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डेली न्यूज़

  • 16 Sep, 2021
  • 44 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कनेक्टिविटी परियोजनाएँ: भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार (BCIM) कॉरिडोर, भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौता, भारत, म्याँमार और थाईलैंड मोटर वाहन समझौता, कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट

मेन्स के लिये:

भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में कनेक्टिविटी परियोजनाओं का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारत-आसियान कनेक्टिविटी साझेदारी के भविष्य पर आसियान शिखर सम्मेलन’ में भारत सरकार ने भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच सीमा पार कनेक्टिविटी के महत्त्व को रेखांकित किया।

  • आसियान 10 दक्षिण-पूर्व एशियाई राज्यों- ‘ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम का एक संगठन है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच कनेक्टिविटी
    • भारत वर्तमान में आसियान के साथ भूमि, जल और वायु के माध्यम से कई कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर काम कर रहा है।
    • कनेक्टिविटी के माध्यम से आसियान-भारत संबंधों को महत्त्व देने से इस क्षेत्र के भू-राजनीतिक परिदृश्य में धीरे-धीरे बदलाव आएगा।
    • इस संदर्भ में  भारत अब पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय रूप से बुनियादी ढाँचे का विकास कर रहा है।
    • ये कनेक्टिविटी परियोजनाएँ न केवल मौजूदा उग्रवाद पर अंकुश लगाएंगी, बल्कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अपनी आर्थिक क्षमता विकसित करने और भारत की मुख्य भूमि के साथ एकीकृत करने में भी मदद करेंगी।
    • इसके अलावा भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) अपने पूर्वी पड़ोसियों के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव का केंद्र है।
      • यह सीमावर्ती क्षेत्रों में छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों को व्यापार के नए अवसर तलाशने में सक्षम बनाएगा।
  • क्रॉस कनेक्टिविटी परियोजनाओं के उदाहरण:
    • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग:
      • यह आसियान और भारत के मध्य भूमि संपर्क हेतु प्रमुख परियोजनाओं में से एक है।
      • वर्ष 2002 में पहली बार भारत के मोरेह (मणिपुर) को थाईलैंड के माई सॉट (Mae Sot)  और माई सॉट को  म्याँमार से  जोड़ने का प्रस्ताव लाया गया।
      • इसके अलावा भारत, म्याँमार और थाईलैंड मोटर वाहन समझौता (IMT MVA) अंतिम चरण में है।
        • इसके पूर्ण होने पर यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य पहला सीमा पार सुविधा समझौता बन जाएगा।

Myanmar

  • कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP): 
    • जल मार्ग के माध्यम से कनेक्टिविटी विकसित करने हेतु आसियान और भारत  KMMTTP पर कार्य कर रहे हैं।
    • इसे वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था और पूरी तरह से भारत द्वारा वित्तपोषित है।
    • भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में म्याँमार से माल के परिवहन हेतु एक वैकल्पिक मार्ग की तलाश करना।
    • यह भारत के कोलकाता को क्रमशः समुद्र और नदी द्वारा म्याँमार के सितवे (Sittwe) और पलेटवा (Paletwa) से जोड़ता है।
    • इस पहल के साथ-साथ, भारत ने बांग्लादेश के माध्यम से एक वैकल्पिक पारगमन मार्ग हेतु म्याँमार के सितवे बंदरगाह के माध्यम से एक समुद्री लिंक को विकसित करने में सहयोग दिया है।

Bay-of-Bangal

  • मेकांग-भारत आर्थिक गलियारा (MIEC): 
    • इसमें भारत के साथ चार ‘मेकांग देशों’ यथा- वियतनाम, म्याँमार, थाईलैंड और कंबोडिया का एकीकरण शामिल है, जो ‘हो ची मिन्ह सिटी’, ‘दावेई’, ‘बैंकॉक’ और ‘नोम पेन्ह’ को चेन्नई से जोड़ता है।
    • यह कॉरिडोर भागीदार देशों को बुनियादी अवसंरचना के विकास, अपने आर्थिक आधार को बढ़ाने और विशेष रूप से भारत एवं आसियान देशों के बीच ट्रांज़िट दूरी को कम करने के अवसर प्रदान करेगा।

MIEC

आगे की राह

  • त्रिपक्षीय राजमार्ग का विस्तार: त्रिपक्षीय राजमार्ग को कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक बढ़ाया जा सकता है। यह अपने पूर्वी पड़ोसियों के साथ भारत के पूर्वोत्तर के अधिक संपर्क एवं आर्थिक एकीकरण को सक्षम करेगा।
  • डिजिटल हाईवे: दो क्षेत्रों के बीच वस्तुओं की आवाजाही और भौतिक कनेक्टिविटी के अलावा उनके बीच डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के तरीकों का पता लगाना भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • यह भारत को वैश्विक डेटा हब में बदलने के भारत सरकार के प्रयासों के अनुरूप है।
  • समुद्री संपर्क में सुधार: "सागरमाला" परियोजना की शुरुआत के साथ भारत समुद्र के माध्यम से बेहतर एकीकरण और कनेक्टिविटी के लिये बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे में निवेश करने की योजना बना रहा है। यह भारत-आसियान कनेक्टिविटी परियोजनाओं को बढ़ाने की दिशा में एक उत्साहजनक कदम है।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व ओज़ोन दिवस

प्रिलिम्स के लिये

विश्व ओज़ोन दिवस, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल 

मेन्स के लिये

ओज़ोन परत के संरक्षण का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

प्रतिवर्ष 16 सितंबर को ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस (विश्व ओज़ोन दिवस) के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1987 में 16 सितंबर के दिन मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol) पर हस्ताक्षर किये जाने के उपलक्ष्य में विश्व ओज़ोन दिवस मनाने की घोषणा की थी। 
      • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर और कई अन्य उत्पादों में 99% ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है।
      • वर्ष 2018 में किया गया ओज़ोन क्षरण का नवीनतम वैज्ञानिक आकलन दर्शाता है कि वर्ष 2000 के बाद से ओज़ोन परत के कुछ हिस्सों में प्रति दशक 1-3% की दर से सुधार हुआ है।
      • ओज़ोन परत संरक्षण प्रयासों ने वर्ष 1990 से 2010 तक अनुमानित 135 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष उत्सर्जन को रोककर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में योगदान दिया है।
      • सितंबर 2009 में वियना कन्वेंशन और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल सार्वभौमिक अनुसमर्थन प्राप्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में पहली संधियाँ बन गईं।
        • वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन में ओज़ोन परत की रक्षा के लिये कार्रवाई करने हेतु सहयोग के लिये एक तंत्र की स्थापना को औपचारिक रूप दिया गया था।
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों से संबंधित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत किये गए किगाली संशोधन के अनुसमर्थन को स्वीकृति दे दी है। इस संशोधन को अक्तूबर 2016 में रवांडा के किगाली में आयोजित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28वीं बैठक के दौरान अंगीकृत किया गया था। 
  • 2021 थीम:
    • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल- हमें, हमारे भोजन और टीकों को ठंडा रखना है (Keeping us, Our Food, and Vaccines Cool)

ओज़ोन

  • परिचय:
    • यह ऑक्सीजन का एक विशेष रूप है जिसका रासायनिक सूत्र O3 है। हम श्वास के लिये जिस ऑक्सीजन को ग्रहण करते हैं और जो पृथ्वी पर जीवन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, वह O2 है। 
    • अधिकांश ओज़ोन पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किमी. के बीच वायुमंडल में उच्च स्तर पर रहती है। इस क्षेत्र को समताप मंडल (Stratosphere) कहा जाता है और वायुमंडल में पाई जाने वाली समग्र ओज़ोन का लगभग 90% हिस्सा यहाँ पाया जाता है।
  • वर्गीकरण:
    • गुड ओज़ोन: 
      • ओज़ोन प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल (समताप मंडल) में होती है जहाँ यह एक सुरक्षात्मक परत बनाती है। यह परत हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
      • मानव निर्मित रसायनों जिन्हें ओज़ोन क्षयकारी पदार्थं (ODS) कहा जाता है, के कारण यह ओज़ोन धीरे-धीरे नष्ट हो रही है। ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC), हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
    • बैड ओज़ोन: 
      • ज़मीनी स्तर के पास पृथ्वी के निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) में ओज़ोन का निर्माण तब होता है जब कारों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियों, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषक सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं।
        • सतही स्तर का ओज़ोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है।

Ozone


जैव विविधता और पर्यावरण

खाद्य शृंखला में आर्सेनिक की उपस्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

आर्सेनिक, जल जीवन मिशन, विश्व स्वास्थ्य सगंठन

मेन्स के लिये:

खाद्य शृंखला में आर्सेनिक की उपस्थिति और इसके निहितार्थ, आर्सेनिक की विषाक्तता

चर्चा में क्यों?

बिहार में किये गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि आर्सेनिक न केवल भूजल को बल्कि खाद्य शृंखला को भी दूषित करता है।

  • यह शोध ‘नेचर एंड नरचर इन आर्सेनिक इन्ड्यूस्ड टॉक्सिसिटी ऑफ बिहार’ परियोजना का एक हिस्सा था, जिसे यूनाइटेड किंगडम में ब्रिटिश काउंसिल और भारत में ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

affected-Areas

  • मुख्य निष्कर्ष
    • खाद्य शृंखला संदूषण:
      • खाद्य शृंखला में आर्सेनिक की उपस्थिति दर्ज की गई है- मुख्य रूप से चावल, गेहूँ और आलू में।
        • भूजल में आर्सेनिक संदूषण देश भर के कई हिस्सों में गंभीर चिंता का विषय रहा है।
      • भूजल में आर्सेनिक मौजूद है और इसका उपयोग किसानों द्वारा सिंचाई के लिये बड़े पैमाने पर किया जाता है। अतः खाद्य शृंखला में इसकी उपस्थिति का भी यही कारण है।
    • खाद्य बनाम जल संदूषण 
      • शोध के मुताबिक, पीने योग्य जल की तुलना में भोजन में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई, वहीं पीने योग्य जल में आर्सेनिक का मौजूदा स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर (μg/L) के अनंतिम गाइड मूल्य से भी ऊपर है।
        • कच्चे चावल की तुलना में पके चावल में इसकी सांद्रता काफी अधिक देखी गई।

Arsenic

  • आर्सेनिक :
    • परिचय :
      • यह एक गंधहीन और स्वादहीन उपधातु (Metalloid) है जो व्यापक रूप से पृथ्वी की भूपर्पटी पर विस्तृत है।
      • यह अनेक देशों की भू-पर्पटी और भूजल में उच्च मात्रा में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह अपने अकार्बनिक रूप में अत्यधिक विषैला होता है।
    • आर्सेनिक विषाक्तता :
      • यह पीने के पानी के अलावा आर्सेनिक से दूषित भोजन को खाने से मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है।
      • आर्सेनिकोसिस, आर्सेनिक विषाक्तता के लिये चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग किया जाने  वाला एक शब्द है, जो शरीर में बड़ी मात्रा में आर्सेनिक के जमा होने के कारण होता है।
      • यह आवश्यक एंज़ाइमों के निषेध के माध्यम से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जो विभिन्न प्रकार की विकलांगता के साथ ही अंततः मृत्यु का कारण बन सकता है।
      • पीने के पानी और भोजन के माध्यम से आर्सेनिक के लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर और त्वचा पर घाव हो सकते हैं। इसे हृदय रोग और मधुमेह से भी संबद्ध माना जाता है। 
      • गर्भाशय और बाल्यावस्था ​में जोखिम को संज्ञानात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभावों तथा इसके कारण युवाओं में बढ़ती मृत्यु दर से जोड़ा गया है।
  • उठाए गए कदम: वर्ष 2030 सतत् विकास हेतु एजेंडा का "सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल सेवाओं" नामक संकेतक आबादी तक ऐसे पीने के पानी को पहुँचाने का प्रावधान करता है जो आर्सेनिक सहित मल संदूषण और प्राथमिकता वाले रासायनिक संदूषकों से मुक्त हो।
    • जल जीवन मिशन की परिकल्पना ग्रामीण भारत के सभी घरों में वर्ष 2024 तक व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिये की गई है।
    • हाल ही में जल जीवन मिशन (शहरी) भी शुरू किया गया है।

आगे की राह:

  • पीने के पानी के साथ-साथ सिंचाई के पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • आवश्यकता इस बात की है कि योजना और रखरखाव कार्य में जनता को शामिल करके इसके शमन को सफल बनाया जाए, साथ ही राज्यों को आवश्यक प्रोत्साहन भी दिया जाए।
  • उपचारात्मक उपायों में विभिन्न प्रकार के विकल्प शामिल हैं, जैसे- भूजल से आर्सेनिक निकालने के बाद वैकल्पिक जलभृत की खोज करना, जलभृत के अंतः स्तर को कम करना, कृत्रिम पुनर्भरण द्वारा दूषित पदार्थों को कम करना, पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना आदि।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड-19 का Mu वेरिएंट

प्रिलिम्स के लिये

कोविड-19 का Mu वेरिएंट, डेल्टा वेरिएंट, स्पाइक प्रोटीन, कप्पा और लैम्ब्डा वेरिएंट

मेन्स के लिये

कोविड-19 के Mu वेरिएंट से संबंधित मुद्दे और चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (Variants of Interest- VOI) की सूची में कोविड-19 का एक नया वेरिएंट जोड़ा है और इसे Mu (B.1.621) नाम दिया है। इसने C.1.2 को एक नए VOI के रूप में भी जोड़ा है।

  • जीनोमिक्स पर भारतीय SARS-CoV-2 कंसोर्टियम (Indian SARS-CoV-2 Genomics Consortium- INSACOG) के अनुसार, भारत ने अब तक Mu और C.1.2 नहीं देखा है और डेल्टा वेरिएंट तथा इसके उप-वंश मुख्य वेरिएंट ऑफ कंसर्न (Variants of Concern- VOC) बने हुए हैं।
  • C.1.2 दक्षिण अफ्रीका में वर्णित C.1 वेरिएंट का एक उप-वंश है, लेकिन यह अभी वैश्विक स्तर पर नहीं फैला है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • Mu, B.1.621 वेरिएंट वंश से संबंधित है और इसका नाम ग्रीक वर्णमाला के बारहवें अक्षर लिया गया है। यह पहली बार जनवरी 2021 में कोलंबिया में पाया गया था।
    • इसमें म्यूटेशन का एक समूह है जो प्रतिरक्षा से बचने के संभावित गुणों का संकेत देते हैं। इसमें स्पाइक प्रोटीन और अमीनो एसिड परिवर्तनों को प्रभावित करने वाले कई विकल्प हैं।
    • इसने म्यूटेशन (Mutations), E484K, N501Y, P681H, D614G देखे हैं, जो अन्य VOI और VOC में सूचित किये गए हैं।
    • WHO द्वारा निगरानी किया जाने वाला यह पाँचवां 'वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट' है। अन्य चार वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट इस प्रकार हैं:

वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट:

  • इस श्रेणी में उन वेरिएंट्स को शामिल किया जाता है जिनमें शामिल आनुवंशिक परिवर्तन पूर्णतः अनुमानित होते हैं और उन्हें संचारण क्षमता, रोग की गंभीरता या प्रतिरक्षा क्षमता को प्रभावित करने के लिये जाना जाता है।
  • ये वेरिएंट्स कई देशों और जनसंख्या समूहों के बीच गंभीर सामुदायिक प्रसारण का कारण भी बने हैं।

 वेरिएंट ऑफ कंसर्न:

  • वायरस के इस वेरिएंट के परिणामस्वरूप संक्रामकता में वृद्धि, अधिक गंभीर बीमारी (जैसे- अस्पताल में भर्ती या मृत्यु हो जाना), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी में महत्त्वपूर्ण कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक उपचार की विफलता देखने को मिलती है।
  • अब तक ऐसे चार वेरिएंट (अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा) हैं,  जिन्हें  ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ के रूप में नामित किया गया है और इन्हें बड़ा खतरा माना जाता है।
    • अल्फा (वंश  B.1.1.7, तथाकथित 'यूके वेरिएंट'), बीटा (वंश B.1.351, 'दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट'), गामा (वंश P.1, 'ब्राज़ील वेरिएंट'), डेल्टा (वंश B.1.617.2)।

म्यूटेशन, वेरिएंट तथा स्ट्रेन

Mutation

  • जब कोई वायरस अपनी प्रतिकृति बनाता है तो वह हमेशा अपनी एक सटीक प्रतिकृति नहीं बना पाता है।
  • इसका तात्पर्य यह है कि समय के साथ वायरस अपने आनुवंशिक अनुक्रम के संदर्भ में थोड़ा भिन्न होना शुरू कर सकता है।
  • इस प्रक्रिया के दौरान वायरस के आनुवंशिक अनुक्रम में कोई भी परिवर्तन उत्परिवर्तन यानी म्यूटेशन के रूप में जाना जाता है।
  • नए म्यूटेशन वाले वायरस को कभी-कभी वेरिएंट कहा जाता है। वेरिएंट एक या कई म्यूटेशन से भिन्न हो सकते हैं।
  • जब एक नए वेरिएंट में मूल वायरस की तुलना में अलग-अलग कार्यात्मक गुण होते हैं और यह जन आबादी के बीच अपना स्थान बना लेता है, तो इसे कभी-कभी वायरस के नए स्ट्रेन के रूप में जाना जाता है।
    • सभी स्ट्रेन, वेरिएंट होते हैं लेकिन सभी वेरिएंट स्ट्रेन नहीं होते।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

IBC के तहत समाधान योजना में कोई संशोधन नहीं: SC

प्रिलिम्स के लिये:

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल, इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन विधेयक), कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया

मेन्स के लिये:

IBC के तहत समाधान योजना में संशोधन से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना कि ‘नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ (NCLT) को प्रस्तुत इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड’ (IBC) के तहत लेनदारों की समिति (CoC) द्वारा अनुमोदित समाधान योजना को संशोधित नहीं किया जा सकता है।

इससे पहले जुलाई 2021 में सरकार ने ‘दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन विधेयक), 2021’ को लोकसभा में पेश किया था।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • कोई संशोधन नहीं: एक बार योजना को प्रस्तुत करने के बाद निर्णायक प्राधिकरण सफल समाधान आवेदक के आदेश पर लेनदारों की समिति द्वारा अनुमोदित संकल्प योजनाओं में संशोधन या वापसी की अनुमति नहीं दे सकता है।
    • समय पर पूरा करना: IBC के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) को संहिता द्वारा निर्धारित 330 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये।
      • इसने वित्त पर संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) के समक्ष 71 फीसदी मामले 180 दिनों से अधिक समय से लंबित हैं।
      • एनसीएलटी और नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) को इस निर्णय पर बने रहने के लिये कहा गया और सुझाव दिया कि आईबीसी संबंधी मामलों का फैसला करते समय दिवाला समाधान प्रक्रिया पर इस तरह की देरी के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए समयसीमा का सम्मान करना चाहिये।
      • न्यायिक देरी आईबीसी से पहले प्रभावी दिवाला शासन की विफलता के प्रमुख कारणों में से एक थी।
      • समयसीमा को केवल असाधारण परिस्थितियों में ही बढ़ाया जा सकता है, अन्यथा आगे की बातचीत या वापसी के लिये ओपन-एंडेड प्रक्रिया, कॉर्पोरेट देनदार, उसके लेनदारों और बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव डालेगी क्योंकि समय बीतने के साथ परिसमापन मूल्य कम हो जाता है। 
  • भारत में दिवाला समाधान प्रक्रिया:
    • पात्रता: दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) के तहत कंपनियों (प्राइवेट और पब्लिक लिमिटेड कंपनी दोनों) और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) को डिफॉल्ट कॉर्पोरेट देनदार माना जा सकता है।
      • एक निगमित/कॉर्पोरेट देनदार कोई भी कॉर्पोरेट संगठन हो सकता है जो किसी भी व्यक्ति को ऋण देता है।
    • डिफाॅल्ट राशि: 1 करोड़ रुपए का न्यूनतम डिफाॅल्ट होने पर IBC को सूचित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (NCLT) के समक्ष एक आवेदन दाखिल कर शुरू किया जा सकता है।
    • समाधान पहल: यह प्रक्रिया दो वर्गों के लेनदारों द्वारा शुरू की जा सकती है जिसमें वित्तीय लेनदार (Financial Creditors) और परिचालन लेनदार (Operational Creditors) शामिल होंगे।
      • लेनदार: एक लेनदार का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति जिस पर कर्ज़/ऋण बकाया हो। इसमें एक वित्तीय लेनदार, एक परिचालन लेनदार आदि शामिल हैं।
      • वित्तीय लेनदार: सरल शब्दों में वित्तीय लेनदार वह संस्था है जो कॉर्पोरेट इकाई को ऋण, बॉण्ड आदि के रूप में धन प्रदान करती है। उदाहरण के लिये बैंक।
      • ऑपरेशनल क्रेडिटर्स: एक ऑपरेशनल क्रेडिटर वह इकाई होती है जो डिफॉल्ट कॉरपोरेट- सामान, सेवाएंँ, रोज़गार और सरकारी बकाया (केंद्र सरकार, राज्य या स्थानीय निकाय) इन चारों श्रेणियों में से कोई भी प्रदान करने का दावा प्रस्तुत करती हो।
    • अंतरिम समाधान पेशेवर की नियुक्ति: जैसे ही NCLT द्वारा मामले को स्वीकार किया जाता है, तो यह एक अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) की नियुक्ति के साथ कार्यवाही को आगे बढ़ता है जो चूककर्त्ता देनदार (Defaulting Debtor) का प्रबंधन संभालता है।
    • लेनदारों की समिति (CoC): IRP द्वारा केवल वित्तीय लेनदारों अर्थात् CoC से मिलकर एक समिति का गठन किया जाता है।
      • कम-से-कम 10% की कुल बकाया राशि वाले परिचालन लेनदारों को ही CoC की बैठक में आमंत्रित किया जाता है (ऑपरेशनल लेनदार CoC के सदस्य नहीं होते हैं)। परिचालन लेनदारों (Operational Creditors) के पास कोई मतदान शक्ति नहीं है।
    • कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया' (CIRP) : इसमें कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिये आवश्यक कदम शामिल हैं, जैसे- ऑपरेशन के लिये नए फंड जुटाना, कंपनी को बेचने हेतु एक नए खरीदार की तलाश करना आदि।
      • लेनदारों की समिति (CoC) उस बकाया ऋण के भविष्य के संबंध में निर्णय लेती है। समाधान योजना को तभी लागू किया जा सकता है जब सीओसी में 66% लेनदारों द्वारा इसे अनुमोदित किया गया हो।
      • दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC संशोधन विधेयक), 2021 ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये 1 करोड़ रुपए तक की चूक के साथ एक वैकल्पिक दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू की, जिसे प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस (PIRP) कहा जाता है।
    • परिसमापन कार्यवाही : यदि कोई समाधान योजना प्रस्तुत नहीं की जाती है या लेनदारों की समिति (CoC) द्वारा अनुमोदित नहीं की जाती है, तो CIRP प्रक्रिया को विफल माना जाता है। ऐसी स्थिति में ट्रिब्यूनल के आदेश के अधीन परिसमापन कार्यवाही शुरू होती है।

आगे की राह

  • IBC के कार्यान्वयन में आने वाले कुछ मुद्दों को निम्नलिखित उपायों द्वारा सुलभ बनाया जा सकता है:
    • एनसीएलटी के न्यायाधीशों के लिये समय पर वार्तालाप का आयोजन और विभिन्न क्षेत्राधिकारों के चिकित्सकों के बीच परस्पर क्रिया को बढ़ाना।
    • राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (NCLT) द्वारा ज़बरन वसूली, तरजीही, अवमूल्यन और धोखाधड़ी जैसे अपरिहार्य लेन-देन के संबंध में दायर आवेदनों पर उच्च प्राथमिकता के अनुसार कार्यवाही किया जाना।
    • NCLT अनेक बार स्थगन प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं और समाधान प्रक्रिया की समयबद्धता सुनिश्चित करते हैं।
  • मुकदमेबाज़ी के दायरे को कम करने और कॉर्पोरेट दिवाला के तहत कंपनियों के समाधान में परिणामी देरी के लिये IBC के तहत सरकारी एवं वैधानिक देय राशि के बारे में विभिन्न सरकारी और वैधानिक प्राधिकरणों को संवेदनशील बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

ब्लैक टाइगर्स

प्रिलिम्स के लिये : 

सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व, ब्लैक टाइगर्स, प्रोजेक्ट टाइगर

मेन्स के लिये :

सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व की वनाग्नि के प्रति सुभेद्यता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व (STR) में ओडिशा के 'ब्लैक टाइगर्स' के रंगों के पीछे के रहस्य को उजागर किया है।

  •  सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व दुनिया का एकमात्र बाघ निवास स्थान है जहाँ मेलेनिस्टिक ( Melanistic) बाघ पाए जाते हैं, जिनके शरीर पर चौड़ी काली धारियाँ/रेखाएँ' होती हैं, जो सामान्य बाघों की तुलना में मोटी होती हैं।

प्रमुख बिंदु 

Black-Tiger

  • परिचय :
    • ब्लैक टाइगर एक दुर्लभ रंग का बाघ है और यह एक विशिष्ट प्रजाति या भौगोलिक उप-प्रजाति नहीं है।
    • उसके शरीर पर कोट या धारियों का रंग एवं पैटर्न बिल्कुल जंगली बिल्लियों की तरह गहरा होता है जो ट्रांसमेम्ब्रेन एमिनोपेप्टिडेज़ क्यू (ताकपेप) (Transmembrane Aminopeptidase Q (Taqpep) जीन में एक उत्परिवर्तन के कारण दिखाई देता है।
    • ऐसे बाघों में असामान्य रूप से गहरे या काले रंग के कोट को छद्म मेलेनिस्टिक या कृत्रिम रंग भी कहा जाता है।
    • यदि सिमलीपाल से किसी भी बाघ को चुना जाता है, तो लगभग 60% संभावना है कि वह उत्परिवर्ती जीन को वहन करता है।
  • काला रंग होने के कारक :
    • भौगोलिक विविधताओं के कारण आनुवंशिक रूप से संबंधित प्रजातियाँ सिमलीपाल में कई पीढ़ियों से एक-दूसरे के साथ आंतरिक प्रजनन कर रही है।
      • यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि बाघ संरक्षण हेतु इसके महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं क्योंकि इस तरह की अलग-अलग और जन्मजात आबादी के कम समय में भी विलुप्त होने की संभावना बनी रहती है।

सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व

  • परिचय:
    • आधिकारिक रूप से टाइगर रिज़र्व के लिये इसका चयन वर्ष 1956 में किया गया था, जिसको वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के अंतर्गत लाया गया। भारत सरकार ने जून 1994 में इसे एक बायोस्फीयर रिज़र्व क्षेत्र घोषित किया था।
    • यह बायोस्फीयर रिज़र्व वर्ष 2009 से यूनेस्को के विश्व नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व (UNESCO World Network of Biosphere Reserve) का हिस्सा है।
    • यह सिमलीपाल-कुलडीहा-हदगढ़ हाथी रिज़र्व (Similipal-Kuldiha-Hadgarh Elephant Reserve) का हिस्सा है, जिसे मयूरभंज एलीफेंट रिज़र्व (Mayurbhanj Elephant Reserve) के नाम से जाना जाता है, इसमें 3 संरक्षित क्षेत्र यानी सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व, हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य और कुलडीहा वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
  • अवस्थिति:
    • यह ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के उत्तरी भाग में स्थित है जो भौगोलिक रूप से पूर्वी घाट के पूर्वी छोर पर स्थित है।
  • वन्यजीव:
    • सिमलीपाल बाघों और हाथियों सहित जंगली जानवरों की एक विस्तृत शृंखला का निवास स्थान है, इसके अलावा यहाँ पक्षियों की 304 प्रजातियाँ, उभयचरों की 20 प्रजातियाँ और सरीसृप की 62 प्रजातियाँ निवास करती हैं।
  • जनजातियाँ:
    • इस बायोस्फीयर रिज़र्व क्षेत्र में दो जनजातियाँ यथा- इरेंगा खारिया (Erenga Kharias) और मैनकर्डियास (Mankirdias) निवास करती हैं, जो आज भी पारंपरिक कृषि गतिविधियों (बीज और लकड़ी का संग्रह) के माध्यम से खाद्य संग्रहण करती हैं।
  • वनाग्नि के प्रति सुभेद्यता:
    • प्राकृतिक: इस क्षेत्र में प्रकाश या बढ़ते तापमान जैसे प्राकृतिक कारण वनाग्नि (Forest Fire) का कारण बन सकते हैं।
    • मानव निर्मित कारण: शिकारियों द्वारा जंगली जानवरों का शिकार करने के लिये आग का प्रयोग किया जाता है जो वनाग्नि का कारण हो सकता है।
  • ओडिशा में अन्य प्रमुख संरक्षित क्षेत्र:

Odisa

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

शून्य अभियान: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रिक वाहन,  नीति आयोग

मेन्स के लिये:

इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता, महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नीति आयोग और रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट (RMI) तथा आरएमआई इंडिया द्वारा शून्य अभियान शुरू किया गया है।

  • यह उपभोक्ताओं और उद्योग के एक साथ मिलकर शून्य-प्रदूषण वितरण वाहनों (Zero-Pollution Delivery Vehicles) को बढ़ावा देने की एक पहल है।
  • वर्ष 1982 में स्थापित RMI एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन है।

प्रमुख बिंदु

  • शून्य अभियान:
    • इलेक्ट्रिक वाहनों की डिलीवरी: शहरी क्षेत्र में डिलीवरी के मामले में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को अपनाने में तेज़ी लाना और शून्य-प्रदूषण वाहनों की डिलीवरी से होने वाले लाभों के बारे में उपभोक्ताओं के मध्य जागरूकता पैदा करना है।
    • शून्य ब्रांड: इस अभियान के हिस्से के रूप में फाइनल माइल की डिलीवरी के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाने की दिशा में उद्योग जगत के प्रयासों को मान्यता प्रदान करने और उन्हें बढ़ावा देने हेतु कॉर्पोरेट ब्रांडिंग एवं प्रमाणन संबंधी एक कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है। 
      • यह ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने प्रतिस्पर्द्धियों से अलग करने में मदद करेगा।
    • ऑनलाइन ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म: एक ऑनलाइन ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म, इलेक्ट्रिक वाहनों के संदर्भ में विद्युतीकृत किलोमीटर, कार्बन संबंधी बचत, मानक प्रदूषक संबंधी बचत और स्वच्छ डिलीवरी वाहनों से होने वाले अन्य लाभों से जुड़े आंकड़ों के माध्यम से इस अभियान के प्रभावों को साझा करेगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता और महत्त्व: 
    • तेज़ी से बढ़ता ई-कॉमर्स बाज़ार: वर्ष 2013 और वर्ष 2017 के बीच भारत का ऑनलाइन खुदरा बाज़ार प्रतिवर्ष औसतन 53% की दर से बढ़ा एवं वर्ष 2022 तक इसके 150 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
      • माल के अंतिम-परिवहन को स्थानांतरित करके इसने वितरण वाहनों के बेड़े में नाटकीय रूप से विस्तार किया है।
    • उत्सर्जन में कमी: शहरी मालवाहक-वाहन भारत में माल परिवहन से संबंधित CO2 उत्सर्जन के 10% हिस्से के लिये उत्तरदायी हैं और वर्ष 2030 तक इसके उत्सर्जन में 114% की बढ़ोतरी की आशंका है।
      • इलेक्ट्रिक वाहनों से उत्सर्जन काफी कम होता है, जो बेहतर वायु गुणवत्ता हेतु महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
      • यहाँ तक ​​कि अपने निर्माण के समय भी वे आंतरिक दहन इंजन समकक्षों की तुलना में 15-40% कम उत्सर्जन करते हैं और उनकी परिचालन लागत भी कम होती है।
    • ऊर्जा सुरक्षा: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से भारत को ऊर्जा की कमी की चुनौती को हल करने और ऊर्जा के नवीकरणीय एवं स्वच्छ स्रोतों की ओर बढ़ने के साथ-साथ तेल निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी।
  • चुनौतियाँ:
    • तकनीकी: भारत में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन में तकनीकी रूप से कमी है जो ईवी उद्योग की रीढ़ है, जैसे- बैटरी, अर्द्धचालक, नियंत्रक आदि।
    • ढाँचागत समर्थन: एसी बनाम डीसी चार्जिंग स्टेशनों पर स्पष्टता की कमी, ग्रिड स्थिरता और रेंज संबंधी चिंता (यह डर कि बैटरी जल्द ही डिस्चार्ज जाएगी) अन्य कारक हैं जो ईवी उद्योग के विकास में बाधा डालते हैं।
    • घरेलू उत्पादन के लिये सामग्री की उपलब्धता: बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहनों का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत में लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है जो बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है।
      • भारत लिथियम आयन बैटरी के आयात के लिये जापान और चीन जैसे देशों पर निर्भर है।
    • कुशल कामगारों की कमी: इलेक्ट्रिक वाहनों की सर्विसिंग लागत अधिक होती है और साथ ही सर्विसिंग के लिये उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता होती है। भारत में ऐसे कौशल विकास के लिये समर्पित प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का अभाव है।
  • की गई पहलें: 
    • राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना (NEMMP): NEMMP को देश में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय ईंधन सुरक्षा हासिल करने के उद्देश्य से वर्ष 2013 में शुरू किया गया था।
    • फेम योजना: भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles-FAME) को तेज़ी से अपनाने और योजना के तहत इनके निर्माण को गति प्रदान की है, साथ ही प्रोत्साहन प्रदान करती है ताकि वर्ष 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहनों के संचालन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
    • परिवर्तनकारी गतिशीलता एवं बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन: मिशन इलेक्ट्रिक वाहनों के घटकों और बैटरी के लिये परिवर्तनकारी गतिशीलता एवं चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रमों हेतु रणनीतियों की सिफारिश और संचालन करेगा।
    • वित्तीय प्रोत्साहन: इलेक्ट्रिक वाहनों और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के उत्पादन एवं खपत को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन जैसे कि आयकर छूट, सीमा शुल्क से छूट आदि।

स्रोत: पीआईबी


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