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डेली न्यूज़

  • 16 Nov, 2023
  • 44 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

छठी भारत-ओपेक ऊर्जा वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, OPEC+, नवीकरणीय ऊर्जा

मेन्स के लिये:

भारत के ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत के ऊर्जा परिवर्तन को आकार देने वाली पहल

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

भारत और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) के बीच ऊर्जा वार्ता के तहत छठी उच्च-स्तरीय बैठक 9 नवंबर, 2023 को ऑस्ट्रिया के वियना में OPEC के सचिवालय में आयोजित की गई।

भारत-OPEC ऊर्जा वार्ता की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • बैठक में तेल और ऊर्जा बाज़ारों से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें उपलब्धता, सामर्थ्य तथा स्थिरता सुनिश्चित करने पर विशेष ज़ोर दिया गया, जो कि ऊर्जा बाज़ारों की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं। 
  • बैठक दोनों पक्षों द्वारा OPEC और भारत के बीच बढ़ते सहयोग को बढ़ावा देने के महत्त्व को रेखांकित करने के साथ संपन्न हुई।
  • वर्ल्ड ऑयल आउटलुक 2023 का अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष 2022-2045 के बीच 6.1 प्रतिशत की औसत दीर्घकालिक वृद्धि के साथ सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्था होगी और उसी दौरान वृद्धिशील वैश्विक ऊर्जा मांग 28 प्रतिशत से अधिक होगी।
    • दोनों पक्षों ने वैश्विक आर्थिक विकास तथा ऊर्जा मांग में तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता, कच्चे तेल के आयातक एवं चौथे सबसे बड़े वैश्विक तेल शोधक के रूप में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया।
  • बैठक में नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था तथा जलवायु परिवर्तन शमन के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों एवं पहलों को भी स्वीकार किया गया।
  • भारत-ओपेक ऊर्जा वार्ता के तहत अगली उच्च स्तरीय बैठक वर्ष 2024 में भारत में आयोजित करने पर सहमति बनी।

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) क्या है? 

  • पारिचय:
    • पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब एवं वेनेज़ुएला द्वारा किया गया था।
      • इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है।
  • उद्देश्य:
    • OPEC का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय एवं एकीकरण करना है, ताकि पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये उचित व स्थिर कीमतें सुनिश्चित की जा सकें; उपभोक्ता देशों को पेट्रोलियम की आर्थिक रूप से उचित तथा नियमित आपूर्ति की जा सके जिससे संबद्ध उद्योग में निवेश करने वालों को पूंजी पर उचित लाभ मिलेगा।
  • सदस्य देश:
    • अल्जीरिया, अंगोला, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा वेनेज़ुएला इसके सदस्य हैं।
    • OPEC के सदस्य देश विश्व के लगभग 30% कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं।
      • संगठन के अंतर्गत सऊदी अरब सबसे बड़ा एकल तेल आपूर्तिकर्त्ता है, जो प्रतिदिन 10 मिलियन बैरल से अधिक तेल का उत्पादन करता है।

  • रिपोर्ट और आउटलुक:
    • मासिक तेल बाज़ार रिपोर्ट, वार्षिक सांख्यिकीय बुलेटिन और विश्व तेल आउटलुक।
  • ओपेक प्लस:
    • वर्ष 2016 में अमेरिकी शेल तेल उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि के परिणामस्वरूप तेल की गिरती कीमतों के जवाब में ओपेक ने 10 अन्य तेल उत्पादक देशों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे अब ओपेक प्लस के रूप में जाना जाता है।
      • ओपेक प्लस में अब अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान के साथ 13 ओपेक सदस्य देश शामिल हैं।
    • ओपेक प्लस देश संयुक्त रूप से विश्व के कुल कच्चे तेल का लगभग 40% का उत्पादन करते हैं।

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. "वहनीय, विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


जैव विविधता और पर्यावरण

वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD), वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने की ओर एक नीति परिदृश्य विश्लेषण, प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC3)

मेन्स के लिये:

वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC3) से पहले प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतरिम रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है- वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने की ओर: एक नीति परिदृश्य विश्लेषण।

  • प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतर्राष्ट्रीय बाध्यकारी समझौते के लिये INC3 को नवंबर 2023 में नैरोबी, केन्या में आयोजित किया जाएगा। इससे पहले INC2 को जून 2023 में पेरिस, फ्राँस में आयोजित किया गया था।

नोट: अंतरिम रिपोर्ट एक प्रारंभिक या आंशिक रिपोर्ट को संदर्भित करती है जो पूर्ण या अंतिम रिपोर्ट के पूरा होने से पहले जारी की जाती है। यह एक दस्तावेज़ है जो किसी विशेष विषय या परियोजना पर प्रारंभिक निष्कर्ष, विश्लेषण या प्रगति को प्रस्तुत करता है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • वर्तमान स्थिति:
    • वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 21 मिलियन टन (MT) प्लास्टिक का पर्यावरण में रिसाव हो गया।
    • सामान्य व्यवसाय परिदृश्य, जहाँ कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किया जाता है, में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2040 तक मैक्रोप्लास्टिक रिसाव में 50% की वृद्धि होगी।
      • इसका अर्थ होगा कि लगभग 30 मीट्रिक टन प्लास्टिक का पर्यावरण में रिसाव हो जाएगा, जिसमें से 9 मीट्रिक टन जलीय वातावरण में प्रवेश कर जाएगा।
  • अनुमानित परिदृश्य :
    • प्राथमिक प्लास्टिक का उपयोग वर्ष 2020 के स्तर पर वर्ष 2040 तक स्थिर करने के परिणामस्वरूप वर्ष 2040 तक महत्त्वपूर्ण प्लास्टिक रिसाव (12 मीट्रिक टन) होगा।
    • हालाँकि महत्त्वाकांक्षी वैश्विक कार्रवाई परिदृश्य अपशिष्ट उत्पादन को काफी हद तक कम कर सकता है, कुप्रबंधित कचरे को लगभग समाप्त कर सकता है और वर्ष 2040 तक प्लास्टिक रिसाव को लगभग समाप्त कर सकता है।
  • बढ़ते प्लास्टिक उपयोग का प्रभाव: 
    • प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और निपटान से पर्यावरण (आवास विनाश, मिट्टी प्रदूषण), जलवायु (ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान) तथा मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण के पहले की अपेक्षा और गंभीर परिणाम होंगे।
    • प्लास्टिक विभिन्न प्रकार के जीवन चक्र प्रभाव उत्पन्न करता है, जिसमें कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 3.8% का योगदान (2022 में 1.9 GtCO2 e) शामिल है।
  • कार्रवाई की लागत:
    • शीघ्र, कठोर और समन्वित नीतिगत कार्रवाई के साथ वैश्विक महत्त्वाकांक्षा वर्ष 2040 में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन को बेसलाइन से एक-चौथाई तक कम कर सकती है।
    • यह वर्ष 2040 तक (119 से 4 मीट्रिक टन तक) कुप्रबंधित अपशिष्ट को वस्तुतः समाप्त कर सकती है, परिणामस्वरूप, प्लास्टिक रिसाव भी लगभग समाप्त (वर्ष 2040 में 1.2 मीट्रिक टन) हो जाएगा।
      • हालाँकि नदियों और महासागरों में प्लास्टिक का स्टॉक वर्ष 2020 के 152 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2040 में 226 मीट्रिक टन (बेसलाइन से 74 मीट्रिक टन कम) होने का अनुमान है।
    • वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये महत्त्वाकांक्षी वैश्विक कार्रवाइयों पर वर्ष 2040 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 0.5% खर्च आएगा।
    • हालाँकि इन लागतों में निष्क्रियता की टाली गई लागत शामिल नहीं है और इसे व्यापक रूप से बेहतर पर्यावरणीय परिणामों के संदर्भ में देखा जाना चाहिये।
  • वित्तीय आवश्यकताएँ:
    • कम उन्नत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों वाले तेज़ी से बढ़ते देशों में अपशिष्ट संग्रहण, छंँटाई और उपचार के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश (2020 और 2040 के बीच 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक) की आवश्यकता होगी।
    • लागतों के असमान वितरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
  • सिफारिशें:
    • इसके पूरे जीवनचक्र में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल देते हुए विभिन्न नीतिगत परिदृश्यों की आवश्यकता है।
    • वर्ष 2040 तक प्लास्टिक रिसाव को खत्म करने के लिये तकनीकी और आर्थिक बाधाओं पर काबू पाना आवश्यक है।
    • पुनर्चक्रण की सफलताएँ और स्क्रैप तथा द्वितीयक प्लास्टिक के लिये अच्छी तरह से काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण रणनीतियाँ हैं।

अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC) क्या है?

  • परिचय:
    • INC की स्थापना फरवरी 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA-5.2) के 5वें सत्र में हुई थी।
    • वर्ष 2024 के अंत तक वार्ता को पूरा करने की महत्त्वाकांक्षा के साथ समुद्री पर्यावरण सहित प्लास्टिक प्रदूषण पर एक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी उपकरण विकसित करने के लिये ऐतिहासिक संकल्प (5/14) को अपनाया गया था।
      • INC1 का पहला सत्र वर्ष 2022 में उरुग्वे में आयोजित किया गया था।
  • आवश्यकता: 
    • प्लास्टिक प्रदूषण का तेज़ी से बढ़ता स्तर एक गंभीर वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दे का प्रतिनिधित्व करता है जो सतत् विकास के पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य आयामों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
    • आवश्यक हस्तक्षेपों के अभाव में जलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा वर्ष 2016 में लगभग 9–14 मिलियन टन प्रतिवर्ष से बढ़कर वर्ष 2040 तक अनुमानित 23–37 मिलियन टन प्रतिवर्ष हो सकती है।
  • उद्देश्य: 
    • कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते के तहत देशों से अपेक्षा की जाएगी कि वे साधन के उद्देश्यों में योगदान करने के लिये देश-संचालित दृष्टिकोणों को दर्शाते हुए राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं को विकसित, कार्यान्वित और अद्यतन करें।
    • उनसे प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम, कमी और उन्मूलन की दिशा में काम करने तथा क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का समर्थन करने के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं को बढ़ावा देने की उम्मीद की जाएगी।

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने हेतु क्या पहल हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त हो जाने वाली 'सूक्ष्म मणिकाओं (माइक्रोबीड्स)' के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019)

(a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर होने का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्रों में फसल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • सूक्ष्म मणिकाएँ (माइक्रोबीड्स) छोटे, ठोस प्लास्टिक के कण हैं जिनका आकार 5 मिमी. से छोटा होता है और जल में निम्नीकृत या वियोजित नहीं होते हैं।
    • मुख्य रूप से पॉलीथीन से बने माइक्रोबीड्स को पेट्रोकेमिकल प्लास्टिक जैसे- पॉलीस्टाइरीन और पॉलीप्रोपाइलीन से भी तैयार किया जा सकता है। उन्हें उत्पादों की एक शृंखला में जोड़ा जा सकता है, जिसमें सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल तथा सफाई उत्पाद शामिल हैं।
  • माइक्रोबीड्स अपने छोटे आकार के कारण सीवेज उपचार प्रणाली के माध्यम से अनफिल्टर्ड होने के कारण जल निकायों तक पहुँच जाते हैं। जल निकायों में अनुपचारित माइक्रोबीड्स समुद्री जीवों द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं एवं इस प्रकार विषाक्तता उत्पन्न करते हैं तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं।
    • वर्ष 2014 में कॉस्मेटिक्स माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाने वाला नीदरलैंड पहला देश बन गया।

अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।


सामाजिक न्याय

मानसिक स्वास्थ्य के लिये भारतीय सेना के सक्रिय उपाय

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP), विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस

मेन्स के लिये:

भारतीय सेना कर्मियों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहल

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारतीय सेना द्वारा अपने रैंकों के अंतर्गत आत्महत्या तथा भ्रातृहत्या के गंभीर मुद्दे को स्वीकार करते हुए अपने कर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये महत्त्व पूर्ण कदम उठाए गए हैं।

  • डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजिकल रिसर्च (DIPR) के सहयोग से अगस्त 2023 में शुरू किये गए एक व्यापक अध्ययन में सेना सैनिकों तथा उनके परिवारों को प्रभावित करने वाले तनाव कारकों को समझने एवं कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
  • DIPR भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के अधीन एक संस्थान है, जो रक्षा तथा सुरक्षा क्षेत्र का समर्थन करने के लिये मनोविज्ञान व मानव व्यवहार के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिये कार्य करता है।

नोट:

  • सेना में भ्रातृहत्या (Fratricide) का तात्पर्य एक सैनिक या सुरक्षाकर्मी द्वारा अपने सहयोगियों की हत्या करना है।
  • आत्महत्या और भ्रातृहत्या किसी व्यक्ति द्वारा उच्च स्तर के तनाव के कारण किये गए कृत्य हैं, जो मुख्य रूप से घरेलू समस्याओं, पारिवारिक विवादों, अलगाव की भावना और/या पेशेवर खतरों के अलावा निराशा के कारण होते हैं।
  • संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019 से 2021 तक सालाना 2 भ्रातृहत्या के मामले सामने आए, जिनमें से एक मामला वर्ष 2021 में दर्ज किया गया।
    • वर्ष 2016, 2017 और 2018 के दौरान सेना में संदिग्ध आत्महत्या के मामलों की संख्या क्रमशः 104, 75 और 80 थी।

सेना कर्मियों को किन तनावों का सामना करना पड़ता है?

  • सर्विस थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) ने एक अध्ययन में पाया कि पिछले दो दशकों में ऑपरेशनल और नॉन-ऑपरेशनल तनाव के कारण सेना के जवानों के बीच तनाव के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • ऑपरेशनल तनाव: सैन्य सेवा की प्रकृति और शर्तों से संबंधित, जैसे
      • उग्रवाद-विरोधी और आतंकवाद-विरोधी (CI/CT) वातावरण में लंबे समय तक संपर्क में रहना, जिसमें उच्च जोखिम, अनिश्चितता तथा हिंसा शामिल है।
      • बार-बार स्थानांतरण और परिवार से अलगाव, जिसका प्रभाव सैनिकों के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन पर पड़ता है।
      • पर्याप्त सुविधाओं और बुनियादी ढाँचे का अभाव, विशेषकर सुदूर एवं कठिन क्षेत्रों में।
    • नॉन-ऑपरेशनल तनाव: सैन्य सेवा के संगठनात्मक और व्यक्तिगत पहलुओं से संबंधित, जैसे
      • खराब नेतृत्व, वरिष्ठों का उदासीन रवैया, और आदेश की क्रम में विश्वास तथा भरोसे की कमी।
      • आपात्कालीन स्थिति में भी छुट्टी से इनकार और शिकायत निवारण तंत्र की कमी।
      • परिवार से संबंधित विवाद, वित्तीय समस्याएँ, वैवाहिक मुद्दे या स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ।
      • विशेषकर अधिकारियों के बीच नौकरी से संतुष्टि, कॅरियर में प्रगति और मान्यता में कमी।

सेना के भीतर मानसिक कल्याण हेतु क्या पहल लागू की गई हैं?

  • सलाह और दिशा-निर्देश:
    • सेना ने अगस्त 2023 में एक एडवाइज़री जारी की, जिसमें तनाव और मनोवैज्ञानिक मुद्दों के समाधान के लिये प्रत्येक इकाई में अधिकारियों, धार्मिक शिक्षकों और चयनित अन्य रैंकों की नियुक्ति पर ज़ोर दिया गया।
      • सलाहकार तनाव के स्तर में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारकों, चेतावनी संकेतों और हस्तक्षेप उपायों को संबोधित करने हेतु दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
  • साइकोमेट्रिक आकलन:
    • सैन्य कर्मियों और उनके परिवारों की मानसिक स्वास्थ्य के आकलन के लिये तीन नोडल सैन्य स्टेशनों पर एक सिविल एजेंसी (दिशा किरण) के सहयोग सहित पायलट परियोजनाएँ शुरू की जा रही हैं।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम:
    • विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू किये जाते हैं- जैसे रक्षा मनोवैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान (DIPR) में 30 अधिकारियों का वार्षिक प्रशिक्षण और कमांड अस्पतालों, बेस अस्पतालों और सैन्य अस्पतालों में चार सप्ताह के लिये "धार्मिक शिक्षक परामर्शदाता पाठ्यक्रम" का संचालन।
  • यूनिट मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता पाठ्यक्रम:
    • जूनियर कमीशंड अधिकारियों और गैर-कमीशंड अधिकारियों को उनकी इकाइयों के भीतर मनोवैज्ञानिक चिंताओं को संबोधित करने के कौशल से लैस करने के लिये 12-सप्ताह का यूनिट मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता पाठ्यक्रम आयोजित किया जाता है।
    • भारतीय सेना ने सभी रैंकों के मानसिक कल्याण हेतु समर्थन बढ़ाने के लिये सभी प्रमुख सैन्य स्टेशनों में नागरिक परामर्शदाताओं को नियुक्त किया है।
  • हेल्पलाइन: 
    • तत्काल परामर्श सेवाएँ प्रदान करने वाली हेल्पलाइनें सभी कमान मुख्यालयों में स्थापित की गई हैं।
  • मनोरोग केंद्र:
    • इन्हें चिकित्सा सेवा महानिदेशालय के तहत प्रमुख सैन्य स्टेशनों पर स्थापित किया गया है।
  • समग्र दृष्टिकोण: 
    • इन उपायों में योग, ध्यान, खेल और मनोरंजन गतिविधियाँ, उदारीकृत छुट्टी नीतियाँ, सैन्य स्टेशनों में सुविधाओं में सुधार, सैनिकों के लिये पारस्परिक मित्र प्रणाली एवं त्वरित शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं।
    • मानसिक कल्याण, वित्तीय प्रबंधन और घरेलू मुद्दों पर नियमित सेमिनार आयोजित किये जाते हैं।
  • सतत् मूल्यांकन और सुधार:
    • चल रहे अध्ययन, प्रशिक्षण कार्यक्रम और सहयोगी परियोजनाएँ मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान में निरंतर मूल्यांकन और सुधार के लिये सेना की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय समाज में नवयुवतियों में आत्महत्या क्यों बढ़ रही है? स्पष्ट कीजिये। (2023)

प्रश्न. निम्नलिखित उद्धरण का आपके विचार से क्या अभिप्राय है?

"हम बाहरी दुनिया में तब तक शांति प्राप्त नहीं कर सकते जब तक कि हम अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं कर लेते।" - दलाई लामा। (2021)


शासन व्यवस्था

OBC तथा अन्य के लिये श्रेयस योजना

प्रिलिम्स के लिये:

श्रेयस योजना, OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिये केंद्रीय क्षेत्रक योजनाएँ, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, ओबीसी के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप, SC के लिये राष्ट्रीय प्रवासी योजना

मेन्स के लिये:

श्रेयस योजना, भारत में शिक्षा क्षेत्र में असमानताओं के निस्तारण में वित्तीय सहायता तथा छात्रवृत्ति की भूमिका

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

युवा विजेताओं के लिये उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति योजना- श्रेयस (Scholarships for Higher Education for Young Achievers Scheme- SHREYAS) को OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और EBC के लिये चल रही दो केंद्रीय क्षेत्रक योजनाओं को शामिल करके वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 के दौरान लागू करने का प्रस्ताव दिया गया है। 

  • ये योजनाएँ हैं- OBC के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप तथा अन्य पिछड़े वर्गों (OBC ) एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EBC) के लिये विदेश में अध्ययन हेतु शैक्षणिक ऋण पर ब्याज अनुदान की डॉ. अंबेडकर केंद्रीय क्षेत्र योजना।

श्रेयस योजना क्या है? 

  • परिचय:
    • इनका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये फेलोशिप (वित्तीय सहायता) तथा विदेश में अध्ययन हेतु शैक्षणिक ऋण पर ब्याज अनुदान प्रदान करके ओबीसी और ईबीसी छात्रों का शैक्षणिक रूप से सशक्त बनाना है। 
  • नोडल मंत्रालय:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय।
  • मुख्य घटकः
    • OBC के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप:
      • परिचय: इसका उद्देश्य विभिन्न मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों, अनुसंधान और वैज्ञानिक संस्थानों में  उच्च शिक्षा, विशेष रूप से एम.फिल तथा पीएच.डी की पढाई करने वाले OBC छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 
        • यह योजना उन्नत अध्ययन और अनुसंधान के लिये सालाना 1000 जूनियर रिसर्च फेलोशिप (वित्तीय सहायता) प्रदान करती है। यह फेलोशिप उन छात्रों को प्रदान की जाती है जिन्होंने UGC-NET या UGC-CSIR NET-JRF संयुक्त परीक्षा जैसे विशिष्ट परीक्षणों के माध्यम से अर्हता प्राप्त की है।
      • मुख्य विशेषताएँ: यह वित्तीय सहायता राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त और विकास निगम (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत सरकार का उपक्रम) के माध्यम से प्रदान की जाती है।
        • आकस्मिकताओं के अलावा JRF के लिये फेलोशिप दरें 31,000 रुपए प्रति माह और SRF के लिये 35,000 रुपए प्रति माह निर्धारित की गई हैं।
        • दिव्यांग छात्रों के लिये सीटों का आरक्षण और आरक्षित सरकारी कोटे से परे अतिरिक्त स्लॉट।
        • योजना को लागू करने के लिये UGC नोडल एजेंसी है।
    • अन्य पिछड़े वर्गों (OBC ) एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EBC) के लिये विदेश में अध्ययन हेतु शैक्षणिक ऋण पर ब्याज अनुदान की डॉ. अंबेडकर केंद्रीय क्षेत्र योजना:
      • इसका उद्देश्य विदेश में स्नात्तकोत्तर, एम.फिल और पी.एच.डी. स्तर पर अनुमोदित पाठ्यक्रम की पढ़ाई करने वाले OBC और EBC के लिये शैक्षणिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी प्रदान करना है।
      • यह योजना केनरा बैंक के माध्यम से कार्यान्वित की गई है और विदेश में उच्च अध्ययन के लिये मौजूदा शैक्षणिक ऋण योजनाओं से जुड़ी है।
      • पात्रता मानदंड में OBC उम्मीदवारों के लिये क्रीमी लेयर मानदंड के आधार पर आय प्रतिबंध और EBC उम्मीदवारों के लिये प्रतिवर्ष 5.00 लाख रुपए की आय सीमा शामिल है।
      • वित्तीय सहायता का 50% महिला उम्मीदवारों के लिये आरक्षित है।
      • सरकार अधिस्थगन अवधि के दौरान देय 100% ब्याज वहन करती है, जिसके बाद छात्र ऋण पुनर्भुगतान की ज़िम्मेदारी लेता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का शिक्षा पर प्रभाव है?  (2012)

  1. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय 
  3. पाँचवी अनुसूची 
  4. छठी अनुसूची 
  5. सातवीं अनुसूची

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 3, 4 और 5
 (C) केवल 1, 2 और 5
 (D) 1, 2, 3, 4 और 5


मेन्स:

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये (2021)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इलेक्ट्रिक बैटरियाँ और इलेक्ट्रोकेमिकल सेल

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रोकेमिकल सेल, इलेक्ट्रिक वाहन, वोल्टाइक सेल, लिथियम-आयन प्रौद्योगिकी, वर्ष 2019 के लिये रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार, इलेक्ट्रिक बैटरी के अनुप्रयोग।

मेन्स के लिये:

इलेक्ट्रोकेमिकल सेल, बैटरियों का विकासवादी प्रक्षेप पथ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

इलेक्ट्रिक बैटरियों और इलेक्ट्रोकेमिकल सेल की प्रगति ने परिवहन और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी क्रांति लाकर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है, जो हमें एक स्थायी भविष्य की ओर ले जाता है।

इलेक्ट्रिक बैटरियाँ और इलेक्ट्रोकेमिकल सेल क्या हैं?

  • इलेक्ट्रिक बैटरियाँ :
    • इलेक्ट्रिक बैटरी एक ऐसा उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को संग्रहीत करता है और इसे बिजली में परिवर्तित करता है।
      • बैटरियाँ एक या अधिक इलेक्ट्रोकेमिकल कोशिकाओं से बनी होती हैं जो बाहरी इनपुट और आउटपुट से जुड़ी होती हैं।
    • इलेक्ट्रिक बैटरियों ने मोटराइज़ेशन और वायरलेस प्रौद्योगिकी के प्रसार को सक्षम करके हमारी दुनिया को बदल दिया है।
    • प्रमुख अनुप्रयोग:
      • पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट और पहनने योग्य उपकरणों को सशक्त बनाना।
      • परिवहन: व्यक्तिगत और सार्वजनिक परिवहन दोनों के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का संचालन तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना।
      • नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण: सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को बाद में उपयोग के लिये संग्रहीत करना।
      • दूरस्थ क्षेत्रों के लिये बिजली: दूरस्थ या ऑफ-ग्रिड स्थानों पर बिजली प्रदान करना जहाँ पारंपरिक बिजली स्रोत अनुपलब्ध या अविश्वसनीय हैं।
  • बैटरियों के प्रमुख प्रकार:
    • सॉलिड-स्टेट बैटरी: यह एक ऐसी बैटरी है जो लिक्विड या पॉलिमर जेल इलेक्ट्रोलाइट के बजाय सॉलिड इलेक्ट्रोड और सॉलिड इलेक्ट्रोलाइट का उपयोग करती है।
      • सॉलिड-स्टेट बैटरियों का उपयोग विभिन्न उपकरणों में किया जाता है, जिनमें शामिल हैं: पेसमेकर, रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) और पहनने योग्य डिवाइस।
    • निकेल-कैडमियम बैटरी (Ni-Cd): इनका उपयोग ताररहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, ड्रिल, कैमकोर्डर और अन्य छोटे बैटरी चालित उपकरणों के लिये किया जाता है, जिनके लिये समान पावर डिस्चार्ज की आवश्यकता होती है।
    • क्षारीय बैटरी: यह एक प्रकार की प्राथमिक बैटरी है जो इलेक्ट्रोड के रूप में जिंक और मैंगनीज़ डाइऑक्साइड का उपयोग करती है।
      • इसका उपयोग उन अनुप्रयोगों के लिये किया जाता है जिनके लिये कम लागत और विश्वसनीय विद्युत की आवश्यकता होती है, जैसे- फ्लैशलाइट, खिलौने, रेडियो और रिमोट कंट्रोल।
    • लिथियम-आयन बैटरी: ली-आयन बैटरी के अभूतपूर्व सिद्धांतों ने इसके डेवलपर्स को वर्ष 2019 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार दिलाया, जो 20वीं और 21वीं सदी में इसके गहरे प्रभाव को रेखांकित करता है।
      • ली-आयन बैटरियाँ बहुमुखी हैं, जो फोन और लैपटॉप जैसे पोर्टेबल उपकरणों को ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ कारों और बाइक जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये भी उपयोगी हैं।
  • विद्युत रासायनिक सेल:
    • इलेक्ट्रोकेमिकल सेल ऐसे उपकरण हैं जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सकते हैं, या इसके विपरीत प्रतिक्रिया करते हैं।
      • वे रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से विद्युत प्रवाह उत्पन्न कर सकते हैं या रासायनिक प्रतिक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने के लिये विद्युत ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं।
    • इलेक्ट्रोकेमिकल सेल, जैसे वोल्टाइक या गैल्वेनिक सेल, रेडॉक्स प्रतिक्रियाओं के माध्यम से संचालित होते हैं, जिसमें ऑक्सीकरण के दौरान इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं और कमी के दौरान उपयोग किये जाते हैं।
      • एक मानक सेल में विशिष्ट इलेक्ट्रोलाइट्स में डूबे धातु इलेक्ट्रोड को समायोजित करने वाले दो खंड होते हैं।
        • इलेक्ट्रोड अर्थात् एनोड और कैथोड, विद्युत संचालन करते हैं।
      • एनोड में जहाँ ऑक्सीकरण होता है, कैथोड, में अपचयन होता है, सेल के मूलभूत घटक बनाते हैं।
    • इलेक्ट्रॉन एक बाहरी सर्किट के माध्यम से नकारात्मक रूप से चार्ज किये गए एनोड से सकारात्मक रूप से चार्ज किये गए कैथोड में प्रवाहित होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के उपयोगों के लिये ऊर्जा प्रदान करते हैं।
      • इन हिस्सों को जोड़ने वाला एक तार और एक लवण सेतु है, जो उनके बीच आयनों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाता है।
    • इलेक्ट्रॉनों द्वारा ली गई ऊर्जा स्रोत वोल्टेज को निर्देशित करती है, जिससे सर्किट के भीतर इलेक्ट्रॉन प्रवाह नियंत्रित होता है।
      • आदर्श परिस्थितियों में स्रोत वोल्टेज टर्मिनल वोल्टेज के बराबर होता है, जो एक कुशल विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
    • सेल डिज़ाइन और सामग्रियों में प्रगति, निकल-कैडमियम, ज़िंक-कॉपर तथा आधुनिक लिथियम-आयन सेल में देखी गई, जो बढ़े हुए वोल्टेज एवं बढ़ी हुई दक्षता को दर्शाती है।
  • संबंधित चुनौतियाँ:
    • इलेक्ट्रोकेमिकल सेल की दक्षता को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक ‘जंग’ है। उदाहरण के लिये उच्च आर्द्रता वाले वातावरण में इलेक्ट्रोड जल की बूंँदों को इकट्ठा कर सकते हैं।
      • यदि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर ऊँचा हो जाता है, तो जल और गैस के संयोजन से कार्बोनिक एसिड का निर्माण होता है, जिससे इलेक्ट्रोड सतहों पर जंग लग जाती है।
    • एक अन्य समस्या गैल्वेनिक संक्षारण से उत्पन्न होती है, जहाँ एक सेल के भीतर इलेक्ट्रोड में से एक अपनी उच्च प्रतिक्रियाशीलता के कारण इलेक्ट्रोलाइट में तेज़ी से खराब हो जाता है।
      • उदाहरण के लिये कार्बन-ज़िंक बैटरी में बैटरी के उपयोग के दौरान जिंक इलेक्ट्रोड अधिक तेज़ी से नष्ट हो जाता है।

बैटरियों का विकासपरक प्रक्षेप पथ क्या है?

  • गैलवानी का प्रयोग (1780):
    • लुइगी गैलवानी के धातुओं तथा मेंढक के पैरों से जुड़े प्रयोग से विद्युत ऊर्जा एवं मांसपेशियों की गति के बीच एक अनोखे संबंध का पता चला, जिसने भविष्य में बैटरी के विकास के लिये आधार तैयार किया।
  • वोल्टाइक पाइल (1800):
    • एलेसेंड्रो वोल्टा के वोल्टाइक पाइल ने धातु प्लेटों तथा इलेक्ट्रोलाइट्स का उपयोग करके एक स्थिर धारा उत्पन्न की जो एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
      • हालाँकि इसकी कार्यात्मकता एक रहस्य बनी रही।
  • फैराडे की अंतर्दृष्टि (19वीं सदी की शुरुआत):
    • माइकल फैराडे के अभूतपूर्व कार्य ने कोशिकाओं की व्यावहारिकता को समझा तथा एनोड, कैथोड और इलेक्ट्रोलाइट जैसे घटकों की भूमिकाओं का खुलासा किया।
  • लिथियम-आयन बैटरी: यह बैटरी वोल्टाइक तथा इलेक्ट्रोलाइटिक सेल दोनों के रूप में कार्य करती है, जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने में सक्षम है तथा इसके विपरीत रिचार्जिंग को सक्षम बनाती है।
    • लिथियम-आयन कोशिकाओं में लिथियम धातु ऑक्साइड तथा ग्रेफाइट क्रमशः कैथोड और एनोड के रूप में कार्य करते हैं, एक अर्द्ध-ठोस पॉलिमर जेल इलेक्ट्रोलाइट उन्हें अलग करता है।
    • इंटरकैलेशन प्रक्रिया चार्ज एवं डिस्चार्ज चरणों को सक्षम बनाती है।

नोट: वर्ष 2019 के लिये रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जॉन बी.गुडइनफ, एम. स्टेनली व्हिटिंगम तथा अकीरा योशिनो को लिथियम-आयन बैटरी के विकास में उनके योगदान के लिये प्रदान किया गया था।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से धातुओं का कौन-सा युग्म क्रमशः सबसे हल्की और सबसे भारी धातु का वर्णन करता है? (2008)

(a) लिथियम और पारा
(b) लिथियम और ऑस्मियम
(c) एल्युमीनियम और ऑस्मियम
(d) एल्युमीनियम और पारा

उत्तर: (b)


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