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डेली न्यूज़

  • 15 Oct, 2020
  • 48 min read
शासन व्यवस्था

STARS प्रोजेक्ट के तहत कई कार्यक्रमों को मंज़ूरी

प्रिलिम्स के लिये:

STARS प्रोजेक्ट, राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र- ‘परख’, अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम' 

मेन्स के लिये:

STARS प्रोजेक्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ‘केंद्रीय मंत्रिमंडल’ द्वारा विश्व बैंक समर्थित ‘STARS प्रोजेक्ट’ से जुड़े कई कार्यक्रमों को मंज़ूरी दी गई।

प्रमुख बिंदु:

  • मंत्रिमंडल द्वारा 5,718 करोड़ रुपए की कुल परियोजना लागत वाले STARS (Strengthening Teaching-Learning and Results for States) प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी गई है।
    • प्रोजेक्ट लागत में से लगभग 3700 करोड़ रुपए की सहायता राशी  विश्व बैंक से प्राप्त होगी।
  • STARS प्रोजेक्ट को शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के तहत एक नवीन केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया जाएगा।
  • स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग’ के तहत एक स्वतंत्र और स्वायत्त संस्थान के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र’ की स्थापना।
    • 'परख', ‘नवीन शिक्षा नीति’ (NEP)- 2020 में प्रस्तावित मूल्यांकन सुधारों में से एक है। NEP का एक प्रमुख उद्देश्य सामूहिक रूप से स्कूलों, बोर्डों को हाई-स्टैक की परीक्षाओं से दूर रखना और समग्र मूल्यांकन की ओर ले जाना है।

STARS प्रोजेक्ट: 

  • STARS प्रोजेक्ट 6 राज्यों- हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल और ओडिशा को छात्रों के बुनियादी पठन और गणित कौशल को बेहतर बनाने तथा मूल्यांकन सुधारों का समर्थन करेगा।
    • इस परियोजना के अलावा 5 राज्यों- गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड, झारखंड और असम में भी इसी तरह के एक प्रोजेक्ट को 'एशियाई विकास बैंक' (Asian Development Bank- ADB) के वित्तपोषण से लागू करने की परिकल्पना की गई है। 
    • सभी राज्य अपने अनुभवों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये एक-दूसरे राज्य के साथ भागीदारी करेंगे।
  • STARS परियोजना के तहत सरकार द्वारा प्रबंधित स्कूल शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करने के लिये निर्देशित किया गया है, जो मुख्य रूप से हाशिये पर स्थित समूहों की लड़कियों और छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करती है।
  • छह राज्यों के लिये STARS प्रोजेक्ट के तहत कई हस्तक्षेप (Intervention) का प्रस्ताव किया है:
    • जिसमें शिक्षकों की क्षमता विकसित करने; 
    • शिक्षण-शिक्षण सामग्री और बोर्ड परीक्षाओं को अधिक योग्यता-आधारित बनाना आदि शामिल है।

STARS प्रोजेक्ट के घटक:

STARS प्रोजेक्ट के दो प्रमुख घटक हैं:

  • राष्ट्रीय स्तर पर हस्तक्षेप: राष्ट्रीय स्तर पर परियोजना में निम्नलिखित हस्तक्षेप की परिकल्पना की गई है जिससे सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लाभ होगा:
    • छात्रों के प्रतिधारण (Retention), संक्रमण (Transition) और पूर्णता (Completion) दर पर ठोस और प्रामाणिक डेटा कैप्चर करने के लिये शिक्षा मंत्रालय (MoE) की 'राष्ट्रीय डेटा प्रणाली' को मज़बूत करना।
    • 'राज्‍य प्रोत्‍साहन अनुदान' (State Incentive Grants- SIG) के माध्‍यम से राज्‍यों के शासन सुधार एजेंडा को प्रोत्‍साहन देकर राज्‍यों के 'परफॉरमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स' (PGI) स्कोर में सुधार लाने में शिक्षा मंत्रालय की मदद करना।
    • अधिगम मूल्यांकन प्रणाली के सुदृढ़ीकरण का समर्थन करना।
    • शिक्षा मंत्रालय को 'राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र' (PARAKH) स्थापित करने में मदद करना।
  • राज्य स्तर पर परिकल्पना: राज्य स्तर पर STARS प्रोजेक्ट के तहत निम्नलिखित परिकल्पना की गई है:
    • प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा (ईसीसीई) तथा मूलभूत शिक्षा को मज़बूती प्रदान करना।
    • शिक्षण मूल्यांकन/आकलन प्रणालियों में सुधार लाना
    • शिक्षक विकास और स्कूल नेतृत्व के माध्यम से कक्षा में निर्देश प्रणाली और उपशमन को मज़बूत करना
    • उन्‍नत सेवा आपूर्ति के लिये शासन एवं विकेंद्रित प्रबंधन दृष्टिकोण का समर्थन करना
    • स्‍कूल जाने से वंचित बच्‍चों को मुख्‍यधारा में शामिल करना, करियर मार्गदर्शन तथा परामर्श देना और इंटर्नशिप देकर स्‍कूलों में व्‍यवसायिक शिक्षा को सशक्‍त बनाना।

STARS प्रोजेक्ट का कार्य क्षेत्र: 

  • पहुँच और प्रतिधारण; 
  • शिक्षा के अधिकार का अधिकारिता; 
  • गुणवत्ता में हस्तक्षेप; 
  • शिक्षक की शिक्षा; 
  • लिंग और इक्विटी; 
  • समावेशी शिक्षा; 
  • एंटाइटेलमेंट/अधिकारिता (वर्दी, पाठ्य-पुस्तकें, छात्रवृत्ति आदि); 
  • सीखने के परिवेश का उन्नयन।

प्रोजेक्ट के मापन योग्य परिणाम:

  • चयनित राज्यों में ग्रेड 3 में  भाषा में न्यूनतम प्रवीणता प्राप्त करने वाले छात्रों में वृद्धि;
  • माध्यमिक विद्यालय तक शिक्षा पूर्ण करने की दर में सुधार;
  • शासन सूचकांक में सुधार;
  •  सुदृढ़ अधिगम मूल्यांकन प्रणाली;
  • राज्यों के बीच क्रॉस-लर्निंग की सुविधा के लिये साझेदारी विकसित करना;
  • राज्य स्तरीय सेवा वितरण में सुधार जैसे- प्रमुख शिक्षकों और प्रधानाचार्यों के प्रशिक्षण द्वारा स्कूल प्रबंधन को मज़बूत करना।

STARS प्रोजेक्ट और PISA:

  • इस परियोजना द्वारा 'अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम' ( Programme for International Student Assessment- PISA) सर्वेक्षण के वर्ष 2022 के चक्र में भारत की भागीदारी को भी वित्तपोषित किया जाएगा।

'अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम'

(Programme for International Student Assessment- PISA): 

  • PISA की शुरुआत 'आर्थिक सहयोग और विकास संगठन' (OECD) द्वारा वर्ष 2000 में की गई थी।
  • यह अधिगम गणित और विज्ञान में 15 वर्षीय बच्चों के सीखने के स्तर का परीक्षण करता है।
  • परीक्षण हर तीन वर्ष में आयोजित किया जाता है।
  • भारत ने वर्ष 2009 में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के बाद वर्ष 2012 और वर्ष 2015 में PISA में भाग नहीं लिया।
  • वर्ष 2009 में भारत 74 प्रतिभागी देशों के बीच 72वें स्थान पर रहा था। सरकार ने वर्ष 2019 में PISA में भाग लेने का निर्णय लिया है।

निष्कर्ष:

  • STARS प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन से भारतीय स्‍कूली शिक्षा प्रणाली में समग्र निगरानी और मापक गतिविधियों में सुधार लाने में मदद मिलेगी तथा इससे भारत को PISA मूल्यांकन प्रणाली में अपनी रैंकिंग सुधारने में भी मदद मिलेगी।

स्रोत: पीआईबी


आंतरिक सुरक्षा

अशांत क्षेत्र अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये

विधेयक पर राष्ट्रपति की अनुमति

मेन्स के लिये

अशांत क्षेत्र अधिनियम से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुजरात विधानसभा द्वारा पारित ‘अशांत क्षेत्र अधिनियम‘ (Disturbed Areas Act)  में संशोधन से जुड़े एक विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान में यह अधिनियम गुजरात के अहमदाबाद, वड़ोदरा, सूरत, हिम्मत नगर, गोधरा, कपडवंज और भुरूच में लागू है। 

क्या है अशांत क्षेत्र अधिनियम? 

  • ‘अशांत क्षेत्र अधिनियम‘ को सबसे पहले वर्ष 1986 में लागू किया गया था। 
  • अशांत क्षेत्र अधिनियम के तहत ज़िला कलेक्टर को शहर या कस्बे के किसी भाग को ‘अशांत क्षेत्र’  के रूप में अधिसूचित करने का अधिकार है।
  • ज़िला कलेक्टर द्वारा यह अधिसूचना आमतौर पर क्षेत्र में सांप्रदायिक दंगों के इतिहास के आधार पर जारी की जाती है।
  • इस अधिसूचना के जारी होने के बाद संबंधित ‘अशांत क्षेत्र’ में किसी संपत्ति का हस्तांतरण तभी हो सकता है, जब खरीदार और संपत्ति के विक्रेता द्वारा दिये गए आवेदन पर ज़िला कलेक्टर की अनुमति प्राप्त कर ली जाती है।
  • इस आवेदन में विक्रेता को एक हलफनामा संलग्न करना होगा जिसमें उसे यह लिख कर देना होगा कि वह स्वेच्छा से अपनी संपत्ति बेच रहा है तथा इसके लिये उसे सही मूल्य प्राप्त हुआ है।    
  • अधिसूचित क्षेत्र में इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन की स्थिति में दोषी व्यक्ति को कारावास और जुर्माने की सज़ा हो सकती है।
  • राज्य सरकार के अनुसार, इस अधिनियम का उद्देश्य राज्य के विभिन्न हिस्सों के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मामलों की निगरानी करना है।

संशोधन का कारण: 

  • गुजरात सरकार के अनुसार, कई विधायकों और अन्य लोगों द्वारा इस अधिनियम में कुछ कानूनी खामियों का मुद्दा उठाए जाने के बाद यह संशोधन लाया गया है।
  • इस अधिनियम के पूर्व संस्करण में ज़िला कलेक्टर को विक्रेता द्वारा दिये गए शपथ पत्र के आधार पर यह सुनिश्चित करना था कि उसने स्वेच्छा से अपनी संपत्ति बेची है और इसके लिये उसे उचित मूल्य (बाज़ार के अनुरूप) प्राप्त हुआ है।   
  • हालाँकि सरकार को ऐसी शिकायतें प्राप्त हुई थीं कि ‘अशांत’ के रूप में चिह्नित क्षेत्रों में असमाजिक तत्त्वों द्वारा लोगों को धमकी देकर या अधिक कीमत का लालच देकर संपत्तियों की खरीद और बिक्री की जा रही थी।
  • सरकार को प्राप्त हुई शिकायतों के अनुसार, असामाजिक तत्त्वों द्वारा इस अधिनियम के उन प्रावधानों के तहत संपत्ति का पंजीकरण कराया गया जिसके अंतर्गत अशांत क्षेत्र अधिनियम के तहत ज़िला कलेक्टर की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इसके परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में क्लस्टरिंग (Clustering) या ध्रुवीकरण के मामले देखने को मिले हैं।
  • अधिनियम की इस कमी को दूर करने और इसके प्रावधानों के उल्लंघन के मामलों में सज़ा को बढ़ाने के लिये गुजरात विधानसभा में जुलाई 2019 में इस संशोधन विधेयक को प्रस्तुत किया गया था।  

संशोधित अधिनियम में शामिल सुधार:

  • संशोधित अधिनियम के तहत  किसी क्षेत्र में ‘ध्रुवीकरण’ या किसी समुदाय विशेष के व्यक्तियों की ‘अनुचित क्लस्टरिंग’ की संभावनाओं का पता लगाने के लिये  ज़िला कलेक्टर की शक्तियों में विस्तार किया गया है। इसके साथ ही राज्य सरकार को कलेक्टर के निर्णयों की समीक्षा करने का अधिकार प्रदान किया गया  है।
  • अधिनियम में ऐसे मामलों की जाँच के लिये एक विशेष जाँच दल (Special Investigation Team- SIT) या समिति के गठन का प्रावधान किया गया है।
    • नगर निगम में शामिल क्षेत्रों के मामलों में इस SIT में संबंधित कलेक्टर, नगर आयुक्त और पुलिस आयुक्त शामिल होंगे। 
    • नगर निगमों के अलावा अन्य क्षेत्रों में इस SIT में कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और क्षेत्रीय नगर आयुक्त सदस्य के रूप में शामिल होंगे।  
  • संशोधित अधिनियम में राज्य सरकार को एक सलाहकार समिति बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है। यह समिति सरकार को अशांत क्षेत्र अधिनियम  से जुड़े विभिन्न पहलुओं (जैसे- अशांत क्षेत्रों की सूची में नए क्षेत्र को शामिल करना आदि) पर सलाह देने का कार्य करेगी।
  • अशांत क्षेत्रों में कलेक्टर की पूर्व स्वीकृति के बिना संपत्तियों के हस्तांतरण के पंजीकरण की जाँच करने के लिये संशोधित अधिनियम में 'स्थानांतरण' शब्द का दायरा बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। इसके तहत  अशांत क्षेत्रों में  बिक्री, उपहार, विनिमय और पट्टे के माध्यम से संपत्ति के हस्तांतरण को शामिल किया गया है। 
    • इस अधिनियम में संशोधन के माध्यम से पंजीकरण अधिनियम में संशोधन किया गया है जिसके तहत अशांत क्षेत्रों में कलेक्टर की पूर्व स्वीकृति के बगैर किसी संपत्ति का पंजीकरण नहीं किया जा सकता।  
  • संशोधित अधिनियम के तहत संपत्ति के मालिक को केवल अपने उद्देश्य के लिये संपत्ति के पुनर्विकास की अनुमति दी गई है, परंतु  यदि मालिक पुनर्विकसित संपत्ति पर किसी नए व्यक्ति (जैसे-किरायेदार) को लाना चाहता है, तो उसे इसके लिये कलेक्टर की अनुमति लेनी होगी।     
  • अधिनियम के प्रावधान किसी अशांत क्षेत्र में सरकार की पुनर्वास योजनाओं पर लागू नहीं होंगे, जहाँ सरकार द्वारा विस्थापित लोगों का पुनर्वास का कार्य किया जा रहा हो।  

दंड का प्रावधान:

  • पूर्व में इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर 6 माह का कारावास और 10,000 रुपए तक के जुर्माने के प्रावधान था। 
  • संशोधित अधिनियम के अनुसार,  इसके प्रावधानों के उल्लंघन की स्थिति में दोषी व्यक्ति को 3-5 वर्ष तक की सज़ा हो सकती है। साथ ही इस संशोधन के पश्चात् दोषी को जुर्माने के रूप में  1 लाख रुपए या संपत्ति की जंत्री दर (गुजरात राज्य के विभिन्न हिस्सों में संपत्ति की कीमतों की अनुमान संबंधी दर) का 10% (जो भी अधिक हो) का आर्थिक दंड भी दिया जा सकता है। 

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिये विशेष आर्थिक पैकेज

प्रिलिम्स के लिये

दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

मेन्स के लिये

विशेष आर्थिक पैकेज का महत्त्व और इसकी आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिये 520 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि 520 करोड़ रुपए के इस विशेष पैकेज को दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत मंज़ूरी प्रदान की गई है।
  • इस विशेष पैकेज को कुल पाँच वर्ष (वित्तीय वर्ष 2023-24 तक) के लिये मंज़ूरी दी गई है।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के मापदंडों में बदलाव को भी मंज़ूरी दी है।
    • कारण: मिशन के तहत कई तकनीकी कारकों के चलते पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य की कई महिलाओं को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा था, अतः सभी ज़रूरतमंदों तक योजना का लाभ पहुँचाने के लिये इसके मापदडों में बदलाव करना आवश्यक था।

महत्त्व

  • इससे इन केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) की ज़रूरत के आधार पर इस मिशन के तहत पर्याप्‍त धन सुनिश्चित किया जा सकेगा 
  • यह विशेष पैकेज समयबद्ध तरीके से केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं को सार्वभौमिक बनाने के भारत सरकार के उद्देश्‍य के भी अनुरूप है।
  • अब विशेष पैकेज के तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की तकरीबन दो-तिहाई ग्रामीण महिलाओं को कवर किया जाएगा और अगले पाँच वर्ष तक 520 करोड़ रुपए के इस विशेष पैकेज का लाभ तकरीबन 10.58 लाख महिलाओं को मिल सकेगा।
    • ध्यातव्य है कि सरकार ने देश भर की तकरीबन 10 करोड़ महिलाओं तक इस योजना का लाभ पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें से 10 लाख महिलाएँ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से होंगी।

आवश्यकता

  • जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करते हुए भारत सरकार ने तर्क दिया था कि इस निर्णय के माध्यम से भारत के अन्य क्षेत्रों में लागू किये गए कानून और कल्याण योजनाओं को जम्मू-कश्मीर में भी लागू किया जा सकेगा, जिससे इस क्षेत्र का विकास भी सुनिश्चित होगा।
  • इससे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के आम लोगों के जीवन एवं उनकी आजीविका में सुधार होगा तथा यह सुनिश्चित होगा कि आम लोग आतंकवादी समूहों में शामिल न हों।
  • जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की अर्थव्यवस्था को बदलने के लिये सड़कों, पुलों, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं तथा विशेष औद्योगिक क्षेत्रों जैसी अवसंरचना परियोजनाओं में तेज़ी लाई जा रही है और इन क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

पृष्ठभूमि

  • दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) को पूर्ववर्ती राज्‍य जम्मू-कश्मीर में ‘उम्‍मीद’ (Umeed) कार्यक्रम के रूप में लागू किया गया था।
  • इस मिशन के तहत वित्त का आवंटन राज्यों के बीच पारस्परिक गरीबी के अनुपात में किया जाता है, जिसके कारण जम्मू-कश्मीर को इस मिशन के तहत कुल राशि का 1 प्रतिशत से भी कम हिस्सा मिल पाता था।
  • इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इस मिशन के तहत वित्त वर्ष 2013-14 से वित्त वर्ष 2017-18 तक पाँच वर्ष की निश्चित समयसीमा में जम्मू-कश्मीर के लिये पर्याप्‍त वित्तपोषण सहायता सुनिश्चित करने और राज्‍य की गरीब ग्रामीण आबादी (जो कुल ग्रामीण आबादी की लगभग दो-तिहाई है) को पर्याप्‍त कवरेज प्रदान करने हेतु भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्‍य के लिये एक अन्य विशेष पैकेज को मंज़ूरी दी थी।
  • यद्यपि विभिन्न कारकों और राज्‍य की अशांत स्थिति के कारण इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका था, किंतु एक स्वतंत्र संस्था द्वारा किये गए इस विशेष पैकेज के मूल्यांकन में मिशन के कार्यान्‍वयन से संबंधित अनेक अच्छे परिणाम सामने आए, जिनमें आय स्‍तर में बढ़ोतरी, महिलाओं के लिये नए आजीविका अवसरों का सृजन, अधिक बचत और अधिक निवेश आदि शामिल हैं। 

दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) 

  • दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है, जिसकी शुरुआत जून 2011 में हुई थी
  • इस योजना का उद्देश्‍य पूरे देश में कौशल विकास एवं अन्य उपायों के माध्यम से आजीविका के अवसरों में वृद्धि कर ग्रामीण गरीबी का उन्मूलन करना है। 
  • इस योजना के तहत भारत के 10 करोड़ गरीब परिवारों की कम-से-कम एक महिला को स्वयं सहायता समूह (SHG) से जोड़कर, उन्हें प्रशिक्षण देकर और लघु आजीविका योजनाओं में सहायता प्रदान कर उनके जीवन स्तर में परिवर्तन का प्रयास किया जा रहा है। 
    • ध्यातव्य है कि भारत में 63 लाख स्वयं सहायता समूहों में 7 करोड़ महिला सदस्य हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के ऋण-GDP अनुपात में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये

ऋण-GDP अनुपात, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये

ऋण-GDP अनुपात में वृद्धि का कारण और इसके परिणाम

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के अनुसार, महामारी के कारण सार्वजनिक व्यय में हो रही वृद्धि के परिणामस्वरूप इस वर्ष भारत का ऋण-GDP अनुपात (Debt-to-GDP Ratio) अथवा सार्वजनिक ऋण अनुपात 90 प्रतिशत तक रह सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, इस वर्ष महामारी के प्रभाव के परिणामस्वरूप भारत के सार्वजनिक ऋण में 17 प्रतिशत अंकों (Percentage Points) की बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे भारत का ऋण-GDP अनुपात 90 प्रतिशत तक पहुँच सकता है। 
    • वर्ष 2021 तक भारत के ऋण-GDP अनुपात में स्थिरता आ सकती है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1991 से अब तक भारत का ऋण-GDP अनुपात तकरीबन स्थिर ही रहा है और बीते एक दशक में यह औसतन 70 प्रतिशत दर्ज किया गया है, किंतु इस वर्ष इसमें बढ़ोतरी होने की संभावना है। 

क्या होता है सार्वजनिक ऋण अनुपात?

  • ऋण-GDP अनुपात अथवा सार्वजनिक ऋण अनुपात किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद के साथ ऋण का अनुपात होता है। इस अनुपात का उपयोग किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता का आकलन करने के लिये किया जाता है। 
    • सरल शब्दों में कहें तो ऋण-GDP अनुपात किसी देश के सार्वजनिक ऋण की तुलना उसके वार्षिक आर्थिक उत्पादन से करता है। 
  • किसी भी देश द्वारा लिये गए ऋण की तुलना उसके उत्पादन से करके यह अनुपात उस देश के ऋण भुगतान करने की क्षमता को इंगित करता है। 
    • इसे प्रायः प्रतिशत के रूप में चिह्नित किया जाता है।

क्या बताता है ऋण-GDP अनुपात?

  • ऋण-GDP अनुपात या सार्वजनिक ऋण अनुपात किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता को दर्शाता है। अतः जिस देश का ऋण-GDP अनुपात जितना अधिक होता है, उसे अपने सार्वजनिक ऋण को चुकाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
  • इस प्रकार एक देश का ऋण-GDP अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफाॅल्ट (Default) होने की संभावना उतनी अधिक हो जाती है और जब पूरा देश डिफाॅल्ट हो जाता है अथवा अपना ऋण चुकाने में असमर्थ होता है तो प्रायः घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वित्तीय अस्थिरता आ जाती है।
  • यही कारण है कि सभी देशों की सरकारों द्वारा अपने ऋण-GDP अनुपात को हर स्थिति में कम करने के प्रयास किये जाते हैं। 
  • हालाँकि कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि अपनी स्वयं की मुद्रा छापने में सक्षम संप्रभु देश कभी भी डिफाॅल्ट नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वे अधिक-से-अधिक मुद्रा छाप कर अपने ऋण का भुगतान कर सकते हैं।
    • किंतु यह नियम उन देशों पर लागू नहीं होता है जो अपनी स्वयं की मौद्रिक नीति को नियंत्रित नहीं करते हैं, जैसे कि यूरोपीय संघ (EU) में शामिल देश, जिन्हें नई मुद्रा प्राप्त करने के लिये यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • विश्व बैंक द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, लंबी अवधि तक 77 प्रतिशत से अधिक ऋण-GDP अनुपात आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

ऋण-GDP अनुपात में बढ़ोतरी का कारण

  • युद्ध, आर्थिक अस्थिरता, आपदा और अशांति की स्थिति में सरकारों के लिये इस अनुपात को स्थिर रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • इस प्रकार की स्थिति में सरकारें अक्सर विकास और कुल मांग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अधिक ऋण लेती हैं जिससे उन देशों का ऋण-GDP अनुपात बढ़ता जाता है।

Formula-GDP-Ratio

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 189 देशों का एक संगठन है, जो कि वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देने, वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने, रोज़गार के अवसर सृजित करने, सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और विश्व भर में गरीबी को कम करने की दिशा में कार्य कर रहा है।
  • वर्ष 1945 में गठित यह संगठन अपने 189 सदस्य देशों द्वारा शासित है और यह उन्हीं सदस्य देशों के प्रति जवाबदेह है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-मेक्सिको संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

कॉफी क्लब 

मेन्स के लिये:

भारत-मेक्सिको संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में व्यापार सम्मेलन, निवेश और सहयोग पर भारत-मेक्सिको ‘द्विपक्षीय उच्च-स्तरीय समूह’ (BHLG) की 5वीं बैठक ‘वीडियो कॉन्फ्रेंस’ के माध्यम से आयोजित की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • वाणिज्य सचिव स्तर पर व्यापार, निवेश और सहयोग के लिये BHLG की चौथी बैठक जुलाई 2016 में मेक्सिको सिटी (मेक्सिको की राजधानी) में आयोजित की गई थी।
  • 1 अगस्त, 2020 को भारत और मेक्सिको ने अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगाँठ मनाई।
  • दोनों पक्षों द्वारा ऑडियो-विज़ुअल को-प्रोडक्शन, द्विपक्षीय निवेश संधि, कृषि उत्पादों के लिये बाज़ार पहुँच, ‘सैनीटरी एवं फाइटोसैनिटरी’ (SPS) पर एक सहयोग फ्रेमवर्क तथा तकनीकी बाधाओं से लेकर व्यापार (TBT) उपायों, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), पर्यटन में सहयोग, पीपल-टू-पीपल संपर्क सहित कई द्विपक्षीय तथा प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की गई।
  • दोनों देशों द्वारा फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरण, स्वास्थ्य सेवा, कृषि उत्पाद, मत्स्य पालन, खाद्य प्रसंस्करण और एयरोस्पेस उद्योग आदि में सहयोग बढ़ाने के माध्यम से द्विपक्षीय व्यापार संबंधों का विस्तार और विविधता लाने पर सहमति व्यक्त की गई है।
  • प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये दो समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गए हैं:
  • इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तथा दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी।
  • विदेश व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी।

भारत-मेक्सिको संबंध:

Mexico

संबंधो की पृष्ठभूमि:

  • अतीत में भारत और मेक्सिको दोनों उपनिवेश रह चुके हैं,  इस नाते दोनों देशों के औपनिवेशिक युग के यूरोप से साझा संबंध थे। 
  • मेक्सिको स्वतंत्रता के बाद भारत को मान्यता देने और वर्ष 1950 में भारत के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला लैटिन अमेरिकी देश था।
  • 1960 के दशक में गेहूँ के संकर बीज तैयार करने में मेक्सिकन गेहूँ की किस्मों का इस्तेमाल किया गया जो भारत में ‘हरित क्रांति’ का आधार थी।
  • शीत युद्ध के वर्षों में मेक्सिको और भारत ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के सदस्यों के रूप में साथ मिलकर काम किया। दोनों देशों ने विकासशील देशों जैसे- ‘उरुग्वे राउंड ऑफ ट्रेड नेगोशिएशन’ (विश्व व्यापार संगठन के तहत) के हितों का सक्रिय रूप से समर्थन किया।
  • दोनों देश G-20 के सदस्य हैं।

राजनीतिक और द्विपक्षीय सहयोग:

  • दोनों देशों द्वारा वर्ष 2007 में एक 'प्रिविलेज्ड पार्टनरशिप' की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2015 में दोनों देशों द्वारा 'रणनीतिक साझेदारी' हासिल करने की दिशा में काम करने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • दोनों देशों द्वारा कई द्विपक्षीय समझौतों और समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किये गए हैं, जिनमें निवेश संवर्द्धन और संरक्षण, प्रत्यर्पण, सीमा शुल्क मामलों में प्रशासनिक सहायता, अंतरिक्ष सहयोग आदि शामिल हैं।
  • भारत 'भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग' (ITEC) कार्यक्रम के तहत मेक्सिको को 20 छात्रवृति प्रदान करता है और मेक्सिकन राजनयिकों को भी 'भारतीय वन सर्वेक्षण' (FSI) में प्रशिक्षण दिया जाता है।

आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:

  • मेक्सिको वर्तमान में लैटिन अमेरिका में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2018-19 में भारत के कुल व्यापार का लगभग एक चौथाई भाग इस क्षेत्र के साथ था। 
  • भारत वर्तमान में मेक्सिको का 9वाँ महत्त्वपूर्ण वैश्विक व्यापारिक भागीदार है। 
  • पिछले दशक में दोनों देशों के बीच व्यापार में उछाल आया है, जो वर्ष 2015-16 में लगभग 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 9.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।

भारत का आयात

भारत से निर्यात 

भारत के आयात में कच्चा तेल प्रमुख है। इसके अलावा भारत विद्युत् सामान एवं मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और ऑटो पार्ट्स का भी आयात करता है।

भारत के निर्यात में मुख्यत: वाहन, कार्बनिक रसायन, एल्यूमीनियम उत्पाद, लोहा एवं इस्पात और सिरेमिक उत्पाद शामिल हैं।

सुरक्षा:

  • दोनों देश बढ़ती पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से वैश्विक आतंकवाद के उदय पर समान रूप से साझा चिंता व्यक्त करते हैं।

सांस्कृतिक संबंध:

  • ‘गुरुदेव टैगोर इंडियन कल्चरल सेंटर’ अक्तूबर 2010 से मेक्सिको में योग, शास्त्रीय नृत्य, संगीत आदि की शिक्षा दे रहा है।
  • दोनों देशों के बीच वर्ष 1975 में सांस्कृतिक सहयोग पर एक समझौता किया गया था दोनों देशों के बीच 'सांस्कृतिक सहयोग के चार वार्षिक कार्यक्रमों' के माध्यम से सहयोग गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।

भारतीय समुदाय:

  • मेक्सिको में 7,000 से अधिक भारतीय समुदाय के लोग रह रहे  हैं, जिनमें अधिकांश सॉफ्टवेयर इंजीनियर, शिक्षाविद/प्रोफेसर और निजी व्यवसायी हैं।
  • दोनों देशों के बीच पर्यटन के क्षेत्र में लगातार वृद्धि हो रही है और मेक्सिको वासियों को ऑनलाइन ई-टूरिस्ट वीज़ा की सुविधा दी गई है।

मतभेद:

  • परमाणु अप्रसार के मुद्दे पर मेक्सिको और भारत के अलग-अलग दृष्टिकोण रहे हैं। हालाँकि भारतीय प्रधानमंत्री की वर्ष 2016 की यात्रा के दौरान मेक्सिको ने भारत के लिये ‘परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह’ (NSG) का हिस्सा बनने हेतु समर्थन का वादा किया था।
  • दोनों देश 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' (UNSC) में सुधारों के मुद्दे पर मतभेद रखते हैं।
  • मेक्सिको, कॉफी क्लब या यूएफसी (Uniting for Consensus- UFC) का सदस्य रहा है, जो भारत तथा अन्य G-4 सदस्यों (जापान, जर्मनी और ब्राज़ील) की विचारधारा के विपरीत है तथा यूएनएससी में स्थायी सदस्यता के विस्तार का विरोध करता है।

आगे का राह:

  • भारत और मेक्सिको भू-जलवायु परिस्थितियों, जैव विविधता, शरीर विज्ञान और लोगों, सांस्कृतिक एवं पारिवारिक मूल्यों में समानताएँ रखते हैं। दोनों देश महान सभ्यताओं और विरासत स्थलों को साझा करते हैं तथा उनके बीच सदियों पुराने संपर्क रहे हैं।
  • भारत और मेक्सिको दोनों ही वर्ष 2021-2022 की अवधि के लिये सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्य हैं, जो वैश्विक शासन के मुद्दों पर अपने मतभेदों को दूर करने और पारस्परिक हित के क्षेत्रों पर बारीकी से काम करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

दालों की कीमतों में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये

नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया

मेन्स के लिये

भारत में दालों की बढ़ती कीमत 

चर्चा में क्यों?

दालों की कीमतों में हालिया वृद्धि को रोकने के लिये केंद्र सरकार ने अपने बफर स्टॉक से 40,000 टन तुअर दाल की छोटी-छोटी खेप को खुदरा बाज़ार में भेजने की योजना बनाई है।

प्रमुख बिंदु:

  • कीमतों में वृद्धि: 
    • उड़द और तुअर दाल के प्रमुख खपत केंद्रों (आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु) में पिछले दो हफ्तों में कीमतों में 20% की बढ़ोतरी हुई है।
      • इन राज्यों ने रियायती मूल्य पर दालों को बेचने के लिये केंद्रीय बफर स्टॉक (Central Buffer Stock) से MSP दरों पर एक लाख टन दाल खरीदने में रुचि व्यक्त की है। 
    • अखिल भारतीय स्तर पर उड़द की औसत खुदरा कीमतों में वर्ष 2019 की तुलना में लगभग 40% की वृद्धि हुई है, जबकि तुअर दाल की औसत खुदरा कीमतों में लगभग 24% की वृद्धि हुई है।
  • खुदरा हस्तक्षेप: 
    • उपभोक्ता मामलों के विभाग (Department of Consumer Affairs- DoCA) ने खुदरा हस्तक्षेप अर्थात् ‘नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India- NAFED) के बफर स्टॉक का उपयोग करने के लिये एक प्रणाली की शुरुआत की है।
      • NAFED राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दालों की आपूर्ति करने के लिये  किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की दर से मध्यम खुदरा कीमतों पर दालों की खरीद करता है।
      • राज्यों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) की राशन दुकानों के माध्यम से या सरकारी/सहकारी समितियों द्वारा संचालित दूध एवं सब्जी दुकानों के माध्यम से आपूर्ति के लिये थोक या खुदरा तरीके से दालों की आपूर्ति की जाती है।
  • ऐसे खुदरा हस्तक्षेप के लिये कीमतें MSP के आधार पर ही तय की जाती हैं।
  • भारत सरकार के इस निर्णय से NAFED के मौजूदा स्टॉक के वितरण में मदद मिलेगी ताकि इस सीजन में होने वाले फसल उत्पादन को खरीदने का मार्ग प्रशस्त हो सके।

ओपन मार्केट सेल (Open Market Sale) का उपयोग करना:

  • खुदरा हस्तक्षेप के अतिरिक्त DoCA ने ‘ओपन मार्केट सेल (OMS) स्कीम’ के तहत बफर स्टॉक से 40,000 मीट्रिक टन तुअर दाल को छोटी-छोटी खेप में भेजने का निर्णय लिया है, ताकि बढ़ती कीमतों को रोका जा सके।

पूर्व में किये गए उपाय:

  • केंद्र सरकार ने प्रत्येक राज्य में योजना शुरू होने की तारीख से अपनी मूल्य समर्थन योजना (Price Support Scheme- PSS) के लिये खरीद की अवधि 90 दिनों तक बढ़ा दी।
    • जब कीमतें MSP से नीचे हो जाती हैं, तो राज्य सरकारों के अनुरोध पर PSS का संचालन किया जाता है।
  • केंद्र सरकार ने COVID-19 राहत पैकेज (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना) के हिस्से के रूप में तीन महीने के लिये राशन कार्डधारक सभी परिवारों को प्रतिमाह एक किलो दाल प्रदान करने का वादा किया था।

आगे की राह: 

  • यदि किसी राष्ट्र के सभी नागरिकों के पास पर्याप्त पौष्टिक भोजन उपलब्ध है और उन सभी के पास स्वीकार्य गुणवत्ता का भोजन खरीदने की क्षमता है तथा भोजन तक पहुँच में कोई बाधा नहीं है तो उस राष्ट्र की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • पौष्टिक भोजन का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का एक सुस्थापित सिद्धांत है। यह खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में अपने नागरिकों के सम्मान, सुरक्षा एवं अधिकारों की पूर्ति के लिये राज्यों के दायित्व के रूप में विकसित हुआ है।

स्रोत-द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

एक-सींग वाले गैंडे में परजीवी संक्रमण

प्रिलिम्स के लिये

एक-सींग वाला गैंडा

मेन्स के लिये

एक-सींग वाले गैंडे में परजीवी संक्रमण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (World Wildlife Fund- WWF)  इंडिया ने असम और पश्चिम बंगाल के लिये ‘प्रीवलेंस ऑफ एंडोपैरासिटिक इन्फेक्शंस इन फ्री-रेंजिंग ग्रेटर वन होर्नेड राइनॉसॅरॅस’ (Prevalence of Endoparasitic Infections in Free-Ranging Greater One-Horned Rhinoceros) शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित की है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • गैंडों की मौत का मुख्य कारण उनका अवैध शिकार माना जाता है, हालाँकि उनकी मौत प्राकृतिक कारणों से भी होती है जिसका विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया है।
  • वर्ष 2017 के बाद असम और WWF INDIA की राइनो टास्क फोर्स ने असम, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में गैंडों के ताज़ा गोबर के नमूनों में पाए गए रोगजनकों का अध्ययन किया है।
  • भारत में इससे पहले गैडों की आबादी में रोग-परजीवी और इनके कारण होने वाली बीमारियों के प्रसार पर कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया गया था।
  • अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, गैंडों के निवास स्थान में गिरावट रोगजनकों की संख्या में वृद्धि का कारण बन सकती है।
  • संरक्षित क्षेत्रों पर पशुधन के बढ़ते दबाव के कारण घरेलू पशुओं से जंगली जानवरों में रोगजनकों के स्थानांतरित होने की आशंका है।
  • असम और पश्चिम बंगाल से प्राप्त नमूनों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भारत में गैंडों की कुल आबादी के अनुमानित 68% हिस्से में चार जेनेरा के परजीवी (Parasites from Four Genera) मौजूद थे।
  • गैंडों में एंडोपैरासाइट्स की समग्र व्यापकता असम में 58.57% और पश्चिम बंगाल में 88.46% थी, वहीं उत्तर प्रदेश से संबंधित परिणाम अभी लंबित हैं।

जो परजीवी अपने मेज़बान के ऊतकों और अंगों में रहते हैं, जैसे कि टैपवार्म, फ्लूक एवं कशेरुकीय प्राणियों से संबंधित परजीवी। एंडोपैरासाइट्स परजीवी होते हैं।

एक-सींग वाला गैंडा (भारतीय गैंडा)

The Great one-horned Rhinoceros (Indian Rhinoceros):

  • यह IUCN (International Union for Conservation of Nature) की रेड लिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) श्रेणी में शामिल है।
  • भारत में गैंडे मुख्य रूप से काजीरंगामानस राष्ट्रीय उद्यान, पबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में पाए जाते हैं। ये हिमालय की तलहटी में लंबी घास भूमियों वाले प्रदेशों में भी पाए जाते हैं।
  • गैंडे की सभी प्रजातियों में यह सबसे बड़ा होता है।
  • गैंडों की संख्या में वृद्धि के लिये ‘इंडियन राइनो विज़न’ 2020 ( Indian Rhino Vision 2020) कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
  • गैंडों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
  • राष्ट्रीय राइनो संरक्षण रणनीति: इसे वर्ष 2019 में एक-सींग वाले गैंडों के संरक्षण के लिये लॉन्च किया गया था।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


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