इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रवासी श्रमिकों का डेटाबेस

  • 15 Dec 2020
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने देश भर के सभी प्रवासी श्रमिकों का एक डेटाबेस बनाने का निर्णय लिया है, जिसमें अनौपचारिक क्षेत्र के प्रवासी श्रमिक भी शामिल होंगे।

  • अपने मूल निवास स्थान से दूर आंतरिक (देश के भीतर) अथवा अंतर्राष्ट्रीय (विभिन्न देशों में) सीमाओं के पार लोगों की आवाजाही को प्रवासन कहते हैं। अब तक भारत में प्रवासन से संबंधित आँकड़ों के लिये वर्ष 2011 की जनगणना का प्रयोग किया जाता है।
  • जनगणना के आँकड़ों की मानें तो भारत में वर्ष 2011 में कुल 45.6 करोड़ (कुल जनसंख्या का 38 प्रतिशत) प्रवासी थे, जबकि वर्ष 2001 की जनगणना में यह संख्या 31.5 करोड़ (कुल जनसंख्या का 31 प्रतिशत) थी। 

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 में प्रवासी श्रमिकों को नियुक्त करने वाले सभी प्रतिष्ठानों का पंजीकृत होना अनिवार्य किया गया है, साथ ही प्रवासी श्रमिकों को काम देने वाले ठेकेदारों के लिये भी लाइसेंस लेना आवश्यक है।
  • यदि इस कानून का सही ढंग से कार्यान्वयन किया जाता तो इसके माध्यम से अलग-अलग राज्यों में कार्यरत प्रवासी श्रमिकों से संबंधित डेटा आसानी से उपलब्ध हो सकता था और इससे राज्य सरकारों को प्रवासी श्रमिकों के लिये कल्याण योजनाएँ बनाने में काफी सहायता मिलती।
    • हालाँकि इस कानून का सही ढंग से कार्यान्वयन न होने के कारण केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के पास प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कोई भी विस्तृत रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। 
  • कोरोना वायरस महामारी के मद्देनज़र प्रवासी श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों का एक विस्तृत डेटाबेस बनाना काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

गृह राज्य वापस लौटे श्रमिकों की आजीविका के लिये सरकार के हालिया प्रयास:

  • कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने कुशल श्रमिकों को आजीविका के अवसर खोजने में सहायता प्रदान करने के लिये असीम (ASEEM) पोर्टल लॉन्च किया है।
    • असीम (ASEEM) पोर्टल का पूर्ण रूप 'आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण (Aatamanirbhar Skilled Employee-Employer Mapping) है।
    • भारत के विभिन्न राज्यों से अपने घरों को वापस लौटे श्रमिकों तथा वंदे भारत मिशन के तहत स्वदेश लौटे भारतीय नागरिकों, जिन्होंने ‘कौशल कार्ड’ में पंजीकरण कराया है, के डेटाबेस को भी इस पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है।  
  • राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने एक ऑनलाइन डैशबोर्ड ‘राष्‍ट्रीय प्रवासी सूचना प्रणाली’ (NMIS) को विकसित किया है। 
    • यह ऑनलाइन पोर्टल प्रवासी कामगारों के बारे में केंद्रीय कोष बनाएगा और उनके मूल स्‍थानों तक उनकी यात्रा को सुचारु बनाने के लिये अंतर-राज्‍यीय संचार/समन्वय में मदद करेगा।
  • महाराष्ट्र सरकार ने महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक अनिश्चितता को देखते हुए रोज़गार की तलाश कर रहे लोगों और नियोक्ताओं के लिये ‘महाजॉब्स’ नाम से एक पोर्टल लॉन्च किया है।
  • आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोज़गार अभियान
    • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई यह योजना स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने और औद्योगिक इकाइयों के साथ साझेदारी कर 1.25 करोड़ ऐसे प्रवासी कामगारों को रोज़गार के अवसर प्रदान करने पर ज़ोर देती है, जिन्होंने कोरोना वायरस महामारी के कारण रोज़गार खो दिया है। 
      • राज्य सरकार ने पहले ही श्रमिकों के कौशल के मानचित्रण का कार्य पूरा कर लिया है, ताकि उनकी विशेषज्ञता के अनुसार उन्हें रोज़गार उपलब्ध कराया जा सके।
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ‘प्रवासन आयोग’ के गठन को मंज़ूरी दी है, जिसे मुख्यतः प्रवासी श्रमिकों के कौशल का मानचित्रण और श्रमिकों का कल्याण सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा गया है।

प्रवासन के कारण

  • प्रवासन एक वैश्विक घटना है, जो न केवल आर्थिक कारकों से, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे कई अन्य कारकों से भी प्रभावित होती है। प्रवासन के सभी कारकों को प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारकों के व्यापक वर्गीकरण के तहत शामिल किया जा सकता है।
    • प्रतिकर्ष कारक (Push Factor): प्रतिकर्ष कारक वे होते हैं, जो एक व्यक्ति को अपने सामान्य निवास स्थान को छोड़ने और किसी अन्य स्थान पर प्रवास करने के लिये मजबूर करते हैं, जैसे- बेरोज़गारी, राजनीतिक उपद्रव और महामारी आदि।
    • अपकर्ष कारक (Pull Factor): अपकर्ष कारक उन कारकों को इंगित करते हैं, जो प्रवासियों को किसी एक क्षेत्र विशिष्ट (गंतव्य) में आने के लिये आकर्षित करते हैं, जैसे- काम के बेहतर अवसर और रहन-सहन की अच्छी दशाएँ आदि।

Push-pull-factors

प्रवासन का पैटर्न

  • आंतरिक प्रवासन को मूल एवं  गंतव्य के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। 
    • ग्रामीण-ग्रामीण, ग्रामीण-शहरी, शहरी-ग्रामीण और शहरी-शहरी
  • प्रवासन को वर्गीकृत करने का दूसरा तरीका है:
    • अंतर्राज्यीय और आतंरिक-राज्य
  • वर्ष 2011 तक उत्तर प्रदेश और बिहार अंतर्राज्यीय प्रवासियों के सबसे बड़ा स्रोत थे, जबकि महाराष्ट्र और दिल्ली प्रवासियों के सबसे बड़े अभिग्राही (Receiver) राज्य थे। इस अवधि तक उत्तर प्रदेश के लगभग 83 लाख एवं बिहार के 63 लाख निवासी या तो अस्थायी अथवा स्थायी रूप से अन्य राज्यों में चले गए थे।

डेटाबेस की योजना

  • प्रवासी श्रमिकों का नवीन डेटाबेस तैयार करने के लिये मौजूदा सरकारी योजनाओं- जैसे मनारेगा और एक देश-एक राशन कार्ड आदि के डेटाबेस के उपयोग की योजना बनाई गई है।
  • इस डेटाबेस में मौजूदा सरकारी योजनाओं के तहत न आने वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का विवरण अलग से शामिल किया जाएगा।

मुद्दे

  • आतंरिक-राज्य प्रवासन से संबंधित डेटा का अभाव
    • इस डेटाबेस को लेकर हो रही संपूर्ण वार्ता अंतर्राज्यीय प्रवासन पर ही केंद्रित है, जबकि आतंरिक-राज्य प्रवासन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में प्रवासियों के दोनों समूहों को शामिल करने के लिये डेटाबेस के दायरे का विस्तार करने की आवश्यकता है।
  • नियोजित की परिभाषा में विसंगति
    • देश में प्रवासन का विस्तार नियोजित की परिभाषा पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिये राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण और जनगणना द्वारा उपयोग की जाने वाली परिभाषाओं में काफी अंतर है।
    • ऐसे में हमें रोज़गार और नियोजित के लिये एक व्यापक परिभाषा विकसित करने की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी बाधाएँ
    • नए डेटाबेस को राज्य स्तर के मौजूदा डेटाबेस के साथ मिलाना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि सभी स्तरों पर डेटा स्टोरेज के सॉफ्टवेयर्स और स्ट्रक्चर काफी अलग होंगे।
      • आधार-डेटाबेस का प्रयोग करने से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • श्रमिकों के पंजीकरण पर स्पष्टता का अभाव
    • पंजीकरण की प्रक्रिया में अभी तक किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं किया गया है कि यह प्रक्रिया पूर्णतः स्वैच्छिक होगी अथवा सरकारी संस्थाओं द्वारा पूरी की जाएगी।
  • पोर्टेबिलिटी की समस्या 
    • सरकारों को राज्यों में इस डेटाबेस के उपयोग की पोर्टेबिलिटी के मुद्दे की जाँच करनी होगी।

अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979

  • यह अधिनियम अंतर्राज्यीय प्रवासियों के रोज़गार और उनकी सेवा शर्तों को विनियमित करने का प्रयास करता है।
  • यह अधिनियम उन सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, जिन्होंने दूसरे राज्यों के पाँच या उससे अधिक प्रवासी कामगारों को रोज़गार प्रदान किया है अथवा उन्होंने बीते 12 महीनों में किसी भी दिन पाँच या अधिक प्रवासी कामगार नियुक्त किये हों।
    • यह अधिनियम उन ठेकेदारों पर भी लागू होता है, जिन्होंने 5 अथवा उससे अधिक अंतर्राज्यीय कामगारों को नियोजित किया है।
  • यह अधिनियम ऐसे सभी प्रतिष्ठानों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है। कोई भी नियोक्ता संबंधित प्राधिकरण से पंजीकरण प्रमाणपत्र के बिना अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों को नियुक्त नहीं कर सकता है।
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि वे सभी ठेकेदार जो किसी एक राज्य के श्रमिकों को किसी दूसरे राज्य में नियुक्त करते हैं, उन्हें इस कार्य के लिये लाइसेंस प्राप्त करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2