शासन व्यवस्था
‘मेरा राशन मोबाइल’ एप्लीकेशन
चर्चा में क्यों?
देश में 'वन नेशन वन राशन कार्ड' (One Nation One Ration Card) प्रणाली को सुविधाजनक बनाने हेतु उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution) द्वारा 'मेरा राशन' (Mera Ration) नामक मोबाइल एप लॉन्च किया गया है यह लाभार्थी को किसी भी उचित मूल्य की दुकान (Fair Price Shop- FPS) तक आसान पहुंँच प्रदान करेगा।
- इस एप का लाभ विशेष रूप से उन राशन कार्ड धारकों को मिलेगा जिन्हें आजीविका हेतु अन्य स्थानों पर जाना पड़ता है।
प्रमख बिंदु:
- एप के बारे में: इस एप्लीकेशन को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Center-NIC) द्वारा विकसित किया गया है।
- भाषा: फिलहाल इस एप में अंग्रेज़ी एवं हिंदी भाषा का विकल्प उपलब्ध है।
- यद्यपि इसे 14 भाषाओं में प्रस्तुत किये जाने की योजना है, जिन्हें उन स्थानों के आधार पर पहचाना जाएगा जहांँ से अधिकांश प्रवासी लोग आते हैं।
- लाभार्थियों को सुविधाएंँ:
- इसके द्वारा लाभार्थी आसानी से निकटतम उचित मूल्य की दुकान तक पहुँच सकते हैं।
- इस एप के माध्यम से लाभार्थी इस बात का पता लगा सकते हैं कि पूर्व में खाद्यान्न का कुल कितना हस्तांतरण किया गया है तथा कितना खाद्यान्न उसके द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा उसके आधार सीडिंग (Aadhaar Seeding) की स्थति (आधार कार्ड को बैंक खाता से जोड़ना) के बारे में जाना जा सकता है।
- इसकी सहायता से लाभार्थी के प्रवास का विवरण दर्ज किया जा सकता है।
- यह सुझाव/प्रतिक्रिया दर्ज करने का विकल्प प्रस्तुत करता है।
- भाषा: फिलहाल इस एप में अंग्रेज़ी एवं हिंदी भाषा का विकल्प उपलब्ध है।
वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC)
- कार्यान्वयन:
- ONORC योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA), 2013 के तहत राशन कार्डों की देशव्यापी पोर्टेबिलिटी प्रदान करने के उद्देश्य से खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- यह अधिनियम लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System) के तहत कानूनी तौर पर 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को सब्सिडी युक्त अनाज प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
- ONORC योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA), 2013 के तहत राशन कार्डों की देशव्यापी पोर्टेबिलिटी प्रदान करने के उद्देश्य से खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- महत्त्व:
- यह प्रणाली सभी NFSA लाभार्थियों, विशेष रूप से प्रवासी लाभार्थियों को देश में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (FPS) से बायोमेट्रिक/आधार प्रमाणीकरण के माध्यम से सरल तरीके से मौजूदा राशन कार्ड द्वारा पूर्ण या आंशिक खाद्यान्न प्राप्त करने हेतु अनुमति देती है।
- किसी भी उचित मूल्य की दुकान को चुनने की स्वतंत्रता पहले उपलब्ध नहीं थी।
- ऐसे राज्य जो वन नेशन वन राशन कार्ड प्रणाली में सुधार करने में सक्षम रहे हैं वे सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product- GSDP) का 0.25% अतिरिक्त उधार लेने के पात्र थे।
- उत्तराखंड सहित सत्रह राज्यों में 'वन नेशन वन राशन कार्ड' प्रणाली संचालित है।
- यह प्रणाली सभी NFSA लाभार्थियों, विशेष रूप से प्रवासी लाभार्थियों को देश में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (FPS) से बायोमेट्रिक/आधार प्रमाणीकरण के माध्यम से सरल तरीके से मौजूदा राशन कार्ड द्वारा पूर्ण या आंशिक खाद्यान्न प्राप्त करने हेतु अनुमति देती है।
- कवरेज:
- वर्ष 2019 में ONORC को 4 राज्यों में शुरू किया गया था तथा वर्ष 2020 तक यह 32 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है।
- शेष 4 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल) में इस योजना के आने वाले कुछ महीनों में समन्वित होने की उम्मीद है।
- यह देश में लगभग 69 करोड़ NFSA लाभार्थियों (लगभग 86% NFSA जनसंख्या) को कवर करता है। ONORC के तहत लगभग 1.5 ~ 1.6 करोड़ पोर्टेबिलिटी लेन-देन का मासिक औसत दर्ज किया जा रहा है।
- वर्ष 2019 में ONORC को 4 राज्यों में शुरू किया गया था तथा वर्ष 2020 तक यह 32 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है।
- सभी के लिये ONORC की उपलब्धता:
- सरकार द्वारा 5.4 लाख राशन की दुकानों के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को प्रति माह 5 किलो सब्सिडी युक्त खाद्यान्न की आपूर्ति की जा रही है।
- ONROC प्रणाली के साथ प्रवासी पोर्टल (Migrants’ Portal) का एकीकरण श्रम और रोज़गार मंत्रालय के सहयोग से किया जाता है।
- ONORC शहरी विकास मंत्रालय (Ministry of Housing & Urban Affairs) द्वारा संचालित प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना (PM SANNidhi Program) का हिस्सा है।
- लोगों तक ONORC के बारे में जानकारियों का प्रचार, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, प्रेस सूचना ब्यूरो, MyGov, आउटरीच और संचार ब्यूरो की मदद से किया गया है।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
भारत में अनुचित अभियोजन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में अनुचित अभियोजन (Wrongful Prosecution) के मामलों के संदर्भ में एक याचिका दायर की गई है, इस याचिका में पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारियों के अनुचित अभियोजन के कारण प्रभावित हुए पीड़ितों को मुआवज़ा देने हेतु सरकार द्वारा दिशा-निर्देश लागू करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
- इस याचिका में कहा गया कि सरकार द्वारा वर्ष 2018 में 'न्याय की हत्या'/घोर अन्याय (Miscarriage of Justice) पर भारतीय विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
अनुचित अभियोजन (Wrongful Prosecution):
- यह उन मामलों को संदर्भित करता है जहाँ अभियुक्त अपराध का दोषी न हो, परंतु पुलिस और/या अभियोजन उस व्यक्ति की जाँच और/या उस पर मुकदमा चलाने के दौरान कदाचार में सम्मिलित हो।
- गौरतलब है कि भारत द्वारा 'नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम' (ICCPR) के अनुमोदन/मंज़ूरी प्रदान की गई है। ICCPR सदस्य देशों के लिये यह दायित्व निर्धारित करता है कि वे इस प्रकार के घोर अन्याय के मामलों में पीड़ितों को क्षतिपूर्ति प्रदान करने हेतु कानून बनाएँ।
प्रमुख बिंदु:
भारत में अनुचितअभियोजन:
- पुलिस और अभियोजन के कदाचार के कारण दर्ज गलत मुकदमों के लिये भारत में कोई प्रभावी वैधानिक/कानूनी तंत्र नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप देश में झूठे मामलों की संख्या बहुत बढ़ गई है।
- अधिकारियों को अदालतों द्वारा मुकदमा चलाए जाने का कोई भय न होने और परोक्ष उद्देश्यों के लिये निर्दोष लोगों पर अभियोजन चलाने की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण झूठे मामलों को दायर करने में अभूतपूर्व उछाल आया है।
- याचिका में कहा गया है कि निर्दोष लोग उन अधिकारियों के द्वेष के शिकार हुए जिन्होंने अपने हितों को पूरा करने के लिये आपराधिक न्याय प्रणाली का दुरुपयोग किया है।
- इसने न केवल देश के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर दिया है बल्कि 40 मिलियन से अधिक मामलों के भारी दबाव से जूझ रही न्यायपालिका को भी प्रभावित किया है।
अनुचित अभियोजन से जुड़े न्यायिक फैसले:
- इससे पहले मई 2017 में 'बबलू चौहान बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य सरकार' मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्दोष व्यक्तियों पर अनुचित अभियोजन चलाए जाने के मामलों के संदर्भ में चिंता व्यक्त की थी।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने विधि आयोग से इस मुद्दे की व्यापक जाँच करने और इस संदर्भ में सरकार से सिफारिश करने को कहा था।
भारतीय विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट में शामिल सिफारिशें:
- विधि आयोग द्वारा न्याय की हत्या (जिसके कारण लोगों पर अनुचित अभियोजन शुरु किया गया) के मामलों में पीड़ितों को मुआवज़ा दिलाने के लिये ‘दंड प्रक्रिया संहिता, 1973’ (CrPC) में संशोधन की सिफारिश की गई।
- न्याय की हत्या से आशय अनुचित या दुर्भावनापूर्ण अभियोजन से है, जिसमें ऐसे अभियोजन के परिणामस्वरूप आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराया गया हो या उसे कारावास का दंड दिया गया हो।
- अनुचित अभियोजन के मामलों में मुआवज़े के दावों की सुनवाई के लिये प्रत्येक ज़िले में विशेष अदालतों की स्थापना की जानी चाहिये।
- मुआवज़े का दावा आरोपी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जो इस प्रकार के अभियोजन से प्रभावित हुआ हो; या उक्त आरोपी व्यक्ति द्वारा अधिकृत किसी भी एजेंट द्वारा; या ऐसे मामलों में जहाँ अनुचित अभियोजन की समाप्ति के बाद अभियुक्त की मृत्यु हो गई है, मृतक के सभी या कोई वारिस या कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा।
- ऐसे मामलों में मुआवज़े की राशि निर्धारित करते समय न्यायालय द्वारा कुछ निर्देशक सिद्धांतों का अनुसरण किया जाना चाहिये। इनमें अपराध की गंभीरता, दंड की गंभीरता, हिरासत की अवधि, स्वास्थ्य को नुकसान, प्रतिष्ठा को नुकसान और अवसरों की हानि शामिल है।
- इस फ्रेमवर्क के तहत मुआवज़े में आर्थिक (मौद्रिक) और गैर-आर्थिक सहायता (परामर्श, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, व्यावसायिक/रोज़गार संबंधी कौशल विकास और इसी तरह की अन्य समान सेवाएँ शामिल होंगी।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
क्षुद्रग्रह 2001 FO32
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) ने भविष्यवाणी की है कि क्षुद्रग्रह 2001 FO32 वर्ष 2021 में पृथ्वी के पास से गुजरने वाला सबसे बड़ा क्षुद्रग्रह है। यह 21 मार्च को पृथ्वी के सबसे करीब होगा।
प्रमुख बिंदु:
2001 FO32 क्षुद्रग्रह:
- खोज: इसकी खोज 20 वर्ष पहले की गई थी और तब से वैज्ञानिक सूर्य के चारों ओर इसके परिक्रमा पथ पर बहुत ही सटीक तरीके से इसका अध्ययन कर रहे हैं।
- इसकी खोज मार्च 2001 में सोकोरो, न्यू मैक्सिको में स्थित ‘लिंकन नियर-अर्थ एस्टेरॉयड रिसर्च (LINEAR) प्रोग्राम’ द्वारा की गई थी।
- 1998 OR2 अंतिम बार देखा गया विशेष रूप से बड़ा क्षुद्रग्रह था, जो 29 अप्रैल, 2020 को पृथ्वी के करीब से गुज़रा था, जबकि 2001 FO32, 1998 OR2 से कुछ छोटा है।
- कक्षा: यह सूर्य के चारों ओर अत्यधिक विलक्षण कक्षा में स्थित है और 810 दिनों (लगभग 2 वर्ष) में एक परिक्रमा पूरी करता है। इसकी कक्षा पृथ्वी के कक्षीय तल से 39° झुकी हुई है।
- यह कक्षा इस क्षुद्रग्रह को बुध की तुलना में सूर्य के करीब ले जाती है और यह मंगल की तुलना में सूर्य से दोगुनी दूरी पर स्थित है।
- गति: यह क्षुद्रग्रह लगभग 1,24,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गुज़़रेगा जो कि तुलनात्मक रूप से उन अधिकांश क्षुद्रग्रहों की गति से तेज़ है, जो पृथ्वी के सामने से गुज़रते हैं।
- पृथ्वी से टकराने का कोई खतरा नहीं:
- यह क्षुद्रग्रह 'नियर अर्थ ऑब्जेक्ट' के रूप में वर्णित है। यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी से लगभग 2 मिलियन किलोमीटर (पृथ्वी से चंद्रमा की कुल दूरी के 51/4 गुना) की दूरी पर होगा।
- खगोलीय दृष्टिकोण से यह दूरी इतनी है कि इसे ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- आने वाली सदियों में पृथ्वी को टकराव संबंधी कोई खतरा नहीं है।
- यह क्षुद्रग्रह 'नियर अर्थ ऑब्जेक्ट' के रूप में वर्णित है। यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी से लगभग 2 मिलियन किलोमीटर (पृथ्वी से चंद्रमा की कुल दूरी के 51/4 गुना) की दूरी पर होगा।
- अगली संभावित घटना: क्षुद्रग्रह वर्ष 2052 तक पृथ्वी के करीब नहीं आएगा, उस समय यह लगभग 2.8 मिलियन किमी. पास से गुज़रेगा।
महत्त्व:
- यह खगोलविदों को क्षुद्रग्रह के आकार और अल्बेडो (Albedo) के बारे में अधिक सटीक जानकारी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगा (अर्थात् यह कितना चमकीला या परावर्तक सतह वाला है) तथा इसके संघटन, आकार की बेहतर समझ और इसकी संरचना के बारे में जानकारी जुटाई जा सकेगी।
- जब सूरज की रोशनी किसी क्षुद्रग्रह की सतह से टकराती है, तो इसमें उपस्थित खनिज प्रतिबिंबित होते हुए कुछ तरंगदैर्ध्य को अवशोषित करते हैं। सतह से परावर्तित प्रकाश के स्पेक्ट्रम का अध्ययन करके खगोलविद् क्षुद्रग्रह की सतह पर खनिजों के रासायनिक "फिंगरप्रिंट" को माप सकते हैं।
चर्चा में रहने वाले अन्य क्षुद्रग्रह:
क्षुद्रग्रह:
- क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और सौरमंडल में स्थित छोटे पिंड हैं।
- ये धातुओं और चट्टानों से निर्मित होते हैं।
- इनकी छोटी और अंडाकार कक्षाएँ होती हैं।
- क्षुद्रग्रह बेल्ट सौरमंडल में एक टोरस के आकार का क्षेत्र है, जो लगभग बृहस्पति और मंगल ग्रहों की कक्षाओं के बीच स्थित है।
क्षुद्रग्रहों का वर्गीकरण:
- मुख्य क्षुद्रग्रह पेटी: अधिकांश क्षुद्रग्रह मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित क्षुद्रग्रह पेटी में पाए जाते हैं।
- ट्रोजंस (Trojans): ये क्षुद्रग्रह एक बड़े ग्रह के साथ कक्षा साझा करते हैं, लेकिन इसके साथ टकराते नहीं हैं क्योंकि वे कक्षा में लगभग दो विशेष स्थानों (L4 और L5 लैग्रैन्जियन पॉइंट्स) के आस-पास एकत्रित होते हैं, जहाँ सूर्य और ग्रहों के बीच संतुलित गुरुत्वाकर्षण खिंचाव होता है।
- लैग्रैन्जियन पॉइंट्स अंतरिक्ष में स्थित ऐसे बिंदु हैं, जहाँ सूर्य और पृथ्वी जैसे दो निकायों का गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के क्षेत्रों का निर्माण करता है। इनका उपयोग अंतरिक्षयान द्वारा समान स्थिति में बने रहने के लिये आवश्यक ईंधन की खपत को कम करने हेतु किया जा सकता है।
- नियर अर्थ ऑब्जेक्ट: इन ऑब्जेक्ट्स की कक्षाएँ पृथ्वी के करीब होती हैं। क्षुद्रग्रह जो वास्तव में पृथ्वी के कक्षीय पथ को पार करते हैं, उन्हें ‘अर्थ-क्रॉसर्स’ (Earth-crossers) के रूप में जाना जाता है।
संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह:
- इसका मतलब है कि एक क्षुद्रग्रह के पृथ्वी के करीब आने की कितनी संभावना है।
- विशेष रूप से ऐसे सभी क्षुद्रग्रह जिनकी ‘मिनिमम ऑर्बिट इंटेरसेक्शन डिस्टेंस’ (MOID) 0.05 खगोलीय इकाई (लगभग 7,480,000 Km) या इससे कम तथा निरपेक्ष परिमाण (H) 22.0 (लगभग 150 MT व्यास) हो, उन्हें संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह माना जाता है।
- ‘मिनिमम ऑर्बिट इंटेरसेक्शन डिस्टेंस’ दो लगभग अतिच्छादित अंडाकार कक्षाओं के बीच न्यूनतम दूरी की गणना करने के लिये एक विधि है।
- खगोलीय इकाई (AU) पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी होती है और यह लगभग 150 मिलियन किमी. है।
- निरपेक्ष परिमाण किसी भी तारे की चमक का एक मापक है, अर्थात् प्रत्येक समय तारे द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा की कुल मात्रा।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
हिंद महासागर में जीनोम मैपिंग
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography- NIO) ने हिंद महासागर (Indian Ocean) में अपनी तरह की पहली जीनोम मैपिंग (Genome Mapping) परियोजना शुरू करने की योजना बनाई है।
- हिंद महासागर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जल निकाय है और पृथ्वी की सतह पर उपस्थित जल का लगभग 20% भाग इसमें समाहित है।
प्रमुख बिंदु
उद्देश्य:
- हिंद महासागर में सूक्ष्मजीवों के जीनोम मानचित्रण के लिये नमूने एकत्र करना।
- जलवायु परिवर्तन, पोषक तत्त्वों में कमी और बढ़ते प्रदूषण के लिये जैव रसायन तथा महासागर की प्रतिक्रिया को समझना।
परियोजना की लागत और अवधि:
- इस परियोजना की कुल लागत 25 करोड़ रुपए है और इसे पूरा होने में तीन साल लगेंगे।
परियोजना के विषय में:
- NIO के वैज्ञानिकों और शोधकर्त्ताओं का एक दल सिंधु साधना (Sindhu Sadhana) नामक पोत के माध्यम से इस अनुसंधान परियोजना पर हिंद महासागर में 10,000 समुद्री मील से अधिक की दूरी तय करके 90 दिन बिताएगा ताकि समुद्र के आंतरिक भाग की कार्यपद्धति को जाना जा सके।
- वे हिंद महासागर का भ्रमण भारत के पूर्वी तट से शुरू करके ऑस्ट्रेलिया, पोर्ट लुइस (मॉरीशस) और भारत के पश्चिमी तट से दूर पाकिस्तान की सीमा तक करेंगे।
जीनोम संग्रह:
- शोधकर्त्ता समुद्र के विभिन्न हिस्सों से लगभग 5 किमी. की औसत गहराई पर नमूने एकत्र करेंगे।
- जीन मैपिंग जैसे इंसानों से एकत्र किये गए रक्त के नमूनों पर की जाती है, वैसे ही वैज्ञानिक समुद्र में पाए जाने वाले बैक्टीरिया, रोगाणुओं का मानचित्रण करेंगे।
- उनमें मौजूद पोषक तत्त्वों और समुद्र के विभिन्न हिस्सों में उनकी कमी का पता डीऑक्सीराइबोस न्यूक्लिक एसिड (DNA) और राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) की मैपिंग से चलेगा।
ट्रेस धातुओं का अध्ययन:
- महासागरों को कैडमियम या तांबे जैसी ट्रेस धातुओं (Trace Metal) की आपूर्ति कॉन्टिनेंटल रन-ऑफ, वायुमंडलीय निक्षेप, हाइड्रोथर्मल गतिविधियों आदि के माध्यम से होती है।
- ये धातु महासागरीय उत्पादकता के लिये आवश्यक हैं।
- समुद्री बायोटा (Marine Biota) के साथ-साथ ट्रेस धातुओं की अंतःक्रियाओं को "पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण और महासागरों की उत्पादकता के विषय में समग्र समझ हेतु" जानना महत्त्वपूर्ण है।
- समुद्री जीवन पर उनकी प्रतिक्रियाओं के अलावा ट्रेस धातुओं के समस्थानिक रूपों का उपयोग समुद्री संचलन के लिये ज़िम्मेदार जल द्रव्यमान की गति का पता लगाने और जैविक, भू-रासायनिक, पारिस्थितिक तंत्र की प्रक्रियाओं तथा खाद्य जाल का विश्लेषण करने के लिये एक उपकरण के रूप में किया जाता है।
- NIO की इस परियोजना से ट्रेस धातुओं के विषय में हिंद महासागर के गैर-अनुमानित क्षेत्रों से नई जानकारी मिल सकती है।
लाभ:
- पारिस्थितिकी तंत्र को समझने में:
- यह परियोजना वैज्ञानिकों को हिंद महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र के आंतरिक क्रियाकलाप को समझने में मदद करेगी।
- परिवर्तन के कारकों को समझने में:
- इस शोध से वैज्ञानिकों को महासागरों में RNA और DNA में परिवर्तन को नियंत्रित तथा उन्हें प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
- खनिज संकेंद्रण की पहचान करने में:
- महासागर में नाइट्रेट्स, सल्फेट्स, सिलिकेट्स जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्व और लौह अयस्क, जस्ता जैसी धातुओं तथा कैडमियम या तांबे जैसी ट्रेस धातुओं की उपस्थिति का जाँच करना।
- जीनोम मैपिंग वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के साथ सूक्ष्म जीवों की प्रतिक्रिया के अलावा उस उपस्थिति को दर्शाएगा जिसके चलते इनका रूपांतरण हुआ है।
- इससे यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि समुद्र के किस हिस्से में किस खनिज या तत्त्व की अधिक सांद्रता है।
- वैज्ञानिक इसके बाद एक निश्चित खनिज या तत्त्व की अधिकता या कमी के लिये प्रेरक कारकों से निपटने और उनके शमन हेतु संभावित समाधान सुझाएंगे।
- मानव लाभ:
- भविष्य में हिंद महासागर का उपयोग मानव लाभ के लिये करने हेतु DNA और RNA पूल का इस्तेमाल किया जाएगा।
- जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग में वृद्धि:
- जीनोम मैपिंग से एंटी कैंसर उपचार, सौंदर्य प्रसाधन आदि वाणिज्यिक जैव प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग में वृद्धि हो सकती है।
- संरक्षण प्रयासों का अनुकूलन:
- इस महासागर की आनुवांशिक स्तर पर अन्वेषण करने से वर्गिकी/वर्गीकरण विज्ञान (Taxonomy) और अनुकूलन क्षमता में नई अंतर्दृष्टि पैदा होगी, जो इसके संरक्षण प्रयासों में मदद कर सकती है।
जीनोम
- किसी भी जीव के डीएनए (या RNA वायरस में RNA) में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम जीनोम (Genome) कहलाता है।
- प्रत्येक जीनोम में संबंधित जीव को बनाने और बनाए रखने के लिये आवश्यक सभी जानकारी होती है।
- मनुष्य के पूरे जीनोम की एक प्रति में 3 बिलियन से अधिक DNA बेस जुड़े होते हैं।
जीनोम मैपिंग
- एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार की तकनीकों को जीनोम मैपिंग (Genome Mapping) कहा जाता है।
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने जनवरी 2020 में मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project) से प्रेरणा लेते हुए महत्त्वाकांक्षी "जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट" (Genome India Project) की शुरुआत की। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य पूरे भारत से 10,000 नागरिकों के आनुवंशिक नमूने एकत्र करना है, ताकि एक संदर्भ जीनोम का निर्माण किया जा सके।
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान
- राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के विषय में:
- यह एक बहु-अनुशासनात्मक महासागरीय अनुसंधान संस्थान है और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), नई दिल्ली के घटक प्रयोगशालाओं में से एक है।
- मुख्यालय और अन्य केंद्र:
- इस केंद्र का मुख्यालय ‘डोना पाउला’ (गोवा) में स्थित है और तीन क्षेत्रीय कार्यालय कोच्चि (केरल), मुंबई (महाराष्ट्र) और विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) में स्थित हैं।
- स्थापना:
- इसकी स्थापना वर्ष 1960 के अंतर्राष्ट्रीय हिंद महासागर अभियान (International Indian Ocean Expedition) के अंतर्गत 1 जनवरी, 1966 को हुई थी।
- अनुसंधान क्षेत्र:
- इस संस्थान का मुख्य कार्य हिंद महासागर की महासागरीय विशेषताओं का परीक्षण करना तथा उन्हें समझना है।
- इस संस्थान द्वारा समुद्र विज्ञान की जैविक, रासायनिक, भू-गर्भीय और भौतिक विशेषताओं से संबंधित शाखाओं में शोध किया जाता है, साथ ही समुद्र इंजीनियरिंग, समुद्री उपकरण तथा समुद्री पुरातत्त्व विषयों में भी शोध किया जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
‘LGBTIQ फ्रीडम ज़ोन’
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय संघ के कुछ देशों विशेष रूप से पोलैंड और हंगरी में LGBTIQ समुदाय से संबद्ध लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करने हेतु यूरोपीय संसद द्वारा यूरोपीय संघ क्षेत्र को ‘LGBTIQ फ्रीडम ज़ोन’ (LGBTIQ Freedom Zone) घोषित किया गया है।
- यूरोपीय संघ के अधिकांश देशों (27 से 23) में समलैंगिक विवाह को मान्यता प्राप्त है, जबकि इनमें से 16 देशों ने इस संबंध में कानून भी बनाया है।
- LGBTIQ में लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स तथा क्यूर समुदाय शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- पोलैंड में समलैंगिक संबंधों को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है तथा देश में समलैंगिक जोड़ों द्वारा बच्चे गोद लेना प्रतिबंधित है। हालाँकि एकल लोगों को बच्चे गोद लेने की अनुमति है, जबकि कुछ एकल समलैंगिक लोग प्रतिबंध के बावजूद बच्चा गोद लेने के लिये आवेदन करने में कामयाब भी रहे हैं।
- अब पोलैंड में एक ऐसा प्रस्ताव लाया गया है जिसमें कोई व्यक्ति यदि एकल समलैंगिक माता या पिता के रूप में बच्चे को गोद लेने हेतु आवेदन करता है तो यह आपराधिक कृत्य माना जाएगा।
- पोलैंड में सार्वजनिक एवं निर्वाचित अधिकारियों द्वारा LGBTIQ समुदाय को निशाना बनाकर दिये जाने वाले घृणित भाषणों के कारण इस समुदाय के खिलाफ भेदभाव और हिंसक हमलों में वृद्धि हुई है।
- मार्च 2019 के बाद से 100 से अधिक पोलिश क्षेत्रों (Polish Regions), काउंटीज़ (Counties) और नगर पालिकाओं (Municipalities) द्वारा स्वयं को LGBTIQ "विचारधारा" ( Ideology) से मुक्त घोषित करने वाले प्रस्तावों को अपनाया गया है।
- हाल ही में हंगरी की संसद ने भी संवैधानिक संशोधनों को अपनाया जो LGBTIQ लोगों के अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं।
- हंगरी और पोलैंड तथा यूरोपीय आयोग (यूरोपीय संघ के कार्यकारी निकाय) के मध्य कई मुद्दों पर तनाव है, जिनमें से अधिकांश कानून के शासन के दुरुपयोग, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों आदि पर केंद्रित हैं।
- हंगरी और पोलैंड के प्राधिकारी वर्ग द्वारा LGBTIQ सिद्धांतों को "विदेशी विचारधारा (Foreign Ideology) के रूप में वर्णित किया गया है।
यूरोपीय संघ का संकल्प:
- यूरोपीय संघ की संसद द्वारा प्रस्तुत इस प्रस्ताव में यूरोपीय संघ क्षेत्र को ‘LGBTIQ फ्रीडम ज़ोन’ (LGBTIQ Freedom Zone) के रूप में घोषित किया गया है।
- यह प्रस्ताव LGBTIQ लोगों को यूरोपीय संघ में किसी भी स्थान पर निवास करने, सार्वजनिक रूप से असहिष्णुता, भेदभाव या उत्पीड़न के डर के बिना अपनी यौन अभिविन्यास और लैंगिक पहचान व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- इस प्रस्ताव में यूरोपीय संघ द्वारा अधिकारियों से सभी स्तरों पर समानता और मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने का आग्रह किया गया है , जिसमें एलजीबीटीक्यू व्यक्ति भी शामिल हैं।
LGBTIQ समुदाय के संदर्भ में वैश्विक परिदृश्य:
- आयरलैंड: आयरलैंड द्वारा समलैंगिक विवाह को वैधता प्रदान की गई। वर्ष 1993 में आयरलैंड द्वारा समलैंगिकता को हतोत्साहित किया गया था। बाद में यह पहला देश बना जिसने राष्ट्रीय स्तर हुए जनमत संग्रह द्वारा समलैंगिक विवाह को अनुमति प्रदान की।
- अमेरिका: अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की गई।
- नेपाल: वर्ष 2007 में नेपाल द्वारा समलैंगिकता को वैध कर दिया गया तथा देश का नया संविधान LGBTIQ समुदाय को कई अधिकार प्रदान करता है।
भारत में LGBT समुदाय:
- वर्ष 2018 में नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (Navtej Singh Johar v. Union of India) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आईपीसी की धारा 377 को हटा दिये जाने के बाद भी एलजीबीटीक्यू समुदाय हेतु एक नीति को लागू करने और इस समुदाय के लिये बेहतर वातावरण बनाने में व्यापक अंतर है। अभी भी ऐसे कई मुद्दे हैं जिनका सामना LGBTIQ समुदाय द्वारा विभिन्न स्तरों पर एक चुनौती के रूप में किया जा रहा है जो इस प्रकार हैं:
- परिवार: लेैंगिक संरचना की पहचान की समस्या से विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार का विघटन होता है। माता-पिता और उनके एलजीबीटीक्यू बच्चों के बीच संचार की कमी और गलतफहमी से परिवार में विवाद बढ़ जाता है।
- कार्यस्थल पर भेदभाव: कार्यस्थल पर भेदभाव के चलते LGBTIQ समुदाय का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं से ग्रस्त है।
- अन्याय: मानवाधिकार और मौलिक अधिकार सभी लोगों के लिये विद्यमान हैं, लेकिन राज्य ऐसे विशेष कानून बनाने में विफल रहे हैं जो LGBTIQ अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा करते हों और वास्तव में न्याय प्रदान करने में सहायक हों।
- स्वास्थ्य के मुद्दे: समलैंगिकता के अपराधीकरण के कारण भेदभाव की स्थिति उत्पन्न होती है जो एलजीबीटीक्यू लोगों को बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली तक पहुंँचने में बाधा उत्पन्न करती है। यह स्थिति उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधा तथा एचआईवी रोकथाम परीक्षण एवं उपचार सेवाओं तक पहुँच प्राप्त करने की उनकी क्षमता को बाधित करती है।
- अलगाव और नशीली दवाओं का दुरुपयोग: समाज और परिवार में सम्मान की कमी और कम आत्मविश्वास के कारण ये लोग दोस्तों और परिवार से अलग हो जाते हैं। खुद को तनाव, अस्वीकृति और भेदभाव से छुटकारा पाने की भावना के चलते ये लोग ड्रग्स, शराब और तंबाकू के आदी हो जाते हैं।
संबंधित कानूनी विकास:
- नाज़ फाउंडेशन बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2009):
- दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करते हुए वयस्कों के मध्य सहमति के आधार पर समलैंगिक गतिविधियों को वैधता प्रदान की गई थी।
- सुरेश कुमार कौशल केस (2013):
- सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय (वर्ष 2009) के पिछले फैसले को पलटते हुए तर्क दिया कि "लैंगिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा" को कानून की संवैधानिकता के निर्धारण में एक तर्क के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
- न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017):
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि गोपनीयता का मूल अधिकार जीवन और स्वतंत्रता हेतु अनिवार्य है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। अत: न्यायालय द्वारा यह माना गया कि 'लेैंगिक संरचना गोपनीयता की एक अनिवार्य विशेषता है ’(sexual orientation is an essential attribute of privacy)।
- नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018)
- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने सुरेश कुमार कौशल मामले (2013) में दिये गए निर्णय को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।
- शफीन जहान बनाम असोकन के.एम. और अन्य (2018): सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि साथी का चुनाव करना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जो समलैंगिक जोड़ों पर भी लागू हो सकता है।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019: संसद द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 पारित किया गया, जिसमें लिंग और लेैंगिक पहचान जैसी संकीर्ण सोच की आलोचना की गई।
- समलैंगिक विवाह: फरवरी, 2021 में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब वह "जैविक पुरुष"(Biological Man) और "जैविक महिला" (Biological Woman) के बीच हो और वे बच्चा पैदा करने में सक्षम हों।
आगे की राह:
- LGTBIQ समुदाय के उत्थान हेतु एक भेदभाव-विरोधी कानून की आवश्यकता है जो इस समुदाय में किसी भी प्रकार के ज़बरन परिवर्तन का विरोध करता हो तथा राज्य और समाज में बदलाव लाने हेतु इस समुदाय की लैंगिक पहचान या यौन अभिविन्यास के साथ इन्हें सशक्त बनाने में सहायक हो।
- सरकारी निकायों, विशेष रूप से स्वास्थ्य से संबंधित और कानून व्यवस्था को यह सुनिश्चित करने हेतु संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है कि LGTBIQ समुदाय को सार्वजनिक सेवाओं से वंचित न किया जाए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से ‘उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991’ को चुनौती देने वाली एक याचिका पर जवाब देने को कहा है।
- गौरतलब है कि यह अधिनियम किसी भी पूजा/उपासना स्थल की वस्तुस्थिति को उसी अवस्था में रोक देता/बनाए रखता है, जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को थी।
- इस कानून की जाँच करने पर सहमति देते हुए न्यायालय ने मथुरा और वाराणसी सहित देश भर के विभिन्न पूजा स्थलों के संदर्भ में मुकदमे दायर करने के लिये दरवाज़े खोल दिये हैं।
प्रमुख बिंदु:
उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991:
- यह पूजा स्थलों (राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के मामले को छोड़कर, जिसका मामला पहले से ही अदालत में था) की "धार्मिक प्रकृति" को वर्ष 1947 की स्थिति के अनुरूप बनाए रखने का प्रयास करता है।
उद्देश्य:
- इस अधिनियम की धारा 3 के तहत पूजा स्थल या यहाँ तक कि उसके खंड को एक अलग धार्मिक संप्रदाय या एक ही धार्मिक संप्रदाय के अलग वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित करने को प्रतिबंधित किया गया है।
- इस अधिनियम की धारा 4(2) में कहा गया है कि पूजा स्थल की प्रकृति को परिवर्तित करने से संबंधित सभी मुकदमे, अपील या अन्य कार्रवाईयाँ (जो 15 अगस्त, 1947 को लंबित थी) इस अधिनियम के लागू होने के बाद समाप्त हो जाएंगी और ऐसे मामलों पर कोई नई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- हालाँकि यदि पूजा स्थल की प्रकृति में बदलाव 15 अगस्त, 1947 (अधिनियम के लागू होने के बाद) की कट-ऑफ तारीख के बाद हुआ हो, तो उस स्थिति में कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
- यह अधिनियम सरकार के लिये भी एक सकारात्मक दायित्व निर्धारित करता है कि वह हर पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र/प्रकृति को उसी प्रकार बनाए रखे जैसा कि वह स्वतंत्रता के समय था।
- सरकार पर सभी धर्मों की समानता को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये यह विधायी दायित्व एक आवश्यक धर्मनिरपेक्ष गुण है तथा यह भारतीय संविधान की मूल विशेषताओं में से एक है।
अपवाद:
- अयोध्या का विवादित स्थल (राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद) को इस अधिनियम से छूट दी गई थी। इसी छूट के कारण इस कानून के लागू होने के बाद भी अयोध्या मामले में मुकदमा आगे बढ़ सका।
- अयोध्या विवाद के अलावा इस अधिनियम में कुछ अन्य मामलों को भी छूट दी गई:
- कोई भी पूजा स्थल जो ‘प्राचीन स्मारक और पुरातात्त्विक स्थल अवशेष अधिनियम, 1958’ के तहत शामिल प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या एक पुरातात्त्विक स्थल है।
- ऐसे मुकदमे जिनका निस्तारण हो चुका है या जिन पर अंतिम फैसला दिया जा चुका है।
- ऐसा कोई भी विवाद जिसे संबंधित पक्षों द्वारा सुलझा लिया गया है या जिन उपासना स्थलों का रूपांतरण इस अधिनियम के लागू होने से पहले की मौन स्वीकृति के माध्यम से किया गया हो।
दंड:
- इस अधिनियम की धारा 6 के तहत अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष के कारावास के दंड का प्रावधान है।
सर्वोच्च न्यायालय का मत:
- वर्ष 2019 में अयोध्या मामले के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने इस कानून का उल्लेख करते हुए कहा कि यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को प्रकट करता है और इसकी प्रतिगामिता को सख्ती से प्रतिबंधित करता है।.
याचिका में दिये गए तर्क:
- याचिका में इस अधिनियम को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है।
- इस याचिका में यह तर्क दिया गया है कि 15 अगस्त, 1947 की कट-ऑफ तिथि "मनमाना, तर्कहीन और पूर्वव्यापी" है तथा यह हिंदुओं, जैन, बौद्धों और सिखों को अपने "पूजा स्थलों" पर पुनः दावा करने के लिये अदालत जाने से रोकती है, जिन पर "कट्टरपंथी बर्बर आक्रमणकारियों" द्वारा "आक्रमण" कर "अतिक्रमण" कर लिया गया था।
- याचिका में यह तर्क दिया गया है कि केंद्र के पास "तीर्थस्थल" या "कब्रिस्तान" पर कानून बनाने की कोई शक्ति नहीं है, जो राज्य सूची के तहत आते हैं।
- हालाँकि सरकार के अनुसार, वह इस कानून को लागू करने के लिये संघ सूची की प्रविष्टि 97 के तहत अपनी अवशिष्ट शक्ति का उपयोग कर सकती है।
- संघ सूची की प्रविष्टि 97 केंद्र को उन विषयों पर कानून बनाने के लिये अवशिष्ट शक्ति प्रदान करती है जिन्हें (जिन विषयों को) तीनों में से किसी भी सूची में शामिल नहीं किया गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
ऊर्जा दक्षता उद्यम (E3) प्रमाणपत्र कार्यक्रम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विद्युत मंत्रालय (Ministry of Power) ने "ईंट निर्माण क्षेत्र के लिये ऊर्जा दक्षता उद्यम (E3) प्रमाणपत्र कार्यक्रम" (Energy Efficiency Enterprise (E3) Certifications Programme for the Brick Manufacturing Sector) शुरू किया है।
- E3 प्रमाणन योजना का उद्देश्य इस क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता क्षमता का अधिक दोहन करना है।
प्रमुख बिंदु
ऊर्जा दक्षता उद्यम (E3) प्रमाणपत्र कार्यक्रम के विषय में:
- E3 प्रमाणन ईंट उद्योग पर केंद्रित एक मान्य प्रक्रिया है। यह प्रमाणन ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency) द्वारा प्रदान किया जाएगा।
- यह ऊर्जा-कुशल विनिर्माण को अपनाने वाले ईंट निर्माताओं को पहचानने और ग्राहकों को ऐसी E3 प्रमाणित विनिर्माण इकाइयों से ईंट खरीदने के लिये प्रोत्साहित करने की पहल है।
- यह प्रमाणपत्र उन ईंट निर्माण उद्यमों को प्रदान किया जाएगा जो इस योजना में निर्दिष्ट न्यूनतम विशिष्ट ऊर्जा खपत (Specific Energy Consumption) मानदंडों को पूरा करते हैं।
- यह उद्यम ऊर्जा अनुकूल ईंट निर्माण प्रक्रिया और प्रौद्योगिकी तथा निम्न घनत्व वाली ईंटों (छिद्रित या छिद्रपूर्ण ईंटों) के उत्पादन को अपनाकर E3 प्रमाणन के योग्य हो सकता है।
- E3 प्रमाणन को अपनाना वर्तमान में ईंट उद्योग के लिये स्वैच्छिक है।
ईंट विनिर्माण क्षेत्र:
- सकल घरेलू उत्पादन में योगदान: ईंट क्षेत्र का देश की जीडीपी में लगभग 0.7% का योगदान है, जो 1 करोड़ से अधिक श्रमिकों को मौसमी रोज़गार प्रदान करता है, साथ ही परिवहन एवं निर्माण जैसे अन्य आर्थिक क्षेत्रों पर भी इसका गहरा प्रभाव है।
- बाज़ार का आकार: भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा ईंट उत्पादक देश है और E20 प्रमाणन कार्यक्रम के माध्यम से यह मांग अगले 20 वर्षों में तीन से चार गुना होने की उम्मीद है।
- ऊर्जा की खपत: ईंट निर्माण उद्योग में सालाना लगभग 45-50 मिलियन टन कोयले की खपत होती है, जो देश में कुल ऊर्जा खपत का 5-15% है।
- ईंट क्षेत्र में स्टील और सीमेंट के बाद भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता के लिये दूसरी सबसे बड़ी क्षमता मौजूद है।
E3 प्रमाणन के लाभ:
- E3 प्रमाणन के कार्यान्वयन से निम्नलिखित लाभ होंगे:
- ईंट निर्माण प्रक्रिया में ऊर्जा की बचत।
- ईंटों की गुणवत्ता में सुधार।
- घरों की लागत में कमी।
- ऐसी इमारतों के मालिकों को बेहतर तापीय सुविधा (Better Thermal Comfort) और बेहतर तापरोधी गुणों (Improve Insulation Property) के कारण ऊर्जा की बचत।
- यह प्रतिवर्ष 7 मिलियन टन तेल और कार्बन मोनोआक्साइड (CO) की ऊर्जा बचत के बराबर है तथा वर्ष 2030 तक 7500 ईंट निर्माण इकाइयों द्वारा E3 प्रमाणन को अपनाने से लगभग 25 मिलियन टन की बचत अनुमानित है।
- क्षेत्र का आधुनिकीकरण: E3 प्रमाणन योजना ईंट क्षेत्र के आधुनिकीकरण में तेज़ी लाने का प्रयास के साथ ही बाज़ार में उपलब्ध लाभ का उपयोग करके ग्राहकों की मांग को पूरा करके आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) के विज़न को पूरा करने का काम कर रही है।
- ECBC का अनुपालन: ऊर्जा कुशल ईंटें ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (Energy Conservation Building Code- ECBC) की आवश्यकताओं को पूरा करने में उपयोगी होंगी।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो
- यह ब्यूरो विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है, जिसे वर्ष 2002 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था।
- ऊर्जा दक्षता और संरक्षण के क्षेत्र में इन नीतियों तथा कार्यक्रमों को लागू करना अनिवार्य है।
- यह भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा आधिक्य को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ विकासशील नीतियों और रणनीतियों में सहायता करता है।
- प्रमुख कार्यक्रम: राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक, प्रदर्शन और व्यापार योजना, मानक तथा लेबलिंग कार्यक्रम, ऊर्जा संरक्षण भवन कोड आदि।
ऊर्जा संरक्षण भवन कोड
- इस कोड को नए व्यावसायिक भवनों में न्यूनतम ऊर्जा प्रदर्शन मानकों को स्थापित करने के लिये वर्ष 2007 में विकसित किया गया था।
- इमारतों द्वारा ऊर्जा संसाधनों के एक महत्त्वपूर्ण अनुपात का उपभोग किया जाता है और ECBC इन इमारतों की ऊर्जा खपत को कम करने वाला एक आवश्यक नियामक उपकरण है।
- ECBC 100 किलोवाट (kW) के संयोजित लोड या 120 kVA (किलोवोल्ट-एम्पीयर) और उससे अधिक की अनुबंधित मांग वाले नए वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक निर्धारित करता है।
- BEE ने इमारतों के लिये एक स्वैच्छिक स्टार रेटिंग कार्यक्रम भी विकसित किया है जो एक इमारत के वास्तविक प्रदर्शन [इमारत के अपने क्षेत्रफल में ऊर्जा के उपयोग के संदर्भ में kWh/sq. m/year में व्यक्त)] पर आधारित है।
स्रोत: पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
क्वाड शिखर सम्मेलन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने क्वाड (QUAD) समूह के प्रतिनिधियों के पहले शिखर सम्मेलन को संबोधित किया। इस बैठक को अमेरिका द्वारा एक आभासी मंच पर आयोजित किया गया।
- इससे पहले फरवरी 2021 में क्वाड मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत-प्रशांत क्षेत्र और म्याँमार में सैन्य अधिग्रहण के मुद्दों पर चर्चा हुई।
- क्वाड भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान देशों का एक समूह है, जिसका उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों के हितों की रक्षा करना और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
प्रमुख बिंदु:
केंद्रीय बिंदु:
- कोविड-19, जलवायु परिवर्तन और उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे विषय।
संकल्प:
- क्वाड, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर आधारित ‘स्वतंत्र, मुक्त एवं समृद्ध' भारत-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने तथा भारत-प्रशांत क्षेत्र और क्षेत्रों में मौजूद चुनौतियों से निपटने के प्रति प्रतिबद्ध है।
प्रमुख बिंदु:
- क्वाड वैक्सीन पार्टनरशिप:
- महामारी का मुकाबला करने के लिये टीकों तक "न्यायसंगत" पहुँच सुनिश्चित करने हेतु सहमत।
- अपने वित्तीय संसाधनों, विनिर्माण क्षमताओं और तार्किक शक्तियों को एकत्रित करने की योजना पर सहमत।
- जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भारत द्वारा शुरू की गई वैक्सीन मैत्री पहल को वित्तीय सहायता प्रदान करेंगे।
- भारत की ‘वैक्सीन मैत्री पहल’ (भारत की वैक्सीन कूटनीति) की सराहना की।
- वैक्सीन मैत्री पहल पड़ोसी देशों को कोविड-19 के टीके प्रदान करने के लिये भारत द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
- चीन से संबंधित चर्चा:
- वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर क्वाड नेताओं ने चीनी आक्रामकता के कई उदाहरणों में से एक के रूप में चर्चा की।
- हॉन्गकॉन्ग, शिनज़ियांग, ताइवान स्ट्रेट और ऑस्ट्रेलिया पर दवाब तथा सेनकाकू विवाद से संबंधित अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की गई।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिष्ठानों (Microsoft Exchange और Solar Winds) पर चीनी साइबर हमले के बारे में और भारत, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया में साइबर सुरक्षा संबंधी घटनाओं पर भी चर्चा की गई।
भारत का पक्ष:
- क्वाड अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के चलते एकजुट है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ बना रहेगा।
- इस समूह को प्राचीन भारतीय दर्शन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का विस्तार कहा जाता है, जो दुनिया को एक परिवार मानता है।
अमेरिका का पक्ष:
- क्वाड एक सैन्य गठबंधन या उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के समकक्ष नहीं है, यह अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी, जलवायु और सुरक्षा पर सहयोग करने का अवसर है।
- समुद्री सुरक्षा, मानवीय और आपदा प्रतिक्रिया क्वाड एजेंडे के मूल में हैं।
- भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के लिये QUAD एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बनता जा रहा है।
ऑस्ट्रेलिया का पक्ष:
- क्वाड समूह के माध्यम से समान विचारधारा वाले लोकतंत्रों के एक नए स्थायी और शक्तिशाली क्षेत्रीय समूह की शुरुआत हो सकती है।
जापान का पक्ष:
- सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं की बैठक के कारण क्वाड को नई गतिशीलता मिली है।
- जापान एक स्वतंत्र और समृद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र और कोविड-19 से उभरने सहित क्षेत्र की शांति, स्थिरता के लिये ठोस योगदान करके अपने सहयोग को मज़बूती से आगे बढ़ाएगा।
चीन की आशंका:
- चीन ने कहा है कि देशों के बीच आदान-प्रदान और सहयोग तीसरे पक्ष को लक्षित करने के बजाय आपसी समझ से करना चाहिये और किसी विशेष गुट का पीछा करने से बचना चाहिये।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के शीर्ष राजनयिकों के बीच मार्च 2021 के अंत में अलास्का में बैठक होने वाली है।
- QUAD को खुलेपन, समावेशिता और जीत के परिणामों के सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिये और ऐसे कार्यों को करना चाहिये जो क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि के अनुकूल हों।
क्वाड:
- चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (QUAD- Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात् क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मंच है।
- यह 'मुक्त, खुले और समृद्ध' भारत-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने और उसके समर्थन के लिये इन देशों को एक साथ लाता है।
- क्वाड की अवधारणा औपचारिक रूप से सबसे पहले वर्ष 2007 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे द्वारा प्रस्तुत की गई थी, हालाँकि चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया के पीछे हटने के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका।
- शिंज़ो आबे द्वारा वर्ष 2012 में हिंद महासागर से प्रशांत महासागर तक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को शामिल करते हुए एक ‘डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड’ (Democratic Security Diamond) स्थापित करने का विचार प्रस्तुत किया गया।
- ‘क्वाड’ समूह की स्थापना नवंबर 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को किसी बाहरी शक्ति (विशेषकर चीन) के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु नई रणनीति बनाने के लिये हुई और आसियान शिखर सम्मेलन के एक दिन पहले इसकी पहली बैठक का आयोजन किया गया।
- क्वाड के सभी चार देशों (जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया और यूएसए) ने वर्ष 2020 में मालाबार अभ्यास (Malabar Exercise) में भाग लिया।
- मालाबार अभ्यास भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेनाओं के बीच होने वाला एक वार्षिक त्रिपक्षीय नौसेना अभ्यास है, जिसे भारतीय तथा प्रशांत महासागरों में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है।
स्रोत- द हिंदू
भूगोल
संगे ज्वालामुखी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इक्वाडोर स्थित संगे ज्वालामुखी में हुए विस्फोट के बाद इससे निकले राख के बादल आकाश में 8,500 मीटर (लगभग 28, 890 फीट) की ऊँचाई तक पहुँच गए।
प्रमुख बिंदु:
संगे ज्वालामुखी:
- संगे ज्वालामुखी इक्वाडोर के साथ-साथ विश्व के सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है।
- संगे एंडीज़ के उत्तरी ज्वालामुखी क्षेत्र में स्थित सबसे दक्षिणी मिश्रित ज्वालामुखी (लावा और राख की वैकल्पिक परतों से बना एक ज्वालामुखी) है। यह 5230 मीटर ऊँचा है।
- एंडीज़ विश्व की सबसे लंबी पर्वत शृंखला (जल के ऊपर) है और इसमें विश्व की कुछ सबसे ऊँची चोटियाँ शामिल हैं।
- संगे राष्ट्रीय उद्यान एंडीज़ पर्वतों के पूर्वी हिस्से में इक्वाडोर के मध्य भाग में स्थित है। यह एक विश्व धरोहर स्थल है।
विस्फोट:
- इस ज्वालामुखी में विस्फोट का सबसे पुराना मामला वर्ष 1628 में दर्ज किया गया है। वर्ष 1728 से वर्ष 1916 के बीच तथा पुनः वर्ष 1934 से वर्तमान तक कमोबेश निरंतर विस्फोट के मामले देखे गए थे।
इक्वाडोर के अन्य प्रमुख ज्वालामुखी:
- इक्वाडोर, पैसिफिक रिम के "रिंग ऑफ फायर" क्षेत्र का हिस्सा है और इस देश में आठ ज्वालामुखी हैं, जैसे- कोटोपेक्सी (5,897 मी.), कैम्बे (5,790 मी.), पिचिंचा (4,784 मी.) आदि।
ज्वालामुखी विस्फोट:
परिचय:
- ज्वालमुखी क्रिया के अंतर्गत पृथ्वी के आतंरिक भाग में मैग्मा व गैस के उत्पन्न होने से लेकर भू-पटल के नीचे व ऊपर लावा के प्रकट होने तथा शीतल व ठोस होने तक की समस्त प्रक्रियाएँ शामिल की जाती हैं।
- इसका सबसे आम परिणाम आबादी का स्थानांतरण है, क्योंकि अक्सर लावा के प्रवाह से बचने के लिये बड़ी संख्या में लोगों को भागने के लिये विवश होना पड़ता है।
प्रकार: ज्वालामुखीय गतिविधि और ज्वालामुखी क्षेत्रों को आमतौर पर छह प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जाता है:
- आइसलैंडिक (Icelandic):
- इसमें पिघला हुआ बेसाल्टी लावा लंबे और समानांतर दरार (Parallel Fissure) से बहता है। इस प्रकार का बहाव अक्सर लावा पठारों का निर्माण करता है।
- हवाईयन (Hawaiian):
- यह आइसलैंडिक ज्वालामुखी के समान ही होता है। हालाँकि इसमें ज्वालामुखी के शिखर व त्रिज्यीय दरारों से तरल लावा का प्रवाह होता है, इससे शील्ड ज्वालामुखी का निर्माण होता है, जो काफी बड़े होते हैं और मंद ढलान वाले होते हैं।
- स्ट्राम्बोलियन (Strombolian):
- इनमें गर्म गैसों के मध्यम विस्फोट शामिल होते हैं जो चक्रीय या लगभग निरंतर छोटे विस्फोटों में तापदीप्त लावा को थक्के के रूप में बाहर निकालते हैं।
- इस तरह के कम अंतराल वाले निरंतर विस्फोटों के कारण इटली के उत्तर-पूर्वी तट से दूर स्ट्रॉमबोली द्वीप पर स्थित स्ट्रोम्बोली ज्वालामुखी को "भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ" कहा गया है।
- वल्कैनियन (Vulcanian):
- इसका नाम स्ट्रोमबोली के पास वल्केनो द्वीप से प्रेरित है, इस ज्वालामुखी में आमतौर पर ज्वालामुखी की राख से भरे गैस के विस्फोट होते हैं। यह मिश्रण गहरे, अशांत बादलों का निर्माण करता है जो तेज़ी से ऊपर उठते है और घुमावदार आकार में फैल जाते हैं।
- पिलियन:
- इसका अभिप्राय ऐसे विस्फोट से है, जो पाइरोक्लास्टिक प्रवाह उत्पन्न करते हैं, यह गर्म गैस और ज्वालामुखीय पदार्थ का एक घना मिश्रण होता है।
- इन विस्फोटों द्वारा उत्पन्न द्रवीय मिश्रण (fluidized slurries) हवा की तुलना में भारी होते हैं, किंतु इनमें कम श्यानता होती है और ये तीव्र वेग के साथ ढलानों से नीचे गिरते हैं, नतीजतन ये बेहद विनाशकारी होते हैं।
- पीनियन:
- यह तीव्र ज्वालामुखी विस्फोट का एक प्रकार है। इस प्रकार के विस्फोट में गैस युक्त मैग्मा से निकलने वाली गैसें तीव्र विस्फोट उत्पन्न करती हैं, जिसके माध्यम से मैग्मा बाहर निकलता रहता है।