डेली न्यूज़ (15 Jul, 2020)



भूकंप की भविष्यवाणी के लिये नया गणितीय मॉडल

प्रीलिम्स के लिये

भूकंप, भूकंपमापी उपकरण, भूकंपीय तरंगें, नवीन गणितीय मॉडल

मेन्स के लिये

प्राकृतिक आपदा के रूप में भूकंप 

चर्चा में क्यों?

हैरियट-वॉट यूनिवर्सिटी (Heriot-Watt University), स्कॉटलैंड के शोधकर्त्ताओं ने भूकंप की भविष्यवाणी की प्रक्रिया में सुधार करने के लिये एक नए गणितीय मॉडल का विकास किया है।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित किये गए इस नए गणितीय समीकरण ने भूकंप की भविष्यवाणी के मुद्दे को एक बार पुनः चर्चा में ला दिया है।
  • गौरतलब है कि भूकंप की भविष्यवाणी से संबंधित इस नए मॉडल में शोधकर्त्ताओं ने प्रयोगशालाओं में किये जाने वाले अध्ययन के स्थान पर गणितीय समीकरणों का प्रयोग किया है।

नया गणितीय मॉडल

  • शोधकर्त्ताओं ने अपनी खोज इस तथ्य के साथ शुरू की कि कुछ विशिष्ट प्रकार की चट्टाने भूकंप के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इन चट्टानों  को सामूहिक तौर पर फीलोसिलीकेटस (Phyllosilicates) कहा जाता है। चट्टानों के एक दूसरे से टकराने के पश्चात् भूकंप की उत्पत्ति होती है।
  • इस प्रकार चट्टानों के टकराने अथवा फिसलन में घर्षण शक्ति (Frictional Strength) एक महत्त्वपूर्ण कारक होती है।
    • घर्षण शक्ति (Frictional Strength) को एक प्लेट के विरुद्ध दूसरी प्लेट को धकेलने के लिये आवश्यक बल के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • गौरतलब है कि घर्षण शक्ति एक ऐसा कारक है जिसकी गणितीय माध्यम से गणना की जा सकती है।
  • इस अध्ययन के दौरान शोधकर्त्ताओं ने फीलोसिलीकेटस (Phyllosilicates) की घर्षण शक्ति (Frictional Strength) की भविष्यवाणी करने की कोशिश की।
  • इसके पश्चात् शोधकर्त्ताओं ने यह अनुमान लगाने के लिये गणितीय समीकरणों का एक समूह विकसित किया कि आर्द्रता और फाॅॅ‍ल्ट अथवा भ्रंश (Fault) की गति की दर जैसी स्थितियों में परिवर्तन का फीलोसिलीकेटस की घर्षण शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है।
  • इसके माध्यम से शोधकर्त्ताओं के लिये प्राकृतिक स्थितियों जैसे- भूकंप आदि में फाॅॅ‍ल्ट अथवा भ्रंश (Fault) की गति को समझना काफी आसान हो गया है।

शोध का महत्त्व

  • गौरतलब है कि बीते कई दशकों में भूकंप की भविष्यवाणी करने के लिये एक तरीका विकसित करने पर काफी अधिक समय और धन राशि खर्च की गई है, किंतु इस तरह के प्रयासों की सफलता दर काफी कम रही है।
  • भूकंप का अनुमान लगाना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल होता है, जिसके कारण आम लोगों की जान बचाना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • बीते 30 वर्षों में सबसे भयानक प्राकृतिक आपदाओं में दो भूकंप भी शामिल हैं, जिनके कारण लाखों लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी।
    • सर्वप्रथम वर्ष 2004 में आए भूकंप और सुनामी के कारण 220,000 लोगों की मृत्यु हुई थी और इसके पश्चात् वर्ष 2010 में आए भूकंप में 1, 59,000 लोगों की जान गई थी।
  • संयुक्त राज्य भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1990 और वर्ष 2019 के मध्य विश्व भर में भूकंप के कारण 923,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

भूकंप का अर्थ

  • साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी की कंपन से होता है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंग उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
  • भूपर्पटी (Earth's Crust) की शैलों (Rocks) में कुछ गहन दरारें होती हैं, जिन्हें भ्रंश (Fault) कहा जाता है, प्रायः ऊर्जा भ्रंश के किनारे ही निकलती है।
    • भ्रंश के दोनों ओर शैलें विपरीत दिशा में गति करती हैं।
  • जहाँ ऊपर के शैलखंड में दबाव डालते हैं, उनके आपस का घर्षण उन्हें बाँधे रखता है।
  • किंतु अलग होने की प्रवृत्ति के कारण एक समय पर घर्षण का प्रभाव कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैलखंड विकृत होकर अचानक एक दूसरे के विपरीत दिशा में सरक जाते हैं।
  • इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा निकलती है और ऊर्जा तरंगे सभी दिशाओं में गतिमान होती हैं।
  • भू-पर्पटी के नीचे वह स्थान, जहाँ कंपन आरंभ होता है, उद्गम केंद्र कहलाता है, जबकि उद्गम केंद्र (Focus) के भूसतह पर उसके निकटम स्थानों पर अधिकेंद्र (Epicenter) कहते हैं।

भूकंप का मापन 

  • भूकंप से निकलने वाली ऊर्जा तरंगों के माध्यम से पृथ्वी की सतह पर यात्रा करती हैं, जिन्हें भूकंपीय तरंगें (Seismic Waves) कहा जाता है।
  • वैज्ञानिक इन भूकंपीय तरंगों को भूकंपमापी (Seismometer) नामक उपकरण से मापते हैं।
  • वैज्ञानिक भूकंपमापी (Seismometer) उपकरण में दर्ज की गई जानकारी के आधार पर भूकंप के समय, स्थान और तीव्रता का निर्धारण कर सकते हैं।

स्रोत डाउन टू अर्थ


जनसंख्या वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत, लैंसेट रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु, माल्थस सिद्धांत, जनसंख्या वक्र, राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग और जनसंख्या नीति, 2000  

मेन्स के लिये: 

जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव एवं इसके नियंत्रण हेतु प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  लैंसेट द्वारा 195 देशों एवं क्षेत्रों के लिये वर्ष 2017 से वर्ष 2100 तक प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर और प्रवास एवं जनसंख्या परिदृश्य के संदर्भ में वैश्विक पूर्वानुमान विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इस विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2048 में भारत की जनसंख्या 1.6 बिलियन आबादी के साथ अपने शीर्ष स्तर पर होगी 

प्रमुख बिंदु:

  • लैंसेट अध्ययन के अनुसार,  वर्ष 2048 में भारत की जनसंख्या विश्व सर्वाधिक होने का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2017 की 1.38 बिलियन जनसंख्या से बढ़कर लगभग 1.6 बिलियन हो जाएगी।
  • वर्ष 2100 में भारत की जनसंख्या 1.09 बिलियन अनुमानित की गई है।
  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2100 में भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होगा। 
  • अध्ययन के अनुसार, भारत में 20-64 वर्ष की आयु के कामकाजी वयस्कों की संख्या में गिरावट का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2100 में वर्ष 2017 के लगभग 762 मिलियन से घटकर 578 मिलियन संभावित है। 
    • हालांकि, भारत में वर्ष 2100 तक  विश्व की सर्वाधिक कामकाजी उम्र की जनसंख्या अनुमानित की गई है।
  • चीन में कार्यबल/कामकाजी जनसंख्या वर्ष 2100 में वर्ष 2017 के 950 मिलियन से घटकर 357 मिलियन के स्तर पर पहुँच सकती है।
  • अध्ययन के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) वर्ष 2019 में घटकर 2.1 से नीचे आ गई जो वर्ष 2100 में 1.29 के स्तर पर होगी।
    • कुल प्रजनन दर बच्चों की वह संख्या है जो औसतन किसी स्त्री के संपूर्ण प्रजनन काल  (सामान्यत 15 से 49 वर्ष के बीच) में पैदा होते हैं। अर्थात यह प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्मे बच्चों की संख्या है।
    • अध्ययन में वर्ष 2040 तक  भारत की कुल प्रजनन दर गिरावट के साथ स्थिर होने का अनुमान है।

वैश्विक संदर्भ:

Population-Millions

  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की जनसंख्या वर्ष 2064 में लगभग 9.7 बिलियन होने का अनुमान लगाया गया है।
  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2100 में कुल 195 देशों में से 183 देशों में प्रति महिला कुल प्रजनन दर  2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे जाने का अनुमान है।
  • विश्व स्तर पर कुल प्रजनन दर वर्ष 2100 में 1.66 होने का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2017 में 2.37 थी। 
    •  वर्ष 2100 में कुल प्रजनन दर वर्ष 2017 की तुलना में  - 2.1 की न्यूनतम दर से कम होगी।
  • लैंसेट अध्ययन के अनुसार, वैश्विक आयु संरचना में भारी बदलाव का अनुमान लगाया गया है। 
    • 65 वर्ष से अधिक आयु वालों की संख्या वर्ष 2000 की तुलना में वर्ष 2100 में 1.7 अरब से बढ़कर 2.37 बिलियन के स्तर पर पहुँचने का अनुमान है ।
  • रिपोर्ट में भारत एवं चीन जैसे देशों में कामकाजी उम्र की आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट होना का भी पूर्वानुमान प्रस्तुत किया गया है जिसके चलते आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होगी जो वैश्विक शक्तियों में बदलाव को इंगित करेगा।

वृद्धि के प्रमुख कारण: 

  • चिकित्सा सेवाओं में वृद्धि, कम आयु में विवाह, निम्न साक्षरता, परिवार नियोजन के प्रति विमुखता, गरीबी और जनसंख्या विरोधाभास आदि ने जनसंख्या बढ़ाने में योगदान किया है।

जनसंख्या के संदर्भ में वृद्धि वक्र:

  • वृद्धि वक्र के माध्यम से एक निश्चित समय एवं संख्या में जनसंख्या के बढ़ने की दर को अभिव्यक्त किया जाता है।
  •  समय के साथ किसी देश की बढ़ती आबादी को वृद्धि वक्र के द्वारा दर्शाया जाता है।
  • वृद्धि वक्र का उपयोग जनसंख्या जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी से लेकर वित्त और अर्थशास्त्र तक के विभिन्न अनुप्रयोगों में आसानी से किया जाता है।

elapsed-time-in-years

जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न चरण:

  • जनसंख्या किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या है, जबकि जनसांख्यिकीय रूपांतरण का आशय उच्च प्रजनकता और मृत्यु दर की स्थिति से जनसंख्या की नई स्थिर स्थिति की ओर रूपांतर से है जिसमें प्रजनकता और मृत्यु दर निम्न रहे।
  • जनसांख्यिकीय रूपांतर चार चरणों में संपन्न होता है जिसमें से पहले तीन चरण जनसंख्या वृद्धि वाले होते हैं। मृत्यु दर और दीर्घायु सुधार में कमी पहला चरण होता है। दूसरे चरण में, जन्म दर कम हो जाती है लेकिन जन्म दर में गिरावट मृत्यु दर की गिरावट से कम तीव्र होती है।
  • प्रजनकता का प्रतिस्थापन स्तर तीसरे चरण में प्राप्त किया जाता है, लेकिन  जनसंख्या बढ़ती रहती है क्योंकि बहुत बड़ी जनसंख्या प्रजननशील आयु वर्ग में होती है। चौथे चरण में जन्म दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे आ जाती है और प्रजननशील आयु वर्ग में उपस्थित जनसंख्या भी कम हो जाती है; परिणामस्वरूप जनसंख्या वृद्धि रुक जाती है और जनसंख्या स्थिर हो जाती है।

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत:

  • इस सिद्धांत का प्रतिपादन ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस द्वारा अपने लेख ‘प्रिंसपल ऑफ पॉपुलेशन’ में किया गया इसमें जनसंख्या वृद्धि तथा इसके प्रभावों की व्याख्या की गई है।
  • माल्थन का सिद्धांत जनसंख्या में वृद्धि तथा खाद्यान आपूर्ति में वृद्धि के मध्य संबधों की व्याख्या करता है।
  •  माल्थस के अनुसार, किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी अर्थात दोगुनी गति (1, 2, 4, 8, 16, 32) से बढ़ती है, जबकि संसाधनों यह वृद्धि समानान्तर श्रेणी अर्थात सामान्य गति (1, 2, 3, 4, 5) से ही होती है।
  •  इस सिद्धांत के अनुसार यदि जीवन निर्वहन के संसाधनों में अवरोध न हो तो प्रत्येक 25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है। 

जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ:

  • पर्यावरण पर प्रभाव 
    • तेजी से जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न होता है। 
    • जनसंख्या वृद्धि से बेरोज़गार पुरुषों  एवं महिलाओं की संख्या में तीव्र वृद्धि होती है। जिसके चलते पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे पहाड़ी क्षेत्रों उष्णकटिबंधीय जंगलों इत्यादि को कृषि  कार्यों के लिये काटा जाता है।
    • बढ़ती जनसंख्या वृद्धि से औद्योगीकरण के साथ बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्रों का प्रवास/विकास होता है जिससे बड़े शहरों एवं कस्बों में प्रदूषित हवा, पानी, शोर इत्यादि में वृद्धि होती है।
  •  खद्दानों पर प्रभाव:
    • तेज़ी से बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण भोजन एवं खाद्यानों के उपलब्ध स्टॉक पर दबाव बनाता है।
    • तेज़ी  से बढ़ती जनसंख्या वाले अल्प विकसित देशों को आम तौर पर भोजन की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • सामाजिक प्रभाव:
    • तीव्र जनसंख्या वृद्धि का मतलब श्रम बाजार में आने वाले व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या से है।
    • ऐसी स्थिति में बेरोज़गारी की समस्या और अधिक उत्पन्न हो सकती है।
    • बेरोज़गारी के चलते व्यक्तियों के जीवन स्तर में गिरावट आएगी।
    • जनसंख्या वृद्धि के कारण शिक्षा, आवास और चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाओं पर और अधिक बोझ उत्पन्न होगा। 

जनसंख्या वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याओं को रोकने हेतु प्रयास:

  • सभी के लिये खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु कृषि को लाभकारी बनाया जाए एवं  खाद्यान्नों की कीमतों में बहुत अधिक परिवर्तन न किया जाए 
  • वन और जल संसाधनों का उचित प्रबंधन कर सतत विकास पर बल दिया जाए तथा सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) की प्राप्ति किसी भी नीति निर्माण का केंद्र बिंदु हो।
  • जनसंख्या में कमी, अधिकतम समानता, बेहतर पोषण, सार्वभौमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सरकारों और मज़बूत नागरिक सामाजिक संस्थाओं के बीच बेहतर सामंजस्य की आवश्यकता है।
  • महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार तथा उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना।
  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना तथा अधिक बच्चों के जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित करना। इत्यादि कुछ ऐसे उपाय है जिनके माध्यम से जनसंख्या वृद्धि की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। 

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000:

  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा गर्भ-निरोध, स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत ढाँचा, स्वास्थ्य कर्मचारियों और एकीकृत सेवा डिलीवरी की अतृप्त मांगों को पूरा करने के अविलम्ब लक्ष्य को हासिल करने के लिये की गई थी।
  • इस नीति का उद्देश्य कुल प्रजनकता को प्रतिस्थापन स्तर यानी 2 बच्चे प्रति जोड़ा तक लाना है जो इसका मध्य-सत्रीय लक्ष्य है। वर्ष 2045 तक जनसंख्या को स्थिर करना इसका दूरवर्ती लक्ष्य था।
  • नीति में प्रेरणा और प्रोत्साहन संबंधी 16 युक्तियाँ भी बताई गई हैं, जिनमें पंचायतों और ज़िला परिषदों को छोटे परिवारों को प्रोत्साहित करने पर पारितोषिक देना, बाल विवाह विरोधी कानून और प्रसव-पूर्व गर्भ जाँच तकनीक कानून का कड़ाई से पालन, दो बच्चों के प्रतिमान को प्रोत्साहन और नसबंदी की सुविधा को पारितोषिक और प्रोत्साहनों के जरिये मज़बूती प्रदान करना है।

राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग

  • मई, 2000 में गठित राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
  • आयोग को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन से संबंधित समीक्षा करने, निगरानी करने और निर्देश देने, स्वास्थ्य संबंधी, शैक्षणिक, पर्यावरणीय और विकास कार्यक्रमों में सहक्रिया को बढ़ावा देने और कार्यक्रमों की योजना बनाने व क्रियान्वयन करने में अंतर क्षेत्रीय तालमेल को बढ़ावा देने का शासनादेश प्राप्त है।
  • इस आयोग के अंतर्गत, द नेशनल पॉपुलेशन स्टेबलाइज़ेशन फंड (राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरता कोष) की स्थापना की गई, लेकिन बाद में इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को स्थानांतरित कर दिया गया।

निष्कर्ष: 

लैंसेट अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि महिलाओं के शैक्षिक स्तर में  सुधार एवं गर्भनिरोधक कार्यक्रमों तक महिलाओं की पहुँच के चलते प्रजनन क्षमता एवं जनसंख्या वृद्धि में गिरावट आएगी। चीन और भारत जैसे कई देशों में प्रतिस्थापन स्तर से कम TFR के आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक परिणाम देखने को मिलेंगे । महिला प्रजनन स्वास्थ्य को बनाए रखने में आने वाले वर्ष जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में महत्वपूर्ण साबित होंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


COVID-19 महामारी के बाद की चिकित्सा जटिलताएँ

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, थ्रोंबोसिस, पल्मोनरी एम्बोलिज़्म

मेन्स के लिये: 

चिकित्सा जटिलताओं से संबंधित एकत्र डेटा का महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (Directorate General of Health Services - DGHS) द्वारा सफदरजंग अस्पताल (Safdarjung Hospital), राम मनोहर लोहिया अस्पताल  (Ram Manohar Lohia Hospital) तथा ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ (All India Institute Of Medical Sciences-AIIMS) के साथ-साथ भारत के प्रमुख केंद्रीय सरकारी अस्पतालों से COVID-19 के बाद की चिकित्सा जटिलताओं (Medical Complications) से संबंधित डेटा एकत्र करने का कार्य शुरू किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 महामारी से ठीक हुए उन मरीज़ों का डेटा देश भर से एकत्र किया जा रहा है जो COVID-19 महामारी के साथ-साथ मधुमेह, फेफड़े, हृदय, यकृत एवं मस्तिष्क संबंधी अन्य चिकित्सा जटिलतााओं से भी पीड़ित थे।
  • इस डेटा को एकत्र करने का उद्देश्य आगे की देखभाल और उपचार के लिये दिशा-निर्देश जारी करना है क्योंकि महामारी का प्रभाव लोगों पर देखा जा रहा है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में COVID-19 के  86% मामले देश के 10 राज्यों में देखे गए हैं। 
  • जिसमें  50% मामले महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हैं।  
  • वर्तमान में (31 मई तक) कुल रिकवरी रेट (Recovery Rate) 47.6%  से बढ़कर 63.02% हो गया है।

सही होने की स्थिति

  • COVID-19 के साथ-साथ अन्य चिकित्सा जटिलता से पीड़ित व्यक्तियों को सुस्ती की शिकायत, मानसिक रूप से ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता तथा उदासी की स्थिति से पूरी तरह से ठीक होने में लंबा समय लगा है।
  • जिन लोगों में निमोनिया के लक्षण विद्यमान थे उनके  फेफड़े की कार्य क्षमता में कुछ महीनों के भीतर ही सुधार देखा गया है लेकिन कुछ लोगों में फाइब्रोसिस के कारण ऐसे नहीं हो पाया।
    • फाइब्रोसिस एक रेशेदार संयोजी ऊतक है जो शरीर के किसी हिस्से में चोट या क्षति के दौरान  विकसित होता है।
    • यह शरीर के किसी अंग में चोट लगने या कट जाने पर रक्त का थक्का जमाने में सहायक होता है।
  • चिकित्सा जटिलतााओं से पीड़ित व्यक्तियों में लंबे समय तक फेफड़ों के संक्रमित होने के कारण संवहनी रोगों (Vascular Diseases) के होने का खतरा बना रहता है।
    • संवहनी रोगों को ‘पेरिफेरल आर्टरी ऑक्ल्यूसिव डिज़ीज़’ भी कहा जाता है।  
    • इसमें हाथ एवं पैरों में बड़ी धमनियों के संकरा होने के कारण रक्त के प्रवाह में रुकावट हो जाती है। 
  • COVID-19 के रोगियों में मधुमेह से पीड़ित चिकित्सा जटिलताा वाले लोग भी शामिल थे।

COVID-19 के बाद के प्रभाव:

  • महामारी के बाद के प्रभाव जो मनुष्यों को प्रभावित कर सकते हैं उसके बारे में अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा गया है फिर भी चिकित्सा समुदाय के अनुसार इस महामारी में फेफड़े प्रभावित होते हैं।
  • फेफड़ों के प्रभावित होने पर  थ्रोंबोसिस (Thrombosis) के कारण शरीर की भीतरी धमनियों में रक्त थक्के के रूप में जम जाता है ये थक्के फेफड़ों में पहुँचकर रक्त प्रवाह को अवरूद्ध कर सकते हैं। जिसे पल्मोनरी एम्बोलिज़्म (Pulmonary Embolism) कहा जाता है।पल्मोनरी एंबोलिज़्म (Pulmonary Embolism) एक ऐसी स्थिति है जिसमें फेफड़ों में एक या एक से अधिक धमनियाँ रक्त के थक्के द्वारा अवरुद्ध हो जाती हैं।

स्रोत: द हिंदू


कुइझोउ-11

प्रीलिम्स के लिये:

कुइझोउ-11, तियानवेन-1, लॉन्ग मार्च 5 रॉकेट, तियांगोंग, स्पेसएक्स (SpaceX), भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन एवं प्राधिकरण केंद्र

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण एवं भारत के लिये एक अवसर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कुइझोउ-11 (Kuaizhou-11) नाम का चीनी रॉकेट उड़ान के दौरान आई खराबी के कारण विफल हो गया जिसके कारण अंतरिक्ष में ले जाए जा रहे दो उपग्रह भी नष्ट हो गए।

प्रमुख बिंदु:

  • चीनी भाषा में कुइझोउ (Kuaizhou) का अर्थ ‘तेज़ जहाज़’ (Fast Ship) होता है। यह एक कम लागत वाला ठोस ईंधन वाहक रॉकेट है।
  • इस चीनी रॉकेट का वाणिज्यिक लॉन्च ‘फर्म एक्सपेस’ (Firm Expace) द्वारा संचालित किया गया था। गौरतलब है कि इसे वर्ष 2018 में लॉन्च करने की योजना बनाई गई थी।
  • इसे KZ-11 के रूप में भी जाना जाता है। इसमें 70.8 टन की वहनीय भार क्षमता थी और इसे पृथ्वी की निचली एवं सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा के उपग्रहों को लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया था।

चीन के अन्य महत्त्वपूर्ण मिशन:

  • तियानवेन-1 (Tianwen-1): चीन का यह मंगल मिशन जुलाई, 2020 तक शुरू किया जाएगा। चीन का पिछला यिंगहुओ-1 (Yinghuo-1) मंगल मिशन जिसे रूस द्वारा समर्थन दिया गया था, वर्ष 2012 में विफल हो गया था। तियानवेन-1 में लॉन्ग मार्च 5 रॉकेट (Long March 5 Rocket) का प्रयोग किया जाएगा।
  • लॉन्ग मार्च 5 रॉकेट (Long March 5 Rocket): इसे एक स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन का संचालन करने तथा चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के लिये चीन के सफल कदम के रूप में माना जाता है।
  • तियांगोंग (Tiangong): वर्ष 2022 तक चीन अपना स्पेस स्टेशन (तियांगोंग) बनाने का कार्य पूरा कर लेगा। चीनी भाषा में तियांगोंग (Tiangong) का अर्थ 'हैवेनली पैलेस' (Heavenly Palace) है।

महत्त्व:

  • यद्यपि यह प्रक्षेपण विफल रहा किंतु यह चीन में तेज़ी से बढ़ते वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग (Commercial Space Industry) को दर्शाता है।
  • विश्लेषक बताते है कि वाणिज्यिक प्रक्षेपण चीन में एक उभरता हुआ उद्योग है। चीनी सरकार द्वारा वर्ष 2014 में अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी निवेश के लिये आसान बनाये गए नियमों के बाद अस्तित्त्व में आई एक्सपेस (Expace), आईस्पेस (iSpace) और लैंडस्पेस (Landspace) जैसी कंपनियाँ अपने पारंपरिक लॉन्च ऑपरेशन के लिये प्रक्रिया क्षमताओं का तीव्र विकास करने पर ज़ोर दे रही हैं।
    • इसने चीनी सरकार एवं वाणिज्यिक ग्राहकों दोनों के लिये अधिक लाभ प्रदान किया है।

अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण एवं भविष्य में भारत और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा की संभावना:

  • कम लागत वाले वाहक रॉकेटों के विकास को इस पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिये कि चीन ‘वैश्विक अंतरिक्ष प्रक्षेपण बाज़ार’ को आकर्षित करने हेतु भारत के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये तैयार है।
  • वर्ष 2017 में चीनी मुख्य पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, चीन का वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग भारत से पीछे है।
  • गौरतलब है कि भविष्य में चीनी रॉकेटों को उपग्रह बाज़ार में अपने लिये एक जगह बनानी होगी जहाँ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) पहले ही एक मुकाम हासिल कर चुका है।
    • इसरो के प्रयासों एवं विश्वसनीय ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) से अब तक 297 विदेशी उपग्रहों को लॉन्च किया गया है और इसके विभिन्न संस्करण हैं जो विभिन्न आकार के पेलोड और भिन्न-भिन्न कक्षाओं में उपग्रहों को ले जाने की क्षमता रखते हैं।
  • लघु उपग्रह क्रांति (Small Satellite Revolution):

    • गौरतलब है कि इस समय वैश्विक स्तर पर ‘लघु उपग्रह क्रांति’ (Small Satellite Revolution) चल रही है जिसके तहत वर्ष 2020 और वर्ष 2030 के बीच 17000 छोटे उपग्रहों को लॉन्च किये जाने की उम्मीद है।

अंतरिक्ष पर्यटन एवं भारत:

  • अंतरिक्ष पर्यटन क्या है?

    • अंतरिक्ष पर्यटन मनोरंजक उद्देश्यों के लिये मानव की अंतरिक्ष यात्रा से संबंधित है। अंतरिक्ष पर्यटन के कई अलग-अलग प्रकार हैं जिसमें कक्षीय (Orbital), उप-कक्षीय (Suborbital) और चंद्र अंतरिक्ष पर्यटन (Lunar Space Tourism) शामिल हैं।
      • वर्तमान में कक्षीय (Orbital) अंतरिक्ष पर्यटन के लिये केवल रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ही कार्य कर रही है।
  • भारत के लिये अवसर:

    • आर्थिक तौर पर कुशल लॉन्च वाहनों के अलावा भारत को निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में भी संभावनाओं की तलाश करनी चाहिये।
    • इस क्षेत्र में निजी भागीदारी को आकर्षित करने के लिये एक नीतिगत ढाँचा भारत सरकार द्वारा तैयार किया जाना चाहिये।
    • अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में भारत यदि नीतिगत दृष्टिकोण से आगे बढ़ता है तो यह क्षेत्र आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक अहम क्षेत्र साबित होने के साथ-साथ भारत को ‘वैश्विक/क्षेत्रीय सामरिक भागीदारी’ में बढ़त दिला सकता है।

अंतरिक्ष क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: हाल ही में स्पेसएक्स (SpaceX) ‘मानव स्पेसफ्लाइट’ को अंतरिक्ष में लॉन्च करने वाली पहली निजी कंपनी बन गई। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में नासा के अंतरिक्ष यात्रियों को सफलतापूर्वक ले जाने के लिये अंतरिक्ष यान क्रू ड्रैगन (Crew Dragon) का उपयोग किया गया।
  • सिंगापुर: यह पूर्वी एशियाई देश अपने वैध वातावरणीय क्षेत्र, कुशल जनशक्ति की उपलब्धता एवं भूमध्यरेखीय स्थान की अनुकूलता के आधार पर अंतरिक्ष उद्यमिता के एक केंद्र के रूप में खुद को पेश कर रहा है।
  • न्यूज़ीलैंड: यह प्रशांत महासागरीय देश निजी रॉकेट लॉन्च के लिये सटीक अवस्थिति होने के कारण स्वयं को वैश्विक स्तर पर आगे कर रहा है।

भारत द्वारा अंतरिक्ष उद्यमिता के लिये उठाए गए कदम:

  • भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorization Centre- IN-SPACe) द्वारा निजी कंपनियों को अवसर प्रदान करने के लिये स्वीकृति देना।
  • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड’ (New Space India Limited- NSIL), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) की नव निर्मित दूसरी वाणिज्यिक शाखा है।
    • यह ‘एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन’ के बाद इसरो की दूसरी व्यावसायिक शाखा है। एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन को मुख्य रूप से वर्ष 1992 में इसरो के विदेशी उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण की सुविधा हेतु स्थापित किया गया था।
  • इसरो वैश्विक स्तर पर कई मोर्चों में अंतरिक्ष मिशनों के लिये कम लागत में मिशन पूरा करने वाला अग्रणी संस्थान है। लागत-प्रभावशीलता ने इसे उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं के वाणिज्यिक क्षेत्र में एक अलग बढ़त दी है।
  • देश के भीतर विशेषज्ञता के ऐसे मूल्यवान आधार के साथ एक निजी अंतरिक्ष उद्योग के उद्भव की उम्मीद करना स्वाभाविक है जो वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी साबित हो सकता है।

आगे की राह:

  • अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा, जटिलता एवं मांग के साथ यह आवश्यक है कि अंतरिक्ष क्षेत्र के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रीय कानून होना चाहिये।
  • भारत के लिये एक नया राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून आने वाले दशक में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से पूरा किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ज़ीरो हंगर’ प्राप्त करने की चुनौती और कुपोषण की समस्या

प्रीलिम्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य, ज़ीरो हंगर, कुपोषण, भुखमरी

मेन्स के लिये:

रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु, खाद्य सुरक्षा पर COVID-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी वार्षिक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर बीते पाँच वर्षों में 10 लाख से अधिक लोग कुपोषितों की श्रेणी में शामिल हुए हैं, और विश्व भर के लगभग सभी देश कुपोषण के कई विभिन्न रूपों से जूझ रहे हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति के संबंध में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में तकरीबन 690 मिलियन लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ा, गौरतलब है कि यह संख्या वर्ष 2018 से 10 मिलियन अधिक है।
  • वर्ष 2019 में लगभग 750 मिलियन लोग खाद्य असुरक्षा की गंभीर स्थिति का सामने कर रहे थे।
  • मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा से प्रभावित लोगों की स्थिति पर गौर करें तो विश्व में अनुमानित 2 बिलियन लोगों तक वर्ष 2019 में सुरक्षित, पौष्टिक और पर्याप्त भोजन की नियमित पहुँच नहीं थी।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर अपने सभी रूपों में कुपोषण का बोझ विश्व के सभी देशों के लिये एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
  • अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 में 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 21.3 प्रतिशत (144.0 मिलियन) बच्चे स्टंंटिंग (Stunting) से, 6.9 प्रतिशत (47.0 मिलियन) बच्चे वेस्टिंग और 5.6 प्रतिशत (38.3 मिलियन) बच्चे अत्यधिक वजन की समस्या का सामना कर रहे थे।
  • आँकड़ों के अनुसार, एशिया में कुपोषित लोगों की संख्या सबसे अधिक तकरीबन 381 मिलियन है, जबकि दूसरे स्थान पर अफ्रीका है जहाँ कुपोषितों की कुल संख्या 250 मिलियन है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर लगातार भुखमरी और कुपोषण की समस्या के कारण ‘ज़ीरो हंगर’ (Zero Hunger) के सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है।

खाद्य सुरक्षा COVID-19 का प्रभाव :

  • रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि COVID-19 महामारी का वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर काफी अधिक प्रभाव पड़ा है और इसके कारण वैश्विक खाद्य प्रणाली काफी कमज़ोर हो गई है।
  • प्रारंभिक आकलन से ज्ञात होता है कि COVID-19 महामारी के पश्चात् आर्थिक विकास परिदृश्य के आधार पर वर्ष 2020 में विश्व में कुल कुपोषित लोगों की संख्या में 83 मिलियन से 132 मिलियन की वृद्धि हो सकती है।
  • COVID-19 के स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण सबसे कमज़ोर आबादी समूहों की पोषण स्थिति और अधिक खराब होने की संभावना है।

भारत के संबंध में रिपोर्ट:

  • भारत में कुल जनसंख्या में अल्पपोषण की व्यापकता वर्ष 2004-06 के 21.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2017-19 में 14 प्रतिशत हो गई है, गौरतलब है कि यह भारतीय नीति निर्माताओं के लिये काफी अच्छी खबर है, हालाँकि COVID-19 ने भारत के समक्ष भी खाद्य सुरक्षा को लेकर एक बड़ी चुनौती उत्पन्न की है।
    • रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अल्पपोषित लोगों की संख्या वर्ष 2004-09 के 249.4 मिलियन से घटकर 2017-19 में 189.2 मिलियन हो गई है।

भुखमरी- एक गंभीर समस्या के रूप में:

  • भुखमरी से हमारा आशय भोजन की अनुपलब्धता से होता है, किंतु खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ऐसे लोगों को भुखमरी का शिकार मानता है, जो प्रतिदिन 1800 किलो से कम कैलोरी ऊर्जा ग्रहण करते हैं।
  • गोदामों और शीत-गृहों (Cold Storage) की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण भारत में कुल वार्षिक खाद्य उत्पादन का लगभग 7 प्रतिशत तथा फल एवं सब्ज़ियों का लगभग 30 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है।
  • हालाँकि अन्य देशों में भी समान स्थिति है और अफ्रीका में तो अनुमानतः इतना खाद्यान्न बर्बाद होता है कि उससे लगभग 40 मिलियन लोगों को खाना खिलाया जा सकता है।

रिपोर्ट में प्रस्तुत सुझाव:

  • संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में दुनिया भर की सरकारों से देश के सभी स्थानीय लघु-स्तरीय उत्पादकों का समर्थन करने का आग्रह किया है, ताकि वे अधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर सकें और देश में खाद्य सुरक्षा की चुनौती को संबोधित किया जा सके।
    • इसके अलावा रिपोर्ट में सरकार से खाद्य पदार्थों की बाज़ारों में आसान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये भी कहा गया है।
  • रिपोर्ट के अंतर्गत देश में बच्चों की पोषण स्थिति को प्राथमिकता देने और शिक्षा तथा संचार के माध्यम से व्यवहार में बदलाव लाने की बात कही गई है।
  • दुनिया भर में लगभग तीन बिलियन लोग स्वस्थ आहार नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं, ऐसे में आवश्यक है कि COVID-19 महामारी को मद्देनज़र रखते हुए सरकार द्वारा किये जा रहे हस्तक्षेपों को मज़बूत करने के प्रयास किये जाएँ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत में गरीबी की स्थिति दर्शाती VNR रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

VNR रिपोर्ट, SDG लक्ष्य, बहुआयामी गरीबी सूचकांक, अत्यधिक गरीबी, भारत का सामाजिक सेवाओं पर व्यय 

मेन्स के लिये:

भारत में गरीबी उन्मूलन के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नीति आयोग’ ने सतत् विकास, 2020 को लेकर डिजिटल माध्यम से आयोजित संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (United Nations High-level Political Forum-HLPF) पर दूसरी ‘स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा’ (Voluntary National Review-VNR) जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

  • VNR समीक्षा रिपोर्ट स्वैच्छिक रूप से देशों द्वारा स्वयं तैयार की जाती है, जिसका उद्देश्य ‘सतत विकास एजेंडा’ को लागू करने में मिली सफलताओं और चुनौतियों समेत इस संबंध में प्राप्त सभी अनुभवों को साझा करने की सुविधा प्रदान करना है।
  • सतत् विकास लक्ष्य’- 1 अर्थात गरीबी की समाप्ति (NO POVERTY) है, जिसका लक्ष्य गरीबी को इसके सभी रूपों में हर जगह से समाप्त करना है। 
  • VNR रिपोर्ट में प्रस्तुत अनुमान, जुलाई 2019 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक' (Multidimensional Poverty Index- MPI) के आधार पर तैयार किये गए थे।

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VNR रिपोर्ट और 'बहुआयामी गरीबी':

  • भारत द्वारा प्रस्तुत VNR रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2005-06 से वर्ष 2016-17 के बीच की अवधि में कम-से-कम 271 मिलियन लोगों को 'बहुआयामी गरीबी' (Multi-dimensional Poverty) से बाहर निकाला गया है।
  • वैश्विक MPI के अनुसार, वर्ष 2005-2006 में पूरे भारत में 640 मिलियन से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी में थे। वर्ष 2016-2017 तक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या घटकर 369.55 मिलियन हो गई।
  • अनुमान के मुताबिक वर्ष 2016-17 में भारत की 27.9 फीसदी आबादी गरीब थी। 
  • शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से गरीबी में कमी आई है।

विश्व बैंक के अनुमान

  • विश्व बैंक की अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा जो; 'अत्यधिक गरीबी' (Extreme Poverty) का आकलन करती है, के अनुसार यह भारत में वर्ष 2011 के 21.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2015 में 13.4 प्रतिशत हो गई। 
  • विश्व बैंक गरीबी को निरपेक्ष रूप से परिभाषित करता है। विश्व बैंक के अनुसार, प्रति दिन 1.90 अमेरिकी डॉलर से कम पर आय स्तर पर जीवन को अत्यधिक गरीबी के रूप में परिभाषित किया गया है।

'बहुआयामी गरीबी सूचकांक' (MPI):

  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक में ‘गैर-आय आधारित आयामों’ (Non-income Based Dimensions) के आधार पर गरीबी का मापन किया जाता है, ताकि गरीबी और अभाव की स्थिति का अधिक व्यापक मूल्यांकन किया जा सके।
  • इस सूचकांक को ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (United Nations Development Programme- UNDP) और ‘ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल’ (Oxford Poverty and Human Development Initiative- OPHI) द्वारा विकसित किया गया है। 
  • इसे UNDP के 'मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय' द्वारा प्रकाशित किया जाता है, जो तीन आयामों और 10 संकेतकों की वंचनाओं पर आधारित  है;

आयाम

संकेतक

स्वास्थ्य 

बाल मृत्यु दर

पोषण

शिक्षा 

स्कूली शिक्षा  

नामांकन

जीवन स्तर 

जल

स्वच्छता

बिजली

खाना पकाने का ईंधन

फर्श

संपत्ति।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • भारत त्वरित आर्थिक विकास और व्यापक सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से अपने सभी रूपों में गरीबी को समाप्त करने के लिये एक व्यापक विकास रणनीति लागू कर रहा है।

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम:

  • भारत में सामाजिक सुरक्षा की दिशा में 'राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम' के तहत कई लक्षित पेंशन योजनाओं के माध्यम से बुजुर्गों सहित विकलांग वर्गों, बच्चों, महिलाओं और विधवाओं को कवर किया जा रहा है।

रोज़गार सुरक्षा:

आधारभूत सेवाओं तक पहुँच:

आजीविका और कौशल संबंधी कार्यक्रम:

भारत सरकार सामाजिक सेवाओं पर व्यय:

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गरीबी समाप्ति के समक्ष चुनौतियाँ:

क्षेत्रीय भिन्नता: 

  • भारत की अधिकांश गरीब जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों और कम आय वाले राज्यों में निवास करती है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के अनुपात के मामले में राज्यों के बीच अंतर है। छत्तीसगढ़ में 39.9 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, जबकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में यह मात्र 1 प्रतिशत है।

गरीबी का महिलाकरण (Feminisation of Poverty): 

  • गरीबी का महिलाकरण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र की एक और चुनौती है। गरीबी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है क्योंकि महिलाओं के पास संसाधनों तक सीमित पहुँच होती है, चाहे वह खाद्य और पोषण संबंधी सुरक्षा हो, या स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच या संपत्ति में स्वामित्त्व हो।

तीव्र शहरीकरण: 

  • तीव्र नगरीकरण अपने साथ अनेक आर्थिक संभावाओं के साथ अनेक चुनौतियाँ लेकर आया है। आवास, बुनियादी ढाँचे, रोज़गार और अन्य आर्थिक अवसरों तथा सेवाओं में मांग-आपूर्ति अंतराल लगातार बढ़ रहा है।

मानव संसाधन विकास:

  • नवीन ज्ञान और प्रौद्योगिकी कौशल, कार्य और रोज़गार की पारंपरिक संरचनाओं को बहुत तेज़ी से बदल रही हैं, अत: शिक्षा और कौशल विकास को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष:

  • भारत को SDG लक्ष्य-1 की प्राप्ति की दिशा में अपने प्रयासों को अधिक तेज़ी से चलाने की आवश्यकता है। SDG लक्ष्य- 1 के तहत लक्ष्यों की प्राप्ति में तेज़ी लाने में निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और ‘सहकारी संघवाद’ प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 जुलाई, 2020

‘शुद्ध’ UV सैनिटाइज़र

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के शोधकर्त्ताओं ने कमरे को कीटाणुरहित करने के लिये ‘शुद्ध’ (SHUDH) अल्ट्रा वायलेट (UV) सैनिटाइज़िंग उपकरण विकसित किया है। इसका पूर्ण नाम ‘स्मार्टफोन ऑपरेटेड हैंडी अल्ट्रा वायलेट डिसइंफेक्शन हेल्पर’ (Smartphone operated Handy Ultraviolet Disinfection Helper-SHUDH) है। IIT-कानपुर के शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित यह डिवाइस मात्र 15 मिनट में 10×10 वर्ग फुट के कमरे को कीटाणुरहित करने में सक्षम है। एक एंड्रॉइड एप के माध्यम से अपने स्मार्टफोन के ज़रिये इस उपकरण को चालू अथवा बंद किया जा सकता है और इसकी गति और स्थान को दूर से ही नियंत्रित किया जा सकता है। शुद्ध में 15 वाट की छह UV लाइट्स लगी हुई हैं, जिन्हें व्यक्तिगत रूप से दूर से ही नियंत्रित किया जा सकता है। गौरतलब है कि इससे पूर्व रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने अधिक संक्रमण वाले क्षेत्रों के त्वरित एवं रसायन मुक्त कीटाणुशोधन (Disinfection) के लिये एक अल्ट्रा वॉयलेट डिसइंफेक्सन टॉवर (Ultra Violet Disinfection Tower) विकसित किया था। ‘यूवी ब्लास्टर’ (UV blaster) नाम का यह उपकरण एक अल्ट्रा वॉयलेट (UV) आधारित क्षेत्र सैनिटाइज़र (Sanitizer) है, इस उपकरण के माध्यम से 12x12 फुट आकार के एक कमरे को लगभग 10 मिनट और 400 वर्ग फुट के कमरे को 30 मिनट में कीटाणुमुक्त किया जा सकता है।

विश्व युवा कौशल दिवस

विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस (World Youth Skills Day) मनाया जाता है। इस दिवस का आयोजन मुख्यतः युवाओं को रोज़गार तथा उद्यमिता के कौशल से युक्त करने के रणनीतिक महत्त्व को पहचानने के उद्देश्य से किया जाता है। यह दिवस वर्तमान और भविष्य की वैश्विक चुनौतियों के समाधान में कुशल युवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को भी उजागर करता है। यूनेस्को (UNESCO) के अनुमान के अनुसार, विश्व के लगभग 70 प्रतिशत शिक्षार्थी शिक्षा के स्तर पर COVID-19 के कारण विद्यालय बंद होने से काफी अधिक प्रभावित हुए हैं। विश्व युवा कौशल दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 11 नवंबर, 2014 को की गई थी। महासभा ने 15 जुलाई को विश्व युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। इस दिवस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा सभी देशों से आग्रह किया गया कि वे अपने देश में युवाओं को कौशल विकास में सहायता प्रदान करें ताकि ये युवा आगे चलकर बेहतर राष्ट्र के निर्माण में योगदान दे सकें। इस दिवस के अवसर पर सभी देशों में कौशल तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिये कई तरह की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं, ताकि वे अपनी क्षमताओं और कौशल का विकास कर सकें और उससे रोज़गार के अलावा स्वरोज़गार के अवसर उत्पन्न कर सकें।

एशिया कप टूर्नामेंट का स्थगन

एशिया में COVID-19 के बढ़ते मामलों को मद्देनज़र रखते हुए एशियाई क्रिकेट परिषद (Asian Cricket Council-ACC) ने इसी वर्ष सितंबर माह में आयोजित होने वाले एशिया कप टूर्नामेंट (Asia Cup Tournament) को जून 2021 तक स्थगित कर दिया है। एशिया कप टूर्नामेंट के स्थगित होने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (International Cricket Council-ICC) भी इसी वर्ष अक्तूबर-नवंबर माह में आयोजित होने वाले T20 विश्व कप को स्थगित करने की घोषणा पर विचार कर रहा है। गौरतलब है कि एशिया कप टूर्नामेंट 2020 के आयोजक पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (Pakistan Cricket Board-PCB) ने सुरक्षा कारणों से श्रीलंका के क्रिकेट प्रशासनिक निकाय श्रीलंका क्रिकेट (Sri Lanka Cricket-SLC) के साथ टूर्नामेंट के लिये मेजबानी के अधिकारों का आदान-प्रदान किया है। इस व्यवस्था के माध्यम से श्रीलंका क्रिकेट (SLC) अब जून 2021 में आयोजित होने वाले एशिया कप टूर्नामेंट की मेज़बानी करेगा, जबकि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) वर्ष 2022 संस्करण की मेज़बानी करेगा। एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) का गठन 19 सितंबर, 1983 को हुआ था और उस समय इसे एशियाई क्रिकेट सम्मेलन के नाम से जाना जाता था। इस परिषद का उद्देश्य एशियाई क्षेत्र में क्रिकेट के खेल को संगठित करना, उसे बढ़ावा देना और इसके विकास की दिशा में कार्य करना है।

हरियाणा में राजमार्ग परियोजनाओं का उद्घाटन 

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हरियाणा में नए आर्थिक गलियारे (Economic Corridor) के तहत लगभग 20 हजार करोड़ रुपए की लागत की विभिन्न राजमार्ग परियोजनाओं का वर्चुअल समारोह के माध्यम से शुभारंभ किया। इन राजमार्ग परियोजनाओं में 1183 करोड़ रुपए की लागत से NH 334B के रोहना/हसनगढ़ से झज्जर खंड तक 35.45 किलोमीटर लंबे 4 लेन मार्ग का निर्माण, 857 करोड़ रुपए की लागत से NH 71 के पंजाब-हरियाणा सीमा से जींद खंड तक 70 किलोमीटर लंबे मार्ग को 4 लेन में परिवर्तन और 200 करोड़ रुपए की लागत से NH 709 पर 85.36 किलोमीटर के 2 लेन का निर्माण करना आदि शामिल है। इन महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं से बड़े शहरों में भीड़-भाड़ कम होगी और यात्रा में लगने वाले समय में भी कमी आएगी। इससे चंडीगढ़ से दिल्ली हवाई अड्डे तक पहुँचने में लगभग 2 घंटे लगेंगे, जबकि वर्तमान में 4 घंटे लगते हैं। परियोजनाओं से समय, ईंधन और लागत की बचत होगी, साथ ही राज्य के पिछड़े इलाकों में विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।