भारतीय अर्थव्यवस्था
पूर्वव्यापी कराधान व्यवस्था और वोडाफोन कर विवाद
- 26 Sep 2020
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प्रिलिम्स के लियेविथहोल्डिंग कर, वित्त विधेयक, आयकर अधिनियम मेन्स के लियेपूर्वव्यापी कराधान व्यवस्था और वोडाफोन कर विवाद में निर्णय के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
दिग्गज ब्रिटिश टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन ने हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) में भारत सरकार के विरुद्ध 22,100 करोड़ रूपए के कर विवाद में जीत हासिल की है।
प्रमुख बिंदु
- एक महत्त्वपूर्ण मामले में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने निर्णय दिया है कि वर्ष 2007 के सौदे के लिये ब्रिटिश टेलीकॉम पर पूंजीगत लाभ और विथहोल्डिंग कर’ (Withholding Tax) के रूप में 22,100 करोड़ रूपए की भारत सरकार की मांग ‘निष्पक्ष और न्यायसंगत वैधानिक उपचार की गारंटी का उल्लंघन करती है।
विथहोल्डिंग कर’ (Withholding Tax)
- यह एक ऐसी राशि है जो नियोक्ता द्वारा कर्मचारी की आय से सीधे काटी जाती है और सरकार को व्यक्तिगत कर देयता के हिस्से के रूप में भुगतान की जाती है।
निर्णय के निहितार्थ
- स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) द्वारा वोडाफोन के पक्ष में दिया गया फैसला भारत की पूर्वव्यापी कराधान (Retrospective Taxation) नीतियों के लिये एक बड़ा झटका है।
- इस फैसले के कारण यह संभावना भी बढ़ जाती है कि भारत सरकार को इसी तरह के अन्य मामलों में भी हार का सामना करना पड़ेगा।
वोडाफोन कर विवाद
- दरअसल इस मामले की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई थी जब मई माह में ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन ने 11 बिलियन डॉलर की लागत से बहुराष्ट्रीय कंपनी हचिसन व्हेंपोआ (Hutchison Whampoa) के भारतीय दूरसंचार व्यवसाय का अधिग्रहण किया था।
- इस सौदे के बाद सितंबर 2007 में भारत सरकार ने पहली पूंजीगत लाभ और विथहोल्डिंग कर’ (Withholding Tax) के रूप में यह कहते हुए 7,990 करोड़ रूपए की मांग की कि वोडाफोन को हचिसन व्हेंपोआ को भुगतान करने से पूर्व स्रोत पर कर (Tax at Source) की कटौती करनी चाहिये थी, जो कि नहीं की गई।
- यह पूरा विवाद इस प्रश्न पर केंद्रित है कि क्या भारत में स्थित संपत्ति के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर आयकर अधिनियम की धारा 9 (1) (i) के तहत कर लागू किया जा सकता है अथवा नहीं।
- आयकर अधिनियम की यह धारा पूंजीगत संपत्ति के एक कंपनी से दूसरी कंपनी में प्रत्यक्ष हस्तांतरण पर पूंजीगत लाभ कर लगाने का निर्देश देती है।
- वोडाफोन ने सरकार की इस मांग को बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसने सरकार और आयकर विभाग के पक्ष में फैसला सुनाया।
- इस निर्णय के पश्चात् वोडाफोन ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसमे वर्ष 2012 में निर्णय दिया कि वोडाफोन समूह की वर्ष 1961 के आयकर अधिनियम की व्याख्या पूर्णतः सही है और उसे हचिसन व्हेंपोआ कंपनी की हिस्सेदारी खरीदने के लिये किसी भी प्रकार का कर भुगतान नहीं करना पड़ेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने वित्त अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव देकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया। इस संशोधन के माध्यम से आयकर विभाग को इस प्रकार के सौदों पर पूर्वव्यापी कर (Retrospectively Tax) वसूलने की शक्ति प्रदान की।
- संसद द्वारा पारित इस संशोधन के माध्यम से वोडाफोन एक बार फिर कर के दायरे में आ गई।
पूर्वव्यापी कर और अधिनियम में संशोधन
- वोडाफोन मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद सरकार ने आयकर अधिनियम की धारा 9 (1) (i) में संशोधन कर स्पष्ट कर दिया कि जब दो अनिवासी इकाइयों के बीच शेयर का लेनदेन होता है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में स्थित संपत्ति का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण होता है, तो ऐसी आय पर भारत में कर लगाया जाएगा।
- हालाँकि वर्ष 2012 के आयकर अधिनियम में संशोधन की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इसे वर्ष 1962 से प्रभावी किया गया था यानी यह पूर्वव्यापी कराधान की व्यवस्था थी।
- एक पूर्वव्यापी कर कानून वह है जो पारित होने वाली तारीख से पूर्व किसी अन्य तारीख से प्रभावी होता है। उदाहरण के लिये आयकर अधिनियम में अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर कर लगाने की व्यवस्था वर्ष 2012 में की गई थी, किंतु यह कर उन सभी लेन-देनों पर लागू हुआ था, जो वर्ष 1962 के बाद की गईं थीं। ध्यातव्य है कि वर्ष 1962 में ही आयकर अधिनियम लागू हुआ था।
- सामान्यतः कर अधिरोपित करने वाले देशों द्वारा पूर्वव्यापी कराधान की व्यवस्था का उपयोग अपनी कराधान नीतियों में उन विसंगतियों को ठीक करने के लिये किया जाता है, जिनका प्रयोग पूर्व में कंपनियों द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिये किया गया हो।
- भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया और इटली समेत कई देशों ने में पूर्वव्यापी कराधान व्यवस्था का प्रयोग किया है।
स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में मामला
- वर्ष 2012 में जब संसद ने वित्त अधिनियम में संशोधन पारित किया तो वोडाफोन पर एक बार फिर कर के भुगतान का दायित्त्व आ गया।
- सरकार द्वारा किये गए इस संशोधन की वैश्विक स्तर पर निवेशकों द्वारा काफी आलोचना की गई, और यह कहा गया कि यह ‘विकृत’ प्रकृति का संशोधन है।
- चौतरफा अंतर्राष्ट्रीय आलोचना होते देख भारत ने वोडाफोन के साथ मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने की कोशिश की, किंतु ऐसा संभव नहीं हो पाया।
- वर्ष 2014 में जब वोडाफोन और वित्त मंत्रालय द्वारा इस मुद्दे को निपटाने के सभी प्रयास विफल हो गए तब वोडाफोन समूह ने वर्ष 1995 में भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty-BIT) के अनुच्छेद 9 को लागू कर दिया और यह मामला स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के समक्ष पहुँच गया।
- द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) के अनुच्छेद 9 के अनुसार, भारत और नीदरलैंड की इकाइयों के बीच निवेश के संबंध में होने वाले किसी भी विवाद को जहाँ तक संभव हो वार्ता के माध्यम से ही सौहार्दपूर्वक निपटाया जाना चाहिये।
- अपने फैसले में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने कहा कि अब चूँकि यह स्थापित हो चुका था कि भारत ने नीदरलैंड के साथ किये गए द्विपक्षीय निवेश संधि की शर्तों का उल्लंघन किया है, इसलिये अब वह वोडाफोन से किसी भी प्रकार से कर की मांग नहीं कर सकता है।
द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT)
- 6 नवंबर, 1995 को भारत और नीदरलैंड ने एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में कंपनियों के निवेश को बढ़ावा देने और कंपनियों को संरक्षण प्रदान करने के लिये द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) पर हस्ताक्षर किये थे।
- इस संधि के तहत यह तय किया गया कि दोनों देश दूसरे देश के निवेशकों के लिये अनुकूल परिस्थितियों को प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने का प्रयास करेंगे।
- संधि के तहत यह तय किया गया कि दोनों देश यह सुनिश्चित करेंगे कि एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में मौजूद कंपनियों को निष्पक्ष और न्यायसंगत वैधानिक उपचार की गारंटी मिलेगी।
- भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि 22 सितंबर, 2016 को समाप्त हो गई है।