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कृषि

खरीफ विपणन सत्र पर ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ की रिपोर्ट

  • 06 Oct 2020
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि लागत और मूल्य आयोग,  ओपन मार्केट सेल स्कीम, न्यूनतम समर्थन मूल्य

मेन्स के लिये: 

कृषि आय पर सरकार की नीतियों का प्रभाव, कृषि विपणन में सुधार हेतु सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 के खरीफ विपणन सत्र के लिये एक रिपोर्ट जारी की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • CACP की रिपोर्ट के अनुसार, 2 अप्रैल, 2020 तक केंद्र सरकार के भंडारों में कुल 73.85 मिलियन टन अनाज भंडारित था।
  • इस रिपोर्ट में खाद्यान्न गोदामों में अनाज की अधिकता के कारण होने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया गया है।
  • इस रिपोर्ट में सरकार के पास भंडारित चावल के अधिशेष स्टॉक को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत अधिक आवंटन के माध्यम से खाली किये जाने का सुझाव दिया गया है। 

खाद्यान्न उपलब्धता से जुड़े आँकड़े: 

  • CACP की रिपोर्ट के अनुसार, कुल 73.85 मिलियन टन भंडारित अनाज में से 24.7 मिलियन टन गेहूँ और 49.15 मिलियन टन चावल है।
  • यह न केवल अब तक का उपलब्ध सबसे अधिक स्टॉक है बल्कि यह रणनीतिक और संचालन आरक्षित मानदंड (21.04 मिलियन टन) से भी 300% अधिक है।
  • इसी प्रकार केंद्रीय पूल में उपलब्ध गेहूँ का स्टॉक आवश्यक रणनीतिक बफर से तीन गुना और चावल का स्टॉक चार गुना अधिक है।
  • इसके साथ ही केंद्र सरकार के अनुसार, आगामी खरीफ की फसल में ऐतिहासिक वृद्धि के साथ 140.57 मिलियन टन अनाज उत्पादन का अनुमान है। 

कारण:

  • केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2019 में ‘खुला बाज़ार बिक्री योजना’ या ‘ओपन मार्केट सेल स्कीम’ (Open Market Sale Scheme- OMSS) नामक एक योजना के तहत गेहूँ और चावल के अतिरिक्त स्टॉक को ‘ई-नीलामी’ के माध्यम से खुले बाज़ार में बेचने का निर्णय लिया गया था।
  • केंद्र सरकार द्वारा OMSS योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 5 मिलियन टन अनाज खुले बाज़ार में बेचने का लक्ष्य रखा गया था, परंतु इसके तहत मात्र 10 लाख टन अनाज की बिक्री ही की जा सकी।
  • CACP की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा बिना किसी सीमा के अनाज की अत्यधिक खरीद के कारण स्टॉक की अधिकता से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

चुनौतियाँ:

  • भंडारण हेतु स्थान की कमी:  अधिक अनाज की खरीद के कारण भंडारण के लिये सुरक्षित स्थान की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जिससे अत्यधिक अनाज नष्ट हो जाता है।    
  • मूल्य में गिरावट: सरकारी भंडार में रखे अनाज को यदि एक साथ बाज़ार में बेचा जाता है तो इससे अनाज की कीमतों में भारी गिरावट आ सकती है और इसके कारण किसानों को अपनी उपज पर उचित मूल्य नहीं प्राप्त हो सकेगा।
  • हाल ही में संसद द्वारा पारित ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020’ के तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू आदि को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया गया है, ऐसे में आगामी सत्र में बाज़ार में इनकी अधिकता हो सकती है।
  • हाल ही में संसद द्वारा पारित किये गए कृषि संबंधी विधेयकों के कारण सरकार को देश के कई राज्यों में किसानों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है, ऐसे में सरकार के लिये किसानों से अनाज की अधिक खरीद करना एक बड़ी चुनौती होगी।

अन्य चुनौतियाँ:

  • असमानता: इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में पंजाब में 95% से अधिक और हरियाणा में 70% धान किसान सरकारी खरीद प्रणाली से लाभान्वित होते हैं जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अन्य प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में इसकी पहुँच क्रमशः मात्र 3.6% और 1.7% ही है।

कृषि संशोधन विधेयक का प्रभाव:  

  • केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में लागू किये गए कृषि सुधार से जुड़े तीन अध्यादेशों के बाद से पिछले तीन माह (जून-अगस्त) में नए खाद्य व्यवसायों के लिये मिलने वाले आवेदनों में 65% की वृद्धि (पिछले वर्ष की तुलना में) देखी गई है।
  • जून से अगस्त माह के बीच खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2007 के तहत लाइसेंस/पंजीकरण के लिये 6.86 लाख नए आवेदन प्राप्त हुए, जो यह दर्शाता है कि इन सुधारों के पश्चात कृषि व्यवसायों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी कंपनियों की रूचि बढ़ी है।
  • इस अध्यादेश के तहत मंडी परिसर के बाहर कृषि व्यापार पर शुल्क को हटा दिया गया है जिससे अधिकांश व्यापारी मंडियों के बाहर ही कृषि खरीद को प्राथमिकता देंगे।  

सुझाव:  

  • कृषि लागत और मूल्य आयोग ने सरकार को अधिशेष अनाज को शीघ्र ही खाली करने का सुझाव दिया है।
  • इसके साथ ही समिति ने पात्र लोगों को सरकारी योजनाओं के तहत तीन महीने तक खाद्यान्न वितरित करने का सुझाव दिया है। 
  • इस पहल से आगामी सत्र में अनाज की खरीद हेतु आवश्यक भंडारण स्थान की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी और भंडारण पर खर्च होने वाले धन की बचत हो सकेगी। 
  • इस रिपोर्ट में सरकार को अनाज के पुराने स्टॉक की खपत के लिये इसका प्रयोग एथनाॅल उत्पादन और पशु चारे के रूप में करने का सुझाव दिया गया है
  • आयोग ने ‘ओपन-एंडेड खरीद नीति’ के कारण आने वाली चुनौतियों को देखते हुए सरकार को इसकी समीक्षा करने का सुझाव दिया है। 
  • CACP के अनुसार, सरकार को पंजाब और हरियाणा तथा केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Price- MSP) के बाद भी अतिरिक्त लाभ या बोनस प्रदान करने वाले राज्यों  से अनाज की खरीद को सीमित करना चाहिये।
    • गौरतलब है कि हरित क्रांति के बाद पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ भू-जल स्तर में काफी गिरावट हुई है।
    • केरल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा सहित कई राज्यों द्वारा किसानों को फसल का बेहतर मूल्य दिलाने के लिये MSP से ऊपर बोनस प्रदान किया जाता है। 
  • CACP के अनुसार, ऐसे सभी राज्यों में जो कृषि विपणन पर उच्च शुल्क और आकस्मिक शुल्क लगाते हैं तथा बोनस का भुगतान करते हैं, वहाँ से चावल और गेहूं की खरीद प्रतिबंधित की जानी चाहिये।       

सरकार के प्रयास: 

  • हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 में बेची जाने वाली छह रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices-MSP) में बढ़ोतरी की घोषणा की गई है।  
  • केंद्र सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के साथ मिलकर मूल्य आसूचना प्रणाली में सुधार लाने के लिये कार्य किया जा रहा है, जिससे अधिसूचित मंडियों से बाहर भी कृषि उपज की कीमतों की निगरानी को आसान बनाया जा सके।  

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग

(Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP):

  • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है।
  • CACP की स्थापना जनवरी 1965 में की गई थी।
  • इस आयोग में  एक अध्यक्ष, सदस्य सचिव, एक सदस्य (सरकारी) और दो सदस्य (गैर-सरकारी) शामिल होते हैं।
    • गैर-सरकारी सदस्य कृषक समुदाय के प्रतिनिधि हैं और आमतौर पर कृषक समुदाय के साथ एक सक्रिय संबंध रखते हैं।
  • CACP प्रति वर्ष मूल्य नीति रिपोर्ट के रूप में सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करता है, इसके तहत CACP  द्वारा पांच समूहों (खरीफ की फसलें, रबी फसल, गन्ना, कच्चा जूट और कोपरा) के लिये अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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