लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 16 Jun, 2023
  • 55 min read
सामाजिक न्याय

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, संविधान का अनुच्छेद 338, 89वाँ संशोधन अधिनियम, 2003 

मेन्स के लिये:

NCSC के कार्य

चर्चा में क्यों?  

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes- NCSC) ने हाल ही में Zomato कंपनी के एक विज्ञापन को "अमानवीय" और जातिवादी बताते हुए उसे नोटिस जारी किया है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग:

  • परिचय:  
    • NCSC एक संवैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना शोषण के खिलाफ अनुसूचित जातियों को सुरक्षा प्रदान करने और उनके सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक हितों को बढ़ावा देने एवं उनकी रक्षा करने के लिये की गई थी।
  • पृष्ठभूमि:  
    • विशेष अधिकारी: 
      • प्रारंभ में संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था। इस विशेष अधिकारी को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के आयुक्त (Commissioner) के रूप में नामित किया गया।
    • 65वाँ संशोधन अधिनियम, 1990: 
      • संविधान के 65वें संशोधन अधिनियम,1990 द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन किया गया।
      • 65वांँ संशोधन, 1990 द्वारा एक सदस्यीय प्रणाली को बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) आयोग के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। 
    • 89वाँ संशोधन अधिनियम, 2003: 
      • अनुच्छेद 338 में संशोधन द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति हेतु गठित पूर्ववर्ती राष्ट्रीय आयोग को वर्ष 2004 में दो अलग-अलग आयोगों में बदल दिया गया, ये हैं: 
  • संरचना:  
    • NCSC में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अतिरिक्त सदस्य होते हैं। 
    • इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और मुहर के तहत एक वारंट द्वारा की जाती है।
      • उनकी सेवा की शर्तें और पद का कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • कार्य: 
    • अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक और अन्य कानूनी सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच एवं निगरानी करना तथा उनके कामकाज़ का मूल्यांकन करना;
    • अनुसूचित जातियों को अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना;
    • अनुसूचित जातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा केंद्र या राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना;
    • राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य अवसरों पर, जैसा वह उचित समझे, सुरक्षा उपायों के कार्यकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना;
    • अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये सुरक्षा उपायों एवं अन्य उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु केंद्र या राज्य द्वारा किये जाने वाले उपायों के बारे में सिफारिशें करना;
    • वर्ष 2018 तक आयोग को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के संबंध में भी समान कार्य करने की आवश्यकता थी। इसे 102वें संशोधन अधिनियम, 2018 द्वारा इस उत्तरदायित्व से मुक्त किया गया था।

अनुसूचित जाति के उत्थान के लिये अन्य संवैधानिक प्रावधान: 

  • अनुच्छेद 15: यह अनुच्छेद विशेष रूप से जाति के आधार पर भेदभाव के मुद्दे को संबोधित करता है, अनुसूचित जातियों (SC) के संरक्षण और उत्थान पर बल देता है।
  • अनुच्छेद 17: यह अनुच्छेद अस्पृश्यता को समाप्त करता है और किसी भी रूप में इसके अभ्यास पर रोक लगाता है। यह सामाजिक भेदभाव को खत्म करने तथा सभी व्यक्तियों की समानता एवं सम्मान को बढ़ावा देता है।
  • अनुच्छेद 46: शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना: यह अनुच्छेद राज्य को अनुसूचित जातियों और समाज के अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ावा देने तथा उन्हें सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से बचाने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद 243D(4): यह प्रावधान क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में पंचायतों (स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों) में अनुसूचित जाति के लिये सीटों के आरक्षण को अनिवार्य करता है।
  • अनुच्छेद 243T(4): यह प्रावधान क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में नगर पालिकाओं (शहरी स्थानीय निकायों) में अनुसूचित जाति के लिये सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्‍छेद 330 और अनुच्‍छेद 332 में लोकसभा तथा राज्‍यों की विधानसभाओं (क्रमशः) में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में सीटों के आरक्षण का प्रावधान है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. वर्ष 2001 में आर.जी.आई. ने कहा कि दलित जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, वे एक भी जातीय समूह नहीं हैं क्योंकि वे विभिन्न जाति समूहों से संबंधित हैं। इसलिये उन्हें अनुच्छेद 341 के खंड (2) के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है, जिसमें शामिल करने हेतु एकल जातीय समूह की आवश्यकता होती है। (मुख्य परीक्षा, 2014)

प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)

स्रोत: द हिंदू  


भारतीय अर्थव्यवस्था

E20 ईंधन को अपनाना और हरित हाइड्रोजन उत्पादन

प्रिलिम्स के लिये:

E20, इथेनॉल सम्मिश्रण, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, G20 अध्यक्षता, नाइट्रस ऑक्साइड, हरित हाइड्रोजन, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, नवीकरणीय ऊर्जा, कार्बन उत्सर्जन  

मेन्स के लिये:

हरित हाइड्रोजन के अनुप्रयोग, इथेनॉल सम्मिश्रण के लाभ

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री ने कहा कि 20% इथेनॉल के साथ मिश्रित पेट्रोल, जिसे E20 के रूप में जाना जाता है, जल्द ही देश भर में तेल विपणन कंपनियों (OMC) के 1,000 बिक्री केंद्रों पर उपलब्ध होगा।

  • उन्होंने इस विषय पर भी प्रकाश डाला कि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य वर्ष 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) प्रतिवर्ष की उत्पादन क्षमता हासिल करना है।

इथेनॉल सम्मिश्रण और E20 ईंधन: 

  • परिचय:  
    • इथेनॉल एक कृषि उप-उत्पाद है जो मुख्य रूप से गन्ने से चीनी के प्रसंस्करण से प्राप्त होता है, लेकिन यह चावल की भूसी या मक्का जैसे अन्य स्रोतों से भी प्राप्त होता है।
      • वाहन चलाते समय कम जीवाश्म ईंधन जलाने के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का सम्मिश्रण इथेनॉल सम्मिश्रण कहलाता है।
      • E20 ईंधन यानी 20% इथेनॉल और 80% पेट्रोल का मिश्रण। E20 को भारत के प्रधानमंत्री द्वारा फरवरी 2023 में बंगलूरू में लॉन्च किया गया था। यह पायलट परियोजना कम-से-कम 15 शहरों को कवर करती है तथा इसे चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में लागू किया जाएगा।
    • भारत ने पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण को वर्ष 2013-14 के 1.53% से बढ़ाकर वर्ष 2022 में 10.17% कर दिया है।
      • सरकार ने  वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2030 कर दिया है।
      • G20 अध्यक्षता के दौरान सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिये ब्राज़ील जैसे देशों के साथ एक वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन शुरू करने का भी प्रस्ताव दिया है। 
  • लाभ:  
    • पारंपरिक पेट्रोल की तुलना में E20 ईंधन के अनेक फायदे हैं, जैसे:
      • यह कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को कम करके वाहनों के टेलपाइप उत्सर्जन को कम करता है।
      • यह इंजन की कार्यक्षमता में सुधार करता है और जंग एवं जमाव को रोककर रखरखाव की लागत को भी कम करता है।
      • यह घरेलू इथेनॉल उत्पादन को प्रतिस्थापित करके कच्चे तेल के आयात बिल को कम करता है।
        • आकलन किया गया है कि इथेनॉल का 5% सम्मिश्रण (105 करोड़ लीटर) लगभग 1.8 मिलियन बैरल कच्चे तेल का प्रतिस्थापन कर सकता है।
        • भारत का शुद्ध पेट्रोलियम आयात वर्ष 2020-21 में 185 मिलियन टन था जिसकी लागत 551 बिलियन अमेरिकी डाॅलर थी। एक सफल E20 कार्यक्रम देश के लिये प्रतिवर्ष 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 30,000 करोड़ रुपये बचता कर सकता है।
        • यह अधिशेष फसलों की मांग पैदा करके किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है।
  • चुनौतियाँ:  
    • गन्ना उत्पादन की ओर बदलाव: 20% सम्मिश्रण दर प्राप्त करने के लिये मौजूदा शुद्ध बोए गए क्षेत्र का लगभग दसवाँ हिस्सा गन्ना उत्पादन के लिये सुनिश्चित करना होगा।
      • ऐसी किसी भी भूमि की आवश्यकता से अन्य फसलों पर दबाव पड़ने और इससे खाद्य कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है।
    • भंडारण की कमी: आवश्यक जैव-रिफाइनरियों की वार्षिक क्षमता 300-400 मिलियन लीटर निर्धारित की गई है, जो अभी भी 5% पेट्रोल-इथेनॉल मिश्रण की आवश्यकता को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
      • भंडारण मुख्य चिंता का विषय है, क्योंकि अगर E10 आपूर्ति को E20 आपूर्ति के साथ जारी रखना है तो इन्हें अलग-अलग भंडारण करना होगा जो लागत को बढ़ाएगा।

ग्रीन हाइड्रोजन: 

  • परिचय:  
    • ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है। 
    • इसे ऊर्जा का सबसे स्वच्छ रूप माना जाता है, क्योंकि इसका उपयोग करने पर यह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है।
      • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत में हरित हाइड्रोजन उत्पादन में अग्रणी और महाशक्ति बनने की क्षमता है।
        • भारत के पास प्रचुर नवीकरणीय क्षमता है, विशेष रूप से सौर ऊर्जा, जिसका उपयोग कम लागत पर हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिये किया जा सकता है।
      • भारत ने अपने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के तहत वर्ष 2025-26 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने का लक्ष्य भी रखा है।
      • निजी क्षेत्र भी हरित हाइड्रोजन उत्पादन को आगे बढ़ाने में सक्रिय रूप से लगा हुआ है और इसने अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से महत्त्वपूर्ण निवेश आकर्षित किया है। 
  • अनुप्रयोग:  
    • डीकार्बोनाइजिंग एनर्जी सिस्टम्स: ग्रीन हाइड्रोजन को स्वच्छ ऊर्जा वाहक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और बाद में उपयोग के लिये संग्रहीत किया जा सकता है।
      • इसका उपयोग जीवाश्म ईंधन को बदलने के लिये बिजली उत्पादन, हीटिंग और परिवहन जैसे क्षेत्रों में किया जा सकता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है।
    • हरित अमोनिया का उत्पादन: ग्रीन हाइड्रोजन में अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके अमोनिया के उत्पादन के माध्यम से कृषि में पारंपरिक उर्वरकों को प्रतिस्थापित करने की क्षमता है।
      • हरित हाइड्रोजन की मदद से उत्पादित हरित अमोनिया कार्बन मुक्त होता है, इसमें पारंपरिक उर्वरकों की तुलना में बेहतर दक्षता के साथ ही मृदा की अम्लता में कमी लाने की भी क्षमता है।
    • ऑफ-ग्रिड और रिमोट पावर जेनरेशन: हरित हाइड्रोजन ऑफ-ग्रिड अथवा विद्युत की सीमित पहुँच वाले दूरस्थ स्थानों पर विश्वसनीय और स्वच्छ विद्युत प्रदान कर सकता है।
      • इसका उपयोग समुदायों, उद्योगों और बुनियादी ढाँचे के लिये बिजली पैदा करने हेतु फ्यूल सेल अथवा दहन इंजनों में किया जा सकता है।
  • चुनौतियाँ:  
    • लागत: वर्तमान में स्टीम मीथेन रिफाॅर्मिंग के माध्यम से जीवाश्म ईंधन से उत्पादित हाइड्रोजन की तुलना में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन अधिक महँगा है।
    • उच्च लागत का मुख्य कारण नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना के लिये आवश्यक पूंजी निवेश है।
      • स्तर और अवसंरचना: उत्पादन, भंडारण और परिवहन सहित एक व्यापक हरित हाइड्रोजन अवसंरचनात्मक व्यवस्था की स्थापना प्रमुख चुनौती है।
    • हाइड्रोजन के लिये उत्पादन क्षमता बढ़ाने और वितरण नेटवर्क के निर्माण के लिये पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है।
      • इसके अतिरिक्त मौजूदा बुनियादी ढाँचे को फिर से तैयार करने अथवा नई पाइपलाइनों, भंडारण सुविधाओं और ईंधन भरने वाले स्टेशनों के निर्माण से कई जटिलताएँ और लागत में वृद्धि होती है।
    • संसाधनों पर प्रभाव: प्रति किलो हाइड्रोजन के लिये लगभग 9 किलोग्राम जल की आवश्यकता होती है।
      • हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिये बड़ी मात्रा में विभिन्न संसाधनों की आवश्यकता होती है, जैसे- भूमि, जल और नवीकरणीय ऊर्जा। यह भूमि-उपयोग, जल संबंधी विवाद और मानवाधिकारों के उल्लंघन, ऊर्जा की कमी तथा उत्पादक देशों में विद्युत ग्रिड के डी-कार्बनीकरण में विलंब को बढ़ावा दे सकता है।
    • ऊर्जा दक्षता: इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया में जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने के लिये बड़ी मात्रा में विद्युत की आवश्यकता होती है।
      • यद्यपि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है, परंतु इस प्रक्रिया की कुल ऊर्जा दक्षता बहुत अधिक नहीं होती है। 

आगे की राह   

  • नीति और नियामक ढाँचा: भारत को इथेनॉल उत्पादन, सम्मिश्रण और उपयोग के साथ-साथ हरित हाइड्रोजन के विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने वाली सहायक नीतियाँ बनाने तथा उन्हें लागू करने की आवश्यकता है
  • इसमें सम्मिश्रण संबंधी शासनादेश निर्धारित करना, एक अनुकूल मूल्य निर्धारण ढाँचा सुनिश्चित करना और E20 तथा ग्रीन हाइड्रोजन दोनों के लिये गुणवत्ता मानक स्थापित करना शामिल है।
  • तकनीकी प्रगति: E20 के मामले में फ्लेक्स-ईंधन इंजन और संगत ईंधन प्रणाली जैसे उन्नत सम्मिश्रण तकनीकों को विकसित करने एवं व्यापक रूप से उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
  • हरित हाइड्रोजन की लागत कम करने और दक्षता में सुधार करने के लिये इलेक्ट्रोलाइज़र प्रौद्योगिकियों, भंडारण प्रणालियों तथा कुशल रूपांतरण प्रक्रियाओं को उन्नत करना काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • सार्वजनिक जागरूकता और स्वीकार्यता: सार्वजनिक जागरूकता और स्वीकार्यता E20 एवं हरित हाइड्रोजन को सफलतापूर्वक अपनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • इसके लिये इन विकल्पों के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, ईंधन दक्षता, प्रदर्शन और अनुकूलता से संबंधित चिंताओं को दूर करना तथा पर्यावरणीय लाभों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • इन समाधानों की क्षमता और डीकार्बोनाइज़ेशन में उनके योगदान के बारे में उपभोक्ताओं, उद्योग हितधारकों तथा नीति निर्माताओं को शिक्षित करने से इसकी स्वीकार्यता और मांग में वृद्धि हो सकती है

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. नीचे चार ऊर्जा फसलों के नाम दिये गए हैं। इनमें से किस एक की खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010)

(a) जेट्रोफा
(b) मक्का
(c) पोंगामिया
(d) सूरजमुखी

उत्तर: (b) 


प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020

  1. कसावा
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने
  3. मूँगफली के बीज
  4. कुठली
  5. सड़ा आलू
  6. चुकंदर 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये

(a) केवल 1, 2, 5 और 6 
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6 

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित भारी उद्योगों पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. उर्वरक पौधे
  2. तेल रिफाइनरियाँ
  3. इस्पात संयंत्र

हरित हाइड्रोजन की मदद से उपरोक्त कितने उद्योगों के डीकार्बोनाइज़्ड होने की उम्मीद है? 

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) तीनों
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर: (c) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


कृषि

ट्रांसजेनिक फसलें

प्रिलिम्स के लिये:

ट्रांसजेनिक फसलें, GEAC, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, Bt कपास

मेन्स के लिये:

ट्रांसजेनिक फसलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना ने एक नए प्रकार के ट्रांसजेनिक कपास बीज का परीक्षण करने हेतु केंद्र की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) द्वारा अनुमोदित एक प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें Cry2Ai जीन शामिल है।

  • जीन Cry2Ai कथित तौर पर कपास को पिंक बॉलवॉर्म हेतु प्रतिरोधी बनाता है, जो एक प्रमुख कीट है। इस विवाद से पता चलता है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की व्यापक स्वीकृति असमान्य बनी हुई है।

नोट: कृषि राज्य का विषय होने का मतलब है कि ज़्यादातर मामलों में अपने बीजों के परीक्षण में रुचि रखने वाली कंपनियों को ऐसे परीक्षण करने हेतु राज्यों से अनुमोदन की आवश्यकता होती है। ऐसे परीक्षणों की अनुमति केवल हरियाणा ने दी थी।

  • तेलंगाना ने प्रस्ताव पर विचार करने हेतु एक विस्तारित अवधि का अनुरोध किया और बाद में जवाब दिया कि वर्तमान फसल के मौसम में परीक्षणों की अनुमति नहीं दी जाएगी। दूसरी ओर गुजरात ने बिना कारण बताए प्रस्ताव को अस्वीकार्य कर दिया।

ट्रांसजेनिक फसलें:

  • परिचय: 
    • ट्रांसजेनिक फसल ऐसे पोधों को संदर्भित करती है जिन्हें जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों के माध्यम से संशोधित किया गया है। इन फसलों में विशिष्ट जीन को उनके DNA में प्रवेश कराया जाता है ताकि नई विशेषताएँ या लक्षण प्रदान किये जा सकें जो कि पारंपरिक प्रजनन विधियों के माध्यम से प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं पाए जाते हैं।
  • GMO बनाम ट्रांसजेनिक जीव: 
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (Genetically Modified Organism- GMO) और ट्रांसजेनिक जीव दो ऐसे शब्द हैं जिनका परस्पर उपयोग किया जाता है।
    • हालाँकि GMO और ट्रांसजेनिक जीव के बीच कुछ अंतर है। ट्रांसजेनिक जीव एक GMO है जिसमें DNA अनुक्रम या एक अलग प्रजाति का जीन होता है। जबकि GMO एक जीव, पौधा या सूक्ष्म जीव है, जिसका DNA जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके बदल दिया गया है।
    • इस प्रकार सभी ट्रांसजेनिक जीव GMO हैं, लेकिन सभी GMO ट्रांसजेनिक नहीं हैं। 
  • भारत में स्थिति: 
    • भारत में वर्तमान में GM फसल के रूप में केवल कपास की व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है। ट्रांसजेनिक तकनीक का उपयोग करके बैंगन, टमाटर, मक्का और चना जैसी अन्य फसलों हेतु परीक्षण चल रहे हैं।  
    • GEAC ने GM सरसों हाइब्रिड DMH-11 को पर्यावरण के अनुकूल रिलीज़ करने की मंज़ूरी दे दी है, जिससे यह पूरी तरह से व्यावसायिक खेती के करीब पहुँच गया है।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय में ट्रांसजेनिक खाद्य फसलों की अनुमति पर सवाल उठाने वाला एक कानूनी मामला चल रहा है। किसानों द्वारा प्रतिबंधित शाकनाशियों का उपयोग करने के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए GM सरसों पर रोक लगाने की मांग की गई है।
    • पिछले उदाहरणों में अतिरिक्त परीक्षणों के साथ वर्ष 2017 में GM सरसों के लिये GEAC की स्वीकृति और 2010 में GM बैंगन पर सरकार की अनिश्चितकालीन रोक शामिल है।

भारत में आनुवंशिक संशोधित फसलों के विनियमन की प्रक्रिया:

  • विनियमन: भारत में GMO और उत्पादों से संबंधित सभी गतिविधियों का विनियमन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
    • MoEFCC के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) GMO के आयात, निर्यात, परिवहन, निर्माण, उपयोग या बिक्री सहित सभी गतिविधियों की समीक्षा, निगरानी और अनुमोदन करने के लिये अधिकृत है।
    • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा GM खाद्य पदार्थों को भी नियमों के अधीन लाया गया है।
  • अधिनियम और नियम जो भारत में GM फसलों को विनियमित करते हैं:
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (EPA)
    • जैवविविधता अधिनियम, 2002
    • पौध संगरोध आदेश, 2003
    • विदेश व्यापार नीति, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के तहत GM नीति, 2006
    • औषधि और सौंदर्य प्रसाधन नियम (आठवाँ संशोधन), 1988

भारत में ट्रांसजेनिक फसलों को विनियमित करने की प्रक्रिया:

  • ट्रांसजेनिक फसलों के विकास में एक निरंतर, सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये पौधों में ट्रांसजेनिक जीन सम्मिलित करना शामिल है।
  • ओपन फील्ड टेस्ट से पहले समितियों द्वारा सुरक्षा मूल्यांकन किया जाता है।
  • ओपन फील्ड टेस्ट कृषि विश्वविद्यालयों या भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) नियंत्रित भूखंडों पर किये जाते हैं।
  • ट्रांसजेनिक पौधे गैर-GM वेरिएंट से बेहतर होने चाहिये और व्यावसायिक मंज़ूरी के लिये पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित होने चाहिये।
  • ओपन फील्ड ट्रायल कई मौसमों और भौगोलिक परिस्थितियों में उपयुक्तता का आकलन करते हैं।

आनुवांशिक संशोधन तकनीक का महत्त्व: 

  • सुरक्षित और किफायती वैक्सीन: आनुवंशिक संशोधन तकनीक ने सुरक्षित और अधिक किफायती वैक्सीन तथा चिकित्सीय उत्पादों के उत्पादन को सक्षम करके फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में क्रांति ला दी है। इससे मानव इंसुलिन, वैक्सीन और ग्रोथ हार्मोन जैसी दवाओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका है जिससे जीवन रक्षक फार्मास्यूटिकल्स अब और अधिक सुलभ हैं।
  • खरपतवार नियंत्रण: आनुवंशिक संशोधन तकनीक ने शाकनाशी-सहिष्णु फसलों को विकसित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सोयाबीन, मक्का, कपास और कैनोला जैसी फसलों को विशिष्ट व्यापक-स्पेक्ट्रम शाकनाशियों का सामना करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया है, जिससे किसान कृषि फसल को संरक्षित करते हुए खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं।
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: GM फसलों को बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाने के लिये विकसित किया जा रहा है। शोधकर्त्ता लंबे समय तक शुष्क और नम मानसून के मौसम को सहन कर सकने वाले धान, मक्का और गेहूँ की विभिन्न किस्मों पर काम कर रहे हैं।  यह चुनौतीपूर्ण जलवायु स्थिति में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
  • लवणीय मृदा में फसल उगाना: GM का प्रयोग लवण-सहिष्णु पौधे उगाने के लिये भी किया गया है, जो लवणीय मिट्टी में बढ़ती फसलों के लिये एक संभावित समाधान पेश करता है। जल से सोडियम आयनों को अलग करने वाले और कोशिका संतुलन को बनाए रखने वाले जीनों को सम्मिलित करके पौधे उच्च लवण वाले वातावरण में पनप सकते हैं। 

ट्रांसजेनिक फसलों से संबंधित चिंताएँ: 

  • पोषक तत्त्वों की कमी: GM खाद्य पदार्थों में कभी-कभी उनके बढ़ते उत्पादन और कीट प्रतिरोध पर ध्यान देने के बावजूद पोषण मूल्य की कमी हो सकती है। ऐसा इसलिये है कि कुछ विशेषताओं में वृद्धि करने  के परिणामस्वरूप कभी-कभी पोषण मूल्य की अनदेखी कर दी जाती है।
  • पारिस्थितिक तंत्र के लिये जोखिमपूर्ण: GM उत्पादन पारिस्थितिक तंत्र और जैवविविधता के लिये जोखिम उत्पन्न कर सकता है। यह जीन प्रवाह को बाधित करने के साथ ही स्वदेशी किस्मों को नुकसान पहुँचा सकता है जिसका दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
  • एलर्जिक प्रतिक्रियाएँ होने की संभावना: जैविक रूप से परिवर्तित होने के कारण आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों में एलर्जी प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करने की क्षमता होती है। पारंपरिक किस्मों के अभ्यस्त व्यक्तियों के लिये यह समस्याप्रद हो सकता है।
  • पशुओं पर प्रभाव: GM फसलें वन्यजीवों के लिये भी खतरा उत्पन्न कर सकती है। उदाहरण के लिये प्लास्टिक अथवा फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधे फसल कटाई के बाद खेतों में छोड़े गए फसल अपशिष्ट का उपभोग करने वाले चूहों अथवा हिरण जैसे जानवरों के लिये खतरनाक साबित हो सकते हैं। 

आगे की राह 

  • घरेलू और साथ ही निर्यात उपभोक्ताओं के लिये नियामक व्यवस्था को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी अनुमोदन को सुनिश्चित करने के साथ ही विज्ञान आधारित निर्णयों को लागू किया जाना चाहिये।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिये कड़ी निगरानी की आवश्यकता है और अवैध आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के प्रसार को रोकने के लिये प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012) 

  1. सूखा सहन करने के लिये सक्षम बनाना  
  2. उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना 
  3. अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगाने तथा प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
  4. उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c) 


प्रश्न. बॉलगार्ड-I और बॉलगार्ड-II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2021) 

(a) फसल पादपों का क्लोनी प्रवर्द्धन
(b) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित फसली पादपों का विकास 
(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन
(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. किसानों के जीवन मानकों को उन्नत करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी किस प्रकार सहायता कर सकती है? (2019) 

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

भोपाल गैस त्रासदी का स्वास्थ्य पर प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

भोपाल गैस त्रासदी, 1984, नवजात मृत्यु दर, मिथाइल आइसोसाइनेट, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991, संयुक्त राष्ट्र का अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

मेन्स के लिये:

भविष्य की औद्योगिक आपदाओं को रोकने के उपाय

चर्चा में क्यों?  

वर्ष 1984 की भोपाल गैस त्रासदी, जिसे विश्व की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है, भविष्य की पीढ़ियों के स्वास्थ्य को लंबे समय तक प्रभावित करती रहेगी। इसके अंतर्गत उन लोगों को भी शामिल किया जा सकता है जो ज़हरीली गैस के सीधे संपर्क में नहीं आए थे। 

  • हालिया अध्ययन ने इस त्रासदी के दशकों बाद भी दिव्यांगों और कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों द्वारा लगातार सामना किये जाने वाले स्वास्थ्य मुद्दों पर प्रकाश डाला है।

शोध के प्रमुख बिंदु:  

  • परिचय: अध्ययन से पता चलता है कि भोपाल गैस त्रासदी का प्रभाव तत्काल मृत्यु और बीमारी से कहीं अधिक है। यह पाया गया है कि भोपाल के आसपास के 100 किमी. के दायरे में इसका प्रभाव देखा जा रहा है। यह पहले निर्धारित क्षेत्र से अधिक व्यापक क्षेत्र को प्रभावित कर रही है।
    • आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले इस त्रासदी के प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया है जो इस आपदा/त्रासदी के सामाजिक प्रभावों को उजागर करती है।
  • त्रासदी में बचे लोगों/उत्तरजीवियों द्वारा सामना की जाने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ: भोपाल गैस त्रासदी के उत्तरजीवियों को वर्षों से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा है। इनमें श्वसन संबंधी, न्यूरोलॉजिकल, मस्कुलोस्केलेटल, नेत्र संबंधी और अंतःस्रावी समस्याएँ शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त ज़हरीली गैस के संपर्क में आने वाली महिलाओं में गर्भपात, मृत जन्म, नवजात मृत्यु दर, मासिक धर्म संबंधी असामान्यताएँ और समय से पहले रजोनिवृत्ति में  वृद्धि देखने को मिली है।
  • दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों की जाँच: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (UC) के शोधकर्त्ताओं ने भोपाल गैस त्रासदी के दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों और संभावित पीढ़ीगत प्रभावों का आकलन करने के लिये एक व्यापक विश्लेषण और अध्ययन किया।
    • उन्होंने वर्ष 2015 और 2016 के बीच किये गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) तथा वर्ष 1999 के लिये भारत से एकीकृत सार्वजनिक उपयोग माइक्रोडेटा शृंखला से आँकड़े एकत्र किये, जिसमें आपदा के समय छह से 64 वर्ष की आयु के व्यक्ति एवं गर्भावस्था काल से गुज़र रहे लोग शामिल थे।
  • महिलाओं में विकलांगता: जो महिलाएँ पुरुष भ्रूण के साथ गर्भवती थीं और भोपाल के 100 किलोमीटर के दायरे में रहती थीं, उनमें विकलांगता दर एक प्रतिशत अधिक थी जिसने 15 साल बाद उनके रोज़गार को प्रभावित किया।
  • पुरुष जन्म में गिरावट: भोपाल के 100 किमी. के दायरे में रहने वाली माताओं के बीच पुरुष जन्म के अनुपात में 64% (1981-1984) से 60% (1985) तक की गिरावट आई थी जो पुरुष भ्रूण की उच्च भेद्यता को इंगित करता है।
    • 100 किमी. के दायरे से बाहर कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं देखा गया।
  • कैंसर का अधिक जोखिम: भोपाल के 100 किमी. के दायरे में वर्ष 1985 में पैदा हुए पुरुषों में 1976-1984 और 1986-1990 की अवधि में पैदा हुए लोगों की तुलना में कैंसर होने का आठ गुना अधिक जोखिम था।
    • इसके अतिरिक्त वर्ष 1985 में पैदा हुए पुरुष जो भोपाल के 100 किमी. के दायरे में रहते थे, उन्होंने पैदा हुए अपने समकक्षों और 100 किमी. से अधिक दूर रहने वाले व्यक्तियों की तुलना में वर्ष 2015 में कैंसर के 27 गुना अधिक जोखिम का अनुभव किया।
  • रोजगार अक्षमताएँ: त्रासदी के दौरान जो लोग गर्भ में थे और भोपाल के 100 किमी. के दायरे में थे, उनमें अन्य व्यक्तियों और भोपाल से दूर रहने वालों की तुलना में रोज़गार अक्षमता की संभावना एक प्रतिशत अधिक थी। 
    • यह संभावना शहर के 50 किमी. के दायरे में रहने वालों के बीच बढ़कर दो प्रतिशत हो गई थी।

भोपाल गैस त्रासदी:  

  • परिचय:  
    • भोपाल गैस त्रासदी इतिहास में सबसे गंभीर औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी जो 2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल, मध्य प्रदेश में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) कीटनाशक संयंत्र में हुई थी।
    • इसने लोगों और पशुओं को अत्यधिक ज़हरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) के संपर्क में ला दिया जिससे तत्काल मौतें तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव देखे गए
  • गैस रिसाव का कारण: 
    • गैस रिसाव का सटीक कारण अभी भी कॉर्पोरेट लापरवाही या कर्मचारियों की अनदेखी के बीच विवादित है। हालाँकि आपदा में योगदान देने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं:
      • UCIL संयंत्र में खराब रखरखाव वाले टैंकों में बड़ी मात्रा में MIC का भंडारण किया जा रहा था जो अत्यधिक प्रतिक्रियाशील और वाष्पशील रसायन है।
      • वित्तीय घाटे और बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा के कारण संयंत्र कम कर्मचारियों और सुरक्षा मानकों के साथ काम कर रहा था।
      • संयंत्र घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित था, जहाँ आस-पास के निवासियों हेतु कोई उचित आपातकालीन योजना या चेतावनी प्रणाली नहीं थी।
      • आपदा की रात जल की बड़ी मात्रा MIC भंडारण टैंक (E610) ( संभवतः दोषपूर्ण वाल्व या असंतुष्ट कार्यकर्त्ता द्वारा जान-बूझकर की गई तोड़फोड़ की वजह से) में से एक में प्रवेश कर गई।
        • इसने ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया को उत्प्रेरित किया और टैंक के अंदर तापमान एवं दबाव को बढ़ा दिया, जिससे वह फट गया और  बड़ी मात्रा MIC गैस वातावरण में उत्सर्जित हो गई।
  • प्रतिक्रियाएँ:  
    • संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम-से-कम 30 टन ज़हरीली गैस ने 600,000 से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया है।
      • इसने कहा कि यह आपदा "वर्ष 1919 के बाद दुनिया की प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं" में से एक थी।
  • पारित कानून:  
    • भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों का प्रसंस्करण) अधिनियम, 1985: इसने केंद्र सरकार को दावों से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के स्थान पर प्रतिनिधित्व करने और कार्य करने का "विशेष अधिकार" दिया।
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: इसने पर्यावरण और सार्वजनिक सुरक्षा हेतु प्रासंगिक उपाय करने एवं औद्योगिक गतिविधि को विनियमित करने के लिये केंद्र सरकार को अधिकृत किया।
    • सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991: यह किसी खतरनाक पदार्थ के रखरखाव के दौरान होने वाली दुर्घटना से प्रभावित व्यक्तियों को तत्काल राहत प्रदान करने हेतु सार्वजनिक देयता बीमा प्रदान करता है।
    • परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA): भारत ने वर्ष 2010 में CLNDA को परमाणु दुर्घटना के पीड़ितों हेतु एक त्वरित मुआवज़ा तंत्र स्थापित करने के लिये अधिनियमित किया। यह परमाणु संयंत्र के संचालक पर सख्त एवं बिना किसी गलती के दायित्व का प्रावधान करता है, जहाँ उसे अपनी ओर से किसी भी अन्य बातों की परवाह किये बिना क्षति हेतु उत्तरदायी ठहराया जाएगा।

भविष्य में औद्योगिक आपदाओं को रोकने हेतु उपाय: 

  • जोखिम मूल्यांकन तकनीकें: औद्योगिक प्रक्रियाओं में संभावित जोखिमों की पहचान करने और उनका आकलन करने हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग एवं भावी विश्लेषण जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है। 
    • ये प्रौद्योगिकियाँ बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर सकती हैं और संभावित खतरों के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रदान कर सकती हैं, जिससे सक्रिय सुरक्षा उपायों को सक्षम किया जा सकता है। 
  • सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन: उद्योगों, विशेष रूप से खतरनाक सामग्रियों से निपटने वाले उद्योगों को सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • इस तरह के आकलन में आस-पास के समुदायों, पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों के लिये संभावित जोखिमों पर विचार किया जाना चाहिये और औद्योगिक प्रक्रियाओं की योजना एवं डिज़ाइन में निवारक उपायों को शामिल करना चाहिये।
  • सख्त प्रवर्तन: सरकारी अधिकारियों द्वारा सुरक्षा नियमों के सख्त प्रवर्तन को सुनिश्चित करना आवश्यक है।
    • सुरक्षा मानकों के अनुपालन की निगरानी के लिये नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिये और उल्लंघन हेतु गंभीर दंड लगाया जाना चाहिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते है, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का 
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का 
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा 
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य घरेलू निजी स्वामित्व वाले 

उत्तर: (b) 


मेन्स: 

प्रश्न. उर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिपेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय उर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय उर्जा से सबंधित तथ्यों की विवेचना कीजिये। (2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक पवन दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

पवन ऊर्जा, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत, सरकारी पहल

मेन्स के लिये:

पवन ऊर्जा का महत्त्व, पवन ऊर्जा परियोजनाओं की चुनौतियाँ, संबंधित सरकारी पहल

चर्चा में क्यों?

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) द्वारा 15 जून, 2023 को “पवन - ऊर्जा: पॉवरिंग द फ्यूचर ऑफ इंडिया” की थीम के साथ वैश्विक पवन दिवस मनाया गया।

  • MNRE ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट (GW) नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है और ज़मीनी स्तर से 150 मीटर ऊपर पवन एटलस भी राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (National Institute of Wind Energy- NIWE) द्वारा लॉन्च किया गया था, जिसमें 1,164 GW तटवर्ती पवन क्षमता का अनुमान लगाया गया है।

वैश्विक पवन दिवस:

  • वैश्विक पवन दिवस, वर्ष 2007 से पवन ऊर्जा को ऊर्जा के स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोत के रूप में बढ़ावा देने का एक वार्षिक कार्यक्रम है।
  •   यह यूरोपीय पवन ऊर्जा संघ (EWEA) द्वारा प्रारंभ किया गया और साथ ही वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) में शामिल किया गया।
    • GWEC एक सदस्य-आधारित संगठन है जो संपूर्ण पवन ऊर्जा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।  

पवन ऊर्जा:

  • विषय: 
    • पवन ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा का एक रूप है जो विद्युत उत्पन्न करने के लिये वायु की गतिज ऊर्जा का उपयोग करती है।
  • क्रियाविधि: 
    • पवन टर्बाइनों का उपयोग करके पवन ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, ये ऐसे उपकरण हैं जिनमें ब्लेड होते हैं जो वायु चलने पर घूमते हैं।
    • ब्लेड के घूमने से एक जनरेटर चलता है जो विद्युत उत्पन्न करता है।
      • पवन ऊर्जा भूमि या अपतट पर उत्पन्न की जा सकती है, जहाँ तेज़ और अधिक सुसंगत हवाएँ होती हैं।   
  • गैसों का उत्सर्जन:
    • पवन ऊर्जा विद्युत उत्पन्न करने का एक स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोत है जो ग्रीनहाउस गैसों या अन्य प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं करती है। 
  • उपयोग: 
    • पवन ऊर्जा का उपयोग घरों, व्यवसायों, खेतों और अन्य अनुप्रयोगों के लिये किया जा सकता है। पवन ऊर्जा विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ते नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में से एक है।
  • पवन ऊर्जा के बारे में कुछ तथ्य:
    • वैश्विक: 
      • विश्व का सबसे विशाल पवन ऊर्जा बाज़ार चीन है जिसकी क्षमता 237 GW से अधिक है। इसके बाद अमेरिका और जर्मनी का स्थान है।
      • चीन के पास गान-सु (Gansu) प्रांत में विश्व का सबसे बड़ा ऑनशोर विंड फार्म भी है, जो गोबी रेगिस्तान के बाहरी इलाके में स्थित है।
    • भारत विशिष्ट: 
      • भारत विश्व में पवन ऊर्जा क्षमता (अप्रैल 2023 तक 42.8 GW के साथ) में चौथे स्थान पर है और भारत में तटवर्ती तथा अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पादन दोनों की एक बड़ी संभावना है।
      • कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था में भारत के संक्रमण और वर्ष 2030 तक 50% गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा एवं वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पवन ऊर्जा महत्त्वपूर्ण है।
      • तमिलनाडु ने जून 2022 तक उच्चतम पवन ऊर्जा क्षमता की स्थापना की, इसके बाद गुजरात और कर्नाटक का स्थान आता  है। 
  • भारतीय पहल: 
    • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति: राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का प्रमुख उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, पारेषण अवसंरचना तथा भूमि के सबसे प्रभावी एवं कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम को बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना है।
    • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति: राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अक्तूबर, 2015 में भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में 7600 किमी. की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया था।
  • वैश्विक पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न. देश में नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों के संदर्भ में इनकी वर्तमान स्थिति और प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों का विवरण दीजिये। प्रकाश उत्सर्जक डायोड (एल.ई.डी) पर राष्ट्रीय कार्यक्रम के महत्त्व की विवेचना संक्षेप में कीजिये। (2016)

स्रोत: PIB


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2