तर : इसका अर्थ है उपलब्ध संसाधनों के सीमित स्तर में एक सामान्य जीवन का निर्वहन करना तथा दूसरे लोगों का अनुचित लाभ उठाने से  बचना।
    • सामुदायिक स्तर : इसका अभिप्राय निर्णयन में भाग लेने के लिये एक साथ शामिल होना तथा पारस्परिक रूप से लाभकारी ज्ञान विकसित करना एवं उचित ढंग से प्रौद्योगिकी को लागू करना है।
    • राष्ट्रीय स्तर : यह उपयुक्तता, प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ, कम जोखिम और अधिक निवेश से बचाव पर अधिक बल देने के साथ-साथ एक समग्र दृष्टिकोण रखता है।
      • इसमें दुनिया भर में प्रचलित व्यवस्थाओं के साथ तालमेल बिठाना, निवेश की हेजिंग और आयात को कम करना तथा अन्य देशों पर निर्भरता को कम करना शामिल है। 
  • स्तंभ :
    • ज्ञान : यह विकासात्मक गतिविधियों की प्रभावी योजना और निष्पादन को सक्षम बनाता है।
    • नैतिकता और मूल्य : यह ईमानदारी, परोपकारिता और दृढ़ता पर ज़ोर देकर, सक्रियता, नागरिकों के प्रभुत्व तथा सुशासन को अंतिम लक्ष्य के रूप में बढ़ावा देकर मानव विकास को बढ़ाता है।
  • सिद्धांत :
    • संयम/संतुलन : इसमें किसी की क्षमता के अंतर्गत उत्पादन और उपभोग करना तथा अतिभोग से बचना शामिल है।
    • तर्कसंगतता : यह किसी पारिवार और समुदाय की बेहतरी हेतु कार्यों के कारणों और परिणामों की जाँच करने के लिये उनकी बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग करता है।
    • सावधानी/बुद्धिमत्ता : यह किसी भी व्यवधान के कारण होने वाले प्रभावों से निपटने हेतु जोखिम प्रबंधन को संदर्भित करता है।

SEP


भारतीय अर्थव्यवस्था

नई ‘बैड बैंक’ संरचना

प्रिलिम्स के लिये:

बैड बैंक, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी, इंडिया डेब्ट रिज़ॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड, नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड, सरफेसी अधिनियम

मेन्स के लिये:

नई बैड बैंक संरचना द्वारा NPA की समस्या का समाधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स’ की पुनर्प्राप्ति के लिये ‘नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड’ (NARCL) द्वारा जारी ‘सिक्योरिटी रिसीप्ट्स’ को वापस करने के लिये 30,600 करोड़ रुपए की गारंटी को मंज़ूरी दी है।

  • NARCL एक नई बैड बैंक संरचना का हिस्सा है, जिसकी घोषणा बजट 2021 में की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • नई बैड बैंक संरचना के बारे में:
    • भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में अत्यधिक NPA (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) के समाधान के लिये भारत सरकार ने बैंकों से ‘स्ट्रेस्ड एसेट्स’ हासिल करने और फिर उन्हें बाज़ार में बेचने हेतु दो नई संस्थाओं की स्थापना की है।
      • NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफॉल्ट रूप में हैं या बकाया हैं।
    • NARCL: इसे कंपनी अधिनियम के तहत शामिल किया गया है और इसने एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC) के रूप में लाइसेंस के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक को आवेदन किया।
      • NARCL विभिन्न चरणों में विभिन्न वाणिज्यिक बैंकों से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए की दबाव वाली संपत्ति का अधिग्रहण करेगी।
      • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) NARCL में 51% स्वामित्व बनाए रखेंगे।
    • IDRCL: एक अन्य संस्था ‘इंडिया डेब्ट रिज़ॉल्यूशन कंपनी लिमिटेड’ (IDRCL) बाज़ार में तनावग्रस्त संपत्तियों को बेचने की कोशिश करेगी।
      • IDRCL में PSB और सार्वजनिक वित्तीय संस्थान (FI) की अधिकतम 49% हिस्सेदारी होगी। शेष 51% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के ऋणदाताओं के पास होगी।
    • NARCL-IDRCL संरचना एक नई ‘बैड बैंक’ संरचना है।
  • NARCL-IDRCL संरचना की आवश्यकता: 
    • मौजूदा ARCs दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान में सहायक रहे हैं, विशेष रूप से छोटे मूल्य के ऋणों के लिये।
    • दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) सहित विभिन्न उपलब्ध समाधान तंत्र उपयोगी साबित हुए हैं।
    • हालांँकि  NPAs के बड़े स्टॉक को देखते हुए अतिरिक्त विकल्पों की आवश्यकता महसूस हुई और इस प्रकार केंद्रीय बजट 2021 में NARCL-IDRCL संरचना की घोषणा की गई थी।
  • NARCL-IDRCL की कार्यप्रणाली और गारंटी की पेशकश:
    •  सर्वप्रथम NARCL बैंकों से बैड लोन की  खरीद करेगा।
    • यह सहमत मूल्य (Agreed Price) का 15% नकद में भुगतान करेगा और शेष 85% "सुरक्षा रसीद"( Security Receipts) के रूप में होगा।
    • जब संपत्तियांँ बेची जाती हैं तो IDRCL की मदद से वाणिज्यिक बैंकों को बाकी का भुगतान किया जाएगा।
    • यदि बैड बैंक बैड लोन को बेचने में असमर्थ है, या उसे घाटे में बेचना है, तो सरकारी गारंटी लागू होगी।
      • वाणिज्यिक बैंक को क्या मिलना चाहिये था और बैड बैंक क्या जुटाने में सक्षम था, इसके मध्य का अंतर सरकार द्वारा प्रदान किये गए 30,600 करोड़ रुपए से पूरा  किया जाएगा।
    • यह गारंटी पांँच वर्ष की अवधि के लिये बढ़ाई गई है।

नोट:

  • सुरक्षा रसीद को सरफेसी अधिनियम की धारा 2(1) (zg) के तहत परिभाषित किया गया है।
  • इसका अर्थ है कि एक रसीद या अन्य प्रतिभूति, जो एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा किसी योजना के अनुसार किसी योग्य खरीदार को जारी की जाती है,  प्रतिभूतिकरण में शामिल वित्तीय संपत्ति में एक अविभाजित अधिकार, शीर्षक या हितधारक द्वारा सुरक्षित खरीद या अधिग्रहण का सबूत होती है।

बैड बैंक

  • संदर्भ: 
    • तकनीकी रूप से बैड बैंक एक परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (Asset Reconstruction Company-ARC) या परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC) है जो वाणिज्यिक बैंकों के बैड ऋणों को अपने नियंत्रण में लेकर उनका प्रबंधन और निर्धारित समय पर धन की वसूली करती है।
    • बैड बैंक ऋण देने और जमा स्वीकार करने की प्रकिया का भाग नहीं होता है, लेकिन वाणिज्यिक बैंकों की बैलेंस शीट ठीक करने में मदद करता है।
    • बैड लोन का अधिग्रहण आमतौर पर ऋण के बुक वैल्यू से कम होता है और बैड बैंक बाद में जितना संभव हो उतना वसूल करने की कोशिश करता है।
  • बैड बैंक के प्रभाव: 
    • वाणिज्यिक बैंकों का दृष्टिकोण: वाणिज्यिक बैंक उच्च NPA स्तर के कारण परेशान हैं, बैड बैंक की स्थापना से इससे निपटने में मदद मिलेगी।
      • ऐसा इसलिये है क्योंकि बैंक अपनी सभी ऐसी संपत्तियों से छुटकारा पा लेगा, जो एक त्वरित कदम में उसके मुनाफे को कम कर रहे थे।
      • जब वसूली का पैसा वापस भुगतान के रूप में दिया जाएगा, तो यह बैंक की स्थिति में सुधार करेगा। इस बीच यह फिर से उधार देना शुरू कर सकता है।
    • सरकार और करदाता परिप्रेक्ष्य: चाहे डूबे हुए ऋणों से ग्रसित PSB का पुनर्पूंजीकरण हो या सुरक्षा रसीदों की गारंटी देना हो, पैसा करदाताओं की जेब से आ रहा है।
      • जबकि पुनर्पूंजीकरण और इस तरह की गारंटी को प्रायः "सुधार" के रूप में नामित किया जाता है, वे एक अच्छे रूप में बैंड अनुदान/सहायता (Band Aids) हैं।
      • PSBs में ऋण देने की प्रक्रिया में सुधार करना ही एकमात्र स्थायी समाधान है।
      • अगर बैड बैंक बाज़ार में ऐसे बैड एसेट्स को बेचने में असमर्थ रहते हैं तो वाणिज्यिक बैंकों को राहत देने की योजना ध्वस्त हो जाएगी। इसका भार वास्तव में करदाता पर पड़ेगा।

आगे की राह:

  • जब तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति समर्पित रहेंगे, व्यावसायिकता में कमी बनी रहेगी और उधार देने में विवेकपूर्ण मानदंडों को उल्लंघन होता रहेगा।
  • इसलिये एक बैड बैंक एक अच्छा विचार है, लेकिन मुख्य चुनौती बैंकिंग प्रणाली में अंतर्निहित संरचनात्मक समस्याओं से निपटने और उसके अनुसार सुधारों की घोषणा करने में है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व का प्रथम 'पाँच देशों का बायोस्फीयर रिज़र्व'

प्रिलिम्स के लिये:

यूनेस्को, यूरोपीय ग्रीन डील, बायोस्फीयर रिज़र्व

मेन्स के लिये:

जैव विविधता के संरक्षण में बायोस्फीयर रिज़र्व का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन' (यूनेस्को) द्वारा मुरा-द्रवा-डेन्यूब (Mura-Drava-Danube- MDD) को विश्व का प्रथम 'पाँच देशों का बायोस्फीयर रिज़र्व' (Five-Country Biosphere Reserve) घोषित किया गया है।

Five-Country-Biosphere-Reserve

प्रमुख बिंदु 

  • MDD के बारे में:
    • यह बायोस्फीयर रिज़र्व मुरा, द्रवा और डेन्यूब नदियों के 700 किलोमीटर के क्षेत्र और ऑस्ट्रिया, स्लोवेनिया, क्रोएशिया, हंगरी तथा सर्बिया में फैला हुआ है।
    • रिज़र्व का कुल क्षेत्रफल एक मिलियन हेक्टेयर है जिसे तथाकथित रूप से 'यूरोप का अमेज़न' (Amazon of Europe) कहा जाता है तथा यह अब यूरोप में सबसे बड़ा नदी संरक्षित क्षेत्र है।
    • बायोस्फीयर रिज़र्व ने यूरोपीय ग्रीन डील (जलवायु कार्य योजना) में अपना महत्त्वपूर्ण  प्रतिनिधित्व किया और मुरा-द्रवा-डेन्यूब क्षेत्र में यूरोपीय संघ की जैव विविधता रणनीति के कार्यान्वयन में योगदान दिया।
      • इस रणनीति का उद्देश्य नदियों को  (25,000 किमी) पुनर्जीवित करना है और वर्ष 2030 तक यूरोपीय संघ के 30% भूमि क्षेत्र की रक्षा करना है।
  • MDD का महत्त्व:
    • प्रजातियों की विविधता के मामले में यह यूरोप के सबसे संपन्न क्षेत्रों में से एक है।
    • यह बाढ़ के मैदानों के जंगलों, बजरी और रेत के किनारों, नदी के द्वीपों, ऑक्सबो  (यू-आकार की झील) और घास के मैदानों काक्षेत्र है।
    • यह क्षेत्र सफेद पूंँछ वाले चील और लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे- लिटिल टर्न, ब्लैक स्टॉर्क, ऊदबिलाव, बीवर और स्टर्जन के जोड़ों के प्रजनन हेतु यूरोप का उच्चतम सघन क्षेत्र है।
    • यह हर वर्ष यहाँ आने वाले 2,50,000 से अधिक प्रवासी जलपक्षियों का महत्त्वपूर्ण गंतव्य स्थान  है।

बायोस्फीयर रिज़र्व (BR)

  • परिचय
    • बायोस्फीयर रिज़र्व (BR), यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्यों के सांकेतिक भागों के लिये दिया गया एक अंतर्राष्ट्रीय पदनाम है, जो स्थलीय या तटीय/समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों के बड़े क्षेत्रों या दोनों के संयोजन को शामिल करता है। 
    • बायोस्फीयर रिज़र्व प्रकृति के संरक्षण के साथ आर्थिक एवं सामाजिक विकास तथा संबद्ध सांस्कृतिक मूल्यों के रखरखाव को भी संतुलित करने का प्रयास करता है।
    • बायोस्फीयर रिज़र्व को राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों द्वारा नामित किया जाता है और वे उन राज्यों के संप्रभु अधिकार क्षेत्र में आते हैं जहाँ वे स्थित हैं।
    • इन्हें ‘MAB अंतर्राष्ट्रीय समन्वय परिषद’ (MAB ICC) के निर्णयों के बाद यूनेस्को के महानिदेशक द्वारा अंतर-सरकारी MAB कार्यक्रम के तहत नामित किया जाता है।
      • मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम (MAB) एक अंतर-सरकारी वैज्ञानिक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य लोगों और उनके वातावरण के बीच संबंधों में सुधार के लिये वैज्ञानिक आधार स्थापित करना है।
    • इनकी स्थिति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
    • वर्तमान में 131 देशों में 727 बायोस्फीयर रिज़र्व मौजूद हैं, जिनमें 22 ट्रांसबाउंड्री साइट भी शामिल हैं।
  • तीन मुख्य क्षेत्र :
    • कोर क्षेत्र (Core Areas) : इसमें एक जटिल या सुभेद्य संरक्षित क्षेत्र शामिल है जो परिदृश्य, पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों और आनुवंशिक भिन्नता के संरक्षण में योगदान देता है।
    • बफर क्षेत्र (Buffer Zone : यह मुख्य क्षेत्र को चारों तरफ से संरक्षित करता है या जोड़ता है तथा इसका उपयोग ध्वनि पारिस्थितिक गतिविधियों को संतुलित करने हेतु किया जाता है जो वैज्ञानिक अनुसंधान, निगरानी, ​​प्रशिक्षण और शिक्षा को सुदृढ़ कर सकते हैं।
    • संक्रमण क्षेत्र (Transition Area): संक्रमण क्षेत्र वह स्थान है जहाँ समुदाय सामाजिक- सांस्कृतिक और पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ आर्थिक एवं मानवीय गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।
  • भारत में बायोस्फीयर रिज़र्व :
    • वर्तमान में भारत में 18 बायोस्फीयर रिज़र्व हैं, जिनमें से 12 बायोस्फीयर रिज़र्व यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम (Man and Biosphere Reserve Program) की सूची में शामिल हैं।

Biosphere-Reserve-of-India

स्रोत : डाउन टू अर्थ


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