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डेली न्यूज़

  • 15 Dec, 2022
  • 48 min read
इन्फोग्राफिक्स

संसद में बहुमत के प्रकार: साधारण बहुमत

Parliament


शासन व्यवस्था

सौर ऊर्जा परियोजनाओं की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

सौर उद्यान और अल्ट्रा मेगा, सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास हेतु योजना, सौर ऊर्जा के लिये पहल

मेन्स के लिये:

सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास हेतु योजना, परियोजना कार्यान्वयन में चुनौतियां, सौर ऊर्जा की स्थिति, सौर ऊर्जा के लिये पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, सरकार ने अब तक लगभग 39,000 मेगावाट की क्षमता वाली सौर परियोजनाओं के विकास को मंज़ूरी दी है, लेकिन वास्तव में अभी तक केवल 25% ही अधिकृत हो सकी है।

  • इन सौर परियोजनाओं को 'सोलर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास हेतु योजना' के तहत मंज़ूरी दी गई थी।

सोलर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास हेतु योजना:

  • परिचय: 
    • यह योजना वर्ष 2014 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी।
    • इस योजना के तहत वर्ष 2014-15 से शुरू होने वाले 5 वर्षों की अवधि के भीतर 20,000 मेगावाट क्षमता से अधिक  सौर ऊर्जा की स्थापना को लक्षित करते हुए कम से कम 25 सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं को स्थापित करने का प्रस्ताव था।
      • योजना की क्षमता 20,000 मेगावाट से बढ़ाकर 40,000 मेगावाट कर दी गई। इन पार्कों को वर्ष 2021-22 तक स्थापित करने का प्रस्ताव है। 
  • क्रियान्वयन एजेंसी: 
    • इसकी कार्यान्वयन एजेंसी सोलर पावर पार्क डेवलपर (Solar Power Park Developer- SPPD) है।
  • विशेषताएँ: 
    • योजना में सौर ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा तैयार करने की दृष्टि से देश में विभिन्न स्थानों पर सौर पार्क स्थापित करने में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सहायता करने की परिकल्पना की गई है।
    • सौर पार्क राज्य सरकारों और उनकी एजेंसियों, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी उद्यमियों के सहयोग से विकसित किये गए हैं।

सौर परियोजनाओं को अधिकृत करने में चुनौतियाँ: 

  • स्पष्ट स्वामित्व वाली भूमि के अधिग्रहण में बाधाएँ।
  • परियोजना और बुनियादी ढाँचे को स्थापित करने तथा ग्रिड में उत्पादित विद्युत को वितरित करने में लगने वाले समय में "बेमेल" है।
  • कोविड-19 के कारण पर्यावरणीय मुद्दे और आर्थिक गतिविधियों में रुकावट।
    • हाल के वर्षों में राजस्थान में 200 से कम संख्या वाली गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के आवास पर सौर ऊर्जा परियोजनाओं द्वारा विशेष रूप से ट्रांसमिशन लाइनों द्वारा अतिक्रमण किया गया है जो पक्षी को खतरे में डालती हैं।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2022 में बिजली कंपनियों को राजस्थान में सौर उद्यानों में भूमिगत केबल बिछाने का निर्देश दिया था, हालाँकि कुछ कंपनियों ने इसका पालन किया है। सरकार ने भूमिगत केबल बिछाने से सौर ऊर्जा की लागत में संभावित वृद्धि के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को जानकारी दी थी।

भारत में सौर ऊर्जा की समग्र स्थिति:

  • संसद में पेश किये गए आँकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2022 तक अब तक 61GW सौर ऊर्जा स्थापित की जा चुकी है।
  • इसके अलावा भारत ने वर्ष 2022 के अंत तक 175 गीगावाट (GW) अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। यह अक्षय ऊर्जा के लिये दुनिया की सबसे बड़ी योजना है।
  • भारत सौर ऊर्जा क्षमता के मामले में एशिया में दूसरा और विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। यह पहली बार जर्मनी (59.2 GW) को पछाड़ते हुए कुल स्थापित क्षमता (60.4 GW) के क्षेत्र में चौथे स्थान पर है।
  • जून 2022 तक राजस्थान और गुजरात बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले शीर्ष राज्य थे, जिनकी स्थापित क्षमता क्रमशः 53% एवं 14% थी, इसके बाद महाराष्ट्र (9%) का स्थान है।

संबंधित पहलें: 

  • सौर पार्क योजना:  
    • सौर पार्क योजना कई राज्यों में लगभग 500 मेगावाट (MW) क्षमता वाले कई सोलर पार्क बनाने की योजना है।
  • रूफटॉप सौर योजना:  
    • रूफटॉप सौर योजना का उद्देश्य घरों की छत पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा का दोहन करना है।
  • अटल ज्योति योजना (AJY):  
    • अटल ज्योति योजना सितंबर 2016 में उन राज्यों में सौर स्ट्रीट लाइटिंग (SSL) प्रणाली की स्थापना के लिये शुरू की गई थी, जहाँ 50% से कम घरों में ग्रिड आधारित बिजली का उपयोग शामिल है (2011 की जनगणना के अनुसार)।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन:  
    • यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिक रूप से सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक प्रमुख पहल है।
  • सृष्टि योजना:  
    • भारत में रूफटॉप सौर ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये सोलर ट्रांसफिगरेशन ऑफ इंडिया (सृष्टि) योजना का कार्यान्वयन किया जा रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): 
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) भारत और फ्राँस द्वारा सह-स्थापित सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के वितरण में वृद्धि के लिये एक सक्रिय तथा सदस्य-संचालित एवं सहयोगी मंच है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2  
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (a) 

व्याख्या: 

  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) भारत और फ्राँस द्वारा सह-स्थापित सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के वितरण में वृद्धि के लिये एक सक्रिय तथा सदस्य-संचालित एवं सहयोगी मंच है।
  • इसे भारत के प्रधानमंत्री और फ्राँसीसी राष्ट्रपति द्वारा नवंबर 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में लॉन्च किया गया था। इसका सचिवालय भारत के गुरुग्राम में स्थित है। अतः कथन 1 सही है।
  • प्रारंभिक चरण में ISA को पूर्ण या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा (उष्णकटिबंधीय क्षेत्र) के बीच स्थित देशों की सदस्यता के लिये आमंत्रित किया गया था।
  • वर्ष 2018 में, इसे संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों के लिये सदस्यता हेतु आमंत्रित किया गया था। हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य नहीं हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • वर्तमान में, 80 देशों ने ISA फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर और इसकी पुष्टि की है, जबकि केवल 98 देशों ने ISA फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

मेन्स 

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। ( 2020)

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

हाथ से मैला ढोने की प्रथा (मैनुअल स्कैवेंजिंग)

प्रिलिम्स के लिये:

मैला ढोने की समस्या से निपटने हेतु पहल, स्वच्छ भारत मिशन

मेन्स के लिये:

मैनुअल स्कैवेंजिंग का खतरा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJ&E) ने लोकसभा को बताया कि विगत तीन वर्षों (वर्ष 2019 से 2022) में मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है।

  • इस अवधि में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय "दुर्घटनाओं" में 233 लोगों की मृत्यु हुई है।

हाथ से मैला ढोने की प्रथा/मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging):

  • हाथ से मैला ढोने की प्रथा को ‘‘किसी सुरक्षा साधन के बिना और नग्न हाथों से सार्वजनिक सड़कों एवं सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, गटर एवं सीवर की सफाई करने’’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • भारत ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (PEMSR) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति द्वारा मानव मल को उसके निपटान तक मैन्युअल रूप से साफ करने, ले जाने, निपटाने या अन्यथा किसी भी तरीके से हैंडलिंग पर प्रतिबंध लगाता है।
    • अधिनियम हाथ से मैला ढोने की प्रथा को "अमानवीय प्रथा" के रूप में परिभाषित करता है।

हाथ से मैला ढोने की प्रथा के प्रचलन के कारण:

  • उदासीन रवैया:
    • कई स्वतंत्र सर्वेक्षणों ने राज्य सरकारों की ओर से यह स्वीकार करने में निरंतर अनिच्छा के बारे में बात की है कि यह प्रथा उनकी निगरानी में प्रचलित है। 
  • आउटसोर्सिंग के कारण समस्याएँ:
    • कई बार स्थानीय निकाय निजी ठेकेदारों को सीवर सफाई कार्य आउटसोर्स करते हैं। हालाँकि उनमें से कई फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर, सफाई कर्मचारियों के उचित रोल का रखरखाव नहीं करते हैं। 
    • श्रमिकों की दम घुटने से मृत्यु होने के मामले में इन ठेकेदारों ने मृतक के साथ किसी भी संबंध से इनकार किया है। 
  • सामाजिक मुद्दा:
    • यह प्रथा जाति, वर्ग और आय की असमानता आदि से प्रेरित है।
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।   
    • 1993 में, भारत ने मैला ढोने वालों के रूप में लोगों के रोज़गार पर प्रतिबंध लगा दिया (हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों का रोज़गार और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993), हालाँकि, इससे जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी बना हुआ है।
      • यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है। 

मैला ढोने की समस्या से निपटने के लिये उठाए गए कदम: 

  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020
  • यह सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके अपनाने और सीवर में होने वाली मौतों के मामले में कर्मियों के परिवार वालों को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव करता है।
    • यह हाथ से मैला ढोने वालों के रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन होगा।
    • इसे अभी कैबिनेट की मंज़ूरी मिलना शेष है।
  • अस्वच्छ शौचालयों का निर्माण और रखरखाव अधिनियम 2013:
    • यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रखरखाव तथा किसी को भी हाथ से मैला ढोने हेतु काम पर रखने के साथ-साथ सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को गैरकानूनी घोषित करता है।
    • यह अन्याय और अपमान की क्षतिपूर्ति के रूप में हाथ से मैला ढोने वाले समुदायों को वैकल्पिक रोज़गार तथा अन्य सहायता प्रदान करने के लिये एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी प्रदान करता है।
  •  1989:अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: 
    • वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम स्वच्छता संबंधी कार्यकर्त्ताओं के लिये एक समन्वित गार्ड बन गया। इस दौरान मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
  • सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
    • इसे आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
    • सरकार द्वारा सभी राज्यों के लिये अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इसे एक ‘चुनौती’ के रूप में शुरू किया गया, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं। 
  • 'स्वच्छता अभियान एप':
    • इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान एवं जियोटैग करने हेतु विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सैनिटरी शौचालयों में बदला जा सके और सभी हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने हेतु उनका पुनर्वास किया जा सके।
  • यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Mechanised Sanitation Ecosystem- NAMASTE/नमस्ते):
    • NAMASTE योजना आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय तथा MoSJ&E द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जा रही है और इसका उद्देश्य असुरक्षित सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई प्रथाओं को खत्म करना है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 से सीवेज के काम में मारे गए थे और प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए दिये जाने का भी आदेश दिया गया था।

आगे की राह:

  • स्वच्छ भारत मिशन को 15वें वित्त आयोग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया और स्मार्ट शहरों एवं शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन के साथ हाथ से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान किया गया।
  • हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना और समझना आवश्यक है कि कैसे और क्यों जाति व्यवस्था के कारण हाथ से मैला ढोना अभी भी जारी है।
  • राज्य एवं समाज को इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से रुचि लेने की ज़रूरत है और इस प्रथा का सही आकलन कर इसके उन्मूलन के लिये सभी संभावित विकल्पों पर गौर करने की ज़रूरत है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016)

(a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना।
(b) यौनकर्मियों को उनके अभ्यास से मुक्त करना और उन्हें आजीविका के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करना।
(c) हाथ से मैला ढोने की प्रथा को खत्म करना और हाथ से मैला ढोने वालों का पुनर्वास करना।
(d) बंधुआ मज़दूरों को मुक्त करना और उनका पुनर्वास करना।

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय गरिमा अभियान वर्ष 2001 में शुरू किया गया, मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन और इस कार्य में संलग्न लोगों के लिये गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने हेतु यह एक राष्ट्रीय अभियान है।

अतः विकल्प (c) सही है। 

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन पर भारत की आयात निर्भरता

प्रिलिम्स के लिये:

गलवान घाटी संघर्ष, भारत-चीन तवांग झड़प, भारत-चीन व्यापार संबंध

मेन्स के लिये:

भारत-चीन व्यापार संबंध, भारत की भारी आयात निर्भरता और चीन के साथ व्यापार घाटा, चीन पर आयात निर्भरता का प्रत्युत्तर

चर्चा में क्यों?

हाल की तवांग झड़प ने चीन के साथ व्यापार संबंधों को खत्म करने की मांग को जन्म दिया है। हालाँकि मांगों के विपरीत, चीन से भारत के आयात में वर्ष 2020 में गालवान घाटी संघर्ष के बाद तेज़ी से वृद्धि देखी गई है।

चीन के साथ भारत के व्यापारिक संबंध:

  • सबसे बड़े भागीदारों में से एक: अमेरिका के बाद चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
    • वर्ष 2021-22 में भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार 115.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, यह भारत के कुल 1,035 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार का 11.2% (भारत-अमेरिका व्यापार - 11.54%) है।
    • लगभग 2 दशक पहले एक व्यापारिक भागीदार के रूप में चीन 10वें स्थान पर था,लेकिन वर्ष 2002-03 से यह शीर्ष भागीदारों में से एक बन गया है।
    • चीन वर्ष 2011-12, 2013-14 से 2017-18 और 2020-21 में भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार था।

नोट:  

  • अमेरिका और चीन के अलावा वर्ष 2021-22 के दौरान भारत के शीर्ष 10 व्यापारिक साझेदारों में अन्य 8 देश संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इराक, सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया थे।
  • अमेरिका और चीन के साथ भारत के व्यापार में प्रमुख अंतर: 
    • अमेरिका और चीन के साथ भारत के व्यापार में प्रमुख अंतर यह है कि वर्ष 2021-2022 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 32.85 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जबकि चीन के साथ व्यापार में भारत को 73.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2021-22) का नुकसान हुआ है जो किसी भी देश के लिये सबसे अधिक है।
    • चूँकि चीन से भारत का आयात (2001-02 और 2021-2020 के बीच) 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 94.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, (इसी अवधि में) भारत द्वारा चीन को लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर केवल 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया गया है।
  • प्रमुख आयात: 
    • भारत द्वारा आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ:
      • विद्युत मशीनरी और उपकरण तथा उसके पुर्जे
      • टेलीविजन छवि एवं ध्वनि रिकॉर्डर
      • नाभिकीय रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण तथा उनके पुर्जे
      • जैविक रसायन
      • प्लास्टिक और इससे बनी वस्तुएँ
      • उर्वरक
    • सबसे महत्त्वपूर्ण आयातित वस्तुएँ हैं:
      • पर्सनल कंप्यूटर (लैपटॉप, पामटॉप आदि)> मोनोलिथिक इंटीग्रेटेड सर्किट-डिजिटल> लिथियम-आयन> सोलर सेल> यूरिया
  • प्रमुख निर्यात:
    • वर्ष 2021-22 में, चीन को भारत का निर्यात उसके कुल शिपमेंट का 5% था। शीर्ष निर्यात वस्तुओं में शामिल हैं:
      • अयस्क, स्लैग और राख
      • कार्बनिक रसायन, खनिज ईंधन/तेल और उनके आसवन के उत्पाद, बिटुमिनस पदार्थ, खनिज मोम;
      • लोहा और इस्पात
      • एल्यूमीनियम और इससे बनी वस्तुएँ
      • कपास
      • एकल वस्तुओं में लाइट नेफ्थलीन भारत का सबसे मूल्यवान निर्यात था

चीन पर भारी आयात निर्भरता का अर्थ:

  • सरकार के दृष्टिकोण से राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियाँ तब गहरी हो जाती हैं जब देश एक दुश्मन या अमित्र देश से उत्पादों और सेवाओं के आयात पर निर्भर होता है।
  • भारत अपने फार्मास्युटिकल उद्योग में उपयोग होने वाले अधिकांश ‘सक्रिय दवा सामग्री’ (API) का आयात चीन से करता है। चीनी API की लागत भारतीय बाज़ार की तुलना में कम है।
    • समस्या की गहराई कोविड-19 महामारी के दौरान तब सामने आई जब यात्रा प्रतिबंधों के कारण भारत में चीनी API के निर्यात को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया और इसके परिणामस्वरूप भारत को API के अपने निर्यात में भी कटौती करनी पड़ी।
  • भारत में उत्पादित कोयला ऊर्जा का लगभग 24% उन संयंत्रों से आ सकता है जो चीन से आयातित महत्त्वपूर्ण उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। इसलिये इसे रणनीतिक निर्भरता नहीं माना जा सकता है, लेकिन निश्चित रूप से यह एक सुरक्षा चुनौती है।   
    • जबकि चीन से इस तरह के आयात को सीमित करने या यहाँ तक कि प्रतिबंधित करने की मांग की जा रही है, इसका सीधा सा अर्थ होगा कि निजी भारतीय विद्युत कंपनियों को उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा।

चीन पर अति-निर्भरता का मुकाबला करने हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • चाइनीज एप्स पर बैन।
  • भारत द्वारा कई क्षेत्रों में चीनी निवेश की जाँच में सख्ती की गई है, साथ ही सरकार द्वारा चीनी कंपनियों को 5G परीक्षण से बाहर रखना।
  • API के लिये आयात निर्भरता में कटौती - बल्क ड्रग पार्क और PLI योजना को बढ़ावा देना।
  • घरेलू फर्मों के अवसरवादी अधिग्रहण पर अंकुश - चीन पर FDI प्रतिबंध
  • चीनी बिजली उपकरणों के आयात पर वास्तविक प्रतिबंध।
  • स्थानीय विनिर्माताओं के हित में एल्युमीनियम के कुछ सामानों और रसायनों पर 5 वर्ष के लिये एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया गया।
  • भारत को वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनाने और आयात बिलों में कटौती के लिये 12 क्षेत्रों की पहचान।
    • ये क्षेत्र हैं खाद्य प्रसंस्करण, जैविक खेती, लोहा, एल्युमीनियम और ताँबा, कृषि-रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी, फर्नीचर, चमड़ा और जूते, ऑटो के पुर्जे, कपड़ा और कवरऑल, मास्क, सैनिटाइजर और वेंटिलेटर।

आगे की राह: 

  • भारत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उत्पादों के आयात पर अपनी सामरिक निर्भरता को पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकता।  हालाँकि, चीन की भूमिका को व्यापार क्षेत्र में  कम करके भारत  इस क्षेत्र में निर्भरता में विविधता ला सकता है
    • भारत, व्यापार क्षेत्र में निर्भरता में विविधता ,अमेरिका, यूरोप, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ अधिक आयात-निर्यात करके ला सकता है। इस तरह भारत उन देशों पर अपनी निर्भरता बढ़ाएगा जिनके साथ इसके अच्छे राजनीतिक संबंध भी हैं। 
  • वहाँ आत्मनिर्भरता को और अधिक प्रोत्साहन  देना एक विवेकपूर्ण तरीका हो सकता है, जिन क्षेत्रों में भारत एक शुद्ध आयातक है और इसमें प्रौद्योगिकी तथा पूँजी की बड़ी भूमिका होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न, "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति स्थिति को विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग, उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के परिपेक्ष्य में, उसके पड़ोसी देश भारत पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिये। (2017) 

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

फ्यूजन एनर्जी ब्रेकथ्रू

प्रिलिम्स के लिये:

नाभिकीय संलयन, नाभिकीय संलयन और नाभिकीय विखंडन के बीच अंतर।

मेन्स के लिये:

नाभिकीय संलयन के फायदे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के लॉरेंस लिवरमोर फैसिलिटी में कुछ वैज्ञानिकों ने नाभिकीय संलयन अभिक्रिया से ऊर्जा में शुद्ध लाभ हासिल किया है, जिसे एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जाता है।

  • चीन का कृत्रिम सूर्य, जिसे उन्नत नाभिकीय संलयन प्रयोगात्मक अनुसंधान उपकरण ( Experimental Advanced Superconducting Tokamak- EAST) कहा जाता है, सूर्य पर  होने वाले नाभिकीय संलयन के सामान कार्य करता है।

प्रयोग (Experiment):

  • प्रयोग ने हाइड्रोजन की अति सूक्ष्म मात्रा को काली मिर्च के आकार के कैप्सूल में बदलने का प्रयास किया, जिसके लिये वैज्ञानिकों ने एक शक्तिशाली 192-बीम लेज़र का उपयोग किया जो 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस ऊष्मा उत्पन्न कर सकता था।
  • इसे 'जड़त्वीय संलयन' भी कहते हैं।
  • लेजर बीम सूर्य के केंद्र से अधिक गर्म था और हाइड्रोजन ईंधन को पृथ्वी के वायुमंडल के 100 अरब गुना से अधिक तक संपीड़ित करने में मदद कर सकता था।
  • इन बलों के दबाव में कैप्सूल अपने आप में विस्फोट करना शुरू कर देता है और हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन एवं ऊर्जा उत्सर्जन के लिये अग्रणी होता है।

भविष्य की संभावना:

  • संलयन प्रक्रिया में विशेषज्ञता हासिल करने का प्रयास कम से कम वर्ष 1950 के दशक से चल रहा है लेकिन यह अविश्वसनीय रूप से कठिन है और अभी भी एक प्रायोगिक चरण में है।
  • वर्तमान में विश्व भर में उपयोग की जाने वाली नाभिकीय ऊर्जा विखंडन प्रक्रिया से आती है।
  • अधिक ऊर्जा उत्पादन के अलावा, संलयन ऊर्जा का कार्बन मुक्त स्रोत भी है और इसमें नगण्य विकिरण ज़ोखिम हैं।
  • हालाँकि उपलब्धि महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यह संलयन प्रक्रियाओं से विद्युत उत्पादन के लक्ष्य को वास्तविकता के करीब लाने के लिये बहुत कम है।
  • सभी अनुमानों से व्यावसायिक स्तर पर विद्युत उत्पादन करने के लिये संलयन प्रक्रिया का उपयोग अभी भी दो से तीन दशक दूर है।
  • US प्रयोग में उपयोग की जाने वाली तकनीक को तैनात होने में और भी अधिक समय लग सकता है।

संलयन:

  • संलयन एक परमाणु के नाभिक में स्थित विशाल ऊर्जा का दोहन करने का एक अलग लेकिन अधिक शक्तिशाली तरीका है।  
  • संलयन में दो हल्के तत्त्वों के नाभिक आपस में जुड़कर एक भारी परमाणु नाभिक का निर्माण करते हैं।
  • इन दोनों प्रक्रियाओं में बड़ी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है, लेकिन विखंडन की तुलना में संलयन में काफी अधिक होती है।
    • यह वह प्रक्रिया है जो सूर्य और अन्य सभी तारों को चमक प्रदान करती है तथा ऊर्जा का विकिरण करती है।

Fusion

नाभिकीय संलयन के लाभ 

  • प्रचुर मात्रा में ऊर्जा: 
    • नियंत्रित तरीके से  परमाणुओं को एक साथ मिलाने से कोयले, तेल या गैस के जलने जैसी रासायनिक प्रतिक्रिया की तुलना में लगभग चार मिलियन गुना अधिक ऊर्जा और नाभिकीय विखंडन प्रतिक्रियाओं (समान द्रव्यमान पर) की तुलना में चार गुना अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है।  
    • संलयन की क्रिया में शहरों और उद्योगों को बिजली प्रदान करने हेतु आवश्यक बेसलोड ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता है।
  • स्थिरता:
    • संलयन आधारित ईंधन व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अक्षय है। ड्यूटेरियम को सभी प्रकार के जल से डिस्टिल्ड किया जा सकता है, जबकि संलयन प्रतिक्रिया के दौरान ट्रिटियम का उत्पादन किया जाएगा क्योंकि न्यूट्रॉन लिथियम के साथ फ्यूज़न करते हैं। 
  • CO₂ का उत्सर्जन नहीं: 
    • संलयन की क्रिया से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों जैसे हानिकारक विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन नहीं होता है। इसका प्रमुख सह- उत्पाद हीलियम है जो कि एक अक्रिय और गैर-विषाक्त गैस है।
  • लंबे समय तक रहने वाले रेडियोधर्मी कचरे से बचाव: 
    • नाभिकीय संलयन रिएक्टर उच्च गतिविधि व लंबे समय तक रहने वाले नाभिकीय अपशिष्ट का उत्पादन नहीं करते हैं।
  • प्रसार का सीमित जोखिम: 
    • संलयन में यूरेनियम और प्लूटोनियम जैसे विखंडनीय पदार्थ उत्पन्न नहीं होते हैं (रेडियोधर्मी ट्रिटियम न तो विखंडनीय है और न ही विखंडनीय सामग्री है)। 
  • पिघलने का कोई खतरा नहीं:
    • संलयन के लिये आवश्यक सटीक स्थितियों तक पहुंँचना और उन्हें बनाए रखना काफी मुश्किल है तथा यदि संलयन की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी होती है, तो प्लाज़्मा कुछ ही सेकंड के भीतर ठंडा हो जाता है और प्रतिक्रिया बंद हो जाती है।

नाभिकीय संलयन बनाम नाभिकीय विखंडन

 

नाभिकीय विखंडन

नाभिकीय संलयन 

परिभाषा

विखंडन का आशय एक बड़े परमाणु का दो या दो से अधिक छोटे परमाणुओं में विभाजन से है।

नाभिकीय संलयन का आशय दो हल्के परमाणुओं के संयोजन से एक भारी परमाणु नाभिक के निर्माण की प्रकिया से है।

घटना

विखंडन प्रकिया सामान्य रूप से प्रकृति में घटित नहीं होती है।

प्रायः सूर्य जैसे तारों में संलयन प्रक्रिया घटित होती है।

ऊर्जा आवश्यकता

विखंडन प्रकिया में दो परमाणुओं को विभाजित करने में बहुत कम ऊर्जा लगती है।

दो या दो से अधिक प्रोटॉन को एक साथ लाने के लिये अत्यधिक उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

प्राप्त ऊर्जा

विखंडन द्वारा जारी ऊर्जा रासायनिक प्रतिक्रियाओं में जारी ऊर्जा की तुलना में एक लाख गुना अधिक होती है, हालाँकि यह नाभिकीय संलयन द्वारा जारी ऊर्जा से कम होती है।

संलयन से प्राप्त ऊर्जा विखंडन से निकलने वाली ऊर्जा से तीन से चार गुना अधिक होती है।

ऊर्जा उत्पादन 

विखंडन प्रकिया का उपयोग परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में किया जाता है।

यह ऊर्जा उत्पादन के लिये  एक प्रायोगिक तकनीक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य होता है:(2011) 

(a) न्यूट्रॉन की गति को धीमा करना।
(b) न्यूट्रॉन की गति बढ़ाना ।
(c) रिएक्टर को ठंडा करना ।
(d) परमाणु अभिक्रिया को रोकना।

उत्तर: (a)

  • भारी जल (D2O), जिसे ड्यूटेरियम ऑक्साइड भी कहा जाता है, ड्यूटेरियम (हाइड्रोजन समस्थानिक) से बना जल होता है, जिसका द्रव्यमान सामान्य जल (H2O) से दोगुना होता है।
  • भारी जल प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, हालाँकि यह सामान्य पानी की तुलना में बहुत कम होता है।
  • यह आमतौर पर परमाणु रिएक्टरों में न्यूट्रॉन मॉडरेटर के रूप में प्रयोग किया जाता है, यानी न्यूट्रॉन की गति को धीमा करने के लिये।

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।


मेन्स

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से संबंधित तथ्यों की विवेचना कीजिये। (2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

ग्लास (GLAAS) रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लास रिपोर्ट 2022 , विश्व स्वास्थ्य संगठन, जलवायु परिवर्तन, WASH रणनीति

मेन्स के लिये:

जल और स्वच्छता तक पहुँच तथा संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और UN-Water द्वारा स्वच्छता एवं पेयजल का वैश्विक विश्लेषण तथा आकलन (GLAAS) रिपोर्ट जारी की गई।

यूएन- वाटर (UN-Water):

  • यूएन-वाटर, जल और स्वच्छता पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यों का समन्वय करता है। यूएन-वाटर एक 'समन्वय तंत्र' है।  
  • यह संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं (सदस्यों) और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (भागीदारों) से निर्मित है जो जल और स्वच्छता के मुद्दों पर काम कर रहे हैं।  
  • यूएन-वाटर की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सदस्य और भागीदार जल संबंधित चुनौतियों के समाधान हेतु एक साथ काम करें। 

GLAAS रिपोर्ट 

  • यूएन-वाटर ग्लोबल एनालिसिस एंड असेसमेंट ऑफ सेनिटेशन एंड ड्रिंकिंग-वाटर (GLAAS) 2022 रिपोर्ट में 121 देशों और क्षेत्रों तथा 23 बाह्य सहायता एजेंसियों (External Support Agencies- ESAs) से पेयजल, सफाई और स्वच्छता (WASH) पर नए डेटा संकलित किये गए हैं।   
  • यह सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 की दूसरी छमाही के दौरान प्रतिबद्धताओं, प्राथमिकता-निर्धारण और कार्यों को सूचित करने एवं जल तथा स्वच्छता पर कार्रवाई के लिये संयुक्त राष्ट्र दशक (2018-2028) (संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन) के कार्यान्वयन की मध्यावधि पर व्यापक समीक्षा हेतु सम्मेलन 2023 के लिये एक वैश्विक संदर्भ के रूप में कार्य करता है।  
  • रिपोर्ट प्रमुख WASH क्षेत्रों में प्रगति में तेज़ी लाने के अवसरों पर भी प्रकाश डालती है जो WASH सेवाओं की गुणवत्ता और स्थिरता एवं वितरण, महामारी की तैयारी तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • मानव संसाधन:
    • एक तिहाई से भी कम देशों ने आवश्यक जल और स्वच्छता (वॉश) से संबंधित कार्यों के प्रबंधन के लिये पर्याप्त मानव संसाधन बनाए रखने की सूचना दी है।
  • राष्ट्रीय लक्ष्य:
    • 45% देश अपने पेयजल लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर हैं, लेकिन अभी तक केवल  25% ही अपने स्वच्छता लक्ष्यों को पूरा कर पा रहें हैं।
    • राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये और अधिक शीघ्रता की आवश्यकता है।
  • वित्त:
    •  हालाँकि कुछ देशों के  WASH बजट में वृद्धि हुई है - लेकिन उनमें से 75% से अधिक  देशों  ने WASH से संबंधित योजनाओं व उद्देश्यों को पूरा करने के लिये अपर्याप्त संसाधन होने की सूचना दी है।
  • WASH सिस्टम का जलवायु लचीलापन:
    • अधिकांश WASH नीतियों और योजनाओं को बनाते समय  जलवायु परिवर्तन के खतरों पर विचार नहीं किया जाता है, न ही वे WASH प्रौद्योगिकी और प्रबंधन प्रणालियों के जलवायु लचीलेपन को ध्यान में रखते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम संबंधित घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता,  WASH सेवाओं के वितरण में बाधा बन रही है, जिससे उपयोगकर्ताओं का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।
  • बाह्य सहायता:  
    • वर्ष 2017 और 2020 के बीच जल और स्वच्छता के लिये अनुदान में 5.6% की कमी आई है और अनुदान के भौगोलिक मानदंड में परिवर्तन देखा गया।
    • उप-सहारा अफ्रीका में, WASH अनुदान का अनुपात 32% से गिरकर 23% हो गया, जबकि मध्य और दक्षिणी एशिया में 12% से बढ़कर 20% होने के रूप में वृद्धि देखी गई, और पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में यह 11% से बढ़कर 20% हो गया।

वाॅश (WASH):

WASH,  जल,स्वच्छता और साफ़-सफाई- ‘Water, Sanitation and Hygiene का संक्षिप्त रूप है। ये क्षेत्र परस्पर संबंधित हैं। 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की वॉश रणनीति को सदस्य राज्य संकल्प (WHA 64.4) तथा सतत् विकास लक्ष्य-3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण) सतत् विकास लक्ष्य-6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता) की अनुक्रिया के रूप में विकसित किया गया है।
  • यह WHO के 13वें जनरल प्रोग्राम ऑफ वर्क 2019-2023 का एक घटक है जिसका उद्देश्य बेहतर आपातकालीन तैयारियों और प्रतिक्रिया जैसे बहुक्षेत्रीय कार्रवाइयों के माध्यम से तीन बिलियन लोगों तथा यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज़ (UHC) के माध्यम से एक बिलियन लोगों की स्वास्थ्य सुविधा में योगदान करना है। 
  • यह जुलाई 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता जैसे मानवाधिकारों की प्रगतिशीलता पर भी ज़ोर देता है।

आगे की राह

  • समावेशी विकास:  
    • लोंगों की सुरक्षित, स्थायी WASH सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना, साथ ही अल्प सुविधा वाली आबादी और स्थानों पर ध्यान देना चाहिये, जैसे कि गरीबी में रहने वाले या ग्रामीण या दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति।
    • स्थानीय भागीदारी यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि कोई भी वंचित न रहे।
      • SDG 6 समाधानों को स्थानीय सामुदायिक संदर्भों में अपनाने और बनाए रखने के लिए सामुदायिक भागीदारी को मज़बूत करना आवश्यक है।
  • लैंगिक:  
    • WASH के निर्णयों और सेवाओं में महिलाओं पर विचार सुनिश्चित करने के लिये अधिक समावेशन, वित्तीय सहायता और निगरानी की आवश्यकता है
    • WASH मासिक धर्म के स्वास्थ्य और स्वच्छता से लेकर स्थानीय भागीदारी और WASH में काम करने वाली महिलाओं तक कई तरह से जुड़ा हुआ है।
  • निवेश में बढ़ोतरी: 
    • सरकारों और विकास भागीदारों को सबसे कमज़ोर लोगों से शुरुआत करते हुए वर्ष 2030 तक सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल और स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिये WASH सिस्टम को मजबूत करने और निवेश में नाटकीय रूप से वृद्धि करने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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